________________ PPA Gunnsut MS आगच्छेति वचः श्रुत्वा, तस्य वक्रविनिर्गतम् // मंत्री धार मनः कृत्वा, प्रचालादनुपनगम 31 इन्च गच्चन मैत्री सुखं सर्प, धृतदीप वांग्रगे // पातालविवरे शेशीइम्यां कुसुमवाटिकाम्॥३॥ ते सर्पना मुखथी निकलेला “म्हारी साथे चाल" एवां वचन सांभली मंत्री मनने धीर करी सर्पनी पाछल चाल्यो. // 31 // दीवाने धारण करी रह्यानी पेठे सर्प आगल चाले छते मंत्रीये सुखे जता छतां पाताल मुफामां मनोहर एवी पुष्पनी वाडी जोइ. / / 33 // मंदारचंपकाशोकपाटलऽमवासिताम् // तां वीदय हेदि दध्यौ स, महदेतत्कृतहलम् // 33 // वाटिकांतःस्थित तारतादृक्पुष्पविराजितम् // मैदारतरुमालोक्य, स एवं मुदादधेः // 3 // ___मंदार, चंपो, अशोक अने पाटलाना वृक्षोथी सुगंधवाली ते बाडीने जोइ मंत्री हृदयमां विचार करवा लाग्यो के, "आ म्होटुं आश्चर्य छे." // 33 / / वाडीनी मध्यमा रहेला अने उत्तम तवां पुष्पोथी सुशोभित एका मंदारवृक्ष ने जोइ मंत्री ए प्रमाणे हर्ष पाम्यो. // 35 // . तेरुतोऽमूनि पुष्पाणि, गृहीत्वा यामि नूरिशः॥ दत्तेष्वेतेषु पुत्राय, प्रीतो नेवेतु पौर्थिवः॥३॥ इति ध्यात्वा ततः पुष्पाप्त्यादौतुर्मुपचक्रमे // सर्पःस्पृष्टं तमाचष्ट, मर्यवाचा ग्रेहाण म॥३६॥ ___ " वृक्षथी घणां एवां आ पुष्पोने लइने हुं जाउं अने राजपुत्रने ते आपे छते राजा प्रसन्न थाओ". // 36 // ए प्रमाणे विचार करीने पछी जेटलामां ते पुष्पोने लेवानो आरंभ करे छे तेटलामा सर्प मनुष्यनी वाणीथी तेने | स्पृष्ट का के, “ए पुष्पोने तुं न ले. // 36 // . लच्यते न मुधा पुष्पाण्यप्रनुर्वाटिकापि नः॥गल वत्स गृहीत्वा तत् कुसुमानां चतुष्टयम्॥३॥ कार्य चेत्प्रचुरैरे'तैस्तदा मान्यं वचो मम // अहं प्रातःसमेष्यामि, स्वयमेवे सन्नातरे॥३॥ ___ अमारी वाडी छे पण असमर्थ पुरुष पुष्पोने फोगट लइ शकतो नथी, माटे हे वत्स! चार पुष्पोने लइ चाल्यो जा. // 37 // जो आ घणां पुष्पोर्नु काम होय तो म्हारं वचन मान्य करवं. हुं सवारे म्हारी पोतानी मेले सभामां आवीश." // 38 // . Jun Gun Aaradhak Trust