________________ P.P.A. Gunratnasuti MS // 27 // पछा पाण करता ५पा सनासाहत गुणवमा राजा चाल्या अन चपानगराप्रत्य आवा पहाचा रा-Y * जमंडलमा रह्यो. // 38 // त्यां चंपानगरीमा म्होटा गौरवपणाथी शूर राजाए वहु सत्कार करेलो अने इंद्रना है सरखा पराक्रमवालो ते राजकुमार निवासभुवनमा रह्यो. // 39 // हवे रत्नावलीये आज्ञा आपेली सारसी नामनी सखी सायंकालनी क्रीया करी रह्या पछी कुमार गुणवर्मानी पासे आवी, त्यां राजकुमारेतेनो आदरसत्कार करयो. // 40 // पछी ते सारसी सखीये एकांत करीने राजकुमारने कह्यु के, 'हे राजकुमार ! रत्नावली राज* गौरंगौरवपूरेण, शूरेण बहु मानितः // सोऽत्रावासमैलंचके, शक्रेण समविक्रमः // 3 // रत्नावलीसमादिष्ठा, सारसी नामतः सखी // सायंतनक्रियाप्रांते, प्राप्ता सा तेन मानिताnuote * कृत्वैकांतं च सावादी त कन्योक्तं शृणु वाचिकम् ॥अपाटवस्वरूपं यत्पूर्व जज्ञे तदप्यहो"॥३१ जाते स्वयंवरारंने, 'रनेवान्येयुरन्तम् // रूपं दधाना सा सायं, गैवावस्था राजत॥५॥ चिल्ली रूदती स्येनेनैव तंत्र खगेन सा // नत्य गगने नीत्वा, वने क्वापि व्यमुच्यत॥३ न्यस्य पादं गले तस्याः,खदमकिप्य नीषणम्॥ नचे 'मुँचाम्यहं कंप्रे,मैदाचं यदि मैन्यसे // मेयोस्ति कारितं चैत्यं, वैताळ्याचलसंनिधौ // स्थापिता च युगादीशमूर्तिस्तत्र मनोहरा॥४५ कुमारीये कहेला समाचार सांभलो अने पूर्वे तेनुं शरीर सारुं नहिं रहेवा धन्युं हतुं ते आश्चर्यकारी वृत्तांत सां भलो. // 41 // स्वयंवरनो आरंभ काया पली एक दिवस भानी पेठे अद्धतरूप धारण करी ते राजकमारी* * सांजे गोखमां बेठी हती. // 42 // एवामां सिंचाणाथीज पकडायेली चकलीनी पेठे रुदन करती एवी ते राजKel कन्याने त्यांथी कोई विद्याधरे उपाडी आकाशमा लई जईनै कोई ठेकाणे वनमा मूकी. // 43 // त्यां तेणे रा-* जकन्याना गला उपर पग मूकी अने भयंकर तरवार उगामीने कडं के, " हे भीरु ! जो तुं म्हारुवचन माने तो हुं तने मूकी दउं // 44 // में वैताढय पर्वतनी समीपे एक जिनमंदिर कराव्युं छे अने तेमां मनोहर एवी श्री XX Jun Gun Aaradhak Trust