________________ PP.AC.Gunratnasun M.S. सौ कथंचिनरर्वों, नाषिता मंत्रवादिनिः॥ नूतो वो राक्षसो वापि,शाकिनी चेति वादिनिः॥ सा रेषा नृपति प्रोचे, रेतघ्नशिरोमणे॥ मायया वचसैतस्या मंत्री 'हंतुं विचिंततः // 33 // पछी " तुं भूत, राक्षस अथवा शाकिनी छ ? एम बोलता एवा मंत्रवादीओए वोलावेली ते चंद्रावतीने र | राजपुरुषोए महा कष्ठथी वांधी // 323 // पछी चंद्रावतीये क्रोधथी कह्यु के, " अरे कृतघ्न शिरोमणि ! तें आ त्हारी प्रियाना वचनथो मायावडे मंत्रीने हवणाना विचार कर्यो छे. / / 324 // मया करितां नीतं', पूर्व लश्म ततो विषम // अहं तवास्मि रे'राज्याधिष्टात्री कुलदेवता // अथैतों न हि मायामि, हनिष्याम्ये सर्वथा // ततो मंत्रिणेमाकार्य, नृपः कैमयतिस्म तम् // __अरे! दु त्हारा राज्यनी अधिष्टायक कुलदेवी छ. मेंज पूर्वे भश्म कपूर वनावी हती अने पछी विषने / * पण कपूर कयु हतुं. // 35 // वली हुं आ चंद्रावतीने निश्चे नहि छोडो देउं, परंतु सर्व प्रकारे मारोश." पछी राणाए मंत्रीने बोलावीने तेनी क्षमा मागो. / / 326 / / / * तामप्यलुढयत्पादयुगले मंत्रियो मुहुः // मिता बहुमानेन, सी ततो देवता गैता // 327 // जातायामेथ सजायां, देव्यां हृष्टो जनोऽखिलः।। मंत्रिणं श्लाघयामास, विदधानो महोत्सवम् // पछी चंद्रावतीने पगे लागी मंत्रीये वारंवार बहुमानथी क्षमा पमाडेली ते राज्याधिष्ठायक कुलदेवी चाली गइ. // 327 // पछी चंद्रावती सारो थइ एटले हर्षित थयेला सर्वे माणसो महोत्सव करोने मंत्राने वखाणवा लाग्या. // 328 // रत्नवयंप्यमान्या सा, मान्या रांझा ततः कृता॥मंत्री विचिंतितश्चिंते, जीवितादेपि वल्लनः // श्रीमंतोऽजितसिंहाख्यः, सूरयो झानिनोन्येदा॥ संप्राप्तास्तान्नृपो नेतु, मत्रिणा सहितो ययो॥ __पछी रानाए अमान्य एवी पण रत्नवताने मान्य करी अने मंत्राने चित्तमां जीवितथी पण वधारे वहालो धारयो // 329 // कोइ वरवते श्रीमान अजितसिंह नामना ज्ञानो गुरु श्रापुर नगरे आव्या, तेथी रत्नाकर प्रधान सहित राजा तेमने वंदन करवा गयो. // 330 // Jun Gun Aaradhak Trust