________________ P.PA. Gunratnasuti MS EXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX PAN कपालमा ददाप्यमान तिलकन धारण करता त राजकन्यान जाइ कुलभूपण राजकुमार तुरत पूर्व पण स्व मामां जोयेलो तेने ओलखी. // 175 // ते राजकन्या अमरसुंदरी पण तत्काल उत्पन थयेला आभूपणोयो | देदाप्यमान ते कुलभूषण कुमारने जोई स्वप्नामां दाठला पुरुषनो विचार करो तुरत हर्पयो रोमांचित बनी गई. // 176 // कणात् करतले तस्या, गऊंकारहारिणी // वरमाला समायाता, सभ्यलोकैर्विलोकिता 177 सा सनूपुरऊकारा, मा मा कुर्वति खेचरे // सोत्कंठे कंपीठेऽस्य, वरमालामलूलुढत् // 17 // * पछा क्षणवारमा ते राजकन्याना हाथमां गुंजारव करता भ्रमराने खेचतो एवो वरमाला आवो ते सर्व * सभाना लोकोये दाठो. // 177 // पछी विद्याधरे नाना को छते पण झांझरना शब्द करतो एवी राजकन्याए * उत्कंठामहित ते कुळभूषण कुमारना कंठने विषे वरमाला पहेरावो. // 1.78 // जाते जयजयारावे, दुंदुन्निध्वनिमिश्रिते // सभ्याः केवलिनं प्रोचुः, किमिदं कौतुकं महत् // 179 मुनिः पूर्वनवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे // श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, कनकान्नसुतोऽनवत् // 18 // * पछो नगारांना शब्द सहित जयजय शब्द थयो एटले सभ्यपुरुषोए केवलीने पूछयु के, " आ म्होटुं कौ- तुक शु"!! // 179 // मुनिये पूर्वभव कह्यो के, " हस्तिनापुर नगरने विष धनदत्त नामना शेठने कनकाभ *नामनो पुत्र हतो. // 180 // पूजायां क्रियमाणायां, वांधवैः सह संमदात्॥ जिनस्यानरणारोपो, विहितोऽनेन पूजने // 171 तेन पुण्यप्रनावेण, जातोऽयं कुलभूषणः // विद्यादेवतयाकारोचरीरमरणादिकम् // 182 // बंधुओनो साथे हर्षथी पूजा करे छते ए कनकाभे पूजनमां जिनेश्वरने आभूषण पहेराव्यां हता. ते पुण्यना प्रभावथो आ कुलभूषण कुमार थयो छे. वलो विद्यादेवोये तेना शरीरने विषे आभूपणादिक करयां छे."१८२ कस्मादमरसुदर्यास्तिलकं दृश्यतेऽलिके // इति पृष्टो मुनिः प्राह, केवलज्ञाननास्करः // 18 // नरते पुरि चंपायां, दत्तस्य श्रेष्ठिनः प्रिया ॥श्रीमतोनाम संजझे, पुण्यकर्मणि तत्परा // 18 // KKKKKKXXXKKKKKKKKKXXXXKKKXXXXYYRI Jun Gun Aaradhak Trust