________________ PP A. Gunratnasuti MS छे.॥१७२॥ माटे हुं तेना बे पुत्रोनी वधाइने माटे जाउं ? कारणके मने पण त्यां लाभ छे." तेनां आवां वचन सांभली सामु विचार करवा लागी के, “आ बहु जुई तो बोलेज नहि."||१७३॥ पछी सासुये रजा आपी एटले ते रत्नमाला चालती थई. उत्तम शणगारने धारण करनारी अने हाथमां चोखाना थालवाली ते वाला अनुक्रमे पवतनी गुफा पासे आवी पहोची. // 184 // शियाल आवती एवी ते रत्नमालाने जोइ तुरत जाातस्मरण ज्ञानने पामी छती दैवना प्रभावथी माणसनी वाणीवडे बोलवा लागा. // 175 // “हे व्हेन! आव आव! हुं त्हारा यामि वैईयितंतस्याः,पुत्रौ लान्नोऽस्तिमेऽपि हि॥श्रुत्वेत्यचिंतयश्रूरिय"नै मृषा वदत् // सातया मताचालोत,स्फारशृंगारशालिनी॥र्करस्थसाहतस्थाला,बालागिरिगुहययौ // 17 // आयांतीं तो शिवा प्रेक्ष्य,जातजातिस्मृतिःदेणात् // देवतस्य पॅनावेग, मनुष्यवचसा जंगौ। * आगळांगलनंगिनि, 'प्रीतास्मि तव दर्शनात्॥ सा तो शिवीतयापुत्रौ, नव्ययुक्त्या वायत्॥ शिवापि समादाय, स्थालं गत्वा गुहांतरम् // रत्नैःप्रपूर्य देत्त्वा च, सौ विसृष्टा गृहं ययौ 177 श्वश्रूहस्ते तेया दत्ते, रत्नस्थाले मुंदा च सा // तस्याःश्वसुराँकार्य, वधूवृत्तमंचोकथत् 177 'श्रेष्टी रत्नेषु दृष्टेषु, प्रीतः प्रोचे प्रियां प्रति // नीचकर्म नै कार्या सौ, मूतलक्ष्मीरिय वधूः॥ तैतोविशेषतो मान्या, सानृत् परिजने ऽखिले ॥३या किंतुकरोतिस्म, तस्यां जेष्टंवधूस्ततः॥ दर्शनथी खशी थई छ." पछी रत्नमालाये शियालने अने वे पुत्रोने उत्तम युक्तिथी वधाव्या. // 176 // शियाले पण थाल लेई गुफानी अंदर जइ रत्नोथी ते थाल भरी रत्नमालाने आगीने रजा आपी, तेथी ते पोताने घेर गइ.॥ 177 // त्यां तेणे सासुना हाथमां रत्ननो थाल आप्यो एटले तेणे हर्षथी रत्नमालाना सासराने वो. लावी वहुनी मर्व वात कही. // 17 // रत्नो जोवाथी प्रमन्न थयेलो शंठ पोतानी स्त्रीने कहेवा लाग्यो के,"आ बहु पासे नीचकाम न कराव. कारणक ए बहु मूर्तिमंत लक्ष्मी छे. // 179 // पछी ते रत्नमाला सर्व कुटुंबी व Jun Gun Aaradjak Trust XXXXXXXXXXXXXXXX