________________ P.P.A. Gunratnasuti MS सपादकाटोमूल्यस्यान्यानूपातससाद // केनापि ढाकिता हारः, सामंतायानरोदितः // ___चोरोए कह्यु. "चोरी करे छते क यारे पण मानवू नही." एवी ते चारांनी शिखामण लइ पंडित कमला पोताने घेर आव्यो. // 243 // कोइ वखते राजसभामां कोइए मोकलेलो सवाक्रोड मूल्यनो हार सामंतादिकाए जोयो. // 244 // 'पंमितोऽपि करे कृत्वा, हारं बाह्यंतरें क्षिपत्॥ नचिता च संना सर्वा, नूंपश्चात :पुरं येयौ // हारं श्रुत्वा महादेवी, प्रार्थयामास जूनुजम् // कोशाध्यदं समाकार्य, तं च पंप्रेच नूमिपः॥ ___पंडिते पण हारने हाथमां लइ बांयनी अंदर नांखी दीधो. वली सर्व सभा उठी गइ अने राजा अंतःपुरमा गयो // 245 // त्यां हारनी वात सांभली पट्टराणीए ते जोवाने राजानी विनंती करी, तेथी राजाए की भंडारीने वोलावीने तेने पूछयुं // 246 // सोऽवादीन केरे हारः, प्राप्तो मे देव सर्वथा // संन्याः पृष्टास्ततः सर्वे, नूपनृत्यैः पृथक्पृथक्॥ | केचित् 'प्रोचिरैयं हारःपंमितस्य करं गतः॥ होतस्तेन चान्येने, को वेति" झॉनवर्जितः॥ ___ भंडारीए कहूं. "हे देव ! म्हारा हाथमा हार आव्यो नथी. पछी राजाना सेवकोए सर्वे सामंतोने जुदु जुदु पूछयु // 247 // कोइए कह्यु के, ए हार पंडितना हाथमा हतो, तो तेणे अथवा वीजा कोइये लीयो छे? ते ज्ञान विनानो कोण जाणी शके ?" // 248 // तेच्चुत्वा पंडितः प्राह, निर्विष्टो नूपसंसदि ॥ने गृहीतोऽस्त्यसो हारः केलंकस्तु तथाप्यन्त्॥ अकृत्वाहं महादिव्यं, नोबाँस्याम्ये सर्वथा॥पः प्रोचे मृषा "लोको, नाषते त्वं कर्मस्व तेत॥ ___ ते वात सांभली पंडिते का. “ए हार में राजमभामां मूकयो छे, लीयो नथी. तोपण मने कलंक पाप्त थयं // 249 // हवे हुँ महादिव्य कर्या विना सर्वथा उठीश नही.” राजाए कह्यु. लोको जूळू बोले छे, माटे तमे क्षमा करो // 250 // Jun Gun Aaradhak Trust | KXXXXXX