________________ PPA Gunratnasuti MS प्रनो ज्ञानधनोऽसि त्वं, झानिनां नास्त्यगोचरः // मम संदेहसंदोहमपाकुरु कृपां कुरु॥१३१ / सूरिः प्रोवाच नोनूप, नविता तव संयमः॥ भविष्यति च नैरुज्यं, तस्याः कित्वस्ति कौतुकम् / हे प्रभो ! तमे ज्ञानधन छो, वली ज्ञानियोने कांइ अजाण्युं होतुं नथी, माटे कृपा करी म्हारो संदेह समूह * दूर करो." // 131 // सूरिये कह्यु. " हे भूपति ! तने चारित्र लेवाशे अने तेने निरोगीपणुं थशे; परंतु एक * कौतुक छे. // 13 // - नैरुज्यं न विना पाणिगृहं तच्च विना न तत् // अन्योन्याश्रयदोषोऽत्र, कथमेकं निरस्यताम् // एवंविधायास्तस्याः कः, परिणेता नविष्यति // विना पाणिगृहं तस्यारारोग्यं जायते नहि॥ रोगरहित विना पाणिगृहण थाय तेम नथो अने पाणि गृहण करया विना निरोगोपणुं थाय तेम नथो. आम परस्पर दोष आवी पडयो छे. तो एकनो शी रीते नाश थाय?॥ 133 // आवी रोगवाली ते कन्याने IN कोण परणशे, अने परण्या विना तेनुं आरोग्य थाय तेम नथो."॥ 134 // श्रुत्वेति चिंतया चांतःचेतसि वितिपे नृशम् // तापं बिज्रति सूरीस्तं सिषेच वचोऽमृतै // यदा पाणिगृहं तस्या, गंधराजः करिष्यति // तदा सुगंधतां सर्वामपि सो हि हरिष्यति॥१३६ आवां मुनिनां वचन सांभलो राजा चिंताथी मनमां बहु ताप पामवा लाग्यो एटले सुरीश्वरे तेने वाणीरूप 2 अमृतथी सींचन करयो के, // 135 // ज्यारे गंधराज ( प्रधाननो पुत्र ) ते तमारो पुत्रीनो पाणिगृहण करशे. त्यारे ते कुमार तमारी पुत्रीनी सर्व दुर्गधने दूर करशे. // 136 // श्रुत्वेति सदनं प्राप्तो, नृपः सचिवमूचिवान् // कारय स्वसुतं पाणिग्रहे मे कन्यया सह॥१३७ कृतांजलिरसौ प्रोचे, सुतो वैराग्यवासितः॥ आस्तां विवाहो नारीणां, नामापि सहते नहि // __ मुनिना आवां वचन सांभली पोताना घरे गयेला राजाए प्रधानने कयुं के, " म्हारी पुत्रीनी साथे / त्हारा पुत्रनुं लग्र कर. // 137 // हाथ जोडी प्रधाने कडं. “महाराज! म्हारां पुत्र वैराग्यवासीत थयो तेथी विवाह तो दर रह्यो; परंतु स्त्रोर्नु नाम पण सहन करतो नथो." // 138 // Jun Gun Aaradhak Trust