________________ ग्यो एटले भ्रकुटी चडाववाथो जयंकर एवो राजा प्रकट थयो. // 5 // पछी "हारा म्होटा कोपने धिक्कार थाओ! धिक्कार थाओ!! ते करेलुं जिनपूजन व्यर्थ छे, अरिहंतनी आशातना करी छे, तेथी तने पुण्य पण नहि प्राप्त थाय." // 86 // आ प्रमाणे बोलता एवा तेमज सूर्यना सरखा आकरा तेजवाला ते राजाने जोइने वि द्याधरपति पोताना हृदयमां एवो क्षोभ पाम्यो के जेथी ते आवोने राजाना चरणमां पडयो. // 87 // रंग मंड पमां वेठेला राजाये फरोथी पण कडं के, “रात्रोने विषे पूजा निषेयेली छे. वली जो पूजा करे तो विशेषयो XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXI | धिधिक् तेव महाकोपं,व्यर्थं ते जिनैपूजनम्॥ अर्हदाशातनाकारि, ने पुण्यमपि लेन्यतेण्६ जब्तमिति तं वीक्ष्य, सूर्यवर्दूईरौजलम् // खेटस्तथा हृदि हुँब्धो, यथा तेञ्चरणे पैतत् 7 पो नूयोऽप्यनाषिष्ट, निविष्टो रंगमंमये॥ रात्रौ पूजा निषिरित्याशातना तु विशेषतः तांबूलं नोजनं पानमुपानत् द्यूतमैथुने // स्वापो निष्टीवनं मूत्रमलौ चाशीतना 'इमे नए स्त्रीणांनोगांतरायो ऽपि,नवेत् कर्मनिबंधनम्॥श्रुत्वेति खेचरःप्रोचे, साध्वहं "बोधितस्त्वया॥ प्रियायै ननुजा देत्ते, प्रतितान्तरणे तैदा // अन्वमीयत खेटेन, सँ तस्या इंगितैः प्रियः ए? नूपं विलोक्य कन्यासु,पृवंतीषु पुनःपुनः॥ रत्नादली स्मितेनैव,स्माह स्वं लंकिता पैतिम्ए आशातना थाय छे.॥८८ // जिनमंदिरमा तावुल खाएँ, भोजन करवू, पाणी पोवू, जोडा पहेरवा, रात रमवं, मैथुन कर, सवं, थुक अने मूत्र तथा मल करवा आ दश आशातना कही छे. // ८ए // स्त्रोयोने भोगांतराय करवाथी पण कर्मनिबंधन थाय छे." आवां राजानां वचन सांभली विद्याधरपतिये कयु के, " तें मने बहु सारो बोध पमाडयो.॥९०॥ पछी राजाये पडो गयेलां आभूषण ज्यारे पियाने आप्यां त्यारे विद्याधरपतिये तेनी आ चेष्टाथी ते राजकन्यानो ते राजाने पति मान्यो. // वली राजाने जोइने वारंवार त्रण कन्याओए पूछयु एटले लज्जावत थयेली रत्नावलाये हाश्यथीज" ते राजा पाताना पात छ," एम निवेदन करयु. // 2 // XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX