________________ PPC Gurut MS गुण पद्म किं न समायातस्तन्माता किं समेति न // ता वार्ताःकारय प्रिं, ब्रवीम्यागमकारणम् // श्रुत्वेत्यचिंतयन्मंत्री, यन्मया चिंतितं पुरा // तदेव घटते सत्यं, हा त्वया किं कृतं विधे॥५॥ // 19 // अहिं पद्म केम नथी आव्यो ? तेनी माता केम न आवी ? ए वात झट प्रथम कहे. पछी हुं मारूं आवबार्नु कारण कहूं. // 453 // शंकर राजर्षिनां आवां वचन सांजली प्रधान विचार करवा लाग्यो के, "जे में प्रथम चिंतव्यु हतुं तेज सत्य घटे छे. हाय ! हाय! हे विधि ! तें आ शुं करयं? // 454 // विहिते कुशलप्रश्ने, कुशलत्वं विलोक्यते // इत्येषा कापि वक्रोक्तिविशेषं वक्ति कंचन॥४५॥ इति ध्यायनसौ शीघ्रं, गत्वा गौर्ये न्यवेदयत् // तत्दसापि साशंका, कार्य पुत्रमन्नाषत // "कुशल प्रश्न करथा पछी कुशल जोवाय छे." एम एमणे जे का ते वक्रोक्ति छे; माटे ते काइ वधारे as कहेवा धारे छे." // 455 // आ प्रमाणे विचार करीने मंत्रीए तुरत जइने गौरीने ते वात कही, तेथी गौरी पण शंका पामीने कांइ कार्य पुत्र पद्मने कहेवा लागो. // 456 // हे वत्स जनकस्तेद्य, संप्राप्तो वर्तने वने // सोऽवादीत्तर्हि तं नंतुं, गहामि सपरिबदः // 45 // सा प्रोचे वत्स नो वेत्सि, स्वरूपं रूपमन्मथ // स्थातव्यं तावदत्रैव, यावनाकारयाम्यहम् // ___" हे पुत्र आजे त्हारो पिता उद्यानमां आवेला छे." पुढे कह्यु. " हारे हुं परिवार सहित तेमने वंदन करवा जाउं ?" // 457 // गौरीये कडं. "हे सुंदर ! तुं एमनो आशय जाणतो नथी, माटे ज्यां सुधी हुं न तेडावू त्यां सुधी त्हारे थहिंज रहे." // 458 // इत्युक्त्वा तत्र संस्थाप्य, पद्मं पद्मोपमानना // तेनैव मंत्रिणा साकं, सा गता मुनिसंनिधौ // वाताहतमिवादशैं, किंचिहिचायतां गता // वदनं तस्य पश्यंती, दंडवत्प्रनाम सा // 6 // एम कहीने पद्मना सरखा मुखवाली ते गौरी पद्मने त्यांज राखो पोते ते मंत्रोनी साथे मुनिनी पासे गइ.४५९ वायुथी हणायेला दर्पणनी पेठे कांइक लजायुक्त थयेली ते गौरीये मुनिना मुखने जोती छती दंडवत् प्रणाम करया. // 460 // Jun Gun Aaradhat Trust 109 //