________________ P.P.A. Gunarasut MS as निश्चे तुं शा कारणी विवाहने कबुल करतो नथी ? // 129 // वैद्य पण कह्याविना कोइना दुःखने जाणतो नथी, as तेमज मोरोना शब्द विना मेघ पण वरसतो नथी. // 130 // विना त्वचनं तातस्त्वदियो नावबुध्यते // यञ्चितें वर्तते तन्मे, प्रकाशय शुन्नाशय // 131 // ततस्तं स्वप्नवृत्तांतं, प्रतिमित्रमुवाच सः // तज्जगाद पुरे नात्र, दृश्यते तादशी वधूः // 13 // तेमज त्हारा वचन विना त्हारा पिता पण जाणी शके नहि, माटे हे शुभ विचारवाला ! जे त्हारा मनमा होय ते मने कहे. // 131 // पछी राजकुमारे ते मित्रने स्वप्नानी वात कही एटले मित्र कह्यु के, "आ नगरमा तेवी स्त्री देखाती नथी. // 132 // कुमारः सुहृदं प्राह, विदेशे तर्हि गम्यते // कलशं लन्नते चक्रमपि न ब्रमणं विना // 133 // चेलतुस्तौ विचिंत्येति, मिलितौ रजनीमुखे॥ अलक्ष्यौ गोरजःपूरे, प्रचुरे तिमिरोपमे // 13 // कमारे मित्रने का. "त्यारे आपणे परदेश जइए. कारण के भम्या विना कलश अथवा चक्र पण न मली है शके. // 123 / / ए प्रमाणे विचार करीने गायोनी रजथी गाढ अंधकार समान थयेला संध्याकालने विषे गुप्त रीते एकठा थयेला ते वन्ने मित्रो चाली निकल्या. // 134 // दिवारात्रौ बजतौ तौ, फलांबुकतनोजनौ // वने शिलातलासीनं,मुनिध्यमपश्यताम्॥१३॥ तौ वंदित्वा मुनिइंछ, निषणौ नक्तितः पुरः // मुनिरेकोऽवदत्प्राप्तौ, मिथिलाया युवामिह 136 दिवसे अने रात्रोये चालता तेमज फल अने जलनु भोजन करता एवा ते बन्ने मित्रोए वनमा एक शिला उपर बेठेला बे मुनियोने दीठा. // 135 // मुनियोने वंदना करीने ते बन्ने मित्रो भक्तिथी तेमना आगल बेठा एटले एक मुनिये कडं के, " तमे मिथिला नगरीथी अहिं आव्या छो." // 136 // तौ प्रोचतुर्मुने कुत्र, दृष्टावावां पुरा त्वया // क्षितीयः साधुरित्याह,झानमस्य विभते॥१३॥ अवधिज्ञानतो वेत्ति, युष्मदृत्तमयं मुनिः // कुमारस्तं ततः प्रोचे, चिंतितं मे नविष्यति 137 Jun Gun Aaradhak Trust