________________ गुगण P.PA. Gunratnasuti MS धारण करतो छतो त्यां आव्यो अने मुनिने प्रणाम करी क्लेशने नाश करनारी धर्मदेशना सांभलवा लाग्यो. // 123 // "माणसोनी जे बद्धि द्रव्यने विषे अथवा रूपवंता स्त्रायोने विषे होय छे ते वुद्धि जो जिनराजना धमने विषे होय तो निश्चे सिद्धि हाथांज प्राप्त थई छ. // 124 // माणिक्यांकमा का छे के, कोनी आगल पोकार कराय छ ? के हमेशां आ स्वीकाराग्रहरूप छे. आम कहेता छतां पण बालवृद्धि जीवो ते स्वीना संगने इच्छ छ ? एज खेदकारी छे. // 125 // विचक्षण पुरुषोए परस्त्रीनो विशेष साग करवा. कारण के, जे स्वीयो ' (आर्यावृत्तम् ) योऽव्येनवतिमंतिथिवारमणीषरूपयुक्तासु॥सायदिजिनवरधर्मेकॅरतलमध्यस्थितासिहि॥ पुरः पूत्क्रीयते केस्य, सँदा कारावधरियमावदंतोऽपीति तत्संगमीहते हंत बोलिशाः॥१५॥ परनार्यः परीहार्या, विशेषेण विचकणैः // विवेकस्य विनाशाय, विषवल्लीसमा हि याः॥१२६ समरोऽयाप्तवैराग्यः, मयित्वा नरेश्वरम् // समर्प्य तत्प्रियां तस्य, साँघोः पाद्येऽग्रेहीद्वैतम् 127 * स्वपुरागमने तीतं, निमंत्र्य नृपतिस्ततः चलितः पंचगव्यूत्यां, हँस्तिनापुरतः स्थितः॥१२॥ तंत्रामात्येन सै प्रोचे, महालानोऽत्र वर्तते // इदं हि देवरमणोद्यानं देववनोपमम् // 1 // दैवतस्य प्रेनावेण, नोका न च वायसा॥ न करोति तेरोनगमपि कश्चन कानने // 13 // KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust विवेकनो नाश करवाने अर्थे विपनी वेल समान छे." // 26 // पछी प्राप्त थयो छे वैराग्य जेने एवा समरसिंह राजाये गुणवर्माने खमावो तेनी स्त्री पाछी आपी पोते ते नरवर्मा मुनि पामे चारित्र लीधुं. // 127 // पछी गुणवमों पण पिता एवा नरवमो केवलीने पोताने नगरे आववानं आमंत्रण कगने चाल्यो अने हस्तिनापुरथी दश गाउ छटे रहिने पडाव करयो.॥ 128 // त्यां प्रधाने तेने का के,“हे राजन् ! अहिं म्होटो लाभ छे. कारण के, आ नंदनवनसमान देवरमरण नापर्नु उद्यान छे. // 129 // देवताना प्रभावथी आ वनमां घु