________________ c.Gunratnasun M.S. गुणशयाना निंबपत्रेषु, मोलितादी विचेतना // सर्पण दृष्टा विज्ञाता, नून्नुजा सागलणेः 107 चरित्र मणिना बाहुरकस्य, तत्कणं निर्विषीकृता॥ आनिन्ये सा गृहं राझ्या, मान्या लावण्यतोऽनवत्॥ // 7 // ... राजाए लीवडाना पानडामां सूतेली, आंखो बंध करेली अने चेतना रहित एवी ते स्त्रीने अंगलक्षणथी सर्प न डंप दीधेली जाणी. // 107 // पछी राजा बाहुरक्षना मणिथी तुरत विष रहित करेली ते स्त्रीने घरे लाव्यो. ते स्त्री पण लावण्यने लीधे पट्टराणीथी पण मान्य थइ. // 108 // . न कस्या अपि देव्या मे, पुत्रः संप्रति वर्तते / तदिमां परिणेप्यामि, सुतार्थ शुनलक्षणाम् // इति ध्यात्वा नृपस्तस्याः पाणिगृहणहेतवे // गणर्गणयामास, लग्नं शुई विशेषतः // 11 // ____“हवणे म्हारे कोइ पण स्त्रीने पुत्र नथी तो पुत्रने अर्थे आ शुभ लक्षणवाली स्रीने हुं परणीश. // 109 // आ प्रमाणे विचार करी राजा ते कन्यानी साथ विवाह करवा माटे जोशी लोकोनी साथे विशेषे शुद्ध एवा लग्नने जोवा लाग्यो. // 11 // इतश्च तत्र संप्राप्ताः श्रीपुण्यप्रनसूरयः // तया च पट्टदेव्या तान् , साकं नंतुं नृपो ययौ॥१११ वंदित्वा तानपोऽवादो उपदेशः प्रदीयताम् // ते प्रोचुरुपदेशैः किं, पुरतस्ते प्रजायते // 11 // एवामां त्यां श्रीपुण्यप्रभ मूरि आव्या एटले राजा ते नवीन पट्टराणी सहित तेमने वंदना करवा गयो. // 111 // राजा ते मुनीश्वरने वंदना करीने बोल्यो के, " अमने उपदेश आपो." पछी ते सूरिये कयुं के. " हे प्रजापति ! त्हारी आगल उपदेशे करीने शुं ? / / 112 // * असंबईमिदं तेषां वाक्यं श्रुत्वा नृपो जगौ॥ कः प्रजापतिरत्रास्ति, ते प्रोचुःसत्वमेव हि 113 नृपेण कथमित्युक्ते, प्रोचुस्ते दक्षिणे स्थिता // एषा कन्या सलावण्या, गंगजा तव नूपते // . तेओर्नु आवु अयोग्य वचन सांजली राजाए कह्यं के, " अहिं प्रजापति कोण छे ?" तेश्रोए कह्यं के, * "निश्चे ते तुं पोतेज छे. // 1.13 // राजाए " हुं शी रीते प्रजापतिछ ? एम पूछयु एटले तेओए कह्यु के, "हा / भूपत ! निश्च दक्षिण बाजुए बेठेली आ लावण्यवाली कन्या हारी पुत्री थाय छे. // 11 // RXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun A da Trust