Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . . . . .. श्री धर्म प्रवर्तन सारग्रंथ. तथा क्षायक भावतत्व विलास, श्रद्धाप्रकरण, नवपदजीनी पूजा अध्यात्म चोवीशी, चैत्यवंदनो, स्तुतियो, स्तवनो सज्जायो, अने गुरुभक्तिना रास सहित. -- .. . . - - - __ कर्ता विजापुरनिवासी, शा. सुरचंदनाइ स्वरूपचंद. . छपावी प्रसिद्ध कर्ता. शा. रतनचंद लाधाजी तथा शा. ऊवेरना जगवानदास. प्रगणे पेटलाद-मु० काविग. . ...... -- अमदावाद. श्री " लक्ष्मि" मिन्टिंग प्रेसमां शा. मणीलाल उगरचंदे छाप्यु. *संवत १९६६ वीर संवत २४३६ सने १९१०. किंमत रु. ०-६-०. . व - . . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. ___ सर्व धर्मनो विचार करतां सर्वोत्तम जैन धर्म सत्य ले एम निश्चय थयो ने जैन धर्ममा श्वेतांबर दिगंबर ए बे शाखा असलथी श्वेतांबर थाम्नायनां सूत्रो चाल्यां थावे जे माटे श्वेतांबर शास्त्रोनी प्रामाणिकता सिद्ध . दिगंबरो पण पहेलां सूत्रो मानता हता पाळथी ते मानता नथी एम जणाय जे. श्वेतांबर मार्गमां व्यवहार अने निश्चय ए बे नयो कह्या . दरेक नयनुं स्वरूप अत्यंत सूक्ष्म जे. माटे शास्त्रकारोनी श्राज्ञाप्रमाणे बे नयने जाणवा खप करवो श्वेतांबर मार्गमा हरिनप्रसूरियशोविजय उपाध्याय विगेरे महान् पुरुषो थर गया . जैन धर्मनी प्रवृत्ति केवी रीते करवी ते संबंधी तेडए पु. स्तकोमा सारं अजवालु कयु . पूर्वाचार्योए धर्मनी प्रवृत्तिनी शुद्धता थवा माटे नयो पूर्वक धर्म तत्वनुं वर्णन कयु . माटे अत्रे पण तेउनी वाणी अनुसार अशुद्ध मार्गने बतावी सुद्ध धर्म बताववा प्रयत्न कयों .प्रथम धर्म प्रवर्तनसार ग्रंथ दाखल कों . तेमां व्यवहार नयना नेद बतावीने धर्मनी वाख्या करी बे. तेमां मोटा नागे श्री देवचंपजी अने श्रीमान् यशोविजय उपाध्यायजीना नाषा ग्रंथोनी साक्षी थापी विवेचन कर्युडे, वली श्रमारी मान्यता पूर्वाचार्योनी परंपरा सहित ले एम सिद्ध कर्युबे. पूर्वाचार्योनां वचन अनुसरीने चालवू थने तेमनां बचनने नगवान्नां वचन सरखां मानवां जोशए. एवी मान्यता नी सिद्धिमां अमारो मत सर्वने अनिमत पाउँ ! साधुता व्यवहारमा सामर्थ्य रडं वे आवश्यक धर्म व्यवहार ते होवाथी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) तेने अमाए कल्पव्यवहार नाम आप्यु ले तेमां अन्य अमारो उद्देश नथी. शास्त्रोमा “जितकल्प-बृहत्कल्प विगेरे नामथी प्रसिद्ध में अने तेमां साधुना आचारनुं विवेचन जे. साधुनो श्राचार पापनो कय करे . श्राश्रवनो नाश करे . संवरनी पुष्टि करे . माटे तेमां अनुत सामर्थ्य रघु जे. तेथी कल्पव्यवहार एवं अमोए “गुणधेय" नाम आप्युं . आ ग्रंथमां झानार्णव--समयसार वगेरे ग्रंथोनी सादी आपवामां आवेली . तेथी एम न समजवु के श्रमों तेना अनुयायी बीए ज्ञानार्णव वगेरेमा श्वेतांवर सिद्धांतोना आधारे जे वाक्यो मळतां आवे ने तेटलांज अमो मानीए बीए. वाकी श्वेतीवर सिद्धांतोथी जे विरुद्ध प्ररुपणाने एवी दिगंबर ग्रंथोनी वासने श्रमो मानता नथी कारण के उत्सूत्र वात मानवी नहीं. आग्रंथमा साधुना ओंचारोनी उत्कृष्टता बतावी ले तेनुं कारण के जे वस्तु बताववी ते उत्कृष्ट बताववी. जो एम न वताक्वामां आवे तो. आचारोनुं ढीलाशपणुं थ जाय. आ आशय विना साधुउनी आचार विगेरेनी टीका करवानो अंश मात्र पण बीजो श्राशय नथी.साधुवर्गने अमो अमारा पुज्य गुरु तरीके जोइए बीए तेमनामां शुद्ध प्रव्य व्यवहारनो विशेषतः प्रकाश थार्ड एटर्बुज इच्छिए बीए था ग्रंथना समाप्ति पत्रमा सिद्धनुं स्वरुप देखाय छे ते वांचवाथी वाचकोने अतिशय लान थशे.... पार पश्चात् पत्र १५६ थी क्षायिकनाव तत्वविलास पद्य ग्रंथ लखवामा श्राव्यो बे. तेमज पत्र १६३ थी श्रद्धाप्रकरणनी ढाळो लखवामां यावी है, ते श्रद्धा प्राप्त थवानो हेतु ...... Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्र १७ थी नवपदजीनी पूजा शरु थाय ने ते पण वाचकोनेवानंद श्रापशे. पत्र २०४ थी अध्यात्म चोवीशी पाववामां श्रावी ते पण अत्यंत उपयोगी ग्रंथ . पत्र थी चैत्यवंदन अधिकार . पत्र २३६ थी स्तवन अधिकार जे. पत्र २६० थी सज्जाय अधिकार ने पत्र श्ए१ थी गुरुन्नक्तिनो रास शरु थाय . था प्रमाणे गयमां अने पद्यमां ग्रंथो सिद्धान्तानुं सार बताववामां आव्या तेमां वीतराग आज्ञा विरुद्ध जे कंश लखायु होय तेनो मिच्छामिक्कम द ढुंजे मुनिवरो वा श्रावक विछानो ग्रंथ संबंधे नूलनो सुधारो शास्त्र सादी पूर्वक बतावशे तो तेमनो उपकार मानवामां आवशे. .. अध्यात्म शैली अने अव्यानुयोगनी शैली पूर्वक श्रा ग्रंथ लखायो होवाथी तत्तत् संबंधी शैलीना अन्यासिर्जने था ग्रंथ उपयोगी थर पमशे एवी आशा राखवामां आवे . . ...: या ग्रंथ उपाववा माटे धन व्यय सहायमां तेमज श्रा ग्रंथ तपासवामां जेए मदद करी ने तेमनो उपकार मानुं बु. जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक सिद्धांत शैलीनी मान्यता (श्रद्धा) था लेखकने ने तेथी प्रसंगे कोई अन्य धर्मना सिद्धांतो उपर आक्षेप थयेलो क्वचित् देखाय तो अन्य धर्मीए न्याय दृष्टिथी सत्य तत्वनो तोल करी सत्यतत्व ग्रहण करईं एज. लेखक श्रावक-सूरचंदनाइ सरुपचंद. मु. विजापुर (विद्यापुर). गुजरात.... Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ था ज्ञान शीतळविलास जाग जो नामनुं था पुस्तक उपावसा पेहेला खरच माटे अगाउथी पैसा आपनार नाळ गुणना जाण गुणना रागी धर्मस्नेही गृहस्थोनां नाम नीचे प्रमाणे जे. २००) नाश् मूळचंदनाश् सरूपचंदना वीलना ट्रस्टमाथी ट्रस्टी उए आप्या. २००) कावीगना मवेरनाइ नगवानदास तथा शा. रतनचंद लाधाजी जण बेना. उपरनी मददथी आ पुस्तकनी १००० नकल उपावी . श्रा बीजा नागनी चोपमी तथा प्रथमनी पाएल नाग १नी चोपको नीचेना ठेकाणेथी मळी शकशे. १ विजापुर-शा. सुरचंदनाश् स्वरुपचंद. २ अमदावाद-शा. हीराचंदन्ना ककलना . फतासानी पोळ जैन कन्याशाळा. ३ काविठा प्रगणे पेटलाद-शा. रतनचंदनाइ लाधाजी तथा जवरनाशनगवानदास. ४ पालेज-शा. माह्यान्ना पीतांबरदास तथा शा. अमरचंद क चराना प्रगणे नरुच बंदर ५ सुरत-शा. ताराचंद हीमचंद. के. गोपीपुरा मध्ये. • ६ पादरा-वकील मोहनलाल हीमचंद वमोदरा ताबे पादरा. आ ग्रंथमां दृष्टिदोषथी अथवा लखित दोषथी अथवा अपनारनी जुलथी न समजी शकायतो शुद्धिपत्रक प्रमाणे सुधारी तपासीने वांचशो. · ज्ञाननी आशातना न थाय अने घणा माणसो लाभ लइ शके ए हेतुथी आ पुस्तकनी कीमत मात्र ०-६-० छ आना राखी छे. अने ए रीते जे रकम उत्पन्न यशे ते ज्ञान खातामा वपराशे. साधु साध्वीने तेमज जैन पुस्तकालयोने विनामूल्ये आपवामां आवशे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. प्रथम धर्मप्रवर्तन सार ग्रंथनी अनुक्रमणिका. क्रमांक विषय. . पान. १ धर्मप्रवर्तन सारना बे भेद कर्या छे. एक मिथ्यात्व सहित धर्मप्रवर्तन तथा बोजो सम्यकत्व सहित धर्मप्रवर्तन २ धर्मप्रवर्द्धन सारना बीजा बे भेद कर्या छे एक व्यवहार धर्मप्रवर्तन अने बीजो निश्चय धर्मप्रवर्तन ३ नयचक्रसार ग्रंथनी अपेक्षाये व्यवहार नयना भेदनी व्याख्या करी छे. ६ ४ जीवना पांचसेंने त्रेसठ भेद चार गतिना मळीने वर्णव्या छे ५ अजीवना पांचसेंने साठ भेद गवेख्या छे ६. गुणठाणानी अपेक्षाये जीवना भेदनी विस्तारीने व्याख्या करी छे १४. ' ७ प्रथम अशुद्ध व्यवहारना भेदनी व्याख्या करी छे १६ ८ पछी शुद्ध व्यवहारना भेद आदे गवेखोने ए सूत्र पूर्ण कर्यु छे. २६ ९ द्रव्यगुण पर्यायना रासना अनुसारे व्यवहारनयनी व्याख्या करी छे ३१ १. आगमसार ग्रंथनी अपेक्षाये व्यवहार नयना छ भेद गवेख्या छे ४० ११ कल्पव्यवहार तथा ज्ञानव्यवहार ए बे भेद गवेखीने व्यवहारनो अधिकार संपूर्ण को छे १२ भवाभिनंदी जीवनां लक्षण विस्तारीने गवेख्यां छे १३ आत्मानंदी जीवनां लक्षण विस्तारीने गवेख्या छ । १४ निश्चय नयनी मुख्यताए धर्मप्रवर्तन विस्तारीने कह्यो छे १५ सिद्ध भगवाननी स्तुति विस्तारे करीने ग्रंथनी पूर्णता करी छे ११३ बीजा क्षायक नाव तत्वविलास ग्रंथनी अनुक्रमणिका. १६ क्षायक भाव तत्सविलासग्रंथनी अढार ढाळोना दुहा दरेक ढाळना मथाळे ढालना उपर छापवा छापनारनी भुलथी रहीगयेला तेथी बधा पहेला नांख्या छे. ते वांचनार भाइयोये ढाळ ढाळ प्रत्ये समजी लेवा. १७ पेहेली ढाळमा क्षायक समकित बे भेदे गवेख्युं छे १२६ १८ बीजी ढाळमां क्षायक चारित्रनी साधनता पूर्ण करी छे १२७ १९ त्रीजी ढाळमां केवळज्ञान केवळदर्शननी व्याख्या करी छे . १२८ २० चोयी ढाळमां द्रव्यानुयोगर्नु स्याद्वाद स्वरुप आदि गवेख्युं छे.१३० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ २१ पांचमी ढाळमां धर्मास्तिकाय द्रव्यनी व्याख्या करी छे २२. छटो ढाळमां अधर्मास्तिकाय आदि त्रण द्रव्यनी व्याख्या करी छे. १५४ २३ सातमी ढाळमां पुद्गलास्तिकाय द्रव्य गवेख्यो छे २४ आठमी ढाळमां पुद्गलनी आठ वर्गणानी एक एकयी अधिक सूक्ष्मता गवेखी छे २५ नवमी ढाळमा पुद्गलना गुणपर्याय गवेख्या छे २६ दशमी ढाळमा आवना चार हेतु मिथ्यात्वादि गवेख्या छे . १४० २७ अगीमारमी ढाळमां मिथ्यात्वनी दुष्टता विस्तारीने कही छे १४२ २८ बारमी ढाळमां अवतना भेद तेने टाळबानुं साधन दर्शाव्यु छे १४४ २९ तेरमी ढाळमां कषायनी तथा नोकषायनी द्रष्टांत साये गवेषणा करीछे १४५ ३० चौदमी ढाळमा जोगना मूळ त्रण भेद अने उत्तर पंदर भेद दर्शाव्या छे १४६ ३१. पंदरमी ढाळमां चार प्रकारना बंधनो विचार गवेख्यो छे १४८ १२ सोळमी ढाळमां पुन्यना बेतालीस भेद सारी रीते वर्णव्या छे . १५० ३३ सत्तरमी ढाळमां चउघाती पापकर्मनी प्रकृतिओना ४५भेद वर्णव्या छे १५५ ३४ अढारमीदान्मांचउअघातिकर्मनीअशुभ प्रकृतिओना३७भेद वर्णव्याछे १५८ आ ग्रंथ अहींथी अधुरो छे. ३५ त्रीजो ग्रंथ श्रद्धाप्रकरण तेमां देवतत्त्व तथा गुरुतत्त्व अने धर्मत-त्व ते श्रुतधर्म तथा चारित्रधर्म देसविरती अने सरवविरती श्रादे वर्णव्या . १६३ १८७ २०३. . ३६ नव पदजीनी पूजा ३७ आरति मंगळदीवो ३८ अध्यात्म चोवीसी ३९ चैत्यवंदन अधिकार ४. स्तुति अधिकार ४१ स्तवन अधिकार ४२ सजाय अधिकार ४३ गुरुभक्तिनो रास २०४ २२८ २३३ २३६ २९१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ antarrer ॥ श्री गुरुभ्यो नमः ॥ अथ श्री धर्मप्रवर्तन सार ग्रंथ. GodarrordGo ॥उहा ॥ वंषु गुरु चरणे सदा, गुरुमुख अमिय ऊरंत ॥ , धर्मखान दीए देशना, ज्यु जलधर वरसंत ॥१॥ ते जीले चित पात्रमें, श्रोता मन थिर अंग ॥ . * ज्ञानामृत रस आतमा, पीवे निर्मल गंग ॥ २॥ . धर्म वर्तना सार ए, जिहां निश्चय व्यवहार ॥ गुरुकृपाथी पामीए, स्याद्वाद निरधार ॥ ३॥ ॥अत्र नाषा लिख्यते ॥ . हवे या ग्रंथनुं नाम धर्म प्रवर्तन सारडे, तेना बे, है, नेदले. मिथ्यात्व सहित धर्मप्रवर्तन तथा सम्यक्त्वसहित धर्मप्रवर्त्तन, अहीं कोई कहेशे के धर्मप्रवर्तनमा मिथ्यावनो नेद शा माटे करवो पन्यो ? तेनो उत्तर मिथ्यात्व तां पण देशविरतिपणुं तथा सर्व विरतिपणुं जीव व्यव-- ही हारथी ग्रह, वळी क्रियानो पात्र, झाननो खपी, ध्याना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GramBRARAGreen Gramma श्री धर्भ पतन सार. १ वखंबी होय, ते योगदृष्टि सज्मायोथी जो लेजो. प्रथ मनी चार सज्मोयो मिथ्यात्वसहित प्रवर्तनमा , अनेक पांचमी थीरादृष्टिथी ते आठमी परा दृष्टि सुधी चार सज्मायो समकित धर्मप्रवर्तनमांडे, वळी मुक्तिना मार्गमांडे ते माटे श्रमारे नेद वेंडेंचवो पम्यो. पेहेली दृष्टिनी सउमाये कडंडे के, दृष्टि थिरादिक चारमा, मुगति प्रयाण न लाजेरे॥ रयणि सयन जेम श्रम हरे, सुरनर सुख तेम गजेरे ॥ वी० ॥५॥ अर्थः-दृष्टि के समकितनी आठ दृष्टि कही , तेमां प्रथमनी चार दृष्टि, तेनां नाम. मित्रा, तारा, वळा, अने दिप्ता ए चार दृष्टि समकितरूप नथी, परंतु व्यवहारे १ कारण जे ते कारणने विषे कार्यपणानो उपचार करीने स. १ मकितमां गणीने. हवे पाबळनी चार दृष्टिनां नाम, स्थिरा, कान्ता, प्रना, अने परा ए चार दृष्टि समकित रूप है वळी, इहां बोध एटले जाणपणुं ते पण वस्तुगते वस्तुपणुं सहहे श्रद्धा ज्ञान पूर्वक स्थिर, ए चार चार मळीने @ श्राप दृष्टि कही, तेमां स्थिरादिक चारमा केहेतां स्थिरा पांचमी अने आदि शब्दे बही, सातमी, अने आठमी, ए पाडळनी चार दृष्टिए वर्ततो एवो जे प्राणी, ते एक व& खते वे क्रियानो की. एक उदयिक नावनी अने बीजी योपशम नावनी, तेमा प्रथम उदयिक नावनी एटले RAVINGrenge SAR GARLGDAGICAGARAGNIGARAGRAON Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SARASTRAGONRASTRINAGAPAGE उदयिक नाव ते पूर्वकृत कर्मबंधनो उदय, ते कहे. गति चार, कषाय चार, वेद त्रण, लेश्या ब, मिथ्यात्व, अज्ञान १ असिद्धत्व अने अविरति ए उदयिक नावना एकवीस नेद कह्या. ते समुदाये परिपूर्ण पेहेले गुणगणे साधे. अने उपरनां गुणगणाए ओठा ओला लाधे. उदयिक नाव अ योगी चौदमा गुणगणा पर्यंत सर्वे गुणठाणे लाधे अने जे & जे प्रकृतिनो उदय थाय तेमां चेतन व्यापकपणुं करे, सं- . कल्प विकल्प करे तो समय समये सात आठ कर्म बहा सातमा गुणगणा सुधी वांधे, उपरांत सात बांधे. दशमा गुणगणे उ कर्म बांधे. वळी जीवनी शक्ति मरोमी नांखे. कडंडे के “शक्ति मरोमे जीवनी, उदय महा बळवाम" हवे ए उदयिक नावनी क्रियामां नांगा कहे . नविने अनादि सांत नांगो लागे, अने अन्नविने अनादि अनंत नांगो लागे. ए उदयिक नावमी क्रिया कही. हवे क्षयोपशमन्नावनी क्रिया कहेजे, ते पांचमी थिरा दृष्टि पाम्या त्यांथी अंतर्दृष्टिए प्राप्त डे अने थिराष्टिनी प्राप्ति ग्रंथिन्नेद को त्यांथी थ. हवे ते क्रिया क्षयोपशम नावनी क्षय उपशम पूर्वक चोथा गुणगणाथी प्राप्त थर तेना नेद कहे . सामान्य उपयोग ते दर्शन गुणनो, अने विशेषोपयोग ते झान गुणनो, वळी क्षयोपशम नावन हे समकित, तथा देशविरति अने सर्व विरति चारित्र, वळी १ क्षयोपशम नावनी दानादि पांच लब्धि ए क्षयोपशम नावना नेद बे, तेमांथी लब्धि गुणने किंचित् गवेखे . Quru Que xurder Due Deus roanservarnerBOGRAGet PROGreamLASSAGROGRAGG G AGRABAR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRICOM@GOODacts श्री धर्म प्रवर्तन सा२. दान एटले जे समये समकितादि आत्मिक गुणनी प्रगटता आत्माथी यश् तेज समये ते दानरूप गुण आत्माए ग्रहण कर्यो ए दान लब्धि पेहेली कही. हवे वीजी लान लब्धि @ कहे . लान एटले जे समकितादि आत्मिक गुणनी प्रगटता आत्माथी थर का, ते लान पूर्वे न हतो ते शहां आत्मा पाम्यो ए वीजी लान्न लब्धि कही. हवे वळी तेना 3 प्रथम समयेंज ते लब्धि गुणनो नोग पण आत्माज करे , वळी उपत्नोग पण वीजा समयथी आरंनीने यावत् १ केवळझाननी प्राप्ति जे समये थाय तेना आगला समय र सुधी आत्मा करे . ए चार लब्धि कही. हवे पांचमी ७ , वीर्य गुण लब्धि कहे . ते उपर चार लब्धि गवेखी तेमा स्फुर्णा श्रापवानुं सामर्थ्य सादि सांत नांगे अनुन्नव रीते । अंतर्गत स्वरूप रमण करवू, वळी स्वस्वरूप ग्रहण करतेमा व्यापकपणुं करवू, ते शक्तिने वीर्य गुण लब्धि कहीए, ए८ पांच लब्धि दयोपशम नावनी. ते क्रिया आत्मिक जाणवी. ए क्रियानो कर्ता उपरना गुणगणे चढे अने नीचेना गुणगणाने डोमे. यावत् मोहनीय कर्मना दयोपशमने दशमा गुणणाने अंते बेदी यथाख्यात चारित्र कीणमोह वारमा गुणगणे प्रगट करे, अने ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अने अंतराय ए त्रण कर्मना दायोपशमने वारमा गुणगणना ६ अंते बेदी केवळझान, केवलदर्शन अने दायकनावनी दा नादिक पांच लब्धि एम सात गुण प्रगट करी दायकना६ वनो नव लब्धि गुणनी पूर्णता पामे. ते माटे मूळ गाथा (४) thatangaroo t eresrovokes HINAROKAROGorner.RAORarerenorrenoREE Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ near TAGORGEOGORROGrammy श्री धर्भ प्रवर्तन सार. १ मांज कडं ले के “मुगतिप्रयाण न नाजेरे” एटले पांचमी । ६ थिरादृष्टि पाम्या त्यांथी. क्षयोपशम नावनी अंतर्वृत्तिये । १ क्रिया करतां मुक्तिना प्रयाणनो नंग न थाय, एटले यात्म सत्ताये रहेलां घाति कर्मदळ तेथी मुक्त थर्बु, एटले निर्ज-१ E) र. फरीने कर्म वांधे नहीं. त्यां मुक्तिनुं प्रयाण थयु एम • कहीए. “ रयणि सयन जेम श्रमहरे, ” के० यथा दृष्टांते ६ जेम को पुरुषने इच्छित नगरे जर्बु बे, परंतु वळवीर्य श-3 तिनी स्फुरता न थक्ष, अने थाकी गयो, तो इच्छित नगरे से पहोची न शके, त्यारे रस्तामां रात रहे पमे, विसामा है करवा पमे अने त्यां शयन करे, एटले थाक उतरी जाय, 6 अने प्रन्नात समये पाली प्रयाण करवानी शक्ति आवे एटले सुखे सुखे प्रयाण थर शके, तेम इहां इच्छित नगर ते मुक्तिपुरीए जq बे, परंतु वीर्य शक्ति स्फुरताना अन्नावे श्रेणी न मांमी शके, तो पहोंची न शके. त्यारे वचमां विसामा रूप देवताना अने मनुष्यना अप्रतिपाति क्षयोपशम समकितनी अपेदाए उत्कृष्टा सात थानव करवा पमे. वळी दायक समकितनी अपेदाए त्रण चार नव करवा १ पमे अने समकितीने बे गतिनोज सुखमय संसार . माटे “ सुरनर सुख तेम जेर” कह्यु. अने दुःखमय नरक तिर्यंचनी बे गतिथी मुक्त थया. एटले बुटया. तेमां बेदला नवे तो मुक्ति नगरे पहोंचवानी स्फुर्णा शक्ति मनुष्यना 9 नवे जरुर पामे अने सिद्धि वरे. ए पांचमी गाथानो है अर्थ कह्यो. REPsgar20RRIES PERSOCrorepareraree Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PERSO BACCORarerevoces Grearrangeena HINDISORDERABARISegree श्री धर्म प्रवर्तन सार. र वळी धर्म प्रवर्त्तनना वीजा बे नेद ; व्यवहार धर्म ६ प्रवर्तन अने निश्चय धर्म प्रवर्तन तेमांप्रथम व्यवहार धर्म प्रवर्त्तननी उळखाण करावे . एटले व्यवहारनयनानेदनी व्हेंचण करीशुं तेमां केटलाएक नेद मिथ्यात्व पक्षी ने अने केटलाएक नेद समकित पक्षी . ते सर्वेनी उळखाण | थशे. कयुं . नय चक्रसार ग्रंथेः संग्रह गृहीत वस्तु नेदांतरेण विनजनं व्यवहरणं प्रवर्त्तनं वा व्यवहारः सद्विविधः शुद्धो शुद्धश्च शुद्धोद्धिविधः वस्तुगत व्यवहारः धर्मास्तिकायादि अव्याणां स्वस्वचलन सहकारादि जीवस्य लोकालोकादि ज्ञानादिरूपः 6 स्वसंपूर्ण परमात्मन्नावसाधनरूपो गुणसाधकावस्थारूपः गुण श्रेण्या रोहादि साधन शुद्ध व्यवहारः अशुद्धोपि द्विविधः । सद्नता सद्भूत नेदात् सद्भुत व्यवहारो झानादिगुणः 0 परस्परं निन्नः असदलत व्यवहारः कषायात्मादि मनुष्योहं । देवोहं सोपिद्विविधः संश्लेषिता शुद्धव्यवहारः शरीर मम अहंशरीरी असंश्लेषिता सद्भुत व्यवहारः पुत्र कलत्रादि तोच. उपचरिता नुपचरित व्यवहार नेदात् द्विविधौ तथाच विशेषावश्यके व्यवहरणं व्यवहारः ए सतेण व्यवहार एव सामान्नं व्यवहार परोव्वजन विसेस तेणव्यवहारः व्यवहरणं व्यवहारः व्यवहरतिसइतिवाव्यवहारः विशेषतो व्य वहीयते निराक्रियते सामान्यं तेनेतिव्यवहारः लोकव्यवहार 8) परोवा विशेषतो यस्मात्तेन व्यवहारः न व्यवहारा वखधर्म ६ प्रवर्ति तेनेऋते सामान्यमिति स्वगुण प्रवृत्ति रूप व्यवहार R GARDar@neeroord OreoneRom Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AGRATROPRAGenerBrordGAON श्री धर्भ प्रपतन सार. स्यैव वस्तुत्वं तमंतरेण तद्नावात् सद्विविधः विनजन १ प्रवृत्ति ५ नेदात् प्रवृत्ति व्यवहार स्त्रिविधः वस्तु प्रवृत्तिः । साधन प्रवृत्तिः ५ लौकिक प्रवृत्तिश्च ३ साधन प्रवृत्ति स्त्रेधा ६ लोकोत्तर १ लोकिका २ कुप्रा वचनिक ३ नेदात् इति व्य वहारनयश्री विशेषावश्यके ॥ ___अर्थः-संग्रह ग्रहित वस्तु के संग्रहनये ग्रहित जे 9 वस्तु नेदांतरेण के० तेने नेद नेदांतरे, विनजनं के व्हें है चर्बु तेने व्यवहार कहीए. एटले संग्रहनये ते सामान्य 5 विशेष सर्वेने सामान्यपणे ग्रहे एटले पिंझपणे ग्रहे पण व्यक्तव्यपणे न ग्रहे. जेम द्रव्य एवं सामान्य नाम का, तेमां सर्वे द्रव्यनुं ग्रहण थयु, ते संग्रह नय. तेने नेदांतरे व्हेंचे ते व्यवहार नय. एटले द्रव्यना बे नेद. जीवद्रव्य 6 अने अजीवद्रव्य.अजीवना बे नेद, रूपी अने अरूपी. रूपी ते पुद्गल तेना वे नेद. परमाणु अने खंध. खंधना वे नेद. जीव सहित अने जीव रहित. तेमां जीव सहितना वे नेद, सूक्ष्म अने वादर. यहां वर्गणानो विचार डे. त्यां वादरवर्गणाना चार नेद उदारीक (१), वैक्रिय (२), श्राहारक (३), अने तेजस (8), हवे सूक्ष्म वर्गणाना चार नेद कहे . नाषा (१), श्वासोश्वास (२), मन (३), अने कार्मण (४), ते कार्मणना आउनेद, ज्ञानावरणीय (१), दर्शनावरणीय (२), वेदनीय (३), मोहनीय (४) आयुष . (५), नाम (६), गोत्र (७), अने अंतराय (ज), ए आग्ने | Eकर्मवर्गणा कहीए तेना उत्तरनेद एकसोने अठ्ठावन बे, ते PreraEGORY PAGRanorar@GOOGNREGAGranAGE Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PORNO श्री धर्म प्रवर्तन सार, कर्मग्रंथथी जोइ लेजो. हवे पर्यायना वे नेद एक कर्मनावी अने बीजो स्वनावी. हवे जीवना पांचसे त्रेस नेद कहे जे. तेना मूळ चार नेद. मनुष्यगति (१), तिर्यंचगति (५), नरकगति (३), ) अने देवगति (४), ए चारना प्रत्येक नेदनो विचार. तेमां है प्रथम मनुष्यना नेद वर्णवे . तेना त्रण नेद. कर्मनूमि (१), अकर्मनूमि (५), अने अंतरद्वीप (३), तेमां कर्मजू मिना पंदर नेद डे, पांच नरत (५), पांच ऐरव्रत (५), ., अने पांच महाविदेह (५) ए रीते पंदर नेद थाय. वळी अकर्मनूमिना त्रीस लेद बे. पांच हेमवंत (५), पांच ऐर-6 एयव्रत, (५), पांच रम्यक (५), पांच देवकुरु (५), पांच हरिवर्ष (५), पांच उत्तरकुरु (५), ए रीते त्रीस नेद अकर्म नृमिना कह्या. हवे अंतरद्वीपना उप्पन नेद कहे जे आ जंबुद्धीपने विषे लघु हिमवंत अने शिखरि ए वे पर्वत श्रावेला . तेमांथी वे पूर्वे अने वे पश्चिमे एम लवण समु द्रमां अंतराले एक एक पर्वतनी चार चार दाढायो नीकळेली , ते बे पर्वतनी मलीने आठ दाढायो थर ते दरेक दाढा उपर सात सात क्षेत्र के ए रीते आठ दाढायोना मलीने बप्पन्न अंतरदीप . ए सघळां लेगां करतां एकसोने १ 2) एक मनुष्य क्षेत्र थयां तेना वे नेद एक समचिम अने . बीजा गर्नज तेमां गर्नजनाबे नेद एक पर्याप्ता अने बीजा ॐ अपर्याप्ता. अने समुमितो पर्याप्ति पूरी करे नहीं, अपहो र्याप्ता.अवस्थायेज़ मरे माटे तेनो एकज नेद एटले एक Ener. READER EDEY PRABAR BARABAR GAGRArdwali Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. १ सो ने एक गर्नज पर्याप्ता, एकसाने एक गर्नज अपर्याप्ता अने एकसोने एक समूीम अपर्याप्ता. ए रीते मनुष्य १ गतिना त्रणसेंने त्रण नेद थया. हवे तिर्यंच गतिना नेद ६ कहे . तेना पांच नेद (१) एकेंडि,(२) बेजि, (३) तेइंति, 9 (४) चौरिजि, (५) पंचेंजि. तेमां एकेंजिना पांच नेद. (१), पृथ्वीकाय, (२) अपकाय, (३) तेउकाय, (४) वाउकाय, 5 अने (५) वनस्पति काय. तेमां प्रथमना चार नेदबे, तेना है प्रत्येके बे बे नेद, एक सूक्ष्म अने बीजो बादर ए बेना & गणतां श्राउ नेद थया. हवे वनस्पतिकायना बे नेद, प्रहै त्येक अने साधारण, तेमां साधारणना बे लेद. सूदम 6 5 साधारण अने बादर साधारण, सूक्ष्म साधारण ते सूक्ष्म निगोद अने बादर साधारण ते कंदमूळादि । बादर निगोद. ए बे साधारण वनस्पतिकायना नेद अने एक प्रत्येक वनस्पतिकायनो नेद मळी त्रण नेद वनस्पतिकायना थया. ते नेगा करतां अगिवार नेद थया. तेना प्रत्येके बेबे नेद, पर्याप्ता अने अपर्याप्ता एटले एकेंजिना बावीस नेद थया. हवे बेइंडि, तेजि अने चौरिंड ए त्रणने विकलेंजि कहीए तेना प्रत्येके बेबे नेद.१ एक पर्याप्ता अने बीजो अपर्याप्ता, एम बनेद विकलेंजिना थया ते मेळवतांअठ्ठावीस नेद थया. ६ हवे तिर्यंच पंचेंजिना नेद कहे . तेना बे नेद स-3 नि तथा असन्नि. सन्नि ते गर्नज तेने मन संज्ञा ले. 'श्रस-, ६ शिते मन संज्ञा रहित बे. वळी ते माटी पाणीना संयोगे PensingargamMER SandranagaraatarBroGranard Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FRORAGADGETAR BARAGHAGarls श्री धर्म प्रवर्तन सा२. उपजे , ते बेना प्रत्येके पांच पांच नेद कहे . थळचर, जळचर, खेचर, जरपरि अने जुजपरि ए पांच दु दश नेद थया, तेना प्रत्येके वे वेनेद, पर्याप्ताअने अपर्याप्ता गणतां तिर्यंच पंचेंजिना वीश नेद थया. तेमां चौरिंडि सुधीना अट्ठावीश नेद मेळवीए त्यारे तिर्यंचनी जातिना अमता। लीस नेद थाय ते कह्या. । हवे नारकीना सात नेद कहे . [१] धमा, [२] वंशा, [३] सेला, [] अंजण, [५] रिठ्ठा, [६] मघा, [२] 6 माघवती ए सात वेदना प्रत्येके बवे नेद एक पर्याप्ता अने बीजा अपर्याप्ता. एम चौद नेद नारकीना थया. हवे देवगतिना नेद कहे . जुवनपति, व्यंतर, ज्योतिषि अने वैमानिक, तेमां जुवनपतिना पचीस नेद , दश निकायना दश अने परमाधामी पंदर मळी पचीश नंद थया. हवे व्यंतर निकायना नेद कहे . तेमां व्यंतर तथा वाण व्यतरना सोळ नेद अने तिर्यग् जूनकना दश नेद मळीने वीस नेद थया. हवे ज्योतिषीना नेद कहे जे. तेना मूळ वे नेद एक स्थिर अने वीजा अथिर एवेना । प्रत्येके पांच पांच नेदडे, चंड, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, अने तारा, ए पांच दु दश ज्योतिषीना थया. हवे वैमानिकना नेद 9) कहे . तेमां किल विषियाना त्रण नेद. लोकांतिकना नव नेद, अने बार देवलोकना बार नेद, ए चोवीस नेद कॐ स्पवासी देवना कह्या. हवे अकल्पवासी देवना नेद कहे , ले. नववेयकना नव नेद अने अनुत्तर विमानना पांच PARED BABIED SARGroorkarRSARS. COMonoranoraMareena Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KRABARAGARAARRARAMMRAGRArr. नेद मळी चौद नेद थया तेमां कल्पवासी देवना चोवीस नेद मेळवतां अमत्रीस नेद वैमानिकना थया. ए चार निकायना नेगा करीए त्यारे देवगतिना नवाणुं नेद थाय तेना प्रत्येके बेबे नेद एक पर्याप्ता अने बीजा अपर्याप्ता गणतां देवगतिना एकसोने अठ्ठाणुं नेद थाय, ते कह्या. ए चारे गतिना मळीने संसारी जीवना पांचसेने त्रेसठ 5 ५६३ नेद वर्णवी देखाड्या. हवे अजीवना पांचसेंने साठ नेद कहे . तेना मूळ पांच नेद . (१) धर्मास्तिकाय, (२) अधर्मास्तिकाय, (३) आकाशास्तिकाय, (४) काळ (५) अने पूद्गलास्तिकाय. तेमां धर्मास्तिकायना आठ नेद. (१) खंध, (२) देश, (३) 3 प्रदेश, (४) अव्यथी, (५) क्षेत्रथी, (६) काळथी, (७) नावथी, अने (७) गुणथी ए आनेद धर्मास्तिकायना कह्या. तेज रीते अधर्मास्तिकायना बाठ नेद अने आकाशास्तिकायना आठ नेद ए त्रण अव्यना मळीने चोवीस नेद। थाय. हवे काळना नेद कहे डे वर्तमान समय (१), अव्यथी (२), क्षेत्रथी (३), काळथी (8), नावथी (५), अने गुणथी (६), ए काळ ऽव्यना उ नेद कह्या. ते सर्व लेगा करीए त्यारे अरूपी अजीवना त्रीस नेद, चार अव्यना ६) मळीने थाय ते कह्या. हवे पुद्गलास्तिकायना नेद कहे . वर्णना (५) नेद. ७ & (१) रातो, (२) धोळो, (३) लीलो, (४) पीळो, अने (५) श्याम. हवे रसना पांच नेद. (१) कमवो, (२) कषायलो Dirmire onew Porno Pure Gre BRRASSAGARAGRAGASAGARLSSAGARAGRAPAR GreGRAGRA Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ama . R Gregoringrowonor श्री धर्म प्रवर्तन सा२. ५ (३) खाटो (४) तीखो, अने (५) मधुरो. हवे गंधना बे नेद १ (१) सुरन्नि, (२) अने पुरनि. हवे फरसना आउनेद कहे १ . (१) शीत, (२) उष्ण, (३) रुक्ष, (४) स्निग्ध, (५) नारे, " (६) हळवो, (७) सुकोमळ, अने (७) बरसट. हवे संस्था नना पांच नेद कहे . (१) लांबु, (२) गोळ, (३) त्रिकोण ( ६ (४) चोखुण, (५) वळीयाकारे ए संस्थानना नेद कह्या. ए १ & रीते वर्ण, रस, गंध, स्पर्श अने संस्थानना सर्व मळी पचीस , नेद थया. हवे नंद गणवानी समज देखामे . एटले राता वर्णनी जे वस्तु . तेमां रस पांच, गंध बे, फरस आठ, के अने संस्थान पांच एम वीस नेद एक वर्णमां लाधे, तेमज 6 पांच वर्णमां गणीए एटले वर्णना सो नेद थाय.हवे रसना नेद कहे . तेमां कटुक रसनी जे वस्तु तेमां वर्ण पांच, गंध बे, फरस आठ, अने संस्थान पांच. ए वीसनेद एक रसमा साधे, तेम पांचे रसमां गणीए त्यारे रसना सोनेद थाय. हवे संस्थानना नेद कहे . एटले जे लांबा संस्थाननी वस्तु . तेमां वर्ण पांच, गंध बे, रस पांच अने फरस श्राउ ए वीस नेद एक संस्थानमा लाधे. तेम सर्व संस्था१ नमां गणीए एटले पांच संस्थानना मळीने सो नेद थाय , हवे गंधना नेद कहे . एटले जे सुरनि गंधनी वस्तु डे तेमां वर्ण पांच, रस पांच, फरस आउ, अने संस्थान पांच ६ एम वीस नेद एक गंधमां लाधे, तेमज बे गंधना गणीए ॐ त्यारे बीस 5 बेताळीस नेद थाय. हवे फरसना नेद कहे , . एटले शीत फरसनी जे वस्तु डे तेमां वर्ण पांच, रस १ (१२) ocedures Quero Barcerebrar un TAGOOGraorder@GrenormanorangRORT Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ maraGROGRAGAR - શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. १ पांच, गंध बे, अने संस्थान पांच, वळी उपर शीत स्पर्शनी विवक्षा करी बे, तेनो प्रतिपक्षी उष्ण स्पर्श न होय बाकीना ब स्पर्श साधे ते सर्वे नेगा करतां त्रेवीस नेद एक स्पर्शमां थाय तेमज आठे स्पर्शना गणीए त्यारे एकसोने चोराशी नेद आठ फरसना मळीने थाय. उपर बताव्या प्रमाणे पांच वर्णना सो, पांच रसना सो, पांच संस्थानना सो, बे गंधना बेतालीस अने आठ फरसना एकसो चोरासी मळी कुल पांचसें त्रीस नेद पुद्गलास्तिकायना थाय ते कह्या. तेमां अजीव अरूपी चार अव्यना त्रीस नेद नेगा करीए त्यारे अजीवना पांचसेंने साउनेद थाय ते कह्या. हवे जीवना नेदनी व्हेंचण कहे . जीवना बे नेद सिद्ध (१), अने संसारी (२). सिद्ध ते कर्म श्रावरण दोष रहित. केवलज्ञान, केवलदर्शनादि गुण प्रगटरूप अखंग, अमर, अव्याबाधानंद मय, लोकने अंते बिराजमान स्वरूप नोगी ते सिद्ध जीव कहीए. ते सिद्धता सर्व जीवनो मूळ धर्म डे पण जेणे पोतानुं वीर्य फोरव्युं ते सिद्ध नगवान थया, नहीं फोरव्युं ते संसारमा प्रवर्ने बे. हवे सिद्धना नेद कहे . प्रथम समयना, अपर समयना वळी अनंतर सिद्ध, परंपरसिद्ध, आदिसिद्ध, अनादिसिद्ध, अनेकसिद्ध, लघु अवगाहना सिद्ध, गुरु अवगाहना सिद्ध अने मध्यस्थ अवगाहना सिद्ध, इत्यादि सिद्ध नगवानना नेद ( जाणवा. Gore GrenoNearBORGAOR GROK Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ REARROR OR GRAR GARAGRAGES श्री धर्म प्रवर्तन सार. र हवे संसारी जीवना नेद गुणगणानी अपेक्षाये कहे . तेना बे नेद. अयोगी अने सयोगी अयोगी ते सैलेशि ( नावे थया वळी, मनादि त्रणे योगनो रोध थयो ते चौदमा ह गुणगणाना, बाकीना सयोगी, तेना बेनेद.सयोगी केवळी ( अने सयोगी बद्मस्थ. सयोगी केवळी ते तेरमा गुणगणाना, तेमणे चार घाति कर्मनो क्षय कयों ने, वळी अनंत चतु-१ है ट्रय प्रगट करी , तेमने अरिहंतनगवंत कहीए. बाकीना है ७ सयोगी उद्मस्थ. तेना बे नेद. अमोही अने समोही. अमोही ते मोहनीय कर्मनो क्षय कर्यो जे जेमणे वळी, दायक नावनुं यथाख्यात चारित्र पाम्या . वीतराग नावे थया ते अमाही बारमा गुणगणाना, बाकीना समोही. तेना बे नेद उपशांत मोही अने उदीत मोही. उपशांत मोही ते मोहनीय कर्मनी सर्व प्रकृतियो उपशमावी ले जेणे वळी उपशम नावर्नु यथाख्यात चारित्र पाम्या .. ते उपशांत मोही अगिारमा गुणगणाना बाकीना उदीत मोही तेना बे नेद. सूक्ष्म मोही अने वादर मोही. सूक्ष्म १ मोही ते लोना| उदयमां जेने, वळी सूक्ष्म संपराय ' चोथा चारित्र वंत ते दशमा गुणगणाना, बाकीना बादर मोही तेना बे नेद. अवेदी अने सवेदी. अवेदी ते वेद विकार क्षय पाम्यो जे जेनो ते नवमा गुणगणना बाकीना 8 सवेदी. तेना वेनेद श्रेणीवंत अने श्रेणी रहित. श्रेणीवंत ते ७ , आठमा गुणगाणाना शुक्ल ध्यानध्याता,बाकीनाश्रेणीरहित, हे ६ तेना वे नेद. अप्रमत अने प्रमत्त. अप्रमत्त ते आत्मोपयोExaggagemergro PRAGOOOOOOGreen. GRemarooranraoroorkorea (१४) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Prime WASARGarer MARAHTAGRAATARRIORAGRAar श्री धर्म प्रपतन सार. ६ गी सातमा गुणगणाना. वाकीना प्रमत्त, तेना वे नेद वि रति अने अविरति, तेमां विरतिना बे नेद. सर्व विरति १ अने देश विरति ते सर्व थकी संसार त्याग कयों ने जेणे हैं ६ ते डहा गुणगणे साधु, अने देशविरति ते पांचमा गुणगणे , श्रावक, बाकीना अविरति तेना वे नेद. समकिति अने । मिथ्यात्वी, समकिति ते चोथा गुणगणाना बाकीना मिथ्यात्वी, तेना बे नेद. ग्रंथिन्नेदी अने ग्रंथि अन्नेदि. ग्रंथि नेदी ते समकित पामी पाठा पमया, मिथ्यात्वें गया तेमणे, ग्रंथि नेद करेलो . हवे फरीथी करवो न पमे, चमते नावे समकित गुणगणे आवे ते ग्रंथि नेदी, वाकीना अन्नेदी तेना बे नेद. नव्य अने अन्नव्य नव्य ते काळ लब्धि पामी यथाप्रवृत्ति आदि त्रण करण करी कर्म स्थिति घटामी अपूर्व करणे अपूर्व वीर्य फोरवी ग्रंथि नेद करी समकित पामे वळी वीर्यनी, काननी, उपयोगनी ध्याननी अधिकता पामे. तो कर्मनो नाश करी कर्म रहित थ सिद्धि वरे योग्यतावाळो ले माटे. वळी केटलाएक नव्य तो कारण सामग्रीना अनावे समकित पामे नहीं पण नव्य जीवमां योग्यता धर्मनी उती डे ते माटे नव्य कहीए. ते जीवो अन्नव्यथी अनंत गणा अधिक डे अने जे अन्नव्य जीव डे तेनी सत्ता तो नव्य जीव सरखी बे. गुण, पर्याय लक्षण . सर्वे बराबर पण मिथ्यात्व गुणगणाथी त्रण काळमां समकित गुणगणे ए श्राववानों नथी अने मिथ्यात्व तजॐ वानो नथी तेनुं कारण के नव्य स्वन्नाव एनामां नथी ते ६ LassrootereBrowse REEMAnganwroordarnarodernimes (१५) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RGARL.See FROMRAGMEAGARATAREERASNSAGreAairag श्री धमे प्रवर्तन सार. १ कारण सामग्री पामे तो पण पलटाय नहीं वळी श्रुत अ-६ ज्यास करे अने पंच महाव्रत आदरे , पण आत्म धर्मनी , यथार्थ श्रद्धाना अन्नावे समकित पामे नहीं.अने मिथ्यात्व । बोमे नहीं माटे अन्नव्य जीवो डे ते सिद्धि पद पामवाने अयोग्य ले ते अन्नव्य जीवोनी संख्यां चोथे अनंते ने ए , नेद व्हेंच्या तेने व्हेंचण रूप व्यवहार नय कहीए. & हवे बीजो नेद "प्रवर्त्तनं वा व्यवहार" के प्रवर्तन व्य-, वहार सद्विविध के तेना वेद शुद्धोशुद्धश्च के शुद्ध 6 व्यवहार अने अशुद्ध व्यवहार ए बे नेद कह्या. तेमां ग्रंथकारे प्रथम शुद्ध व्यवहारना नेद कह्या बे, पड़ी अशुद्ध व्यवहारना नेद कह्या डे पण इहांतो अमे पहेलां अशुद्ध व्यवहारना नेदनी विवक्षा करी पड़ी शुद्ध व्यवहारना नेद कहीशु. अशुद्ध व्यवहार ते अशुद्ध प्रवर्तन ते कहे . अशुद्धोपि द्विविध के० तेना वे नेद. सद्भूता सद्भूतनेदात् के० सद्भूत व्यवहार अने असद्भूत व्यवहार. तेमां सद्लूत व्यवहार ते, “ज्ञानादि गुण परस्परं निन्न" के ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य अने उपयोग आदि अनंता गुण आत्मामां अन्नेद नावे रह्या ले ते गुणने आत्माथी निद पणे जिन्न गवेखे तेने अशुद्ध सद्त्त १ 0) व्यवहार कह्यो, हवे बीजो नेद असद्लूत व्यवहार ते, , “कषायात्मादि मनुष्योहंदेवोहं" के हु क्रोधी हुं मानी हुँ कपटी, हु लोनी, अने हुं विषयी इत्यादि. वळी हुँ , मनुष्य हुँ देवता इत्यादि कहे, मान, एटले जे गतिमा ६ VEALENOMORRHOMXSVIRENA . O Gramrekar@GroGareroorGuarde OGRAGRAM Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ই શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. শই আ · गयो ते गतिरूप पोते थयो वळी ते गति हेतुपणे परिणमतां ग्रह्मां ते गतिं विपाकी जे कर्म ते उदयरूप परनाव बे, वळी पचीसे कषायनारूपे पोते थाय बे. ते पण उदयिक नाव बे. तेने परनाव कहीए. ते परन्नावने ने जीवने यथार्थ ज्ञान विना नेद ज्ञान शुन्य एक करें। माने बे. तेने अशुद्ध अद्भूत व्यवहार कहीए. "सो पिद्विविधः "" के० तेना पण वे नेद तेमां पेढेलो नेद ते " संश्लेषित " एटले शरीरं मम अहं शरीरी के शरीर ते जीव ने जीव ते शरीर एम शरीरनो अने जीवनो एकपणो माने ते संश्लेषित व्यवहार कहीए. दृष्टांतः-जेम नाकना मेलमां माखी लपटाय ने बंधाय बे, ते माखी नाकना मेलथी प्राये जूदी न थाय ते दृष्टांते ए व्यवहारी जीव कायाथी जूदो ढं एम न समजे ए पेहेलो नेद को हवे बीजो नेद असंश्लेषित ते पुत्र कलत्रादि के० पुत्र पुत्री, वळी कलत्र ते स्त्री ने आदि शब्दथी धनदोलत घरबार, मेहेलात, राजऋद्धि, स्वजन, कुटुंब ए सर्वेने मारुं कहेतुं पोतानुं मानवं तेने - संश्लेषित व्यवहार कहीए. एटले शरीरने पोतानुं कहां ते. आयुष्यात सुधी बोमयुं बुटे नहीं माटे संश्लेषित क पुत्र कल यादि धनदोलत सर्वेने पोतानुं कनुं, पण पोतार्थी जुदुं डे. थळगुं बे माटे असंश्लेषित कहां. दवे एनुं रहस्य बतावे छे. जे ए अशुद्ध व्यवहारना भेद नेदांतर कर्या तेमां सद्द्भूत व्यवहारे " ज्ञानादि गुण परस्परं जिन्न " कृत्रिम रीते जताए गवेखीने कह्युं ते जीवथी जिन्न ज्ञा ૩ ( १७ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat · www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SARALORIORRORRORGre ROVERGRESIBRARGarause श्री धर्म प्रवर्तन सा२.. ६ नादिक गुण निरपेक्षिपणे कह्या, अने स्वनाविक गुणनी श्र६ पेक्षा न राखी, माटे ए नेद अनेद पक्षनो विरोधी ले १ अपेक्षिक नथी, ते कारणे मिथ्यात्वमा नळे जे वळी असदलूत व्यवहारे " कषायात्मादि मनुष्योहं देवोहं” कयु ते कषायोने आत्मा कह्यो. वळी चार गति विपाकी कर्म, 6 गतिहेतुपणे परिणमतां ग्रह्यां तेने आत्मा कह्यो, तेणे जमने जीव मान्यो; ते मिथ्यात्व डे वळी संश्लेषित व्यवहारे, “शरीरं मम अहं शरीर" कयुं जे शरीर तेज हुँ पोते जीव के लुं वळी अहं के हुँ जीवळ तेज शरीर एटले, आत्मबुद्धि कायामां ग्रहण करी, ते मिथ्यात्व थयु; वळी असंश्लेषित व्यवहारे पुत्रकलत्रादिने मारूं कडं तेणे पुत्र स्त्रीधन आदि वस्तु पोतानी मानी, ते वचन सापेक्ष न होय तो मिथ्या-6 त्वमा नळे ते समजवाने कारणे श्रद्धा शुद्ध करवाना हेतुए नीचे शास्त्रोनी सादी लखीए बीए. जसविजयजीकृत समाधि शतके: उदा. वाहिर अंतर परम ए, आतम परिणति तीन ॥ देहादिक आतम नरम, वाहिरात्म वहु दीन ॥ नरदेहादिक देखिके, आतम ज्ञाने हीन ॥ जियवल वहिरातमा, अहंकार मन लीन ॥ए॥ १ अरि पुत्रादिक कल्पना, देहातम अनिमान ॥ हे निजपर तनु संबंध मति, ताको होत निदान ॥ ११ ॥ है देहादिक आतम ब्रमी, कल्पै निज परन्नाव ॥ (१८) ARRAORADABADRAGONRBARABARAGAPAGAR PRAGARAGAT Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Regrana GROGRAM RAGramBROBERGornerBOOKS श्री घर्भ प्रवर्तन सस२. १ बातमज्ञानी जग आहे, केवळ शुद्ध स्वन्नाव. ॥१५॥ स्वपर विकल्पै वासना, होत अविद्या रूप ॥ 2 तातें बहुरि विकरूपमय, नरम जाल अंध कूप ॥ १३ ॥ तु पुत्रादिककी कल्पना, देहातम ब्रम नूल ॥ ताकू जम संपति कहै, हहा मोह प्रतिकूलः ॥ १४ ॥ या ब्रम मति अब बांमि दौ, देखौ अंतर दृष्टि ॥ मोह दृष्टि जो डोमीये, प्रगटे निजगुण सृष्टि ॥ १५ ॥ रूपादिक को देखिवो, कहन कहावन कूट ॥ इंजिय जोगादिक बले, ए सब खूटा सूट ॥ १६ ॥ रूपेके ब्रम सीपमें, ज्यूं जम करे प्रयास ॥ देहातम ब्रमतें नयो, त्यूं तुज कूट श्रन्यास ॥१७॥ हवे नेमीदास कृत अध्यात्म सार ग्रंथेः हो । पुद्गलसे रातो रहे, जाणे एह निधान ॥ तस लाने लोज्यो रहे, बहिरातम शनिधान ॥ ५॥ हवे आनंदघनजीकृत चोवीशीमां सुमतीनाथजीना स्तवन मध्येः थातम बुद्धे कायादिक ग्रह्यो। बहिरातम अघरूप सुझान॥ g कायादिकनो साखी घर रह्यो, अंतर आतम रुप ॥ सुझानी ॥ सुमंतिः ॥ ३॥ इत्यादि अनेक शास्त्रनी साक्षीए, उपर कहेला श्रशुद्ध व्यवहारना चारे नेद मिथ्यात्व प्रवर्तनमां नळे जे. तेना ग्राहकने बहिरात्मा कहीए. ते पुरुष धर्म करवा Granoranoranor GrorenaGBSE Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Owneronormonorror श्री धर्म प्रवर्तन सा२. चाहे, चारित्र लेइ क्रिया करे, व्यवहार नये निर्दोष देखाय पण समकित पामे नहीं, अने तेनी मुक्ति पण थाय नहीं. कर्वा डे के:थे विरया सावजाश्रो // कषाय हीण महब्वय घरावि // 6 & सम्मदिहि विहुणा // कयावि मुख्खं न पावंति // 1 // है ए गाथानो नाव विचारतां उत्कृष्टा थश्ने फरे पण अशुद्ध व्यवहारी जे. ज्यां सुधी कायाने जीव मानी रह्यो है डे, जीव कायानी जूदाइ जाणी नथी, त्यां सुधी अशुद्ध व्यवहार टळे नहीं. एम सांनळी को पूढे के ते शी रीते टळे ? तेनो उत्तर-प्रथम सद्गुरुनी शोध करे तेने शुनोदय कारण सद्गुरु मले, पण ते गुरु केवा डे ? तो 1 कथु बे-समयसार नाटक ग्रंथेः सवैया एकतीसा. झानके उजागर सहज सुखसागर, . सुगुण रतनागर वैरागरस नो हे // सरणकी रीत हरे मरणको नैन करे, करनसो पीठ दे चरण अनुसयों है // धरमको मंगन नरमको विहंमन, ज्यु परम नरम व्हे के // करमसों लयर्यो है एसो मुनिराज जुय लोकमें, विराजमान नीरखी बनारसी नमस्कार कयों है 5 // - अर्थः-शान के उजागर के आत्मज्ञान ज्योति निहै मळ थर ले जेने वळी अनुन्नव जुवनमा सूर्योदय सरखो PRADEEMBEMBER FORGreen Grearerana.ormernorrenorancom (20) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ વર્તન સાર, Groug@nare PAR GALGAREERSelorerseas १ प्रकाश थयो जे जेने, तेनुं नाम ज्ञान उजागर कहीए. " सहज सुखसागर " के० स्वस्वरूपमा चेतन रमे त्यां को जातनी बाधा पीमा वेदवा रूपे थती नथी. बाधापी. ६ मा परस्वन्नाव वृत्तिमा व्यापक पणे होय, अने अव्यापक पणे वर्ते त्यां अव्यावाध सुख सागर स्वस्वन्नाव वृत्तिये प्रगटे. “ सुगुण रत्नाकर" के० आत्माना अनंता गुण बे, & ते गुणोनी खाण ते ए मुनिराज . वैरागरस नों है के है त्यागरूप रस तो एक शानमांज रह्यो , ते रसें नरपुर ठे & अंतःकरण जेनुं एवा “ सरणकी रीत हरै के० पार्श्वनाथ जीने कमठे जळ वृष्टि आदि मोटा उपसर्ग कर्या, ते सरखा कदाच वैरनावे उपसर्ग कोइ तिर्यंच अथवा देवता करे तो पण जगवतीजीनुं वचन-असज्जाश्या देवा ॥ इत्यादि संन्नारी चार निकायना देवताने स्मरे पण र नहीं. अने उपव टाळ एम कहे पण नहीं. जे है मुनिराज बे, ते तो बाह्यमां देवगुरूनुं शरण करे . अने अंतरमा पोतीका आत्मानुं शरण करे , ते सिवाय अन्य शरण करवानी जे रीत तेनो तो परिहार को ले. “ मरणको नै न करे” के० जे अज्ञानी मिथ्यात्वी जे ते कायाने जीव मानी तेनी साथे पोतापj राखे . वळी पुत्र कलत्र धन्यादि वस्तु साथे स्नेह बंधन " दृढ जे जेने ते पुरुषो मरणथी गरे पण साधु मुनिराजे तो १ ए सर्वे वस्तुने रोग जाणी पर मानी बोकी जे. वळी काया-3 ऐ थी विरक्त चित्त . अने जाणे ले के ग्रामा ज्ञानादिक 6 (२१) Bardaroornrepreneurorenore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FRAGMEASEARRATRISANSASSAGAR ...... १ गुणे करी नावप्राणधारी ले तेनो नाश त्रण कालमां थाय नहीं. शाश्वतपणा माटे. एम मरणादि नय बेदीने निर्जय १ यया ले. “ करनसो पीठ दे" के पांच इंजि श्रने नही नोडि जे मन ए उनुं नाम करण . तेना विषय विकारने पूंठ देश विमुख थया डे एटले जे आत्मदर्शि थया, ते- है मने विमुख कहेवा. “ चरण अनुसयोंहै” के० चारित्र ते चपळता रहित, स्थिरताना परिणाम अने आत्मखरूपमा एकत्वपणे रमण, तन्मयता स्वरूप विश्रांति तत्वानुन्नव तदूप चारित्र ग्रह्यो जे जेणे " धरमको मंगण" के० ए मुनिराज डे ते धर्म स्थंन्न , एमना आलंबन आधारे चतुविध संघ धर्म प्रवृत्ति करे डे वळी उपदेश सांनळी पूजीने निःसंकित थाय बे वळी गुरु महाराजा केवा जे ? के षटदर्शन शास्त्रना जाण . न्यायतर्कमां कुशल ने अध्यात्ममां प्रवीण, सत्य नाषाडे जेनी, पोते तरे, अने बीजाने तारेजे देहधारीले पण अंतर्वत्ति जोगे देहातित नावने पाम्या ज्ञानध्यान जोगे श्रात्मा पुष्ट कयों ने जेणे, बाह्य अंतर सर्व वस्तुना जाण , पंमितानी पंक्तिमा अग्रेसर सर्वने पूजवा वांदवा योग्य, नव्य जोवने ए मोदनो सार्थवाह डे वळी ६ अंतर्वत्ति योगे अनुत्नव जुवनमा आत्मधर्मनी रचना मंमा-१ ६) णी ले जेने, तेमने धर्मको मंगन जाणवो. “ नरमको विहं६ मण ज्यु" के० मिकता जे विकसता अथवा शंका कांक्षा १ तेनो नाश कयों , जेम अंधकारनो नाश कर्ता सूर्योदय बे, तेम ए ज्ञानी जाणवा. " परम नरम व्है के करमसो Learsuasivdeoroscom Grammarriagews noramanarassroo RoardGGRGramBordGRGGARGre Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Marnar STESTROGRAM RAGGARWARMERMIRMIR - श्री धर्म प्रवर्तन सार. १ सयों है" के बाह्यमा कायादि योगे पुद्गल प्रवृत्ति करवामां थाक्या माटे नरम कह्या, पण अनंत वीर्यना धणी बे. कर्म परिणाम राजा साथे युद्ध करीने पोताना आत्मा ना असंख्याता प्रदेशरूप खेत्रथी मिथ्यात्वादि केटलीक १ कर्म प्रकृतिश्रोने जेणे हणी , तेमनुं नाम साधु मुनिराज डे. “ एसो मुनिराज” के उपर कह्या इत्यादि गुणे गुणी, & संसार समुह तरवाने नाव समान “ नूय लोकमें" के है हे अढी द्वीपमां विराजमान के० सदा विद्यमान होय . " नीरखी बनारसी” के० तेमने जो नीरखी एटले अंतदृष्टि करी साधु गुण गवेख्या ते साधु नीरख्या ते गुणमय चेतनमूर्त्तिने बनारसीदास समयसार नाटक ग्रंथना कर्ता । एवा जे श्रावक तेमणे " नमस्कार कयों है” के० हृदय कमळ उवासथी घणो प्रमोद बता गुण रागे पंचांग प्रणाम ग्रंथ रचना मंमाणमां मंगळाचरणरूपे को ले ३ त्यादि गुणे साधु मुनिराजनीअोळखाण करवी, ब्रममां नू. ला पम नहीं. रत्न साटे काच वोहोरवो नहीं आत्महेतु तो एजबे, तेमनां पासां सेवीए तो दुःखनी परंपराए चनगति संसारब्रमण ते थकी बुटीए. ए ज्ञानी गुरुराय आपणने उपदेश करे ते समयसार नाटक ग्रंथना मोक्ष द्वारे है कह्यो : सवैया एकतीसा. 9. नेद ज्ञान आरासों दुफारा करे ज्ञानी जीव, आतम करम धारा निन्न निन्न चरचे ॥ salonsexgora Gordor Goras Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Grenorensama MOOOreovaro@roPro@were श्री धर्म प्रवर्तन सार. अनुजौ अन्यास सहै परम धरम गदै करम नरमको खजानो खोलि खरचै ॥ योंही मोख मुख ध्याव केवल निकट श्रावै पूरन प्रकाश पावै पूरन के परचै ॥ नयो निरदोर याहि करनो न कलु और . ___ एसो विश्वनाथ ताहि बनारसी अरचे ॥ २ए ॥ . ___ अर्थः-नेदज्ञान आरासो के नेदज्ञानरूप कसोटी- हैं ए कशीने एटले लीक करीने ज्ञानी जीव “ दुफारा करै" के यथा दृष्टांते-जेम चोकसी लोको सोनानी परीक्षा क-के सोटीना पथ्थर उपर लीक करीने करेले के एक तोलामां एक वाल वा बे वाल त्रांबुळे अथवा रुपुंडे. बाकीनुं शुद्ध कंचन जे. एम बे लाग जूदा चिंतवे. ए दृष्टांते सम्यकझानी आत्मा परीक्षा करेले के पोतानी कायामां अंतापकपणे रहेलो पोतीको आत्मा ते द्रव्यथी त्रिकाळ वृत्तिये अखंग अविनाशी डे वळी क्षेत्रथी अखंख्यात प्रदेशी डे ) काळथी अनादि अनंत डे अने नावथी शान दर्शनादि अनंत गुणमय उपयोगी . सादात् सिद्ध परमात्मा ते १ पोतेज बे. कर्म संयोगे कायामां वश्योडे. कायामां परिण- १ ट्र म्यो. पण कायाथी जूदो . शब्द, रूप, रस, गंध अने स्पर्श ए पुद्गलना पर्याय. तेने इंद्रियद्वारे सगांगीपणा ना पूषणे करीने पोते अनुत्नवेडे, ए सर्वे पुद्गलनो अचे2) तन स्वन्नाव. श्रने अंतर्व्यापकपणे अनुन्नववावाळो ते चेतन. एम जीवनी अने पुद्गलनी निन्नता एटले जू- 3 GRAMDAR GROGROGRAMMARGINDAGINAR (२४) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GMOR Para Gre GRASAREER SAGAR श्री धर्म प्रवर्तन सा२, १ दाइ ज्ञानरूप कसोटीये थाय, तेने नेदज्ञान कहीए । “आतम करमधारा निन्न निन्न चरचै" के हवे आत्मधाराने आत्मा थकी प्रगट थयेली अनुन्नव ज्ञानधारा तेने उपादेय जाणी ग्रही स्व स्वरूपे परिणमावे अने कर्मधारा के कर्म थकी प्रगट थयेसी ने काया वचन अने मन तेने हेय जाणीने तजे “ अनुन्नौ अन्यास लहै” के हवे 9 त्यां शुद्धात्म स्वरूपनो अनुन्नव अन्यास परसंग रहित पणा माटे उपयोगनी विशुद्धिये वृद्धिपणुं पामे, “ परम धरम &, गहै" कहेतां हां रूपक श्रेणी मां अने शुक्लध्याननापे। हेला पायाना ध्याता थाय त्यां परम नाम उत्कृष्ट धर्म ग्रहे 6 " करम नरमको खजानो खोली खरचै” के० इहां ब्रमि कतारूप मोहनीय कर्मनी प्रकृतिना परमाणुं दळनो अनं-1 तो खजानो आत्म प्रदेशे रहेलो तेने खोली एटले उदय२ मां लावीने खरचे एटले शुद्ध परिणतिना लग्न कार्यमां द शमा गुणगणा अंते खरचे एटले विखेरी नांखें निर्जरे त्यां मोहनी कर्मनी सत्ता आत्म प्रदेशथी खुटे. वळी रागद्वेष अशुद्ध परिणतिनो पण छेद थाय, त्यां यथाख्यात चारित्र क्षीण मोह गुणगणे पामे इहां शुद्ध परिणतिनुं पाणीग्रहण पण थाय, ही के० इहां मोक्ष के० मोक्षने एटले कर्मथी मूकाववाने “ मुख ध्यावै " के मुख्य वृत्तिये शु. क्ल ध्याननो बीजो पायो ध्यावे, त्यां ज्ञानावरणीय तथा दर्शनावरणीय अने अंतराय ए त्रण कर्मनो सत्ताथी उ. ( बेद थाय, त्यां " केवळ निकट श्रावै” के० केवळज्ञान as.. ४ (२५) TAGRGornoongrenoNGIGRAMROPAGrena Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GRAPARGAOBC Grade FAGARCIAGRamrone श्री धर्म प्रवर्तन सार. ............ . केवळदर्शन तेरमा गुणगणे पामे. “ पूरण प्रकाश पावै" : के इहां परिपूर्ण प्रकाश पामे एटले लोकने अने अलो७ कने जीवने अने अजीवन रूपीने अने अरूपीने वळी उ. त्पाद, व्यय, अने ध्रुव युक्त त्रणे काळनी वर्त्तनाने एक समये जाणे. “ पूरणके परचै" के० परिपूर्ण आत्मानना परिचय थकी “नयो निरदोर आहि" के० शहां चौगति नवब्रमणनी दोरनो अंत आव्यो एटले तेथी मुक्त थया. " करनो न कतु और " के एक शुद्धात्म स्वरूपनो अनुन्नव पोतीका स्वन्नावे थाय जे ते सिवाय तेमने बीजुं है कांश पण कृत्य करवानुं बाकी रहे नहीं. “ एसो” के 6 उपर गवेख्या तेवा विश्वनाथ के जगतना नाथ ए सर्व इ देव आपणे वांदवा, पूजवा, ध्यान करवा योग्य " तां ही" के० तेमने " बनारसी अरचै" के बनारसी दास र श्रावक पूजे. ए उपर कह्यो ते उपदेश पाम्यां शुद्ध व्यवहार श्रावे शुद्धोद्विविधः के० तेना बे नेद, तेमां पेहेलो नेद व६ स्तुगत व्यवहार. धर्मास्ति कायादि व्याणां स्वस्वचलण सहकारादि जीवस्य लोको लोकादि ज्ञानादिरूप" के सर्व अव्यनी स्वरूप रूप शुद्ध प्रवृत्ति जेम धर्मास्तिकाय नो चलण सहायता, अधर्मास्तिकायनी स्थिर सहायता, हे आकाशनी अवगाहकता, काळनी वर्तना, पुद्गळनी मिल , न, विखरण, समण पमणता, जीवनी लोका लोक श्रादि है जाणवू, देखq ते केवळज्ञान, केवळदर्शनता इत्यादिकने PLACEmorrow.com greerGRADGeorecarrore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Rare Gre Gaare Grenorms श्री धर्म प्रवर्तन सा२. वस्तुगत व्यवहार कहीए, वळी शुद्ध जीवादि अव्यमां g अनंता गुण अनंता पर्याय ले ते सर्वे स्वस्वनावने नजेजे १ एटले गुण गुण प्रत्ये निन्न व्यक्ति ने पर्याय पर्याय प्रत्ये निन्न व्यक्ति ने एटले एक अव्यमां अनंत नेदे व्यक्ति ॐ पामीए ते सर्वने वस्तुगत व्यवहार कहीए. ए पेहेलो , नेद कह्यो. हवे “स्व संपूर्ण परमात्म नाव साधनरूप, गुण साधकावस्थारूप गुण श्रेण्यारोहादि साधन शुद्ध व्यवहार” के० पोतिकुं मूळ रूप जोइए तो शुद्ध व्यास्तिक नये पूर्ण परमात्म नाव तादृश देखाय . अनादि सिद्ध डे. ते संग्रह नय थयो तेनो एवंनूत नय करवो तेनुं नाम साधन शुद्ध व्यवहार कहीए, ते धर्म क्यारे प्रगटे के प्रथम मन योगने स्थिर करे त्यां २जुसूत्र नय पामे ते नयमां यथाप्रवृत्तिकरणे आवे. ते करणना प्रनावे सात ६ कर्मनी घणी स्थिति घटामे अने एक कोमाकोमी सागरो१) पममां एक पढ्योपमनो असंख्यातमो नाग न्यून एटली राखे त्यारे अपूर्व वीर्य शक्ति चेतन पामे तेनुं नाम बीजें अपूर्व करण कहीए, ते वीर्य योगे ए करण अंते ग्रंथिनेद ६ करे अने अनिवृत्ति करणे समकित पामे त्यां शब्द नय कहिये. जा गंठी ता पढमं गंठि समच्छो नवेबीअं॥ है अनिअट्रि करणं पुण, सम्प्रत पुरखमे जीवे ॥१॥ . हवे यात्मानो उत्सर्ग धर्म नीपजाववा माटे उपयोगनी विशुद्धिए स्वरूप रमण करतां स्वरूप अनुनवतां गुण- १ LABE OrgarBrowse PRAGARAGNSAGARAGARAGARAGASAGARAGRGrandina Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RSaareGORGRare RS. श्री धर्म प्रवर्तन सा२. ................ गणे चढे. अने आठमा गुणगणेथी रूपकश्रेणी मांगी है शुक्वध्यान योगे घातिकर्म श्रेणिगत हणी तेरमा गुणगणे अनंत चतुष्टय पामे, त्यां सुधी साधन शुद्ध व्यवहार कही. ए. वळी समनिरुढ नय पण त्यां कहीए. हवे आयुषना बेमे योगरोध करी अयोगी चौदमा गुणगणा अंते अघाति हे कर्म हणी कार्मण वर्गणा रहित थ पोतानी कायामां त्री जो नाग पोलाणनो डे ते घटामी बे नाग प्रमाण आत्मप्रदेशनो निविरुघन करी एक समये समश्रेणिए बीजा ६ श्राकाश प्रदेशने नहीं फरसतां लोकाय नागे सिद्ध क्षेत्रमा सादि अनंत नांगे स्थिर रहे तेमने सिद्ध नगवान कहीए. वळी त्यां एवंनत नय पण कहीए. यहां साधन शुद्ध व्यवहारनी पूर्णता थश् ए बीजो नेद कह्यो. हवे उपचरितानुपचरित व्यवहार नेदात् द्विविधी के० उपचरित व्यवहार अने अनुपचरित व्यवहार ए बे नेद कहेडे एटले शरीर जे पोतानी काया तथा पुत्रादिक, धनादिक वस्तु आत्मानी नथी. तेने उपचारे पोतानी कहीए. वळी साधुने शिष्यादिक तथा श्रावक, श्राविका त१ था उपकरण वळी पुस्तक पोथी, पोतानी काया, पोतीको गच्छ इत्यादि परवस्तुले तेने पोतानी कहेवी ते सर्वेने उ9 पचरित व्यवहार कहीए. हवे बीजो नेद ते जीवन अने कायानुं परिणामिक ॐ नावे एकपणुं थयुंडे पण वस्तु निन्न. कायाथी जीव जूदोडे. अने जीवथी काया जूदी, जीवतो अरूपी. का- ६ Rangories Browse Senarendrearanorano GRAMROGR Gregree (२८) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SASARAMBHOGree श्री धर्भ प्रवर्तन सा२. यादिक वस्तु रूपी. जीवनो गुण झायकता अने. पुदगलनो गुण समण, पमण, विध्वंसण . जीव तो अविनाशी, अने पुद्गल विनाशी. एम जीवनी अने पुद्गलनी जिन्नता , एम समजी जूदा करवी तेमां कशोए उपचार नथी तेने अनुपचरित व्यवहार कहीए. तथा च वि शेषावश्यके महानाष्यमां कडंडे, जे व्यवहार नयना मू) ळ बे नेदले. एक व्हेंचणरूप व्यवहार ते व्यादिक व स्तुने नेद नेदांतर करी व्हेंचवें तेने व्हेंचणरूप व्यवहा& रनो पेहेलो नेद कहीए. बीजो प्रवृत्ति व्यवहार, तेना त्रहैण नेद. वस्तु प्रवृत्ति, साधन प्रवृत्ति, अने लोकिक प्रवृ त्ति. तेमां पेहेलो नेद वस्तु प्रवृत्ति एटले जीवनो स्वन्नाव तो ज्ञान दर्शन चारित्र आदि अनंता गुण पर्यायरूपले. ते सर्व स्वन्नाव आवरण योग सूषित थयाडे. ते आवरणरनो क्षय साधन योगे बीजा नेदमां थशे, त्यारे चेतन नि रावरण थयो कहीए ते पोताना खन्नावे प्रवृत्ति करे. एक समय काळे अनंती प्रवृत्ति थाय, तथा पांच अव्यतो अजीव . धर्मास्तिकायादि ते सर्वे पोताना स्वन्नावे प्रवर्ते बे, तेने वस्तु प्रवृत्ति कहीए. ६ हवे बीजोत्नेद साधन प्रवृत्ति, तेना त्रण नेद लोकोत्तर सा१) धन, लौकिक साधन कुपरावचनीक साधन.तेमां लोकोत्तरसा६ धन प्रवृत्ति ते अरिहंत नगवाननी आझाए. शुद्ध साधन मार्गे इहलोक संसार पुद्गल नोग श्राशंसादि दूषण रहित जे . हे रत्नत्रयीनी परिणति परत्नाव त्याग सहित तेने लोकोत्तर PRORAGAR GARAGreAGAR PRAGACASSGNOSTRA (२८) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Pordered GreeRAMASOOMOS श्री धमे प्रवर्तन सार. ६ साधन प्रवृत्ति कहीए. शहां परन्नावनो त्याग कह्यो. तेने १ समजवो एटले पोताथी अन्य जे बीजा अव्यनो स्वन्नाव १ तेज परन्नाव त्याग कह्यो एटले जीवने परतावनो अनादि संबंध परंपराए चाल्यो आवे , ते बुटयो एटले ज्ञानावरणादि आप मूळ कर्म प्रकृति अने उत्तर एकसो अगवन प्रकृति मिश्रित अनादि संबंधे चेतन हतो ते कर्म खजानो खाली कयों. एवी शुद्धता कसा प्रगटी तेनुं नाम साधन शुद्ध प्रवृत्ति कहीए हवे उपर कह्यो जे वस्तुप्रवृत्तिनो पेहेलो नेद ते श्रावरणना अन्नावे वस्तु स्वन्नावनुं प्रवर्तन अनंता काळ सुधी प्रवर्ते ते वस्तु स्वन्नाव साध्यमां लाववा रूप साधन तेनेज लोकोत्तर साधन कहीए. . हवे बीजो नेद लोकिक साधन ते स्यादाद दृष्टि रहित अने मिथ्यानिनिवेष सहित तेने लौकिक साधन कहीए. हवे त्रीजो नेद कुपरावचनीक एटले सूत्र सिद्धांत अनुसार विना जे साधन कर, करावq उपदेश करवो ते सर्वने कुपरावचनीक साधन प्रवृत्ति कहीए, ए साधन प्रवृत्तिना त्रण नेद कह्या. हवे लौकिक प्रवृत्ति ते लोकना स्वस्वदेश अनु, कुळ चाले प्रवर्ते वळी आ जीविकानो अर्थी, आवता नवे पुन्यनो अर्थी, जशकीर्त्तिनो अर्थी पूजावा मनावानो अर्थी २ पोतीको मत स्थापन करवो, चलाववो तेनो अर्थी इत्यादि सर्वने लौकिक प्रवृत्ति व्यवहार कहीए, एम व्यवहार नयना नेद जाणवा. उळखाण करवी. तथा द्वादशसार नयचक्रमां GARAGreAGAR GARAGNBABASAGARAGrenore (30) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री घर्भ प्रवर्तन सार. व्यवहार नयना वार नेद कह्या . तथा शांत नयचक्र 5 सारमा व्यवहार नयना सो नेद कह्या ते शास्त्र रहस्यना जाण जीवने ए ग्रंथोथी सद्गुरु गीतार्थ बहुश्रुत नावने पामेला तेमनी पासे विनय पूर्वक जाणवा. ए नेद विशे१ पावश्यकने अनुसारे कह्या. हवे अव्यगुण पर्यायना रासना अनुसारे कहे . सातमी ढाळे-चक्र उपन्यु साररे ॥ ए देशी ॥ सद्भूत व्यवदार ॥ नेद प्रथमतीहां ॥ धर्मधर्मिना नेदथी ए ॥१॥ शुद्ध अशुभ दिनेद शुश्शू झना । तेद अरथना नेदथी ए ॥२॥ __ अर्थः-हवे नय समीपे उपनय कहेले. तेमांसद्लूत व्यवहार ते उपनयनो प्रथम नेद , ते धर्म अने धर्मीना नेद देखामवाथी होय ॥१॥ तेना बे नेद एक शुद्ध सद्भूत व्य. १ वहार ते शुद्ध अव्य परऽव्य संयोगादि अपेक्षा रहित , पणा माटे कहीए ते निज स्वन्नावे निर्मळानंदी उपयोगी ज्ञानी इत्यादि प्रवृत्ति नेदे नेदविवक्षा करे तेथी थाय अने ६ बीजो नेद अशुद्ध सद्लूत व्यवहार ते अशुद्ध अव्य पर 6 संगी पणा माटे अथवा आवरण योगे कहीए ते उपाधि संयोगे निज धर्म प्रवृत्ति नेदे नेद विवक्षा करे तेथी थाय. ॥ढाळ ॥ . हे जेम जग केवल ज्ञान ॥ आतमव्यनुं ॥ RSH DR. BHAN rrenorror@ANDAGrenoranardoranore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GrRAGardnerGRAGragonorrorenor Gardner AairnerBARABASIRAGreams श्री धर्म प्रवर्तन सा२. मश्नाणादिक तेहगें ए ॥३॥ गुण पर्याय स्वन्नाव ॥ कारकतन्मनो ॥ अरथ नेद छे एहनोए ॥४॥ अर्थः-जेम जगतमां आत्मजव्यकेवळझान सृष्टिए प्रयोग करीए ते शुद्ध सद्लूत व्यवहार थयो, वळी मति ज्ञानादि आत्माना गुण एम बोलीए ते अशुद्ध सद्भूत व्यवहार थयो ॥३॥ गुण गुणीनो पर्याय पर्यायवंतनो स्वन्नाव स्वन्नाववंतनो कारक, अने तन्मय के कारकी तेनो जे एक अव्यानुं गत नेद बोलावीए ते सर्प उपनयनो अर्थ जाणवो. घटस्यरूपं घटस्यरक्तता, घटस्यस्वन्नाव, मृदाघटो निष्पादित इत्यादि नेदे अर्थ प्रयोग जाणवो. ॥ ४ ॥ असद्लूत व्यवदार ॥ परपरिणति नलें ॥ व्यादिक जपचारथोए ॥५॥ व्ये व्य उपचार ॥ पुद्गल जीवने ॥ र जिम कहिये जिन आगम ए ॥६॥ काली लेस्या नाव ॥ श्याम गुणे नती॥ 3 गुण उपचार गुणे कह्योए पर्यायें पर्याय ॥ उपचारें वली॥ दय गय खंध यथा कह्याए व्ये गुण उपचार । वली पर्यायनो॥ ई गौर देह हुं बोलताए ॥ए॥ 66rades PARAGARLGARAGRAGAGARIGOLGAR G ॥G ORAGAR GI Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - २. HIMN FIRSAGARAGRAMSARARIAGRAre Bara १ गुणे व्य उपचार ॥ पर्याय व्यनुं ॥ गौर देव जिम आतमाए ॥१०॥ गुण पजाव नपचार ॥ गुणनो पावे ॥ जिम मति तनु तनु मति गुणोए ॥११॥ अर्थः-परजव्यनी परिणति नळे थके अव्यादिकने नवविध उपचारथी कहीए ते असन्तूत व्यवहार जाणवो ॥५॥ हवे अव्ये अव्यनो उपचार ते जीन आगममांखीरनीरने दृष्टांते जीवने अनादि संबंधे पुद्गल मिश्रित कह्यो डे. माटे जीवने पुद्गल कहीए. ए जीव अव्ये पुद्गल र अव्यनो उपचार थयो. ए पेहेलो नेद ॥६॥ हवे गुणे गुणोपचार ते अरूपी उपयोगी अलेशी आत्माने कृष्णादि उ लेश्यावंत कहीए बीए ते आतम गुणमा पुद्गल गुण र जे लेश्या परिणाम तेनो आरोप थयो ए बीजो नेद ॥७॥ व हवे पर्यायें पर्यायनो उपचार ते अमूर्त्त, अरूपी श्रा१ माने घोमा हाथी आदि जे पुद्गल स्कंध तेने जीव पर्याय 9 कहीए बीए ते पर्याय पुद्गल रूप तेने जीव पर्याय कहेवा ए उपचार समजवो ए त्रीजो नेद ॥ ७ ॥ हवे अत्ये गु६ णोपचार ते अरूपी आत्मा ने ते बतां दुं गौरवणे ७ एम ७ बोलीए ते हुं शब्दे श्रात्मा अने गौर ते पुद्गलनो गुण जे धोळो वर्ण तेनो उपचार जीव अव्यमां कर्यो, ए चोथो नेद थयो. हवे अव्ये पर्यायोपचार ते देहातित जीवने है शरीरी कहेवो एटले शरीर ले ते पुद्गल अव्य पर्याय डे (33) BARSARAMRAGRASSIGNSAGAR GARGAR GARAGNSAGAR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धर्म प्रपतन सा२. ......... तेनो उपचार जीव अव्यमा थयो. ए पांचमो नेद ॥ ए ॥ व हवे गुणे ऽव्योपचार ते देह गौर देखाय ते आत्मा एम १ गौरपणो उद्देशीने आत्मविधान करीए एटले ए गौरतारूप ६ पुद्गलनो गुण तेमां आत्मऽव्यनो उपचार थयो ए हो १ नेद. हवे पर्याये व्योपचार ते जेम देहने आत्मा कहीए , एटले देह बे ते पुद्गल पर्याय ने तेमां आत्मऽव्यनो उप- १ 5.चार थयो ए सातमो नेद ॥ १० ॥ हवे गुणे पर्यायोपचार ते जेम मतिक्षान गुण जे ते इंजिनो इंति संयोग डे माटे ६ & शरीरज कहीए हां मतिज्ञानरूप आत्मगुणने विषे शरीर है रूप पुद्गलपर्यायनो उपचार को ए आठमो नेद. हवे 6 पर्यायें गुणोपचार ते जे शरीर के तेज मतिज्ञान गुण दे तो शहां शरीररूप पुद्गलपर्यायने विषे मतिज्ञान आत्मगुणनो उपचार थयो ए नवमो नेद एम उपचारे असलूत व्यवहार नव नेदे कह्यो ॥ ११ ॥ असदलूत व्यवहार ॥ एम उपचारथी॥ एद त्रिविध दवे सांभलोए ॥१२॥ असद्लूत निजजाति ॥ जिम परमाणु ॥ हो वह प्रदेशी नाषियए ॥१३॥ तेह विजाति जाणो ॥ जिम मूरत मति ॥ मूरत व्ये नपनीए ॥१४॥ असद्लूत दोन नांत ॥ जीव अजीवने ॥ हे विषय ज्ञान जिम जाषियेए ॥१५॥ Horrorder@nareneurongerous PROGrewariser Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RSSMSIRABORATORS श्री धर्भ प्रवर्तन सा. . . HEREGAGRORAGNG उपचरितासद्लूत करियें उपचारो॥ जेद एक उपचारथीए ॥१६॥ ___ अर्थः-असद्भूत व्यवहार उपर नव नेदे कह्यो ते हूँ प्रमाणे उपचारे समजवो हवे एना त्रण नेद कहे . ते १. हे नव्य प्राणि तमे सांनळो. ॥१२॥ स्वजाति असद्गृत 9 र व्यवहारे जेम पुद्गल परमाणुं बे, ते बहु प्रदेशी थवानी जाति . माटे ते एक परमाणुने पण बहु प्रदेशी उपचारे कहीए. ए पेहेलो नेद ॥ १३ ॥ हवे विजाति असन्त व्यवहारे जेम मतिझानने मूर्तिवंत कहीए. एटले ज्ञान ले ६ ते आत्मगुण जे तेने विषे मूर्तिवंत जे पुद्गलनो गुण तेनो ५ 9 आरोप थयो ए बीजो नेद ॥ १४ ॥ स्वजाति विजाति , असलूत व्यवहार, जेम जीवाजीव विषय ज्ञान कहीए. हां जीव ते ज्ञाननी स्वजाति जे अने अजीव जे ते है झाननी विजाति के ए बेहुनो विषय विषयी नाव नामे उपचरित संबंध . ए त्रीजो नेद ॥ १५ ॥ एम उपचरित असद्जूत व्यवहारे जीवद्रव्य, जीवगुण, जीवपर्याय, पुद्गलप्रव्य, पुद्गलगुण, पूद्गलपर्याय एम ए बे वस्तुना उ नेद कह्या, ते जीवमां पुद्गलनो अथवा पुद्गलमा जीवनो जेम घटे तेम एकनो उपचार करीए ए रहस्य समजवो.१६ तेद स्वजाति जाणोरे ॥ पुत्रादिक ॥ पुत्रादिक ने मादराए ॥१७॥ हे विजातिथी ते जाणोरे ॥ वस्त्रादिक मुझ॥ Kaandsongs Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ vreorg Brgreer श्री धर्म प्रवर्तन सा२, गढदेशादिक उन्नयथीए ॥१०॥ उपनय नाष्या एम ॥ अध्यात्मनय ॥ __ कही परीक्षा जश खदोए ॥१५॥ अर्थः-स्वजाति उपचरित असन्त व्यवहार । जाणो ओळखो, संबंधी कल्पन जे हुं पुत्रादिक श्हां हुँ मारा एंव जे पुत्रादिकने विषे कहे, एटले पुत्रादिकने शरीर आत्म पर्याय रूपे स्वजाति ले. पण कल्पित ने अन्य तेने उपचारे पोताना कहीए. ते पेहेलो नेद ॥ १७ ॥ हवे विजाति उपचरित असनूत व्यवहार ते वस्त्र आनरणादि मारां कहेवां एटले वस्त्र आन्नरणादि वस्तु जीवने पर. वळी विजाति स्वजात नथी, तेने 5 उपचारे पोताना कहीए ए बीजो नेद वळी स्वजाति वि जाति उपचरित असद्भूत व्यवहार ते गढ, नग्र, देश, ए राज्य मारु ले के० गढ, देश, गाम, नग्र, प्रमुखने विषे जीव १ ते स्वजाति डे अने देशादिक राज्यऋद्धि प्रमुख डे, ते विजाति के ए बेहु वस्तु पोताथी अन्य ने तेनो पोतापणे उपचार ए त्रीजो नेद ॥ १७ ॥ ए रीते उपनये त्रण त्रण कह्या. तेमां पुत्रादिक, वस्त्र, गढ, देशादिक वस्तु उपचारे पोतानी कही पण वस्तुगते पर ले पोतानो तो एक शुद्ध ( चेतन साक्षात् परमात्मा सरखो चिदानंद ज्योतिरूप अ5 रूपी, अमूर्ति, अचळ, अखंग, अव्यावाधानंदमयी चिन्ह , मूर्ति रूप दे तेनी उळखाण जाणपणुं अध्यात्म नयरूपे १ LABEDirgotto DOG Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GOGGrenore श्री धर्म प्रवर्तन सा२. परीक्षा करीए तो शुद्ध निश्चयनय मूळ स्वरूपे प्रगटे तप जश पामीए ॥ १५ ॥ ढाल सातमी संपूर्ण. हवे आग्मी ढाल कहे . ॥जाय तुज विण घडीरे छ मास ॥ ए देशो ॥ ६ दोय मूल नय नाषीयारे ॥ निश्चयने व्यवहार ॥ निश्चय विविध कारे॥शुछ अशुद्ध प्रकाररे ॥१॥ प्राणी परखो आगम नाव ॥ ए आंकणी. अर्थः-शहां अध्यात्म नय नाषाए तो आगम केहेतां ट्र सूत्र सिद्धांतनी मांहेली कोर मूळ बे नय प्ररूप्यां डे निश्चय नय अने व्यवहार नय, तेमां निश्चय नयना बे नेद कह्याले. शुद्ध निश्चयनय अने अशुद्ध निश्चयनय. हवे तेनो अर्थ सांनळो. हे नव्य प्राणी आत्महित अर्थे सूत्र साक्षीए, गुरू वचने, श्रवणयोगे, स्थिर मने हेयझेय उपादेय बुद्धिए शुद्ध अव्यास्तिक नय उपयोग लगावी पर्यायास्तिक नय शुद्ध साधन रूप व्यवहार नेळी अशुद्ध निश्चय है 5 नय पलटावीने शुद्ध निश्चय नय रूपे थए त्यां स्वस्व६ नावे सहज अकृत्रिम अनुन्नव प्रगटे. ते अनुन्नव ज्ञानने के ६ अनंता चदु बे. ते चदु ज्योतिए अरूपी आत्मानो मूळ 6 स्वन्नाव जो परखो. ए आगम नाव कह्यो. ॥१॥ जीव केवलादिक यथारे ॥शुद्ध विषय निरुपाधि मश्नाणादिक आतमारे ॥ अशुछ तेह सो पाधिरे ॥ प्राणी। (३७) PUBeION ForeAGRAMRAGreAGARAGreAGre GreAGRAMMEAGre manore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ reOrBrowse श्री धर्म प्रवर्तन सार. १ अर्थः-केवळनाण केवळदर्शन आदि अनंता गुण पर्याय रूप यथायोग्य शुद्ध विषयवंत उपाधि संयोगादि सूषण रहितपणे तेने शुद्ध निश्चयनय कहिए अने मति ज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान ए चार ज्ञान १ & अने मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान अने विनंगझान ए त्रण है अज्ञान मली सात नेदे ज्ञानवंत आत्मा ते सर्वे सोपाधिक . परसंयोग संगी. सावरण नावडे तेने अशुद्ध निश्चय नय कहीए ए निश्चयनयना बे नेद कह्या. ॥२॥ दोइ भेद व्यवहारनाजी॥ सद्लूता सद्लूत ॥ एक विषय सद्लूतजी ॥ पर विषया सद् नूतरे ॥ प्रा० ॥ ३॥ __ अर्थः-हवे व्यवहारनयना बे नेद कहे जे सद्लूत में अने असद्लूत तेमां एक निज अव्याश्रितवर्ति नेदझानी 3 परवस्तु विनाग व्हेंचण रूप ते सद्न्त व्यवहार नामे पेहेलो नेद कह्यो. हवे बीजो नेद ते परवस्तुनो विषयी एटले मन वचन अने काया ए त्रणे जोगे प्रवर्ते. पांच इंडित्रण बळ श्वासोश्वास अने आयुष ए दश अव्य प्राणने जीव समजे. पांच इंजिना त्रेविस विषय सेवे तेमां रागद्वेष नले तेने असलूत व्यवहार कहीए ए बे नेद व्यवहार नयना कह्या. ॥३॥ जपचरितानुपचरितथीजी॥ पेहेलो दोय प्रकार ॥ E सोपाधिक गुण गुणी देरे॥ जे अनिमित्त उपचाररे ॥ प्रा० ॥४॥ Meave mere seen reORAGEMBreme Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PROBLEM अर्थः-हवे सद्भूत व्यवहारना बे लेद कहे जे एक उपचरित सद्लूत अने बीजो अनुपचरित सदनूत. तेमां प्रथम नेद ते सोपाधिक गुण गुणीनो नेद देखामे. जेम जीवस्य मतिज्ञानं ए उपाधि तेहीज इहां उपचरित सदू- नूतनो प्रथम नेद ते कह्यो. निरुपाधिक गुण गुणीनेदे॥अनुपचरित सद्भूत॥ ३ 2 केवळझानादिक गुणारे ॥ आतमना अद्नूतरे॥ प्रा० ॥५॥ अर्थः-हवे बीजो नेद निरूपाधिक गुण गुणी दे जाणवो. यथा जीवस्य केवल ज्ञानं, केवळ दर्शनं एटले आत्मानो वस्तु गते अनंतो धर्म, ते धर्मने अदूनूत कह्यो. ते अलख, अगोचर, अगम, अनुपम, अव्याबाह, अविनाशी , अमल, विमल, ज्योतिवंत इत्यादि जे अनंतु अदूनूत स्वरूप तेमां कशोए उपचार उपाधि नथी तेने अनुपचरित सदनूतनो बीजो नेद कंह्यो ॥ ५॥ ६ असदलूत व्यवदारनाजी॥ एमज द दोय॥ 6 प्रथम असंश्लेषित योगेंजी ।। देवदत्त धन जोयरे॥ प्रा० ॥६॥ अर्थः-हवे असदूत व्यवहारना उपर कह्या तेज : रीते बे नेद कहे. एक उपचरित असदूनूत अने बीजो 5 अनुपचरित असलूत. तेमा प्रथम नेद ते असंश्लेषित ६ योगे कल्पित संबंधे होय. जेम देवदत्तनुं धन, शहां धन 6 YearBrowsroodio B GRY FRRIAGreAGBAGABADMRAGNE BARABARAGARLS Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ O COMRABARAHARASTRIERRORAGARGg श्री धर्म प्रवर्तन सार. १ ते देवदत्तने संबंध स्वस्वामित्व नावरूप कल्पित , ते , ४ माटे उपचार थयो वळी देवदत्त अने धन ते बेहु एक १ अव्य जाति नथी ते माटे असलूत एम नावना करवी. ४ ते उपचरित असदनूतनो पेहेलो नेद ते कह्यो ॥६॥ संश्लेषित योगें बीजारे ॥ जेम तमनुं देह ॥ नय उपनय नयचक्रमांरे। कह्या मुल नय एहरे॥ प्रा० ॥७॥ अर्थः-हवे बीजो नेद अनुपचरित असलूत व्यवहार ते संश्लेषित योगे कर्म संबंधे जाणवो. जेम आत्मानुं शरीर एटले आत्मानो अने शरीरनो संबंध कोई १ धन संबंधनी पेरे कल्पित नथी. वीपरित नावनाए निवर्ते ही नहीं. जाव जीव संबंधी. ते माटे ए अनुपचरित अने 6 निन्न विषय माटे असदूनूत जाणवो. ए रीते नय तथा के के उपनय ए बेहु नयचक्रमा मूल नय सहित कह्या.॥७॥6 ए व्यवहारनय अव्य गुण पर्यायना रासना अनुसारे २ करो. हवे आगमसारमा व्यवहार नयना नेद कह्या जे. ते कहे जे तेमां पेहेलो नेद शुद्ध व्यवहार, ते उपयोगी र पणे जाणीए. वळी ज्ञान, दर्शन, चारित्र गुण ते निश्चय नय एकव रूपडे पण उपदेश योगे जव्य जीवने समजा१ ववा जूदा जूदा नेद कह्या. वळी आत्माने शुद्ध करवो. ए आगला गुणगणानो डोमवो अने उपरना गुणगणानो ग्रE) हवो तेने शुद्ध व्यवहार कहीए. . हवे बीजो अशुद्ध व्यवहार ते जीवमा मिथ्यात्व अ.. Parameworrown GAR GARAGRORAGES ४०) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धर्म प्रवर्तन सार. झान रागद्वेष मोहादि लाग्या ३ तेथी अशुद्धपणुं , तेनेज अशुद्ध व्यवहार कहीए. हवेत्रीजो नेद शुन्न व्यवहार ते पुन्यनुं कारण नवांशुन्न कर्म लेवानो हेतु पुन्यना अर्थाने मोक्ष मार्गथी विमुख तप व्रत, नियम कष्ट आदें अव्य क्रियानो कर्त्ता विष, गरल, अन्यो अन्य ए त्रण अनुष्टाननी मुख्यता शहां प्रायें होय. & इत्या दिकने शुन्न व्यवहार कहीए. कर्वा डे के:में नथ्थ मग्गो मुख्खो, कव्वहारो पुन्न कारणो वुत्तो॥6 पढमो संवर रुवो, आसवहे उतओ बी ॥७॥ अर्थः-निश्चय नयनो मार्ग ज्ञानसत्तारूप ते मोक्षद् & कारण एटले मोक्ष दे. अने व्यवहार किया नय ते पु न्यनुं कारण कह्यो. पेहेलो निश्चय नय संवर अने निश्चय 6 संवर निश्चय नय ते एक ज ले जूदा नथी बीजो व्यवहार नय ते आश्रव नवां कर्म लेवानो हेतु . एटसे शुन्न पुन्य कर्मनो आश्रव थाय डे अने अशुन्न व्यवहारे अशुन्न कर्मनो आश्रव थाय ३ ॥७॥ हवे चोथो अशुन्न व्यवहार ते यतना रहित थकां पर प्राण हणवा ते प्राणातिपात ॥ १॥ असत्य वचनीक ते मृषावाद ॥२॥ माग्या विना पर वस्तु लेवी ते अदत्ता दान ॥३॥ स्त्री पुरुष संयोग वेद विषयन सेवईं ते मैथन | ॥४॥ परिग्रह रक्षण कर, तेमां मात थर्बु ते परिग्रह ॥५॥ क्रोध करवो ॥६॥ मान मद मोटा करवी ॥७॥ कपट केळवq ते माया ॥७॥ लोनमा लाग्या रहे, ॥॥६ (४१) AGreer GorakGRAGAGRIGranoos Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ marnam........ VRAUMARooVARE@res श्री धर्म प्रवर्तन सा२. १ अनुकुळनो स्नेह ते राग ॥१०॥ प्रतिकुळनो खेद ईर्ष्या ते द्वेष ॥ ११॥ लढवू वढवू युद्ध करवु ते कलह ॥१५॥ कोने तुं अतुं कलंकनुं देवं ते अन्याख्यान ॥१३॥ एकने । बीजानी चामी करवी ते पैशुन्य ॥ १४ ॥ शाता वेदनीयमां रीक राजीपो, अशाता वेदनीयमा कुराजीपो ते रति अरति | ॥ १५॥ पारकी निंदा करवी ते परपरिवाद ॥ १६॥ कपट साथे जूवु बोलते माया मृषावाद ॥१७॥ अजाणपणे वीपरित श्रद्धा ते मिथ्यात्वशल्य ॥१०॥ एम अढारे पापस्थानकने सेववां. वळी गालादिक पांच कर्म, दंतादिक पांच वाणिज्य, यंत्रादिक पांच सामान्य. ए पंदर कर्मादान . ते पण पापना दातार, कर्वा . वंदिता सूत्रेः इंगालि वणसामी, नाडी फोमो सुवज्जए कम्म 5 वाणिजं चेवय दत, लख्खरस केस विस विसयं ॥ है एवं खु जंत पिल्लण, कम्मं निलंगणं च दवदाणं ॥ १ सरदह तलाय सोसं, असइ पोसंच वजिजा ॥२३॥ ए पंदर कर्मादान बे गाथाथी जाणवां, वळी रात्रि नोजन करवू, अन्नक्ष्य अनंत काय, लक्षण करवं, तथा अन्यदर्शनीनो संस्तव-परिचय, प्रशंसा करवी वळी वासी, बोळो, द्विदळ, अणगळ पाणी, इत्यादिकनुं नकण आदि है Pd करवू ते सर्वने अशुन व्यवहार कह्यो. . हवे पांचमो उपचरित व्यवहार ते जेटलो संयोगिक है हे नावने वस्तु आत्माथी जूदी डे पण जीवें मिथ्यात्व अज्ञाGancer BBED RoREVIODEOr Bre@asia AMRAPRADAMGAR (४२) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ..................... १ नपणे आपणी करी जाणी डे ते परवस्तुनो पोतापणे उपहु चार तेज उपचरित व्यवहार कह्यो. हवे हो अनुपचरित व्यवहार ते शरीरादि पांच इंजि मन वचन ते परवस्तु यद्यपि जीवथी जूदी ले तोपण परिणामिक नावे सोळीपणुं एका मळी रडं जे एम अपेक्षा सहित तेने आपणी करी जाणे, तेने अनुपचरित व्यवहार कह्यो. एव्यवहार नयनाउ नेद आगमसारना अनुसारे कह्या इत्यादि व्यवहारनयनी उळखाण जाणपणुं करवं. प्रवर्तवू, तेथी धर्म पामीए. तेनो 6 परमार्थ नेद शान जोग बे, तेनी हवे विविक्षा करे . व्हेंचणरूप व्यवहारे जीवऽव्य, पुद्गलपव्य, जीव गुण, पुद्गलगुण, जीवपर्याय, पुद्गलपर्याय, एम नेद व्हेंची जूदा जूदा करे तेथी वस्तु उळखाय, स्वपर समजाय त्यारे धर्म पोताना स्वरूपमां समजे. पनी तेमा प्रवर्ते ते प्रवर्तन व्यवहार. तेथी मिथ्यात्व टळे तेनी साथे अशुद्ध व्यवहारने डोके तीहां शुद्ध व्यवहार आवे वळी विशुद्ध झान आवे ते वस्तुनी शुद्ध परिणति देखामे. ते वस्तुगत शुद्ध व्यवहार पली वस्तु धर्म शुद्ध करवापणे साधन पामे. ते साधन शुद्ध व्यवहार तेमा पूर्वकृत कर्णनी उदयिकता श्रावे ते उपचरित व्यवहार तेमां व्यापकणुं न करे अने रूपातित ध्याननोध्याता थाय ते अनुपचरित व्यवहार एम व्यवहारनी शैलिये रूपातित, योगातित जे सिद्ध ते रूपें 2) पोते थाय, ते व्यवहार समकित धर्म प्रवर्तनमा अने खोहे किक साधन तथा कृपरावचनीक साधन तथा लौकिक प्रRig B rowners SardaareGrarGror Grand More Gorrore (४३) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ areGRAMMARGADGAGARGree WRG श्री धर्म प्रवर्तन सा२. र वृत्तिए मिथ्यात्व प्रवर्त्तनमां . वळी अशुद्ध व्यवहारना नेद सद्भूत, असनूत, संश्लेषित असंश्लेषित पूर्वे कह्या १ ते पण मिथ्यात्व प्रवर्तनमा डे ए नेद नय चक्रसारना अ६ नुसारे कह्या तेनो ए परमार्थ समजवो. हवेऽव्यगुण पर्या9 यना रासना अनुसारे नेद कह्या. तेने उसाववाने माटे , है पुनरपि नावार्थ कहे . एक निज चेतन धर्म प्रवर्तन परमव्य संयोगादि अपेक्षा रहितपणे ते सद्भूत व्यवहार केवळझानी आत्मा 6 ते शुद्ध सद्भूत मतिज्ञानादि आत्मा ते अशुद्ध सद्भूत, , गुणपर्याय खन्नाव तन्मयी एक अव्यानुगत नेद बोलीए ते सद्भूतनो नेद अर्थ डे, परद्रव्यनी परिणति निज द्रव्यमां उनळे तिहां असद्लूत व्यवहार जाणीए ते असद्भूत व्य वहारनो नव प्रकारे उपचार जीव पुद्गल योगें थाय. द्रव्ये द्रव्योपचार, ॥१॥ गुणगुणोपचार, ॥२॥ पर्यायेपर्यायोपचार ॥३॥ द्रव्येगुणोपचार ॥ ४ ॥ द्रव्ये पर्यायोपचार ॥५॥ गुणेऽव्योपचार ॥ ६ ॥ पर्यायेंऽव्योपचार ॥ ७॥ गुणपर्यायोपचार ॥ ॥ पर्यायेगुणोपचार ॥ ए ॥ एम जीवनोपुद्गलमा अने पुद्गलनो जीवमां जेम घटे तेम एकनो उपचार करीए तेथी समजवामां आवे के उपचारे पोतानी वस्तु मानीए बीए पण पोतानी नथी. परवस्तु परपणे . अने निजवस्तु निजपणे जे एम उपचरित व्यवहारनुं ज्ञान १ यतां स्वपर निन्नता थाय. चेतन अचेतन मिश्रित लेते हैं जूदो देखाय. जमसत्ता, चेतनसत्ता जूदी जूदी समजाय । (४४) RAIPORAGARAGRR GROGGAGAR GARGAR GAR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GOOG SROGRange श्री धर्म प्रवर्तन सार. र त्यां मिथ्यात्वनो नाश थाय. अने समकितनी प्राप्ति थाय. अनुक्रमे मुक्ति पण थाय वळी विनाग पर्याय जे विनाव पर्याय समळता योगे जीवादि अव्यमां बे. ते उपचारे मानीए पण वस्तुए नहीं. वळी मति आदि शान थास्मानां कहेवां ते उपचारे कहीए वस्तुगते केवळज्ञानी डे वळी ज्ञाननो स्वपर विषय ते पण उपचार . वस्तु& गते निजविषयी स्वधनुन्नवी . अष्टांतः-जेम अरीसामां में प्रतिबिंब अन्यनो पमे डे पण कां अरीसो अन्यमा पेसतो नथी अरीसामां अन्य प्रतिबिंबित थयुं ते उपचार सरखंडे वस्तुयें नथी तेने उपचार कहीए वळी पुत्रादि वस्तु डे ते उपचारे पोतानीमानीए वस्त्रादि वस्तु ते उपचारे पोतानीमानीए गढ, देश, राज्यऋद्धि ते उपचारे पोतानां कहीए. र सर्वे संयोगिक नावे मत्युं . ते वियोगे नाश थशे श्त्यादि वस्तु घणी . तेनो जेटलो संबंध ते उपचार एम आत्माने उळखीये त्यारे समजवामां आवे माटे हे नव्यजीवो! तमे श्रात्माने उळखो तो तमाएं चेतनपणुं तमारे खप लागे. है अचेतनमां चेतनपणानी बुद्धि , ते टळी जाय तद्रूप १ जश पामो. वळी आगमनी मांहे मूळ निश्चय अने व्यवहार बे नय प्ररूप्या . तेमां निश्चय नयना बे प्रकार कह्या , जीवमां केवळझानादि अनंता गुण पर्यायनी अन्नेदता ते शुद्ध निश्चयनय. वळी मतिज्ञानादिकने आत्मा कहेवो ते अशुद्ध निश्चय नय एबे नेद निश्चयना कह्या. हवे व्यवहार नयना Presidenxxssure Sorrore GGrorangaroo RSS Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ बे नेद कहे . एक सद्भूत अने बीजो असन्त तेमा १ पर संग रहित उपयोगे तो निजपव्यगत विषयी नाव ते सनूत, परजव्य संयोगे पर विषयता ते असदूनूत व्यवहार, तेमां सदनूतना बे नेद एक उपचरित अने बीजो अनुपचरित. तेमां पहेलो नेद ते " जीवस्यमतिझानं" एटले उपाधि योग जीवगुण कहीए ते उपचरित सदूनूत8 नो पेहेलो नेद. हवे बीजो नेद ते “जीवस्य केवलज्ञानं" है केवळ दर्शनं एटले जेमा उपाधि नथी ते गुण आत्मानो एम कहे, ते अनुपचरित सदनूत. ए बे नेद सदनूहै तना कह्या. तेज रीते असदनूतना बे नेद कहे डे. एक उपचरित असलूत, बीजो अनुपचरित असद्नूत. तेमां पेहेलो नेद ते असंश्लेषित योगे कल्पित ई संबंधे होय एटले धनादि वस्तु पोतानी कहेवी. ते उप चरित अने निन्न विषय माटे असनूत. हवे बीजो नेद टू ते संश्लेषित योगे कहीए. जेम आत्मानुं शरीर ते कां आयुष्य बतां जोमयुं लुटे नहीं माटे अनुपचरित, अने निन्न विषय माटे असद्गृत ए बीजोत्नेद कह्यो. एम दृष्टि पसारीने जुए तो जीवस्वरुप हाथमां आवे पण रूपी नथी ते देखामीए. ज्यां ज्ञाननी मुख्यता डे त्यां व्यवहारनी गुणता ज. एटले उपाधिना टाळनार विशुद्धिनो कर्त्ता ज्ञान योग . माटे जे ज्ञानी पुरुषो , तेतो एक ज्ञान मांज निश्चय अने व्यवहार बेट नय समजे जे. एटले नेद ले ज्ञान डे ते शुद्ध व्यवहार ने अने अन्नेद ज्ञान डे ते शुद्ध निश्चPregnangareerBrosar PROGGERRAGOLGIRGreG.COMore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ om ORasraangrenorrGrooring c RANGEOGRAMMARCress श्री धर्म प्रवर्तन सार, ..................nommm य.अने ज्ञान रहित व्यवहार कहीए ते मिथ्यात्वधर्म प्रवर्तनमा डे ए व्यवहार नय कह्यो तेमां नेदज्ञान योग उतां १ समकित धर्म प्रवर्तन कहीए अने अन्नेद झान योगे निश्चय धर्म प्रवर्तन कहीए. तेनी मुक्ति कहीए. अन्नेद ज्ञान ते 2) कार्य रूप ले अने नेद ज्ञान देते कारणरूप ले.नेदज्ञानना अन्नावे जे साधन कर, तेने अकारण कहीए.. हवे कल्प व्यवहार अने ज्ञान व्यवहार ए बे नंद कहेडे एबे व्यवहार ग्राही तेज साधु एटले कल्प डे ते व्यवहारन यनो अपेक्षी अने ज्ञान ले ते निश्चयनयनो अपेक्षी जे ए बे नेद ते साधुना याचार कहीए. तेमां कल्प डे ते बाह्य आचारी ने अने ज्ञान ले ते अंतर आचारी ले तेमां कारण योगे कल्पने उखवे तो साधुपणुं जाय नहीं. अने झानने मुखवे ते वखते साधुपणुं रहे नहीं. नाश पामे.वळी कल्प डे ते याग प्रवृत्तिनो ग्राहक बे. अने ज्ञान ते उपयोग प्रवृत्तिनो ग्राहक के. वळी कल्प ले ते निमित्तकारणमा अने ज्ञान ने ते उपादानकारणमां . कल्पनी आदि नैगम नये . अने झाननी आदि शब्द नये ए बेहु नेदनो आराधक तेनेज साधु कहीए. तेमां प्रथम कट्प व्यवहारनी गवेषणा कल्पसूत्रथी दश नेदे कहे . तेमां पेहेलो अचेलक कल्प ते पेहेला अने बेला तीर्थकरना साधुने धवळ वस्त्र डे, नहीं रंगेबुं, नहीं धोएबुं जेवू सेवके आपेढुं होय तेवू तेमां सामा त्रण हाथ लांबो 5 चोळपट्टो ढींचण प्रमाणे नीचो तेना उपर कंदोरो वळी Ram Rang Br r overed SAGAROGRGaragon Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धर्म प्रवर्तन सा२. FFAGAR BAR GORAR GARBre Garg १ सामा चार हाथ लांबो कपमो, तेना उपर मावे खन्ने कांबळी ६ अने मावा हाथे दामो तथा माबा हाथे कोळी वळी व ६ त्रीश बांगळनो उधो,तेमां चोवीस आंगळनी दांमी, दश ५ आंगळनी दशी अने अष्टमंगळ आळेखेलो बनातनो पाटो, ते थकी गुंथेली दशी ते प्रमाणे लुगमांनो ककमो तेना उपर कांबळी तेना उपर दोरो त्रण आंटे बांधवो एवो , बत्रीस आंगळनो उघो वळी पोतानी एक वेंत अने चार आंगळनी चोखूणे सरखी मुहपत्ति इत्यादि मानोपेत लिंग , साधुनुं कडं तेने अचेलक कहीए. वळी बावीस तीर्थकरना साधु साध्वी , ते तो मोटा मूलनां पंचरंगनां मानोपेत 6 नहीं एवां वस्त्र राखे माटे तेमने सचेलक कहीए. ए अचेसक कल्प कह्यो. हवे बीजो उद्देशिक कल्प ते बावीस तीर्थकरना व. खतमां कोई साधु साधवी निमित्ते कोश् गृहस्थे नात पाणी, 0 औषध, नैषज्य, वस्त्रपात्रादि नीपजाव्यां होय ते जेना निमित्ते नीपजाव्यां बे, ते साधु साध्वीने लेवां कल्पे नहीं ४ पण बीजा साधु साध्वीने कल्पे, तेमने आधाकर्मी दोष न १ लागे, अने पेहेला बेला तीर्थे एक साधु साध्वी निमित्तेजे ४ श्राधाकर्मी आहारादि नीपजाव्युं ते साधु साध्वी समु. १ दायने लेवो कल्पे नहीं ए उद्देशिक कप कह्यो. हवे त्रीजो सज्यातर पिंमनो कल्प ते-जे उपाश्र) यादि मकानमां साधु साध्वी उतरे, तेमां रहे तेनो जे मा लिक होय तेने सज्जयातरी कहीए तेना घरनो वस्त्र पात्र HASYAMANGaisewww FARMERSODERSAR GOOGGGrdGRAGRR GB Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - . - -' - - "-:. - -'- . . .. .. -'- - "-- ... RATNAGORIERRORComm श्री धर्म प्रवर्तन सार. आहारादि चोवीसे तीर्थकरना साधु साध्वीने लेवा कल्पे नहीं ए सज्ळयातरीक कटप कह्यो. हवे चोथो राज्यपिंग कल्प ते राजाना घरनो आहारादि लेवो बावीश तीर्थकरना साधु साध्वीने कटपे.प्रथमना E, अने देखा तीर्थे लेवो न कल्पे ए राजपिंग कल्प कह्यो. हवे & पांचमो कृतिकर्म कल्प ते वांदवू त्यां श्री जैन शासनने विषे & पुरुष प्रधान धर्म प्रवर्ते जे ते कारणे साध्वी सो वर्षनी दी है क्षित होय तोपण एक दिवसना दिक्षित साधुने वांदे ए पांचमो कल्प कह्यो. हवे बठ्ठो व्रत कल्प ते बावीस तीर्थकरना साधु साध्वी दीक्षा अवसरे चार महाव्रत उचरे एटले स्त्रीने परिग्रहमां गणीए त्यारे चोथु पांच, ए बेर्नु एकज थाय ते अपेक्षाए चार महाव्रतधारी कह्या अने पेहेला लेखा तीर्थे स्त्री जूदी अने परिग्रह जूदो एम चोथा ब्रतमां स्त्रीनो त्याग अने पांचमा व्रतमां परिग्रहनो त्याग ए अपेक्षाए पांच महाव्रत उचरे. वळी पेहेला बेला तीर्थे तुं. रात्रीनो. जनव्रत मूळगुणमां गणाय अने बावीश तीर्थकरना साधु ह साध्वीने उत्तरगुणमां गणाय डे ए हो कल्प करो. 9. हवे सातमो ज्येष्ट कल्प ते पेहेला हा तीर्थे वमी दिदाना दिवसथी नाना मोटापणुं गणायडे. अने बावीस तीर्थकरना साधु साध्वीने दिवाना दिवसथी नाना मोटा पणुं गणाय डे तेमां पितापुत्र राजा प्रधान मा दीकरी & मोटाना नानान्ना इत्यादि साथे दिक्षा लेवे तो लोक रीते पिता मोटा अने पुत्र नाना, राजा मोटा अने प्रधान १ FRAGMRAGNSAHASRAGMSAGREASSASSAMSGMOS Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री घर्भ प्रपतन सार. १ नाना, माता मोटां अने दीकरी नानां एम गणाय ने एं सातमो कल्प कह्यो. हवे आठमो प्रतिक्रमण कटप ते बावीस तीर्थकरना साधु साध्वी जे अवसरे पोताने पाप लाग्युं अतिचार लाग्या छु । जाणे तेज वखते देवसि अने राइ ए बे प्रतिक्रमण करे, नहीं तो न करे, अने पेहेला बेला तीर्थे साधु साध्वी निरंतर प्रनाते राश् अने संध्याए देवसी अर्द्धमासे पाक्षिक. चारमासे चउमासि अने बार मासे संवत्सरि एम पांच ६ 5 प्रतिक्रमण करे ए आठमो कप कह्यो. हवे नवमो मास कल्प ते वावीस तीर्थकरना साधु साध्वीने मास मास प्रत्ये विहार करवानो नियम नथी. ज्यां लान देखे त्यां घणा काळ पर्यंत एक क्षेत्रे रहे अने 6 पेहेला बेला तीर्थना साधु साध्वी तो वर्षाकाले चार मास इरहे बाकी एक मास रहे एटले आठ मासना आठ अने । चोमासानो एक एम एक संवत्सरमा नव कल्पी विहार करे ए नवमो कल्प कह्यो. हवे दशमो पर्दूषण कल्प ते संवत्सरी संबंधीना पांच १ वानां अवश्य करवां ते कहे . संवत्सरी प्रतिक्रमण कर, ॥१॥ केशनो लोच करवो ॥२॥ अमनो तप करवो ॥३॥ ६) तथा ज्यां रह्या होय ते नगरमां चैत्य प्रवामी करवी ॥४॥ सर्व संघमां मांहो मांहे खमत खामणं करवां ॥५॥ इत्यादि नाव जाणवो ए दशमो कल्प कह्यो. हवे ज्ञान व्यवहार कहे जे ज्ञान कहेतां आत्मज्ञान . Panorries REMORSMOREMEMASOORoces Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RSARGIRGAMASSAGARAMMAR श्री धर्म प्रवर्तन सा२, योगे साधुपद ले. कर्वा - उत्तराध्ययन सूत्रे. नाणेणय मुणि ओदि न मुणि वन्न वासेण ॥ अर्थः-जे ज्ञानी तेज मुनि तेमने साधु कहीए पण झानना अन्नावे वनवासमा रहेतां अने क्रिया करतां पण ए मुनिपद नथी. एम कडं. वळी कडं बे, आनंदघनजी कृत चोवीसीमां बारमा वासुपुज्य स्वामीना स्तवनमां. आत्मज्ञानी श्रमण कदावे, बीजा तो ऽव्य लिंगीरे॥ जेणे आत्माने जाएयो श्रोळख्यो तेज ज्ञानी अने तेज साधु ते विना जे बीजा तेमने व्यलिंगी कहेतां वेष ६ धारी कहीए. पण साधु न कहीए साधु तो ए डे के जेणे श्रात्माने कायाथी जूदो जाएयो ने अनुन्नव्यो जम सत्ता चेतन सत्ता जूदी जूदी जाणी ते . अहीं कोइ कहेशे के तमे श्रात्माने जाणे तेने शानी कहो लो तो ? व्याकरण प्रमुख नणेला सूत्र सिद्धांत वांचे अर्थ करे श्रोताने समजावे ते ज्ञानी नहीं ? तेनो उत्तर श्री गणांग सूत्रे पेहेले गणे कडं बे, एगजाणे सव्वं जाणशएग न जाणे सव्वं न ६ वळी आचारांग सूत्रे६ एगंजाणइसे सव्वं जाण.जे सव्वंजाणश्सेएगंजाण, अर्थः-एक पोताना श्रात्माने जेणे जाएयो बे. श्रोळ5 ख्यो २ अनुनवे करी दृष्टि प्रत्यक्ष कर्यो बे. ते पुरुषने सहे मस्त जाण कह्यो. हवे कंश पण जाणवानुं श्रधुरं नथी. ए. BataaoweXXIROMBOS FROMRAGMRAGRAGMBAGARAGRAGMEAGRAMSAGARGES Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PROGRAGRAPoornama श्री धर्म प्रवर्तन सा२. १ पहेला पदनो अर्थ-हवे बीजा पदनो अर्थ कहे जे जीवना टू पांचसें ने सठ नेद, अजीवना पांचसेने साउनेद इत्यादि जाणे ते गणितानुयोग, ज्ञाता सूत्र आदि धर्मकथानुयोग, ६ व्यवहार चारित्र क्रिया ते चरणकरणानुयोग, धर्मास्ति कायादि पांच अजीव ते प्रव्यानुयोग द्वीप समुज नरक £ देवलोक क्षेत्र समास इत्यादि अनेक वातो जाणे हे पंमित # नाम धरावे डे पण सिद्धनो साधर्मी पोतीको आत्मा निरं जन निराकार जे तेने कायाथी जूदो अनुन्नव्यो नथी त्यां ६ 8 सुधी “ सत्वंनजाण" के कां जाणतो नथी एम का से एटले अज्ञानी कही बोलाव्यो ए गणांगजीना पाउनो अर्थ कह्यो. हवे आचारांगजीना पाउनो अर्थ कहे जे जे पुरुषे एक पोताना आत्माने । जाएयो ने तेणे समस्त जाएयु ए पेहेला पदनो अर्थ कह्यो । 3 हवे जे पुरुषे आत्मानुं मूळ स्वरुप जाएयु , झान दर्शन चारित्र तप वीर्य उपयोग इत्यादि अनंतागुण, अरूपी, अमूर्ति, अटळ अवगाहना, अव्याबाध इत्यादि अनंता पर्याय. अस्ति नास्ति नित्यानित्य, एक अनेक, सत्यअसत्य, व्यक्त अव्यक्त नेद अनेद जव्य अन्नव्य इत्यादि अनंता स्वन्नाव तेस्याद्वादपदमयी अनुन्नव्यो आत्मा जेणे वळी ह, निज द्रव्यार्थीक पर्यायार्थीकनुं ज्ञान ले जेने वळी न्याये करी, है निक्षेपे करी, प्रमाणे करी सप्तनंगी, षट्कारक, सामान्य & विशेष श्यादि पोताना श्रात्मानुं विस्तार ज्ञान ले जेने के तेने सव्वं जाण के० सर्व जाण कहीए वली तेनेज एक Mor (५२) GIRPOR@GOOGe HARGornernarendrenorrore Gree Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धर्म प्रवर्तन सार. Gre GrGANGARG REMERGreASINESDAR GORAGRAGAT १ पोताना आत्मानो जाण, पण कहीए एम सूत्रमा परमा- १ त्मानुं तथा गणधर महाराजानुं वचन ले. तेने विचारी जुओ. एटले ज्ञानीनी ओळखाण थशे. ते ज्ञानीने साधु केहेवा. वळी कडं के अध्यात्मसार ग्रंथे पंदरमा योगाधिकारे,पाप करण मात्रानि मौनं विचिकित्स्या॥ अनन्य परमात्मास्यातूझान योगी भवेन्मुनिः॥३६॥ __अर्थः-हिंसा, मृषा, चोरी, मैथुन, परिग्रह, रात्रिनोजन ए बए पापरूप जे. वळी आश्रव बंधनुं कारण डे एम जाणी विरति करीए एटले तजीए. पण पोताना आत्माने जाएयो नथी त्यां सुधी “न मौनं विचिकित्स्या" कहेतां ए मुनि नथी. मुनिपद तो एथी जुदंडे, “ अनन्य परमात्मास्यात्" कहेतां कथंचित् एटले कर्मोपाधिनी E अपेक्षा न करीए तो पोतीको आत्मा तेज परमात्मा . है ज्ञानयोगी के तेने जे जाणे अनुन्नवे ते ज्ञानी ज्ञानयोगी के स्वस्वरूप खेल खेले स्वस्वरूपमा उपयोगे रमे तेने नावे- है न्मुनि केहेतां मुनि कहीए. वळी कडं डे समाधि शतके,उदो केवल आतम बोधदै। परमारथ शिव पंथ॥ , तामें जिनकुं मगनता। सोनाव निगरंथ अर्थः-केवळ कहेतां एक आत्म बोध जे आत्मज्ञान ने तेज परमार्थ कहेतां उत्कृष्ट अर्थ जे निज स्वरूप प्रत्यक्ष हे अनुन्नवज्ञान ते शिव कहेतां ज्यां उपजव नथी, विघ्नकर्ता है GAGAR GARAGNS (५३) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RMER શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. नथी एवो मुक्तिनो मार्ग कहीए. तामें कहेतां ते मुक्तिना मार्गमां जिनकुं के० जे पुरुषने मग्नता कहेतां आनंदता बे, सोइ के० तेमने जाव निग्रंथ कहेतां नाव साधु कहीए. एम घणा शास्त्रोनो नाव जोतां आत्मज्ञानी तेज साधु बे. इहां मति बोल्यो ज्यां कल्प व्यवहार वे ते साधु नहीं तेनो उत्तर - कंबे. जगवति सूत्रे प्रथम शतके बीजे उ० संजय नविय दव्व देवाण जहन्नेां जवणवासीसुं नक्कोसेणं नवरिम गेविज्जेसुं ॥ अर्थः- जे पुरुष समकित पाम्या नथी ने व्यवहार चारित्र ग्रहण कर्तुं छे. तेमने असंयति कह्या बे, तेमनी गति जघन्यथी भुवनपति ने उत्कृष्टी नवमा ग्रैवेयके कही बे. पण संयति कह्या नथी. माटे आत्मज्ञानी बे. तेमनेज संयति कही. अहीं कोई कद्देशे के एम जोतां तो कल्प व्यवहार वगर खपनो ठय. तेनो उत्तर - हे जाइ ! विण खपनो होत तो शुं करवा प्ररुपत ? पण जे पुरुषोये आत्मा ने जाएयो ओळखयो नथी ते मिथ्यादृष्टि वे, समकित पाम्या नथी ने व्यवहार क्रिया करे बे. तेमां धर्म माने ठे. वळी परंपराए मुक्ति माने बे. पण धर्मतो आत्मामा रह्यो ढे, ते आत्माने ओळख्यां पामीये. एम जाणता नथी. ते पुरुषोने कल्प व्यवहारथी प्रायें आत्महित नयी पण जे ज्ञानी पुरुषो बे. तेमने तो निमित्त कारणरुप कल्प व्यवहार खपनो डे. ए ज्ञान व्यवहार को. शहां कोइ कदेशे जे आत्मज्ञानतो निश्चयमां ने तेने व्यवहार 3 ( ५४ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. १ केम कहो हो ? तेनो उत्तर हे नाश् आत्मज्ञान आव्यां ए समकित पामीए चारित्र पामीए उपयोगे अनुन्नव पामीए. १ संवर निर्जरा पामीए, अप्रमत्तादि गुणगणे चमीए; श्रेणी मांनीए रागद्वेष मोह रहित थश्ए. केवळज्ञान केवळदर्शन, " आदें क्षायकलब्धि पामी योगातित जे सिद्ध तद्रूप थश्ए इत्यादि साधनदशा आत्मज्ञानमां त्यां सुधी व्य. ॐ वहार कहीए. साधननी पूर्णताए निश्चय कहीए. ए ज्ञान हे व्यवहार कह्यो. अहींआं व्यवहारनो अधिकार संपूर्ण थयो. हवे नवानिनंदी जीवनां लक्षण कहे बे. ___ कह्यो ने श्री हरिनप्रसूरी पूज्ये ॥श्लोकः ॥ दुजे सोलरतिर्दीनो, ॥ मत्सरी जयवान शवः॥ अज्ञो नवानिनंदीच,निष्फलाग्न साधक: ॥१॥ अर्थः-प्रथम दुखो शब्द ते सामान्य वाची डे, तेना अर्थना घणा नेद थाय , ते कारणे यहां अमे कुलो शब्दना चार नेद करीए बीए; क्षुद्रो अंगनिर (१) कुद्रो कृपण, (२) कुद्रो तुच्छ, (३) कुद्रोचर, (४) लोन, कहेतां लोन, (५) रति कहेतां विषय ते रति, (६) दीनो कहेतां दीन, (७) मत्सरी कहेतां मत्सर, (७) नयवान कहेतांनय: ब्रांत, (ए) शठ कहेतां कपट, (१०) अझो कहेतां अज्ञानी मिथ्यात्वी, (११) ए अगीयार लक्षणे सहित होय तेने हूँ नवानिनंदी कहीए; हवे ए बोलो कह्या तेनुं विवेचन करे JanwrosarowiGORMAN ordGBROSPER SHORORISMore oneoneoneoneone. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धर्म प्रवर्तन सा२. Prever बे, प्रथम लक्षण, अगंलिर, एटले अंतर्गत गुणना अन्नावे पारकां छिद्र खोळतो फरे. कदाच सामामां किंचित् दूषण होय तो तेने मोटुं करीने देखामे, वळी दूषण न होय तो द्वेष बुद्धिए अबता दूषणनो आरोप मुके, वळी पोताना , अवगुणने ढांके, अने पोतामां नही गुण बतां गुणीपणानो , मरोम राखे, गर्व करे, वमेरानो विनय न साचवे, अविनय करे, तेने नवानिनंदी कहीए. (१) हवे वीजुं लक्षण, कृपण, एटले बती वस्तुए पोते वापरे नही, नोगवे नही, दीन उःखीयांने अनूकंपा बुदिए अने सुपात्र जे अतिथी मुनि तेमने नक्तिए करीने , दान आपे नही, एक धननोज संचय मूर्तीत थको करे.. नूमीमां दाटे, ए जीवो अंते मरीने नवांतरे, एज धननी मूर्जाए, सर्पनो, वा नोळीयानो, उंदरनो, कुतरानो, गीरोअळीनो इत्यादिनो नव पामी पूर्व नवनी संज्ञाए ए धन जीएं हां दाटेधुं गुप्त होय, तेना उपर फर्या करे. तीहांने तीहांज र रहे, एटले जे कृपण होय ते बहुधा मूर्तीत होय; तेने नवांतरे एम तिर्यंचनी गति प्राप्त थाय, तेनुं कारण कृप१ णता तेने नवानिनंदी कहीए. (२) हवे त्रीजुं लक्षण है तुच्छ एटले अल्पमती बुद्धि जे जेनी एवो, सारांशनो अ१ ग्राहक, देशविरति अथवा, सर्व विरति थश्ने धर्मकरण। करे, तेनो विवरो एम के, आनव आश्रीने मिष्ट नोजनना अर्थे वस्त्र पात्रादि अर्थे पुजावा मनावा बहुमान पा। मवा अर्थे यश कीर्ति अर्थे, वली रोग व्याधि प्रगट थयो ७ saraswerGG Samragrajornergreen Gardarning GORGAGROBLEDGeorea Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाली सोचादि कष्ट सहादि पद अने ते पदाजिनित जे Are Greame GARGree Gorary શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. 2 तेनी शांन्ति थशे, एवी बुद्धिए जे तप, जप, क्रिया करे. वली लोचादि कष्ट सहे तेनुं नाम विषयानुष्टान बे,अने परनय श्रीने देवेंड, नरेंद्रादि पद अने ते पदनी ऐश्वर्यादिक, पुद्गलिक, ऋद्धिनी ठकुरा तेनुं इंजिनोइंजिनित जे विषय सुख पुन्यना उदयथी पामीए, तेनी आसंसाए जे तप, हे व्रत कष्ट क्रिया करे , फुःख सहे ते गरलानुष्टान डे अने ७ प्रणिध्यानादिकने अन्नावे साध्य शन्य दृष्टिए सापेक्षता विना देखादेखीए शून्य मने समूचिमनीपरे क्रिया करे, ते श्रन्योन्यानुष्टान . ए करणी आश्रीने कद्यु. हवे उपदेश थाश्रीने कहे . एटले प्ररुपणा करे के मुनीए अणसण आदे तप कर्यो, तेथी देवलोकादि ऋद्धि पाम्या, वळी अमुक श्रावके पमिमा प्रमुख वही तेथी पाम्या, माटे तमे पण करशो तो पामशो, एम लालच थापी आशा वळगामी,. अंध परंपराने धंधे उपर कह्या त्रण अनुष्टान ते रीते प्रवृत्ति टू करावे पण पहेली ते विरति के पहेलुं ते बोधिबीज ? एटले. १ तत्वना बोधनी प्राप्तिनो हेतु जे उपदेश ते वस्तुगते वस्तुपणानी प्ररुपणा ते न करे, वळी देवगुरुने धर्म ए त्रण तत्वनी यथास्थित उलखाण करावी, व्यवहार समकितनी ६ श्रद्धा पूर्वक प्राप्ति पण न करावे अने मिथ्यात्वी थका विरतिपणानी परंपरामां घाले. वली एम पण उपदेश न E करे के जे पर आशंसा पूषण टालीने निराशी नावे धर्म . करशे, तेज समकितादि गुण प्रगट करवानो, वळी पून्या मुंबंधी पुन्य उपार्जवानो लान पामशे. पूर्वे पण जेणे थाPowerPrat Hence wordGranardar JAN Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तन ॥२. RRHEAGARAGRANEPRASAGadkareg शंसा पूष्णे वर्जीत थश्ने निराशी नावे धर्म कों ने ते पाम्या बे. श्राशंसाए करतां तो पुन्य मागतां पाप आवे अने देवलोक मागतां नर्क तिर्यंचनी गति मले, वली धर्मध्यान करतां आर्तध्यान E, थाय. वळी महोपाध्याय यशोविजयजीजसविलासमां कहे | डे के जे क्रिया करे ने अने तेना फळनी ममता धरे , तेना गळामां फांसी आइ कहेतां आवी पमी, ते वचननो विचार, “जैन कहो क्युं होवे, " ए पदथी करी लेजो अने पुद्गलीक विनाशिक सुखनी अाशाने बेदी, ज्ञानघटमां लावी निजपर निन्नता करवी, निजगुण रागी थ; वळी उपर त्रण अनुष्टान गवेख्यां तेने तजवां, अने तद्हेतु अने अमृत ए बे अनुष्टाननो आदर करवो, एज उचित जे. एम दीर्धष्टिए सारांशने न चिंतवे, अने तुच्छ अष्टिए संसारीक सुखने इच्छतो वर्ते तेने जवानिनंदी कहीए. (३) हवे चोयुं लक्षण क्रूर एटले महा पुष्ट नयंकर, माग अध्यवसायवाळो, अती संक्लिष्ट, निध्वंस परिणामी ६ आर्त, रौष, ध्याननो ध्याता, रुमा जूंमा संजोगीक नावे संबंध मिख्या तेमां रुमा मनोज्ञ ( मनने गमता ) एवा पदार्थनोसदासंजोगचितव,वळी तुंमाअमनोज्ञ(अणगमता) पदाथनो विजोग चिंतवे, मनोज्ञ संयोग संबंधमां तलालीन थर आसक्त थको वर्ते अने ते मनोज्ञ संबंधनी हाणी थवाथी, आक्रंद करे, उंचे स्वरे रुदन करे, घणो उद्रेग , पामे, नाम देने रुवे, बाती कुटे, माथाना केस तोम, वळी GrnGrenoranGRAGRIGre (५८) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DEMOREVIEDEVOSMODEODE श्री धर्म प्रवर्तन सार. आवता कालनी चिंता एटले हवे हुं हुं करीश, मारो निर्वाह केम चालशे, हुं शुं खाश्श, निर्धन थक्ष गयो, दारिख अवस्था आवी, अथवा हुँ निराश थर गयो, मारे कोश्नो आधार नथी, मारुं रखोपूं कोण करशे, मने शाता अशातानी खबर कोण पुबशे, अशातानी वखते रोगादि कारणे, ६ मारी पासे, बेशीने पाणी कोण पाशे, खावा कोण श्रापशे, । मारी आसनावासना कोण करशे, अथवा था कुमाणसनो समागम मारे डे ते क्यारे टळशे, मारो ने एनो बुटकबारो क्यारे थशे, वळी आ मारी रोग व्याधि अथवा दारिज अवस्था क्यारे टळशे, इत्यादि विचार एकत्व परिणामरूप करवो ते आर्तध्यान डे, वळी संयतिपदे नियाj करवू ते पण आर्तध्यानमां . हवे रोऽध्यान ते जीवनी हिंसा एटले जीवना द्रव्यत्नाव, प्राणनो घात करे, विटंबना करे अने खुशीपणुं माने, राजी थाय, वली हिंसक जीवोनां वखाण करे, तेना बळनी प्रशंसा, अनुमोदना करे, वळी जूतुं बोले, कपट केळवे अने मनमा खुशी थाय, के मारा है जूठपणानी कोश्ने खबर पमती नथी, हुं केवो हुंशीयार बुं, १ वळी एकनी चामी बीजाने करे, खोटा वादविवाद, गमा ६ करतो करावतो फरे, पारकी निंदा करे, चोरी करे, उगा करे गांठ वाळेली वस्तु बगेमी ले अने मनमा खुशी थाय, ६ वळी चिंतवे के ढुं केवो जोरावर बुं ते पारको माल खालं बुं, मुज सरखो कोण बे, वली नव प्रकारनो परिग्रह धन, . हे क्षेत्र खळु, घर, दुकान, पुत्र, कलत्र, जानवर, गाय, नेंस, REASANSARAGRAPARAGre Gre GS GARAGricksore -yi Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीधर्म प्रवर्तन ॥२. શ્રી ધર્મ પર .............w ww.t SRURAM बळद, हाथी, घोमा श्रादे चौपगां इत्यादि परिग्रह वधा रवानी घणी इच्छा राखे, वळी धन्यादि वस्तु नूमीने विषे ३ १ दाटे श्रने विचारे के कोइए दी तो नही होय. वक्षी लेणदेणां करे अने विचारे के श्रापशे के नही आपे, एम 9 परिग्रहनुं रक्षण करवामां जेणे मन परोव्युं , ते रौअध्या- , ननो ध्याता . वळी संयति नाम धरावी जे मूळ गुणथी हीण होय एटले परिग्रह गुप्तपणे राखे, वली दोरा, धागा है करे, वैदकपणुं करे, अनेक नेदे वनस्पतिनां मूळ कढावे, 5 वळी नही घाली मात्राओ मारी अती हिंसक थाय, वली संसारीपणानां पोतानां सगां संबंधीनी चिंता करे. अविर-6 तिपणे काम लोग करेला, विषय सेवेला तेने रुचिए संन्नारे, इत्यादि वार्तध्यान, रौअध्याननो ध्याता जे क्रूर तेने अशुन कहीए. ते क्रूरपणो पोतानो टाळी उपशम, क्षयउपशमन्नावे शांत थ धर्मध्याननो ध्याता शुन्न प्रवृत्तिए न थाय अने उपर कही तेम अशुन प्रवृत्तिए, वर्ते तेने नवार निनंदी कहीए. (४) हवे पांचमुं लक्षण लोन ते जेम जेम है वस्तुनी प्राप्ति थाय, तेम तेम लोन वधतो जाय; तृष्णा न डीपे, अष्टांत. जेम अग्नि बलती होय तेमां काष्टनो पुरती करीए, तेथी अग्नि वृद्धि पामे, पण शान्ति न थाय, ए अ टांत पूर्वक जेम जेम वस्तु मीले तेम तेम तृष्णा दिप्त @ थाय, अने अपूर्णता नजरे आवे, तेना उपर आठमा १ सुजूम चक्रवर्तिनी कथा कहे . या अवसप्पिणी काले है अढारमा, उंगणीसमा तीर्थकरने आंतरे सुनूम चक्रवर्ति Gror.RGreprerana Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MAPOONEY श्री धर्म प्रवर्तन सार. थया, ते पोतानी मातानी कुखने विषे गर्नपणे हता ते अवसरे परसुरामे पोताना बळे सुनूमना कृतवीर्य राजाने १ संग्राममां, जाज्वल्यमान, परसु लेश्ने हण्या अने तेमना राज्यपर पोते बेगे; कारण के राज्य तो पराक्रमने स्वाधीन डे एवी रीते परसुराम, हस्तिनापुरनगरने दबाववाथी कृतवीर्य राजानी गर्जिणी स्त्री वाघवाला वनमांथी जेम हरणी नाशी जाय तेम नाशीने एकाकीपणे अरण्यमां नमतां नमतां तापसोना आश्रममां ग त्यां तपस्वीटए निधाननी पेठे तेणीने क्रूर परसुरामथी बचाववा माटे नोयरामा राखी. तेणीने चौद महास्वप्नोथी सूचितपुत्र गर्नस्थितिनी पूर्णताये थयो अने जोयरामा रहेतां मोटा पण थया. माताये नोयरामां जन्मवाथी पुत्रनु सुन्नूम नाम पामयु; पड़ी ज्यां ज्यां क्षत्रिय पुत्र हतो त्यां त्यां देहधारी कोपाग्नि सरखो, परसुरामनो कुगर. पहोंची वत्यो अर्थात् सघला क्षत्रियोने र तेणे मारी नाख्यापली एक दहामो ते परसुराम,आतापसोना आश्रममा गयो त्यारे त्यां तेनो परसु(कुहामो) जाज्वल्यमान थयो थको, धुवामो जेम अग्निने सूचवे तेम दत्रियने सूचववा लाग्यो, त्यारे तेणे तपस्वियोने पूडओँ के शुं अहीं को क्षत्रिय डे त्यारे ते कहेवा लाग्या के तापस थएला अमो क्षत्रिय बीये पनी दावानल जेम पर्वतना तटने तृण रहित करे तेम ते परसुरामे सातवारं पृथ्वीने क्षत्रिय रहित करी एवी रीते मारी नाखेला क्षत्रियोनी दाढोथी परसुरामे एक है . श्राखो थाल नयों. पठी ते परसुरामे एक दहामो निमी Brersarossaal SRIGARoornar.GOOGrewardsardaroGarana Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RamroSarkarGra श्री धर्म प्रवर्तन सा२. यत्तिाने बोलावी पूढयुं के मारुं मृत्यु कोनाथी थशे काहरणके घणा साथे वैर करनाराउने परथी पोतार्नु मृत्यु १ थवानी शंका होय जे त्यारे तेउए कडं के जे माणस सिं@ हासनपर बेसीने दुधपाकरुप थएली श्रा दाढोने पी जशे 9 ते माणसथी तारुं मृत्यु थशे, ते सांजली परसुरामे एक दानशाळा मंमावी तथा त्यां अगामीमां सिंहासन राखी तेपर ते दाढोनो थाल रखाव्यो, हवे ते सुजूम पण यांगणामां रहेला वृक्षनी पेठे हमेशां ऋषियोथी लालनपालन करातो थको वृद्धि पामवा लाग्यो हवे एक दहामो कुवाना देमकानी पेठे वीजी जगोए नही जनार एवा, ते सुनूमे 6 ॐ पोतानी माताने पूज्यु के शुं आ आवमीज पृथ्वी ? है के कंश अधिक डे त्यारे तेनी माताये का के हे वत्स ! 6 पृथ्वी तो अनंती आ आश्रम तो तेमां एक मां खीना पग जेटलो . वली आ पृथ्वीमा हस्तिनापुर नामे हूँ एक प्रख्यात नगर ने त्यां कृतवीर्य नामे महा बलवान् १ तारो पिता राजा हतो ते तारा पिताने परसुरामे मारीने ट्र पोते राज्यपर वेगे डे वली तेणें तमाम पृथ्वी क्षत्रिय विनानी करी , अने तेना जयथी आपणे अहीं रहीयें बीये ते सांजली तत्काल क्रोधातुर थश्ने सुलूम हस्तिनापुर गयो कारण के क्षत्रिय तेज दुर्द्धर होय हे त्यां एकदम ते दानशाळामां गयो अने त्यां रहेला सिंहासनपर चमीने धपाकरुप थएली ते दाढोने ते खा गयो, त्यारे ब्राह्म- णीया रक्षको युद्ध करवा माटे जव्या त्यां सुजूमे मेघ है (१२) OMGMAngiomargs SrIGNOLOGGreenodroGrdG: Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FreABARAHARARIANRAGNRASure श्री घर्भ प्रवर्तन सा२. सरखा नादवालो वाघ जेम हरिणने मारे तेम तेउँने मार्या ते सांतली परसुराम पण गुस्से थश्ने जाणे कालना पासथी खेचायो होय नहीं तेम त्यां श्रावी लाग्यो अने तेणे सुजूम उपर पोतानी परसु मुकी, पण अग्निनो तणखोजेम पाणीमां नष्ट थाय तेम ते परसु नष्ट थयो ते वखते सुनूमे पण पो ता पासे हथियार न होवाथी ते दाढोवालो थाल ऊपाड्यो 6 5 अने ते थाल तुर्तज चक्ररुपे थयो कारण के पुण्य संपदाथी शुं नथी थतुं? एवी रीते ते आठमा चक्रीये ते चक्रथी परसुरामनुं मस्तक, कमलनी पेठे बेदी नाख्युं जेम परसुरामे सातवार पृथ्वी क्षत्रिय रहित करी हती, तेम आ सुत्नमे एकवीसवार पृथ्वी ब्राह्मण विनानी करी तथा पाउलथी तेणे उ खंग पृथ्वी साधी. वली वैताढ्यनी गुफाओ खोली अने नरतना ऊत्तर खंगमां दाखल थम्लेडोने तेणे जीत्या र एवी रीते चारे दिशामां नमीने घंटी जेम चणाने पीसे तेम तेणे सुन्नटो मारीने पृश्चिने जीती खंमनुं राज्य मेलव्यु चौद रत्न नव निधान पचवीस हजार देवो सेवामां इत्यादि चक्रवर्तीपणानी ऋद्धिये पूर्ण थतां, पण लोननी दसा तेनी अटकी नहीं, अपूर्णताज नजरे आवी. ते चितवे के मारा जेवा तो नरत आदे चक्रवर्ति पूर्वे घणा थया तेमा हुँ 9 पण एक वधारे. एमनाथी मारी कंश अधिकता कहेवाय नहीं है पली लोको मोटाइन बोले, मारी मोटा तो क्यारे थाय के बीजा धातकिना ब खंम साधु त्यारे जगतमां मारो यश विस्तरे, एटले मारा जेवो को पूर्वे थयो नथी अने वळी ransex GrearraordPrernarendrammar peDSBI Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BreMBEMBEMBreen श्री धर्म प्रवर्तन सा२. ए थशे पण नहि; अने दुनिया महा चक्री कहीने बोले, , १ त्यारे मारी मोटप कहेवाय, वळी मारी आज्ञा कोण न १ हैं माने, जीहां जाउ तीहां हुँ एकलोज पृथ्वीने ऊंधी करी १ नाखू, वळी मोटा पहार पर्वतने एक हाथे उपामीने फेंकी • देखें. नुजा बळे समुष तरी पेली पार (सामा कांठे) नी& कलं. एटबुं तो मारी नुजामां बळ बे, एम अठ्ठावीस धनुष्यनी कायावाळो पोताना बळ पराक्रमनी अधिकता 6 जोश्न मदोन्मत थयो थको लोनरूपी सागरमा तणा-6 है तो थको ऋद्धिनी अपूर्णता लावतो थको जगतने तरणा प्राय गणतो थको बीजा उ खंगमां, जश् चक्र प्रवर्त्तावी श्राझा मनावु एम निश्चे पोताना मन साथे ठराव कर्यो, चौरासी लाख हाथी, चौरासी लाख घोमा, चौरासी लाख रथ, बन्नु कोम पायदळ, एक लाखने बाएं हजार अंतेकरी, सेनापति, प्रधान, आदे चनद रत्न, नव निधान, इत्यादि रुद्धिए युक्त थको पोते प्रयाण करे . शद्धि गवेखी ते सर्वे चरमरत्न वहाणमां नरीने पोते बेगे वहाण लवण समुज्ना मार्गे अनुकुळ पवनयोगे वेगे चाट्यु जाय बे, ए वहाणना रखोपामां पचीस हजार तो देवो वहाणना उपामनार , पुन्य खवाइ गयुं, ए चक्रीनुं साठ हजार वरसनुं आयुष्य हतुं, तेनो अंत (डेमो) श्राव्यो, १ देवो चिंतवे के के हुँ एक नहीं उपाठ तो बीजा घणाए , एम सौनो साथे मनोरथ थयो, सर्व देवोए मेली दीधुं है ॐ वहाण समुअमां मुब्यु अने सर्व ऋद्धिनो नाश थ गयो, शुPanorm ouTRAN SirsarGGrnagar JALEBIEBEEroren Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RITAGGGERBERASARGITA श्री धर्म प्रवर्तन सार, जूम मरीने सातमी नरके गयो, एम लोनी नरनो लोनरूप है ६ खामो सदा अपूर्ण , एम जाणी लोनदशाने धिक्कारी ६) निर्लोनी थर जेम कपील ब्राह्मण केवळी थया, एम निलों जताने न आहे; अने लोन सागरमां मुवी सागर जळ हे पीतां पण तृषा न लाजे, तेने नवानिनंदी कहीए. (५) । २ हवे उठं लक्षण रति एटले शातावेदनीना हेतु ते पांच शीना अनुकुळ विषय, शब्द, रूप, गंध, रस अने स्पर्श; शब्द ते श्रोत इंडि, जे कान तेनो विषय एटले रागरागणी, सुस्वरनो नोगी, वळी नरघा, शरणाश, ताल, तंबुरा इत्यादि वाजींना शब्दनो लोगी, रूप (वर्ण) ते रातो, से धोळो, लीलो, पीळो अने श्याम, ए पांच वर्ण वळी सं3 स्थानादि लिंग आकार चेष्टा ए चकुनो विषय जाणवो.वळी गंध ते, सुरनी आदि नाकनो विषय, तेस फुलेल चंपो, केवमो, मोगरो, गुलाब, श्त्यादि तेनो नोगी. रस ते कमवो कषायलो, तीखो, खाटो, अने मधुरो ए पांच रस तेनो जोगी. रसना एटले जीव्हा जाणवी. वळी स्पर्श ते, शीत, उष्ण, सूवाळो, बरसट, स्निग्ध, रुक्ष, हळवो अने नारे ए आठ स्पर्श जोगी ते स्पर्श इंडि एटले काया. वळी वेदचीन्ह, स्त्री, पुरुष अने नपुंषक, ए वेदना नोग विषयनो सकामी तेमांज आशक्त एम पांच इंजिना विषय जोगमां : जे, रति विश्रामनो कर्ता वळी हुँ ने मारूं एटले हुं ते का-७ याएज जीव बुं एम जाणे पण जीव कायानी जूदाइ न जाणे; वळी धन दोलत, राजऋद्धि सज्जन कुंटुंब ए मारु , Pance mergs BaBASABGABAD Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ an-2-12-1...-mn @ n grQM. SARAGre SMSASTERLSEXGreasoreg श्री धर्म प्रवतन सा२. एम मानतो थको, तेना संगे कलह करतो थको ऋद्धिनी है मोटपमां गति थको, जे क्लेशानंदी, विषयानंदी तेने जवानिनंदी कहीए. (६) हवे सातमुं लक्षण दीन एटले कंगाल, ते कंगाल शा माटे थाय तो मोहनी प्रबळताए, विकल्प घणा उठे, परंतु ६ पापोदय जोगे पुरा न थाय, वळी किंचित् प्राप्ति होय तेनी & हानि थाय. ते कारणे दीनपणुं नावे, वळी रोगादि कारणे, है पोताने अशाता प्रगटे तेथी दीनताने नावे; पण एम न १ चिंतवे के ए वस्तुनी प्राप्ति तो पुन्य जोगे होय. वळी नि- है में रोगतापणुं ते शातावेदनीना उदयथी होय, ते पुन्य खवा गयुं अने पापनो उदय वर्ते , तेमां तुं दिलगीरीशा माटे 5 करे , पूर्वे उपायुं ते उदयिक नावे प्राप्त थयुं ने तेने समता नावे सहन कर, एज ज्ञानीनु लक्षण जे एम साहसीक थश्ने न चितवे अने दीनता करे तेने नवानिनंदी कहीए. (७) हवे आठमुं लक्षण मत्सर एटले अपलक्षण, स्थानक, मस्ताश्ये करीने मस्तान थयेलो उन्मादे नरेलो, गुणवंत उपर द्वेषनो, या॑नो कर्त्ता, निर्गुणीनो पक्षी, वली अदेखाइए निर्गुणी थको अहं (९) गुणी बुं एम माने, वली , परने दुःखी देखीने राजी थाय अने सुखी देखीने दाजे, अंतरमा वळे, एम मत्सर नावे वर्ते तेने नवानिनंदी १ 2) कहीए; (७) हवे नवमुं लक्षण नयनांत एटले परवस्तुने पोतानी SWORDPREGAON SongrendrasengerGgroordarngmare PARASARAMBIRMA Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PROSAGAR GARAMINISTRAGRAT श्री धर्म प्रवर्तन सार. ६ मानी जे जेणे तेनो सदाय काळ नयमा जाय; कारण के पर६ वस्तुनो स्वन्नाव विनाशी जे अने ते पुन्यजोगे मळी प्राप्त ६ थर ते उतां पुन्ये स्थिर थश्ने रहे पण पापोदय जोगे तेनी है हानी थाय, रखोपु करतां पण न रहे त्यारे पोतानी मानवावाळा प्राणी उद्वेग पामे. संताप करे, दिलगीरी करे, पण एम न समजे के संजोगनी पाबळ विजोगनो नय रह्यो बे, सुखनी पाडळ फुःखनो नय रह्यो ; आ संसार एज नयनुं कारण पुःख, कारण . माटे संसारी वस्तुथी विरक्तता नावीए, ए उपाधि संजोगने पर मानीए एम न समजे अने रखो' करतां थकां आखो नव नयमांने न यमां कहामे, तेहने नवानिनंदी कहीए. (ए) 3 हवे दशमुं लक्षण कपट एटले मुखशुं मीग अने हृदये दुष्ट, मुखथी बोले ते जु, अने मनथी चिंतवे ते जुएं, कायानी चेष्टा जुदी, एम कपट, फंद, माया एटले मच्छी लोको जळमां जाळ नाखे, तेथी पण आ कपटजाळ अती बुरी . कारण के एतो तिर्यंच, जळचर जीवो जळमां विनोद, क्रिमा करता एवा तेम पशुने जाळमां फसावी दे , अने आ कपटी तो वगर जाळे, माह्या चतुर मनुष्यने वातनी वातमा फसावे , माटे अति बुरो, अविश्वासन स्थानक एवो कपटी तेने नवान्निनंदी कहीए. (१०) ४ हवे अगीयारमुं लक्षण अज्ञानी मिथ्यात्वी एटले निजपर बुद्धि जीहां सुधी थइ नथी अने निजपरनो नेद नास्यो नथी, जमसत्ता, चेतनसत्ता, जुदी जुदी जाणी नथी Handsogration News Sonomind SoSorror GornerGEGrdGordosongs Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RAGrRGOGARAGRANAGAR Geomeomeomeomeoma श्री धर्म प्रवर्तन सा२. १ तीहां सुधी अज्ञानी कहेवो, हवे मिथ्यात्वपणुं मवेखे दे. हर कदाग्रह अजाणपणे पकन्यो तेने मेले नही. खरा-१ खोटानी परीक्षा नही, खोटु जाणीने खरु करवानो हठ ममत्व, जीन वचनमा शंका अने अजाणपणे विपरीत श्रद्धा, तेनुं नाम मिथ्यात्व ले. सवैया तेवीसा. मिथ्यात असत्य नेद पंच दाखं, खर पुर पकडयुं नवी गेमे; सत्य असत्यनो नेद न समजे, सोनुं रु' एक नावमा जोडे, खोटुं जाणीने खलं करवा चादे, द ममत्वना पंथमां दोमे जीन वचने शंकाने अजाण ते, प्रास्ता झान ए बेन गुण तोडे. ॥१॥ सवैया एकतीसा. विपरित एही श्रद्धा, दश समुदाय वधा, एज ने मिथ्यात वेरी, रोळे भव चक्र मै; अनंत परावर्तनो, मालीक ए मोह पुत्र, 3 घात करे सर्वथी ने, घाले काया देम मै; मोद मदोराने पावे, चेतन जमता ध्यावे, नाचे संसार गतीये, पमे पाप पंक मै; Karan -6015 Desenhos Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ आशा तो अधुरी सदा तृष्णा गरे न कदा, श्रा नव परनवनी न छूटे नंत कालमै. ॥२॥ १ कुदेव तेही देव माने कुगुरुने गुरु माने, कुधर्म धर्म माने खोकिक मिथ्या नाव है. देवने आशाए माने आशाए सेवे गुरुने, धर्मनुं फळ मागे लोकोत्तर मिथ्यात्व है; शुनाशुन करणीनो अकृता निक्ष, ईश्वरने कर्ता कदे ऽव्य मिथ्यात नाव दै. रागने देष बेहु, परिणति अशुभ कहुँ, अनादि विकार एदी, नावथी मिथ्यात्व है. ॥३॥ है मिथ्यात्व गणामां बांधे, मिथ्यात दूजे न बांधे, कोमा कोमी सीतेर, सागर स्थिती कही है, मिथ्यात्व नदेमां आवे, गण सातमु कदावे, उपर नदे न होवे, समकित सही है; मिथ्यात्व सत्ताए रेवे, एकादश गणे केवे, सत्ता खुटे बारमें अमरं पद सही है; जनम मरण टळे अरिहंत गणे चले, अनंत चतुषयी मले सि६ दूर नाहि है. ॥४॥ यहां कहेवानुं एटलं जे के आत्म प्रदेशे मिथ्यात्व Q मोहनीनी त्रण कर्म प्रकृतिनो अन्नाव थतां दायक सम dog gsroorg mardarnGramGenera GORAGARAGNIGADGIRLS Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Poro GORGEOGRGOOGODDERGOOGr@SS TERRAGMEAGMCHANDRAMOMRAGARAGreg ६ कितनी प्राप्तिए सिद्ध गति पूर नथी, संसार गति ब्रमण चक्रनो मुख्य हेतु एक मिथ्यात्व . एम उपर कह्या प्र9 माणे अगीयार बोले करीने सहित होय तेने नवानिनंदी ६ कहीए, वळी पुद्गलानंदी पण कहीए, ते पुरुष विधि पूर्वक शुन क्रियानो प्रारंन करे; ते पण निष्फल जाणवो, कार्यनो साधक थाय नहि. ११ शहां नवानिनंदीनो अधिकार समाप्त थयो. हवे निश्चय नयनी मुख्यताए, धर्मप्रवर्तन कहे . है एटले निश्चयनयमां अष्टि करवा योग्य (प्रवेश करवाने योग्य ) कोण ले तो जे आत्मानंदी पुरुषोत्तम बे, तेज निश्चयनयमां दृष्टि करवा योग्य . हवे तेमनां सक्षण कहे इ, तेमां प्रथम लक्षण गंनिर होय, एटले हुं अल्प गुणवाळो बुं. एम घणा गुणे युक्त , तोपण पोतानी, ओग सने जोवावाला होय एटले जीहां सुधी दायक लब्धिनी १ पूर्णता निष्पन्न न थाय, तीहां सुधी पोतानी ओडास देखे एटले उपशम नाव, क्षय उपशम नावनी प्रगटताने न जुवे. प्रगटताने जोतां, महा पुरुषने पण मोह अंग आपे एटले खलना पामे . अने योगासने जोतां, वृद्धि पामे तेनुं कारण ए डे के ओगासने जोवु ए चारित्ररायने पो६ तानुं अंग , ते कारणे ओगसने जोतां निर्मोह वृत्ति थाय अने निर्मोह वृत्तिये गुण संपदा वृद्धि पामे. एम गुण रागी, गुणना लोनी घणा गुणवंता पण मोटपनी कालके ॐ मनकाय नहीं तेमने आत्मानंदी कहीए. १ (७०) agroBrowsexcomroor Greenaramaroord Ganee Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धर्म प्रवर्तन सार. १ हवे बीजुं लक्षण अकृपण एटले बती वस्तुए कृप णता न करे. पोते नोगवे. वापरे दीन दुःखीयाने, अनुकंपा बुद्धिए अने सुपात्र एवा अतिथि मुनिने नक्तिए करी दान थापे, वली अधिक शक्ति होय तो स्वामी वत्सल, १ प्रनावना आदे करे, पूजा नणावे, आंगी रचावे, जीन हे मंदिर करावे, जीन बिंब जरावे, उजमणुं करे, ज्ञान, पुस्तको & लखावे, नणताने सहाय आपे, संघ कहामे, जीर्णोद्धार ते 3 जीर्ण जीनमंदिर समरावे, साधु, साध्वी, श्रावक, श्रावीका, ए चतुर्विध संघने धर्मकरणी करवा हेते उपासरा करावे, इत्यादि शुन्न मार्ग मोकळा मने चित्त उत्साहे पैसानो व्यय करे, पण ते पैसे मूर्बित थको कृपणता न करे, तेम उडी शक्तिए अनिमानी थको व्यय पण न करे, पापे पेदा करवु अनिमाने व्यय करवो तेने प्रश्न व्याकरण दशमा अंगमां मंद मतिया कह्या . माटे विवेक पोतानी शक्ति जोश्ने वापरे. ए गृहस्थीपणामां अकृपणता लक्षण का, १ हवे संयतिपदे जे क्षय उपशम नावनी लब्धिए धनाढय थ. येला बहुश्रुत नावने पामेला तेमने पण नव्य जीव प्रत्ये उपदेश करवाना अवसरे अथवा समागम थये वस्तुगते वस्तुपणानो उपदेश, द्रव्यगुण पर्यायनी वली स्वन्नावनी उळखाण पूर्वक जम चेतननी विनाग व्हेंचण पूर्वक, हेय, ह झेय, उपादेय बुद्धिने पमामवा हेते नय निक्षेप, पक्षप्रमाण ६ ॐ इत्यादि विस्तार बुद्धिए हेतु अष्टांत युक्तिए करीने, वचन , नालो अने युक्ति कटार मारी अनादि मिथ्यात्वने बेदी ६ (७१) Firstood SAN GOODrugrewrogram SRGoraGRGBGAGRGraharare Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FRRAGARAGRAPARATORAGExam श्री धर्म प्रवर्तन सार. बोधिबीजनी प्राप्ति तद्रुप समकित ते अमुल्य रत्ननुं दान देवं ते संयतिपदे उचित डे एम बती शक्तिए कृपणता न १ 9) करे तेमने आत्मानंदी कहीए. (५) हवे त्रीजुं लक्षण दीर्घ दृष्टिवंत एटले घणीज मोटी विस्तार बुद्धि के जेमनी एवा परम सारांश जैन श्राज्ञा ग्राहक तद् हेतु एटले जे एक पोतीको आत्मा तेहीज साचो ज्ञानादि अनंता गुण अने अव्यावाधादि अनंता पर्याय मय सादात् परमात्मा सरखो शक्ति नावे अनादि सिद्ध ले. तेने व्यक्ति नावे प्रगट करवा अर्थे मोद नीपजाववा माटे जे सहज समाधिए ध्यान करवु रमण करतुं 6 तेने तदूहेतु अनुष्टान कहीए. हवे अमृत ते मन वचन 3 अने काया ए त्रिकरण योगनी ऐक्यता,हर्ष,उत्साह,प्रमोद ए सहित, निरामय साधन ए रीते स्थिर शंकादि चपळता 3 रहित सिद्ध नगवानना स्वजाति स्वनाविक गुणे करी ए उपयोग प्रनु गुणे जोमीने एटले गुण गुणगत स्वनावे गुण १ गुण प्रत्ये निन्न निन्न उपयोग जोमी तन्मयपणे अनुनविने अनेद स्वरूपे परिणमावे त्यां कार्यनी पूर्णता पामे एटले १ कोइ देशथी पामे अने को सर्वश्री पामे, देशथी पामे ते १ चोथे गुणगणे समकित पामे अने सर्वथी पामे ते तेरमे गुणगणे अरिहंत पदे अनंत चतुष्टयी पामे एम कार्यनी साधकता नीपजे तेने अमृत अनुष्टान कहीए एम तद्हेतु १ अने अमृत ए बे अनुष्टाने वर्त्तता एवा दीर्घदृष्टिवंतने आ त्मानंदी कहीए. (३) PRECreGRA SANGABADESHDOORDARSDOG PresordGrenorror@nare Grammar (७२) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RANDo wी धर्म प्रवर्तन सा२. ...... GROWorma GOOGrnaraGORGEOMore PROGramBASEEGRAGResires ) हवे चोडं लक्षण उपशम, क्षय उपशम नावे, शान्त एटले उपशम ते मोहनी कर्मनी प्रकृतिठनो सत्ताए आ- त्मप्रदेशे उपशम होवाथी उदयिकताना अन्नावे प्रदेशे अथवा विपाके विघ्न, परान्नव नहीं होवाथी आत्माने उपशम नावे शान्त कहीए. वली वीतराग कहीए, ए तेना बेनेद. एक देशथी अने बीजो सर्वथी, देशथी तो एक मिथ्यात्व एटले सिद्धांतना मते, त्रण पूज्य न करे. माटे है एक अने चार अनंतानुबंधी कषायनी चोकमी, मळी पांच प्रकृतिनो उपशम चोथा गुणगणे थाय, तीहां उपशमन्नावनुं समकित पामे, अने सर्वथी तो चार चोकमीना सोळ कषाय अने हास्यादी षट, त्रण वेद, ए नव नोकषाय, ए. टले कषाय तो नही, पण कषायने प्रगट करवानुं कारण माटे नोकषाय कहीए; एम बेहु मळी पचीस कषाय अने 3 एक मिथ्यात्वमोहनी, बीजी मिश्रमोहनी, त्रीजी समकिहूँ तिमोहनी, ए त्रण मळी अठ्ठावीस प्रकृतिनो उपशम, श्रर गीयारमा उपशान्तमोह गुणगणे थाय, तीहां उपशमन्ना व, यथाख्यात चारित्र पामे, ए बे नेदनी स्थिति अंतर १ अंतर मुहर्तनी डे; ए उपशमन्नावे शान्तना बे नेद कह्या, हवे क्षयउपशमन्नावे शान्त गवेखे . ते चारे घातिकर्मनी प्रकृतियोनो कय उपशम होवाथी संपजे; तेना विचीत्र नेद बे, परंतु समुदाये बे नेद, एक अज्ञानयोग अने अ-3 & ज्ञानयोगनिश्रा, बीजो ज्ञानयोग श्रने ज्ञानयोगनिश्रा, श्र ज्ञानयोग ते, समकितना अन्नावे प्रथम गुणगणे क्षयन 6 PROGR AMMINGal Gangores@AGAGRA Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Prer SearMORRORISMISAR श्री धर्म प्रवर्तन सार. पशमन्नावनी वृद्धिए जाणपणुं वृद्धि पामे, वळी निश्रा ते ? दीपक समकितनी अव्य चारित्रनी तपनी निश्रा पामे, यावत् स्वर्गसुखनो विन्नागी थाय, पण यथार्थ श्रद्धाना अन्नावे, ग्रंथिनेद करे नही अने समकित पण पामे नही एटले स्वअपेदाए हित न थयो, परंतु योग्य जीवने बोधि है बीज पमामवाना वळी मोदे पोचामवाना हेतु डे, माटे. शान्त ए पहेलो नेद कह्यो, हवे बीजो नेद ज्ञानयोग ते, ग्रंथिन्नेद कीयां, चोथा गुणगणाथी ज्ञानयोग कहीए अने निश्रा ते समकितनी, चारित्रनी, तपनी, वीर्यनी, एटले क्षयउपशमन्नावनी पांच लब्धिनी निश्रा कहीए, तेनो विवरो एम बे के समकित आश्रीने चोथु, पांचमुं अने वं सातमं ए चार गुणगणे दयउपशमन्नाव लाधे बे, वळी चारित्र आश्रीने पांचमुं, , सातमु, आठमुं अने नवमुं दशमुं, ए 3 गुणगणे दयउपशमन्नाव लाधे अने ज्ञान आश्री वळी दानादि पांच लब्धि आश्रीने, चोथु, पांचमुं, ब्लु, सातमुं, थाउमुं, नवम, दशमुं, अगीयारमुं अने वारमं ए नव गुणगणे क्षयउपशमन्नाव लाधे, ए दयउपशमन्नावे शान्तना नेद गुणगाणे गवेखीने करा, हवे तेनी स्थिति चोथा गुणगणानी अपेक्षाए, काळ आश्रीने, बासठ सागरोपम जारी अने जब आश्रीने सात आठ नवनी जाणवी, अने ६ पांचमा वळी हा सातमा गुणगणानी नेगी, देशे उणी, पूर्व क्रोमनी. जाणवी; ए उत्कृष्ट स्थिति कही अने जघ. . न्यथी. वळी सातमा गण उपरांत अंतर अंतर मूहुर्त्तनी (७४) । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RSPORAGARAMBIRenera SARAGRAMROORNAGARom श्री'घर्भ प्रवर्तन सार. ए ज्ञानयोग चोथा गुणगणाथी बारमा गुणगणाना अंत सुधी क्षय उपशम नावे कह्यो. तेना ग्राहको चोथा गुणगणाथी सातमा गुणगणा सुधी धर्म ध्यान ध्यावावाळाले. उपरांत शुक्लध्याननो पहेलो पायो आउमाथी दशमा सुधी ध्यानगत के उपरांत बीजो पायो ध्यानगत . पहेला पायामां नेद शान अनेनेदानेद शान बे, बीजा पायामां अन्नेद ज्ञान जे; रुपक श्रेणीना ग्राहको पहेला पायाना ज्ञान ध्याने मोहनो वळी अशुद्ध परिणतिनो दशमा गुणगणा अंते तय करी वीतराग परिणतिए बारमा गुणगणे यथाख्यात चारित्र पामे अने बीजा पायाना ज्ञान ध्याने ज्ञानावर्णी, दर्शनावर्णी अने अंतराय, ए त्रण कर्मनो 3 नाश करी, तेरमे गुणगणे अरिहंत पदे केवळझान, केवळ दर्शन, अने दायक नावनी पांच लब्धि पामी दायक लब्धिए पूर्ण थाय माटे दायक लब्धिनी, प्राप्तिनुं कारण यथास्थित क्षयनपशम नाव चोथा गुणगणाथी , अने चोथु गुणगाणु पामवानुं कारण मतियान, श्रुत अज्ञान, ए बेहु अज्ञानना क्षय उपशमनी वृद्धिनुं सवळापणे परिणमवु ते डे, परंतु विनंग नथी. वळी श्रेणी आरोहण कर, तेनुं कारण मतिश्रुत शान ठे; परंतु अवधि मनःपर्यव नथी | एम उपशम, दय उपशम, नावे, शांत थया, एवा झानी ६ तेमने आत्मानंदी कहीए. (४) . हवे पांचमुं लक्षण संतोष, एटले संतोष क्यारे जाहे पीए के जीहां श्च्छा वांच्छानो संनव नथी निर इच्छाए तृप्त Subungisorders nirnards www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ थया ले तेमने संतोषी कहीए अने इच्छा वांच्या जे जेने 8 तेने असंतोषी कहीए. कर्वा , गाथा. ॥ जहा लाहो तदा लोहो ॥ साहा लोहो विवढ५॥ 3 दो मास कणय कन्जंकोमीएविननई ॥१॥ अर्थः-जहा कहेतां जीहां, लाहो कहेतां लान एटले धन्य, धान्यादि वस्तुनी प्राप्ति थती जाय वृधि पामती जाय, तहा कहेतां तीहां, लोहो कहेतां लोन प्रगट थाय अने उराश नजरे श्रावे वली घणी तृष्णा थाय. लाहा हूँ कहेतां जेम जेम लान थतो जाय तेम तेम लोहो कहेतां । लोन, विवद्र कहेतां विशेष करीने वृद्धि पामे एटले दिप्त थाय, यथा अष्टांते, जेम अग्नि बळे ने तेमां काष्टनी पुरती करीए तेथी अग्नि शान्त न थाय, परंतु वृद्धि पामे ए अष्टांते, वस्तुना मळवाथी लोन न उपशमे. दोमास कणयं, कहेतां कपिल ब्राह्मण बेमासा सुवर्णतुं, कजं, कहेतां दान लेवा अर्थे राजा पासे गयो तेने राजए साचा बोलो जाणी प्रसन्न थश्ने कयु के, माग, मागे ते आपुं अने तारूं | दारिजपणुं श्राजथी दूर करूं, तारे जन्म पर्यंत फरीथी या- १ चना करवी न रहे; त्यारे कपिल ब्राह्मण विचारवा लाग्यो है के, केटयु मायुं तो, यावत् कोमी एवी, कहेतां एक क्रोम १ सोनेया मागु, एम विचार करतां पण, ननिह कहेतां निष्टार्थ है एटलुंज, एम तृप्त न थयो, एटले इच्छा वांच्दानी १ ALSOMEBACHEREIN TOGGARAGNIORGri Gr@ GARROR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PornerGARMER amera श्री धर्भ प्रवर्तन सा२. । पूर्णता न थर अने उडाश नजरे श्रावी, ते अवसरे लोनदशाने बुरी जाणी, स्नेह लत्तावेली मूळने उपामवाथी ए, कपिलनामा ब्राह्मण महा पुरुषोत्तमने, पोतीको सहज स्वन्नाव प्रगट थयो अने ज्ञानन्नानुं घटंतर वृत्तिए उदय । पाम्यो, लान होवाना कारणे पोते पोताथी बोध पामी स्वयंबुद्ध थर कर्मने हणी सिद्धि वर्या; ए कथा उत्तरा& ध्ययनजीना आठमा अध्ययने सविस्तारे . एम धन . है कंचनादि वस्तुने अलच्छी माने , तृष्णा त्रुटी डे पोता- 6 पणानो ममत्व गयो बे, कदाच संसारमा रह्या डे अने ए लदमीनु रखोपुं करे , तेने निर्वाह प्रयोजन जाणे डे, बाधकता समजे बे, विरक्त चित्त बे, बोमवानी नावना नावे डे, डोमवानो अवसर श्च्छे डे, वळी नीजात्म सत्ताए ज्ञानादि गुण अव्याबाधादि पर्याय, पोतीका असंख्यात र प्रदेशे, प्रदेश प्रदेश प्रत्ये, अनंता अनंता, तद्रूप झायक. सब्धि, निर्मळ, निरंजन, अचळ, अविनाशी नावनी वस्तु गते रही डे, तेने लक्ष्मी माने बे, वळी तेना अर्थी बे, ६ खपी डे, व्यक्तिनावे प्रगट करवाना उद्यमी बे, ब्राह्यऋद्धिनी वृद्धि अथवा हानि होवाथी, राग द्वेष न करे, अने समनावे वर्ते. कदाच उद्वेग करे तो उत्कृष्ट पंदर १ दिवसना अनुमाने करे, नहितो तरतज ए वस्तु अस्थिर , बे, कोश्ने त्यां स्थिर थश्ने रही नथी. संजोगे श्रावीने १ प्राप्त थ अने विजोगे नाश थयो, एम हानि वृद्धि थाय है | तेनी साथे पोतापणो मानवो ते झानीने उपचार मात्र ने Pisaccharidrossessment ForexxBARAGAR GARLORAMBASSAGARAGNS989 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फु શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર, एम जाणी उद्वेगने उपशमावी, समजावे वर्ते, तेवा संतो-' पीने आत्मानंदी कहीएं. (५) ed as लक्षण श्रात्मरति एटले आत्मगणमांज प्रीतिरंग लाग्यो बे जेने, पटले रंग केवो लाग्यो बे के कंचननो पित वर्ण बे, चांदीनो धोळो वर्ण बे, परवाळानो रक्तवर्णवे, ए रंगने उतारीए, पलटावीए, तो पलटाय नहि. कारण के स्वाविक रंग बे, तेम श्रात्मानो जेवो स्वभाव तेवो रंग, चोथुं गुणाएं प्राप्त यतां अंशे अंशे चढतो गयो अने जेटलो स्वभाविक गुण प्रगट थयो एटलो उपाधि रंग उतरतो गयो. एम करतां करतां अनुक्रमे परिपूर्ण रंगतो राग द्वेष ने मोहना नावे, दिए मोह बारमुं वीतराग year पाम्यां कहीए, एटला सुधी न पहोंचे तेने तदनवे मुक्ति न मले, पण कायक समकितनी अपेक्षाए त्रीजे नवे ने बेटे चोथे नवे ए जीवो मोक्षगामी बे, वळी दय, उपशम समकित प्रतिपातिनी अपेक्षाए सातमा आठमा नवे ए जीवो मोक्षगामी बे. वळी प्रतिपाति क्षयउपशम, अने उपशम सम कितनी अपेक्षाए अर्ध पुगल परावर्त्तनी मांडेली कोरे ए जीवो मोक्षगामी बे. एथी अधिक काळ तो धिभेदी जीवो संसारमां न रहे: वळी रंग न उतरवानुं कथं ते, जेणे ग्रंथि नेद करेलो बे, ते अधि काळमां सज्ज थाय नहि अने मिथ्यात्वगुणठाणे जतां पण ए जीवो, द्रव्य सम किती बे, उपर मिथ्यात्वनुं दळ फरी वल्युं बे, ते विशुद्ध जावे उतरी जवाथी चोथे गुण ( ७८ ) " Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RAPareeMOREMORS Green શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. गणे नाव समकितीपणे, जलदीथी आवशे, ए जीवने फरीथी करण करवां नथी, माटे चोथा गुणगणानी प्राप्ति थतेने ए अपेक्षाए अपलटण रंग कह्यो डे, वळी आत्मरति पुरुषोत्तम संसारमा रह्या बे. कायामां वस्या , परंतु अळगा . यथा अष्टांते, जेम सरोवरना जलमां कमळ रह्यं डे, श्रीफळना काचलामां गोळो रह्यो डे, ए दृष्टांते अलिप्त थका न्यारा बे, मोहीत थका पांच इंजीना नोग है सुखमां रमे नहीं, ज्ञान दृष्टिए स्वरूप रमणिपणे वर्ते, ते 6 आत्मरतिने आत्मानंदी कहीए. (६) । हवे सातमु लदण साहसिक एटले धैर्यवान, वीर्यवान, सत्ववान, ए लक्षणे ज्ञानी आत्मा कायामां रह्यो । थको, सुखसंपदा अने फुःख आपदा, संयोगिकनावे पूर्व कर्मनी उदयीकताए, प्राप्त थये अदिनवृत्तिए वर्ते; दीनता न नावे, कारण के सुखसंपदा ते तनधन राजऋद्धि तेने तेमणे अनित्य, अशाश्वति जाणी. वळी सजन कुटुंब बाहिर मेलावमो बे, तेनुं सगपण खार्थ सरे त्यां खगे. जुवो के, ब्रह्मदत्तनी माता चुलणीए पोतानो स्वार्थ नहि सरवाथी पुत्रने लाखना मेहेलमां सुवा मोकलीने सळगावी दीधो, एतो एनुं श्रायुष्य हतुं तो जीवतो रह्यो, पण माएतो मार१ वानोज उपाय कर्यो. वळी श्रेणिकराजाने पोतानो पुत्र , कोणिक तेनो खार्थ नही सरवाथी राजना लोने पिताने , पांजरामां घाली रोज पांचसो कोरमा मारे अने अंते ए हैं हे बेहुने कमोते मरवानो वखत आव्यो, वळी परदेशी राजानी 6 RAP MLIGResta BhagraBOOrnamenorrangrages BAMBOORK Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRAYORo ores GRAGRAGARMAGARAGRames श्री धर्म प्रवर्तन सार. १ सूरिकांता नामे स्त्री तेनो स्वार्थ नही सरवाथी फेर खव- । रावी पतिने मार्यो. वली ऋषनदेवस्वामीना बे पुत्रो नरत , अने बाहुबल तेमां वमा नरतनो स्वार्थ नहि सरवाथी, ६ बाहुबल बोटाना उपर चक्र मेव्युं, एतो गोत्रमा न ला5 गवानी आमन्याए बाधा नहि करतां पाठं आव्युं. नही १ है तो चक्रनो धर्म मस्तक बेदवानो , माटे एणे तो मारवा& नोज उपाय कर्यो; वळी सोमिल ससरे पोतानोस्वार्थ नहि ६ है सरवाथी गजसुकुमार जमाश्ना मस्तक उपर माटीनी पाळ बांधी अग्नि नरीने बाल्यो, इत्यादि संसार सगपणनां अनेक दृष्टांतो , ते विचारतां बाहिर मेलावमानो, वळी तन, 6 धनादि ऋद्धिनो स्नेह राग तंतु बंधननो बंधपास तोमी, 3 गेमीने पोते साहसिक थका अदीनपणे वर्ते, वळो दुःख आपदा जे रोगादि व्याधि प्रगट थयां सनतकुमार महा मुनिश्वरनो दृष्टांत विचारी अनुन्नवीने, वळी तन ममता टाळीने पूर्वकृत कर्मनां फळ जाणीने नेद शान घटमां लावीने १ कायाथी आत्माने अलगो करीने तन्मय परिणाम पामीने तद्गत नावने गवेखीने, परमशमताना उपयोगे सेहेता घ) थका वर्ते, वळी मनुष्यना तिर्यंचना, देवना करेला उपसर्ग १ ६ उपजे तीहां दृढप्रहारीनो अथवा मेतारय मुनिनो इष्टांत ( Eगवेखीने नावे पोतपोताना झानध्यानमा वर्ते, वळी एम , चिंतवे के बेदनन्दन तामन, वधबंधनादि करे , ते पु& द्गल पुद्गलने करे ले तेमने लागे नही. वळी पुद्गल है है कणभंगुर , तेनो नाश थशे ते तारुं पोतानुं नथी, एतो , Essawranews SR.RAGrdasrancescarrGreAGreena Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AM DI श्री धर्म प्रवर्तन सार. तारे नामानुं घर , तुं ए पुद्गसनुं परिणमन वीर्य फोरवीने तजी दे एटले इंज्यिद्वारे श्रात्मानी चेतना परिणाम पामी , तेने पलटावीने स्वरूपे सहजन्नावे परिणमावे तो, कायाना सुख दुःखनो विनागी पण चेतन पोत न थाय अने ध्यानगत सिद्धना अव्याबाध सुखनो, अंशे नोगी थाय, वळी विशेष वीर्य स्फुरणा पामे तो आपकरणी मांगी, कर्मने हणी, अकर्मी थश्ने सिद्धि वरे. एवा साहसिक पुरुषोत्तमने श्रात्मानंदी कहीए. (७) हवे आग्मुं लक्षण गिरुळते घणा गुणवंतो एटले गंनिर पर उपकारनो कर्त्ता अपूर्व दर्शन डे जेनुं परमलाजनुं कारण एटले जे उपजव करतो आवे तेना तननो ताप दूर करे तो जे विनय पूर्वक दर्शन पामे तेनो तोताप है रहेज शेनो, वली वचनने श्रवण करे तेना मननी व्याधि 3 जे कलुषता ते नाश पामे वली मनन चितवन करे, तेने संतोष सुख प्रगटे तद्गत नावे परिणाम पामे लय पामे, १ तेने चतुरगति संसार मणनो अंत मो श्रावे अने निर्वाहै एपद पामे एम अनंतो उपकार करता मनोवांच्छित पुर वाने नावकल्पवृक्ष समान याचकनी चूख जागे तेमने गिरुढ कहीए. एटले श्ष्ट फळदाता . ते श्टना बेनेद. एक व्यवहारष्ट अने बीजु निश्चयश्ट जे व्यवहार श्ष्ट मागे तेने वैराग्यनो उपदेश करी संसार- अनित्यपणुं वली 5 असारपणुं देखामी संसार त्याग करावी दिक्षा श्रापी पंच , हे महाव्रत आदे चरणसित्तरि अने पमिलेहण आदि करण Breasingareergarh ranBGRGos Grore Groorna ORGIsraGOGA Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PROMORROBARGONOMorngarenge श्री धर्भ प्रवर्तन सा२. १ सित्तरि मली एकसाने चालीश नेदे चरणकरणानुयोगर्नु जाणपणुं करावी समजावी विधिपूर्वक प्रवर्त्तावी स्वर्गे मोकले तेने व्यवहारे इष्ट फलदाता कहीए अने निश्चयश्ष्ट मागे तेने व्यानुयोगर्नु जाणपणुं करावे एटले धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय आकाशास्तिकाय काळ पुद्गलास्तिकाय अने जीवास्तिकाय ए षट्व्य नी वाख्या करी गुण- ६ पर्याय, स्वन्नाव लक्षण नळखावी पांच अजीव अचेतन अव्यथी एक पोतीको चेतन अव्यनिन्न ( नोखो) पामी; हेय, झेय, उपादेय ए त्रिनंगी समजावी, पांच अजीव, अचेतन अव्यनो हेय कहेतां त्याग करावी एक पोतीको आत्मा, सिद्धनो साधर्मि मोदमयी मोदमां रहेवावालो 3 एज उपादेय कहेतां आदरवा योग्य जे. एम दृढता करावे, ते र श्रद्धा प्रतित करावे तीहां गुणने वेळखतो गुणनो राग प्रगटे ते रागनो प्रेयों थको अंतःकरणे उमो उतरी खोज करे.अंतर्गत स्मरण चितवन करे रमण करे अनुन्नव करे. पोतीका १ सहज नावे वीर्य फोरवे. श्रेणी मामी घनघातिकर्मनो नाश ह करी अनंत चतुष्टयी पामी योग रोध करी अघातिकर्म हणी सिद्धि वरे तेने निश्चयथी इष्ट फलदाता कहीए. ए महा उपगारी, करुणासागर, स्पृहा रहित, तत्वचिंतक, तत्वगवेषि, १ 9 तत्वरमणी पोते तरे श्रने गिरु बीजाने तारे तेमने श्रात्मा- , 8 नंदी कहीए. () 5 हवे नवमुं लक्षण निर्जय एटले परवस्तुने विषे है हे पोतापणो एकांते मानवानी बुद्धि, सम्यक्झान सम्यक १ PLANGDENERGANGB Sorgar@narenormoGCATranorrenormore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SMOLEC Uses Gramma SAIRAGAR GARLORER GOLGAPares श्री धर्म प्रवर्तन सा२. दर्शननी प्राप्ति थतां टळी जे. तीहांथी निर्नय, वली तत्व१ष्टिए विचारीए तो जीहां, अप्रतिपाति. क्षय ऊपसम-3 नाव थाय. एटले हानि न पामे. त्यारे निर्णय दशा £ मानीए एटले अप्रतिपाति ऊपशम आत्मा क्यारे पामे ? ६ । तो कोश्क जीवो गसठ सागरोपम मामेरी संसार काळस्थिति बाकी रहे त्यारे पामे अने कोश्क जीवो, तेत्रीस 6 सागरोपम मारी संसारस्थिति काळ बाकी रहे त्यारे पण पामे. वली कोश्क जीवो बेल्वे नवे तो पामेज पण आठ नवथी अधिक संसारस्थिति जे जेने, तेतो अप्रतिपाति क्षय ऊपशम न पामे अने अप्रतिपाति क्षय ऊपशम लाव न आवे तीहां समकितनी साबीती न रहे अने मि-- थ्यात्व प्राप्त थाय तीहां हानि कहीए. माटे अप्रतिपाति क्षय ऊपशमने पामेला चोथा गुणगणाना नावने अचळ थयेला उपरना गुणगणे चढे अने पमे पण चोथा गुणगटू णाने न बोमे. ते निर्नयवंत पुरुषोत्तमने मुख्यताए आत्मा१ नंदी कहीए. (ए) हवे दसमुं लक्षण निष्कपटी एटले कपट करवानुं कारण झुंडे तो एक मान अने बीजो लोन ए वे . ए | बे प्रकृतिनी उबास करीए, तीहां कपटनो संनव न आवे. ) ए मानना बे नेद. एक अप्रशस्तमान, बीजु प्रशस्तमान? लोनना बे नेद. एक अप्रशस्त लोन, बीजो प्रशस्त लोन 5 एम वे प्रकृतिना चार नेद थया तेमां अप्रशस्त, मान ६ अने लोन , ते संसारमां कपट करवानो हेतु डे 9 (८ ) SONGrammar-rosagar RESPERMIRMIR rASMA.Me Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . FRORAGARAGRAMINERASARAGMEAGarera 9 अने प्रशस्तमान अने लोन ले. ते धर्म करणीमां कपट करवानो हेतु बे, माटे प्रशस्त अने अप्रशस्त ए मोहनी कर्मनी प्रकृति . ते सर्वे आत्माने अहितकारी . वली प्रशस्त जे तेज अप्रशस्त प्रकृति बांधवानो हेतु थाय माटे तजवा योग्य . धर्म अर्थी पुरुषने वक्रतानो त्याग करी सरळ नावे वर्त, एज श्रेय बे, कल्याणकारी जे. एम 6 सरळवृत्तिए थया तेहने आत्मानंदी कहीए (१०) हवे अगीधारमुं लक्षण अनुन्नवज्ञान एटले मतिश्रुतज्ञाननुं कार्य एज अनुन्नवज्ञान के अने केवळझानन कारण एटले हेतु एज अवनुन्न ज्ञान ले. वली मतिश्रुतज्ञाननो उत्तर नावी अने केवळज्ञाननो पूर्व नावी एज अनुलवज्ञान . अष्टांत जेम सूर्य के तेम केवळझान डे अने सूर्योदय थता पहेला सूर्यमंमळथी रक्ततारूप प्रकाशनी सदृश्य निकट वृत्तिए जेम अरुण देखाय ते द्रष्टांते अनुन्नव डे एटले साक्षात् वस्तु स्वरुपर्नु जाणवू ऊपयोग अष्टिए प्रत्यक्ष करतळवत करवू. प्रत्यक्ष प्रमाणे निरधार करवो ते अनुन्नव ज्ञानथी थाय पण जीनागम एटले सूत्र सिद्धांत अने सिद्धांतनी निश्राए ग्रंथो वली अन्य दर्शनीनां सर्वे शास्त्र तेनो व्यापार एटले उद्यम करतां नणतां, वांचतां, जोतां १ ६) धारतां, निर्णय न थाय कारण के जे शास्त्र ते कार्यसिद्धि नी दिशाने बतावे . वली वस्तुस्वरूपने अनुकुळ जे बोध 5 तेनी प्रवृत्तिनो विधि तेनुं निमित्तमात्र कथन करे . जे- 6 हमके पूर्व दिशानी सामी पश्चिम दिशा जे. एम सूचवे . ६ FaceBoswwwixxcase REGARMERAGrammar. AGARAGARAGARAGRABARAGARLGre Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DOMISAR १ वली श्रोता जनोने, जागृत करे ले. परंतु चतुर्गतिसंसार - 3 मण टाळी निर्वाण पद जे निज स्वरुप शुद्ध चेतन- पाम १ ते, अनुनवगम्य २ एटले इंजियज्ञानथी अर्तिडी आत्मस्वरुप स्पर्शीत बोध न थाय अनुन्नवज्ञाने थाय. माटे १००१ सो शास्त्रनी युक्तिउंथी पण अतिलिपरत्रमनुं ज्ञान थतुं नथी. एम महोपाध्याय यशोविजयजी ज्ञानसार ग्रंथे बवीसमा अनुन्नवाष्टके कहे . माटे हे नवनी नाळ तमारे 3 जो मोदना सुखनी चाहना होय तो, अनुन्नव झाननो खप करो अने इंजीठ संगे पोताना आत्मानी चेतना एक्यतापणे खीरनीरना अष्टांते पुद्गळ मिश्रित अनादि संबंधे. तेहने अनुन्नवरूप चांच एटले ज्ञान योगनी स्फुरणाए करीने 3 पलटावी घटंतर वृत्तिए स्वखरूपे सहज नावे परिणमावो अने मनयोगने अंतःजुवने झान खीले अने समाधि दोरमे बांधो एटले अनुन्नवज्ञान ज्योति, अति प्रकाशकर्ता, श्रहै नुलव जुवने उदय पामशे तीहां पोतानो आत्मा शिवरूप . वली मग्न . एटले ज्ञानामृते परिपूर्ण नरेलो सागर बे. वली सागरने विष थळनूमी द्रष्टिगोचर न आवे अने जळ आवे तेम अनुनव सागरने विषे, वर्णादि पुद्गळ अष्टिगोचर न आवे. वस्तुना तत्वनी गवेषणा उद्योतमय परपाटी शान आवे एम एटले खुल्लो आकाश प्रथुल सपाट उद्योतमय , ते ज्ञानामृत सागर मां स्थिर थयेला ते मग्न कहेवाय एटले आत्माना अनंता के गुण अने गुणगुणनो स्वन्नाव निन्न एटले जुदो जुदो डे VisaroRNINMoreDow AGRAGNIGroword १ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GROGre are श्री धर्म प्रवर्तन सार. ज्ञाननोजाणवापणे, दर्शननो देखवापणे, चारित्रनो स्थिरता. पणे, वीर्यनो स्फुरणाशक्तिए एम अनंतागुण पोतपोताना १ स्वन्नाव धर्मे वर्ते पण एक बीजामा प्रवर्ते नही. तेने सि- है द्धांती स्थिर कहेडे. मग्न कहे वली ए पुरुषोने अव्याबाध सुखनो अंश प्रगट थयो ! ध्यानगत परमानंदनी सहेरमां मग्न डे ए सुखनुं वर्णन सर्वज्ञ प्रत्यक्ष हजारो जीव्हाथी ६ ॐ कहेवाने पोताना श्रायुष्यनी पूर्णताए पण अशक्त ने एम महोपाध्याय यशोविजयजी ज्ञानसार ग्रंथे बीजा मग्नाष्टके 6 कहे . माटे चतुर्गति ब्रमण टाली जन्म, जरा श्रने मरणना पुःखथी रहित थ अजरामर मोक्षपदे अव्या बाध सुख पामवाने एक अद्वितीय अनुन्नवज्ञान एज का ६रण . तेने पाम्यां आस्मानंदी कहीए. (११) कथु । अनुन्नवाष्टके. श्लोक. संध्येव दिनरात्रीभ्यां केवलश्रुत बुधैरनुलवो दृष्टः केवलार्कारुणोदयः ॥१॥ व्यापारः सर्वशास्त्राणाम् दिक् प्रदर्शनमेव दि पारं तु प्रापयत्ये कोऽनुनवो नव वारिधेः ॥२॥ अतीन्यिं परब्रह्म विशुशानुनवं विना ॥ शास्त्रयुक्ति शतेनापि न गम्यं यद्बुधाजगुः ॥३॥ मनताष्टके. ६ प्रत्याहृत्ये ज्यिव्यूहं समाधाय मनोनिजम् ॥ PRACEBOGPressesGAIN HomemaraGroGeogressorrorecord Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRORAGNSAGEMARRANGRAGRAGE १ दधच्चिन्मात्र विश्रांति मग्न इत्यनिधीयते ॥१॥ यस्य ज्ञान सुधासिंधौ परब्रह्मणि मग्नता ॥ विषयांतर संचारस्तस्य दाला हलोपमः ॥२॥ स्वभाव सुख मनस्य जगत्तत्वावलोकिन: कर्तृत्वं नान्यत्नावानां साक्षित्व मवशिष्यते ॥ ३ ॥ ज्ञान मग्नस्य यधर्म तरक्तुं नैवशक्यते.॥ उनोपमेयं प्रियाश्लेषैर्नापि तचंदनवैः ॥६॥६ शमशैत्य पुषोयस्य विप्रुषोऽपि महाकथा ॥ किंस्तु मोझान पीयूषे तत्र सर्वांग ममता ॥७॥ 5 यस्यदृष्टिः कृपारष्टिगिरः शमसुधाकिरः॥ तस्मैनमः शुज ज्ञान ध्यान मग्नाय योगिने ॥ ७ ॥ यहां आत्मानंदीनो अधिकार समाप्त. __ हवे वली निश्चयनयनी मुख्यताए धर्मप्रवर्तन कहे बे, ६ श्लोक. = अविरोध मनुछेग ॥ शमन्नावं चलाचलं॥ अहंममत्व परित्यक्तं ॥ अकर्मकर्म उच्यते ॥१॥ अर्थः--निश्चयनयमां अष्टि करवावाला पुरुषोत्तमनी १ क्रिया केवी होय ते प्रत्ये गवेषे डे अविरोध कहेता कोश् । जीव साथे विरोध चिंतवे नही वली करे नही. एटले १ भ विरोध करवानुं मुख्य कारण जोए तो एक मान अने , बीजु लोन ए बेबे. एटले जीहां पोतानुं मान खंमित HearBEYBLExcessorias PROGGERAGRAGAGRIGre areAGARLSRO SBISASRAGr Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ याय, वा लोनमा उनाश थाय, तीहां विरोधनो संन्न , ६ आवे; ए बे प्रकृतिने जेणे पूंठ दीधी जे. एटले पूंठ दीधी १ ) एम क्यारे जाणीए के जे पुरुषो पोताना तदगत श्रात्म६ स्वरुपना चिंतक ले. सत्ताए रहेली ज्ञानादि अनंता गुण ई, श्रने अव्यावाधादि अनंता पर्याय तद्प ऋद्धिना जाण ॥ . परंतु दायक नावे ए ऋद्धिनी प्रगटताना अन्नावे 6 & पोताना आत्मानी लघुता नावे हानि चिंतवे तीहां माननो असंजवडे. वली देवेंष नरेंजादि पदनी इंजिनोइंजिनित 6 जे विषय सुखनी हेतुचूत एवी तेमना ऐश्वर्यपणानी पुद्-* गलीक विनाशिक ऋद्धिनी उकुरा तेने जे पुरुषो अलच्छी माने तीहां लोननो असंनव बे. वली सर्व जीवरा शीने सत्ताए सरखा सिद्धना बरोबरीथा स्वजाति जाणीने ( स्वामीत्व संबंधे मैत्री नावना नावे . तेमनु नखं चिंतवे ) १ ते पुरुषोत्तम विरोधि नावथी विमुख ले. तेमने अवि रोधी कहीए वली ए पुरुषोत्तम केवा ने तो मनुढेग कहेतां १ उद्वेग पामे नही. एटले उद्वेग पामवानुं कारण ए के टू जेणे पोतानी कायाने पोतापणे जीव मान्यो बे. वळी १ सजन कुटुंबादिने पोतानुं मान्युं बे, वळी धन,दोलत, राजमहेल, राजऋद्धिने मारी मानी ते जीवने ए ऋद्धिनी हानि थाय, विनाश थाय, तेथी उद्धेगता श्रावे, संताप करे, हुं निर्धन थइ गयो दारिख अवस्थाने पाम्यो, निकुकवत कं- १ #. गाल पर गयो, थारुं थर गयुं, एम वार्तध्याननो ध्याता, ४ थाय, तेने उद्धेग कहीए; परंतु जेणे एक पोतानो आत्मा, ७ LEANERGarecords SaroornawareneureGBGRGramoortoory Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PROGreen FRICAGARAGARAAREERINAGACAarag १ झान, दर्शनादि गुणे युक्त शाश्वतो, एज मारो एम जाएयुए बे, सद्दयुं बे, वळी ए शिवाय जे बीजं अन्य प्राप्त थयुं ते " पूर्वकृत कर्मयोगे अने उदय संयोगे मह्युं, ते बाह्यन्नाव : , मारी ने एनी वस्तुगते जुदाइ , ए संयोग संबंधने ६) पोतानो मानीने में आ संसार चतुर्गतिनमणचक्रमां न६ मतां थकां, अनंतां पुद्गल परावर्त्त पूर्वे कीधां, नर्कनिगो दनां अनंतां पुःख, असंख्यातो, अनंतो काळ पर्यंत सह्यां, 3 वळी फरी फरी दुःखनी परंपरा पाम्यो, तेनुं मुळ कारण ए डे के में परने पोतार्नु अझानपणे, वळी श्रणानोग. है मिथ्यात्वे अनादि संबंधे मान्युं, बीजु नथी, वळी गुंजा जीए के हे चेतन मिथ्यात्ववशे तुं तारा ज्ञानदर्शन तद्रूप बोधने गमावीश, अने फरीथी पाडं परने पोतानुं मानीश, तो चतुर्गति नवचक्रमां ब्रमण करतां थकां अनंतां दुःखनी परंपरा पुनरपी नर्क नीगोदआदि गतिने विषेपामीश अने नर्कना दुःखनो विपाक तो अति कटुक, ते यहां वर्णववा बेसीये तो ग्रंथ गौरव थ जाय, माटे हे नवन्नीरु नाश्यो १ तमे सिद्धांतथी वा, सद्गुरुना उपदेशथी जाणी खेजो अने १ निगोदनुं दुःख तो सातमी नरके एक पाथमो के अने तेमां पांच नावासा बे. तेमां वचलो, अपेगण नामा नावा समां सर्वोपरी अनंतगुणी अधिक वेदना ले ते दुःखना वर्ग ६ करीए, तेने वळी अनंतगुणो करीए, एम अनंती रासीए १ निगोदीयो जीव अव्यक्तव्यपणे, अनादि संबंधे दुःख नो. 3 गवे ते दुःखनो विरहकाळ एक समय मात्र पण निगोदमां ६ actor General SEAVERA Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NAMr. mroBSNOMIRMIRMERGERMARG ६ नथी अने नर्कमा तो, तीर्थकर नगवाननां कट्याणक अवसरे , जीवअंतरमुहूर्त सातावेदे एटलो दुःखना विरहकाळनोसंनव १ । नर्कमा बे, वळी नर्कमा.तो कोश्क जीव समकित पण पामे है a माटे निगोदनी अपेक्षाए तो नर्क सारी बे; पण बेहु गतियो दुःखमयी . तेनुं मूळ कारण ए डे के पोतानो तत्व न जाएयो अने परने पोतार्नु मान्युं, माटे हे चेतन ! 6 हवे समज अने तुं तारा तत्व उपर दृष्टि कर, ने पर उपरथी पोतापणानी दृष्टि टाळ अने हवे पोताना तत्वने जु-6 लीश नहि. ने परने विष पोतापणानी बुद्धि करीश नहि, एम अनुन्नव युक्त परिपक्व ज्ञानयोगने घटंतर वृत्तिए क्षय उपशम नावनी सहाय मलवाथी योतिरूप प्रकाश (उद्योत) कर्ता, सहजन्नावे थयो । जेने, ते पुरुषोत्तम उद्वेग केम पामे. अर्थात् नहि पामे; समन्नावं कहेतां एक पोताना खन्नावे १ थया, एटले स्वन्नावे थया एम क्यारे जाणीए के, शुन्ना शुन बन्ने वस्तुने विषे समदृष्टिए जोनारा एटले शुनाशुन्नमां दृष्टि नहीं करवावाळा तेनो रहस्य एम डे के जे पुरुषो , मोहित ने ते मनोज्ञ रुमा पूगल तेनी अनिलाषा करे डे तेनु नाम विन्नाव ए विनावनो नाश थयो ने इच्छानो ऐ रोध थयो जे जेने एटले निर्मोह वृत्ति थ दे, उपयोग दृष्टि पोताना सहज नावमा स्थापी . तेने समन्नाव कहीए. ट्र चळाचळं कहेता जे मननी चपळता ते नाश पामी , जे पुरुषोत्तमनी, एटले मन जोग ने अंतरगत, मनन है है जुवन , तीहां ज्ञानरूप खीले अने समाधीरूप दोरमे SearcornerBroremaroongreGugram SAANDMARi Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ एटो कचन कामनी पोतापणानो मम जेणे, एटले १ શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. बांध्यो बे तेथी निश्चल थया डे; अहं ममत्व कहेतां जे हुंने ६ मारुं, श्रा संसारमा लागी रडं बे, ए मोहनी गक बे, एटले हुँ शब्दे पोतानी काया अने कायाथी बीजो जेटलो संबंध, कंचन कामनी आदे राजरिद्धि, जे प्राप्त थ ते मारी वळी ते वस्तुने विषे, पोतापणानो ममत्व बे; परित्यक्तं हूँ कहेतां ते अहंपणाना ममत्वनो त्याग कर्यो जे जेणे, एटले । त्याग तो कर्यो पण केवी रीते कर्यो के, अज्ञान अष्टिए हूँ नहि ज्ञानऽष्टिए कों ने अज्ञानष्टिए तो सिद्धांतमां र कहे डे के, मेरु पर्वत जेटला, उघा मुहपत्ति, कंचन कामिनीनो त्याग करीने ग्रहण कर्या पण समकितनी स्पर्शना थ नही अने संसार खुटयो नही. तेनुं कारण ए के, त्याग करी बोमी तो खरी, निग्रंथ थया, पण परवस्तुथी , मारापणो अनादि संबंधे संझाए चाल्यो आवे . तेहने बेद्यो नथी, एटले तद्गत आत्माने उपयोगगोचर अष्टि प्रत्यक्ष कर्यो नथी तीहां सुधी, परवस्तु मारी नथी. परवस्तुनो हुं स्वामी नथी. एम निर्णय न थयो अने बोमे ते कांतो फुःखगनित त्याग . अने कांतो मोहगर्मित त्याग . पण झान गनित त्याग नथी, ज्ञानगर्जित त्याग तो एम डे के, स्वपर विनाग व्हेंची परवस्तु परपणे जाणी पोताना आत्माना विषे नास्तिनावे रही ले तेनो हुं स्वामी नथी. जे माझंडे ते मारी पासे डे. मारा स्वरुपमां तो कोश वस्तु त्यागवा योग्य नथी. तेम मारा आत्माथी जे अन्य ६ वस्तु . तेमांथी मारे कोई वस्तु ग्रहवा योग्य पण नथी. " हे कयुं वे समाधिशतके:- . Marwaro MAHARAN GRAGrdaare saare - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GAR GIRRORRORS श्री धर्म प्रवर्तन सार, १ ग्रहण अयोग्य ग्रदै नही ।। ग्रह्यो न हो जेह ॥ १ जाने सर्व स्वजावने ॥ स्वपर प्रकाशक तेह ॥१॥ त्याग ग्रहण बाहिर करे ॥ मूढ कुशळ अंतरंग ॥ वाहिर अंतर सिद्धकू ॥ नहीं त्याग औरसंग॥४६॥ . एम जाणीने पोतानी वस्तुए संतोषी थया तेमने निश्चयथी त्याग कहीए. वली तेमनेज निग्रंथ कहीए. अहै कर्म कहेता कर्मशब्दनो अर्थ क्रिया . ते अकार शब्दे 3 बाह्य नावे नहीं करवी तेने अकर्म कहीए. एटले विरोध है नही करवो. उद्धेग नही करवो इच्छा वांच्या मोहवशे १ थाय ते नही करवी मननी चपळ वृत्तिए दूर्ध्याननो ध्याता थाय ते नही कर, अहं ममत्व नही करवो एम नही करवानुं कडं तेज कर्म उच्यते कहेतां तेने निग्रंथ पदनी वली संवरनावनी अने मोक्ष पंथनी अनुकुळ हेतु शुद्ध प्रवृत्तिरूप क्रिया कहीए एटले निग्रंथ पदनी बाह्य नावमां अकरवापणे करणी . एम उच्यते कहतां श्रा- १ १ मझानी महात्मा पुरुषो कहे डे' (१) वली कछु , बाह्यवृत्तिये गुणगणे चढवं, तेतो जमना लामा॥ १ संयम श्रेणि शिखर चढावे, अंतरंग परिणामारे॥ लोगा नाळविया मत लुलो ६ वळी परमानंद पञ्चीसीए,-- Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ISRO AGRAMMIGRAMGARGIMS श्री धर्म प्रवर्तन सार. श्लोक. उत्तम आत्म चिंता च, मोद चिंता च मध्यमा ॥ अधम काम चिंताय; परचिंताऽधमाधमा ॥१॥ अर्थ-उत्तम आत्म चिंताच. कहेतां जे आत्मस्वरु5 पनी चिंता एटले चितवणा करवी. गवेषणा करवी, ते चिंतवणा बाह्यवृत्तिमा नथी त्यारे क्या . तो अंतरवृत्तिए & तिहां पण मनयोगस्थिरता पामे त्यारे चिंतवणा शक्ति । आवे, एम करता करतां अन्यासे करीने, मन स्थिर थाय 6 अने क्षय उपशम नावनी सहाय मले तो तद्गत स्वरुपे । ज्ञानज्योति उद्योत प्रकाश अनुन्नव जुवने करे ए अनुन्नव जुवन केQ . तो, सामो नित प्रमुख आमो पमदो नथी १ घणो मोटो सपाट बगीचो एवो खुल्लो आकाश, जेम सूर्यना तेजे करी प्रकाशित होय ए द्रष्टांते अंतरगत अनुनव जुवनमां ज्ञानज्योतिए प्रकाशित, अति उद्योत कर्ता एवं अनुन्नव जूवन डे तिहां चिंतवणा अनुन्नव बळे अपूर्व १ प्रगटे एटले ध्यानगत नेदाने, एक पढ़ी बीजो एम वि. चाररूप अनुनव धारा तत्वनो निर्णय करवारुप, परिपाटि १ चाले तेमां पृच्छा करवानी तर्क पण करवी रहे नही. एम अशंकित निरधार वस्तुने विषे वस्तुपणानो करवानुं एज एक अनुन्नव जुवन डे वळी अनुन्नवनी धोम केवी डे के £ जेम रेलवेनी धोम डे तेम अनुन्नवनी एटले तत्वनी ग-१ वेषणानी धोम ; अरुपि आत्माने दृष्टिगोचर करवानुं , हे एक एही अपूर्व स्थान बे. ए अनुन्नवना नावने जाण CIRe@EOOPERMIREONOMINovBOUS Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धर्म प्रवर्तन सार. nsensornar १ वाना अर्थे श्हां त्रण सवैया लखीए बीए तेथी हे तत्वबोधना अर्थि नाश्यो तमे अनुन्नवनो खप करजो... .. सवैया एकतीसा मनसो अचळ रहे ज्ञान ध्यान तदे तदे. रहे स्थिर थश्ने अनुन्नव सो रंग है पांचु इंजीथी चळे चेतना इहां न मळे मळे अनुजव स्थळे सही सहज नाव है। अनुलवे अति घणुं धारणा सो एक अj अनुनय गये गणुं अंतद करण दै लाव्यो पागे आवे नही आवे मनस्थिर तही रहे न उपाधि महीं शिव खुलो खेत है (१) अनंत गुणोमां आगु ज्ञानने दर्शन जागुं अनुनव थाय लागु स्वरूप रमण है तिदण धारा न टूटे मोदनो खजानो खुटे शुनाशुल बंध बूटे सो अशुद्धवान है शुको स्थापन सही देखे परत्यक्ष अदी मन जोग स्थिर तदी खुल्लो खेल तान है असंकित वात एदी गति रेखवेल तेही. थोभाव्यो सो थोने सही अंत: सो स्थिर है(२) 6 सहज स्वनावे आवे जडतासें खसी जावे। अनेक चदु मिलावे एसो घटंतर है NRAHMAN MAgarat MRAGAR BARABARABARAGRAGIRAGIRAGRAPress Angruopro Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Pehacha.COM sardar GARAMETERIORAGreAGrag आतम ग्यान ध्यान सो आतम धर्मवान परम पद सांन सो देख्यो अनुभव है सित गया आणे छे अमृत नद नाणे अनुजवी सो जाणे जे एन आवे वचन है वंदना हमारी सदा रीकसु आवसो जदा ज्ञान शीतळ तदा मित्र प्रमोदित है (३) __ एम आत्म चिंता एटले श्रात्मस्वरुपनी चिंतवणा करवी, वस्तुगते वस्तुपणानो निरधार करवो ते अनुन्नव गम्य अने अनुलवनी जेने प्राप्ती थइ ते उत्तम कहेतां . पुरुषोत्तम के मोहचिंताच, कहेतां जे पुरुषे, सप्रविनाग वहेंची आत्मस्वरूपचिंतवी, अनुनवीने ग्रंथिन्नेदपूर्वक समकित प्रगट कर्यु , यथार्थ श्रद्धा करी बे, वस्तुने विषे वस्तुपणानो निरधार थयो , वळी संसारने असार जाणी, बोमीने, अणगार थया ले ते उतां पोतानुं वीर्य तद्गत सहज नावमा वृद्धिए स्फूर्णा न पामे; अने परनवे देवलोकादि ऋद्धिनुं पाम, इत्यादि मनोज्ञ नोगनी इच्छा मोहीत थका करे, तेवा पुरुषने मध्यम कहीए; अधम काम चिंताच, कहेतां उपर कयु ए प्रमाणे समकित मूळ सर्व विरति थया , ते उतां कर्मनी विचित्र गति डे, अने उदय महा बळवान , तेथी करीने, कंदर्पने एटल काम चिन्हने उपशम करवानी बुद्धिए, आकरी तपस्या करता है उतां पण न शम्यो अने व्याकुळतानो परानव कीण न थयो ६ sasroGENERACTION RERAGranorandiGRGGordGGrena VASUVIEve Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धर्म प्रवर्तन सार. एम करतां कारण पण उदय पूर्वक तेवूज मली आव्युं तेथी करीने लिंगथी ब्रष्ट थया अने स्त्री संगे विषयत्नोग करे, पण समकितनी, छाननी, यथार्थ साबिती ने, गुमाव्यु नथी ६ ते पुरुषने अधम कहीए, कारण के जो ए वेद अग्नि, कर्म क्षीण होवाथी; शांत थाय तो पाळपुनरपि एज नवे संयम है ग्रहण करीने, निरतिचार चारित्र पाळी, तद्गतनावे, वीर्यनी स्फूरणा पामे तो यावत् सिद्धि पण वरे; नहि तो जे गतिनुं आयुष्य बांधे ते गतिमांजाय, पण ए अंते मोक्ष-6 गामी डे, माटे अधमाधम न कह्यो. परचिंता कहेतां पर जे 3 तन, धनादि तेना बे नेद, एक अशुन्न अने बीजी शुन्न है एटले वस्तुगते आत्मा जुदो अने तन, धनादि जुहूँ , तेने जुदं न जाणे अने कायाने जीव समजे, वळी सजन कुंटुंबादि राजऋद्धिने पोतानी समजे, तेना वास्ते पापस्थान सेवे अने परिग्रहने निधान माने. आर्त, रोऽध्याननो ध्याता, वस्तुना स्वरूपनो अजाण, तत्वथी विमुख, रात्रीलोजननो कर्त्ता इत्यादि अशन्न चिंतानो कर्त्ता, ए पहलो Gener@nareneG SearGreGrammarAGARGramBAGROGRGarg नेद कह्यो. १ हवे बीजो शुन्न चिंता, तेना बे नेद, आरोप शुन, अने अणारोप शुन्न, अणारोप शुन तो, सम्यक्ज्ञानीना घेर संनवे, ते शहां न लाधे हवे आरोप शुनना बे नेद @ एक सामान्य, बीजो विशेष सामान्य आरोपित शुन्न तो १ 5 ए के गुरुमहाराजने वांदे वळी सामान्य प्रकारे विनय हे साचवे, जीनबिंबनां दर्शन करे, तीर्थयात्रा करे दिन दुःखी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ની ધર્મ પ્રવર્તન સાર, FREAMBLRAMPERIONERGre sirag , यांनी अनुकंपा करे इत्यादि ए सामान्य आरोपीत शुननो प्रथम नेद कह्यो. हवे विशेष आरोपित शुन्न तो एबे के ॐ दुःखगर्जित मोहगनित वैराग्य पामीने, संसार त्याग करी, ( ६ निर्मथथाय, पंचमहाव्रत आदे,चरणसित्तरीअने पोहण श्रादे करणसित्तरीनो ग्राहक थाय, शक्ति पूर्वक तप करे, पोताना ई क्षय उपशम पूर्वक नणे, गुरुवादिक वझेरानो विनय वैया& वच्च करे, पुन्यने नयु जाणे, परंतु जीहां सुधी पोताना आत्माने कायाथी जुदो जाएयो, (अनुन्नव्यो) नथी तिहां सुधी ए शुन्नाशुन्न चिंतानो कर्त्ता जम जीव . तेने परचिंता कहिए. धमाधमा कहेतां एम परचिंतानो कर्त्ता ते जीवने अधममां अधम कहीए. कारण के जगवतीजीना पहला शतकना बीजा उद्देशे, नवमा ग्रैवेयकना ग्राहक सर्व विरति साधुने वीर परमात्माए, वळी गणधर महाराजे अर संयति कहीने बोलाव्या , वळी तीहां सुधी जवानी र योग्यता तो मिथ्यात्वी नवी अने अन्नवी बेहुमां पण कही बे, वळी परने पोतानुं मानवू एज अज्ञान, अने एज मिथ्यात्व , वळी संथारा पोरसिमां पण कयु :3 संयोग मूला जीवेण, पत्ता दुःख परंपरा, ६ ॐ तम्हा संयोग संबंधं, सव्वं तिविहेण वोसिरियं ॥१३॥ है अर्थः-संयोग कहेता पूर्वकृत कर्मयोगे अने उदय संजोगे जे वस्तु प्राप्त थइ ते वस्तु जीवने पर बे, तेने विषे एकांते ६ पोतापणानी बुद्धि एज दुःखनी परंपरा पामवानुं मूळ कारण PetroPronomist apoorwareGramGOS.COMore Gror@GGREGNAGGAGrd १3 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राधा 1२. MOGARAMBHOGORABLEMS PRASAGre GRAMMADLINE WORLD बे. हा! हा! इति खेदे चेतन थश्ने अचेतननी बुद्धि राखे डे, माटे आ श्लोकमां परचिंताना कर्त्ताने अधममां अधम १ L) कह्या, ते यथास्थित . अध्यात्म सार ग्रंथे, श्लोक या निश्चे कलीनानां, क्रियानाति प्रयोजना ॥ व्यवहार दशा स्थानानां, ता एवाति गुणावदा॥१९॥ , g अर्थः-जे मुनीश्वरनुं मन निश्चय पोताना स्वरूपमा १ लिन थयुं अने स्वरूप ओळखाण करी तेमांज रमेले तेवा । ट्र मुनीश्वरने बाह्य व्यवहार प्रमुख क्रिया करवानुं कं प्रयोजन नथी. जेने मोदनी अन्निलाषा डे तेने क्रियानी कां जरुर नथी अने जे ज्ञानदशा पाम्या नथी तेने व्यवहार क्रियानो खप जे. केमके ते थकी शुन्न कर्म उपार्जे. है पण मुक्ति हेतु न थाय. ( १७ ) आवश्यकादि रागेण, वात्सल्यानगवजिरा॥ प्राप्नोति स्वर्ग सौख्यानि न याति परमं पदं ॥४॥ 9 अर्थः-आवश्यकादि रागेण कहेता प्रतिक्रमण प्रमुख क्रियाने विषे अथवा उपवासादि तपने विषे राग . वली , जिनवाणी सनिलवानो राग डे एटले परमात्मा नाषित अथवा परमात्माना मार्ग अनुसारी एटले सूत्र सिद्धांत ग्रंथ प्रकरणादि सांनळवानो राग डे ते सर्वने शुनराग कहीए तें थकी स्वर्गनां सुख पामे पण तेथी परमं पदं (८८). Organgragenge GOOOOKS Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mean................ .........................." १ कहेतां परमनाम उत्कृष्ट पद जे आत्माने कर्मथी मुकाएं तेने मुक्ति पद कहीए. ते न याति कहेतां न पामे. शहां है ७) कहेवानो सार एटलो में जे बाह्य क्रिया जोगे संसार अने अंतर क्रिया जोग मोक्ष ए वात निःसंदेह बे, हवे जेथी है मोद सुख मले ते कहे . (४) . ज्ञान योगस्तपः शुक्ष्मात्मरत्येक लक्षणं इंडियार्थोन्मनीनावासमोद सुख साधकः॥ अर्थः-ज्ञान आत्मा ज्ञान योग धारण करे बे, ते के ज्ञान योगना वे नेद एक नेदज्ञानयोग अने बीजो अन्नेद ज्ञानयोग तेमां पहेलो नेद ज्ञानयोग . तेना बे नेद एक कृत्रिम अने बीजो अकृत्रिम. तेमां कृत्रिम नेददान ते चोथा गुणगणाथी सातमा गुणगणा सुधी अंतरमा अनुनव . ते कृत्रिम जाणवो परंतु क्षयोपशम नावनो . ते उडाळा खातो रहे . एटले परसंगथी बुटी १ शकतो नथी. परंतु तत्वातत्खनो विचार करे, वळी अव्य गुण पर्यायनो विचार करे, आत्माना त्रण नेद चिंतवे, बहिरात्मा, अंतर आत्मा अने परमात्मा अथवा नय- १ निक्षेपपद प्रमाण विचारे. इत्यादि स्वरूपे कृत्रिम अनुनव | ए पहेलो नेद, ते कह्यो. हवे बीजोत्नेद अकृत्रिम नेदशाननो ते आठमा गुणगणाथी श्रेणिगते आवे. शहां उबाळानो ॐ संनव नथी वळी प्रसंग वृत्ति नथी, ज्ञान तो क्षयउपशम नावमुंडे, परंतु अतिविशुद्धि नावने पामेडं घणुं निर्मळ (८८) PRACTIN G rowse DROSCOPEDY ORGAONORIGORIGIONAGIRIGAR CARRBoore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ROMOREGALS FRIENBARAGRATARRASSAGARAGang बे, उपयोग तिक्ष्ण बे, शहां एक पोताना अव्यनो विचार ६ नेद अपेक्षाए बे, परपक्षनो ग्राहक नथी, पोतानुं मुख स्वरूप प्रत्यक्ष रीते, स्यादादपदनी ऐक्यतापणे स्वन्नाव वृत्तिए अनुन्नवे , ते अकृत्रिम नेद ज्ञान योग साधननो ॐ बीजो नेद ते कह्यो, शहां समजुनो तर्क थशे जे, केवळ झाननो अनुलव ते अकृत्रिम डे, बाकीनो अनुन्नव ते & कृतिम कहेवाय. कारण के अनुक्रमे अनुन्नव थाय तेनो उत्तर. जे केवळझान ले ते दायक नावनुं निरावरण, आव 6 रण रहित बे.ते सर्वथी अकृत्रिम अनुनब करे, अने श्रेणिगते ॐ नेदझान डे ते कृत्रिम कयुं, परंतु देशथी अकृत्रिम , कारण के चेतन पोताना स्वन्नावे थयो त्यांशाननो अरूपी विषय डे, वळी सहजन्नावे पर्याय धर्मनी शुद्ध प्रवृत्ति बे, ते पुरूषने अशुनोदय जोगे कदाच कोई घाणीमां घालीने पीले, अथवा खाल उतारे, अथवा माथे अग्नि सींचे, इत्यादि घणुं कष्ट करे, यावत् प्राण रहित करे तोपण पोताना स्व१ रूपथी चूके नहि. अने जे दुःख वेदे नहि तेनो अनुनय ते अकृत्रिम जाणवो. ए नेदशान साधनयोगनो वीजी नेद ते कह्यो. हवे अन्नेद ज्ञानयोग ते दशमा गुणगणाना अंते एटले गोमतां बारमा गुणगणे आवे, तेमां अन्नदे पद चिंतवे, ते गुणपर्यायमय आत्मा, एटले ज्ञानादि गुण आत्मा थकी जुदा नथी, एकत्व , शहां नेदनो बेद थयो, असत्य कल्पना टळी शान, दर्शन, चारित्र तेहीज आत्मा, एटले कंचननु नारेपणुं,पिळाशपणुं,चिकाशपणुं ते कांश कंच. (१००) Doosreasons MAHIMA RAGRAGOLGAGAR GAR DeOROM Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GeordxGrenoNGARGAMAGRIGre Are Greere SRAre arera Gangs, શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સારી नथी जुदुं नथी जुदुं कहीए ते कल्पना कहेवाय, तेमथात्मा अने थाल्माना गुणपर्याय ते कंश जुदा नथी, एटले निन्न नथी, १ अन्निन्न शहां मोहनुं तथा अशुद्ध परिणति, जे रागद्वेष तेनुं उन्मूलन दशमा गुणगणा अंते थयुं, अने वितरागनावे बारमा गुणस्थाने यथाख्यात चारित्र, शुद्ध परिणति प्रगटयु, वली झानावर्णि, दर्शनावर्णि, अने अंतराय एत्रण कर्मनो वीतरागनावे बारमा गुणगणा अंते क्षय थयो. त्यां केवळझान, केवळदर्शन प्रगटयु, ए श्रन्नेदज्ञान योग साधन ते कह्यो, ए रीते नेदज्ञान, तथा अन्नेदज्ञानयोगे आत्दाने स्वरूप रमण करवू, गुणवृतिए कर्त्ता नोक्ता पोतानो श्रात्मा अने परतावनुं त्यागपणुंडे. तेने श्रात्मयोग कहीए. एटले शहां बाह्यथी लोचवू, मुंगवं, वेष धारण करवू इत्यादिकने योग कहेवाय नहि, ए तो बाह्ययोगळे. पण मुक्तिमार्ग साधवानो तो था एक अंतर्गत ज्ञानयोग बे, ते ज्ञानयोगने शुद्ध तप कहिए, एटले सर्व कर्मनो ना१ शकर्ता एक ज्ञान ले. कडुं ने योगशास्त्रे, श्लोक प्रणिहंति क्षणार्धेन, साम्पमालंब्य कर्मतत् ॥ . यन्नहन्यान्नरस्तीव्र, तपसा जन्मकोटिनिः॥५१॥ तथा ज्ञानार्णवेःहै, यजन्म कोटिभिः पापं जयत्यज्ञस्तपोबवात् । तविज्ञानी क्षणार्दैन ददत्यतुल विक्रमः ॥ १७ ॥ BoosexsuN Granoranarendramod Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PornerBrost HAIRMIRGODABADODARGAR श्री धर्म प्रवर्तन सार. वळी श्रीपालना रासमां चोथा खंमेः ॥देशनानी ढ...॥ शक्षण अर्धे जे अघटले, ते न टळे नवनी कोमीरे॥ तपस्या करतां अति घणी, नहीं ज्ञानतणीने जोमीरे॥ १ नहीं झानतणीने जोमी संवेग गुण पालिये पुण्य वंतरे ॥ ३७॥ अर्थः-क्षण अर्धे जे अघ टले, कहेतां आत्मज्ञानयोगे अर्धी क्षणमां एटले आंख मीचीने उघामीए तेने क्षण 3 कहीए, तेना अर्धा नागमा अघ टले एटले पाप कर्म टले, तेटलां पाप कोमि नवो सुधी अति घणी एटले उत्कृष्टि तपस्या करतां पण न टले, ते उत्कृष्टि तपस्या कोने कहीए, के प्रथम तीर्थकरना वारे वार मासि तप ते उत्कृष्टो १ कहेवाय ने बाविस जिनना वारे आम्मासि तप ते उत्कृष्टो ६ कहेवाय अने वीर स्वामीना बेला तीर्थे उ मासि तप ते उत्कृष्टो कहेवाय, ए प्रमाणे तपस्या करतां नव पुरो करे. एटले जे काळे जेटबुं आयुष्य होय, तेटयु उपर कडं ते प्रमाणे, बाल वय टाळीने तपस्या जोगे पुरुं करे. एम ६ क्रोम नवो सुधी नवोनव तप करे, तोपण ज्ञानी पुरुषने ) ज्ञानयोगे अर्धी क्षणमां पाप कर्म टले, तेटलां पाप क्रोम है नवो सुधी उत्कृष्टि तपस्या करतां पण न टळे ते पापना बे नेद, एक घाती पाप अने बीजु अघाति पाप, तेमां है घाती चउकर्मनी (४५) प्रकृति ने अने अघाती चउक ( १०२ ) - HTRAGROGRAORAGGARAGRA Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Break १ मनी अशुन (३७) प्रकृति हे. ए घाती कर्म अघाती बेहुनी मलीने (७२) पाप प्रकृति थ तेमां जे घाती कमनी(४५)प्रकृति कही ते तो एक आत्मज्ञान अने बीजु श्रामध्यानयोगे निश्चय खपे ए कर्म प्रकृति आत्मप्रदेशथी श्रात्म ज्ञाने बेदाय. वळी अघाती कर्मनी(३७)प्रकृति कह। ते आत्मज्ञान अने आत्मध्यानयोगे खपती नथी कारण के अघाती कर्मप्रकृति उत्कृष्ट रस जे बांधेली होय ते बहुधा नोगववी पमे ले तेमां जे व्यापकपणे नोगवे तेने पानी & पुनरपि बंधाय अने ज्ञानध्यानगत व्यापक थर उदय श्रव्यापकपणे नोगवे तेने निर्जरा थाय पण बंधाय नहि. 3 माटे कर्मनो नाश करवो अने मुक्तिनां सुख सेवां ते तो एक ज्ञानयोगे मळे ते माटे कयु के, नहि ज्ञानतणी छे ? जोमीरे, एटले ज्ञान गुणनो बरोबरीयो, तप प्रमुख कोश गुण निर्जरा हेतु नथी, एम सर्व पंमितोनी बोली बे, माटे हूँ ज्ञानयोगने शुद्ध तप जाणवो.. वळी मात्मरत्येक लक्षणं, कहेतां आत्माने रति एटले १ परमानंद पामवानुं एक ज्ञान एहिज लक्षण जे. एटले आत्माने ज्ञानयोगे आनंद प्रवर्ते जे. इज्यिार्थोन्मनीलावा, १ कहेतां ए ज्ञानयोगी मुनीश्वर जे ते केवा ने तो, आ नव ६ आश्री, वळी परनव आश्री कोइ प्रकारे इंडियजनित ११ विषय सुखना तो अर्थी नथी, वळी या नवमां यशकीर्तिना 0 बळी बहु मान पामवाना, पुजावाना, मनावाना, तो अर्थी ) ६ नथी. वळी बहुश्रुतपणानो, तपनो, व्रतनो मद नथी, पांच ६ (१०३) ProGOOOKGRORAGERSorangeenear MPERI Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FRe GreamRASAREERAGmal Gram १ इंजिना लोग सुखमां रमे नहि, एटले पांच इंजिना तेवीस , ६ विषयथी श्रणश्च्छाए प्रवर्ते , कपट रहित सरळ वृत्ति १ . वळी परनव देवगति पामुं, था, अथवा इंजनो सामानिक थालं, अथवा चक्रवर्ति, वासुदेव, बलदेव थालं, राजा था, शेठ शाहुकारनी पदवी पामुं , अथवा पुत्र, कलत्र धनादि पामुं, एवो नाव मनमां, ज्ञानयोगी सर्वथा न राखे. वळी श्रावमा गुणगणेथी जीननाम कर्म बांधुं, एम पण ज्ञानयोगी चिंतवे नहिए पद चोथा गणाथी सातमा गुणस्थानक सुधी बंधाय ने अने आपमे गुणगणे तो जीन नाम कर्मनो बंधविच्छे डे. वळी स्वार्थ सिद्ध विमानना देवतुं सुख पण ज्ञानयोगी इच्छे नहि अने पुन्यने नटुं जाणे नहि, ते मोक्ष सुखसाधक कहेतां ते ज्ञानयोगीश्वर र मोक्षनां अव्याबाध सुखनो साधक थाय. (५) ज्ञानसार ग्रंथे, ज्ञानाष्टके: श्लोक. निर्वाण पदमप्येकं नाव्यते यन्मुहुर्मुहुः । तदेवशान मुत्कृष्टं निबंधो नास्ति नूयसा ॥२॥ अर्थः-निर्वाण पद कहेतां जे पदने विषे जन्म मरण नथी, वळी श्राधि व्याधि नथी, क्लेश, संताप, आपदा ६ नथी एवं एक मोक्षपद एटले कर्मनो नाश करवाथी, संपादन करेलुं निज स्वरूप अवस्थान रूप जे पदने निhण पद कहीए. मप्येकं कहेता ए निज स्वरूपने विषे ६ NAGGARGORAGARGIRGAOGIRare SORGre Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Gorasairannel G BAMMAGARASIRSAGAR 1 શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. उपयोग दृष्टि स्थापी डे जेणे वळी यन्मुहुर्मुहु कहेतां वा६ वार " नाव्यते कहेतां” निज स्वरूपने विषे, तन्मय १ एकत्वपणे, अन्नेद स्वरूपे परिणाम पामवा पूर्वक उपयोगे अनुनवे ले. तदेव ज्ञान कहेतां तेहीज ज्ञान, मुत्कृष्टं कहेतां उत्कृष्टामा उत्कृष्टुं निज स्वरूप अवस्थान रूप निर्वाण पद पामवाने कारण जाणवू. पण बीजो निबंधो कहेतां हां आवश्यकादि क्रियानो वा उपवासादि तपनो, वा लोचादि कष्टनो, वा पूजा प्रनावनानो, वा तीर्थ यात्रानो इत्यादि कारणनो श्राग्रह एटले करवापणानो, निज स्वरूप प्रगट एटले व्यक्ति नावे करवाने अर्थे, जूयसा कहेतां घणुंज, नास्ति कहेतां ए कारणोनुं शहां ज्ञानयोगीश्वर महा मुनिने कंश प्रयोजन नथी, एक ज्ञानयोगे दा. यक नावनी लब्धि पामीने निर्वाण पद पामे. शहां को कहेशे के तमे पण आगळ दश प्रकारनो कल्प व्यवहार प्ररूप्यो तेमां श्रावश्यकादि क्रिया ते महा मुनीनी करणी निर्वाण पद अर्थे कही बे. अने तमे शहां केम ना पामो । बो, तेनो उत्तर त्रीजा श्लोकथी करीए बीए. स्वन्नाव सान संस्कार कारणं ज्ञान मिष्यते ॥ ध्यांध्य मात्र मतस्त्वन्यत्तथा चोक्तं महात्मना ॥३॥ अर्थः-स्वन्नाव लान कहेतां आत्माना स्वनावमां झान, दर्शन, चारित्र, वीर्यादि अनंता गुण जे अने एक एक गुणना अनंता पर्याय बे, वळी गुण गुण प्रत्ये निन्न एटले हे जुदो जुदो स्वन्नाव श्रआत्मामा रह्यो . ते ज्ञाननो जाणवा १ (१०५) GrandmaraGRAGONR. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PROGeneral@ Greena RANGAMRODAMISROGRAMSARSONG FreGRAGRORA ORAGRAGirls श्री धर्म प्रवर्तन सार. १ रूप, दर्शननो देखवा रूप, चारित्रनो स्थिरता रूप, वीर्य६ नो स्फुरणा शक्तिए एम अनंता गुण निन्न व्यक्तिरूप पिंग- १ पणे श्रात्माने विषे अनादि संबंधे, शक्ति नावे अव्यक्ति रूप निर्लेप रह्या बे. एटले शक्ति नावने आवरण लागे , & नहि. तेम शक्ति नावथी आत्मानुं कार्य पण सरे नहि, है यथा दृष्टांते, जेम काष्टमां शक्ति नावे अग्नि रही बे, ते अग्नि केवी डे के जाज्वल्यमान, दाहक स्वनावमां बे, परंतु ते काटने श्रापणे बाथ नीमीए तेथी ते का-6 टमा रहेली अग्नि श्रापणी टाढने टाळवा शक्तिमान में स्थाय ? अर्थात् न थाय, तेम आत्माने विषे शक्ति नावे धर्म रहेलो चतुर्गति ब्रमण टालवा अर्थे । उन थाय, परंतु काष्टमा रहेली अग्नि प्रगट व्यक्तिनावे क रीए तो टाढनो उपनव तरतज़ टळे, तेम शक्तिनावे आर स्माने विषे झानादि गुण अव्यावाधादि पर्याय रहेला ते झाने जाणी वीर्य फोरवीने, प्रगट करीए तो चतुर्गतिनुं ब्रमण, जन्म, जरा मरणनां फुःख ते सर्वे टळी जाय, एम जाणवू. ते आत्माना गुण पर्यायनी व्यक्तिनुं थर्बु तेने स्वजाव लान कहीए अने संस्कार एटले निज स्वन्नावे धर्म रहेलो तेने साध्यमां, एटले स्मरण चितवन करवामां अ१) नुन्नववामां, लय पामवामां जे कारण एटले हेतु तेज, , ष्य ते कहेतां ज्ञान कहेवाय , यतः कहेतां ए ज्ञान सिवाय बीजु नणेवु, नणावy, करवं, कराववं, ते सर्वे नि- ६ मित्त कारणमां , उपादान कारणनी प्राप्तिवाळाने एटखे (१०६) HAMROGxiD0sal OLEDEEMBIENDret B Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FRAGMTAGRAMMAR SAMRAGRAGAR १ जे पुरुषे यथा प्रवृत्ति आदे त्रण करण करी, कर्म स्थिति ६ घटामी, ग्रंथि नेद करी समकित प्रगट कर्यु बे, वळी वम्यु, १ नथी, एटले चोथा समकित गुणगणानी साबिती बे, तेने | ६ उपादान कारणनी योग्यता होय ए उपादान कारणने कार्य- १ पणे प्रवर्त्तावतां एटले उपयोगे नणवं, अथवा आवश्यकादि क्रिया आदे कर, ते सर्वे व्यवहारना न्याये, देश विरति १ पांचमा अने सर्व विरति उठा ए बे गुणगणे श्रावस्यकादि | क्रिया, साध्य, साधन सापेक्षपणे परंपर कारणमां . माटे १ अमे तीहांज कल्पने निमित्त कारणमां गवेष्यो बे. ते उपा६ दान कारणवालाने व्यवहारना न्याये, साध्य सापेक्ष यो- 8 ग्यताए परंपर कारणमां समजवो अने उपादान कारणनी प्राप्तिना अन्नावे करवं, करावq सर्वे अकारणमा मात्र बुद्धिने अंध करनारूं जे. एम केवळ शब्द रणकार मात्र निहे फळ बे. अने नणवं, नणावq करवं, करावq तेनी सीमा ६ सातमा गुणगणेथी अटकी उपरांत नथी एटले सातमा गुणगणा सुधी सालंबन वृत्ति . तेमां पण ग्रंथि नेद अवसरे तो निरालंबन डे अने सातमा गुणगणा उपर तो आठमा गुणगणाथी केवळ निरालंबनपणुं ने तीहांथी दसमा गुणगणा सुधी नेदज्ञान अने नेदानेद ज्ञान ध्यानगत् बे. उपरांत अनेदज्ञान- साधन डे अने तेरमे गुणगणे अन्नेदशान जे केवळझान, केवळदर्शन आदे दायक लब्धिनी. ई पूर्ण प्राप्ति जे. एम महात्मा पुरुषो कहे जे. (३) (१०५) HEALCERareMBOMBREMONOM SAGGIRGAOBADRASIBSE FacA Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ namarkoreangregaon RAMGARGGIRRORAGAGranam श्री धर्म प्रवर्तन सार. ___ सबैया एकतीसा. ज्ञान अनुभव गर्यो, सहज स्वरूप वर्यो चिदानंद गुणागरो राग रस तज्यो है निरालंबसाऊ नांदी. मरणादि जय नांदी देहातित रूपातित यथाख्यात ग्रह्यो है एदी शुद्ध धर्मधारी मोहादि विनाशकारी महामुनी वीतराग तेरमामां गयो है अनंत चतुष्टिमां दायक दान लानने लोगोपनोग वीरीअ, अनंत स्फुरि रह्यो दै अर्थः-ज्ञान कहेतां साकार उपयोगे जीव अजीवादि 3 वस्तुनुं विनाग व्हेंचण करवारूप जाणपणुं तेने ज्ञान कहीए. अनुन्नव जयों कहेतां विनाग व्हेंचणतो ज्ञानथी 3 प्रथम थप गइ ले कही. एटले पोतानो आत्मा मन वचन है श्रने काया ए त्रण योगथी जुदो ने एम सद्दहणा करवा पूर्वक ज्ञानयोगे श्रद्धा करी जे. वली केवो डे सिद्धनो साधर्मि, सिद्धनो बरोबरी एम गुणने उळखी चेतनने ? विषे चेतनपणानी बुद्धि थर ले. अने अचेतनने विषे चेतट्र नपणानी बुद्धि हती ते टळी जे. तीहां गुणरागीपणे प्रशस्त १ राग कहीए. ते रागनो प्रेयों थको, अंतःकरणे उमो उतरे | तिहां मनन जुवने पोताना आत्माने विष परमात्मपदनुं ७ श्रारोपण करीने स्मरण चितवन करे. एम करता करता है अयासे करीने मनयोगे चेतन गुणमां रमण करे. त्यारे 3 _ (१०८) HTRAroraGRAaramaraGhareGroGre PreeMODE Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GRAMMERSARA REPORTERGROREARoreGRORS Edowध प्रवर्तन भार.. बाह्यरमण मनयोगने अवखन लागे अने निजखरूप ६ रमण वन लागे. तिहां मनयोग स्थंनी जाय त्यारे स्वरूप १ अनुन्नव ज्ञान प्रगटे हवे मनयोग ज्ञानरूप खीले बंधाणो एटले अनुन्नव वृद्धि पामतां, पोतीकुं मूळ स्वरूप उपयोगगोचर प्रत्यक्ष प्रमाणे करतळवत करे. त्यां सहज स्वरूप कहेता. पोतानुं सहजनावे स्वरूप ले. तेने वयों कहेतां पोते पाम्यो. ए सहज स्वरूप कवू डे तो चिद् कहेतां ज्ञान ते आनंद कहेतां आनंदोपत बे. तेम आत्माना अनंता गुण : डे ते सर्वे गुणो आनंदोपेत . एटले गुण गुण प्रत्ये जिन्न व्यक्ति ने अने व्यक्तिने विषे गुण गुणनो आनंद जुदो जुदो जे. एम जाणवू एटले पोतीका आत्माने विषे अनंतनेदे आनंदनी प्रगटतानुं एटले क्षय उपशम लावनी लब्धिमुं सुख अनुन्नव अवसरे आत्मा अनुन्नवे एटले 3 श्रेणिगते आस्वादे ले. एवं पोताना आत्मानुं सहज स्वरूप तेने पोते पाम्यो. गुणागरो कहेतां पाम्यो ते आत्मानुं सहज स्वरूप झानादि अनंता गुणनी खाण राग कहेतां राग अने तेनो प्रतिपक्षी जे द्वेष. तेने अशुद्ध परिणति १ कहीए ते आत्माने विषे अनादि संबंधे . रस कहेतां ३ ६ ते रागद्वेषरूप रस आत्माने विषे परिणतिए परिणमी जाय. ते अशुद्ध परिणतिने तज्यो है कहेतां अनुन्नव बळे पोतीकुं सहज स्वरूप पामतां ज्ञाननी, वीर्यनी ॐ ऐक्यताये नेद वेद रूपे तज्यो. वली तेनी साथे मोहप वी, उन्मूलन कर्यु ए संसारमा उत्पन्न थवानुं एटले Presesexesexsi MARAdardaran (१०८) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धर्म प्रवर्तन सा२. जन्म मरण करवानुं बीज बळ्युं, तद्नवे मुक्ति पामवी ६ एम निर्नय थयु. निरालंब कहेतां हां श्रेणि गते मन वचन अने काया आदे कोश् अचेतन पक्षनुं अवलंबन आठमा गुण गणाथी नथी. साम नांदी कहेतां श्रेणि गते कदाच मरणांत उपसर्ग उदयिकता योगे श्रावे तोपण श्रव्यापकपणे दुःख विपाक नही वेदतां कायायोगे सहन करवा सामर्थ्य . वली कायाना पुःख सुखनो विनागी श्रेणि गते चेतन नथी. मरणादि नय नांही कहेतां मरण श्रादे संसारमा नव जमतां सदा सर्वदा अनेक नयनी। र जीवने निती एटले बीकडे ते कायामां चेतना इंघिय द्वारे परिणाम पामी . तीहां सुधी जाणवी परंतु श्रेणि गते चेतन अनंत वीर्यनो धणी . ते वीर्यनी स्फूरणायोगे पोतीकी चेतनाने कायाथी पलटावी पोतीका स्वरूपे अंतःकरणे अनुन्नव नूवने परिणमावी . तीहां नयनो असंनव जाणवो. देहातित रूपातित कहेतां देह एटले काया अने रूप एटले वर्ण अथवा मूर्तिपणुं इत्यादि जम जाति तेने अचेतन कहीए. तेथी अतित एटले रहित एवं यात्म जनित यथाख्यात कहेतां क्षायक नावनुं पांचमुंह चारित्र अरूपी,अमूर्ति,अचळ, अविनाशी एवं सादि,अनंत नांगो लागे जेने ते, चारित्र वली बीजुं नाम वीतराग | संयम डे जेनुं, ते ग्रह्यो है कहेतां दशमा गुणगणाना अंते एटले बारमे गुणगणे ग्रयु ने जेणे, सोही कहेतां तेही / पुरुष शुद्ध कहेतां शुद्ध परिणतिए एटले वीतराग परिणMoscowrooriterDrone HTRAaramaroordareer GrorenownerBAGES Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FRABIR GRAMORARMSAMRAGreAGAR तिए, धर्मधारी कहेतां दायक नावे गुणने धारण करवावाला जाणवा. मोहादि विनाशकारी कहेतां मोहनो तो दशमा गुणगणाना · अंते पूर्वे ध्वंस कयों ६ कह्यो अने आदि शब्दथी यहां क्षिण मोह 5 बारमा गुणगणना अंते झानावरण दर्शना- है हे वरणी अने अंतराय ए त्रण कर्मने संलग्न ७ # एके काळे विनाश एटले क्षय को. तीहां गुण घाति चारे कर्मनी सत्ता आत्मप्रदेशथी खुटी, ए चार , कर्मनी अपेक्षाए आत्मप्रदेश नीरावरण थया महामुनि क देतां उत्कृष्टामा उत्कृष्टा वीतराग कहेतां रागद्वेष रहित थका तेरमामां कहेतां तेरमा सयोगी केवळी गुणगणामां गया है कहेतां अरिहंत पदमां प्रयाण कयु, अनंत चतुष्टयी कहेतां. केवळझान, केवळदर्शन अने अनंतु वीर्य वली पुर्वे । यथाख्यात चारित्र गवेष्यं ते मली अनंत चतुष्टय व्यक्तिनावे प्रगट थ ते.मां कहेतां ते अनंत चतुष्टयीमा प्राप्तिरूप तेरमुं गुणगणुं पाम्या. तेज समये अनंता गुणनुं दान देवारूप दान लब्धि अंतराय कर्मनो क्षय होवाथी अन्नेद १ स्वरूपे प्रगट थइ एटले देता लेता पोते जाणवा तेनो खु६ सासो एम के श्रात्माने विषे शक्तिनावे तीरोनावीपणे ३ 9 निर्लेप अनंती कायकलब्धि अनादि संबंधे रही हती. ते ब) सब्धि वीर्य फोरवीने आविर्नावे प्रगट करी एटले प्रगट-१ नावे न हती. ते उतापणे थप अने शक्तिनावे सामान्य हे स्वन्नावे गुणरूप लब्धि हती. ते विशेष स्वनावे परिणमाव। __ (१११) PangenMornmaraG BengagraGramragraasaramNG. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ror RAHARGreGRIGORIAGGARGIA श्री धर्म प्रवर्तन सा२. ) व्यक्तिनावे करी ते प्रगट होवारूप दानलब्धि कहीए. तेनो , दाता आत्मा पोते अने ए लान पूर्वेन हतो ते लान आत्मा- १ ने संपादन थयो. तेने लाललब्धि कहीए.वळी ते लब्धि प्रगट | थइ तेज समय अनंतागुणनो नोग,थास्वादन श्रात्मा करे. है, तेने नोगलब्धि कहीए. वली उपन्नोग ते बीजा समयथी है पुनरपि पुनरपि नोगवई एम चीरकाललगे सादि अनंत- 6 नांगे अनंती हायक लब्धिने पोते नोगवे अने वली लोगवशे, आस्वादन करशे तेमां एक समय मात्र पण निज लब्धिनो अलोगववो एम नथी, व्याघात विघ्ननो असनंव ले. तेने उपत्नोग लब्धि कहीए. वीर्य कहेतां है वीर्य शक्ति, अनंत स्फूरी रह्यो है- कहेतां अनंत नेदे गुण गुण प्रत्ये गुण गुणगत स्वन्नावे दान देवापणे लान होवा- पणे नोग करवापणे उपन्नोग ते पुनरपि पुनरपि जोगववा पणे, वीर्य स्फूर्णापणे, एम कही ते प्रमाणे, क्षायकन्नावनी टू पांच लब्धी प्रगट थइ. वली केवळझान, केवळदर्शन ए २ बे गुणो नेळतां दायक नावनी सात लब्धि तेरमुं गुणगाणुं पामतां प्रथम समये प्राप्त थइ अने बारमा १ गुणगणाना प्रथम समये यथाख्यात चारित्र प्रगट कर्यु ते " ६ मेळवतां आठ अने पूर्वे चोथे वा सातमे गुणगणे दायक समकित पाम्या. ते गणतां नव नेदे दायकलब्धि कहीए ते श्हां अरिहंत पदे तेरमा गुणगणे पूर्ण गवेषीने कही. ६, इहां तेरमा गुणगणानी जघन्य स्थिति अंतर मुहर्तनी ले , हे अने उत्कृष्टि देशे उणी एटले श्राउ वरसे उणी पूर्व कोमनी १ .8656GHGARH ETARGorkGareraGrdGreaGGreenaram Warmir Orgare Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BGR GOOD ORAMGARoRONG श्री धर्म प्रवर्तन सा२. जाणवी ऐ गुणगणुं आयुषना मे डोमी योगरोध करी , ६ सैलेसिकरणनावे अयोगी चउदमा गुणगणे आवे तीहां 9 उच्छिन्न क्रियानि वृत्ति चोथो पायो शुक्लध्याननो ध्याता 5 थका ए गुणगणाना अंते मनुष्य नव गतिने डोमी कार्मण वर्गणा रहित थ पोतानी काया प्रमाण अवगाहनामांथी त्रीजो नाग पोलारनो घटामी बे नाग प्रमाण श्रात्मप्रदे& शनो निविरुघन करी एक समय काळ माने सम श्रेणीए. बीजा आकाशप्रदेसने अणफरसते लोकाग्रन्नागे सादि अनंतनागे शिद्ध थया. (१) हवे सिद्ध नगवाननी स्तुति करे : सवैया एकतीसा. अरुपी अविनाशी निरंजन, ज्यूंआकाशी अनंत गुणनी राशी; अकेक परदेशे है असंख्य प्रदेसे एम उपयोगे व्यक्ति तेम स्वन्नाव भोगीखेम सदा परमानंद है अचळ अलख सि६ अगम विमळ बुद्ध निराकार नविकार गुण गुणमां रदै परगुणे नही कदा निज गुणे रहे सदा पर्याय ते फोरे तदा व्ये स्थिर सिधि है॥॥ ___ अर्थः-श्ररुपी कहेता जीहां वर्ण, रस, गंध फरस 9 अने संस्थान नथी. ए वस्तु पुद्गळमां साधे तेथी सिद्ध हे नगवान रहित, श्रात्मस्वरूपी , माटे अरूपी कहीए; Peace design anoman ammans mo Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RaneGRASSAGARGET श्री धर्म प्रवर्तन सार " अविनासी कहेतां जेनो विनास त्रण काळमां न थायह शास्वतपणा माटे अविनाशी . वली सिद्ध नगवान केवाई E) ले तो निरंजन कहेतां. कर्मरूप लेपे करीने रहित. ज्यूं था- १ काशी कहेतां यथा दृष्टांते जेम आकाश निर्लेप ले तद्वत, अनंत गुणनी राशी कहेतां सिद्धनगवानने विषे ज्ञान दर्शणादि गुणराशी अनंती अनंती रही . अकेक प्रदेशे & है कहेता. एक एक प्रदेसने विषे, असंख्य प्रदेशे एम में कहेतां जेम. एक प्रदेशे अनंती गुणरासी कही, एम पोतीका आत्माना असंख्याता प्रदेशे पृथक् प्रदेश प्रदेश प्रत्ये अनंती अनंती गुणराशी रही बे. उपयोगे व्यक्ति तेम कहेतां सिद्धात्माना आत्म प्रदेशे गुणरासीनो अनंतो समुदाय कह्यो. ते समुदायमा निन्न निन्न पोते पोतीका गुणगत स्वन्नाव उपयोगे कहेतां. प्रगट नावे तेम कहेतां. तेमज . पण कोइ गुण अप्रगटपणे एम नथी स्वन्नाव ६ कहेतां ए स्वन्नाव सिद्धात्मानो कह्यो, तेना नोगी कहेतां १ अनंती गुणरासी गवेषी तेना नोगी सिद्धनगवान सदा सर्वदा चीरंकाल लगे. सादी अनंत नांगे . समय समय लोग करे उपत्नोग करे पण एक समय मात्र अन्नोग६ ववापणे एम नथी. वली खेम कहेता पोतानी ऋद्धि पोते ? ) नोगवे एज कल्याणकारी . उत्तमनुतो एज लक्षण .सदा- 6 परमानंदहै कहेतां निरंतर अनंती गुणराशीनी अनंती . में व्यक्तिनो. नोग करता उता. सिद्ध नगवान कह्या. ते अनंती 6 व्यक्ति आनंदोपेत सुखदाइ डे अने व्यक्ति व्यक्ति प्रत्ये ६ WABGANESDESIResereversMONEY ORAGr@nar@nordsword or@redom (११४ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Songragram FIRSAGAR GARATANARMONSri Song १ आनंद जिन्न एटले नोखो नोखो बे, तेथी अनंतो आनंद प्राप्त थाय. तेने परमनाम उत्कृष्टो आनंद कहीए एम अनंती गुण राशीनो अनंतो आनंद गवेख्यो ते शिवाय सिद्धात्माने विषे अव्यावाध सुख प्राप्त थाय ते जुडं डे. एम आगममां व्याख्या . एवं देवचंद्रजी कृत चोवीसीना वाळाबोधने विषे सातमा सुपार्श्वजिनना स्तवनमां प्रथम गाथाना उपरना अधिकारे कर्वा डे एम अनंती गुण रासीथी परमानंद प्रगटयो. तेनुं सुख वली अनंतु अव्याबाध सुख तेनी लेहेरमै कहेतां सदा मग्नतामां चेतनत्व धर्मे सिद्ध सिला उपर एक जोजनना तेवीस नाग निचे मेलीने चोवीसमा नाग उपर अलोकने अमीने सिद्ध परमात्मा स्थिर रह्या बे, अचळ कहेतां जिहां रह्या ले तीहांथी एक आकाश प्रदेश पण आघा पाठा चळायमान थाय नही माटे अचळ,अलख कहेतां सिद्ध परमात्मानुं स्वरूप है बमस्थथी जाण्युं न जाय. केवलझानी पूर्ण जाणे वळी १ अनुन्नवी पुरुषो देशथी जाणे, वीजा न जाणे. अंगम क हेतां सिद्ध परमात्मानुं स्वरूप निहाळवाने उमस्थनी १ दृष्टि थाके डे, गम न पहोंचे. विमळ कहेतां सिद्ध परमात्मा आवरणना अन्नावे सदा निर्मळ , बुद्ध कहेतां दायक नावे ज्ञानी जे निराकार कहेतां परिमंमळ प्रमुख संस्थान डे नहि, ते सिद्ध नगवानने आकार कहीए, निराकार डे. # नविकार कहेतां विकार तो जिहां पांच इति होय तीहां है विषयनो संन्नव आवे अने उठो नोडि जे मन होय, ६ VRANGBANGEResons DIG GGrordGrammarBOS Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ REGrolora Gregarma Green GrGrARSaror श्री धर्म प्रवर्तन सार. १ तीहां विकल्पनो संनव थाय, तेने विकार कहीए. तेथी। ६ रहित सिद्ध नगवान , माटे नविकार गुण गुणमां रहै , कहेतां सिद्ध परमात्माना ज्ञानादि अनंता गुण बे, ते गुणोमांज पोते रहे, पण वीजा जीव अजीवादि अव्यना गुणोमां न रहे, न रमे, परगुणे नहि कदा कहेतां, पोतानो , गुण डोमीने बीजा परजव्यना गुणे कोई काळे न प्रवर्ते एवो वस्तु स्वन्नावनो धर्म बे, ते कारणे निज गुणमांज रहे अने वली रमे. सदा कहेतां आंतरा रहित पोताना गुणमांज रमण करे, एटले सिद्ध नगवानने विषे गुण गुण गत, गुण गुण स्वनावे, निन्न निन्न रमणनी एक सम-1 है यमां अनंती प्रवृत्ति थाय, ए गुण चारित्र धर्मनो ने एटले 3 चारित्र धर्म ते पोताना गुणमांज पोते रमे; परमां न रमे, ए चारित्रना पर्याय , वली स्वन्नाव रमण परतावनी १ वृत्तिए चारित्रनी परिणति बे, पर्याय फीरे तदा, कहेतां ह सिद्ध नगवानना स्वन्नाव रमणने विषे, समये समये उत्पाद, व्यय, प्रवर्ते , तेथी गुण गुण गत गुण गुण स्वन्नावमा पर्यायर्नु परावर्त्तन धर्म के तेथी पूर्व पर्यायनो नाश अने अनिनव पर्यायनी उत्पत्ति, एम समय समय अनिनवपणे गुण गुण गत प्रवर्ते डे, एअव्यवं मूळ लक्षण , ७ तेथी सदा उत्पाद व्यय परिपाटी प्रवर्ते; जो एम न होय तो : जिनेंनी देशना असत्य थाय माटे नहि असत्य यथार्थ सत्य ६. बळी अनिनवपणे पर्याय- प्रवर्तनपणुं न मानीए तो हे पुनरपि पुनरपि लोग उपन्नोग परमानंदपणे, सदाय सिद्ध ६ daar@nordarGranardan ११४) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GOOGGAGRO.GROGre RSARGIRMERORGROGRESS श्री धर्म प्रवर्तन सार. नगवानने विषे उपर गवेख्यो, ए वचन असत्य थाय पण ६ नही नही यथार्थ सत्य बे. अव्येस्थिर सिद्धहै कहेतां जे , समये उत्पाद व्यय , तेज समये ध्रुवता एटले स्थिरता | व्यने विषे जाणवी. शहां कोई कहेशे के तमे उत्पाद १ & व्यय पर्यायमां बोलोडो अने गुणमां गवेखोगे, तेनुं हुं है कारण जे तेनो उत्तर हे नाइ सिद्धांतमां अव्यपर्यायनी ६ & व्याख्या , गुण को वस्तु नथी, अमेतो अनंता पर्यायनो समुदाय मळीने जे कार्य करे तेने गुण कहीने बोलावीए बीए. परंतु पर्याय जे जे ते गुणथी मूळधर्मे निन्न नथी, वस्तुमां पर्याय परिपाटी , तेथी पर्यायनीज प्रवृत्ति डे अने द्रव्य ते आधार , तेनी साक्षी जोवी होय तो देव3 चंद्रजी कृत चोवीसीमां दशमा शीतळ जीनपतिना स्तवननी त्रीजी गाथानो अर्थ नरेलो डे त्यांथी जो खेजो (२) सवैया एकतीसा. उतकृष्ट पद सिह, महा मंगळीक बुद्ध; शानभानु विसु, परम योतीवंत है. परम पवित्र प्यारो, ज्ञानानंद नोगी न्यारो; अव्या बाध सुख सारो, अनादि अनंत है: व्यापे निज व्य मांदी, गुणने पर्याय मांही; अखंख्य प्रदेश त्यांही, सही निज खेत है. एदि अवगादना, एकमां अनेकतान; नेगी मळी निन्न सदा, मानजो प्रणाम है.॥३॥ ७ Passengs RESSEMIC Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Seaso PAGrecordGARDAGOGRG श्री धर्म प्रवर्तन सा२. ( अर्थः--उत्कृष्ट पद कहेता, पदना बे नेद उपाधिज नितपद, निरुपाधिजनितपद तेमां उपाधिजनितपदना बे नेद. प्रशस्त, अप्रशस्त. प्रशस्तना बे नेद, देवेंज, नरें, है ॐ हवे निरुपाधिजनित पदना वे नेद कहेडे, एक व्यवहार, १ बीजं निश्चय. व्यवहार निरुपाधी पदना त्रण नेद समकित है। ( मूळ योग्यताए कहे बे, आचार्यपद, उपाध्यायपद अने हैं साधुपद तेमां प्रथम आचार्यपद कयु डे ते पदमां गणधर है पद कहीए, वा गीतार्थ कहीए, वळी बहु श्रत कहीए, ते सर्व पदनो समावेश आचार्य पदे थाय , एम जाणवू. हवे निश्चय निरुपाधि पदना त्रण नेद कहे बे, एक जघन्य, बीजो मध्यम अने त्रीजो उत्कृष्ट, जघन्य निश्चय निरुपाधिपदतो क्षीणमोह बारमा गुणगणे वीतराग नावे, रागद्वेष अशुद्ध परिणतिनो वळी मोहनो उपाधि जाण। ध्वंस करीने यथा ख्यात चारित्र पाम्या ते पहेलो नेद कह्यो, हवे बीजो नेद मध्यम निश्चय निरुपाधिपदतो तेरमा चाँदमा " गुणगणे वर्त्तता, एवा परम पूज्यने अरिहंत पद कहीए. शहां चौघाति कर्मनी उपाधि आत्म प्रदेशथी टळी ठे अने अघाति कर्मनी रही डे माटे मध्यम कह्या, हवे त्रीजो नेद निश्चय निरुपाधि उत्कृष्टपद, तो अयोगी चौदमा गुणगणाना अंते एटले लेखा समये चौअघाति कर्मोनी ७ उपाधि आत्मप्रदेशे हती ते टळी; कार्मण वर्गणा रहित ६ ९ आत्मप्रदेश थया, श्हां उपाधिनो अन्नाव थयो, माटे उत् , ६ कृष्टा निश्चय निरुपाधिक पदने सिद्ध नगवान कहीए. ६ (११८) STRAGRAGrena GoraRGRO nsornerBGADGAGRO GRAgroma Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HTTORGOOGGxxangrGram श्री धर्म प्रवर्तन सार. ६महा मंगलिक, कहेतां सर्व मंगलीकमां मंगलीक, जीहां अपमंगलीकनो संलव त्रण काळमां आवे नहि, माटे, 9) महामंगलिक कहेतां कल्याणकारी, उत्कृष्टमंगलिक ते ४ निजात्म शुद्ध स्वरूप,निश्चळ अवस्थानरूप सिद्धनेज कहीए, है द, बुद्ध कहेतां सिद्धनगवान ले ते अविनाशी पंमित जे. एटले ६ पंमित जे ते ज्ञानी , पण नणीने जुले तेने विनाशी & पंमित कहीए अने सिद्धनगवान तो केवळ ज्ञानरूप बोध पाम्या , ते बोध त्रण काळमां जाय नही, तेम न्यूनता पण पामे नहि, माटे अविनाशी पंमित कह्या ज्ञान नानुवि शुद्ध कहेतां केवळ ज्ञानरूप सूर्य जे ते विशुद्ध कहतां घणो " उद्योत प्रकाश कर्ता बे, कारण के जे सूर्यनी ज्योति बे, ते जम ज्योति ने एटले रूपीपदार्थने देखामवा वाली अने जे केवळ ज्ञाननी ज्योति . ते आत्मजनित अरूपी ज्ञान ज्योति बे, वळी सूर्यनी जमज्योति ले ते तेनी मर्यादा पूर्वक प्रकाश करे अधिक न करे अने केवळ छाननी ज्योति ले ते लोकमाने अलोकमां; वळी लोकमां रहेला जीव अजीवादि रूपी अरूपी सर्व द्रव्यने विषे, वळी अतित अनागतने वर्तमान ए त्रणे काळनी वर्तनाने विषे, उत्पाद व्यय अने ध्रुव संयुक्त एक समये जाणे, कोइ जग्योए झान ज्योति खळाय नहि वळी सूर्य प्रकाश करे ते पोता नां कीरण वीस्तारीने करे डे अने सिद्धात्माने तो केवळ ॐ ज्ञानरूप अरीसो चारे तरफ आवरणना अन्नावे, निर्मळ ६ थयो बे. तेमां उपर कही ते प्रमाणे त्रणे काळनी, पंचास्ति reader Dongrong ROBORDER. GareradorOSBIGrade P Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Birendranagar શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. कायनी वर्तना प्रतिबिंबीत थाय अने तेमां पोते लेपार्य पण नहि, एवी केवळ ज्ञाननी अद्भूत ज्योति तेने परम ज्योतिवंत है कहेतां उत्कृष्टी ज्योतिवंत कहीए, परम | पवित्र कहेतां सिद्धात्माना आत्म प्रदेशे अन्य पदार्थनो छ एक परमाणु मात्र पण उपाधि संयोग संबंध रह्यो नथी; पोते पोताना शुद्ध स्वनावे तद्प , माटे उत्कृष्टा पवित्र सिद्धनगवानने कहीए. वली प्यारो कहेतां समकिती, के से देशविरति अने सर्व विरति जीवोने गुणरागीपणे, गुणने जाणी उलखीने गुण प्रगट करवानी बुद्धिए सिद्धनगवाइननी स्तुति करतां, गुण गातां नावना लावतां वळी ध्या नगत समरण चितवन करतां थकां जे सुखन्न बोधी जीवो 3 ते प्रमोद पामे आनंदीत थाय माटे सिद्धात्माने प्यारोज कहीए; ज्ञानानंद जोगी न्यारो कहेतां उपर सुबन बोधी जीवाने सिद्धनगवान प्यारा कह्या, पण सिद्धात्मा तो ज्ञानानंद परमानंद, नोगी सबसे न्यारा . अव्या वाध सुखसारो कहेतां सम्यक् झानीने अनुमोदवा योग्य, सचि करवा योग्य, अनिलाषा करवा योग्य, एवं जे अव्या १ बाध सुख, सिद्धनगवानने प्रगट थयुं बे, तेमां एक अंशे पण उबाश रही नथी, तेम सुखनी पाबळ बाधा पीमा अचानक आवशे तेवो नय पण रह्यो नथी, माटे निर्नय थका अबाधितपणे अनंतु सुख स्वाधिनपणानुं नोगवे , तेथी ज्ञानीए अव्याबाध सुखने सारो कह्यो छे अने सर्वार्थ है ६ सिद्ध विमानवासी देवना छीजनित पुद्गलीक सुखनी Rangor ies Browse RSEEGrenawesomorphoreonardanwrongengrong. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Barama SAIRAGHRAGRAPARGore Grenorg श्री धर्म प्रवर्तन सा२. अनिलाषा करवी, ज्ञानीए निवारी ने अव्यावाध सुख सारो, एटले आनंदोपेत अतिर्षियजनित अव्यावाध सुख १ डे, माटे सारो कयो, ज्ञानीपुरुषोने नोग करवाने, अनुमोई दवाने योग्य . अनादि अनंत है कहेतां मोक्षगतिने विषे है ६, सिद्धनगवान अव्यावाध सुख जोगवे , ते सुख अनादि है संबंधे जे अने अनंत है कहेतां अंत एटले कोश्काळे 8 नाश थावानो नथी, यहां कोई कहेशे के सिद्ध थाय तेनी तो आदि अने तमे तो अनादि संबंधे अव्याबाध सुख कहो बो, तेनो उत्तर-हे ना सिद्ध थाय तेनी तो आदि 3, पण काळनी आदि नथी, वळी सिद्धगतिनी पण श्रादि हूँ नथी के अमुककाळे अमुक पुरुष प्रथम सिद्ध थया ते 3 श्रादि कहीए, माटे सिद्धगति आश्रीने अनादि अनंत नांगो लागे, ते कह्यो. व्यापे निज प्रव्यमांही कहेतां जीहां १ सिद्धनगवान रह्या बे तीहां धर्मास्तिकाय रह्यो बे, अधर्मास्तिकाय रह्यो बे, आकाशास्तिकाय रह्यो बे, पुद्गलास्ति काय पण अनंता अव्य रह्या डे अने जीवास्तिकाय जे पोह ताथी अन्य बीजा जीवो ते पण सिद्धसंसारी अनंता रह्या १ १. एम पंचास्तिकाय एक क्षेत्र अवगाहीने नेळा रह्या बे, तो पण सिध्धनगवान एक पोतीका अव्यमांही व्यापक9) पणुं करी परिणमी रह्या , अन्य प्रव्यमा व्यापक परिण- , मन कोकाळे थाय नहि. गुणपर्याय मांही, कहेतां एक 9 पोताना अव्यना अनंता गुण , अने एक एक गुणना ६ अनंतापर्याय ने ते गुणपर्याय पोतपोतीका गुण गुणगत, ७ in६ ( १२१ ) । HLates@ sorrowata Raut Granar@GraGGre Gre Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MIRMIRMIRE GrenorangIRGEORA १ पर्याय पर्यायगत, एम व्यापकपणुं परिणमनपणुं सिध्ध नगवानने विषे , एटले एक गुण बीजा गुणमां न व्यापे, एक पर्याय बीजा पर्यायमां न व्यापे, ने परिणमे, वळी ( अन्य अव्यना गुणपर्यायमां पण न व्यापे न परिणमे त्यारे कीहां गुणपर्याय परिणमे ते कहे , असंख्य प्रदेश त्यांही कहेतां सिध्धात्माना असंख्याता प्रदेश डे त्यांही कहेतां ते प्रदेशोने विषे एक एक प्रदेश प्रदेश प्रत्ये, अनंता गुण अने अनंता पर्यायनुं व्यापकपणुं परिणमनपणुं , अन्य बीजा जीव अजीवादि द्रव्यना प्रदेशमां न व्यापे न परिणमे, सही कहेतां निश्चय निज कहेता पोताना गुणपर्यायने रहेवानु, वसवानु, प्रदेशने विष व्याकपणुं परिणमनपणुं कह्यु, तेज खेत है के सिद्ध नगवानने स्वदेत्र जाणवू एही अवगाहना कहेतां जे सिद्धात्माना असंख्याता प्रदेशनो निविरुघन अयोगी चौदमा गुणगणाना अंत समय वनेलो, एज सिद्धात्मानी अवगाहना कहीए, ए प्रमाणे एटले जेम एक सिद्धनुं ए कह्यं तेम अनंतासिद्धनुं स्वदेत्र तेहीज अनंती अवगाह१ ना कहीए एटले अवगाहना कहीए ते सिद्ध अने सिद्ध कहीए ते अवगाहना जाणवी, एकमां अनेकता कहेतां १) जीहां एक सिद्धनी अवगाहना ने तीहां अनेक सिद्धनी , अवगाहना रही ले. तेमां कोश्नी उन्नी ने कोश्नी बेठी १ 5. कोश्नी चित्ती जे. कोश्नी पासानर . कोश्नी पद्मा- है सने बे. कोश्नी विकटासने बे. वली कोश्नी लघु ले. को- ६ (१२२) GPAGRAGRIGAROOG Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ OMBreMOREMOISS RamroSIXERangore श्री धर्म प्रवर्तन सार. ६) श्नी गुरु . लघु डे ते बत्रीस आंगलनी डे अने गुरु ले ते त्रणसानेतेत्रीस धनुष्यने बत्रीस आंगळनी ले थने १ मध्यस्थ अवगाहना असंख्यात नेदे. न्यूनाधिकपणे सि द्धमा रही . एटले चौदमा अयोगी गुणगाणे सैलेसीकहरण अवसरे जेवी रीते पोतानी कायानी स्थिति हती तेवी से रीते सिध्धमां अवगाहनाः उपर अलोकने अमीने रही 6 . जे पांचसो धनुष्यनी कायावाला सिध्ध थया अने उन्ना थका मोके गया. तेमनी गुरु अवगाहना जाणवी अने बे हाथनी कायावाला उन्ना थका मोदे गया, तेमनी बत्रीस श्रांगळनी सिध्धमा . ते लघु जाणवी अने पांचसो, धनुषथी मोटी काया अने बे हाथथी नानी कायावालानी सिध्धी प्राये थती नथी, नेगी मली कहेता. जेम उपर कही तेम सिद्ध नगवाननी अवगाहनाओ नेगी एटले एकमां 3 अनेक नेगी मळेली कही. निन्न सदा कहेतां, तोपण सदा ६ सर्वदा निन्न ने यथा द्रष्टांते जेम दीवानी मांदेली कोरे र अनेक दीवेटनी वाटो करीने नेगी मुकीये तेनी ज्योति ए सर्व वाटनी एक देखाय, पण वाट वाटनी ज्योति जिन्न 2. जे ज्योति ने ते पोत पोतानी वाटना सबंधे बे. अन्य १ वाटना सबंधे नथी. एक वाट उपानीए ते वखते ते वा टनी ज्योति नोखी निन्न पझे. परंतु नेगी हती. तोपण , निन्न हती ए दृष्टांते सिध्ध लगवाननी अनेक अवगाह6 नाओ नेगी मली , तोपण सदा नीज द्रव्यना सबंधी है। है पणे निन्न . ए सिध्ध नगवाननी अवगाहनाओनी (१२३) Or BreGram.org GOOGLGAGGAR. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GrammarGraordGirGore - શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. संख्या जिन वचने सिध्धांत साक्षीये पांचमा अनंते कही | डे ते सर्व अवगाहना मय अनंता सिध्ध नगवान प्रत्ये था ग्रंथनी पूर्णता अवसरे ग्रंथकर्ता कहे जे के मानजो . प्रणाम है, कहेतां पंच अंग एटले बे हाथ वे पग अने मस्तक. ए पंच अंगने नम्रता पूर्वक विनयपूर्वक बहुमान पूर्वक, नक्तिपूर्वक, प्रमोदपूर्वक, उत्साहपूर्वक, गुणरागीपणे पर श्राकंदा दूषणे वर्जित थश्ने, अंतरदृष्टि योगे, त्रिकरण जोगे प्रणाम है कहेतां मारो नमस्कार बे. ते हे सिध्ध परमात्मा मानजो. कहेतां स्वीकारजो, मारी विनति अवधारजो.(३) ग्रंथनी पूर्णताना दुहा. नेद ज्ञानविण नविकने, नहीं वस्तु उळखाण ॥ वीपरित श्रद्धा त्यां लगे, समजो चतुरसुजाण ॥१॥ नेदज्ञानथी नावीए. जम चेतन दुफार ॥ समकित शुद्ध समाचरे, निज वस्तु निरधार. ॥२॥ तेहीज सिद्ध स्वरुप बे, तेहीज शीव सुख कंद ॥ ध्यावो गावो विजना, एथी टळेनवफंद ॥३॥ निज सवळे सुख संपत्ति, अवळे दुःख अनंत ॥ रागद्वेष अवळी दशा, तजतां सिद्ध महंत. ॥४॥ शिवपद सोही ज्ञानमां, ध्यान ज्ञाननी मांही; ॥ ध्याता ध्येयनी एक्यता, पूरण साधन त्यांही ॥५॥ धर्म प्रवर्तन सार ए, ग्रंथ रच्यो गुणखाण; ॥ ज्ञानी वचना लंबने, पूरण कीयो परमाण ॥६॥ Morariesrowsers MOGYORoooorea CRIBRegroMaraore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. व्यवहार विशेषे को, शुद्धाशुद्ध विचार ॥ समकित शुद्ध व्यवहार बे, मिथ्या अशुद्ध आचार ॥७॥ निश्चय नय वस्तु रूपे, सूक्ष्मज्ञान स्वभाव ॥ अनुभव जोगे वर्णव्यो, दाख्यो निज सद्भाव ॥ ८ ॥ गुरु गुणगातां ज्ञाननी जावी जावना शुद्ध ॥ टाळी अज्ञान जावना, कृत्रिम अनुभवी बुद्ध ॥ ए॥ ग्रंथज्ञान गंगाजळे, टाळो मळ मिथ्यात ॥ asो समकित मूल धर्मनुं, शीव साधन सुखशात ॥१०॥ बाधक जाव विबेदीने, ग्रहो ए रुप अबाध ॥ ते साधन शीव पदत, साधे सोही साध्य ॥ ११ ॥ ग्रंथ सुगुण मणि दार बे, मुलख वस्तु अनुप ॥ संयम श्री शणगार बे, तस कंत मुनिवर भूप ॥ १२ ॥ ग्रंथ ज्ञान अमृत रसे, जलनर सागर जेम ॥ गंजीर को अर्थ बे, निज गत उपयोगे खेम ॥ १३ ॥ टाळो परगत चेतना, स्वगत अनुभव नाव ॥ तारे जव दुःख सागरूं, सिध्ध निरंजन राव ॥ १४ ॥ ग्रंथ सुगुण सुरतरू, बंबीत दाता सार ॥ या शाश्वत सुखने, जो नदि क्षण वार ॥ १५ ॥ ग्रंथ सोही निमित्त बे, सापेक्ष सिध्धि लड़ंत ॥ नावग्रंथ सो आतमा, शोधो चतुर महंत ॥ १६ ॥ नावग्रंथ ए ज्ञान निधि, मेरु मग समकित ॥ चरण रमण श्रीर सैलज्यु, तप रवि तमदर नीत ॥ १७ ॥ सोही ग्रंथ शीव रूप हे, धू ज्यु अविचळ रूप ॥ ( १२५ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ nomorromeone ono RAMERamesranam શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર, १ प्यारो पंमित लोकने, न पझे सो नव कूप ॥१७॥ स्वपर विनागे संपजे, खेले अनुन्नव योग ॥ ते धर्म वर्तना सद्दही, पामे शीववधु नोग ॥१ए ॥ सिध्ध वधु एम पामीए, सादि अनंतो काळ ॥ नीरविन सुख शाश्वतां, सो मुज काज अचाल ॥२०॥ आज मनोरथ सवी फळया, नाव अध्यातम पाप ॥ . ज्ञान शीतल करी सो रच्यो, ग्रंथ गुरु आज्ञाय ॥१॥ संपूर्ण. श्री गुरुभ्यो नमः अथ दायक नावतत्व विलास ग्रंथ खोख्यते ॥ दुहा. ॥ ॥ ढाळ ॥ द्वेष न धरीये लालन द्वेष न धरीए ए देशी ॥ दायक समकित नाव वखाणु ॥ एहथी पामी मुक्तिनुं टाणुं जविका ॥ मुक्तिनुं ॥ सात प्रकृति क्षय हां १ थावे ॥ते फरी कदीय न सन्मुख आवे नविका ॥सन्मुख०॥ ॥१॥ प्राप्ति चोथे वा सातमे गणे॥ वेदक दायक वचन प्रमाणे नविका ॥ वचन० ॥ दायक समकित नेदे नाख्युं । सदगुरु वचन में घटमां राख्युं नविका॥ घटमां० 9॥२॥ आवता नानुं पहेयुं आयुष्य बांध्यु ॥ सहे समकित पडे श्रेणि न साध्यु नविका ॥ श्रेणीन० ॥ खंगश्रेणी दायक नेद ए पहेलो ॥ उत्कृष्ट चार नवे सीव सहे व-है हेलो नविका ॥सीव०॥३॥ संसार स्थिति काळ शास्त्रे ना-७ Recenternet RIGramroGAR GARLGAPAGrenorrena Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ROGRGrenorrenom FERRAGreAGARATARRASSAGRAGIRI १ ख्यो। तेत्रीस सागर माजेरो दाख्यो नविका मारो॥ ट्र उत्कृष्टो संसार एटलो रहेवे ॥ जघन्य त्रीजे नवे शीवसु ख लेवे नविका ॥शीव० ॥४॥ अखंम श्रेणी दायक नेद हवे बीजे ॥ रुपक श्रेणी मामी तदनवे सीजे नविका ॥ तदनवे०॥ एम समकित दुनेद दायक ॥ नरनारी जे लहे ते शीवलायक नविका ॥ ते सीब० ॥ ५॥ क्षय उप- १ समन्नावे ध्रुवता पामे ॥ ज्ञान दर्शणने लब्धि दानादि नामे नविका ॥ दानादि० ॥ आत्म असंख्य प्रदेश समाधि ॥ ७ सात प्रकृति टळी मोहनी उपाधि नविका ॥ मोहनी ॥ ६॥ अखंम श्रेणी दायक चारित्र पामे ॥ ते बीजी ढाळे 6 यथाख्यात सोनामे नविका ॥ ख्यातसो० ते नाव शुद्ध उपयोग नावं ॥ ज्ञान शीतल करी मोह खपावू नविका ॥ मोहः ॥ ७ ॥ इति प्रथम ढाळ कही. ॥ ढाळ बोजी॥ ‘राज पधारो मेरे मंदिर ॥ ए देशी ॥ दायक चारित्रपद वरवाने ॥ उपयोगी अप्रमत्तेजी॥ अखंग श्रेणी दायक समकिती ॥ आवे नही प्रमत्ते ॥ १ रुपक श्रेणी मांझे जी ॥ अंतर अपूरव गंण ॥ उपाधि मळ ५ बांझेजी ॥१॥ ए आंकणी ॥ अपूर्व गणे अपुर्वज्ञानी ॥ अपुरव खेल खेलेजी ॥ अपुर्व अजुत मूलरूपे ॥ अक्रत १) अनुन्नवरेले ॥ रूपक० ॥२॥प्रथक्त्व प्रथक्त्व दून्नेदे ॥ हे व्हेंची खपर निन्नजी ॥ जीवने पुद्गल बेहु अलगा ॥ तिहां चेतन निज गुण लिन्न ॥ कपक० ॥ ३ ॥ अनंतगुण (१२७) - MORRECEMBreesBEMBERMANCoroma Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निज अव्ये गवेषे ॥ गवेषे पजव अनंताजी ॥ नेदझाने प्रथक् स्वरूपे ॥ क्षय उपशम शुन्नसंता ॥क्षपक० ॥ ४ ॥ शुक्लध्यान तप पहेलो पायो ॥ ध्यातां अग्नि अति ज्वाळाजी ॥ मोहपही शहां जस्मी थावे॥ नेद बेद अन्नेदी साला ॥ पक० ॥ ५ ॥ य उपशम बेद इहां मोहनी- है है नो॥ अशुद्ध परिणति बेदीजी ॥ रागद्वेष ए विनाव चेतना ॥ हु शुद्ध चेतना समवेदी ॥ रुपक श्रेणी ॥६॥ मिश्र नाव इहां नही लाधे ॥ लाधे शुध्ध परिणतिजि ॥ गुण पर्याय अजिन्न निज द्रव्ये ॥ ऐक्यता उपयोग वृत्ति ॥ रूपक० ॥ ७॥ यथाख्यात शहां चारित्र पामे ॥ दशमा गणना अंतेजी ॥ शुक्ल ध्यान बीजो पायो ध्याता॥ वितराग बारमे एकंते ॥ क्षपक० ॥ ॥ पर अनुन्नव शहां हूँ नही लाधे ॥ समन्नीरुढ नय साधेजी ॥ घाती कर्म त्रण क्षय शहां पामे ॥ केवळ नाण दर्शण लाधे ॥ पक० ॥ ए ॥ ६पक श्रेणी उत्तरोत्तर वृद्धि ॥ ज्ञान अनुन्नवयोगजी ॥ कृत्रीम पद हां नही लाधे ॥ ज्ञान शीतल समाधि संयोग ॥ पक० ॥ १० ॥ ढाल बीजी संपुर्ण ॥ ॥ दुहा ॥ ए ढाळ त्रीजी ॥ राग सारंग हो धन्ना ए देशी ॥ के१ वळ सहो गण तेरमेरे मीता ॥ ज्ञान दर्शण अनंत ॥ ६ घाती कर्म अन्नावथीरे मिता ॥ निर्मळ उपयोगवंतरे रंगी. ला मिता ॥ ए गुणो सेवोने ॥ ए गुणो प्रगटे घटमारे ह हे मिता ॥ उपयोग विशेष सामान्यरे रंगीला मिता ॥ ए १ novorotowo non BAGROGRAGNRAO GroGORGEOGRAM GORAGRA Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FROPOLGIRLGIRA GREATorg श्री धर्म प्रवर्तन सस. 99 गुणो० ॥ ए आंकणी ॥ १ ॥ विशेष उपयोग ज्ञाननोरे मिता ॥ पहेले समय लहंत ॥ वीजे समय दर्शणनोरे , मिता ॥ उपयोग सामान्य कहंत रे रंगीला मिता ॥ ए के गुणो० ॥ २॥ विशेष ते साकार नेदतारे मिता ॥ सा& मान्य सो निराकार ॥ अन्नेद ग्राहक नाषीयोरे मिता ॥ है ए सिद्धांतीक पक्ष साररे रंगीला मिता ॥ ए गुणो० ॥३॥6 नय वादे निन्न न मानीयोर मिता॥ एक विशेषोपयोग ॥ है सामान्य विशेषमां नट्योरे मिता ॥ न समय अंतर जोगरे । रंगीला मिता ॥ ए गुणो० ॥ ४ ॥ एम निन्न मत ए बेदुनोरे मिता ॥ जिन न गणी सिद्धसेन ॥केवळी गम्य सो तत्व एरे मिता ॥ सिद्धसेन विसारद नय ज्ञानरे रंगीउला मिता ॥ ए गुणो० ॥ ५ ॥ हवे ज्ञान अनंतु दाखवुरे मिता ॥ सवे एक समय प्रत्यक्ष ॥ आच्छादन नही एहने । रे मिता ॥ जाणे जिव अजिव समरे रंगीला मिता ॥ ए गुणो० ॥ ६॥ तेमां रूपी अरूपी जाणतारे मिता ॥ १ जाणे गति हेतु अव्य॥ स्थिति हेतु प्रव्य जाणतारे मिता॥ जाणे अवकाश हेतु अव्यरे रंगीला मिता ॥ ए गुणो० ॥ १ ॥ नवी वस्तुने जुनी करेरे मिता॥ तेहना हेतुनो जाण ॥ एम खट अव्यने जाणतारे मिता ॥ उपजे विणसे ध्रुव ) जाणरे रंगीला मिता ॥ ए गुणो० ॥ ७ ॥ नीज नीज वृत्ति हे सर्व करेरे मिता ॥ ए अगुरू लघु पर्याय ॥ समे समे ६ हांणी वृद्धि खहरे मिता ॥ षट् षट् वार कहायरे रंगीला है मिता ॥ ए गुणो० ॥ ए ॥ अतित काळ अनंतो गयोरे sasroomsEverest ProGraordGranardarnardGAGAR १७ RA Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Mornar RIGroorkee श्री धर्म प्रवर्तन सार. 9 मिता ॥ अनागत काळ अनंत ॥ एक समय वर्तमाननोर ६ मिता ॥ दुश् होसे सवि जाणंतरे रंगीला मिता ॥ ए गुणो० ॥ १०॥ मति यादि ज्ञान तणी प्रनारे मिता ॥ एहमां सर्व समाय ॥ रवि प्रनाथी अधिक नहीरे मिता ॥ तारा नक्षत्र समुदायरे रंगीला मिता ॥ ए गुणो० ॥ ११ ॥ केवळझान गुण मोटकोर मिता ॥ केवळ दर्शण साथ ॥ जाणे देखे एम कीजियेरे मिता ॥ ए गुण साधे तो हुं न 5 अनाथरे रंगीला मिता ॥ ए गुणो० ॥ १२ ॥ क्षायक लब्धि 6 नेद चल कह्यारे मिता ॥ आ ढाळमां कह्या दोय ॥ पण सब्धि बाकी रहीरे मिता ॥ ते आगे वर्णवीशुं सोयरे रंगीला मिता ॥ ए गुणो सेवो० ॥ १३ ॥ अरूपी वस्तुने जाणवीरे मिता ॥ ते न सहे द्रव्य अजाण ॥ तिणे अव्य षद् दाखशुरे मिता ॥ गुण पर्याय युक्त वखाणरे रंगीला मिता॥ ए गुणो० ॥ १४ ॥ धर्म अधर्म श्राकाशनेरे मिता ॥ कालने पुद्गल जिव ॥ अनुक्रमे विस्तारशेरे मिता॥ ज्ञान शीतल सही थायो सीवरे रंगीला मिता ॥ ए गुणो० ॥ १५॥ ढाल त्रीजी संपुर्ण ॥ GarGroGARAGAORGranarrore ॥ढाळ चोथी । - नवी तुमे वंदोरे सुरीश्वर गच्छराया ए देशी ॥ . नवी तुमे करजोरे अव्याणुं योगज्ञान मोटुं ॥ नि- १ जात्म जाएयावीण चरण आराधे ॥ ते सवी जाणो बोटुं ॥ नवी० ॥ १॥ ए आंकणी॥ अव्यस्वरूप तेहने कहीए॥ ६ 66sement Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DOMANOONEY श्री धर्म प्रवर्तन सार. ७ अखंग अविनाशी त्रण काळ ॥ वस्तुता जेहमां रहीरे ॥ ६ ते प्रव्य नित्य निहाळ ॥ नवी तुमे ॥२॥ गुण पर्याय । लाजन ते ऽव्य ॥ गुण स्वन्नावे धर्म ॥ निन्न अनिन्न त्रिविध सदाए ॥ एक पदारथ मर्म ॥ नवी० ॥ ३॥ उपजे विणसे थिर रहे ए ॥ एसो वस्तु वखाण ॥ उपजे विणसे में पर्याय धर्मे ॥ थिर अव्य प्रमाण ॥ नवी० ॥ ४॥ अवगाहना सवे व्यनी ए ॥ गुणपर्याय प्रदेश ॥ तेहीज सत्ता अव्यनी दाखी ॥ अविनासी रुमी बेस ॥ नवी० ॥ ५॥ प्रव्येऽव्य ते न मीले कहीये ॥ अनादि असहाय ॥ निज सत्तामय अव्य रहेवे ॥ पर सत्ताये नही कदा ॥ नवीन ॥६॥ अव्यरूप उती कार्यनी ए ॥ तिरोनाव शक्ति सदाय ॥ आविरनावे प्रगट लहीये ॥ व्यक्ति गुणपर्याय ॥ नवी ॥ ७॥ कार्यकारण निज अव्य एही ॥ पर अकारण अकार्य ॥ परनेकारण एकान्ते माने ॥ ते जीव सो अनार्य ॥ नवी० ॥ ॥ बतीपणे स्त्र अव्य कहीये ॥अबतीपणे पर अव्य ॥ एम अस्ति सो निजपर बेहुनी ॥ रही डे सर्वे ६ अव्य ॥ नवी० ॥ ए ॥ व्यत्रिकाळे नित्य कहीये॥ पर्याये १ अनित्य ॥ नित्य अनित्य एक वस्तुमां ॥ नाषे शानी वि. नित ॥ नवी० ॥ १० ॥ स्व द्रव्य व खेत्र स्व काळ ॥ स्वनाव सहित चउ सत्य ॥ परद्रव्य परखेत्र परकाल ॥ पर ह नाव चल ए असत्य ॥ नवी० ॥ ११ ॥ द्रव्य पदारथ एक कहीये ॥ गुणपर्याय अनेक ॥ अनेक गुणपर्यायमां एक अव्य ॥ समजो ज्ञान विवेक ॥ नवी० ॥१२॥ शक्तिनावने GARGRORAGONRAGrenoNGER Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FRORAMRAGRAPARISMRAGMEAGAR श्री धर्म प्रवर्तन सा२. कारण मानो ॥ व्यक्ति ते कार्य जाणो ॥ शक्तिनी व्यक्ति जेहथी सहीये ॥ ते साधन परमाणो ॥ नवी० ॥१३॥ पर्यायास्तिक नयनेद स्वन्नावे ॥ द्रव्यास्तिक अन्नेद ॥ उन्नयधर्मी द्रव्य दाख्यो ॥ अविरोधी अच्छेद ॥ लवी १ ॥ १४ ॥ एम स्यादाद लक्षणमयी ए द्रव्यसत्ता गुणखाण ॥ इत्यादि नेद घणा विस्तारे ॥ वस्तु सत्ता उलखाण । नवी० ॥ १५ ॥ द्रव्य षट्नेदे जाणी सहीए॥ हेय उपादेय बुद्धि ॥ है हेय जाणी पंच अजीवने मी ॥ ग्रहीए एक निज जीव 6 शुद्धि ॥ नवी० ॥ १६ ॥ हेय उपादेय बुद्धि घटमां ॥ तेही ज श्रातमझानी ॥ ज्ञानशीतल उपयोगे प्रकाशे ॥ द्रव्यस्वरूप थिर ध्यानी ॥ नवी० ॥ १७ ॥ ढाल चोथी संपुर्ण ॥ PRESAGARAGRAHASAGARGre neGARAGRAGRA ॥ द्वाळ पांचमी.॥ नदी जुमना के तीर उमे दोय पंखीयां-ए देशी, लाखु धर्मास्तिकाय नवी तुमे सांनलो ॥ समजो अव्य वखाण मिथ्या टले श्रांबळो ॥ चेतन बुद्धि कायामां राखीने व्रत धरो ॥ न लहो सो समकित कर्म बांधो खरो १॥१॥ ते कारण प्रव्य जाणी नीज जीव जाणजो ॥ पा४ मशो सम्यक् ज्ञान शीव लही माणजो ॥ धर्मास्तिकाय 9 ग्रंथे गीतार्थे वर्णव्यो । चउगुण वीस्तारमा जोइ अनुन्न. ६ व्यो ॥२॥ अरूपी गुण पहेलो वर्ण अन्नावी ॥ रसगंधने 5 फरसे संस्थान को नथी । संस्थानने अन्नावे अमुत्ती ली जीए ॥ वर्ण विना नही रूप अरूपी कीजीए ॥३॥ प्रथम Psuremendoor Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Gorea ARREGNAGAR SAKAR SARAGRos श्री धर्म प्रवर्तन सा२. ६) गुण थयो सिद्ध बीजो अचेतनए ॥ जाण गुण अन्नावे नही है ते चेतनए अक्रिय गुण त्रीजो करणी करे नही ॥ इहां १ कोश् करे तर्क साज जीवादि तही ॥ ४ ॥ तेहने उत्तर दाखं ए स्वजाव करणी ॥ जलतारे बुझे तेले वेहेवारे नवरणी ॥ स्वन्नाव करणी एक चट अव्ये जाणीए ॥ सिद्ध परमातममांही स्वन्नावे वखाणीए ॥ ५ ॥ पुद्गल संसारी 6 जीव बे ऽव्यमां दाखवू ॥ स्वन्नावने विन्नाव बे करणी लाखq ॥ विन्नाव करणी एक मीथ्यात्वी जीवमां ॥ मन तन वचन प्रवृत्ति नव्यने अनव्यमां ॥६॥ चोथा गणथी उपयोगी चौदमा अंत ज्युं ॥ स्वन्नावने विन्नाव बे करणी संत ज्यु ॥ स्वन्नावे शुद्धातम अनुन्नव करणी ॥ विनावे उदयिक नाव सवे नीरजरणी ॥ ॥ पुद्गलमां दोय नेद करणीना दाखसुं ॥ एक परमाणुं मांही स्वन्नावे लाखसुं। खंध मीले ने विखरे ए विनाव करणी ॥ योग्यतावंत ए अव्य ग्रंथे एम वरणी ॥ ॥ स्वन्नावे जे करणी ते निश्चय १ जाणीये ॥ विन्नाव करणी बाह्य व्यवहारे पीगणीये ॥ व्य वहारे नहि करणी धर्मास्तिकायमां ॥ तेथी अक्रिय का १ हेतु त्रीजा गुणमां ॥ ए ॥ गुण त्रीजो थयो सिद्ध चोथाने पीलाणीए ॥ जीव तथा पुद्गल बेहुने गति हेतु जाणीए॥ मीन चाले जळ मांही चाले नही अन्य कां ॥ जीवने पु. द्गल चाले धर्मास्ति थकां ॥ १० ॥ धर्मास्तिने अन्नावे गति 5 नहि संनवे ॥ जीवने पुद्गल नाहि जश् अलोके ग्वे ॥ गति करवा शक्ति ने जीव पुद्गले ॥ आकास आपे मार्ग ६ BigDars Bross nara GARGGERGRAMMAGAR Pro a cts Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ romarawRRISONGramma श्री धर्म प्रवर्तन सार. वीण हेतु न चले ॥ ११॥ कारणने अन्नावे सो कार्य न , संजवे ॥ चनु ते काळी राते देखे अनुन्नवे ॥ एम समजी १ तुमे नवी कारणने मानजो॥ निमित्तने उपादान संनवे सो जाणजो॥ १२ ॥ गुण चोथो थयो सिद्ध धर्मास्तिकायनो ॥६ हवे करुं विस्तार चार पर्यायनो ॥ खंध एक अव्य पर्याय है रह्यो लोकाकासमां ॥ उर्ध्व अधो तिर्गदी ते कल्पी ए दे-6 शमां ॥ १३ ॥ ए बीजो त्रीजो प्रदेश कहीया असंख्यए ॥ लोकाकास प्रमाणे प्ररुप्या जीनंदए ॥ अगुरु लघु पर्याय चोथो परिणतिए ॥ हानी वृद्धि बार गुण नीवृत्तिए ॥१४॥ ए चार पर्याय गुण चार दाखीया ॥ उपगारी गुरु मुखे सुएया एम नाषीया ॥ ज्ञान शीतल करीनविजन अव्यने जाणजो॥ थीर मने करजो विचार हठ नहि ताणजो ॥ १५ ॥ ढाल पांचमी संपूर्ण ॥ PROVINCLES PareAGrSAGARAGre Gre Greal ProGARGror ॥ ढाळ छही ॥ देखो गति देवनीरे-ए देशी. अजीव अरूपी हवे वर्णवुरे ॥त्रण द्रव्य व्याख्या आ ढाळ॥ अधर्मास्ति श्राकाशास्तिरे॥ कहुं वलीत्रीजो काल ॥ ट्र सोनागीजन सांनलोरे ॥ व्याजोग निश्चय ज्ञान अ नुन्नवसुं मील्योर ॥ ए आंकणी ॥ १ ॥प्रत्येके त्रण प्रव्य9) नारे ॥ गुणपर्याय चार चार ॥ त्रण गुण पूरवपरेर ॥ १ धर्मास्ति ए विचार ॥ सोनागी ॥२॥ अरूपी अचेतन हे बीजोर ॥ श्रक्रीय त्रीजो एम ॥ विस्तारे वर्णव कोरे ॥ _ (१३४) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RASALA SonGGROGREAGrammar श्री धर्म प्रवर्तन सार. . १ तेम नावो करी प्रेम ॥ सोनागी० ॥३॥ एक गुणे जिन्न नाखशुरे ॥ अनुक्रमे त्रण अव्य ॥ अधर्म स्थिती हेतु डेरे॥ १ 2 ते जाणीये टाली गर्व ॥ सोनागी० ॥ ४ ॥ जीव पुद्गलने ते दीयेर ॥ वीसामो मनोहार ॥ वाटे पंथी चालतारे ॥ ग्रीष्मकाळे विचार ॥ सोनागी० ॥ ५॥ देखी वद वीसामो है लीयेरे ॥ तेम जीव पुद्गलने तेह ॥ कह्यो स्थिति हेतु श्रध- ६ मास्तिरे ॥ एम समजो गुणगेह ॥ सोनागी ॥६॥ श्राकाश ते अवकाशनोरे ॥ हेतु सवे अव्ये थाय ॥ जीवधजीव रूपी अरूपीरे ॥ आकाश खेत्रे समाय ॥ सोनागी० ॥७॥ काळ हेतु अस्ति अव्यनारे ॥ पर्याय धर्मनी मांही ॥ पूर्व । पर्याय बेदीनेरे ॥ अनिनव उपजे त्यांही ॥ सोलागी॥॥ चोथो गुण त्रणे अव्यनारे ॥ कह्यो कहुं बुं पर्याय ॥ अधर्म चौदराजमारे ॥एक खंध द्रव्यपर्याय ॥ सोनागी० ॥ ए॥ उर्ध्व अधो ति दिकरे ॥ कल्पी कहीए देश ॥ प्रदेश अ-5 संख्याता कह्यारे ॥ लोकाकाश प्रदेशे प्रदेश ॥ सोलागी १॥१०॥ अगुरु लघु परिणतियेरे ॥ गुण वृत्तिनी मांही॥ हानि वृद्धि ग्रंथे कहीरे ॥षट् षट्नेदे त्यांही॥ सोनागी॥११॥ ए पर्याय चार दाखीयारे ॥ अधर्म अव्यना सार॥हवे कहीशु ए आकाशनारे ॥ पर्याय नेद ए चार ॥ सोनागो० ॥ १२ ॥ ६) एक खंध द्रव्य पजवारे ॥ लोकालोक प्रमाण ॥ सोका काश देश कीजीयेरे ॥ प्रदेश अनंता वखाण ॥ सोलागी . ॥ १३ ॥ प्रदेश लोकाकाशे कह्यारे ॥ असंख्याता ग्रंथे , हे साख ॥ अगुरू लघु परिणतीयेरे ॥ गुण वृत्तिए राख ॥ ६ Progress reOBERane Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ven one श्री धर्म प्रवर्तन सा२. 9 सोनागी० ॥ १४ ॥ हवे कहुँ काळ अव्यनारे ॥ चार नेदं । पर्याय ॥ अतित जे अनंतो गयोरे ॥ तेनो नेम न बंधाय ॥ सोनागी० ॥ १५॥ अनागत अनंतो रह्योरे ॥ एक समय वर्तमान ॥ वर्तमान अतितमारे ॥ अनागत वर्तमान ॥ सोनागी० ॥ १६ ॥ चोथो अगुरू लघु कह्योरे ॥ एम नेद है ६ पर्याय ॥ काळ अव्य अबतो कह्योरे॥ आरोप नैगम थाय ॥ 6 सोलागी० ॥ १७॥ अजिव अरूपी दाखीयारे॥श्रा ढाळ- से मांत्रण द्रव्य ॥ धर्मास्ति पूर्वे कटोरे ॥ अजिव अरूपी ए 6 सर्व ॥ सोनागी० ॥ १७ ॥ हवे रूपी प्रगलनेरे ॥ ना वचन रसाळ ॥ ज्ञान शीतल तेने जाणतां रे ॥ बोध पामे 6 के बाल ॥ सोनागी० ॥ १५ ॥ ढाल उही संपुर्ण ॥ ॥ढाळ सातमी॥ ॥ देशी चंद्रावळानी ॥ पुद्गल द्रव्यने वर्णवूरे ॥ जेह रूपी कहेवाय ॥ नेद घणा तस दाखीयारे ॥ ए उपयोगे ग्रहाय ॥त्रुटक ॥ उपयोगे ग्रहायसे दाखं॥ परमाणु बीजो खंध ते नाखुं ॥ खंध दोय नेद ते कहीये ॥ जीव सहित रहित जिव लहीये ॥ सुणो नवी जन एह ॥ ए १ आंकणी ॥१॥ जिव रहित जे खंधर ॥ तेहना नेद अनेक ॥ @ द्विप्रदेशीथी मामीनेरे ॥ अनंत प्रदेशी ब्रेक ॥ त्रुटक ॥अ. ७ नंत प्रदेशी बेक अनंता ॥ मीले वीखरे नंग सादी संता विन्नाव पर्याय ते कहीए ॥ परमाणु स्वन्नावे लहीए ॥ & सुणो० ॥२॥ जीव सहित जे खंधबेरे ॥ तेहना कह्या है नेद दोय ॥ सुक्ष्म बादर जाणीएरे ॥ वर्गणा चौ चौ सोय . (११) e Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Goreove PROGRAMSARANTERASANSAR त्रुटक ॥ वर्गण चौ चौ सोय ते श्राव ॥ उदारीक पहेली ६ सो ग ॥ बीजी वैक्रीय ते कहीये ॥त्रीजी अहारक ते १ सहीए ॥ सुणो० ॥ ३ ॥ काय जोग बंध एहथीरे ॥ जिव करे सही दार्खा ॥ मनुष्य तिर्यंच गति प्रतेरे ॥ काया उ दारीक नाखुं ॥ त्रु० ॥ काया उदारीक नाघु एह ॥ देव नर्क वैक्रीय तेह ॥ चौद पूर्वी आहारक करे ॥ तिहां प्रमाद गुणगणुं रे ॥ सुणो० ॥ ४ ॥ तेजस वर्गणा चोथी कही रे ॥ पाचन अग्नि ते एह ॥ नाषा वर्गणा पांचमीरे ॥6 वचन जोग सो तेह ॥ ७० ॥ वचन जोगसो तेहज कहीए। ॥ स्वासौ सास ते ही सहीए ॥ मनोवर्गणा सातमी दाखी ॥ ते मन जोग घटमां राखी ॥ सुणो० ॥५॥ वर्गणा कार्मण पाठमोरे ॥ कर्म पाठ मुल एह ॥ ज्ञानावर्णादी बंध एरे ॥ सत्ता उदीयादी तेह ॥ त्रु० ॥ सत्ता उदी यादी तेह उत्तरमां ॥ एक सत ने वीस डे बंधमां ॥ १ उदय उदीरणामां एक सत बावी ॥ सत्ता अट्ठावन एक सत नावी ॥ सुणो० ॥ ६॥ प्रथमनी चउ वर्गणारे ॥ १ बादर कही जिनराय ॥ बादरमा गुण वीस रे ॥ वर्ण पंच रस पंच गाय ॥ ७० ॥ वर्ण पंच रस पंच गाय ग्रंथे॥ दोय गंध कह्या ग्रंथ पंथे ॥ फर्स आठ सुण्या गुरु मुखे ॥ १ ए वीस गुण जाण्या सुखे सुखे ॥ सुणो० ॥ ॥ पाळनी ६ च वर्गणारे ॥ सुक्षम तेह कहाय ॥ सोळ गुण ने एहमां १ रे ॥ हीण फर्स चउ थाय ॥ त्रु० ॥ हीण फर्स चल थाय यथारथ ॥ वर्गणा संबंध को गीतारथ ॥ वर्गणानो , singnoresress.org POSBARAMA Morangroversiagra Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Grnore SANGRAMMERSARGDAMODIGEORGree RANGARGARGodarramma श्री धर्म प्रवर्तन सार. सादी संत लंगे ॥ तेजस कार्मण कहुं हवे रंगे ॥ सुणोण ॥ ७ ॥ अनादी अनंत अन्नवीनेरे ॥ नवीने अनादी संत॥ गुन्नाशुन्न ते जाणीयेरे ॥ पुन्य पापसो कहंत ॥ ७० ॥ ! पुन्य पापसो कहंत ते आश्रव ॥ जीव गुण बाळे सही ए. दव ॥ ज्ञान शीतल पुद्गलने जाणो ॥ कह्यो कहुंडं श्रागे , चित आणो ॥ सुणो० ॥ ए ॥ ढाल सातमी संपुर्ण ॥ ॥ ढाल आठमी ॥ ॥श्री अरीहंत पद ध्याइए-ए देशी ॥ समजो नवीजन एहने॥ कहुं वर्गणानो विचाररे॥जीव ३ ग्रहे सही दाखवू ॥ करो श्रद्धा निरधाररे ॥ समजो० ॥ ए आंकणी ॥ १॥ जीव अन्नवी जगतमां ॥ तेथी अनंत 3 गुणा करीयेरे ॥ सिद्धना नाग अनंतमां ॥ एटला परमाणु दळ कहीयेर ॥ समजो ॥२॥ते वर्गणा बादर नावमां ॥ र ग्रही बांधे उदारीक कायारे ॥ तेथी उठी ते ग्रहे नहि ॥ एम बोले गीतारथ रायारे ॥ समजो० ॥३॥ तेथी अनंत गुणा दळ नरी॥ वर्गणा बीजी वैक्रीयरे ॥ जीव ग्रहे सही ह एहने ॥ गुरु वचने एम कहीयेरे ॥ समजो० ॥ ४ ॥ तेथी १ श्राहारक अनंत गुणी ॥ जीवना ग्रासमां आवेरे ॥ एम ९ कीजे प्रत्येके अनंत गुणी ॥ अधिक सवे चमती कहावरे ॥ समजो० ॥५॥ तेजस नाषा खासौ सासजे ॥ तेथी अनंत गुणी मन थायरे ॥ मनथी कार्मण अनंत गुणी ॥ नीज & जाती परमाणुं कहायरे ॥ समजो० ॥ ६॥ तेथी उनी अ है ग्रहण कही ॥ आगम सार ग्रंथ साखीरे ॥ नय व्यवहार (13८) AGRAGAPAGAPAGE Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Onearedeoaseeoroorera RSearBaMGARAMBOGra श्री धर्म प्रवर्तन सार. ६ गवेखतां ॥ देवचंडजीए नाषीरे ॥ समजो० ॥७॥ एकथी , बीजी अनंत गुणी कही ॥ तेहy कारण कहीएरे॥ सुक्षम 9 डे पहेलीथी बीज॥ बीजीथी सुक्षम त्रीजीएरे॥समजो॥॥ ६ एम सुक्षम चमती सवे ॥ वर्गणा खंध जाती आठरे ॥ है. सर्वे सरखी कीजीए ॥ पुद्गलपणे एक गठरे ॥ समजो० . ॥ए॥ जीव ग्रहण वर्गणा कही॥ हवे कहुं गुण पर्यायरे 6 ॥ आगळ नवमी ढाळमां ॥ ज्ञान शीतल वर्णव थायरे॥ है हे समजो० ॥ १० ॥ ढाल आठमी संपूर्ण. . . . . . . ॥ ढाल नवमी ॥ ॥राग बंगाली॥ पुद्गल द्रव्यना गुणपर्याय ॥ जाण्या अनंता जीनेंद्रराय ॥ नवी सांजलो ॥ तेमां चौ चौ मुख्य कहाय ॥ग्रंथे वर्णव्या गीतारथराय ॥ नवी सांनलो ॥ १॥ पहेलो कह्यो १ गुणरूपी जेह ॥ दृष्टीगोचर श्रावे तेह ॥ नवी सांजलो ॥ बीजो अचेतन जमता जेह ॥ जाणं गुणनो अन्नाव तेह ॥ नवी० ॥२॥ त्रीजो क्रिया गुण कहेवाय ॥ शुन्नाशुन्न क्रिया १ जेह थाय ॥ नवी० ॥ चोथो मिलण वीखरण जेह ॥ स१ मण पमण वीध्वंसण तेह ॥ नवी० ॥३॥ ए गुण चज कह्या ६ कहुं पर्याय ॥ वर्ण पंच ए पहेलो कहाय ॥ नवी० ॥ रातो 9 धोळो लीलो पीळो स्याम ॥ बीजो रस पंच नेदे नाम ॥ है नवी० ॥ ४ ॥ तीखो कमवो कषायलो जेह ॥खाटो मधुरो , ए पंचे तेहः ॥ नवी० ॥ त्रीजो गंध दोय नेद पर्याय ॥3 सुरनी पूरनी वास लहाय ॥ नवी० ॥ ५॥ चोथो फर्स ६ RAGHORowerGH SwerGener@narrani Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ તેન સાર RBAGreAGRAMME BAGrdars १ श्राउ नेद नाम॥ सीत उष्ण नारे हलवो ताम ॥ नवी ॥ स्निग्ध रुक्ष कोमळ बरसट ॥ फरस सवेए कह्या अष्ट ॥ १ ॥ नवी० ॥ ६॥ ए चौ पर्याय नाण्या सार ॥ वळी गुण गावानो के विचार ॥ नवी० ॥ इंद्री नोइंद्री मन वचकाय ॥ पर्याप्ति प्राण पुद्गल ताय ॥ नवी० ॥ ७॥ संघयणने वळी संस्थान ॥ खेस्या संझा ए पुद्गल स्थान ॥ नवी० ॥ ज्योनी वेद जनमने मरण ॥ जरा जरा दोय पुद्गलरण ॥ नवी० ॥ ॥ श्राहार नीहार गता गती जेह ॥ अवगाहना ए पुद्गल तेह ॥ नवी० ॥ पुद्गल सुक्ष्मने बादर ॥ आधि व्याधि ए पुद्गल सर ॥ नवी० ॥ ए ॥ आले कर्म कह्यां पुद्गल ॥ बंध उदय ए पुद्गल दल ॥ नवी०॥ र सत्ता उदीरणा कर्म कहाय ॥ पून्य पाप ए पुद्गल ताय नवी० ॥ १० ॥ इत्यादि पुद्गल गुण अनंत ॥ ते जोगे संसार नाषे संत ॥ नवी ॥ज्ञान शीतल कहे टालो तेह ॥ नीज वृत्तिए लहो शीवगेह ॥ नवी० ११ ढाल नवमी॥ ॥ढाळ दशमी ॥ धन्य धन्य ते जग प्राणीया मन मोहन मेरे-ए देशी॥ श्राव हेतु नाषीए सही चेतनमेंरे ॥ तेमां पहेलो ए ट्र हेतु मिथ्यात ॥ सही० ॥ अव्रत बीजो कषाय त्रीजो १॥ सही। ॥ जोग चोथानी कहुं वात ॥ सही ॥१॥ मुळ हेतु चढए कह्या ॥ सही० ॥ उत्तर सत्तावन नेद ॥ सही ॥ तेमां मिथ्यात्व पंच नेदे कह्या ॥ सही॥ | ६ श्रव्रतना कह्या बार लेद ॥ सही ॥२॥ कषाय नोकषाय ६ vidrosnewsagroMIGRAN a ranormation GARAGAOLGIRGAOLGIRIGARLGrore Gre Gre Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ARREARRIGER GROGeore श्री धर्म प्रवर्तन सा२. ६ पचवीस कह्या ॥ सही० ॥ जोग नेद पंच दश सार ॥ सही० ॥ सर्वे सत्तावन थया ॥ सही० ॥ अनुक्रमे करूं १ 9 विस्तार ॥सही० ॥ ३ ॥ मीथ्यात्व पहेलं अनिग्रही है ॥ सही० ॥ ग्रयुं न गमे खर पूबवत ॥ सही ॥ हब मत 5 ग्रह्यो कुबुद्धिथी । सही० ॥ तीहां लोह वाणीयानुं अष्टांत ॥ सही ॥४॥ अण अनिग्रही बीजं मिथ्या ॥ सही॥ 5 नहि परीक्षा पीतळ के हीम ॥ सही० ॥ दूध डास नेद जाणे नहि ॥ सही० ॥ इहां सत्य असत्य एकतीम ॥सही० ॥५॥ अन्नीनीवेसी मिथ्या त्रीजु ॥ सही० ॥ खोटुं जाणी खलं करवानो हह ॥ सही० ॥ युक्ति कुयुक्ति घणी करे ॥ सही० ॥ माया नाषाथी न करे ए शह ॥ सही० ॥६॥ 3 मिथ्यात्व संशय ते चोथु ॥ सही० ॥ जीन वचनमां संका हूँ दोष ॥ सही० ॥ अपेक्षा नय समजे नहि ॥ सही० ॥ १ तीहां बोले बोले संकानो जोष ॥ सही० ॥ ७ ॥ मिथ्यात्व अणा लोग पांचमुं ॥ सही० ॥ नहि जाणे ए धर्म के कर्म १॥ सही० ॥ अजाण नवळो सर्वथा ॥ सही० ॥ रच्यो । पच्यो संसारमा पर्म ॥ सही०॥ ॥ मिथ्यात्व वसे संसारे १ का ॥ सही० ।। पुद्गल परावर्त अनंतं ॥ सही० ॥ हवे ! ६ मिथ्यात्व न बोमशो ॥ सही० ॥ तो करसो पुनरपी अनंत ॥ सही० ॥ ए ॥ अनंत पुद्गल परावर्तनो ॥ सही ॥श्र नादि मिथ्यात्व मालीक ॥ सही० ॥ समकित पामीने पमे १ 5 ॥ सही० ॥ तोपण अर्ध पुद्गल ठीक ॥ सही० ॥ १० ॥ अ- 3 हे नादि मिथ्यात्व समको नहि ॥ सही निर्दय शत्रुए दुष्ट , "One Crore@oreoreogreArosa (१४१ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ProONEOroom TAGRAMMARGIRRORISMMAR श्री धर्म प्रवर्तन सार. १॥सही० ॥ अनंत दुःख दातार ए ॥सही। ॥ करे कर्मी | " जीवने ए पुष्ट ॥ सही० ॥ ११ ॥ कर्म पुष्ट शुन्नाशुन्न ए 5॥ सही० ॥ शुन्नाशुन्न श्राश्रव पुन्य पाप ॥ सही० ॥ मि-६ है थ्यात्व पांच नेद कर्वा ॥ सही०॥ अवतनो आगे कहुं ७ ताप ॥ सही० ॥ १२ ॥ ताप कहेतां शीतळ वळे ॥ सही० ॥ ए अजूत अचरीज वात ॥ सही० ॥ ज्ञान शीतलज्ञान नावमां ॥ सही० ॥ उपयोगी तीहां सुख ॥ सही० ॥१३॥ ढाळ दशमी संपूर्ण ॥ ॥ ढाल अगीयारमी ॥ ॥ तोरण था क्युं चलेरे-ए देशी ॥ मिथ्यात्व इष्ट इस्युं कछुरे ॥ वळी कयु गुणगण सखुणा ॥ प्रश्न कर्यु रुहुँनयंरे ॥ उत्तर करूं परमाण स. खुणा ॥ शंका पमे तो फरी पुडीनेर । निःसंक था गुणगेह सखुणा ॥ ए आंकणी ॥ १॥ प्रथम मिथ्यात्व उष्टनोरे ॥ अर्थ कहुं थिर चित्त ॥ स ॥ त्यार पड़ी गुणगणनोरे ॥ कहेशं उपयोग रीत ॥ स० ॥ संका ॥२॥ मिथ्यात्व उतां नव पूरवीरे ॥ कह्या अज्ञानी ग्रंथे साख ॥ २०॥ व्यवहारे यथारथ संयतीरे । कह्या असंयती नगवैए दाख ॥ स॥ संका ॥ ३॥ नर्क तिर्यंच गति आउखुरे मिथ्यात्व विण न बंधाय ॥ स ॥ स्त्री नपुसक दोय वेदनोरे ॥ मिथ्यात्व गणे बंध थाय ।। स० ॥ संका० ॥ ४ ॥ अनंतुं दुःख नॐ रके कछुरे ॥ खेत्रवेदना परमाधामी आपे ॥ स० ॥ वली , लढी मरवानुं तीहारे ॥पूर्वनव वेरनीए बापे ॥स ॥ १ ___(१४२). SONGSavories Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ OMOEMBEMINEMA AgrGR SAREER NAGORGarg શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર, संका ॥५॥ नर्कथी अनंतुं निगोदमारे ॥ दुःख नाषे जीनेद्रदेव ॥ स० ॥ पुद्गल परावर्त तीहां कयौरे ॥ अनंतां ए मिथ्यात्व टेव ॥ स० ॥ संका० ॥ ६॥ धर्म करयां धर्म होवे नहिरे ॥ धर्म करयां बंधाय कर्म ॥ स० ॥ संसार वृद्धि हेतु एरे ॥ मिथ्यात्व अज्ञान नर्म ॥ स० ॥ संका० ॥७॥ मिथ्यात्वी जीव अजीव समोर ॥ न जाणे वस्तु 5 धर्म श्म ॥ स० ॥ अती पाप मीथ्यात्व एरे ॥ बळीयामां के बळीयो ए सीम ॥ स० ॥ संका० ॥ ॥ ब्यासी प्रकृति पापनीरे ॥ तेमां एक पद्धे धरीए मिथ्यात ॥ स० ॥ वीजा ३ पखे एकासी सवेरे ॥ तोट्यां मिथ्यात नारे नमी जात ॥ स० ॥ संका० ॥ ए ॥ अनंत पुद्गल परावर्तनोरे ॥ मालीक एक मिथ्यात्व दुष्ट स० ॥ अव्रत कषाय जोग त्रण एरे॥ मालीक नव सात के अष्ट । स० ॥ संका० ॥१०॥ वहुल संसारी मिथ्यात्व एरे ॥ सर्व धर्म घाती एह ॥ स० ॥ थप मंगलीकमां मूख्य एरे॥ शत्रु चारित्र रायनो तेह ॥ स० ॥ संका० ॥ ११ सागर सीत्तर कोमा कोमीनीरे॥ स्थिती मोटी ए शत्रु कठोर ॥ स. जगवासी सवे जीवनेरे ॥ राखे आंणमां सेवक ज्युं नगर ॥ स संका ॥१२॥ आपे सहाय सवे कर्मनेरे ॥ मोह पटलीनो पुत्र ए मोटो ॥ स० ॥ ६) एने जोइ अघातीने वळ वधेर । फेरी सबसें ए मिथ्यात्व ६ खोटो॥ स॥ संका॥१३॥ उदय साता असाता वेदनी रे कही गुण रोधक ते देखो ॥ स ॥ वाला बोध चौवीसीये हरे॥ वोले देवचं जी ए पेखो ॥ स० ॥ संका० ॥ १४ ॥ ३.६ sang angrah ARMARISROOOK pregoricornerBrore (१४३) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GranarranoranoramaraGranaras श्री धर्म प्रवर्तन सार. त्यादि घणुं शुं कहीयेरे ॥ थोडं को घणुं जाणो चतुर ॥ स०॥ ज्ञान शीतलनुं कहेण मानजोरे ॥ मिथ्यात्व ब्रमिक १ 9 ज्युं धंतुर ॥ स ॥ संका० १५ ॥ ढाल अगीयारमी सपूर्ण ॥ ॥ ढाल बारमी ॥ ॥ चतुर नर सामायक नय धारो ॥ ए देशी ॥ चतुर नर अव्रत बीमां टाळो॥ षट काय षट इंद्रीनो इंद्री ए बार अव्रत लाळो ॥ चतुर ॥ अवतः ॥ ए श्राकणी ॥१॥ आतम घर मेलातहे घटमां ॥ असंख्य प्रदे-6 शनी रचना ॥ अनंत गुणपर्याये नरपुर ॥ सरखा बराबर सिद्धना ॥१०॥ अवतः ॥२॥ए बार बीमांमां थश्ने श्रावे॥ नीरंतर चोर रागद्वेष ॥ श्रातम गुण रीद्धि सै जावे ॥ तिहां चेतन करे कर्म क्लेष ॥ च० ॥ अवतः ॥३॥पांच इंद्रिने मन नोद्रि ॥ तेनो विषय शुन्नाशुन्न कहीए ॥ राग द्वेषए अशुद्ध परिणति ॥ पुद्गल संगे लहीए ॥च० ॥ अवतः ॥ ४॥पृथवि पाणी अग्मिने वायु ॥ वनस्पतिने त्रस॥ ए सर्वे १ अप्रत सेवनथी ॥ कर्मबंध रागद्वषवस ॥च॥ अवत०॥॥ ए ) बार अतथी अलगा थश्न॥ अंतर गत घटमांही॥चिदानंद घन नजरे नीरखो ॥ करो शुद्ध उपयोग त्यांही ॥ च० ॥ अतः ॥ ६ ॥ एम नाव विरतीये स्वरूप रमणगत ॥ अंतर मुहर्तमांही ॥ रागद्वेष मोहादी हणीने ॥ सहीये ६ केवळ अरिहंत त्यांही ॥ च ॥अवतः ॥ ७॥ एम अ-3 9 व्रतने टाळो जवीजन ॥ आश्रव अलगो होवे ॥ ज्ञान , शीतल गुणगत परिणामे ॥ कर्म मेल सब धोवे ॥ च० ॥ (१४४) Goraroorrearrirearera Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MMGDAMBARGOT READERSEXARMARCard श्री धर्म प्रवर्तन सार. ११ अबत ॥ ७ ॥ ढाल बारमी संपूर्ण ॥ .. ॥ ढाल तेरमी ॥ देशी चंडावळानी ॥ ___ कषायनी पहेली है चोकीरे ॥ अनंतानुबंधी ए दुष्ट ॥ जाव जिव लगे रहेरे॥ क्रोध पथ्थर फाट पुष्ट ॥ त्रुटक० ॥ क्रोध पथ्थर फाट पुष्ट 3 है अमी लावो ॥ मान पथ्थर थन नमे न नमाग्यो ॥ वांस मूळ वांकां तेसी माया ॥ कीरमज रंग ज्युं लोन कहाया॥ समकित घाति ए मोह ॥१॥ कषायनी बीजी चोकमारे ॥ अप्रत्याख्यानीए बळे ॥ बार मास लगे रहेरे ॥ क्रोध जमी फाट मले ॥ ७० ॥ क्रोध जमी फाट मले मेघ वरटू से ॥ मान अस्थि यंन म्ट नही नमसे ॥ शींग घेटानां १ वांकां तेसी भाया ॥ करदम रंग ज्युं लोन कहाया ॥ देश विरति घाति ए मोह ॥२॥ कषाय प्रत्याख्यानी चोकमी रे ॥ त्रीजी ग्रंथे कहाय ॥ चार मास लगे रहेरे ॥ क्रोध वेळु लीक पूराय ॥ त्रु० ॥ क्रोध वेळु लीक पुराय वायु आपे ॥ मान काष्ट थंन वळे तेल तापे ॥ गौमुत्रीका वांकी है तेसी माया ॥ लोन गामी उजण मली माग थाया ॥ सर्व विरती घातीए मोह ॥३॥ कषायनी चोथी चोकमीरे ॥ 3 संज्वलनी ते कहाय ॥ पंच दश दीन ए रहेरे ॥ क्रोध जळ लीक ज्यु थाय ॥४०॥ क्रोध जळ लीक ज्युं थाय अळप॥नेत्र थंन्न नमे ज्यु मान बोमेटप॥ वांस बोती वाकी तेसी माया॥ हलदी रंग ज्यु लोन कहाया ॥ यथाख्यात घातिए ६) मोह ॥४॥ कषायनी चउ चोकमारे ॥सोळ नेद विस्तार॥ है अष्टांत साथे वर्णवीरे ॥ स्थिती कही प्राश्कघार ॥२॥ १ (१४५) PRACTOBEResorrore. DasranamaraGORAGrdGitarNGrere RAGRAMMAGAR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वतन सार, ........... १ त्रु० ॥ थीती कही प्राश्कधार अंतरमें ॥ हम्मत नांही अनेकांत धर्मे ॥ हवे नोकषाय नव दार्खा ॥ अनुक्रमे उपयोगे नाखुं ॥ आतम गुणघातीए मोह ॥ ५॥ हास्य मोहनी नोकषाय पहेलोरे ॥ वीनोद कारण विषवाद ॥ रति मोहनी नोकषाय बीजोरे ॥ शाता द्वेष कारण नाद ॥३०॥ शाता द्वेष कारण नाद पापस्थान ॥ अरति मोह त्रीजो अशातावान ॥ जय मोहनी नोकषायनी नीती॥ मरणादी सप्त जय वर्ते अनीती ॥ श्रात्म गुण घातीए मोह ॥ ६ ॥ शोक मोह नोकषाय पांचमोरे ॥ राग कारण करे क्वेश ॥ दुगंडा ते मोह नोकषाय बहोरे ॥ अशुची कारण द्वेष ।। त्रु०॥ अशुची कारण द्वेष अणगमतुं ॥ पुरुषवेद जोग विषय मन नमतुं ॥ स्त्रीवेद कह्यो अग्नि जागो । नपुसकवेदे सदा रहे दाम्यो ॥ आतम गुण घातीए मोह ॥ ७ ॥ नोकषाय नवन्नेदे दाखीयोरे ॥दाख्यासवे पंचवीस ॥आश्रव हेतु एडे त्रीजोरे ॥ अनादी संबंध आधीस ॥ ७० ॥ श्रनादी संबंध आधीसपणे नूखीयो ॥ सिद्धसम चेतन प्रसंगे दुःखीयो ॥ ज्ञान शीतल प्रसंग जब तूटे ॥ कर्म आठ १ सत्ताथी बूटे ॥ धन्य दीन धन्य धमी तेह ॥ ढाल तेरमी ॥ ॥ ढाळ चौदमी ॥ ॥ चेतन चेतोरे चेतना-ए देशी ॥ ६. योग त्रणने सही वर्णवं ॥ मन वचनने कायरे ॥नेद 2) पंचदश तेहना, कहेशुं उपयोग लायरे ॥ योगः ॥ ए । आंकणी ॥१॥ चउन्नेद मनना कह्या ॥ सत्य सत्या सत्य (१४६) FDIGYAGarera norrespreeMBArea BAGr@GOOGroore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ areAGree REMRAGRAGRAMSARORAGra Gras दूजोरे ॥ असत्य असत्या सत्यए ॥अर्थ सूणी नवी बुजोरे : ६॥ योगः ॥२॥ शुद्ध वेहेवारे मन रमे ॥ घटमां नेद 9 ज्ञान आवेरे ॥ नीरावर्ण गुण आत्मा ॥ केवळ ज्ञानादि ध्यावेरे ॥ योग० ॥३॥ नय ऋजु सूत्र सत्य मन्न ए॥हवे सत्या सत्य दाखुरे ॥ मतीज्ञानादी गुण आत्मा ॥ उपयोग के हे व्यवहारे राखंरे। योगः ॥४॥ असुद्ध वेहेवारे असत्य मन॥ समजे काया तेह जीवरे ॥ असत्या सत्य शुन्न व्यवहारे ॥ कर्म जनित काया गेहरे ॥ योग० ॥ ५॥ ए चउन्नेद मनना कह्या ॥ तेम वचन चउजाणोरे॥ चिंतवे बोले पटं तरो ॥ ए आठ नेद परमाणोरे ॥ योगः ॥ ६॥ हवे का६ याना सात कीजीए ॥ पहेलो योग उदारीकरे ॥ बीजो उदारीक मिश्र ए ॥ त्रीजो वैक्रिय करे ॥ योग० ॥ ७ ॥ चोथो वैक्रिय मिश्रए ॥ पांचमो आहारक जाणरे ॥ बहो आहारक मिश्रए ॥ सातमो तेजस कार्मणरे ॥ योग० ॥७॥ ए सात नेदे काया कही हवे कहुं तस अर्थरे ॥ मनुष्य तिर्यंच दोयगती प्रत्ये॥ उदरीक काया गर्थरे॥योग० ॥ए॥ देवनर्क दोयगती प्रत्ये ॥ काया वैक्रिय जाणोरे ॥ आहारक प्रमाद गणे करे ॥ चौद पूरवी राणोरे ॥ योग० ॥ ॥ १० ॥ आयुष बांधी मरी देह ठगेमीने ॥ जीव नवांतर जायरे ॥ तेजस कार्मण लेश्ने ॥ उपजे तीहां आहार था यरे ॥ योगः ॥ ११॥ मरी कायाथी जीव बूटीयो।जश्ने ७ 5 आहार न लीधोरे ॥ अंतरालवृत्ति तेटसा समे ॥ तेजस , कार्मण कीधोरे ॥ योगः ॥ १२ ॥ ए चल लेद प्रत्येके ६ ___(१४७) BaresearGhare Srirana.org Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ABORAGARGORARGreGroo श्री धर्म प्रवर्तन सा२. १ कह्या ॥ हवे कहं मिश्र त्रण कायारे ॥ उदारीक वैक्रिय बीजी॥त्रीजी आहारक कहायरे ॥ योगः ॥ १३ ॥ ए त्रण नाम ते मुख्यता ॥ गुणता मिश्र ते दाखुरे ॥ तेजस कार्मण मिश्र ए ॥ ए सर्व सात नेद नाघुरे ॥योग० ॥१४॥ 5 ए मुळयोग नेद त्रण कह्या ॥ उत्तर कह्या पंच दशरे ॥ चउद नेद सादि सांत ॥ एक नेद आगे कहीसरे ॥ योग०॥ १५ ॥ तेजस कार्मण काय योगनो॥ ज्ञान शीहै तल कहे संबंधरे ॥ अनादी अनंत अन्नवीने ॥ नवीने 6 अनादी संत नंगरे ॥ योगः ॥ १६ ॥ ढाल चौदमी संपूर्ण॥ के ॥ढाळ पंदरमी ॥ ॥ए नमी कीहां राखी-ए देशी ॥ 3 कर्म बंध निरंतर करीये ॥ ए विनाव क्रीया कहीये ॥ जीवने पुद्गल दोय मील्यां होवे ॥ एक जीवपणे न लरहीयेरे नवीका ॥ ए क्रीया अनादीतारी॥ ए आंकणी ॥१॥ र ए बंध चउन्नेदे दाखं ॥ प्रदेश प्रकृतिबंध ॥ रसबंध स्थिती १ मर्यादा ॥ अष्टांत लामु संबंधरे नवीका ॥ ए क्रीया ॥२॥ प्रदेश तेही बाटो कहीए ॥ खांन गोळ प्रकृति॥रस ते घी १ नेली सामु वाळो ॥ थीती मर्यादा उरतीरे ॥ नविका ए , क्रीया० ॥ ३॥ ए कह्यो नय हवे उपनय दार्खा ॥ शुन्ना शुन जेवी क्रीया ॥ तेवो आश्रव करम दळ खेंचे ॥ खंध ६ परमाणु अनंता नरीयारे। नवीका ॥एकीया०॥४॥प्रकृति, चनकषाय कहीए ॥ अनंतानादी नेद चल ॥ नोकषाय मिथ्यात्व ए वीस॥ जेसी होवे तेसी बांधे बहुरे। नवीका 6 (१४८) STMaroradardasreereareranGrenore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PreeMAGreer ॥ ए क्रीया ॥५॥ रस ते राग द्वेष अशुद्ध रस ॥ अज्ञान ६ रस अशुद्ध ॥ जेटलो पोतामां होय ते रसथी ॥बांधे आत्म प्रदेश अबुद्धरे ॥नवीका॥ एक्रीया० ॥६॥ प्रदेश कर्मदळ ६ मोह प्रकृति ॥ रस अज्ञान राग द्वेष ॥ निजातम असंख्य # प्रदेशे ॥ बांधे एकत्व परिणमन बेसरे॥ नवीका॥ ए क्रीया है ॥ ७॥ ए कर्मबंध जीहां तक रेहेवे ॥ आत्म प्रदेशथी न & विखरे ॥ तेना काळy मान ते स्थिती ॥ उत्कृष्टी कहूँ सिखरेरे ॥ नवीका ॥ ए क्रीया० ॥॥ ज्ञानावर्णीने दर्शनावर्णी वेदनिकर्म अंतराय ॥ त्रीस कोमाकोमी सागरोपमनी ॥ स्थिती ग्रंथे कहायरे ॥ नवीका ॥ ए क्रीया० ॥ए॥ मो हनी कर्मनी स्थिती दूनेदे ॥ मिथ्यात्व बीजो कषाय ॥ 3 सीतेर कोमाकोमी सागरोपमनी ॥ मिथ्यात्व मोहनी कहाहूँ यरे ॥ नवीका ॥ ए क्रीया० ॥ १७ ॥ चाळीस कोमाकोमी सागरोपमनी स्थिति कषायनी दाखे ॥ समकीत घातीए मिथ्यात्व कहीए॥ घाती कषाय नाखरे नवीका॥ ए क्रीयाः १॥११॥ नामने गोत्र बे कर्मनी स्थिती ॥ सागरवीस कोमा६ कोमी ॥ तेत्रीस सागर आयुष्य केरी॥ दाखी ग्रंथे उष्टी जो६ मीरे॥नवीका॥ ए क्रीया० ॥ १२ अझान राग द्वेष अशुद्धह रस॥ मतीश्रुत विनंगअज्ञान ॥ राग द्वेष परिणति अशद्ध ॥१ 9 ए कर्मबंध हेतु स्थानरे ॥ नवीका ॥ ए क्रीया० ॥१३॥ सम कित वीण ज्ञानी नही होवे ॥ वितराग विण रागी द्वेषी॥ ६ & समकिती संन्नावे अबंधक ॥ सकाम निर्जरा लेसीरे॥नवीका है है॥ए क्रीया० ॥ १४ ॥ ए विन्नाव क्रीयामां नांगा कहीए ॥ ___(१४८) EPALI Diroregaon Dr D ai Relangaroo poriesord Ganedeore BROGRagni Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SARGBra RAMBIGGregoriGIRamroSane PREASSAGARMATKARISEASeAng नवीने अन्नवीमां॥ अनादी अनंत अन्नवीने.लागे॥ अनादी संत नाप्यो नवीमारे॥नवीका ॥ ए क्रीया॥१५॥ श्रनादी क्रीया जब त्याग होवे ॥ तब होवे आत्म अबंध ॥ ज्ञान शीतल उज्वल घटमांही॥ ते लहे शीवसुख संबंधरेलवीका ॥ ए कीया अन्नीनवप्यारी ॥ १६ ॥ ढाल पंदरमी संपूर्ण॥ ॥ ढाल सोळमी ॥ ॥ कपुर होवे अती उजळोरे-ए देशी ॥ S: चौकर्म अघाती पूर्व बंधनीरे ॥ शुन्न प्रकृति होय 6 जेह ॥ तेनो उदय पुन्य कीजीएरे ॥ दाखं बायाली नेद तेहरे ॥ प्राणीए पुन्य तणो अधिकार ॥ ते संसारे सुखनुं गेहरे ॥ प्राणीए० ए आंकणी ॥१॥ साता वेदनी । उदय थकीरे ॥ करे सुखनो अनुलव ॥ मधु लेप खमंग धारज्युरे ॥ चाटयां जीन कापे पुःख थाय तवरे ॥प्राणी ए॥२॥ उंच गोत्र उदय थकीरे ॥ उंच कुळे जन्मे ६ जीव ॥ मान पूजा प्रतिष्टतारे ॥ लहे श्रादर सत्कार दीव्यश्रे॥प्राणीए० ॥ ३॥ सुख आयुष कर्म उदय थकीरे ॥ पामे त्रण गति पर्याय ॥ काया देव मनुष्य तिर्यंचनीरे ॥ १ हेम बंधन ए सर्व कहायरे ॥ प्राणीए० ॥४॥ ए त्रण क@ मना कह्यारे॥ पांच नेद ते उदार ॥ हवे सप्ततीस नामनारे॥ १ ए नेद विचित्र चितारे रे॥ प्राणीए० ॥५॥ मनुष्यधिक नाम उदय थकीरे ॥ पामे मनुष्य गति पर्याय ॥ मनुष्य- १ नी आनुपुरवीरे ॥ वक्रगती उत्पत्तिये लायरे ॥ प्राणीए। ॥६॥ सुरद्रिक नाम उदय थकीरे ॥ पामे देवगति पर्याय॥ १ (१५०) Grenorroresransra Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SENERGEDERARMGreena श्री धर्म प्रवर्तन सार, ७ देवनी आनुपुरवीरे ॥ मनुष्यद्रिके कहीज्यु कहायरे ॥ , प्राणीए० ॥७॥ पंचेंड़ी जाति उदय थकीरे ॥ पामे सही १ ६) इंशीयो पांच ॥ देव मनुष्यादी गती प्रत्येरे ॥ उदय बते न है लागे खांचरे ॥ प्राणीए० ॥७॥ उदारीक शरीरनोरे ॥ उदय होय जब सार ॥ उदारीक आहार लेश्नरे ॥ बांधे शरीर पीझ नही वाररे ॥ प्राणीए० ॥ ए ॥ उदारीक अंगो पांग उदय थकीरे ॥ बांधे आठ अंग उपांग ॥ अंगुली रे खानख केस एरे॥इत्यादि कह्यां अंगोपांगरे ॥प्राणीए० ॥ १० ॥ वैक्रीय शरीरनोरे ॥ अंगोपांग उदय थाय ॥ ते बांधे उदारीकज्युरे, एम नावो ए सरखो न्यायरे ॥ प्राणीए० ॥ 3 ११॥ वैक्रीयना दोय नेदरे ॥ औपपाति लब्धि एम ॥ औपपाती देव नर्कमारे ॥ लब्धि मनुष्य तिर्यंच तेमरे॥ प्राणीए० ॥१॥ वैक्रियादि लब्धि एरे॥ करे मनुष्यादी रुप अनेक ॥ प्रत्येक रूपे नीजात्मनारे ॥ प्रदेश असंख्यनी टेकरे ॥ प्राणीए० ॥ १३ ॥ ए प्रदेश लब्धिवंतनारे ॥ काढे ते मुळ कायाथी सार ॥ अनेक रूपे एक आतमारे॥न त्रुटे प्रदेश श्रेणी फाररे॥प्राणीए०१४ाए रूपथी लढतां अन्य सुरे॥लागे एकने शस्त्र प्रहार ॥ तेनुं फुःख जे प्रगटेरे ॥ ६ ते अनुन्नव सर्वने धाररे ॥ प्राणीए० ॥ १५ ॥ असंख्याता ) प्रदेश विनारे ॥ कायजोग न बंधाय ॥ रुप विखरे श्रावी मिलेरे ॥ मुळ कायाये श्रेणी समायरे ॥ प्राणीए० ॥ १६ ॥ 9 आहारक शरीर उदय थकीरे ॥ आहारक दळ ग्रहाय ॥ है शरीरपणे परिणमावीनेर ॥ ममा हाथनी बांधे ए कायरे ॥ (१५१) PROGermaareGhareMerorar roGree More Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ngred Siri श्री धर्म प्रवर्तन सा२, १॥प्राणीए० ॥ १७ ॥ आहारक अंगोपांग उदयथकिरे ॥ बांधे अंग ऊपांग ॥ पूर्वे कडं ज्युं उदारीकरे ॥ १ ॐ एम नावो ए जोग अती चंगरे ॥ प्राणीए० ॥ १७ ॥ तेजस शरीर उदय थकीरे ॥ आहार- पाचन थाय ॥ जठरा अग्नि एहबेरे ॥ उदय अन्नावे काळ कहायरे ॥ प्राणीए० ॥ १७ ॥ कार्मण शरीर उदय थकीरे ॥ कार्मण दळ बंधाय ॥ असंख्य प्रदेशे ऐक्यतारे ॥ एखीर नीर द्रष्टांत न्यायरे ॥ प्राणीए० ॥ २० ॥ प्रथम संघयण उदय थकीरे ॥ हाम संधि अढ बंधाय ॥ मर्कट बंध दोय पासथीरे ॥ उपर पाटाए खीली जमायरे ॥ प्राणीए० ॥ २१ ॥ पहेला संस्थान उदय थकीरे ॥समचनरस पलांगी राय॥ 3 मानो जानु जमणे खन्नेरे ॥ जमणो जानु माबे सम थायरे ॥प्राणीए० ॥ २२ ॥ वर्ण चतुष्क उदय थकीरे॥ रस शुन्न 3 वर्णी काय ॥ सुवास कमल ज्युं महमहेरे ॥ शुनफर्स महूँ नोज्ञ कहायरे ॥ प्राणीए ॥ २३ ॥ अगुरु लघु नाम उदय थकीरे ॥ शरीर मध्यस्थता पाय ॥ नहि पुष्टता नहि क्रसए तारे ॥ ते अगुरु लघु नाम कहायरे ॥ प्राणीए० ॥२४॥ पराघात नाम उदय थकीरे ॥ अंनत बळ वीर्यता पाय ॥ एकपणे जीते अनेकजुरे ॥ नूजा बळे समुख तरी जायरे ॥ प्राणीए ॥ २५ ॥ श्वासोश्वास उदय g थकी।सुखे श्वासोश्वास लेवाय ॥ विघ्न संनव होवे नहिरे॥ M) लब्धि बतां सजीवन कहायरे ॥ प्राणीए० २६ ॥ श्रातप नाम कर्म उदय थकीरे ॥ तीखी तेजे तप्ती काय ॥ परने sansarmireon . OraorderGreGROIGIOGRAGreaon (१५२) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ORDER GrenoNSARANG श्री धर्म प्रवर्तन सार. ६) परीताप उपजेरे ॥ उदय बादर पृथ्वी ए कहायरे ॥ प्राणी, ए ॥२७॥ उद्योत नाम कर्म उदय थकीरे ॥ शांत मुद्रा शीतळ गय ॥ परने प्रमोद हेतुएरे ॥ चंद्रोदय अमी वरसायरे ॥ प्राणीए ॥ २७ ॥ शुन्न विहायो गती उदय थकीरे ॥ पामे हंस सरखी ए चाल ॥ शीख्यां अणशीख्यां संपजेरे ॥ उदय अन्नावे न लहे ते ख्यालरे ॥प्राणीए" ॥ श्ए ॥ निर्माण नाम कर्म उदय थकीरे ॥ अंगना अवयव सर्व ॥ योग्य स्थापे सूत्रधार ज्युरे ॥ सांधा मेळ पुद-6 गल अव्यरे ॥ प्राणीए० ॥ ३० ॥ जिननाम कर्म उदय थकीरे ॥ समोसरणादी पामे ऋद्ध ॥ सेवे असंख्य कोमी देवनीरे ॥ अनंत पुन्योदय तीहां कीधरे ॥ प्राणीए० ॥ 3३१॥ आहार निहार अन्य देखे नहीरे ॥ प्रस्वेद मळ र रहित शरीर ॥ श्वास सुगंध महके कमळज्युरे ॥ मांस लोही उज्वल जेसी खीररे ॥ प्राणीए० ॥ ३२ ए चार अतिशय जन्मथीरे ॥ घाती कर्म खपे एकादश ॥ श्रोगणीस देव कृत्य संपजेरे ॥ ए चौतीस अतीशयव्रत तसरे ॥ प्राणीए० ३३ ॥ पण तीस गुण नर वाणीयेरे॥ नवी जीवने ॥ १ करे उपदेश ॥ बोध बीज पामे घणारे ॥ होवे विरति परिणामी रुमा बेशरे ॥ प्राणीए० ३४ ॥ कोश होवे साधु साधवीरे ॥ को श्रावक श्रावीका थाय ॥ क्षय उपशम अप्रतिहतनेरे ॥ दीये गणधर पद जिनरायरे ॥ प्राणीए०१ 9) ३५॥ त्यां द्वादशांगी रचना करेरे ॥ ज्ञान सब्धिए गण धरराय ॥ ए तीर्थ स्थापना कहीरे ॥ देशना निष्फल नही १ sexi s tories eGBrogram Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ముందుంటుందని Satre Me Gre- AGARLorg श्री घर्भ प्रवर्तन सार, जायरे ॥ प्राणीए० ३६ ॥ त्रस नाम कर्म उदय थकीरे ॥ ए न लहे स्थावर कायः पांच ॥ वाकी सवे गति त्रसबेरे ॥ तीहां उपजे तेमां नही खांचरे ॥ प्राणीए० ॥ ३७॥ वादर , नाम कर्म उदय थकीरे ॥ न लहे सूदम थावर पांच ॥ द्रष्टीगोचर काया कहीरे ते बादर नाम नही खांचरे ॥ प्राणीए० ३० ॥ पर्याप्ति नाम उदय थकीरे ॥ करे पुरी पोतानी जे होय॥ कर्ण लब्धि दोय लेदथीरे ॥ न मरे अ. पजत्तो कोयरे ॥ प्राणीए० ३ए। प्रत्येक नाम कर्म उदय थकीरे ॥ बे निगोद गति होय बंध ॥ जीव जीवनी काया इजुदीरे ॥ ते प्रत्येक नाम संबंधरे ॥ प्राणीए० ४० ॥ स्थिर नाम कर्म उदय थकीरे ॥ दाढ दंत हाम वांधो द्रढ ॥ नखसें हाम दंत एहनारे ॥ सर्व अवयव निश्चल गढरे ॥ प्राणीए० ४१ ॥ शुन्न नाम कर्म उदय थकीरे शुन कहीए उर्ध्व अंग ॥ अप्रिय न होवे कोश्नरे ॥ फर्स लाग्यां माने अती चंगरे॥ प्राणीए० ४२॥ सौजाग्य नाम कर्म उदय थकीरे ॥ उपकार विण वहन होय ॥ सगपण प्रिती संबंध विना रे॥ जग वहन इष्ट लागे सोयरे ॥प्राणीए० ४३ ॥ सुस्वर 2 नाम कर्म उदय थकीरे ॥ कंठ शब्द मधुर ध्वनी होय ॥ हे सर्व लोक ग्रह एहनेरे ॥ श्रवण रस सुखदाइ सोयरे ॥ १॥प्राणीए० ॥ ४४ ॥ आदेयनामकर्म उदयथकीरे ॥ प्रमा णीक पुरुष गणाय ॥ खंमीत वचन होवे नहीरे ॥ यथार्थ ) वचन पकमायरे ॥ प्राणीए० ॥ ४५ ॥ यशकीर्ति नाम उद| यथकीरे ॥ गाय गुण समुदाय जगजस ॥ ऋद्धि आमंबर HALEBRArora. .COMeEMBEReseDire (१५४) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANJ.--. श्री धर्म प्रवर्तन सार. १थतीघणारे ॥ फेलाय जसकीर्ति तसरे ॥प्राणीए० ॥ ४६॥ ए बायालीस नेद पुन्यनारे ॥ अघाती कर्म.जनित कहाय॥ ६) उदयिक नावे ते पामीयेरे। पुद्गलीक नाव ग्रंथे गवायरे॥ प्राणीए० ॥ ४ ॥ ए नेद अर्थ रचना करी रे ॥ पहेला ६, कर्म ग्रंथ अनुसार ॥ ज्ञानशितल कहे गुणवतंनेरे ॥ हित 5 जाणी अशुद्ध होय तो नीवाररे ॥ प्राणीए ॥ ४ ॥ ढाल 6 सोलमी संपूर्ण ॥ ॥ ढाल सत्तरमी ॥ ॥ तीरथनी आशातना नवि करीए-एदेशी ॥ घाती करम पूर्व बंधनी प्रकृति ॥ उदय आव्यां विघन करती ॥ आतम गुण पर्याय हणती ॥ अती मोटुं पाप ॥ घाती० ॥ ए आंकणी ॥१॥ मतीझानावर्णी पापोदयमां आवे ॥ इंसी उपयोग हीण थावे ॥ तीहां चेतन जमता पावे ॥ अचेतन सम एह ॥ घाती० ॥ २ ॥ श्रुतझानावणी पापोदयमां आवे ॥ सीद्धांत बोध तीहां जावे॥ १ श्रोत इंशी रासपावे ॥ मोटुं अज्ञान एह ॥ घाती० ॥३॥ र अवधि झानावर्णी पापोदयमां आवे ॥ रूपी प्रत्यक्ष ग्यान हीण थावे ॥ उदय होय तिहां नहि पावे ॥ पाम्यो होय तेनुं जाय ॥ घाती० ॥ ४॥ मनपर्यव ज्ञानावरणी उदय मांही ॥ मनोगत नाव ग्यान क्षय त्यांही ॥ उदय उतां न ( ६ प्रगटे क्यांह। ॥ अढीछिपनी मांही ॥ घाती० ॥ ५॥ केवळ झानावरणी पापनो उदे ज्यांही ॥ तीहां अरिहंत हे पदवी नांही ॥ बदमस्थ ए कहेवाय त्यांह। ॥ न सनातक SOrgomerriedroo Moregree PROGranardGANGRAGeoGeordGre. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Aawon AREas SIGGREGORY PROPEAGRAMRAPARMANABARABA १ एह ॥ घाती० ॥६॥ ए ज्ञानावरणी उदय कडं बीजें , कहीए ॥ दर्शना वरणी उदय सहीए ॥ ज्ञान दर्शन हाणी 9 तहीए ॥ कही कहुं विचार ॥ घाती० ॥ ७ ॥ चक्षु दर्शना६ वरणी पाप उदयमां आवे ॥ चक्षु इंद्री दर्शन हाणी थावे ॥ चौरंजीपणुं नही पावे ॥ तेरंद्रीए थाय ॥ घाती० ॥ ७॥ है थचक्षु दर्शनावरणी पाप उदयमां आवे ॥ श्रोत गंध रसफर्स हाणी थावे ॥ मन हणतां असन्नी कहावे ॥ नेद आगे कहेवाय ॥ घाती० ॥ ए ॥ श्रोत उपयोग हणतां चौरंडी नाखुं ॥ गंध हणतां बेरंडी दाखं ॥ रस हणतां एकेंजी राखुं ॥ फर्स हणतां सूक्षम ॥ घाती० ॥ १० ॥ अवधि दर्शना वरण। पाप उदयमां आवे ॥ प्रत्यक्ष रूपी दर्शन हणावे ॥ दर्शन मर्यादा कहावे ॥ लाध्यु होय तेनुं जाय ॥ घाती० ॥ ११ ॥ केवळ दर्शनावरणी 1 १ पाप उदयमांही ॥ तीहां केवळ दर्शन नांही ॥ अपुर्ण कार्य कयुं त्यांही ॥ एही मोटुं दुःख ॥ घाती० ॥ १५ ॥ १ निंद्रा पंचक पाप उदे प्रत्येके आवे॥इंजिगत उपयोग रंधावे ॥ दर्शन गुण घात कहावे ॥ अचेतन सम एह ॥ घाती। ॥ १३ ॥ निंद्रा पंचक नेद प्रत्येके दार्खा ॥ सुखे जागे ते निद्रा नाखुं ॥ बीजा घांटानो खप न राखुं ॥ पहेली निंद्रा १ एह ॥घाती०॥ १४ ॥ बीजो नेद निद्रा निद्रा नवी जाणो ६॥ःखे जागे जाके घांटे साणो॥ बेग उत्नां जंघे त्रीजो राणो ॥ तेनुं प्रचला नाम ॥घाती० ॥ १५ ॥ चोथो नेद प्रचला प्रचलाए दाखं ॥ चालता चालतां उंघ राखं ॥ १ srxressness Oner@nordinsexgrar@@ra@norder@marare. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HTRAGROIROOKERGOOGLE श्री धर्म प्रवर्तन सा२. १ खातां खातां पीतां उंघ नाखू ॥ जागे कांकरो त्यांही ॥ घाती० ॥ १६ निशा थीणद्धी पंचमि मांही फरीए ॥ रात्रे ६ ६) दीन चिंतीत काम करीए ॥ वासुदेव बळ नीमे वरीये ॥ है @ मरि नरके ए जाय ॥ घाती० ॥ १७ ॥ ए दर्शनावर्णी उ& दये कयुं त्रीजें कहीए ॥ मोहनी कर्म उदय लहीए ॥ चारित्र गुण स्थिर हाणी तहीए ॥ श्रद्धा हीण थाय ॥ घाती० ॥ १७ ॥ पापबंध ब्यासीमां मिथ्यात्व एक गणीयो ॥ तेनी उदयमांत्रण बणीयो॥ सवे जीवने ए मोटी रणीयो ॥ हांणी आगे कहेवाय ॥ घाती० ॥ १५ ॥ प्रथम गुणगणे उदे मिथ्यात्व आवे ॥ ते मिथ्यात्व मोहनी कहावे ॥ ए बे समकीत घाती स्वन्नावे ॥ नाव मदिरा एह ॥ घाती 3॥२०॥त्रीजे गुणगणे उदे मिथ्यात्व आये ॥ एतो मीश्र मोहनी कहावे ॥ समकीत गुण हणतां पावे ॥ पमतां र रस्तो एह ॥ घाती० ॥ १ चनथी सातमा लगे उदे मि थ्यात्व आवे ॥ ते समकीत मोहनी कहावे ॥ दायक समकीत नही पावे ॥ ए बतां को जीव ॥ घाती ॥२॥ अनंतानुं कषाय पाप चोकमी उदे आवे ॥ तीहां समकीत गुण हाणी थावे ॥ कर्मबंध अनंतो पावे ॥ अनंत संसारी एह ॥ घाती० ॥ २३ ॥ अप्रत्याख्यानी पाप चोकमी उदय 9 आवे ॥ तीहां देशविरती दूर थावे ॥ तिर्यंच गतीये पोहो- है चावे ॥ अणुव्रत हीण एह ॥ घाती० ॥ २४ ॥प्रत्याख्यानी & पाप चोकमी उदय आवे ॥ तीहां सर्व विरती दय पावे॥ है नीज गुण स्थिरता सवे जावे ॥ चारीत्र हीण थाय ॥ घाती HEARC/DELHIRAN reORagnorandore MINS Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RANGBROSSIBRARMSGARG श्री धर्म प्रवर्तन सार. ॥ २५ ॥ संज्वलन कषाय पाप चोकमी उदय आवे॥तीहां दायक चारित्र नावे॥ अशुद्ध परिणति न जावे ॥वीतराग १ न कहाय ॥ घाती० ॥ २६ ॥ नव नोकषाय पाप उदे प्रत्ये। के आवे ॥ तीहां कषाय प्रगट थावे ॥ कषायर्नु ए कारण कहावे ॥ सवे संसार मुळ ॥ घाती० ॥ २७ ॥ ए मोहनी कर्म उदय कयुं चोथु कहीए ॥ अंतराय कर्म उदय लहीए ॥ जीव गुण सब्धि हाणी तहीए ॥ दानादीकनी थाय ॥ घाती० ॥ २७ ॥ ज्ञान दर्शनोपयोग दान प्रवृत्ति न पावे॥ तीहां श्रद्धा चरण लान नावे ॥ लोग उपनोगोपयोग अउनावे ॥ वीर्य फुरणा न होय ॥ घाती० ॥ए ॥ घाती चौ । कर्मबंध पापनो उदय नाष्यो ॥ गुण घात पुर्वक कही दाष्यो । पहेलो कर्मग्रंथपुरे साख्यो ॥ नवी समजो एह ॥ घाती० ॥ ३० ॥ पुर्वबंध पाप नेद पंच चालीए दाख्या ॥ उदयमां तेना सप्त चाली नाख्या ॥ अघाति सप्त तीस बाकी राख्या ॥ आगे कही\ एह ॥ घाती० ॥ ३१॥ १ घाती कर्म वलीयो तीहां चेतन गलीयो॥ नवोनव नमतां ६ ःख मलीयो ॥ ज्ञान शीतल गुण एणे हणीयो ॥ ए अनादी संबंध ॥ घाती० ॥ ३५ ॥ ढाल सत्तरमी संपूर्ण ॥ ॥ढाल अढारमी ।। ॥ळगमी आदीनाथनीरे ॥ ए देशी ॥ अघाती पूर्वबंधनीरे ॥ अशुन्न प्रकृति जेहलाल॥ तेनो ॐ उदय पाप कीजीएरे ॥ नेद सप्त त्रीस तेह लाल ॥ पापो हे दय नवी सांजलोरे ॥ ए आंकणी ॥१॥ वेदनी अशाता Narenessurer DRY YRICORogre@re@roProEDEORA GGEDAGOGOOGBarenge Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PresIROMONEYOar FEARABORAGARH SARKARISAMRAGOLGm, । उदयथीरे ॥ करे दुःखनो अनुन्नव लाल ॥ नर्क निगोद | ६ गती विषेरे ॥ अनंत दूःख सुख न लव लाल ॥ पापो, दय० ॥२॥ गोत्र नीचना उदय थकीरे ॥ नीच है कूळे जन्मे जीव लाल ॥ नीकुक निंदनीक हीन& मारे ॥ न पामे मान महत्व लाल ॥ पापोदय० ॥३॥ है नर्क आयुष्य उदय थकीरे ॥ त्यां जर नोगवे आयुष्य लाल ॥ आयु बताए गति बूटे नहींरे ॥ आयु हेम कहे जगदीश लाल ॥ पापोदय० ॥४॥ एत्रण कर्मनी कहीरे ॥ एक एक त्रण प्रकृती लाल ॥ हवे चौतीस कहुं नामनीरे ॥ ए सवे सप्ततीस अघातीलाल ॥ पापोदय० ॥५॥ नर्क छीक नाम उदय थकीरे ॥ पामे नर्क गती पर्याय लाल ॥ नर्कनी आनुपूविरे ॥ वक्र गति उत्पत्तिये लाय लाल ॥ पापो० ॥॥६॥ तीर्थंच द्धीक नाम उदय थकीरे ॥ १ पामे तीर्थंच गती पर्याय लाल ॥ तीर्यचनी आनुपुर्विरे ॥ नर्क बीके कही ज्यूं कहाय लाल ॥ पापोदय० ॥ ७॥ ए. केंडी जाती उदय थकीरे॥पामे फर्स इंद्री एक लाल ॥ ए . ६ दय बतां दूजी नहीरे ॥ एम वोले ए ज्ञान विवेकलाल ॥ पापोदयः॥७॥ बेरंद्री जाती ऊदय थकीरे॥ पामे फर्स रस६ ना दोय लाल ॥ए उदय बतां त्रीजी नहीरे ॥ गंध न लहे । प्राणी कोय लाल ॥पापोदय ॥ए ॥ तेरेंद्रि जाती उदय थकीरे ॥ पामे फर्स रसने गंधलाल ॥ ए उदय बतां चोथी नहीरे॥ न पामे ए चद् संबंधलाल ॥ पापो॥ ॥ १० ॥ चारेंद्री जाती उदयथकीरे ॥ पामे सही इंजी चार लाल ॥ १ Verduan Duru mu: ucena MOREIGNAGARGORAGARGree Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ તેને સાર, PROPRABORAGMCAREERINGreGore, ) पापोदय तीहां पंचमी नहिरे ॥ पंचमी कही पून्या विचार लाल ॥ पापोदय० ॥ ११ ॥ बीजु संघयण ऊदयथकीरे ॥ हाम संघी द्रढ बंधाय लाल ॥ मर्कट बंध दोय पासथी रे । हाम पाटो उपर विंटाय लाल ॥ पापोदयः ॥ १२ ॥ संघयण नाराच उदय त्रीजुरे ॥ मर्कट बंध दोय पासे लाल ॥अर्ध नाराच चोथु कयु रे ॥ मर्कट एक एक खीली खासे लाल ॥ पापो० ॥ १३ ॥ संघयण किलीका उदयथकी रे॥ हाम आंकमे आंकम बंधी लाल ॥ वतुं उदय हुं कछुरे ॥ अणिए अणी संबंधी लाल ॥ पापोदय० ॥१४॥बीजां संस्थान उदयथकी रे॥ नानि उपर ल. कणोपेत लाला नीचं हेवळ अंगहीनतारे॥ए न्यग्रोधमंमळ खेत लाल ॥ पापोदय० ॥ १५ ॥ सादी संस्थान उदय त्रीजुरे ॥ नान्नि नीचे लक्षणोपेत लाल ॥ नानि उपर अंग हीनतारे ॥ यु पुर्व कमाणि संकेतलाल ॥ पापोदय० ॥ १६ ६॥ कुब्ज संस्थान उदय चोथुरे ॥ उत्तम हाथपग मूख ग्री१ वालाल ॥ अधम पेट हृदयने पुंठतारे ॥ सो न लहो फरी फरी वा लाल ॥ पापोदयः ॥ १७॥ वामन संस्थान उदय थकीरे ॥ बे हाथने पग बे हीन लाल ॥ बाकी उत्तम सवे @ अंगडे रे ॥ ते वामन कहे देव जीन लाल ॥ पापोदयः ॥ १ १७ ॥ हुंग संस्थान उदय ब्लु रे ॥ सवे अंग अवयव ही , न लाल ॥ उत्तम लक्षण एके नही रे ॥ अंग आकार विशेष ३ खीन लाल ॥ पापोदय० ॥ १५ ॥ मनुष्य तीर्यच गर्नज ६ मारे ॥ षट संस्थान ग्रंथे नाख्यां लाल ॥ समचौरंस एक ६ ാം മംഗളം രാഷ്ട്രം Pror@greeMardGARGreeramBhar (१९०) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ nePregree શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. १) देवमारे ॥ बाकी हुंम सवे गतीए दाख्यां लाल ॥ पापोह ट्र दय० ॥२०॥ वर्ण चतुष्क उदय थकीरे ॥ अशुन्न रस 2) वर्णी काया लाल ॥ स्वास परसेवो पूर वासनारे ॥ अम नोज्ञ फर्स कहाया लाल ॥ पापोदयम् ॥ २१॥ असुन्न वि & हायो गतिने उदेरे ॥ पामे उंट खर जेसी चाल लाल ॥ है पग घसाय दोय पाबलारे ॥ टिचाय अन्यो अन्य एसो ६ ख्याल लाल ॥ पापो० ॥ ॥२२॥ जपघात नाम कर्म उदय , थकीरे ॥ न्युनाधिक अंगथी पिमाय लाल ॥ चोर दंत पर 6 जीन्नि रसो लीयेरे ॥ पथरिए पामे खलना काया लाल ॥ पापोदयः ॥ २३ ॥ थावर नाम कर्म उदय थकीरे ॥ एके-4 जी बादर थाय लाल ॥ पृथ्वी, जल, अग्निने, वायुमारे ॥ 3 प्रत्येक वनस्पतीकाय लाल ॥ पापोदय० ॥ २४ ॥ सूक्ष्म हूँ नाम कर्म उदय थकीरे ॥ सूक्ष्म स्थावर चौ होवे लाल ॥ दृष्टीगोचर काया नहीरे ॥ लोक व्यापी ते ज्ञानी जोवे लाल ॥ पापोदयः ॥ २५ ॥ अपर्याप्तो नाम उदय थकीरे॥ २ पर्याप्ति पुरी न होवे लाल ॥ लब्धि अपजतो मरे तीहारे॥ आरंज्यु जीवक ए खोवे लाल ॥ पापोदय० ॥ २६ ॥ साधारण नाम उदय थकीरे ॥ उपजे निगोदनी मांही लाल ॥ ६ सूक्ष्म बादर दोय नेद एरे ॥ काय स्थिती अनंत काळ । त्यांही साल ॥ पापोदयः ॥२७॥ अस्थिर नाम कर्म उदय | थकीरे ॥ कान, पापण, जीन प्रमुख लाल ॥ अंगे अवयव , जे चपळतारे ॥ स्थिर न होवे ध्रुव एसी रुख लाल ॥ पापो० ॥ २७ ॥ अशुन्न नाम कर्म उदय थकीरे ॥ AGRIGBareinBER GenerGGGrana.Gran.COIDS. PreeMaureMOREMORS Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RSARAGARGore Gore GARGranorance अशुन्न कहीए अधो अंग लाल ॥ पग फर्स लाग्यां @ अप्रीती हुवेरै ॥ थाय वाघ युद्ध जरी जंग लाल ॥ पापोदय० ॥ २५ ॥ उर्जाग्य नाम कर्म उदय थकीरे ॥ अवल्लन्न लागे वहु जणने लाल ॥ उपकार कर्यां वटलन नहीरे ॥ न वदलन मावाप सहुने लाल ॥ पापोदय० ॥ ३० ॥ दूस्वर नाम कर्म उदय थकीरे ॥ कंठ शब्द पामे अनीष्ट लाल ॥ खर, उंट, घुम, काग सरीखोरे ॥ वीरूप श्रवण नही इष्ट लाल ॥ पापोदय० ॥ 6 ॥३१॥ अनादेय कर्म नाम उदय थकीरे ॥ सत्य वचन है न रुचे केने लाल ॥ असत्य मानी उथापक करेरे ॥ नावे बोट्युं खप वृद्ध वय बेने लाल ॥ पापोदय० ॥ ॥ ३ ॥ अजस नाम कर्म उदय थकीरे ॥ जस नमीले जगत्रनी मांही लाल ॥ जस लेवा बळ धन वापरेरे ॥ अजस बोले जग त्यांही लाल ॥ पापोदय० ॥ ३३ ॥ ए चौतीस नेद नाम कर्मनारे ॥ एकेक वेदनी आयुष्य गोत्र लाल॥ ए सप्त त्रीस चनअघातीनारे ॥ सवे वर्णव्यासो पाप स्तोत्र लाल ॥ पापोदयः ॥ ३४ ॥ ए पाप तत्व पुरण थयोरे ॥ १ दोय ढाळे कह्या नेद ब्यासी लाल॥ ज्ञानशीतल हेय जाणी परीहोरे ॥ तो सुख समाधी लहो खासी लाल ॥ पापोदय० ॥ ३५ ॥ ढाल अढारमी संपुर्ण ॥ RaGGC Go@GOGonorrenes. President Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Gore GRGARGAGRGaram Grorsemarma DOMOEMBEGAOMBASS दायकनाव तत्वविलास ग्रंथमांगपतां उदा रही गयेला ते. ग्रंथ मंगळाचरणना दुहा. ___ नमुं निरंजन सिद्धने, पूगल योगातित ॥ नमुं सयोगि जीनेंद्रने, 9) अयोगी शैलेसि स्थित ॥ १॥ नमुं क्षिणमोह ठाणमां, चरण यथाख्यात वंत ॥ ए संसार निरबीजता, सर्व सिद्ध वधुकंत ॥२॥क्षायक लब्धिवंतए & महामंगलिक महंत ।। शुद्ध परीणतिमा वसे, सहज भाव शीव संत. ॥३॥ ज्ञाने ए पद पाइये, तीणे रचुं ग्रंथ थीर भाव।।क्षायक तत्व विलासए, संसार तारण नाव ।। ४ ॥ क्षायकभेद अनंत छे मुखशुं कह्या न जाय ॥ क्षायक 9 नव भेदे कडं, ज्युं कर्मग्रंथ चोथे कहाय ॥ ५ ॥ समाकितने चारित्रए, P) केवलज्ञान दरशंन ॥ दान लाभने भोगए, उपभोग वीर्य घंन ॥६॥ है ए नव लब्धि गाइए, नव तत्व संयुक्त ॥ अनुभव योगे ध्याइये, थिर : उपयोगे युक्त ॥ ७॥ पेहेली ढाळनी पूर्णताये दुहा.-समकित मोहान छेल्लो अणुं, खपतां वेदक कहाय ॥ एक समय स्थिति तेहनी, त्यां क्षायक समकित पाय ॥१॥ क्षायक चारित्र आतमा, परमातम वीतराग ॥ मोह ध्वंस करी हुआ, ठाण बारमे शिव माग ॥२॥ रागद्वेष अवळी दशा, पुद्गल संग उपयोग। छेदी सवळा सनमुखे, शुद्ध पंरिणति संयोग ।। ३॥ बीजी ढाळनी पूर्णताये दुहा.-क्षीणमोह ठाण अंतमें, त्रण कर्म करे नाश सात गुण लब्धि त्यां लहे, गुणठाण तेरमे वास ॥१॥ त्रीजी ढाळनी पूर्णताये दुहा. द्रव्य सक्ति ओळखावशू, सामान्यज्ञान ६ विचार ॥ सर्व द्रव्यमां संपजे, ते सामान्य एम धार ।। १ ॥ द्रव्यनो भेद जीहां पडे, जीवधी भिन्न सो अजीव ॥ ते विशेष एम जाणीए, ज्ञानी वचने सदीव ॥ २॥ सामान्य द्रव्यार्थक ए, पर्यायार्थक विशेष । एक ९ द्रव्यनी वृत्तिए, लाधे सामान्य विशेष ॥ ३॥ ४ चोथी ढाळनी पूर्णताये दुहा.-द्रव्य स्वरुपए दाखीयु, दाख्यो स्या9) दाद धर्म ॥ द्रव्य पर्यायने जाणता, टळे मिथ्या मति भ्रम ॥ १ ॥ PawarenderwagersMERA GOOGGERSNERG GARos Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SabsroresxeGreenare see पांचमी ढाळनी पूर्णताये दुहा-धर्मास्तिकाय वर्गव्यो, वर्णव्या गुण पर्याय ॥ ज्ञानी वचन आलंबने, थिर मने रमणता पाय ॥१॥ छठी ढाळनी पूर्णताये दुहा.-अनीव अरुपी ची कह्या,गुणपर्याय संयुक्त ॥ हवे कहुं पुद्गलने, तजतां संसार मुक्त ॥ १ ॥ सातमी ढाळनी पूर्णताये दुहा-वर्गणा आठे वर्णवी, तन वचन मन एह ॥ आठमी कार्मग कर्मए,सत्ता उदियादि तेह ॥ १॥ पुद्गलने जाण्या विना,जीव जाण्यो नहीं जाय॥अरुपी गोचर नहीं,गोचर पुद्गल काय॥२॥ ___आठमी ढाळनी पूर्णताये दुहा-वस्तुनो जे स्वभाव छ, ते कह्या गुण पर्याय त्रिकाळे गुण फोटे नहीं, युवता लक्षण सदाय ॥ १ ॥ नवमी ढाळनी पूर्णताये दुहा.-पुद्गल द्रव्यने दाखीयो, दाख्या पांच द्रव्य अजीव ।। हवे कहुं आश्रवने, वचन सुधारस दिव्य ॥१॥ कर्म दल आवे ए सही, आश्रय नाम कहाय ॥ मूळ हेतु चौ दाखीया, कई अ. 5 धिकार बनाये ॥२॥ दशमी डाळनी पूर्णताये दुहा.-भाव हेतु पेहेलो कह्यो, दुष्ट ए मि. थ्यात्व नाम ॥ बीजो अव्रत दाखीये, उपयोग राखी ठाम ॥ १ ॥ इहां केई तरकं करे, तुमे कहो दुष्ट मिथ्यात ॥ गुणठाणुं पेहलं का, ए अण मलती वात ॥२॥ तेहने उत्तर दाखवू, रचुं ढाळ रसाळ ॥ सांभळनो श्रोता जनो, थिर मन करी धर्मलाल ॥ ३ ॥ ___ अगीआरमी ढाळनी पूर्णताये दुहा.-मिथ्यात्व दुष्टता वर्गवी, समजो भवि चित्त लाय ॥ ए छुटे जब धन्य घडी, सम्यकगुग प्रगटाय ॥१॥ मिथ्यात्व गुणठाणुं कर्दा, तस उत्तर हवे थाय ॥ थिर चित्ते भवी सांभळो, उपदेश गर्भित न्याय ॥ २ ॥ नैगम संग्रह नयथी, मिथ्यात गुणठाण मांही ॥ जीव वसे ते सिद्ध कहो, गुणमय सत्ता त्यांहि ॥ ३ ॥ गुणतुं पात्र जीव छे, तेथी कहुं गुणठाण ॥ जाणो भविजन एहने, होशे ज्ञान प्रमाण ॥ ४ ॥ जाणपणुं जग दोहिलं,. दुर्लभ सदगुरु योग ॥ पुन्यो दय तिहां पामीये, सदगूरु वचन संयोग ॥५॥ गुरुवचन भाले करी, भविजन हणो मिथ्यात ॥ कुगुरु भ्रमने परिहरो, तीहां होशे सुखशात ॥६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RSARAGIRGANGREERamGRames GORGRAMMAR , जीवगुण ग्रहण करो, भेदज्ञान घटमांहि ॥ समविभाग त्यां संपजे, समकित @ लहो उछांहि ॥७॥ हवे अवतने वर्णवू, सुणजो भविजन सार ॥ तजतां लाभ होशे घणो, विरतिपणुं निरधार ॥ ८॥ बारमी ढाळनी पूर्णताये दुहा.-~आश्रव हेतु बीजो कह्यो, अत्रत बार ६ भेद नाम ॥ हवे त्रीजो हेतु कहुं, कषाय पंचवीश श्याम ॥१॥ अनंतानादि चौ चोकडी, ए सोळ भेद कषाय ॥ नो कषाय नव भेद सहु, अनुक्रमे वहर्णव थाय ॥२॥ तेरमा ढाळनी पूर्णताये दुहा-आश्रय हेतु त्रीजो कयो, पंचवीश भेद कषाय ॥ मन तन वचन योगना, भेदनो वर्णव थाय ॥१॥ मन वचन 8 दो चउ चउ, सात भेद कही काय ॥ सर्व मळी पंच दस ए, योगना भेद " सही थाय ॥२॥ ह. चौदमी ढाळनी पूर्णताये दुहा.-आश्रव हेतु चोथो कह्यो, योग भेद दश पांच ॥ कहा सवे चउ हेतुना, भेद सत्तावन नहीं खांच ॥१॥ ए हेतुये आश्रव खेंचीने, कर्म दळ मेळवे अनंत ॥ आत्म प्रदेश संबंध पणे, कार्मण वर्गणा तंत ॥२॥ कार्मण ते आठ कर्मछे, अवर सात कर्म नांहि ॥ समे समे सात बांधतो, मिथ्यात वसे जीव मांहिं ॥ ३ ॥ आयुष आवता भवनु, बांधे जीव एकवारबंध फहुं चउ भेदथी, आत्म प्रदेशे धार ॥ ४ ॥ ___पंदरमी ढाळनी पूर्णताये दुहा.-बंध कह्यो चउ भेदथी, रसविण नहीं बंधाय ॥ रागद्वेष परिणतिये, निश्चय कर्म बंध थाय ॥ १॥ राग द्वेष 8 जीहां नहीं, सीहां कर्म बंध न होय ॥ वीतराग भावे अबंध छे, निश्चय वचन ए सोय ॥ २॥ कर्म शुभाशुभ उदयथी, पुन्यने पाप कहाय ॥ पुन्य बायालिस भेदनो, कहु अधिकार बनाय ॥ ३ ॥ ___सोळमी ढालनी पूर्णताये दुहा.-पुन्य भोग ए दाखीयो, पूरव बंध अनुसार ॥ पुनरपी बांधो नहीं, खेरवी सिद्ध पद धार ॥१॥ निश्चय नयनो पक्षए, उतसर्ग साधन एह ॥ उपयोगे भावक्रिया, ध्याता ध्येय ध्यान तेह ॥२॥ एकता अभेद भावमां, तीहां आत्म अबंध ॥ उदयिकता खुटे तिहां, लहे सिद्ध वधु संबंध ॥ ३॥ ए विण मुक्ति मळे नहीं, समजो GREGAGRGrikGrahari Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ reOreorage or oram More More RAMA BIGGre चतुर सुजाण ॥ स्वभाव विण धर्म छे नहीं, उत्तराध्ययन वखाण ॥ ४ ॥ मुक्ति पंथ ए भाखीयो, भाख्यो निज परहित ॥ पुन्य बंध हेतु हवे, कहीरों उपयोग रीत ॥ ५॥ शुभ व्यवहार नये करी, बांधे प्रकृति शुभ ॥ ओगण चालीश जाणीये, गुरु वचने भली बुध ॥ ६ ॥ निश्चय नयनी दृष्टिये, सरागता परिणाम जाय ॥ तेह अणारोप शुभ छे. तिहां प्रणनो O बंध थाय ॥ ७॥ चोथाथी सातमा लगे, जीन नाम कर्म बंधाय ॥ आ- 3 ठमे बंध विच्छेदता, कर्मग्रंथ बीजे कहाय ॥८॥ अप्रमत्त ठाण सातमुं, तीहां आहारक शरीर आहारक अंगोपांग दोय, बांधे शुद्ध संयमीवीर ॥ १॥९॥ ए पुन्य बंध हेतु कहा, कहुं हवे पाप दुख ॥ धाति अघाती वर्ण, ते छुटे लहे जीव सुख ॥ १० ॥ सत्तरमी ढाळनी पुर्णताये दुहा.-गुण घाती पाप वर्णव्यु, पूरव बंध संबंध ॥ अघाती हवे सांभळो, दार्खा ए पाप प्रबंध ॥१॥ अढारमी ढाळनी पूर्णताये दुहा-पाप दुख भोग दाखीयो, घाती अघाती विचार ॥ पूर्व बंध अनुसार ए, सहीये समताये सार ॥१॥ समताविण सेहेतां थकां, होवे न दुखनो अंत ॥ पुनरपि बांधे तिहां, इम भाषे सवि संत ॥२॥ अघाती पाप एम टळे, हवे घातीनो & विचार ॥ ज्ञान विना छुटे नहीं, ज्ञान छे सर्वमां सार ॥३॥6 8 ते कारण भणो ज्ञानने, सेवो ज्ञानी गुरुनेह ॥ विनय करो प्रमोद , लहशो 3 ज्ञानगुण गेह ॥ ४ ॥ ज्ञान धर घटतरे, अनुभव भुवनमाहि ॥ ज्ञान भानु उदय हुवे, घाति पाप भागे त्यांहि ॥ ५॥ ए विग घाती टळे नहीं, स. १ मजो भविजन सार ॥ पापस्थान सेवो नहीं, पापए दुःखदातार ॥ ६॥ । पाप बंध हेतु एह छे, अष्टादश भेद नाम ॥ पंच अव्रत कषाय चौ, रागद्वेष , परिणति श्याम ॥ ७ ॥ कलह कलंकने चाढीयो, रति अरति परनिंदा ॥ १ कपट फंद वचनए, मिथ्यात भारे मोटा जंदा ॥८॥ए हेतु पाप बंधना, एही पापतत्व जाण ॥ पूरण पंच अजीवना, कर्या करुं जीव वखाण ॥९॥ SoSORSorresords PRASAINTINENEWS Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર.. Gree RERAGHAGRA GREAR GRAGirls श्री गुरुन्योनमः ॥ अथ श्रधा प्रकरण लीख्यते ॥ दुहा. प्रणमुं मझी जीणंदने, नग्र नोयणी सार. 3 यात्रा कारण आविया, जीन मंदिर दरबार ॥॥ दर्शन पुर्खन देवनु, समकित देतु मर्म. त्रण तत्वसही नाषियां, देव गुरुने धर्म ॥२॥ श्रद्धा स्थिर शंका नही, ते समकित व्यवदार; रचना कारणे ते करूं, श्रदा प्रकरण सार ॥३॥ & सर्व धर्मनुं मूळ ए, फळदायक आचार; क्षा विण फळ नवी लहे, समजो चतुर विचार ॥४॥ १ देव गुरुने धर्मनु, अनुक्रम वर्णन थाय; ते जाणी भवि सद्दहो, जन्म सफलता पाय ॥५॥ १ ॥ढाल पेहेली॥ . ॥ अहो सर्व गुणी मुनिसुव्रत जीनराय काज मुज सारो-ए देशी ॥ व अहो सर्व गुणी वितराग अरिहंत सिद्ध विण देव १ नहि दूजो, घट ज्ञान लावी आत्म सत्ता गत धर्म जाणी नवि बूजो॥ ए आंकणी. निज निज सत्ता घट घट नासे, . ॐ त्रिकाळ वृत्तिए नहि क्षय थाशे, अखंग अविनाशी तेहि है अव्य दाख्यो,, संग्रह नय पदे सर्वानाख्यो ॥ अहो॥१॥ PRAGYAgreeMAGE RRORAGARAGRAORAGE GARAGRAGre Gror & Grorensaner Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PAL થી ધર્મ પ્રવતન સાર, MaraGeore PRORAGARAGARANARASIMRAGMEArg व्य प्रव्य प्रत्ये अनंत गुण जाख्या, गुण गत अनंत पर्याय दाख्या, प्रदेस समूदाय तिहां राख्या, तेहिज सत्ता एम ग्रंथे साख्या ॥ अहो० ॥२॥ ति पर्याये पूर्ण नासे कार्य नहि अव्यक्तव्यतासे, व्यक्तव्य सामर्थ पर्याय तिहां; न लहे उपयोग विण नाव इहां ॥ अहो० ॥ ३ ॥ उपयोग ज्ञान दर्शन हिनेदे, लहे नय ऋजुसूत्र तद्गत वेदे; करी:करण अपूर्व ग्रंथी नेदे, लहे समकित मिथ्या वने दे ॥ अहो० ॥ ४ ॥ इहां शब्द नय साध्य साधन एकता, गुणगत गुण वृत्तिनी टेकता; स्वस्वरूप रमणीये नहि अन्य नेगता, बेदी मोहनी उपाधि लहे यथाख्यातता ॥ अहो० ॥ ५॥ इहां दीण मोह गणे समनिरूढ आवे, तिहां 3त्रण घाती कर्मनो क्षय थावे; लहे अनंत चतुष्ट व्यक्ति नावे, अरिहंत सयोगि केवळी गण पावे ॥ अहो० ॥६॥ सयोगि केवळीना दोय नेद जाख्या, एक तिर्थकरने बीजा हूँ सामान्य दाख्या; बेहु देव तत्व अंतरगत सरखा, बाह्यमां विशेष तिर्थकरने परख्या ॥ अहो० ॥ ७॥ ए जीन देव चौ निदेप दाखं, प्रयम जीन नाम जीननुं ना; स्थापना जीन जीन पमिमा नीरखी, जीनने जीन पमिमा बेहु कही सरखी ॥ अहो० ॥७॥ जीन पमिमा नव अंगे पूजो, निज गुण हेतु जाणी तद्गत बूमो; हवे अव्य जीन नाखू नवि सांनळो, बांध्यू जीन नाम कर्म ते ऽव्य जीन नलो ॥ १ 5 श्रहो० ॥ ए ॥ नाव जीन समोवसरण ज्यांहि, अष्ट प्राति- है हे हार्यादि ऋद्धि त्यांहि; बार पर्षदा मिले श्रावीने जीहां, ६ Barsxeiosmosra GramroGBABoroGremGrore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ दिये जीनपति देशना जलधार तिहां ॥ अहो० ॥१०॥ उप नेवा विगमेवा ध्रुवेवा, सूर्णी ज्ञान लहे गणधरपद लेवा, नव १ ॐ अव्यास्तिक पर्यास्तिक बोध श्हां, लब्धिए रचे द्वादश अंग है तिहां ॥ अहो० ॥ ११ ॥ मस्तक नमावे जीनपति आगे, . & इंड वासदेप आपे थाल नरी रागे; वासदेपवि गणधर है पद स्थापे, विरती प्रणामि थाय प्रनू मुख गपे ॥ अहो। ॥ १२ ॥ साधू साध्वी सर्व विरती नावे, देश विरती श्रावक श्राविका थावे; एम संघ चनविध जीनपति स्थापे, आझाये शिवपंथे कर्मबंध कापे ॥ अहो० ॥ १३ ॥ चौतीस अतिशयवंत गुण खाणी, पंचतिस गुणनर जीनपति वाणी; कंचन कमले प्रजू विहार करे, अणहूता कोम सूर सेवे मन खरे ॥ अहो० ॥ १४ ॥ दोष अढार रहित बार गुणस्वंता, दायक नव लब्धिए पूर्ण संता; जीन नाम कर्मनो 3 विपाक उदय नयो, तेने खेरवे त्यां नव्यने ए कारण थयो ॥ अहो० ॥ १५ ॥ षट् अव्य वस्तु जीनवर नाखे, तेमां १ एक जीव पंच अजीव दाखे, पंच अजीव परने हेतु दाख्या ए जीवने निज हेतुपर अहेतु नाख्या ॥ अहो० ॥ १६ ॥जी१ वने हेतु अहेतु नदिकताए कहीए, वस्तुए निज हेतु स दहिए, एम जाण। निज गुणगत लिन थए, शक्ति नाव ६ ते व्यक्तिपणुं लहे तहींए ॥ अहो० ॥ १७ ॥ एम चउ है निदेपे जीनवर जाणी, तरणतारण घटगत नाव आणी; १ 9 जीन गुण गावो ध्यावो नव्य प्राणी, गुण गाश्ने थया अ- के हे नेक गुण खाणी ॥ अहो ॥ १७ ॥ सयोगि केवळी गणे ६ LicensDogsgirl PROMOGrogrroraveenarendramod Door Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RANDROOMBERam श्री धर्म प्रवर्तन सा२. १ स्थिति दाखी, उत्कृष्ट देशे उणी पूर्व कोम नाखी, जघन्य ६ अंतरमुहुर्त एक राखी, एम ग्रंथ प्रकरणे बहुश्रुत साखी ॥ अहो० ॥ १ए ॥ आयुष्य अंते योग रोध ध्यावे, तिहां हे शैलेशी करण करी स्थिर थावे, अयोगी अंते अघाति चौ ७ क्षय पावे, आत्म असंख्य प्रदेश निर्मल नावे ॥ अहो॥ २०॥ एहि सिद्ध निवऽघन दोय नागे, बूटी कायाथी पो- ६ लनो एक नाग त्यागे, समश्रेणीये लोकंते समे एक लागे, है तिहां सादि अनंत काल स्थिति नांगे ॥ अहो० ॥२१॥ एम साध्य साधन नवि जे करशे, कारण बति पर्याय ऋजु सूत्र ग्रहशे, कार्य सामर्थ्य पर्याय शब्दथी वरशे, पूर्ण कार्य लोकते सिद्ध स्थिति करशे ॥ अहो० ॥ ॥ इहां एवं नूतनय एक कहीये, स्याद्वाद स्वरूप सिद्धगत लहीये, अव्यास्ति पर्यास्तिक पद ग्रहीये, उपयोगे समकित निर्मल तहीये ॥ अहो० ॥ २३ ॥ एम देवतत्वनी जे श्रद्धा करशे, ते अल्पकाळे सिद्ध वधू वरशे, सर्व जीव समूदाय सत्ता १ ए सरखा, ज्ञानशीतल करी गुरु गम लेइ परख्या ॥ अहो० ॥ २४ ॥ संपूर्ण. दुहा देव तत्व ए वर्णव्यो, साधन साध्य अनेद; धर्म स्व सत्ता जाणिये; नय पद नेदानेद ॥१॥ निजपर सत्ता जिन्नता, काळ अनादि सबंध; है पर नास्ति नावे रही, तजतां आत्म अबंध ॥२॥ Heaven azia 55 GroardarasardarnerBAGroGeorea roore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sex Gre GARAM SARAPARISSAGACARE १ गुरु तत्व हवे वर्णवू, गुरुना गुण अनंत; g बहुश्रुत विण सद्गुरु नहि, समजो चतुर महंत॥३॥ जेने जे उपकारी बे, बोधी बोज दीये दान, हूँ ते तेनो गुरु जाणिये, कीजे तस बहु मान ॥४॥ 3 समकित दायक गुरु तणी, सदा सेवा करे एह; नव कोमाकोमी लगे (पण) बदलो न वळे तेह ॥५॥ ॥ ढाल बीजो ॥ ॥ देखो गति देवनी रे-ए देशी ॥ गुरु तत्व बीजो गुण निलोरे, जे श्रुत केवळी अणगार, केवळीने ए बेमां अंतर नहिरे, वृहत् कल्प नाष्ये साख निरधार, जगत गुरुवंदीएरे ॥ वंद्यां टळे सहि नवना, ए फंद, निमित्त हेतु पृष्टएरे ॥ ए आंकणी ॥ १॥ सद्3 गुरु नहि सर्व क्षेत्रे सदारे, श्रेष्टकाळे पण एम, आ दूषम पंचम काळमारे. कोइ अवसरे मील्यां करो अति प्रेम ॥जगत॥॥ विनय करो तनमनथी रे, गुरु रायना गुण गावो सार, आज्ञा ग्रही गुणवृत्ति करो रे, गुरु करुणा रस नंमार ॥ जगतः ॥३॥ उपदेश करे योग्य जाणीनेरे, सम जावे ए जीव अजीव, चेतना लक्षण जीव डेरे, रहित चेतना १ तेह अजीव ॥जगत॥॥ चेतना द्विविध जाणीयरे, उपयोग सामान्य विशेष, सामान्य दर्शन जाणीयेरे, ज्ञान उपयोग १ तेह विशेष ॥ जगत० ५॥ मनुष्यनी काया गत इंद्रि पांच है डेरे, शब्द, रूप, रस, गंध ने स्पर्श, मन नोमि उठो ६ Pokemon GrGroGorrenorama SareenarasRGASMOD Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ORGree IC PREASS GRAMSASARASIMRAGIRAGHAT , सहीरे, तेमां उपयोगी चेतन रह्यो सरस ॥ जगतः ॥६॥ काष्टमां जेम अग्नि रहीरे, वळी घी रडं फुधनी मांहि ॥ तिलमां तेल व्यापीने रद्युरे, तेम चेतन रह्यो काया त्यांही ॥ जगतः ॥ ७॥ ए चेतन सत्ताए सिद्ध समरे, परसंगे 5 संसारी कहाय ॥ परसंग बूटये तद्गत परिणमिरे ॥ अनु नवी शिव पद पाय ॥ जगतः ॥ ॥ परसंगे वृद्धि रागदेषनीरे, कर्म बंधनुं कारण एह ॥ इति संगे विषय जमता अनुन्नवरे, अनादि अशुद्ध परिणति ए तेह ॥ जगतः ॥ ए॥ दश अव्य प्राण कहीये जीवनारे, ते अशुद्ध व्यवहार नय पद ॥ नहि जीवना उदिक नावे पामीएरे, पूर्व बंधज नित्य ए प्रत्यक्ष ॥ जगत० ॥ १०॥ नाव प्राण जीव गुण 3 उपयोग एरे, बति पर्याय नाषेत्रण काळ ॥ संग्रह सत्ता शक्तिएरे, घटमां नय ज्ञान वस्तु निहाळ ॥ जगतः ॥ ११ ॥ मिश्र नावे करे कर्मबंधनेरे, कर्मबंधथी जन्म मरण होय ॥ नवव्रमण करे गति चक्रमारे, डेमो न लहे तेली बळदपरे । कोय ॥ जगत ॥ १५ ॥ नव नव प्रत्ये कुःख अति घऍरे, चउगति संसार मांहि ॥ तेमां घणुं दुःख नारकी लोगवेरे. १ तेथी अनंतु निगोद गति त्यांहि ॥ जगतः ॥ १३ ॥ तेनुं कारण अज्ञान मोहडेरे, अव्यक्तव्य अनादि संबंध ॥ श्र१ शुद्ध परिणतिए परीणम्योरे, तेथी न लह्यो निज गुणगंध ॥ जगत ॥ १४ ॥ निज गुण सम्यक चौ गति संन्निमारे, 9 अंशे शुद्ध परिणति होय ॥ केश् ग्रंथी नेद लहेरे, बेदी श्रनादि मिथ्यात्व सोय ॥ जगतः ॥ १५ ॥ अंशे उपाधि (१६८) screwar porno GrenormoranaraGhoranwrorecare Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRORAGARANASARANDARASARArg श्री धर्म प्रवर्तन सार. १ परिणतिये टळेरे, श्रद्धामां टळे उपाधि सर्व ॥ पर वस्तु निन्न नाषे आत्मज्ञानथीरे, समकित गणुं ए जाणो दीवा ळी पर्व ॥ जगतः ॥ १६ ॥ इहांथी रस्तो सीधो शिव पंथ- ( ६ नोरे, घट अंतर गुण श्रेणीमांही ॥ गुण गत मनुष्य नवे १ , शिव लहेरे, न खळायतो एक मुहुर्ते पहोंचे त्यांही ॥ ज। गत ॥ १७ ॥ सीधे रस्ते खाळे अधिक एक आखुरे, & रोकाय केवळी तेरमा गणमांहि ॥ अवळे रस्ते खाळे के अनेक जाणीयरे, छूटे ते पाके नव स्थिति त्यांहि ॥ जगत ॥ १७ ॥ अनुन्नव विण शंका टळे नहीरे, शंका टळे जब है समकित होय ॥ वस्तु गत वस्तुपणुं लहरे, ते शुद्धातम अनुनवि सोय ॥ जगत ॥ १५ ॥ सिद्ध स्वरूपी श्रात. 3 मारे, जाणे देशथी जे अनुनवि होय ॥ सर्वथी जाणे हूँ केवळी रे, प्ररूपे अनंतमे नागे अनिलाप्य सोय ॥ जगतः 3॥ २०॥ अधिक कहेवामां आवे नहि रे, एटलामा खुटे क्रोम पूर्व आयूष्य ॥ आठ वरसनी उम्मरे केवळ सहीरे, र अखंम धाराये प्ररूपे आत्मऋद्धि जुष्य ॥ जगतः ॥१॥ ६ अनअलिलाप्य तो वचनातित डेरे, केवळीना वचन गोचर नवि थाय ॥ अनिलाप्यथी अनंतो, अनयन्निलाप एरे, एम बोले गितारथ राय ॥ जगतः ॥ २२॥ आत्मऋद्धि खुस्ली, ६ प्रत्यक्षले रे, आळेखी अनुन्नव मंदीरमाही ॥ उपयोग नावे : ते ऋद्धि ग्रहीये रे, लहीये सूख अव्यावाध अंश त्यांहि ॥ 9॥ जगत ॥ २३ ॥ शिव सूख कारण अनुन्नव रे, ह ए विण संसार पंथ ॥ कदि चौगति ब्रमण टळे नहिरे, . ( १९८) GARGarmanore GGER. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SawaimartGGAgrowoardarama श्री धर्म प्रवर्तन सार, १ करतां शुन्न क्रिया बोले अनेक ग्रंथ ॥ जगतः ॥२४॥सद्-९ गुरु श्रवण हेतु अति नलारे, दिये अढलक बोधनुं दान ॥ सुणि मनन चितवन घटतर करिरे, निंद्राशय न टाळी जागृत थै पामे ज्ञान ॥ जगतः ॥ २५ ॥ जागृत दशा जब जाणीयेरे, निज ने पर बेहु नासे निन्न ॥आप स्वरुपी आप मांरे, व्यापक परिणमन थाय तलीन्न ॥ जगतः ॥ २६ ॥ निज पर निन्न नेद जीहां नहिरे, तिहां एकांते पर पोतार्नु मनाय ॥ विरती थेने ते धर्म करणी जो करेरे, नहि शिव ३ १ हेतुए मिथ्यात्व कहाय ॥ जगत ॥ २७ ॥ निज पर नेद @ निन्न नासे जीहांरे, तिहां आत्म हेतु कहेवाय ॥ ज्यारे त्यारे पर परिहरेरे निजरूपे पूर्ण सिद्धता पाय ॥ जगतः ६॥२७॥ आत्मरुचि प्यारा तुमे अंतर नजोरे, उदे पामशे ६ 9 अपरिताप ज्ञाननाण ॥ तिमिरांधकार नागे तिहां रे, पामो अनुनवनूवने केवळनाण ॥ जगतः ॥ २ ॥ एम आत्म ७ स्वरूपने जाणीयेरे, साधक बाधक वृत्तिनो विचार ॥ बाधक नावने परिहरी रे, लहीये साधकताए सिद्ध पद सार ॥ ६ जगत० ॥ ३० ॥ गुरु दिनकर सम ज्ञाने दिपतारे, करे स्त्रपरने प्रकाश ॥ पर परपणे करीने लहेरे, स्व अनुन्नवे सिद्ध पद खास ॥ जगतः ॥३१॥ए गुरुना गुणगण गाइएरे, हुंतो सेवक सद्गुरुनो दास ॥ ज्ञानशितळ करी दाखी. 4 योरे, कीधो उपदेश जीव गुणनो समास ॥ जगत० ॥३॥ समात ॥ ( १७०) 6 Design662525 ResearBGOLGreer@GOO.GLAGrenore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री घर्भ प्रवर्तन सा२. Gork GAGROGRAR GOA. दुहा. ६ गुरु उपकारी अति नला, जणाव्युं जीव स्वरुप; साधक बाधक वारता, दाख्युं ज्ञान अनूप. ॥१॥ ६ धर्म तत्व त्रोजो हवे, ना वचन रसाल: ६ स्थिर चित्ते नवी सांभळो, श्रधा करो विशाळ.॥२॥ धर्म मूळ श्रुतज्ञान ए, बीजुं चारित्र धर्म; ६ श्रुत दिपक घट अंतरे, मिथ्यामती टळे नर्म.॥३॥ श्रुत ज्ञान व्य नावथी, आराधो नले नाव. ६ भव्य श्रुत कारण नावन, नाव नवो दधि नाव.॥४॥ गुण स्थानक चोथु इहां, ग्रंथी नेद करी पाय; नहिं तो अज्ञानी रहे, धर्म न तेद कहाय. ॥५॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ ॥ आदि जीणंद मया करो-ए देशी ॥ श्रुतज्ञान घटंतर पाश्ने, उपयागे मोह खपावोरे, बाह्य वृत्तिए परिणमन मोह बे, . त्यां राग द्वेष वृद्धि न अन्नावोरे ॥ श्रुत० ॥१॥ घटगत निज चेतन उळखो, गुण अनंतनो कंदरे, निरुपद्रवस्थान अंतर विषे, अनुनविने करो श्रद्धाए जीणंदरे ॥ श्रुतः ॥२॥ सर्व देवनो देव निज आत्मा, सर्व गुरुनो गुरु उपयोगरे ॥ धर्म वस्तु स्वनावे जे सहि, सत्ताए सिद्ध अनादि अनंत नंगरे १ ॥ श्रुतः ॥ ३ ॥ शक्ति व्यक्ति लहीए श्रुतज्ञानथी, , हे श्रुतज्ञानी थाय वितरागरे ॥ वितराग श्रुतझाने केवळ लहे, ___(१७१) ReAGARAMSANSAGARAGreAGre GreAGre GrRASARAGRAT Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FREGMRAGIRATRAIMEAGrexsreg १ पामे सनातक पद श्रणगाररे॥श्रुतः ॥केवळ कारण सही ६ श्रुत ज्ञानए, श्रुत ज्ञान शिवपंथ त्यांहिरे, करी अनुन्नव १ गुण श्रेणीये चढो, एकत्व परिणमन शुद्धातम माहिरे ॥ @ श्रुतः ॥ ५॥ श्रुतनाणी होवे पंचनेदे संजमी, यथाख्यात क्षिण मोहगणे वंदोरे, श्रुतझाने घातीकर्म क्षय करी, थाय केवळी त्यां परमानंदोरे ॥ श्रुतः ॥ ६॥ जाणे वस्तुगते & एक निज आतमा, तेने सर्व जाण कह्या गणंगेर, बाकी 3 सर्व जाणे तेने अजाण कया, जो जो पहेला गणे मन चंगेरे ॥ श्रुतः ॥ ७॥ जाणे जगत प्रत्यक्ष जेम केवळी, तेम जाणे परोक्ष श्रुतनाणी रे, केवळीनो उपयोग वर्ते समे समे, बद्मस्यनो असंख्य समे वर्ते नव्य प्राणीरे ॥ श्रुतम् ॥ ॥ ॥ घटंतर उपयोग ते नाव श्रुत , करे रमण अंतर परिणमन्नरे, उपादान कारणपणुं त्यां लहे, करे कार्य थाय सलिन्नरे ॥ श्रुतः ॥ ए ॥ केश कार्य करे शहां देशथी, केश सर्वथी कार्य करे. जाणरे ॥ देशथी कार्य ते समकित सहे, सर्वथी कार्य पामे केवळ नाणरे ॥ श्रुतः ॥ १० ॥ नाव श्रुत निश्राये अव्य श्रुत ने, नहि तो अश्रुत एम कहीये रे, जीहां नणीये सूणीये विनय करी, तिहां प्रव्य श्रुत गुण ग्रहीयेरे श्रुतम्॥११॥ श्रुत चनद नेद विश नेद , वळी सूत्र 9 पिस्तालीस नेदरे, सद्गुरु मूखे सूणिये विधी करी, खहीये है समकित मिथ्यात्व बेदरे, ॥ श्रुत० ॥ १५ ॥ नणावे अक्षर २) श्रुतना जेटला, तेटला सहसवरस सुख पावे रे, खर्गे अ. हे नंतां श्रनुलवे, एम विजय लक्ष्मीसूरी गावेरे ॥ श्रुतः ॥ xxosisteresss RASAREERAGAR GoraGroomnarendranagar Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GORG.RAGHAR eKaranore GARL SINGERRORS sexreLGRAGRAAR RAGARH શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. १३ ॥ जाणे जीव प्रव्य क्षेत्र काळ नावथी, अव्य अखंग अविनाशी त्रणे काळरे, देवथी असंख्य प्रदेशी कह्यो, काळथी अगुरुलघु परिणति रसाळरे ॥ श्रुतः ॥ १४ ॥ ना६ वथी केवळनाण दर्शण सही, इत्यादि दायक लब्धि अ नंतरे, सत्ताए संग्रह नयथकी, करो शब्द पामी संग्रह । एवंनूतरे ॥ श्रुतः ॥ १५ ॥ ध्यान धर्म शुक्ल दोय ध्याश्ए, तिहां श्रुतझान उपयोग घटमां रे, एहि ज्ञान गज गर्जारव से करे, मोहादि उपाधि नागे समाधि वरे झटमारे ॥ श्रुत० ॥ १६ ॥ समाधि हेतु एकश्रुत पूजो नहि, ज्ञान शितळ ए वचन प्रमाणरे, एम जाणीने नविजन खप करो, लहो नावश्रुत अनुन्नव नाण रे ॥ श्रुत० ॥ १७ ॥ समाप्त.॥ ॥ दुहा ॥ श्रुत शान ए वर्णव्यो, धर्म कहीजे तेह; विरति झान फळ आदरी, टाळो आवरण खेद ॥१॥ विरति देशथी सर्वथी, जव्य नावे विचार; व्य विरतिथी स्वर्ग, नाव शिव पद सार ॥२॥ देश विरति श्रावक कह्या, सर्व विरति अणगार; पंच नेद ने तेहना, यथाख्यात शिव सार ॥३॥ अणुव्रतादिक नेदथी, श्रावकनां व्रत बार; गुरु मुखे नवि नच्चरो, समकित मूळ नरनार ॥॥5 & श्राद्ध धर्म हवे वर्णवू, आगळ ढाळ रसाळ; हे जाणिने नवि आदरो, विरति मुख्य नदि बाळ ॥५॥ GROGRAGRAGOLGAPAGALGAR (१७३) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धर्म प्रवर्तन सा२. ॥ ढाल चोथी ॥ ॥ देशी रसीयानी॥ 5 श्रीश्रावक धर्म आराधीएरे, समकित मूळ प्रख्यातरे गुण , रसीया, स्थुल अणू व्रत पंच नेदथी रे, तेमां प्रथम दयाधर्म वातरे, गुण रसीया ॥१॥ त्रस स्थावर दया नेदथीरे, • स्थावरनी दया नहि कीधरे, गुण रसीया; दश वसा गया 6 तेहनारे, रह्या त्रसना दश प्रसिद्धरे, गुण ॥ तेमां कारणे से हणाय जीव तेहनारे, गया पांच वसा ने रह्या पांचरे, गुण॥6. अपराध करे हणुं तेहने रे, तेना अढी गया रह्या अढी न खांचरे, गुण० ३॥ कारण विना निरापराधीनी रे, ग्रहस्थिना घरे अजतना थायरे, गुण तेनो सवा गयो ने रह्यो सवा । 3 वसोरे, संकल्पि न हणुं त्रस जीव कायरे, गुण ४॥ ए है प्रथम अणुव्रत दाखीयुरे, बीजे अलिक नाषानो स्थूल निमरे, गुण॥ कन्याळी नूमाळी गवाळी वळी रे, थांपण मो सो कुमी साख पंच नीम रे, गुण ५ ॥ त्रीजु अदत्त विरमण व्रतमां रे, राजा दंमे ते चोरीनो करो त्यागरे, गुण॥ चोथु मैथुन विरमण व्रतमा रे, वेद विषय त्याग घट वैरा१ गरे, गुण० ६ ॥ सामान्य विशेष दोय नेदथी रे, सामान्ये ६ स्वदारा संतोष रे गुण ॥ विशेष सोय दोरा आकारथी रे, १) तजे विषय अंतर नहि रोषरे, गुण ७ ॥ परिग्रह परिमाण व्रत पंचमुरे, तेमां अधिक मूर्गनो अन्नावरे, गुण॥ परिमाण १ 5 बांधे नव नेदथी रे, तेनो करे लेख लखावरे ॥ गुण ॥ ए पंच अणुवृत कह्यां व्यवहारथी रे, हवे तीन गुणवृतनो ( १७४ ) RAMGsrwadi desi GRamrosarokar@searcheore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. विचाररे गुण ० ॥ गुणवृते गुणवृद्धि अणुवृतमांरे, जो पाले निर तीचाररे ॥ गुण ० ९ ॥ पहेला गुण वृत दिशी परिमाणमां रे, दिशी विदिशी उर्ध्व अधोदिसरे || गुण० ॥ परिमाण करे गमनागमन तिहां रे, अधिक विरमण व्यवहार तसरे ॥ गु० ॥ १० ॥ निश्चय दिशी अंतर उपयोगमां रे, करे अनुजव अनंत दोर संतरे || गुण० ॥ द्रष्टिगोचर नहि वर्णादि तिहारे, बाऊ सर्व दिशी विरमण कदंतरे ॥ गुण० ॥ ११ ॥ बीजुं गुणवत जोग उपभोगएरे, तेना निश्वे व्यवहार दोय नेदरे ॥ गुण० ॥ व्यवहारवतना कायादि जोगयी रे, तेमां अशुभ आचरण जोग बेदरे ॥ गुण० ॥ १२ ॥ निश्वे निज गुण लब्धि घटतरेरे, दय उपशम प्रकृति एकादशरे ॥ गुण || उपयोगे करो जोग समाधि लहोरे, उपभोग पूनर्वारंवार तसरे ॥ गुण ० ॥ १३ ॥ त्रीजुं गुणवृत अनर्थदं विरम्यां रे, तेना निश्चे व्यवहार दोय जेदरे ॥ गुण० || व्यवहारे सावध जोग विरमीरे, निर्वद्य शुभ जोगे शुभ लेश्या वेघरे ॥ ० ॥ १४ ॥ निश्वे विरमो मिथ्यात्व मोह अज्ञानने रे, उदय पामशे घटमां उद्योतरे ॥ गुण०॥ अंतर ऋद्धि रमण करतां तिहां रे, उपयोगे प्रगटे अनुभव ज्योतरे ॥ गुण० ॥ १५ ॥ चेतन दंमाय परसंगे एक मोहथी रे, न दंकाय निज संगे सत्य वातरे ॥ गुण० ॥ निज संगे शरण चारित्र रायनुंरे, उपयोग गुणगत स्थिर साक्षातरे ॥ गुण० ॥ १६ ॥ ए अणुव्रत गुणवत दाखीयां रे, दाखुं शिक्षावृतना चौ नेदरे || गुण० || प्रथम सामायकवृत समाधिमा रे, ( १७५ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धर्म प्रवर्तन सार. PRORAGARAGRAREERSARAHARANAS तिहां उपाधि अव्य नाव थाय बेदरे॥ गुणः ॥ १७ ॥ निश्चे ६ व्यवहार दोय नेदथी रे, करो नित्य सामायक गुरू संगरे ? १॥ गण ॥ व्यवहार गुरू निमित्त हेतु नलारे, निश्चय , गुरू निज शुद्ध उपयोगरे ॥ गुण ॥ १७ ॥ अव्य १ 5 उपाधि टले त्रण योगनी रे, अशुन्न आचरणाना दोष है हे बत्तिसरे ॥ गुण ॥ नावे अशुद्ध परिणति पॐ पातळी रे, ६ नाख्युं समन्नावे सामायक जगदिश रे ॥ गुण ॥ १७ ॥ है है देसावगासिक बीजा शिक्षावृतमा रे, करो विशेषे सर्व 6 दिशीनो संक्षेपरे, ॥ गुण ॥ पौषधशाळाये करो त्रिकरण है योगथी रे, व्यवहारे दश सामायक निर्लेपरे ॥ गुण ॥२०॥6 निश्चे देशावगासि ज्ञान घटमां सही रे, ग्रहीयें शुद्धातम स्वरुप थै लिन्नरे ॥ गुण ॥ परपरिणमन परदिशी टले शहारे, नाग वेंची एम थैए निन्न जिन्नरे, ॥ गुण ॥१॥ पौषधोपवास त्रीजा शिक्षावृतनारे, व्यवहार निश्चय दोय नेदरे ॥ गुण ॥ देशीने सर्वथी पोषह करी रे, मोहादि १ कर्मनी करो सत्ता उच्छेदरे ॥ गुण ॥२॥ देशथी पोसह र दिन चौपहोरनोरे, सर्वथी दिवस रात्री आठ पहोररे, ॥ गुण ॥ ए नेद दोय शुलव्यवहारनारे, कहुं निश्चेना नेद जेसीधतोररे॥गुण॥३॥पोषधज्ञान ध्याने आत्मापोषीयेरे ॥ । तिहां लहीए देशथी समकित गणरे ॥गुण॥ सर्वथी केवळ नाण पामतां रे, लहीये अघाति टाळी पद निरवाणरे।गुणा &ा चोथु अतिथी संविनाग शिक्षावृतएरे, अतिथीना पंचम है अंगे नेद दोयरे ॥गुण०॥ एक गीतार्थ श्रमण अतिथी सही ६ Hamrosagarma BrgroGGER REGIS SearGrorenoreGRAGanasranama Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धर्म प्रवर्तन सार. रे, बीजा गीतार्थ निश्राये अतिथी होयरे ॥ गुण० २५ ॥ ६ ए दोय परम पूज्य जीन शासन रे, तेमने नक्तिये दीजे १ अशनादि दानरे ॥ गुण ॥ सत्य नाषा वोलीए पर आकका तजीरे. अढळक आपो आग्रह करी बहु मानरे ॥ गुण २६ ॥ दश गलां पूंठे वळावीनेर. पली पोते जमे ह व्रत धारि तेहरे ॥ गुण ॥ ए अतिथी संविनाग व्यवहार ई थी रे. निश्चे अतिथी निज जीव गुण गेहरे ॥ गुण २७ ॥ गुरुज्ञाने जीवाजीव जाणीयेरे, तिहां निजपर लेद समजायरे ॥ गुण ॥ परपरपणे करी तद्गत परिणम्योर, तिहां है शुद्ध उपयोग गूण प्रगटायरे ॥ गुण २७ ॥ ए विषय वि-6 मूख शिव अनुन्नवरे, पामे क्षय उपशमादि सब्धिमुं दानरे ॥ गुण ॥ देता लेता निज पोते सही रे, ते नाव अतिथी जाणी तेनुं करो ध्यानरे ॥ गुण० २ए ॥ अतिथी संविनाग तस कीजीयेरे, आराधे नावि श्रावक जे होयरे ॥ गुण ॥ ए अणुव्रतादि सवे द्वादश ग्रहीरे, लहीये स्वर्ग के शिवगति सोयरे॥ गुण॥ ३० ॥ चौराशी सहस मुनि दान-रे, नावे ग्रहस्थ दान नक्तिफळ कीधरे ॥ गुण ॥ क्रिया गुणगणे मूनि वमारे, न नाव तूट्य को जगप्रसिद्धरे ॥ गुण० ३१॥ एम जाणी नविन्नाव प्रगट करोरे, नाव शुद्धात्म स्वरूप उपयोगरे ॥ गुण ॥ ज्ञान शितळ करी पामीयेर, घट अं.. तर अनूनवयोगरे ॥ गुण० ३५ ॥ समाप्त. SODSDOMBAGreeMBAGreation OMG Feasierrestrongrat Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ARRAGre Gre SRC SCARDog શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. दुहा. श्रावक धर्म ए वर्णव्यो, बादश व्रत गुणगम; 9 हादश अव्रत टाळिने, लदो निर्जरा सकाम. ॥१॥ यति धर्म हवे वर्णवू, दाखं वचन रसाळ; दश नेदे नवि सांनळो, पामो मंगळ माळ. ॥२॥ खंति, मद्दव, अजवा, मुत्ति तप चारित्र; सत्य शौच अकिंचनि, ब्रह्मवत्त पवित्र. ॥३॥ गण विण संयति लिंगजे, कास कुसुम उपमान; 3. व्यवहारे बहुलां कयाँ, न लडं सम्यक् ज्ञान.॥४॥६ आतम गुण गत रमणता, तेहिज संयति धर्म. है ३ दश नेदे आराधतां, लहिये शिव सुख शर्म. ॥५॥ ढाल पांचमी. ॥ सहेजानंदिरे आतमा. ए देशी ॥ .. संजमि अनूनवि आतमा, समकित मूळ माहावतरे, त्याग आश्रव पंचनेदथी, दिदा दिये गूरु संतरे, बोध दिये। विशेष महंतरे, विनय करो गूरु गूणवंतरे, विनित गुण वृद्धि लहंतरे, गूणमां ज्ञान मूख्य हूंतरे, ज्ञान घट तरणी १ कहंतरे, दशनेद धर्म ग्रहंतरे ॥संजमि० १॥ए आंकणी॥ पहिलो संयति धर्म ए, खंति क्रोध निराशरे, समता विरोए दधि आगळे, सुरनर सुखविंदु नासरे, आशादासी तृष्णा थै नाशरे, नहि लोननो अवकाशरे, गूण गत वृत्ति दि. हे माजासरे, सहे उपसर्ग वेदे नहि तासरे, वेदे अनूनवे . PAGroverberror Browse and Gadaram GAGARIGORIGINORG BreAeEDEOMGAOM Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RECTODareSDROORS PRAGNEGIOGRERAGNORG श्री धर्म प्रवर्तन सा२. स्वस्वरूप खासरे, सहे परमानंद नोग विलासरे ॥ संजमि०२॥ बीजो धर्म ए मुनितणो, मादव नाम हितकाररे, मृतामान मराशथी, विनयादिक गूण धाररे, विनयथी श्रुतवृद्धि साररे, श्रुतफळ विरती अणगाररे, मद फणिधर 5 मसतो निवाररे, मदथी गूणहानि अपाररे, अशुल ए मो हनो परचाररे, बेदी अनूनवि आतमताररे, ॥ संजमि० ३॥ त्रीजो धर्म वखाणीये, आर्यव ऋजु सूत्र जेहरे, माया क-है पट विनाशथी, सहीये अंतर गूण गेहरे, टळे तिहां सर्व 6 8 संदेहरे, मिथ्यात्व त्रम लागे ठेहरे, निज एक शुद्धातम तेहरे, त्रूटे सर्वपरथी स्नेहरे, रागडेषनो होय बेहरे, अनू-3 र नवि टाळे कर्म खेहरे ॥ संजमि० ४ ॥ चोथो मुत्तिधर्म मुनितणो, लोननो जीहां अन्नावरे, निलोनि तेने संपजे, नव जलधि तरवा ए नावरे, लोन दुःख दरीयो जाणो तावरे, ते अवसर बोमवानो दावरे, बोड्यां नमे सूरनर रावरे, संजम स्थिर गुणनो जमावरे, मोह ध्वंस करो झानखड्ग घावरे ॥ संजमिण ५ ॥ पंचमो तप धर्म जाणीये, निर्जरा हेतू कहायरे, छादश नेद ने तेहना, वाऊ अन्यंतर मळी थायरे, इच्छाए कर्म बंधायरे, श्च्छा रोध तप निर्जरा पायरे, श्च्छा मोहथी प्रगटायरे, मोह मूळ त्याग मुनिपदरायरे, झानध्याने उपाधि हणायरे, निज अनुनवि शिव पूर जायरे ॥ संजमि० ६ ॥ बहो धर्म संजम कह्यो, सत्तर . 9 नेद शिव अंगरे, आतमन्नावे आराधीये, करीये शिववधु , संगरे, नेदझान निर्मल गंगरे, मळ टळयां मूळरूप चंगरे, 3 Missagarmendra SARAGRAMMAsorrorecordGGER. PranMenorrenore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FROMRAGreAGARLSEARRAIMRAPASAB अनुनव ज्योति अनंगरे, परमानंद लोग रंगरे, शिवपद । लहीये एकंगरे, सादि अनंत लागे नंगरे ॥ संजमि० ॥ सातमो सत्य धर्म मुनितणो, सत्य जब सत्ता प्रगटायरे, संग्रहनयथी शिवरूप बे, तेनो एवंजूत थायरे, ते सत्य धर्म ६ कहायरे, असत्य उपाधि हणायरे, निरुपाधि शिवपद पायरे, लोकंते सिद्ध स्थिर गय रे, निराकार निरंजन राय रे, अव्यावाध सूख सदायरे ॥ संजमि० ७ ॥ नावथी सोच धर्मे मुनि रमे, न गमे शुन्नाशुन्न ज्यां हिरे, शुन्नाशुन्न तेह एंडे, अनंतजीवे वमि जगमांहिरे, ग्रही आश्रव बांधे मुनिनांहिरे, निर्जरे मुनि उपयोग ताहिरे, योग्य जीवतारे ग्रही बांहिरे, व्रतना उदासि नाव आहिरे, रहे नेळा नळे १ नहि क्याहिरे, नळे मूळरूपे सिद्ध शांहिरे ॥संजमि० ए॥ नवमो अकिंचन धर्म ए, मुनिमारग शिवपंथरे, कंचन दो & नेदे नाखीयुं, अव्यन्नाव देखो ग्रंथरे, तज्यां व्यथी अव्य है है निग्रंथरे, मूळ न वळयुं त्यां रह्यो अनर्थरे, अव्य त्यागथी ७ सरे नही अर्थ रे, नावग्रंथी तज्यां शिववधू कंथरे, शहां कार्य थाय यथा तथ्यरे, मिले यथाख्यात संयम रथरे । ॥ संजमि० १० ॥ दशमो ब्रह्मबत पालता, शिलंगरथे बेग मुनिजायरे, संयम श्रेणीमा एकला, उपयोग स्थिर सहायरे आतम अनुलव पायरे. प्रत्यक्ष्य प्रमाण कहायरे, ध्यान तुरंग नचायरे, झान गजगारव थायरे, उपाधि अनंति हणायरे, रिद्धि लै मुनि सिद्ध सधायरे ॥ संजमि० ११ ॥ एम दशन्नेदे मुनि धर्मने, आराधे जे अढीछिपरे, ते सर्वने करुं विधिवंदना ए मिले उदे थाय पून्य पीपरे, तिहां ल (१८०) SGARGGoraharaswarasRenore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धर्म प्रवर्तन सा२. s n Gore GARGroranoranora PROGRAPHRASARAPRILSEXGore Greg १ हीये ज्ञान जेसो दीपरे, वारंवार आपे बोध नरी बीपरे, ६ पीतां पीतां नागे मोह टळे टीपरे, अनुक्रमे लहे अन्नेद स्वरूपरे, मोह न घटे त्यां नगरपर लीपरे, ज्ञान शितळनी गुण समीपरे ॥ संजमि० ॥ १५ ॥ समाप्त. ॥ दुहा. है संयति धर्म ए वर्णव्यो, दश नेदे गुणखाण. १ तेने अंगे आणतां, लदिये पद निर्वाण विण आत्म जे जे कथा, तेद न धर्म कहाय, नव जमण एदथी वधे, समजो नवि चित लाय ॥२॥ आत्म अनात्म निन्नता, तेहिज कहिये ज्ञान. स्थिर श्रधा पलटे नहि, ए समकित अनुमान ॥३॥ उपाधि देशथी टाळतां, लहे पंचम गुणगण. एकादश प्रकृत्तिनो, दय उपशम त्यां जाण ॥४॥ उपाधी टाळे सर्वयी, तेहिज संयति धर्म. 3 अप्रमतादि नावे लदे, दपक श्रेणी शिवशर्म ॥५॥6 ॥ ढाल छठी ॥ ॥ गायो गायोरे मेंतो देव गुरु धर्मने गायो॥ देव अरिहंतने सिद्ध निरंजन, दायक लब्धि अनंतस जोगी, समय समय लोग उपनोग करता, एक समय न १ , कदिय अन्नोगी रे ॥ मेंतो देव० ॥१॥ गायो गायो रे है ई ध्यान ध्यायो रे, जीन आझाये धर्मने पायो, ॥ ए आंकण॥ 6 ___( १८१ ) GORAGAR GARAGRAGRAGrRAGAR GARL Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MargareroornaraGGGAR PERMSABSASRAREER SAMRAGHAT श्री धर्म प्रवर्तन सार. १ परमानंद अनंतो प्रगटयो, रमण गुणगत निन्न स्वन्नाव, ६ क्षिण मोह अंते घाति कर्म सत्ता बेदी, कायक लब्धि था-१ ७ स्वादि अरिहंत रावरे ॥ मेंतो० ॥२॥ त्यांथी तुमे देव , ६ सेवक हुँ तमारो, जाणी पोतानो बांहि ग्रही तारो, तार & कबिरुद निमित्त हेतु मिलीयो, तेथी जलदी लहीए नवो दधि आरोरे ॥ मेंतो० ॥ ३ ॥ गुरु गितारथ आतमझानी, 5 सदा निस्पृह नावे वर्ते, स्याहादादि वळी करुणा सागर; । 2 करे उपगार अनंतो नाषा खरतेरे ॥ मेंतो० ॥ ४॥ सद्-6 है गुरु नाषा अमृत पीपासा, रुची करी उपयोग सूणशे, ते । तत्त्वा तत्त्व विचारी शंका बेदी, बोधि बीज लही विरती गण ग्रहशेरे ॥ मेंतो० ॥ ५ ॥ देव गुरु दोय निमित्त पृष्ट । 3 कहीये, तेथी उपादान धर्मवृत्ति लहीये, हेय उपादेय बुद्धि पामीने, हेय बंमी उपादेय तिहां ग्रहीये रे ॥ मेंतो० ॥६॥ उपादेय धर्म रत्नत्रयि तेहि, उपयोग नावे लहीये, शिवहेतु संवरनिर्जरा करतां, उपाधि हणी उपरनुं गण ग्रहीयेरे ॥ मेंतो ॥ ७॥ एम शुद्ध व्यवहारे साधन करतां, 8 अनुक्रमे केवळ नाण लहीये, अघाति चौहणी अयोगी | अंते, सिद्धि वरीये अदय सूख तहीयेरे ॥ मेंतो० ॥ ७ ॥ एम धर्म तत्त्व आराधो नविजन, शिव पंथनो ए सीधो 9 रस्तो, आ काळे पामवो अति पुर्खन्न, मिळे तो श्रेष्ट काळे स्थिती पाके ग्रहतो रे ॥ तो० ॥ ए ॥ सिधो रस्तो नेद ज्ञाने लहीये, नेदज्ञान ग्रंथी नेदी तिहां कहीये, जम है चेतन दोय निन्न परिणमावी, अनुन्नव करतां विषय अण- ६ RALENDEVDrirror Dr PresearBAGBarsanaraGenerangama Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धर्म प्रवर्तन सा२. ग्रहीये रे ॥ मेंतो० ॥ १० ॥ सिधो रस्तो न मिले तनमन वचने, देवेन्द्र नरेन्द्र ऋद्धि वापरतां, एतो मिले शुद्धातम शक्ति फोरवतां, गुणपर्याय एकव अनुन्नवतां रे ॥ मेंतो० ॥ ११ ॥ हवे अवळे रस्ते जीवने न पिगणे, अव्य प्राणने १ एकांते जीव जाणे, ए नहि जीव पूर्वकृत उदिक नाव बे, है ए वचन सत्य आगम प्रमाणे रे ॥ मेंतो ॥ १२ ॥ अव्य ६ र प्राणने कहे जीव अशुद्ध व्यवहारे, हवे तेहना नेद दोय 5 जेह, एक शनने बीजो अशुन्न . ए शुन्नाशुन्न पून्य पाप 6 तेहरे ॥ मेंतो० ॥ १३ ॥ शुन्न कहीये देव दर्शन गुरुवंदन, स्तुति नक्ति बहु मान आदरथी, सेवा पूजा वळी विनय वैयावच्च, सद्गुरुनुं करो तनमनधीरे ॥ मेंतो० ॥ १४ ॥ सुपात्रदान दीजे ने शियळ पाळी जे, तप कीजे शक्ति 3 अनुसारे, नावना नावो धर्म ध्यान ध्यावो, शुन्न बंध हेतु ए सरल आचारे रे ॥ मेंतो० ॥ १५ ॥ अधिक शूनविरती परिणामी त्यां कहीये, सर्व विरतीये चरण करण ग्रहीये, इच्छा वंगा टाळीने मूर्ग उतारी, कंचन कामनीथी निर्लेप रहीये रे, ॥ मेंतो० ॥ १६ ॥ इत्यादि धर्म कह्यो शन्न व्यवट्र हारे, स्थिर श्रद्धाये ते शिव हेतु कहीये, नहि तो शन्न 9 आश्रव संसार हेतुए, तिहां संसार वृद्धि लहीयेरे, ॥मेंतो ॥ १७ ॥ स्थिर श्रद्धा कही तिहां समकित कहीये, वस्तु ६ गत्ये वस्तु सदहीये, अव्यास्ति पर्यास्तिक बोध लहीने, १ 2) नित्या नित्य स्याद्वाद धर्म ग्रहीये रे मेतो० ॥ १७ ॥ स्याछाद स्वरुप अनेकांत धर्मे, कारण कार्य संयोग, कारण ६ (१८३) roGRAGROBORAGrenoNORAGOLGana. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धर्म प्रवर्तन सार. ग्रही कार्यमां आवे, तव शिव सुखनो होय नोगरे ।मतों ॥ १५ ॥ कारण ते ऽव्यास्तिक कहीये, कार्य होवे पर्या-१ स्तिक नावे , ए दोनयविण स्याहाद न लहीये, गुण गुणी , नेदानेद ज्ञानी गावे रे ॥ मेंतो० ॥२०॥ ते नावे नावित १ चिदानंद माहरो, अंतर गुणगत रमतो, आतम अनुन्नव है अवसर पामी, ज्ञान शितळ करी उपाधी हणतो रे ॥तो 6 ॥१॥ संपूर्ण ॥ ॥ कळस ॥ GRAGIRIGre Gori Gore GroGRA ॥त्रीजगन्नासन-ए देशी ॥ देवगुरु धर्म त्रण तत्वनो, अनुक्रमे वर्णव कर्यो, ते नाव जाणी श्रद्धा करीने, व्यवहार समकितने वों ॥१॥ 3 निश्चे समकित ग्रंथी नेद कीधां, ते नावनो वर्णव करूं, अंतर नावे यथा प्रवृत्ति, करण शक्ति अनुसरं ॥२॥ ए करण प्रनावे खपे स्थिति, आयुवर्जीत कर्म सात ए, सागर कोमाकोमी हीण होवे, अपूर्व वीर्य उदेरे अनंत ए ॥३॥ नेदी परिणति कर्मवज्ज घनकी. सहज वीर्य अ खंग प्रवाहए, नारि नूमि नयंकर चूरी. हण्यो अनादि १ १ मिथ्यात्व मोहए ॥४॥ अनंतानु कषाय चौ अंत होवे, ६ अनिवृत्तिये समकितलहे, शितळता प्रगटे घट अंतर, पाप-3 वेली नववनकी दहे ॥ ५ ॥ ए समकित नावे अल्प , संसारी, सात आठ नव उत्कृष्ट ए, पमते नावे अर्ध पुद- 6 गल, मांहेली कोरे लहे सिद्ध ए ॥ ६॥ व्यवहार निश्चे है ई समकित नेद जाणी, पामवा नविजन खपकरो, ए विण 6 PensionERIN Grenadeanarasangraat Gro Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GOOGrogram RAGRABPORNERGRIGre, १ तप जप क्रिया करणी, निष्फळ वृथा जे आचरो ॥७॥ समकित विण अशुन्न करणी, आत्महेतू नवि कही, संसार १ ६) वृद्धि हेतू नाषी, गमगम देखो सही, ॥ ७॥ सर्व धर्मर्नु है मूळ समकित, सत्तार्थनय ग्रहणवखाणीये, अव्यगण पर्याय 5 जाणी, जीव पुद्गल पीडाणीये ॥ ए ॥ अव्य अखंग त्री काळवृत्ति, गूण पर्याय आधारए, जीवगुण संवर निर्जराने मोद, ज्ञान दर्शनादि अनंतपर्यायए, ॥ १० ॥ पुद्गलरूपी निर्जीव गूण दाखं, पन्ध पाप आश्रवने वंधए, शब्दरूप रस गंध ने स्पर्स, संस्थानादि अनेक पर्याय ए ॥११॥ एम निन्न जिन्न गूणपर्याय दाख्या, जीवने पुद्गल बेहु द्रव्यमां, पुद्गल गृणनी नास्ति जीवमां, अस्तिजीव गूणनी जीवमां ॥१२॥ एम जगतमांहि तत्व बेडे, जीवने अजीव एम जाणीये, अजीवना पांच नेद नाण्या,अरूपी रूपी मन आणीये॥१३॥ ६ धर्म अधर्म आकाशकाळ चौ, अरूपीने रूपी पुद्गल ए, एम पांच द्रव्यनो समास अजीवमां जीव पुद्गल वे मिव्यां नवतत्व ए ॥ १४ ॥ जीव पुद्गल संयोगे मिश्र नावे, अनादि चगति संबंधए, हेय उपादेय बुद्धि जोगे, होवे नवनो अंतए ॥ १५ ॥ जाणवा योग्य जीव अजीव जाणी, पून्य पाप आश्रव बंध गेमवा, जीव गुण संवर निर्जराने 9 मोक्ष, उपादेय जाणी ग्रहवा ॥ १६ ॥ हेय उपाधि त्याग | त्रण नेदे, उव्य नावे कर्मने नोकर्म ए, द्रव्यकर्म आठ ज्ञा9 नावर्णादि, नाव कर्म सही रागद्वेष ए ॥ १७ ॥ नोकर्म जोग मन वचन काया, अव्य कर्मबंध नाव हेतू सही, ते 8 vs SAGAR Senior RAS Gorware www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ reBOMBRata Dire RAGARGra Giri श्री धर्म प्रवर्तन सार, कारण मी घटंतर ग्रहीये, शुद्धात्म अनूनव शिव तहीं ॥ १७ ॥ एहि देव परमात्म पोते, एहि गूरु शुद्ध उपयोग 5 ए, एहि स्याहादधर्मे परिणमतां, परमानंद स्थानपद सि द्धए, ॥ १५ ॥ एम देवगूरु धर्मतत्व अनुन्नव, शुद्धनय ७ स्थापी कीजीये, आळपंपाळने पूर टाळी, सेहेजे शिवसूख ( लीजीये, ॥ २० ॥ एम साध्य साधो सत्ता आराधो, आ. रोपित धर्म परिहरो, शक्ति प्रगटे व्यक्तिनावे, अजरामर सुखने वरो ॥१॥ ए सूख अनादि आत्मसत्ताए, गूण- ६ गुणता तिरोनावे रद्यु, आविर्ताव तेनो प्रगटतां, लाधे है क्षायकन्नाव एम सद्दडं ॥॥क्षायकन्नावे अनंतगूण वृत्ति, गुणगूण स्वनावे जिन्नता, उत्पाद व्यय गुणगत होवे, अव्ये कहीये ध्रुवता ॥२३॥ पूर्व पर्याय व्यय गुण वृत्तिए,अनिनव पर्याय उत्पादए, एम समे संमे हाणी वृद्धि वृत्तिये, तिहां प्रगटे परमानंद ए ॥ २४ ॥ परमानंद गुणगुणनो जुदो, अनंतगुण आनंदोपेतए, तेनो लोग गुण निष्पन्नसमे कहीये, वाकी उपनोग चिरकाळ गतए ॥ २५ ॥ एम पू. कानंद जोगी सिद्धात्मा, तेमां अपूर्णता होवे नहि, एक ? समय मात्र विरहकाळ नावे, उख अशाता विघ्न कदी नहीं तहीं ॥ २६ ॥ ए सूख साधन घटतरमां, गुण श्रेणीये नेदानेदता, नेद बेद करी अन्नेद लहतां, पामे यथाख्यात, वितरागता ॥ २७ ॥ इहां संसार मूळ बीज विनाश होवे, ६) खूटे रागद्वेषने मोह ए, त्रण कर्म वितरागन्नावे हणलां, चउघातीनो थाय उच्छेदए, ॥ २७॥ तिहां अनंत चतुष्टय . andressiste ODGE BreeMBroreMBEMBroBe Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ...... AN श्री धर्म प्रवर्तन सा२. लहे अरिहंत पदमां, आयु बेमे थाय योग रोध ए, श्रघाति ( चौधेत अयोगी अंते, एम स्थिति पाके लहे नवि सिद्धए ॥ ॥ ए सिद्ध हेतु तत्वगुण गाया, अंतरयात्म स्थिर-3 जाव ए, निजपर हित अर्थे रचना कीधी, ते शुद्ध करो ज्ञानी गुणवंत ए, ॥ ३० ॥ उंगणीस बासठ विजापुरमां श्रावण, शुक्ल बीज सोमवार ए, श्रद्धा प्रकरण ग्रंथ पुरण, करतां प्रमोद अपार ए ॥ ३१॥ आ ग्रंथ नविजन रुचीये नणशे, सूणशे निश्चल चित्तए, ज्ञान शितळ तद्गत रटण करतां, पामे समकित रत्न विनित ए ॥ ३२ ॥ सर्व गाथा २०० ॥ श्लोक संख्या सवात्रणसो (३२५)॥ समपूर्ण. ॥ ॥श्री गुरुन्योनमः ॥ अथ श्री नवपदजीनी पूजा लिख्यते ॥ दुहा. ॥ चउवीशे जीनपति नमुं, नमु अप्रमत्त निग्रंथ ॥ धर्म तेनुं नाख्युं सही, सो समकित शीवपंथ ॥१॥ ते साधे सिद्ध चक्रने, पूजे नित्य द्रव्यनाव ॥ ते नव नेदे वर्णवं, अनुक्रमे निज सदनाव ॥॥ अरिहंत सिद्ध त्रीजे सूरि, पाठक मुनि गुण धाम ॥ दरशन नाण चरण वळी, तप छादशविध नाम ॥३॥ ए नवपद नक्ति करी, पूजा रचुं मनोहार ॥ नव पद गुण गण गावतां, त्रुटे कर्म प्रचार ॥४॥ नवपद सोहि आतमा, योग इंजिथी निन्न । । पुद्गलमा लाधे नहीं, नवपद गुण- चिहन ॥५॥ (१८७) - MAGARG.G MERGRESS ARLSARG Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ધર્મ પ્રવર્તન સાર. HALEvereos BreareBOMBrerana BaramaraGGDar PSGMAGARIGORAGARIGORAGAR १ नेद ज्ञान घटमां वसे, तो श्रद्धा स्थिर याय ॥ स्वपर विनाग करे तिहां अनुनव घट प्रगटाय ॥ ६॥ १ . समन्नाव वृत्ति एह बे, नाव पूजा पण तेह ॥ अनंतकारण सिद्धनुं, तेमां नहीं संदेह ॥७॥ ॥ढाळ ॥१॥ ॥राग बिलावर ॥ 8 जगत् प्रजु श्रागळ नवी वर अक्षत धरीए ॥ ए देशी ॥ अरिहंत पद गण तेरमे, घाति कर्महणीने ॥ अनंत चतुष्टयी पामीया, परियाय उणीने ॥ हांहारे पर्याय बणीने, हांदारे उपयोगी थश्ने ॥ हांहारे ज्ञान रमण लहीने, हांहां रे संन्नीरुढ ग्रहीने ॥ हांहारे मूळ रूपे रहीने, हांहां रे वीतराग बनोने ॥ अरिहंत पद गण तेरमे, घाति कर्म हणीने ॥आंकण ॥१॥ चार निकायना देवता, असंख्य तीहां आवे ॥ चोसठ इंद्र देवांगना, मळी मंगळिक गावे ॥ हांहां रे मळी मंगळिक गावे, हां तीहां त्रिगहुँ बनावे ॥ हां के जळ वरसावे, हां० केश् कसुम बीलावे ॥ हां बीच कल्पवृक्ष गवे, हां पर्षदा बार आवे॥॥॥ तीर्थपति अरीहंतजी, सिंहासन सोहावे ॥ चजदीशि चउमुख देशना, देश सउने सुणावे ॥ हां० देश सउने सुणावे, हांग ज्ञान जीव जाणे आवे ॥ हां तीहां मिथ्यात्व जावे, हां समकित शुद्ध पावे ॥ ६ हां० लहे वीरति नावे हां सिद्ध अनुक्रमे थावे अ०॥३॥ PRAGDIErrorangIES marrGreams Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RAGAR GARGrdGARomance REG MIRRORomar श्री धर्म प्रवर्तन सार. इत्यादि बहु देशना, नवि जीवने आपे ॥ जीव पुद्गल जूदाजूदा, श्म बीहु पद थापे ॥ हां० श्म बीहु पक्ष थापे, हां० संग्रह नयनीए डापे ॥ हां० परपणे नहीं व्यापे, हां० गुणपरने ए नापे । हां जीव निज पर मापे, हां बुटे अन्यथी आपे॥॥॥ है इत्यादि देशना देश, अरिहंतजी तारे ॥ झान शीतल श्रद्धा करी, केश धर्म काज सारे । हां के धर्म काज सारे, हां प्रजुनो उपगारे ॥ हां नवी पूजो निरधारे, हां० धन खरचो अपारे । हां० योगत्रण समारे, हां नहींतो नवहां रे॥०॥५॥ इति प्रथम पदपूजा. ॥ १ ॥ श्लोकः-उह श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय, जन्मजरा मृत्यु निवारयाण, अज्ञानोच्छेदकाय श्रीमतेवीरजीनेडाय जलंचंदनं, पुष्प, धूपं, दिपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं च यजामहे स्वाहा ( या काव्य दरेक पूजा दीप कहेवू) पूजा ॥२॥जी॥ दुहा ॥ सिद्ध निरंजन गति नमुं, अलख अगोचर रूप ॥ १ आदि अंत नहीं एहने, परमानंद स्वरूप ॥१॥ " ॥ ढाळ २ जी. ॥ ॥ देखो गति देवनारे ॥ ए देशी. श्री सिद्ध पद आराधीयेरे, जे निज संपत्तिवंत ज्ञान अनंतु दर्शनेरे, चरण वीर्य अनंत नमो सिद्धरायने रे. है ॥ए आंकणी കാരം രാഷ RIGroorkGRAGeranGG.GOOG www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PREGAONGGARRIAGr amereBRARE GEET શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. श्रव्याबाध सुख शाश्वतुं रे, परमानंद स्वरूप अटळ अवगाह अगुरु लघुरे, अमूर्ति अनूप ॥ नमो० ॥२॥ दायक समकितवंतगोरे, चिन्ह मूर्ति परिब्रह्म. परमज्योति व्यक्ति हुरे, टळीयां आवे कर्म ॥ नमो० ॥३॥ अज अवीनाशी निरंजनो रे, लोक शिखर करे वास ॥ त्रणे काळनी वर्तनारे, एक समय प्रतिलाष्य ॥ नमो० ॥४॥ में एक सिद्ध तीहां अनंत ने रे, निज निज रूपेरे निन्न ॥ है & नहीं बांधा सिद्ध जीवनेरे, गुणपर्यायमा लीन्न ॥ नमो०॥५॥ G गुणपर्याय अनंतनी रे, व्यक्ति अनंती रे थाय ॥ को कोश्मा पेसे नहीं रे, सौ नीज धर्मे समाय ॥नमो॥६॥6 व्यक्ति व्यक्तियें जिन्नतारे, आनंद केरी रे थाय ॥ एम आनंद अनंतो हुवे रे, तेनानोगी सिद्धासदाय॥नमो०७ एक अनेक आदि अनादिरे, गुरु, लघुने मध्यस्थ॥ इत्यादिक नेद सिद्धनारे, जाणो बेशी संयमरथ॥नमो॥ तेथी सिद्ध पद पामीयेरे, नविजन करजो विचार ॥ ज्ञान शीतळ कहे आपजोरे, सिद्धराय सिद्धपद सार॥नए॥ इति सिद्ध पद पूजा ॥२॥ पूजा ॥ ३ ॥ जी ॥ दुहा ॥ बत्रीस गुण विराजता, पाळे पंचाचार ॥ षट् दर्शनने जाणता, स्याहादी सिरदार ॥१॥ है ॥ ढाळ ॥ ३ ॥जी॥ ॥ महावीर प्रजु घेर थावे ॥ ए देशी ॥ ६ श्राचारज पदने पूजी जे, गुणरागे वंदन कीजे ॥ 6866 xosses PROGRAGAR GARIBARAGAOGore Gore Sross Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. दीये देशना ते न जूलीजे, शंका कंखा पूजी बेदी जेरे ॥ मन मोहन जगगुरु राया ॥ तुज दरसण पुन्य पायारे ॥ मन मोहन जगगुरुराया ॥ ए आंकणी ॥१॥ तुमे पंच महाव्रत धारी, दया वीस वसा निरधारी ॥ सत्य नाषा निरवद्यसारी, आतम धर्म शक्ति प्यारी रे।म०॥ अणदीधे सळी नहीं लेवे, योग त्रिकरणे नारी न सेवे ॥ रूप निरखण नजर न देवे, परिग्रह नव त्यागी रहेवेरे म०३॥ आशा तृष्णा मूर्जा उतारी, श्रा नव परनवनी नीवारी ॥ निर्लोनीनपुन्यग्राहकारी,झान ध्यानतप निर्जरा नारीरेमा नाव संवर अंतर योगी, नाव अध्यातम गुण नोगी॥ धर्म साधक शब्द संयोगी, करे करणी सदा उपयोगीरे मण्॥ शुद्ध पर्याय रमणता पा, सदबोध संयमश्री आश्॥ नेटे आचार्य उन्ना थाश, तिहां आनंदवृद्धि सवाझे म०६॥ निज गुण उपयोगे स्थिर, व्रते आचारीय थर वीर ॥ अनुन्नव सरोवर तीर, नयु ज्ञान अगाधसो नीररे म०७॥ तेमां स्नाने सनातक थावे, कर्म मेल अनादिनो जावे ॥ समश्रेणीए सिह गतिपावे, ज्ञानशीतळ पद त्रीजुंगावे रेम. इति आचार्य पद पूजा ॥ ३ ॥ ROGRAGarta GOOGGore पूजा ॥ ४ ॥ थी || दुहा ॥ पाठक पंचवीस गुणी, ज्ञान तणा नंमार ॥ . लणे नणावे साधुने, प्रनाविक सिरदार ॥१॥. NAGARIDngral DBIG Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GOOGor WARNAGAR GORIERGA GRAGAT श्री धर्म प्रवर्तन सार. ।। ढाळ ॥४॥ थो॥ हे ॥रंगरसीया रंगरस बन्यो मन मोहनजी ॥ ए देशी॥ ६ पाठक पदने पूजीए मनमोहनजी, ए छादश अंगना जाण ॥ मनहुं मोमुरे मन मोहनजी ६ नय गर्मित दीये देशना म० नहीं एकांत पदनी ताण॥म०१॥ ६ शब्द नये धर्म साधना म० तेमां चउप्रथमनी समाय ॥मन॥ 5 अंश आरोप नैगम नळे ॥मन॥संग्रह सत्ता ग्रहवाय ॥म०५ नेदज्ञान अंतर जगे म०, करे चेतन पुद्गल निन्न ॥ मन० उपाधि अळगी टळे म०, ए व्यवहार नय चिन्ह ।।म०३॥6 मन स्थिर घरमा रहे म, थर शुद्धि अंतरमांही॥ मन ॥ ऋजुसूत्रनय एह म०, परिणामग्राही त्यांही ॥ मन ४ ॥ ए चउ शब्द नये नळे म०, इहां प्रगटे समकित धर्मम॥ अनुक्रमे वृद्धि लहे म०, आवे संनिरुढनो मर्म ॥ म० ५॥ १ ए नये अरिहंत पद लहे म०, तीहां उ नयनुं वृत्तांतामि॥ एम कार्य शब्दथी साधीयेम०, चउ पेहेला ए निमित्त एकांता६ १ आयुष्य अंते सिद्धिवरे म०, लोक शिखर करे वास॥मना एवंचूत नय तीहां होवे म०, हवे कारणिक तीहां नहीं पास॥ पुद्गल संग जीहां लगे मण्, तीहां कारणिकनो रहे वास॥म० कार्ययोगे कारण कयु म०, नहीं तो कारण नहीं तासाम०७ 9 शब्द नय साधे नहीं म०, तीहां स्थीर मिथ्यात्व धर्ममन॥ १ कारण दुनदे कयु म०, एक कार्य कारण मर्म ॥ मन ए॥ 9 योगता कारण बीजु कयु म०, ते समजो चतुर महंताम॥ हे कार्य उपादाननु हुवे म०, ते कार्य कारण कहंत म॥१॥ है 5866sxxreeDEMY GreGAGermroGBODMARGra GR&SRA VM Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRAGNIGRA NAGARAGrts निमित्त प्रवृत्ति कीजीयें मण, ते जोगे कार्य निपजंत मनः ॥ ६ ते योगता कारण सही म०,नहीं तो अकारण कहंत म० ११॥ 0 एम सप्त नय ग्रहीए म०, नहीं एके उत्थापक हुँत मन० ॥ ६ शक्ति ते व्यक्ति हुवे म०, थाय संग्रह एवंचूत मन० १५ ॥ श्म सिद्ध साधन साधीये म०, कहे ग्रंथे ज्ञानी गुरुराज म॥ झान शीतळ श्रद्धा करो मलहो समकित सारो काजम०१३ इति पाठक पद पूजा ॥ ४॥ पूजा ॥ ५॥ मी. ॥ दुहा.॥ ज्ञानी ते साधु नमुं, जाणे वस्तु स्वन्नाव ॥ उपाधि अळगी करे, त्यां शीवसाधन दाव ॥१॥ ॥ढाळ ५ मी. ॥ ॥ गीरिवर दरसण वीरला पावे ॥ए देशी ॥ दू मुनि महंत पदपूजा कीजे, मुनि गुण उळखतां दील रीमे॥ 3 मुनि महंत पदपूजा कीजे ॥ मुनि दरसणथी समकित पामे, अनुक्रमे सिद्ध गति पण लीजे १ मुनि महंत पदपूजा कीजे ॥ ए आंकणी. ॥१॥ पंचद्रि विषय अशुन्न निवारी, जीतेंद्रिय यति धर्मे री मु० पेहेलुं धर्म दमा अंतरमां, क्रोध तजी समता रस पीजेमु०॥ बीजु माईव धर्म अमानी, मद आठ तजी मोटपे नरी मु. त्री आर्यवधर्म सरळता, कपटरहित अवक्र थश् जेम०३॥ है ४ चोथु मुनि धर्म ज्ञान वैरागे, तजी पर ममता लोन दणीजेमु०॥ 5 श्म चौधर्म कषाय अनावे, गुरु मूख वचने एम सुणीजे मु० ४ है 5 पंचमं तपधर्म द्वादश नेदे, षट् षट् बाह्य अत्यंतर कीजे म.. PrasoicerstarNERY &®®®®eoBowBowBow SARI Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२. ॥2॥ GroGORAGIRGAONE PARIKRABAR BREARRENOLONASneares बहुंसंयम आश्रव त्यागे, सत्तर नेद घणी रीके ग्रहीजे।मु०॥ १ सातमुसत्यधर्मसत्यनाषाए,आझासत्यवस्तुसत्यसमजीजेमु।। g अष्टम शौचधर्म नेद ज्ञाने, पुदगल अनुत्नवत्यागी वरीजे मु.॥ नवमुं धर्म अकिचन दाख्यु, परिग्रह त्यागी सनेह हणीजे मु.॥ दशमुं बह्मचर्य धर्मनाख्यं, त्रिकरण योगेवेद विषेनसेवीजेमु.॥ एम दशयतिधर्म आराधी, मुनिगुण वृद्धि लहे रंगरीके मुण॥ है & संयम गण विशुद्धी वरतां, ज्ञान शीतलकरीशीवपदलीजे मुा __इति मुनि पद पूजा ॥ ५॥ मी ॥ ॥ पूजा ॥ ६ ॥ हो ॥ दुहा ॥ वस्तुने वस्तुपणे, सद्दहे सो समकित ॥ अवस्तु वस्तु कहे, ते मिथ्यात्व:त्रम नित नेद शान अंतर जगे, तीहां वस्तु उळखाय जीच पुद्गल उफारता, श्रद्धा स्थिर न मोलाय ॥२॥ ते समकित दरशण नमुं, शिवपद आपणहार ॥ सर्व धर्मनुं मूळए, गुण वृद्धि आधार ॥३॥ ॥ ढाल ६ छठी ।। ॥ तीरथनी आशातना नवी करिये ॥ ए देशी ॥ समकित दर्शन पूजीए नवी नावे, नाव स्वन्नावे समकित आवे, तीहां मिथ्यात्व मूळथी जावे, पामे चोधुं स्थान ॥ समकितः ॥ १॥ ए आंकणी॥ दर्शन अनुन्नव ते सही प्रत्यद, देखे शुद्ध स्वरूपनो पद ज्ञान योगे दर्शन हे विचक्ष, जाणे देखे एम ॥ समकितः ॥ २ ॥ संसार छेदक ए सही, अति बळी, पमतां अर्द्ध पुद्गल कही, नहींतो ६ (१६४ ) 66 Dostosos RAGRABPORGIBAR BIGNERAGARGrere Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धर्म प्रवर्तन सा२. सात आठ नव रही, पनी सिद्धि लहंत ॥ समकित० ॥ ॥३॥ चारित्र विण सिद्धि वरे एम जाणो, नहीं समकित 5 वीण शीवराणो, समकित गुण परथम आणो, थाशे कारज सार ॥ समकितः ॥ ४ ॥ समकित विण धर्म साधना अलेखे, करे किरिया जगत सौ देखे ॥ नणे ज्ञान कथे न जाणे रेखे, अंकविण बिंदु जेम ॥ समकितः ॥ ५॥ गत समकितने पूरवे आयु बांध्यु, ए बेड विण समकित साध्युं॥ वीजें आयुष्य बांधे नहीं लाध्यु, देव वैमानि बंध॥ समकिता ॥६॥ मळ उपशम दय उपशम दय जाणो, तेथी समकित त्रिविध आणो ॥ दायक त्रण चार नवे टाणो, सिद्धि वरशे एम ॥ समकितः ॥ ७ ॥ सास्वादन उपशम पंचवार लहीजे, क्षय उपशम असंख्यवार कीजे ॥ दायक एकवार , है ग्रही सीजे, नवस्थीति मांही ॥ समकित ॥ ॥ क्षय१ उपशम परथम लहे सिद्धांते, उपशम कर्म ग्रंथे अकांते ॥ पामे समकित शांत दांते, निन्न शास्त्रे विचार ॥ समकित० ॥ ए ॥ समकित गणथी पनी मिथ्यात्वे जावे, तीहां रहतां अनंत काळ थावे ॥ कर्मबंध अनंतो पावे, स्थिति न वधे एम ॥ समकितः ॥ १० ॥ इत्यादिक गुण मोटको सिद्धि६ दाता, गुरु वचने कहे गुणग्याता ॥ समकित नावना मुनि १ ध्याता, ज्ञान शितळ गाय ॥ समकित० ॥ ११ ॥ इति समकित दर्शन पद पूजा.॥ ६ ॥ ठी. पूजा ॥ ७ मी ॥ दुहा. ॥ ह, जीव स्वन्नावे ज्ञान ते, चारित्र समकित मूळ ॥ _ _(१८५) Share Bartan Gad Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A GramBMaraGIRMER श्री धर्म प्रवर्तन सार, अनुन्नवे शीव सुखने, सहजानंद अनुकूळ ॥१॥ ज्ञानावरणी कर्म जे, क्षय उपशम तस थाय ॥ दान गुण प्रगटे सही, जाणे वस्तुने न्याय ॥२॥ द्रव्यारथ दस नेदने, पर्यायारथ षट् नेद ॥ द्रव्यपर्यायने जाणतां, लहीए ज्ञान अन्नेद ॥३॥ ढाळ ॥ ७ मी ॥ राग सारंग ॥ हो धन्ना ॥ ए देशी ॥ श्रातम ज्ञानपद पूजीएरे मिता ॥ शुद्ध उपयोगे स्थिर ॥ अंतर अजवाळु करेरे मिता ॥ अकृत्य चिंतक धीररे ॥ रंगीला मिता ॥ ए ज्ञान पूजोने ॥ ए ज्ञान पूजो घटमांरे मिता, लहो अनुलव प्रत्यक्षरे॥ रंगीला० ॥ ए ज्ञान पूजो ने ॥ ए आंकणी ॥ १॥ गुणपर्याय अनंतनो रे मिता, अहूँ नुन्नव स्हेजे थाय ॥ अनंत चकुवंतो सहीरे मिता, परम ज्योति प्रगटायरे ॥ रंगीला मिता ॥ ए शान० ॥॥ अरूपी विषय झाननो रे मिता, आतम ज्ञाने ग्रहंत ॥ अनुलव रीते जाणतां रे मिता, स्पर्श झान कहंतरे॥ रंगीला० % ॥ ए० ॥३॥ निजातम विण सर्वने रे मिता, जाणे ते १ बाह्य ज्ञान ॥ बाळ ज्ञान बीजुं नाम रे मिता, त्रीजुं व्य वहार ज्ञानरे ॥ रंगीला० ॥ ए० ॥ ४॥ स्वपर जाण ज्ञानी कह्यारे मिता, पर अनुलवी न कहाय ॥ अरीसामां अन्य बबी पमेरे मिता, बीए अरीसो न लेपायरे ॥ रंगीला०॥ 5 ए० ॥५॥ परजाण उपमा वांचढेरे मिता, शानी निजातम जाण ॥ स्वन्नावे निज धर्म रे मिता, परनावे परधर्म गणरे १ YearBaMBEneral GARIGOLGIRLord Gror Granar Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ REGIGRORGARRORGREA श्री धर्म प्रवर्तन सा२. ६॥ रंगीला० ॥ ए० ॥ ६ ॥ परनावे धर्म नवि रहे रे मिता, ६ पामेबुं क्षणमां विनाश ॥ धर्मघाति परन्नावनेरे मिता, 9 तजी करो स्वन्नावे वासरे ॥ रंगीला० ॥ ए० ॥ ॥ शुद्ध एकता अचलतारे मिता, अकृत्य चिंतक नाव ॥ परानुयायी हां टल्योरे मिता, अन्नेददानी हुवा रावरे॥रंगीला है ॥ ए० ॥ ॥नेद ज्ञान कारण कयुरे मिता, टळतां कायता पाय ॥ केवळनाण दर्शण लहेरे मिता, ए शुद्ध सदलूत थायरे ॥ रंगीला० ॥ ए ॥ ए ॥ पर्याय अव्य एकाग्रतारे मिता, व्यक्ति अनंती निन्न ॥ अनिन्न रूपे तिहां ३ सहीरे मिता, ए स्याहाद धर्म चिन्हरे ॥ रंगीला० ॥ ए. ॥ १० ॥ एम ज्ञानयोग आराधीयेरे मिता, नेद अन्नेद विरचार ॥ ज्ञान शीतल सिद्धिवरेरे मिता, लहे अव्यावाध हितकाररे ॥ रंगीला० ॥ ए० ॥ ११ ॥ GARGPORGreenience ॥ इति ज्ञानपद पूजा ७ मी ॥ Grari GORAGaronorror GrenoNRG पूजा ॥ ८ मी ॥ दुहा ॥ जे चारित्र शरण करे, ते निर्नय पद पाय ॥ नव नव नाटक नवी करे, मोहादि कर्म क्ष्य थाय ॥१॥ चारित्र गुण अंतर विषे, अनुन्नव ज्ञान संयोग ॥ हे स्थिर उपयोग शुद्धता, तीहां संयमश्री लोग ॥ संयमश्री संगे रहे, चारित्र रायनी पास ॥ हे प्रमोदित अळगी नही, कार्य करे थर दास ॥३॥ Hasiates Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धर्म प्रवर्तन सा२. ॥ ढाल ८ मी ॥ हे ॥ तोरण आश् क्युं चले रे ॥ ए देशी ॥ चारित्र धर्मने पूजियेरे, निग्रंथ पद अणगार ॥ स. खूणा ॥ व्यवहार निश्चय नेदथी रे, परथम कहुं व्यवहार ॥ सलूणा ॥ चारित्र धर्मने पूजिएरे, निग्रंथ पद अणगार ॥ सलूणा ॥ ए आंकणी ॥ १॥ पंच महाव्रत उच्चरेरे, सुऊतो आहार निहाळे ॥ सलूणा ॥ लोचकरे नूमिये सूएरे, अमवाणे पगे चाले ॥ सलूणा ॥ चारित्र० ॥२॥ षट् आवश्यक बे टंकनां रे, नव कल्पे विहार ॥ सलूणा ॥ देशना गुरु मुखे सुणे रे, पलेहण करे बे वार ॥ सलूणा ॥ चारित्र० ॥ ३॥ इत्यादि बहु साधनारे, व्यवहार चारित्र तेह ॥ सलूणा ॥ स्वर्ग सुख तेहथी लहेरे, परंपर कारण एह ॥ सलूणा ॥ चारित्र० ॥४॥ निश्चें चरणहवे दाखवूरे, जे शीव सुखदातार ॥ सलूणा ॥ अनंतर कारण सिद्धनुं रे, ६ अंतर दृष्टि विचार ॥ सलूणा ॥ चारित्रः ॥ ५ ॥ ज्ञाने 9 वस्तुने उळखे रे, एक प्रणमन वस्तु निन्न ॥सबूणा ॥ पर@ संगे मिश्रित हुजे रे, चेतन पुद्गल चिन्ह ॥ सलूणा ॥ चारित्र ॥ ६ ॥ परसंगी दुश् चेतनारे,, इंजिद्धारे एह ॥ सलूणा ॥ उपयोगीक सदा रहेरे, पुद्गल धर्मे तेह 5॥ सलूणा ॥ चारित्र० ॥ ७॥ मन मेधुं नहि स्थिरता रे, नटकण लाग्यो तेह ॥ सलूणा ॥ वस्ती उजम्मा जमे रे, & गयण पायाले एह ॥ सलूणा ॥ चारित्र० ॥ ॥ इति ६ नोति नहीं भातमारे, पुद्गल वस्तु तेह ॥ सलूणा ॥ PRADEExtendra monoamine Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..................... ........anaana RAGargRGRAMMERSBE AsaragraRRORomare श्री धर्म प्रवर्तन सार. १ तेमां जाणंग गुण आतमा रे, उपयोग लक्षण एह ॥सलूणा 8 ॥ चारित्र० ॥ ए ॥ एम नेदझाने व्हेंचीये रे, जीव पुद्गल 9 दोय निन्न ॥ सलूणा ॥ हेय जाणी पर डोमीने रे, चेतना ६ ग्रहो थर लीन्न ॥ सखूणा ॥ चारित्र० ॥ १०॥ वीर्य स्फूरणायें थरे, पर्याय धर्मे वृत्ति ॥ सलूणा॥ उपयोग अनंतो हुवोरे, स्थिरपणे जेम धरती ॥ सलूणा ॥ चारित्रः॥११॥ नाव अध्यात्म धर्मए रे, संवर निर्जरा साथे ॥ सलूणा ॥ ध्याता ध्येय ध्यान एकतारे, चारित्र राय जगनाथ॥ सलूणा ॥ चारित्र० ॥ १५ ॥ निर्मोही मोहने हणी रे, हणीया रागने वेष ॥ सलूणा ॥ अशुद्ध परिणतिने बेदीने रे, शुद्ध । परिणतिये प्रवेश ॥ सलूणा ॥ चारित्रः ॥ १३ ॥ निश्चे चरण ए नाखियु रे, यथाख्यात तस नाम ॥ सलूणा ॥ वीत राग गण बारमे रे, लाध्यु पद हित काम ॥ सलूणा ॥ चारित्र० ॥ १४ ॥ पा दणमां ए केवळ लहेरे, त्यां गुणगण तेरमुं कहाय ॥ सलूणा ॥ ज्ञान शीतळ करे वंदनारे, मा. नजो अरिहंतराय ॥ सलूणा ॥ चारित्र० ॥ १५ ॥ इति चारित्र पद पूजा ॥ ८ मी॥ पूजा ॥ ९॥ मी ॥ दुहा ॥ कर्म जले तप धर्मथी, तपथी जाय विकार ॥ हे अशुद्धता अळगी टळे, तप उत्तम आचार ॥१॥ ध्यान तप अंतर विषे, आझा अपाय विचार ॥ विपाकने संस्थानए, ध्या यो धर्मसार Pregnance RRIGARGAONGrdar GG ॥ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GOODHDBGRA श्री धर्म प्रवर्तन सार, उत्सर्ग कायानो करे, त्याग ए ज्ञान संयोग ॥ १) बाधित नाव सवेटळे. लहे अव्याबाध लोग ॥३॥ ॥ ढाळ ९ मी॥ ॥ वगमानो वासीरे मोर शीद मारीयो ॥ ए देशी ॥ तप पद पूजीने निरजरा करीयेर, बंधने विदारीरे कर्मथी बुटीये ॥ ध्यान तपे धर्मध्याने आज्ञा विचारी रे, मिथ्यात्वने मारी रे समकित खिजीये ॥ अज्ञानने निवारी रे है ज्ञान रस पिजीये, अवतने गाळी रे विरति रसे नीजीये; प्रमादने टाळी रे अप्रमत्ते रीजीये, मोहने विदारी रे, यथाख्याते सिमीये ॥ ए आंकणी ॥१॥ अप्पाय विचय बीजे. पाये विचारी रे, आतमरामरे अनंत गुणीने किजीए ॥ विपाक विचय त्रीजे पाये गुणवंतरे ॥ परसंगे फळरे विपाक अशाता लिजीये ॥ अज्ञानने ॥ अवतः ॥ प्रमाद ॥ मोह० ॥॥ संस्थान विचार ते असंख्याता लोकमांही रे ॥ कर्म पर्यायेंरे जन्म मरणे फरसीये ॥ एम चउन्नेदे धर्मध्यान तप ध्यायारे ॥ शुक्ल ध्यानरे परसंग त्यागी किजीये ॥ अज्ञान० ॥ अवतम् ॥ प्रमाद० ॥ मोह० ॥ ३ ॥ पेहेले पाये स्वपर विचार निन्न निन्नरे ॥ वहेंची जूदा जूदारे जीव पुद्गल दोय कीजीये ॥ मोहमद शहां आत्म प्रदेशथी टाळीरे ॥ ध्यान अग्नियें लगामीरे यथाख्यात ली. जीये ॥ अज्ञान० ॥ अवतः ॥ प्रमाद ॥ मोह ॥४॥ बीजे पाये अनेद ज्ञान एकत्वरे ॥ परअनुन्नवरे गण बार-ह मेथी टाळीए ॥ ज्ञानावरणी दर्शनावर्णी अंतरायरे ॥ तेने RAKSardaar Base BREA BeDEONODEMONEYPRODE Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ pro GROR GRAGRAPronoure श्री धर्म प्रवर्तन सार. " हणतां रे केवळज्ञान नीहाळीये ॥ अज्ञान ॥ अव्रत ॥ प्रमाद० ॥ मोह० ॥ ५॥ त्रीजो पायो तेरमा गणना . ई अंतेरे ॥ आयुषने मेरे योग रोध किजीये ॥ चोथे पाये है सही अयोगी अकर्मी रे ॥ क्रियाने कायानोरे उच्छेद करी & सिजीये ॥ अज्ञानने० ॥ अवत० ॥ प्रमाद० ॥ मोह० ॥ है ६॥ धर्म शुक्ल ध्यान चउ चल पाया दाख्यारे॥ ते अग्निं तररे पांचमो तप नेद कीजीये ॥ बहो तप नेद कायोत्सर्ग है कहीजेरे ॥ ते नाव आवी गयोरे, कायानो उच्छेद तीहां लीजीये॥ अझानने ॥ अवतः ॥ प्रमाद० ॥ मोहः ॥७॥ ३ बाकी रह्या दशन्नेद तपना ते समजीरे, अंतर्दृष्टियेरे कर्म बळे एम कीजीये॥ ज्ञान शीतळ कहे ध्यान तपने आराधीरे॥ अकृत्य अनुन्नवरे योगें सिद्ध पद लीजीये ॥ अज्ञानने० ४ ॥ अव्रत० ॥ प्रमाद० ॥ मोह० ॥ ॥ इति तप पद पूजा ॥ ९ मी ॥ कळश. । ढाळ ॥ घणुं जीव तुं जीव जिनराज जीवो घणु ॥ ए देशी ॥ अथवा ॥ कमखानी देशी ॥ नवपद पूजीये मुक्ति पंथ लीजीये, देवगुरु धर्म त्रण तत्व जाणी ॥ शुद्ध श्रद्धा करी मिथ्यात्व परहरी, समकित १ सुमति बेहु लीयो ताण। ॥ नवपद पूजीये ॥ ए आंकणी , g॥१॥ परथम अरिहंत पदतणी पूजना, शत्रु द्रव्यत्नाव ) दोय हणतां थावे ॥ नावथी रागद्वेष अशुद्ध परिणतिये, हे द्रव्यथी गुणघाति चउक्षय पावे ॥ नव ॥ ॥ वीजी Par ' २६ (२०१ ) _ HEADEDNESeless Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ STORAGARAGMTA SAREERLSMSABAeximag | सिद्ध पदतणी कहुं हवे पूजना, अष्ठ कर्मक्ष्यथी अष्ट गुण पावे॥ पुद्गल रहित ए आत्मरूपे सदा, अनंत गुण वृत्ति अकृत्य थावे ॥ नव० ॥ ३॥ आचार्य उपाध्याय साधु सर्व पूजीये, कंचन कामिनिथी रहित थश्ये सावद्य त्याग त्रिकरण त्रिकरण करी, जाव जीव लगे निस्पृही रहीये ॥ नव० ॥४॥ दर्शननाण चरण तप गुण पूजना, अंतरकरणे & उपयोगी रहीए ॥ तेथी तीहां पामीए स्वरूपें विशुद्धता, है शक्ति सोव्यक्ति परगट लहीये ॥ नव० ॥ ५ ॥ एम नव पदतणी पूजना घट विषे, गुण प्रगटे सो नाव पूजा कहीए॥ छ तेह झाने करी पूजा में वर्णवी, उपयोगे पूजी शीवसुख & लहीए ॥ नव० ॥ ६ ॥ उगणीसें बावन असाम डुवादशी, कृष्ण पक्ष वार गुरुए गा॥ अनुनव पदतणा स्थिर विचारथी, रमण रचना करी पूर्णता ॥ नव०॥ ७॥ मनोरथ माहरो सफळ दुवो आज ए, आनंद उलटनर हर्ष वाध्यो । नवपद आतमा आत्म नावे पूजना, ए विण कार्य नहीं कोए साध्यो ॥ नव० ॥ ॥ एम नवि पूजीये नक्ति घणी कीजीये, वचन सत्य विवेके उचारीयेए॥ज्ञान शीतल करी उपयोग शुद्ध ग्रही, व्यक्ति लही शीव पंथ चालीए॥ नव० ॥ ए॥ ॥ कळश. ॥ श्रुतझान अनुन्नव ॥ ए देशी ॥ 9 उपशम जळे मळ शान्त करीए उपयोग चंदन पूजीए ॥ वळी झान पुष्पज धूप श्रद्धा, दिप अनुलव किजीए ॥ HEACEBOwwxserever GOOGreen Grape More RELordarsanoramaraGorAGGrena (२०२) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ----. nanaw...01.MAA... Breasons HAIMERGRIMAGE श्री धर्म प्रवर्तन सा२. १ वैराग अक्षत ज्ञान गनित, दृष्टि सम नैवेद्य ए॥ ६ एम शान शीतळ नाव पूजा, फळ कयु संतोष ए ॥१॥ इति नवपदजीनी पूजा संपूर्ण. अथ आरति लिख्यते. ॥ अपबरा करती आरती जीन आगे ॥ ए देशी ।। आरति करुं जीनराजनी सहज नावे, झान दीप ज्योति प्रगटावे ॥ घट अंतर प्रकाश थावे, नागे तिमिमें रांधकार ॥ आरति करुं० ॥ ए आंकणी ॥१॥ जीनन्नाव 6 सनाव ए ज्ञानयोग, टळे रागद्वेष नाव रोग ॥ वसे शुद्ध परिणति संयोग, क्षीण मोह वीतराग ॥ आरति० ॥२॥ उतरवू मुळरूपमा गुणे चढवू, शुद्ध उपयोग रमण श्रादडर ॥ गुणपर्याय अनुन्नव करवू, लाधे केवळ ज्ञान ॥ -1 हे रतिः ॥ ३ ॥ नाव जीन अरिहंतजी ए प्यारो, घाति क3 महणी हुवो न्यारो ॥ गण तेरमुं तीहां विचारो, अंते योगनो रोध ॥ आरति॥४॥ धर्म अनंतो व्यक्तिए निन्न र वर्ते, सोही नाव नाटक नाच करते ॥ हुवा सिद्ध लोकं र ते ठरते, लांगे सादि अनंत ॥आरति ॥ ५॥ सहजस्व१ नावे जीनजी सम थावं, एम उलट मनमां लाएं ॥ ज्ञान शीतळ श्रारति गावं, तजी पुद्गलिक नाव॥श्रारतिः ॥६॥ संपूर्ण. अय मंगळ दीवो लोख्यते. झान प्रकाशसो मंगलिक दीवो, उतारो आरति स- 0 हे मकिती जीवो ॥ मूर्ग उतारो पुद्गल केरी, अप मंगळिक ७ PADMwixes Browse near Grdaroordar Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GRAGreGo श्री धर्भ प्रवर्तन सार. 99 ए नहीं जलेरी ॥ ज्ञान ॥ ए आंकणी ॥ १॥ मंगळीक , जीव स्वरूपोपयोगी, नाव निक्षेप निजन्नाव संयोगी॥ अरूपी शुद्ध परिणति त्यां कहीए, ध्याता ध्येय ध्यान ए. कता लश्ए ॥ ज्ञा० ॥२॥ रागद्वेष अपमंगलिक हणी॥ गुणघाति टळया जे चन रणीया॥ मंगळीक केवळज्ञान सो दीवो, परमानंद अनंत रस पीवो ॥ ज्ञान ॥३॥ एही & मंगलिक सिद्ध पद आपे, आयुष्य अंते अघाति कापे, का- , मण कर्म मनुष्यनव बगेमी, सिद्ध गतिये वर्या शीववधु जोगी ॥ज्ञा० ॥४॥ अव्यावाध अनंत सुख संगी, पर्याय धर्मे वृति एकंगी ॥ उत्कृष्ट मंगलिक सिद्धने कहीए, ज्ञान शीतळ ए नावसो ग्रहीए ॥ ज्ञान० । ५ ॥ संपूर्ण. ॥ ॥अथ अध्यात्म चोवीशा लिख्यते ॥ प्रथथ स्तवन. शत्रुजय दीगे रे ॥ ए देशी ॥ युगला धर्म निवारण स्वामी, शीवपद साधन का१ मीरे ॥ हित चिंतक परमेश्वर प्यारो, ऋषनदेव शीरनामी हरे॥ देवाधि देव पूजोरे, पूज्यां पूज्यां परमानंद ॥ नविक तुमे पूजो रे ॥ए शीव सुख केरो कंद ॥ नविक तुमे पूजो हरे॥ ए आंकणी ॥ १॥ प्रथम नरेसर प्रथम मुनीसर, प्रथम केवळ ज्ञानी रे ॥ त्रिगमे वेसी उपदेश देवे, नहीं | ६ को एह सम दानी रे ॥ देवाधिः ॥२॥ ए दान ग्रहे ॐ सो ज्ञाता, संघ चतुर्विध कहीएरे॥ साधु साधवी श्रावक है श्राविका, गणधर मुख्य पद लहीए रे ॥ देवाधि० ॥ ३॥ ( २०४ ) TOGenerGranaraG.GOO.GrahaG Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FAMRAGNBADRASAREER SIRAGIRIGree हे समकित मूळ आज्ञायुक्त तीरथ, स्थापे श्रादि जिणंदरे॥ है १ तीहां सूत्र दुवादश रचता, लब्धियें गणधर मुनिंद रे॥ ॥ देवाधि०॥ ४ ॥ नव्य जीवने ए महा उपगारी, मिथ्या है व टाळण हारी रे ॥ ज्ञानशीतल करी समकित पामे, १ सोही सिद्ध अधिकारी रे ॥ देवाधि० ॥ ५ ॥ संपूर्ण. स्तवन बी. ॥ देशी ललनानी ॥ अजित जिनपति देशना, सुणतां प्रगटे आनंद ॥ ॥ ललना ॥ जीव पुद्गलनी निन्नता, दाखे दुफार जिणंद ललना ॥ अजित जिनपति देशना ॥ ए आंकणी ॥१॥ जीवसत्ताए सिद्ध अनादिनो, ए दायक लब्धिवंत ॥ ललना ॥ संग्रह नयना पदथी, अव्यक्तव्य गुण अनंत ॥ हूँ ॥ ललना ॥ अजीत० ॥॥ एम बती पर्याये जाणीए, ? जिम बीजमां रघु वृद ॥ ललना ॥ वळी काष्ट मांही अ ग्नि रही, तेम काया व्यापक जीव शुद्ध लद ॥ ललना र अजित जिन ॥ ३॥ ए धर्म वस्तुगत 5ळखो, करोश्रद्धा जीव पुदगल निन्न ॥ ललना ॥ जीव गुण रागी थश् ग्रहो, ६ तेहने अनुनवो तद्गत थ लिन्न ॥ ललना ॥ अजित॥ ॥४॥ तदगत नावे ग्रंथी नेदीने, पामो सम्यक दर्शन ज्ञान ॥ ललना ॥ शुद्धातम अनुन्नव करो, मळे नीज गुण है लब्धि दान ॥ ललना ॥ अजितः ॥ ५॥ त्यां गुण गण निन्न व्यक्तव्यता, ए लान लब्धि कहेवाय ॥ ललना ॥ छ लोग लब्धि गुणगत त्यां लहो, लोग गुण निष्पन्न समेत SACRroDKom Donomics GOOGDMora.ornerGore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धर्म प्रवर्तन सा२. 9 थाय सलना ॥ अजि० ॥६॥ उपनोग वारंवार जोगवे, 9 बीजा समयथी यावत् चिरकाळ ॥ ललना ॥ वच्चे विरह- १ काळ आवे नहीं, उपनोग लब्धिमाहे रसाळ ॥ ललना ॥ ॥अजितः॥ वीर्य स्फुरणा गुण स्वन्नावे लहे, गुणगुणगत उपयोग निन्न ॥ ललना ॥ समे समे फुरणा अनिनव पणे, वीर्यलब्धि मांही सदा लिन्न ॥ ललना ॥अजित॥७॥ है ए लब्धि पांच दायक नावनी, नवि प्रकट करो व्यक्ति नाव ॥ ललना ॥ सहो सामर्थ्य पर्याय सिद्धगति, त्यां 6 घाति अघाति कर्म अन्नाव ॥ ललना ॥ अजितः ॥ ए॥3 हेतुक्षय उपशम चोथा गणथी, क्षिण मोह गण पर्यंत ॥ ललना ॥ घाति चउकर्म तेहथी खपे, लहे केवळनाण महा संत ॥ ललना ॥ अजितः ॥ १० ॥ जीव सत्ताये लब्धि रही पिंपणे, ज्ञान शीतळ ए शीवसुख कंद ॥ लसना॥ तेने रोपो ग्रंथिन्नेद अवसरे, सींचो ज्ञान रस वृद्धिये आणंद ललना ॥ अजितः ॥११॥ संपूर्ण. स्तवन त्रीजु. ॥ चंप्रनु मुख चंद्र, सखी मुने देखण दे ॥ ए देशी॥ श्रीसंनव स्वन्नाव रमण ॥सखी देखण दे॥ उपयोग अनु- 6 नव ज्ञान ॥ सखोमुने देखणदे॥दायक लब्धि अनंत सदा सखी० ॥ गुण गुण निन्न व्यक्ति विज्ञान सखी०॥१॥जीवसत्ता निर्मळ सदा॥सखी०॥ अनादि अनंत ए सिद्ध ॥ सखी० ॥ 5 आवरण लाधे नहीं कदा ॥ सखी० ॥ ए निर्लेप वस्तु ऋद्ध ॥ सखी०५॥ मिथ्यात्व नावे न देखीयो ॥ सखी ॥ अ-6 (२०६) OGIGGrenorrore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. ज्ञाने नहीं जास ॥ सखी० ॥ मोह विकलताए आंधळो ॥ सखी० ॥ ममत्व जर्यो घणो त्रास ॥ सखी० ॥ ३ ॥ दर्शनावरणी रुग्यो घणुं ॥ सखी० ॥ करे चक्षुयचक्षु अनाव ॥ सखी० ॥ काळ अनंत निगोदमां ॥ सखी० ॥ कारण नहीं सामग्री दाव ॥ सखी० ॥ ४ ॥ त्रस थावरमां न देखयो || सखी || दीगे न चजगति मांही ॥ सखी० ॥ ज्ञान सम्यक वि जम थयो ॥ सखी० ॥ रागद्वेषनी वृद्धि त्यांही ॥ सखी० ॥ ५ ॥ क्लेशानंदी आतमा ॥ सखी देखादे ॥ बांधे कर्म अनंत ॥ सखी० ॥ संतापे उदयिक अवसरे ॥ सखी० ॥ इष्ट दाणि महा दुखवंत ॥ सखी० ॥ ६ ॥ - तराय नमी अनादिनो ॥ सखी० ॥ तेथी पाम्यो न संभव नूप ॥ सखी० ॥ काळ लब्धि वी दुकमी ॥ सखी० ॥ नाव लब्धि प्रगट नीजरूप ॥ सखी ० ॥७॥ द्रव्य कर्म नाग्योतदा ॥ सखी० ॥ नाव कर्मनो अभाव ॥ सखी० ॥ नो कर्म संग परहर्यो ॥ सखी० ॥ दुवा सिद्ध निरंजन राव ॥ सखी० ॥ ८ ॥ ज्ञान शीतळ करी पामीए ॥ सखी० ॥ मुक्ति सुखनुं धाम ॥ सखी० ॥ सादि अनंत स्थिति त्यां जली ॥ सखी० ॥ तेने पामुं ए बे मूज काम ॥ सखी० ॥ ॥ संपूर्ण. स्तवन चोथुं. ॥ सुगुण सनेहारे कबुये न वीसरे ॥ ए देशी ॥ अजिनंदन जिन आनंद पूरणो, जाव अध्यातम पा(2009) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ B શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર, मीजी ॥ द्वितिय जाव उन्मूलन ताहरे, अचळ अबाधित रामीजी ॥ श्रभिनंदन जिन आनंद पूरणो ॥ ए क ॥ गाथा ॥ १ ॥ ज्ञानानंदी स्वभावे पामीया, गुणी पर्याय अनंतजी। निज निज व्यक्तिरे आणंद भिन्नता, आणंद व्हेर अनंतजी ॥ निं० ॥ २ ॥ निर्मळ व्यक्तिरे संपत्ति ताहरे, मारे तुज सम शक्तिजी ॥ समळ उपाधि जर्यो मुज श्रातमा, तेथी न प्रगटे व्यक्तिजी ॥ निनंदन० ॥ ३ ॥ तेथी तुं सिद्ध सेवक हुं ताहरो, तुज गुणरंगी अनंगजी ॥ तुज गुणज्ञान ध्यान मुज मन वस्यो, रुचे नहीं अन्य संगजी ॥ ि ॥ ४ ॥ चिन्ह मूर्त्ति अंतरमां थापीए, संवर जळ करीए पखाळजी | अनुभव रमण परमपद पूजतां, पामे सिद्धपद लालजी || अभिनंद० ॥ ५ ॥ नाचो राचो निरंजन मंदिरे स्तुति स्वरूप उपयोगजी ॥ तेथी ज्ञान शीतळ याय आ पं, ए पूरण आनंद योगजी || अभिनंद० || ६ || संपूर्ण. स्तवन पांचमुं ॥ ॥ राग रामग्री ॥ कमखो ॥ सुमति शुद्ध चेतना, मूळ रूप देखना, तेहशुं सगपण जोरुना ए ॥ मुजमन ते वसी तेनो हुं बहु रसी, स्वामी नाथ तुमने कीया ए ॥ सुमति शुद्ध चेतना० ए आंकर्ण। ॥ गाथा ॥ १ ॥ कुमति रीसाइ गइ डूख दिन लई गई, नमतर जाग्यो अनादिनो ए ॥ सुख संपत्तिनयी वृद्धि संताननी, जोग जोगी हुई आतमाए ॥ सुमती० ॥२॥ ( २०८ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GreeGangore Gardar HamroBRARgORGAM श्री धर्म प्रवर्तन सार. सदीव स्वामी सेवती चित उत्साहथी, क्षीण न अळगी ६ थाये कदीए ॥ परोणापरे पूजती वचन न लोपती, अमृत रसोइ जमामती ए ॥ सुमतिः ॥ ३॥ नूख नागी गर , तृप्ति पूरण थर, वीर्य अनंत वाध्यो तीहां ए॥ रंगनर रीऊथी सेवे शुद्ध चेतना, सादि अनंत नंग सिद्धमां ए॥ सुमति ॥४॥ एम अनुनव करी सुमति शोधी लीइ, 6 & रूप जोश्ने रीझयो घणुं ए ॥ गुण तस अति घणा वचने । आवे नहीं, ज्ञान शीतळ करी जाणीए ए ॥सुमतिः ॥५॥ संपूर्ण. स्तवन ॥ ६ ठं॥ ॥ देशी उपरनी॥ __ पद्म द्रह नर्यो अमृत जळ अति घणो, चारित्र रायना देशमा ए ॥ तेह मीगे घणो शीतळ शुद्ध वासना, रसकुंपीका तस नाम डे ए ॥ पद्म अह नो० ॥ ए आंकणी ॥ ॥ गाथा ॥ १॥ ते द्रहमां नाहीने कर्म मळ काढी, निरमळ चेतना त्यां थए ॥ पद्म प्रन तस नाम जग वीस्तयु, परमपूज्य तीर्थकरु ए ॥ पद्म ॥२॥ तेह उपदेश नव्य जीवने आपता, तुज मुज एक देशी सहीए ॥ आपणो राय चारित्र नाम निर्मळ ॥ हित वंबक सर्व जीवनो ए 9 ॥ पद्म ॥ ३॥ तेने तुमे कीम तजो मोह रायने नजो, है हे परघर पोतीकुं मानतां ए ॥ तेणे कबजे कर्या चोर जाण। ६ , करी अनर्गळ ऋद्धि पामी लीए ए ॥ पद्म ॥ ४ निरधन है त्यां थया सर्व संसारी, चउगति मुलकमां फेरवे ए॥ फुःख ____(२०८ ) se moramo Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GAR BARSR GIRRIGARG श्री धर्म प्रवर्तन सा२. १ आपे घणुं सुख नहीं एक अणुं, क्लेश करी काळ त्यां नि र्गमे ए ॥ पद्म ॥ ५॥ तेथी मुढ आंधळा सत्य सूळे नहीं १ ६) हेम बंधन त्रुटे नहीं ए ॥ मोह पहीनी आज्ञा तुमे मानता, , ६ वेरी ए चारित्र रायनो ए ॥ पद्म०॥ ६॥एथी बुटया विना , & सुख आवे नहीं, अनंतकाळे ए मूके नहीं ए ॥ नव नवा . है वेषे नाटक नचावतो, निरदय हृदय नीवुर ए॥ पद्म & ॥ ७ ॥ हुँ पण ए रीते तुज सम रखमीन, विकल थश्ने सं सार मांहे ॥ एम करतां मन्या सदगुरु देवता, तेणे चक्षुमां 6 अंजन कीयो ए ॥ पद्म ॥ ७ ॥ तेथी मने सूझीलं वीर्य तीहां फोरव्यु, पूंच दीधी में मोह रायने ए॥ चारित्र राय स्मरण कीयो ततदणे, ते मुज स्वरूपमां आवीयो ए॥ पद्म ॥ ए ॥ त्यां सह निरमळो ज्ञान अनुन्नव नों, स्नाने विन्नाव मळ बुटीन ए ॥ शुद्ध स्वन्नाव तद्रूप परमातमा, शीव पंथे सेजमां हुं चमयो ए ॥ पद्म ॥ १० ॥ एम तुमे करो वीर्य त्यां फोरवो, एह उपदेशने सद्दहो ए ॥ तेथी। र तुमे पामशो शाश्वत सुखने, झान शीतळ सो सिद्धातमाए ॥ पद्मः ॥ ११ ॥ संपूर्ण.॥ स्तवन ॥ ७ मुं॥ | मन मधुकर मोही रह्यो । ए देशी॥ सुपार्श्व जिनवर सातमा, पृथ्वी माताना जायारे ॥ कंचन वरणे दीपता, बसो धनुष्यमान कायारे ॥ सुपार्श्व 9 जिनवर सातमा ॥ ए श्रांकणी ॥गाथा॥१॥ वीस लाख ६ पूर्वY आउखु, अंतरदृष्टि वैरागीरे ॥ बाह्य रंग पतंगनो, ६ SAGAGRaexe Mmss MAGAGROGRAPAGAGROGR GAR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GreenerawaranorarrR. श्री धर्म प्रवर्तन सा२. श्रातमज्ञानी सोनागीरे ॥ सुपार्श्व० ॥२॥ जीव पुद्गल छ व्हेंचण करी, उपयोग स्वरूपमां कीधोरे ॥ चिदानंद ज्योति जगमगे, परमानंद रस पीधोरे ॥ सुपार्श्व ॥३॥ अप्रमत्त श्रातम हु, क्षपकश्रेणी तीहांमांमेरे ॥ सुक्ल प्रथम है पगथालीए, मोह प्रकृति सर्व जमेर ॥ शुपार्श्व ॥४॥ समन्नावे चढती कळा, शुद्ध परिणतिमां आवेरे ॥ वीतराग है गण अंते बारमे, त्रण कर्म क्ष्य थावेरे ॥ सुपार्श्व० ॥ ५॥ अनंत चतुष्टयी पामीया, त्रिगहुं देव बनावेरे ॥ पर्षदा बार मळे तीहां, देशना जीनजी सुणावेर ॥ सुपार्श्व ॥ ६॥ उपजे विणसे थीर रहे, एतो वस्तु विचार रे ॥जे मरियादा वस्तुकी, सो सत्ता निरधार रे ॥ सुपार्श्व०॥७॥ उपजदूं वीणस, ते सही, पर्याय धर्म सद्नावरे ॥ स्थीरपणुं तीहां अव्यनु, एम वर्ते लक्षण न अन्नावरे ॥ सुपार्श्व० ॥ ७॥ ते वस्तु षट् लेदे जाणीये, गुण पर्याय संयुक्तरे॥ हेय जाणी अजीव पांच परहरो, ग्रहो उपादेय चेतन निज युक्तरे॥ ॥ सुपार्श्व ॥ ए ॥ एम सुणी के समकित पामीया, केश्क देश विरति थावेरे केश्क महावत उचरे, एम लान वहु पावरे ॥ सुपार्श्व ॥ १० ॥ एम नव्य जीवने तारता, करता बहु उपकाररे ॥ आयु पूर्ण करी सिद्धि वर्या, ज्ञान शीतळ जीन अणगाररे ॥ सुपार्श्व० ॥ ११ ॥ संपूर्ण. ॥ स्तवन ॥ ८ मुं॥ गिरुयारे गुण तुम तणा ॥ ए देशी. ॥ चंद्र प्रत्न जिन देशना, सुणतां शंका नाजे रे ॥ निFRACTRESEditativDore @re QeeeeeeeMONGreeMBre Oreo BGas (२११) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AAMAMANAN.........Any PRACTIOOres GR GROG GARGrana श्री धर्म प्रवर्तन सार. १ शंकित थाय आतमा, समकित शुद्ध विराजेरे ॥चंद्र प्रत्न @ जिन देशना ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥श्रद्धा कारण 9 सुणो देशना, स्थीर करी मन वच कायारे ॥मनन करोचिं- 0 तवन करो, न नूलो वचन गुरु रायारे ॥ चंद्र० ॥२॥ जीवस्वरूपने उळखो, पुद्गलमां ढंकाणोरे॥चिंत्वन शक्ति वीस्तरे, ए कारण मुख्य वखाणो रे ॥ चंद्र० ॥ ३ ॥ यथा & प्रवृत्ति प्रमुख सही, त्रण करण करी आवेरे ॥अंतर करणे . अनुन्नवे, जीव पुद्गल जिन्न नावेरे ॥ चंद्र०॥४॥ ग्रंथि नेद करे ते समे, वीर्य वृद्धि जोगरे॥झान ध्यान उपयोगशु, हणो मिथ्यात्व नाव रोगरे ॥ चंद्र० ॥ ५॥ बीज चंद्र सम श्रातमा, शुद्ध हुई नीज रूपरे॥प्रकाश घट अंतर ३ करे, चढती कळाए थाशे नूपरे ॥ चं० ॥ ६॥ एही चंद्र अन्न सेवीए, अंतर मंदिर स्थापी रे ॥शीव सुख आपे ततदणे, ज्ञान शीतळ घट व्यापी रे ॥ चंड० ॥ ७॥संपूर्ण. ॥ ॥ स्तवन ॥ ९ मुं॥ ___ कपुर हुवे अति उजळू जी ॥ ए देशी ॥ सुबुद्धि नाथ नवमा प्रजुजी, कांति फटक समान ॥ एक सत धनुष्य प्रमाण जी, काया बहु वळवान ॥ @ सोनागी जीन तुज गुणनो नहीं पार ॥शीव सुखनो दातार १सोनागीजीन, मारे अवलंबन आधार सोनागोजीन, तुज गुणनो नहीं पार ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ सुबुद्धि & वर्णन करुंजी, ज्ञान श्री तस नाम ॥ ते मे नीज देहनेजी, हे ग्रहे नाथ आतमराम ॥ सोलागीजीन० ॥ २॥ सुबुद्धिनाथ ६ Resosiaxonesia poro BCONG &GARG Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२. ६ तस कीजीएजी, घट अंतर रहे वास ॥ उपयोगे रमे रंगशु जी, बोमे कर्म बंधन पास ॥ सोनागी० ॥३॥ ऋद्धि अ-१ नंती नोगवेजी, खरचे उदयिक नाव ॥ तिम तिम तेज वधे घणुंजी, बेग त्यां समन्नाव नाव ॥ सोना० ॥४॥ संसार सागर उतर्याजी, पहोच्या शीवपुर मांही ॥ सिद्ध वधुए वधावीयाजी, दीधो बहु आदर त्यांही ॥ सोना॥ ॥ ५॥ आणंद क्रीमा त्यां करेजी, वेशी एक रुपधार ॥ सिद्ध वधुने शान श्रीजी, नोगी चेतन सार ॥ सोनागी॥ ॥६॥ अबाधित सुख नोगवेजी, सादि अनंतो काळ, ज्ञान शीतळ चित्त तीहां वस्योजी, जावं देश एक फाळ ॥ सो ना० ॥ ७॥ संपूर्ण. ॥ ॥ स्तवन ॥ १० मुं॥ सेवक किम अवगणीए हो मदिलजीन ॥ ए देशी॥ शीतल जिन शितल गुण ज्ञानी, निजपर सोने जाणे॥ निज रूपे शीतलता वाधे, त्यां परने कुण आणे ॥ शीतलजीन ए अब शोना सारी ॥ मुज मनने अति प्यारी । शीतलजीन ए अब शोना सारी ॥ ए आंकणी ॥ १॥ जीव अनादि सिद्ध स्वरूपी, शक्ति नावे लाधे ॥अव्याबाध सुखनो नोगी, परसंगे मुख वाधे ॥ शीतल ॥२॥ परसंग तेही अग्नि जाणो, चेतन गुणने बाळे ॥ दश प्राण ते पुद्गल कहीए, तेमां चेतन नाळे ॥ शीतळ० ॥३॥ ए परसंग बुटे सुख आवे, आवे उपयोग घरमां, अनुन्नव मित्र ६ मळे तीहां वेगे, लावे केवळज्ञान पळमां ॥ शीतळ ॥४॥ (२३) MainercorecordGrainerai DramaraGrna More Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PREM શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર, Woren GROGRG GARGrnamaraGGG PERAGARAGRAMINERASSAGresires ए मनोरथ ज्ञान शीतळनो, पूरण करजो स्वामी ॥ हुं तमने है उपगारी जाणी, नित्य प्रणमुं शीर नामी॥ शीतळ ॥५॥ ॥ संपूर्ण ॥ ॥ स्तवन ॥ १: मुं॥ धन्य धन्य संप्रति साचो राजा ॥ ए देशी ॥ श्रेयांस जिन सेवा कीजे, त्यां अनुन्नव रस पीजे रे ॥ साधन ए सम अवर न दुजो, आत्म कार्य त्यां सिजेरे ॥ श्रेयांस जिन सेवा कीजे ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ श्रीश्रेयांस जिन अंश स्वरूपी, समकित सरोवर तीरे रे॥ ज्ञान जळ मान सरोवर नरीओ, खेले खेल चित्त स्थिरेरे॥ श्रे॥२॥ आत्म गुण चारोतीहां चावे, वीर्य अनंतु पावे रे ॥ तिम तिम क्रीमा अधिकी थावे, दायक नव लब्धि त्यां श्रावेरे ॥ श्रे० ॥ ३॥ एही सिद्ध एही परमेसर, निरंजन निराकार रे ॥ ज्ञान शीतळ अनुन्नव अंश सेवे, ते उतरे नव पार रे ॥ श्रे० ॥ ४ ॥ संपूर्ण ॥ ॥सवन ॥ १२ मुं॥ मांजरीश्रा मुनिवर धन्य धन्य तुम अवतार ॥ ए देशी॥ वासपूज्य जीन वारमाजी, मुक्ति पुरीमां वास ॥ स्वरुप रमण उपयोगगुंजी, लहे पूज्य शिवरूप तास ॥ रंगीला प्रीतम तुजसुं अविहम नेह ॥ए आंकणी ॥गाथा॥ ॥ १॥ अनादि वास मिथ्यात्वमांजी, तीहां जमरूपी जीव ॥ 5 काळ लब्ध आवे जदाजी, पामें समकित नजी शीव ॥ है = ॥रंगीला० ॥२॥ तीहां घट अंतर वासीयाजी, अनुन्नव ६ Ranwroorgawraane mal GRGrenorror Gre Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ r enorrore PRORAGRA GRAHATERMSAMRAGresires १ मंदिर मांही ॥ पूज्य पणुं तीहां पामीआजी, उपयोग प्रग टयो ज्यांही ॥ रंगीला० ॥३॥ अप्रमत्त पगथाळीएजी, एम गुण चेतन पामे ॥ त्यांथी चढवु श्रेणीएजी, वीतराग नावना सामे ॥ रंगीला० ॥४॥ अरिहंत पदगण तेरमेजी, केवळज्ञानमां वास ॥ पूज्य पणुं अति वीस्तयुजी, मुक्तिपुरी त्यांथी पास ॥रंगीला० ॥ ५ ॥ योग रोध करी सिद्धमांजी & वास को तुमे पूज्य ॥ ज्ञान शीतळ जावं तीहांजी, नीज के है आत्माने कहे बुझय ॥ रंगीला ॥ ६ ॥ संपूर्ण ॥ ॥ स्तवन ॥ १३ मुं॥ लाबलदे मात मदहार ॥ ए देशी॥ विमळनाथ जीनराय, कंचन वरणी काय ॥ आजहो 3 उंची साठ धनुष्यनीजी ॥१॥ विमळ श्री सो ज्ञान, बीजें सर्व अज्ञान ॥ आज हो पुद्गलने जीव जे कहे जी ॥२॥ र ते जीव मोही मलीन, तप जप करे थ लीन ॥ श्राजहो आशा बांधे आवता काळनीजी ॥३॥ तीहां संसार स्थिर, १ चेतन सदाय अस्थिर ॥ आजहो बळीओ ते गळीओ थर पम्यो जी॥ ४ ॥ बांधे कर्म अनंत, ए दुर्बुद्धिनो कंत ॥ १ आजहो ए कहे हुं संयमीजी ॥५॥ एम दीसे आज, सुणजो विमळ महाराज ॥ आज हो मारे तो गुरू तुंज डे E जी॥ ६॥ तुमे परण्या स्वरूप ज्ञान, कीg दुर्मतिर्नु स्नान है ६ आज हो दुखदीन नाग ताहरेजी ॥७॥ तीहां थया वि- १ , मळनाथ, कालो हमारो हाथ ॥ आजहो ज्ञान शीतळनी , मानो विनती जी ॥ ॥ संपूर्ण. ॥ ___ (२१५) GORAGARGrorror@GMAGE reORIGrenor Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www. YRaceroors BIGGARAGRGramroGare श्री धर्भ प्रपतन सा२. ॥ स्तवन ॥ १४ मुं॥ । ॥ देशी ॥ चंडावळानी ॥ अनंत जिनपति चौदमा रे, आतमज्ञानी ध्यानी॥ है तुरंग गति रंग ध्यानमा रे, गर्जीत पुष्ट गज ज्ञानी॥त्रुटक॥ गर्जीत पुष्ट गजज्ञानी नसामे ॥ उपाधि सघळी स्वरूपथी काढे ॥ तीहां शीवरूप संन्नाव समाधि, पर अनुन्नव बेदी 6 नाव व्याधि ॥ सेवो अनंत जिन एह ॥ ए आंकणी ॥१॥ अनंत जिनपति ते थया रे, नहीं कोई परना संगी॥ निज अव्यनी वृत्तिए रे, एकत्व रंगी अनंगी ॥ त्रुटक ॥ एकत्व रंगी अन्नंगी सन्नोगी, अमधी क्षण तुं रहे न अन्नोगी, राग रंग तज्यो तुही स्वामी ॥ वीतराग यश् सहेज नाव आरामी ॥ सेवो० ॥२॥ अनंत चतुष्टयादि गुण वर्या रे, गुण घाति करी चळ नाश ॥ अव्यावाधादि वर्या पजवा रे, अघाति कर्म त्यां विनाश ॥ त्रुटक ॥ अघाति कर्म त्यां विनाश अनंतां समश्रेणी सिद्ध वधु वरंता, कार्य पूरण की, स्वामी ॥ सादि अनंत स्थीति तीहां पामी ॥ सेवो ॥३॥ परमानंद पद शाश्वतोरे, मूळ रूपमांही देखाय ॥ आधि व्याधि जिहां नहीं रे, तीहां निरंजनराय ॥त्रुटक॥ तीहां । डे निरंजनराय मुज प्यारो ॥ ए वीण सर्वे लागे खारो, ते ? कारण अंतरमां वशीये ॥ स्थिर थर त्यांथी नवि खसीये है ६ ॥ सेवो ॥ ४ ॥ एहीज कारण सिद्धनुरे, ए वीण अवर १ न पुजो ॥ ज्ञान शीतळ करी त्यां जरे, अलख अचळ , 5 पद पूजो ॥ त्रुटक ॥ अलख अचळ पद पूजो स्वामी ॥ HeasEssion GongresGore GreGrenorrorangeBooo Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Gre Gre PRASAGAR GARMERASABASSAGES 9 देवाधि देव ए ने शीवगामी, सर्व शिद्धांत तणो ए सार ॥ ६ श्रद्धा करीने लहो नवपार ॥ सेवो० ॥ ५ ॥ संपूर्ण ॥ १ ॥ स्तवन ॥ १५ मुं. ॥ ॥ देशी एकवीसानी॥ धर्मनाथजी रे देव पनरमा सुखकरु ॥ दीये देशनारे , नय गरनीत ए जीनवरु ॥ एक ज्ञानमां रे नय साते तुमे & नाषिया, अज्ञानमां रे चोथी नय सुधी राखीया ॥त्रुटक॥ शब्दनय समकित पामे, मिथ्यात्व धर्मने परह रे ॥ वस्तु , स्वनाने धर्म सदहे, अंश अंश परगट करे ॥ वस्तु स्व नाव ते शब्द नय , तेमां अंश नैगम नळे ॥ जीवसत्ता शुद्ध ग्राहक, ए संग्रहनय त्यां मळे ॥ १॥ जीव स्वन्नावे रे, ज्ञान उदय प्रकाशीयो, तीहां पुद्गल रे उपाधिपुर ना. शीयो ॥ तेथी चेतन रे, शुद्ध थयो समाधिमयी, ए व्यवहार नय रे, मिल्यो शब्द नयने जश् ॥ त्रुटक ॥ ज्ञानध्यान उपयोगे आवे तीहां मन हाले नहीं ॥ ए पद ऋजु सूत्र नयनो, मल्यो शब्द नयने तहीं ॥ शब्दनय आरुढ वृद्धि, वस्तु धर्म प्रगट पणे ॥ ध्याता ध्येय ध्यान एक तीहां, सम नावे केवळ जणे ॥ २॥ ए अरिहंत रे समनिरूढ नये आविया, उपर दाख्या रे, पांच नय ते साथे लाविया ॥ हवे इहांथी रे योग रुंधीने सिद्धिवरे, लोकंतेरे सिद्ध शिस्खा उपर ठरे ॥ वटक ॥ तीहां एवं नृत नय थावे, एम करीए सप्त नय साधना ॥ शक्ति व्यक्ति मांही नळे त्यां £ कहीए आराधना ॥ सिद्ध साधन शब्द नयमां, ज्ञानयोगे 9 Heasesgsaxesari STATEGGGnGamaraGGDoGG GRAGRAara १. २८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GreGrammar REPRAGATGARAKHARASARAGRARg १ जाणीए ॥ बीजी नयोगनित श्रावे, तेमां हम नवी ताणी- 8 ए ॥३॥ एम सप्तनये रे वस्तु धर्म तुमे वर्या, तेथी धर्मनाथरे ३ अमे तमने कहीए खरा ॥ तुमे अहनीश रे मुज घट अंतर है श्रावजो, मुज चेतना रे तुम संगे जगावो ॥ त्रुटक ॥ ६ एम कीधुं धर्मनाथे, श्राव्या अनुलव मंदिरे ॥ पण मुजने के मलीन देखी, बेग नहीं कंश् चित्त थिरे ॥ तीहां मुजने 6 प्रमोद जामो, आणंद हरख वधामणां ॥ ज्ञान शीतळ करे । विनति, वळी दर्शन देजो तुम तणां ॥ ४॥ संपूर्ण ॥ स्तवन ॥ १६ मुं॥ शांति जिणेसर केशर अर्चित जगधणी रे ॥ के अर्चित जगधणी रे ॥ ए देशी ॥ शांति जिणेसर साहेब मुज मनमां वस्योरे॥ के मुज है मनमां वश्योर॥नाव रोगनो टालण अवरन तुज जिश्योरे . ॥के अवर०॥ रोग सोग संताप क्लेश निवारीयोरे॥क्लेश थइ शांतिः टल्यो रोग निरोगी तुं नाळी रे ॥6 निरोगी तुं० ॥१॥ रूप अनंतु साहिब दीसे ताहरूं रे ॥ के दीसे ताहरु रे ॥ तुज मुख पुनमचंद हृदय हीसे माहरु रे ॥ हृदय० ॥ कंचन वरणी काया कंचन सम दीपती रे ) ॥ कंचन ॥ सेवा करतां लान्न घणो मुज आपती रे ॥ घ.. णो ॥२॥ जळचंदन वरधूप दीपशुं पूजीएरे ॥ दीपशुं पूजीएरे ॥ कुसुम अक्षत नैवेद्यने फळ धरी बुझीयेरे ॥ फळ ॥ इत्यादिक शुद्ध द्रव्य शुं पूजो नवि जनोरे ॥ के ! पूजो० ॥ निमित उपादान समज्यां कार्य करे सवि जनोरे । ॥ कार्य करे० ॥ ३॥ तुज गुण गातां अंतर रंग वधे मुनेरे ६ 5856xamGroris PROGRAGRAGRAGrd GRAGrenoNGAGGC RamroGGERAGNI Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ranoranormore PrexGreAGRAMRAPARASIRABARABAR ॥ के रंग ॥ तुं उपगारी पूज्य तार कहुंईं तुने रे ॥तार॥ १ तुजवीण दुजो देव न दीसे दयालु रे ॥ न दीसे० ॥ क रुणासिंधु मनमाहेन तुही, मायालु रे ॥ के तुही० ॥४॥ 5 तुज नक्ति शुद्ध युक्ति मुक्तिने खेंचशेरे ॥ मुक्तिने ॥ ७ जीव पुद्गल दोय निन्न जाति नेद व्हेंचशे रे ॥ जाति ॥ नेद शान- ए काम बीजाथी न नीपजे रे ॥ बीजाथी० ॥ तमरुप अनंत महंत तीहां नजे रे ॥ महंतः ॥५॥ अनंतर आतम सिजे त्यां वार लागे नही रे ॥ त्यां वार० ॥ अनुन्नव मित्र चेतन शुद्ध दोय मिळे तहीं रे ॥ के दोय० आणंद लहेर अन्नंग रंग तीहां वधेरे ॥ के रंग ॥ ज्ञान, शीतळ, ए काज आज पूरण सधे रे ॥ के श्रा० ॥ ६ ॥ ॥ संपूर्ण ॥ स्तवन ॥ १७ मुं॥ ॥ मरकलमानी देशी॥ कंथुनाथ जिन पूजोजी ए प्रजु गुण नीलो ॥ उनिश्रामां देव नहीं दुजोजी ए प्रनु गुण नीलो॥ द्रव्य नाव दोय नेदेजी ॥ ए प्रजु० ॥ तेमां नावपूजा अखेदेजी॥ एक ॥१॥ द्रव्य पूजाए द्रव्य उपयोगजी ॥ ए ॥ शुद्ध चेतन नहीं संयोगजी ॥ ए० ॥ नाव पूजाये शुद्ध उपयोगजी ॥ ए० ॥ इहां आत्मस्वरूप थयो नोगजी ॥ ए० ॥॥ द्रव्य पूजा ने चार नय शुद्धजी ॥ ए० ॥ नाव पूजाए श9 ब्दमां बुद्धिजी ॥ ए ॥ द्रव्य पूजा आरोपित दाखीजी है ॥ ए० ॥ नावपूजा अणारोप नाखीजी ॥ ए० ॥३॥ एम ____(२१८) PRAroraxisdrewersna reOEMBrooreovaranevarovaro Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्यात्म यावीशी. FEAGreAGROSORTERSNGrenorms पूजा विवेके करीएजी ॥ ए. ॥ निज पर निन्नता बुद्धि , धरियेजी ।। ए०॥ शब्दयोगे सर्व नय सत्यजी ॥ ए॥१ नहीं तो चउ कहीए असत्यजी ॥ ए ॥ ४ ॥ शब्दादि तरण नय नाख्याजी ॥ ए० ॥ एतो आत्मस्वरूपमा रा ख्याजी ॥ ए७ ॥ एना संगे नैगमादि नळताजी ॥ ए० ॥ छ नहीं तो पुद्गलमां उरता, ॥ ए प्रजु० ॥ ५ ॥ चोथी नय सुधी मिथ्यात्व वाश्योजी ॥ ए ॥ शब्दमां समकित रुमो है खाश्योजी ॥ ए ॥ मुक्ति मारग शब्द नयीजी ॥ए०॥ साधन ए विण होय कहांथीजी ॥ ए० ॥ ६ ॥ स्थिरादृष्टि शब्द नये साधेजीए॥चारे दृष्टिमां मिथ्यात्व बाधजी॥ए नावशत्रुमा मिथ्यात्व मोटोजीए० एथी जीव संसारी गेटोजी ॥ए॥॥ शरधा वीपरित फुख दाताजी ए॥ एना अन्नावे जीवने शाताजी ॥ए॥ एम ज्ञान शीतळनी वाणीजी ए॥ गुरु वचन श्रवण करी जाणीजी ॥ ए० ॥ ॥ संपूर्ण ॥.. ॥ स्तवन ॥ १८ मुं॥ ॥राग बंगाली॥ अरनाथजीनजी अढारमा देव, अंतरयोगे मिलवा करं शेव ॥ साहेब सांनळो ॥ हुँ तुमने चाहुं दीनरात, न गमे मुजने बीजाथी वात ॥ साहेब सांनळो ॥१॥ तुज वचन सुणवानो प्यार, तुम संगे स्थिरता करवाई , त्यार ॥ सा ॥ तुम पासे मारे करवो रहेवास, तुं दूध बीजी सघळी लाश ॥ सा ॥२॥ तुमे मळो त्यां मुने , परमोद, रीज मोजथी करीए विनोद ॥ सा० ॥ तुम संगे ENGrowse arrorised GORIGANGO Gonorror Grammarriagregree Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RIGARMERGERARMERGOTRA અધ્યાત્મ ચોવીશી. मुज चेतन शुद्ध, तुज कृपाए थश्ये बुद्ध ॥ सा० ॥ ३ ॥ तुज गुणनो मुज रंग अन्नंग, तुज मुज बेउनुं कर, एकंग ॥ सा० ॥ तुजवीण बीजुं न गमे बाज्य, संसार सागर तरवा तुं माहाज ॥ सा ॥४॥ सुणी विनति मील्या अरनाथ, सत्ता शक्तिये त्यां त्रिजुवन नाथ ॥ सा० ॥ वात करे तुज मुज रूप एक, शक्तिमां नही कोश् अन्यनो नेग ६ & ॥ सा० ॥ ५॥ व्यक्तिमां अंतर पनी सार, निर्मळ , है समळनो नेद विचार ॥ सा० ॥ ज्ञान शीतळ श्रद्धा एम 6 धार, स्थिति पाके तुं सिद्ध वधु नरथार ॥ सा० ॥ ६ ॥ संपूर्ण. ॥ स्तवन ॥ १९ मुं ।। ॥ दीठी हो प्रन्नु ॥ ए देशी ॥ मूरती हो प्रनु मूरती मलि जिणंद, ताहरी हो प्रनु ताहरी अनंत गुणे नरीजी॥ केवळ हो. प्रनु केवळ ज्ञानदर्शन, चरण हो प्रजु चरण यथाख्यात मय गरीजी ॥१॥ दान लान हो प्रजु दान लान आत्मा अन्नेद, नोग हो प्रनु लोग उपनोग स्वगुण महीजी ॥ वीर्य हो प्रन्नु वीर्य स्फुरणा अनंत, अप्रयास हो प्रनु अप्रयास अन्य सदाय नहीजी ॥२॥ दायक हो प्रत्न दायक लब्धि ए पांच सादी हो प्रन सादि अनंत नांगे कहीजी ॥ अबतक हो ६ प्रन अबतक कदीए न होय ॥ गुण सव्वे हो प्रन गुण , 5 सब्वे त्रिविध परिणती ग्रहीजी ॥ ३॥ व्यक्ति हो प्रनु है के व्यक्ति निन्न नेद अनंत ॥ प्रगटे हो प्रनु प्रगटे तेथी PAGAIREratoragar GGIRMIRRORIGIOGra HARGordoreogaorane GoraGramming Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्यात्म यावीशी. GALLERGAGARIGranard. परमानंदताजी ॥ सुख हो प्रजु सुख ए अनंत अव्याबाध ।। खहरी हो प्रजु लहरी विलास आस्वादताजी ॥४॥अक्षय १ हो प्रनु अक्षय स्थितिये गति सिद्ध ॥ अरूपी हो प्रनु अरूपी वरणादि नही तीहांजी ॥ अगुरु हो प्रनु अगुरु लघु बार लेद ॥ हाणी हो प्रत्न हाणी वृद्धि गुण वृत्ति तीहांजी ॥ ५॥ इत्यादि हो प्रत्न इत्यादि गुण अनंत, धर्म & हो प्रन धर्म गुणगत स्वन्नावएजी ॥ गुण ते हो प्रनल गुण ते पर्याय समुदाय ॥ निन्न हो प्रन्न जिन्न कहीए हेतु उपदेशमांजी ॥६॥ वस्तुये हो प्रत्न वस्तुए अव्य पर्याय॥ ३ गुणनय हो प्रन गुणनय नही सिद्धांतमांजी ॥ प्रदेश हो । प्रल प्रदेश असंख्याता दाख्य॥ तस धन हो प्रन्नु तस घन निवम सिद्धमांजी ॥ ७॥ तेहीज हो प्रत्तु तेही मूरती मटिल जिणंद ॥ उंगणीस हो प्रन उगणीसमा तीरथपतिजी ॥ ज्ञान हो प्रन ज्ञान शीतळ शुद्धन्नाव ॥ पूजाथी हो प्रन पूजाथी नवि लहे सिद्धगतिजी ॥७॥ . संपूर्ण. ॥ स्तवन ॥ २० मुं॥ ॥सांनळजो मुनिसंयम रागे ॥ ए देशी ॥ मुनिसुव्रत जगत गुरुराया, शुद्ध नयचित्त ठरायारे॥ शुद्ध पर्याय रमण उपयोगे, ध्यान तुरंग नचायारे ॥ मुनिसुव्रत जगत गुरुरायाः ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ निज सत्ता धर्म प्रगट पाया, व्यक्ति गुण पर्यायारे॥ सेहेज , स्वन्नावे दायक लब्धि, अचळ अनंती कहायारे ॥मुनि॥ Beans /G randi GramBAGRAGrdasreGramruare Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GRoardGIR GROraordernoram PARAGRAGNROERA GRAGNBAG, १ ॥२॥ तेमां नवन्नेदे श्हा दाखं, समक्ति परथम नाखू रे॥ चरण यथाख्यात वीतराग नावे, शुद्ध परिणतीए रारे १ ॥ मुनिः ॥३॥ केवळ झानने केवळ दर्शन, विशेष सा- है £ मान्य उपयोगरे ॥ समय अतंर वे सिद्धांते मान्या, नयवादे ७ एकविशेषो पयोगरे ॥मु० ॥४॥ दान लाल लोग उपन्नोग है वीर्य, दाखुं तस वृत्तांतरे ॥ दान देतो निज लेतो पोते, & सहाय गुण गुणने करंतरे ॥ मु० ॥ ५॥ लोग स्वपर्याय है नोगवे, उपन्नोग स्वगुण वृत्तिरे ॥ स्वपर्याय गुण वृत्ति 6 सहायी, वीर्य स्फुरणा अनंती रे ॥ १० ॥६॥ ए पांच ॐ लब्धि मुज सत्ताये, अव्यक्तव्य अनादिरे ॥ ते व्यक्तव्य 6 पणे करी आपो, तो ज्ञान शीतळ सिद्ध श्रादिरे ॥ मु॥ ॥ ७ ॥ संपूर्ण. स्तवन ।। २१ मुं॥ ऋषननो वंश रयणायरो ॥ ए देशी॥ नमि जिनपति अरीहा नमो, एथी करो गुण रागरे।। जीव स्वरूपने उळखो, तजो अन्य लावी वैराग रे ॥ नमि जिनपति अरीहा नमो ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ अन्य वस्तु जीवने पांच डे, तेमां दुःखदायी एकरे ॥ पुद्गल बंधन दृढ बे, कर्म वर्गणा अनेकरे ॥ नमि० ॥२॥ ज्ञाना वरणादि आउनो, कर्मदळ वृत्तंतरे ॥ समे समे अज्ञाने , @ बांधतो, सात आठ कर्म महंत रे ॥ नमि० ॥ ३ ॥ तेथी १ 9 अशुद्ध थयो आतमा, उदयिक नाव संयोगेरे ॥ बंधाणो हे वर्गणा सातमां, राग द्वेष पर उपयोगे रे ॥ नमि० ४ ॥ सं. ६ Herersonaxisasur Manoranars Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्यात्म यावीशी. ORAGAR EIGAR GARIMARGIGARoma १ सार स्थिर चउगति जमे, पुःख सहे वारंवाररे ॥ क्लेश ह ६ करी काळ निरगमे, अहं ममत्व अपाररे ॥ न० ॥५॥ निज वस्तु धर्म रूचे नहीं, अंतरदृष्टि न थायरे परवस्तु धर्मे लागी, तीहां मिथ्यात्व सदायरे ॥ नमि० ॥६॥ सदगुरु वचनथी वेगळो, माने पुद्गलने जीव रे ॥ द्रव्य क्रियातप आदरे, तेथी काज नहीं नहि ए शीवरे ॥ न-3 मि ॥ ७ एम समजी अन्य संग तजो, लजो छानने ध्यानरे ॥ निर्विकल्प रस पीजीए, प्रगटे अनुन्नव ज्ञानरे ॥ नमी ॥ ॥ एह शीवसाधन आदरो, आराधो नवि संतरे ॥ अन्य तजतां वीर्य वाधशे, ज्ञान शीतळ एक के 3 तरे ॥ नमी० ॥ ए ॥ संपूर्ण. ॥ स्तवन २२ मुं । ॥सांनळजो मुनि संयम रागे ॥ ए देशी. नेमि प्रन्नु नीम को सही दा, उदयिक नाव नही चाखु रे॥ परवस्तु अग्राह्य चेतनने, सर्व विरति एम राखं॥ नेमि प्रन नीम कयों सही दा० ॥ ए आंकणी ॥ गाथा , ॥१॥ कारण कार्य ते निज स्वन्नावे, अकारण परनावे रे॥ १ क्षय उपशम शुद्ध कारण कहीए, कार्य ते दायक नावे रे ॥ नेमिः ॥२॥ ए विण कारण कार्य ते नाही, अरिहंतने सिद्ध पद-रे ॥ नविजन समजीने आदरजो, वचन ए नेमि जीणंद-रे ॥ नेमि० ॥३॥ कारण ते कार्यने ध्यावे, सोही कार्यने पावे रे ॥ कारण कार्य नहीं प्रवर्ते, ते कार्य 2 रूप नहीं थावे रे ॥ नेमिः॥४॥ कारण सो कार्ये प्रवर्ते, 6 ___(२२४) BaRGROGRAM GGrenoNG ArranGARAR G Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ andoorsangrore । ते कारण कहेवाय रे ॥ कार्य प्रवृत्ति श्रण करतां, कारण Q एम न बोलाय रे ॥ नेमिः ॥ ५॥ कार्य योग्यतानी बति ह जेमां, ते कारण एम कहीए रे ॥ ए सत्य वचन प्रवृत्ति हे जोगे, नही तो कारण शेर्नु 'सही' एरे ॥ नेमिः ॥ ६॥ है कारण वस्तु स्वन्नावे वर्ते, सोही साधन उत्सर्ग रे ॥ ज्ञान शितळ निष्पन्न कार्य तहीं, व्यक्ति अनंत अपवर्ग रे ॥ नेमि० ॥ ॥ संपूर्ण. ॥ स्तवन ॥ २३ मुं॥ ॥हो धन्ना ॥ ए देशी॥ पार्श्वनाथ त्रेवीसमारे ॥ मिता ॥ वामा राणी तसमात ॥ पिता अश्वसेन नरपतिरे ॥ मि० ॥ नील वरण ए जीन प्रख्यातरे ॥ रंगीला मिता ए प्रनु सेवोने ॥ ए प्रन्नु हूँ सेवो अंतरंगमां रे ॥ मि० ॥ नहीं बाज्य पारस रूपरे ॥ रंगीला मिता ए प्रनु सेवोने ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ बाज्य ते उदयिक नाव रे ॥ मि ॥ पूरव बंध संबंध ॥ १ कर्म जनित पद बाज्यएरे ॥ मि० ॥ ते नहीं चेतन शुद्धरे ॥२०॥ ए० ॥॥ चेतनरूप अंतरंगमां रे ॥ मिता ॥ पर तजतां प्रगटाय ॥ ज्ञान दीपक अनुन्नव सही रे ! ६ ॥ मिता ॥ तिमिरांधकार नाग्यो जायरे ॥ २० ॥ ए० ॥३॥ 9 परनावथी न्यारापणेरे ॥ मिता ॥ अनुन्नवे वस्तु धर्म ॥ १ स्याहाद धर्म इहां संपजे रे ॥ मिता ॥ सहे श्रानंद अति है ६पर्म रे॥ २० ॥ ए० ॥४॥ स्वस्वन्नाव तस कीजीए रे ॥मिता॥ ह, वर्त्तना ए व्यवहार ॥ नेद झान योग वर्णव्यो रे ॥ मिता॥ (२२५) TRALCIEOREKHOPRONDOMBIAS २८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ અધ્યાત્મ ચોવીશી. Genergy Areovercorren PROMOTOROVIE F rogram orang सोही कारण शीवसार॥ २० ॥ ए० ॥५॥ ए विण अव६ रने कारण कहेरे । मिता ॥ ते कल्पना सो असत्य ॥ 9 ज्ञान शितळ उपदेश एरे ॥ मिता ॥ सुणो नाणी संगे सदा संतरे ॥ रंगीला० ॥ ए०॥ ६॥ संपूर्ण. ॥स्तवन २४ मुं॥ ॥ मन मोहन मेरे ॥ ए देशी ॥ वीर जिनेश्वर साहेबा मन मोहनमेर ॥ नाव वीर्य शीव संत जीनजी गुरु मेर ॥ तुज सम अवर न देखीयो ॥6 मनः ॥ हणी शत्रु दयालु कहंत ॥ जी० ॥ १॥ प्रथम हएयो मिथ्यात्वने ॥ मन० ॥ तीहां फीटयो अचेतन नाव ॥जी॥ चेतन जन्म त्यां कीजीये ॥ म० ॥ ए साधन अवसर दाव ॥ जी० ॥२॥ अज्ञान नावं ते समे ॥म०॥ उग्यो अंतर नाण ॥ जी० ॥ हुवो प्रकाश स्वन्नावमां ॥ म० ॥ थया ज्ञानी अनुन्नवी जाण ॥ जी० ॥ ३ ॥ परण्या : समिती संयम श्री॥ म० ॥ तीहां त्यागी असंयम नार ॥ जी० ॥ कुमती टळी अधर्म बुद्धि ॥ म ॥ तेनां संतान हणी ते वार ॥ जी० ॥ ४॥ कषाय पचवीशने मारीया ॥ म० ॥ हएया विषय विकार तेवीस ॥ जी० ॥ योग चपळताने परहर्या ॥ म० ॥ नाठी निमा चढावीने रीस ॥ जी० ॥ ५॥ अप्रमत थयो आतमा ॥ म० ॥ स्वरूप उपयोगवंत ॥ जी० ॥ ज्ञान वीर्य तीहां वाधीयो ॥ म०॥ टाळी उपाधि हुआ महंत ॥ जी० ॥ ६ ॥ रागळेष मोह नागीया ॥ म० ॥ वळी नागी परिणति अशुद्ध ॥ जी० ॥ (२२६) GRamroSDGorGreGMGNREGre Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RSoormarwBRamana અધ્યાત્મ ચોવીશી. RaviramGRAMMERS १ शुद्ध परिणति पूरण थ३॥ म० ॥ थया वीतराग नावी ए बुद्ध ॥ जी० ॥ ७ ॥ हादश गुणगणे चढया ॥ म० ॥त्रण 5 कर्मनो तीहां विनाश ॥ जी० ॥ अनंत चतुष्ट प्रगट थइ , ॥ मन० ॥ कीधो अरिहंत पदमां वास ॥ जी० ॥ ॥ ई, चार अतिशय मूळथ। ॥ मन० ॥ गुणघाति खपे अगिार है ॥जी० ॥ जंगणीस देवकृत संपजे ॥ म० ॥ ए चउतीस & अतिशय सार ॥ जी० ॥ ५ ॥ पांत्रीस वाणी गुणे जर्या 3 ॥ मन ॥ वळी नाग दोष अढार ॥ जी० ॥ बार गुणे & विराजता ॥ मन० ॥ बजे प्रातिहार्य आठ सार॥ जी० ॥ १०॥ अणहुता सुर कोमीशुं ॥ मन० ॥ सदा सेवे पूरण : नाण ॥ जी० ॥ जीन नाम कर्म उदय हुश्रो ॥ मनः ॥ तेने खेरवे ए वचन प्रमाण ॥ जी० ॥ ११ ॥ क्षत्रिय कुंभ पुरे जनमिया ॥ म० ॥ राय सिद्धारथ कुळ चंद ॥ जी०॥ त्रिसलानंदन गुण नीलो ॥ म० ॥ सेवे संघ समुदाय वृंद ॥ जी० ॥ १५ ॥ कंचन वरणे दीपतो ॥ म ॥ उंचा सप्त १ हाथ प्रमाण ॥ जी० ॥ बोतेर वर्षतुं श्रावखुं ॥ म०॥ सं. बण सिंह गुण मणिखाण ॥ जी० ॥ १३ ॥ सिंहपेरे धीर एकला ॥ म० ॥ करे शत्रु विनाश ॥ जी० ॥ तुज गुण को न गणी शके ॥ म० ॥ तुं पूज्य हुं बुं तुज दास ॥ जी० ॥ १४ ॥ अंतरदृष्टियें प्रीतमी ॥ म०॥ कीधी जगगुरु तुजशें ६ अन्नंग ॥ जी० ॥ ज्ञान शीतळ रोके तुजशुं ॥ म०॥बीजो 9 न गमे अन्यनो संग ॥ जी० ॥ १५ ॥ संपूर्ण. GRGAGRare BIRGAONGRGAGAR Farmersonal Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्यवहन अघिR. RSeareraGore GGER GRGA Green Gram GABRarat हे गाया गायारे वर्तमान जीन चउवीस गाया ॥ निज 6 , स्वनावे अनुन्नव करवा, उपयोग स्थिरजमाया। तीहांचेतन . है रूप जिनरूप अनोपम, तेने ध्यातां परमोद पाया रे॥ वर्त्त& मान जीन चवीस गाया ॥ गाया गाया रे, ज्ञान पायारे, 6 इतीहां जीव स्वरूप उळखाया॥ ए श्रांकणी ॥ गाथा ॥ १ ॥ ए साधन सिद्ध पदनुं साचुं, एवीण सर्वे काचुं. ॥ मिथ्यात्व हणतां समकित आवे, ते नावे घणुं राचुं रे ॥ वर्तः ॥२॥ स्तुति करी गुण रागे करीने, तीहां आणंद हरख सवाया ॥ चढतानावे स्तवन कीयां, अनुन्नवगम्य अर्थ रचाया रे ॥ वर्तः ॥ ३॥ उगणीसें उगणपचास साले, प्रथम अषाम गुरुबारे। पूरण चोवीसी श्रमावाश्यायें, कीधी अल्प बुद्धि अनुसारेरे ॥ वर्तः ॥४॥ आज मनोरथ पूरण मारा, जीन मुण नक्तियें गाया ॥ प्रमोद लावना रुमी नावी, ज्ञान शीतळ शुद्धता पाया रे ॥वर्त॥५॥ संपूर्ण.॥ सर्व गाथार? इति चोवीशी समाप्त. .. अथ चैत्यवंदन अधिकार. ॥ चैत्यवंदन ॥ १ ॥ लं॥ 5. ॥श्री सिद्धाचल सिद्ध क्षेत्र ॥ ए देशी॥ .. प्रणमी श्री गुरु रायने, हुकम आशा ग्रही जे॥ अव्य 5 पर्यायने जाणवा, नेदज्ञान घट लीजे ॥१॥ अव्य अवि-१ हे चळ रूप में, ध्रुवता पमविध जेह ॥ गुणपर्याय अनेदता, है ARMERSEASON reORGAROMANOOGY Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थैत्यवहन धिर. GGAGROGGERGre १ अन्नव्य स्वन्नाव तेह ॥२॥ अपलटण धर्म एहनो, पलटे , नहीं निरधार ॥ कार्य प्रवृत्ति नहीं, अव्यक्तव्य विचार ॥ 9 ॥३॥ अव्य शक्ति धर्म ए कह्यो, हवे कहुँ पर्याय धर्म ॥ , स्याहाद इहां संपजे, ए जिन वचननो मर्म ॥४॥ कार्य प्रवृत्ति करे, उपयोग नाव स्वन्नाव ॥ व्यक्ति गुण गुणनी निन्नता, सोही नेद स्वन्नाव ॥ ५ ॥ उत्पाद् व्यय गुण वृत्तियें, अनंतो नाख्यो । अनिनव उत्पाद बे, व्यय पूरव दाख्यो ॥ ६॥ उत्पाद व्यय करे कार्यने, ध्रुवता कारणमांही। एही नव्य स्वन्नाव कह्यो, मुळ स्वन्नाव में त्यांही ॥ ७॥ पर्याय नय धर्म ए सही, शब्द नयनो पक्ष ॥शीवसुखदाता एह , अनुनव ज्ञान प्रत्यक्ष ॥७॥ एह धर्मने जाणवा, हेतु अव्य नाव ॥ अव्य हेतु सद्गुरु नला, नावे क्षय उपशम नाव ॥ ॥ पूरण कार्य जब हुवे, त्यां सब्धि दायक नाव ॥ ज्ञान शितळने चित्त वस्यों, ए शीव साधन दाव ॥१०॥ ॥ चैत्यवंदन ॥२ जु॥ ॥ सेवो पास संखेश्वरो मन्न शुद्धे ॥ ए देशी ॥ सुधानंद सिद्ध साधना साध्यरामी, वस्तु धर्म आराधना शुद्ध पामी॥ श्रनुनव योगी सहज गुण नोगी, कलंक कर्म त्यागी थया ते निरागी ॥ १ ॥ कहुँ तारा विचार अंतः मांही खोजी, चिदानंद मोजे रमे जेम तेजी ॥ अ-१ नादि मिथ्यात्वी अचेतंन जेवो, अमोवास रात्री काळी अंध तेवो॥२॥ समकित शुद्ध पामे जीहां जास, तीहां ६ (२२८ ) GGOOGonorrore 4 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MMY थैत्यवहन अधि४२. FRORAGIRAGMERREARLOMBAGMAGAR 9) चंद्रोदय बीज कला प्रकाश ॥ मिथ्या मोह तिमीर अणा लोग नाश, अनंतानु कषाय चौदय तास ॥३॥ देश ३ विरति आवे बार व्रत नावे, अप्रत्याख्यानी चोकमी त्यां अन्नावे॥ लीए सद्गुरु संगे महा व्रत रंगे, प्रत्याख्यानी चल त्यां हणे उमंगे ॥ ४ ॥ अप्रमत्त सदा प्रमत्तन कदाश, श्रेणिगत चेतन त्यां निर्मळाश् ॥ संजलना कषाय त्रणने नेदी बेदी, आशादि षट् कंद मूळथी उठेदी ॥ ॥ ५ ॥ वेद विषय अनिलाष अग्नि, समावे दे नावे गर्नवास रजनी ॥ रह्यो लोनाणु उदय गम दश्म, हणे वीर्यवंत करेॐ बाळी नस्म ॥६॥हएयो मोहराय सत्ताथी बेदाय, त्यां अशुद्ध परिणतीनो क्षय थाय॥ परिणति रागादि अनादिनी टाळी, वीतराग परिणति त्यां अजवाळी ॥ ७॥ यथाख्यात चारित्र संपन्न सामि, रमे निर्विकल्प ध्यानी अनामी॥वीत्यो राग वैरागी क्षीण मोह त्यागी, त्यां करे त्रण कर्म चकचूर नागी॥ ॥ सहे केवळनाण दर्शन अरिहंत, उद्योत करे १ व्यक्ति धर्म अनंत ॥ आयु जेटलुं तेटलो योगवास, बेदे . अंत मे करे जोग नाश ॥ ए॥ योगातित सिद्ध सम श्रेणी सधावे, पोंचे शीव धाम समय एक थावे॥ करे त्यां ६ स्थिति नंग सादि अनंत, समावे ज्योति ज्योत नाषे सिद्धंत ॥ १० ॥ श्रनुलव करी साधना सिद्धनावी, चेतन | @ सज कीधो स्वरूपे रमावी ॥ आतम नीरखी परखी मूळ , 5 रूप, ज्ञान शितळ वंदे सिद्धराय नूप ॥ ११ ॥ ARMIRRIGARomance rangeroGROGRAMAGRGARLordGARBAR ംരംഷ് Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S OR GORAGAR Grenormour RARGAGRAGIRRORGramma ચૈિત્યવંદન અધિકારી ॥ चैत्यवंदन ॥ ३ ॥ जुं ॥ ॥ देशी उपर प्रमाणे ॥ समकितनुं मूळ ज्ञान आराधी, समकित शुद्ध त्यां ज्ञान समाधि ॥ ज्ञान फळ वीरती फळमुक्ति, विवेके करो साधना शुद्ध युक्ति ॥१॥ अनुलव लावो अंतःमां रमावो, मनस्थिर त्यां उपयोग जमावो ॥ करे ते जूदाइ वस्तु उळखाइ, पुद्गल जीव नेदी उफार देखा ॥२॥ आतम परखो परमातम सरखो, सत्ता निन्न चिन मूरति नीरखो॥ तीहां चेतना वीर्य ते एकगमे ॥ करे ग्रंथि नेद त्यां समकित पामे ॥ ३ ॥ समकित मूळ वीरति जोग लेवो, चिदानंद वासी स्वरूपने सेवो ॥ स्वरूपे ज्ञान उपयोग मिलावो, तीहां गुणगण अप्रमत्त पावो ॥ ४ ॥ ज्ञान उपयोगथी अळगो चाले, तीहां प्रमत्त गुणगणुं खाळे ॥ करे तेज मंद ज्ञान गुण केरो, वधे तेज उपयोग नळतां जलेरो ६ ॥५॥ ए वीरति गण साधन पाया, तजी ग्रंथि अन्यंत्र निग्रंथराया ॥ करी साधना शुद्ध श्रेणि आरोहे, तिदण उपयोगे चरण स्थिर सोहे ॥ ६॥ अनुन्नवे आतम धर्म अनंतो, करे नेद बेद अनेद लहंतो ॥ निर्विकल्प नाव आतम पाया, शुद्ध परिणतिमां चेतन आया ॥७॥ एकत्व 9) वीतर्क शुक्ल ध्यान ध्याया, संन्नाववृत्ति चेतन रमाया॥पामे | नाण दर्शण केवल ताजा,सकल शिरोमणि अरिहंत राजा॥॥ अनंत धर्म शक्ति काळ अनादि, व्यक्ति ए लहे ते समय दिन आदि ॥ असंख्य प्रदेश निरावर्ण पाया, त्यां निर्वाण (२३१) xcomegreesex arodaraGarmaaraareGroGarnerBaMdarm Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Grdasrdarod थैत्यवहन अधि२. सिद्ध निरंजन राया ॥ ए॥ सादि अनंत नंग सिद्ध सो हावे, कार्य रूपे तेही पोतेज थावे ॥ मूळ स्वन्नाव अचळ १ 9 अविनाशी, परमानंद लोगी थया शीव वाशी ॥ १० ॥ मुक्ति साधन करे आतमझानी, समकित विरती सहे वि- १ & ज्ञानी ॥ बाह्य ज्ञान विरति पेहेले गुणगणे, साधन सिद्धनुं 3 ज्ञान शितळ जाणे ॥ ११ ॥ ॥ चैत्यवंदन ॥ ४ धुं ॥ ॥ विमळ केवळ ज्ञान कमळा ॥ ए देशी॥ सिद्ध क्षेत्र पंचमी गति मुक्ति, परिबह्म केवळ ज्ञान।। दायक चरणने वीर्य अनंतु ॥ नमो सिद्ध निरंजनं ॥१॥ चिन्ह मूर्ति अज अविनाशी, निकलंक केवल दर्शनं ॥ शीव परमातम परम योति, नमो सिद्ध निरंजनं ॥२॥ g अव्याबाध अरूपी अमूर्ति, अखंग अटळ अवगाहनं ॥१ अनाश्रित अनंत गुण मंमित, नमो सीद्ध निरंजनं ॥३॥ अगुरु लघु निर्मळता व्यक्ति, पूर्ण परम पद परधानं ॥ ६ परमेश्वर निर्वाण पवित्री, नमो सिद्ध निरंजनं ॥४॥ गुण पर्याय स्वन्नाव अनंता, व्यक्ति सौनी निन निनं ॥6 ते वस्तु गत धर्म अनंतो, नमो सिद्ध निरंजनं ॥ ५॥ र अनंत धर्मे अनंतो आनंद, अचळ अतिप्रिय निधानं ॥ ते परमानंद लहरी नोगी, नमो सिद्ध निरंजनं ॥ ६ ॥ एक सिद्ध तिहां सिद्ध अनंता, योतिमा योति समासनं ॥ व नीज नीज रूपे निन्नता सौनी, नमो सिद्ध निरंजनं ॥७॥ 9 अनादि अनंत ए सिद्ध सेवो, पूजो ध्यावो तरं ध्यानं ॥ र ज्ञान शितळ तीहां केवळ पामो, नमो सिद्ध निरंजन ॥॥ Yearereasabseresrest SAGRGreen GIRGrenorror@GGROGRAM RAMOGRAMM Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FROGRGiraram RRASARDARGresiree ॥ चैत्यवंदन ॥ ५ मुं॥ वस्तु स्वन्नावने जाणवा,अनुन्नव उपयोग रंग॥ निज पर सत्ता निन्नता, एही ज्ञान तरंग ॥१॥ पर संगे उपयोगता, एही अशुद्ध आचार ॥ साधन वाधक फळ दीए, तेथी स्थीर संसार ॥२॥ चेतन जब बळी दुवे, वीर्य है स्फूरणा पाय ॥ विन्नाव उपयोग परिणमन, पर परिणति बेदाय ॥ ३ ॥ एहीज इच्छा माही, परअनुन्नव यथाय॥ शुद्ध परिणतिमां वशी, निर्विकल्प रस पाय ॥ ४॥ अनुनव स्थिर सहेज नावमां, सहज संवर प्रकाश ॥ आश्रव रोध शुद्ध निर्जरा, कर्मघन तिमिर विनाश ए॥५॥ स्वन्नाव चेतनता, व्यक्ति धर्म अनंत ॥ अति निर्मळ विशुद्धता, एही सिद्ध महंत ॥ ६॥ निरंजन निराकारए; अगम अनोपम रूप ॥ अबाधित आनंदमां, झान शीतळ गुण 3 जूप ॥ ७॥ ॥ अथ स्तुति अधिकार. ॥ ॥सिद्धचक्रजीनो थोय जोडो १ लो॥ ॥ गौतम बोले ग्रंथ संनारी ॥ ए देशी. ॥ सिद्धचक्र वंषु मनरंगे, नवपद नावना नाव उमंगे; 8 आत्म स्वन्नावना संगे ॥ पेहेलो अरिहंत पद अवकाश, गुण घाति चकर्म विनाश, अनंत चतुष्टयी वास ॥ ए ६ पद सयोग अयोगमां धारुं, योगातित सिद्धपदमा विचारूं; ॐ सकल शिरोमणि प्यारं ॥ श्राचार्य उवज्मायने साधु, प्रमत्त ह g, अप्रमत्त गुणमा लाध्यु, शीवपद साधन वाध्यु ॥ १॥ द-६ Hereasaraswaeos & Gora GraGRAGIRGAON GAGRAGRAG Seardar@GorrenGRAGrarGrouGos 30 (२३३) LEARNITIA A Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GIRGAR GARGARGGER. PROPRAGreAGRAAREERSOMSAGTAGreg शणनाण चरण तप तपिया, क्षायक समकित सुंधुं जपीया; वेदक अवसर खपीया ॥ तीहां चेतन समन्नावनो रंगी, १ आतम गुण श्रेणी दृढ जंगी, निर्विकल्प एकंगी॥ रागष , मोह सब लागे, अशुद्ध परिणति अळगी लागे; दायक १ चरण तीहां जागे ॥ वीतराग क्षीण मोह पुवादश्म, त्यां है त्रण कर्म बाळी करे जस्म; सविसंत परमानंद रश्म ॥२॥ झान बोध अनुन्नव विण नाही, अनुन्नव विण पर बोके नांहीं, पर डोमे समकित त्यांही ॥ धर्म अनंतनुं बीज एG प्यारं, सुख दुःख सरखं लागे खारु; नेद ज्ञान वीण अंधारु ॥ अनुन्नव शुद्ध घट अंतर जागे, बंध सत्ता कर्म चेतन त्यागे,त्यां रागद्वेष मोह नागे।केवळनाण दर्शण तीहां पामे, अनंतु लोकालोक सब सामे; ते ज्ञान धर्म हित कामे॥३॥ बीजा पदमां ते सिद्ध कहीए, बाकी आठ सिद्ध साधन ग्रहीए; अरिहंत संजीरुढे लहीए ॥ आचार्य ते पंचाचारी, उपाध्याय पढे श्रुत नारी; साधु विरति बलिहारी ॥ दर्शण सामान्यने ज्ञान विशेष, उपयोग स्थिर त्यां चरण सहेश; तप निर्जरा प्रवेश ॥ श्म नवपद सिद्धचक्रने पूजे, सूरनर उ तीहां दिल रीजे; ज्ञान शीतळने सीके ॥४॥ थोय जोडो ॥२॥ जो॥ वीरजीणेसर वंदिए ए प्रगटयो वीरगुण जासतो , ॥ए देशी॥ १ शुद्धानंद निज वंदिये ए, परम देव प्रधानतो ॥ मोक्ष है कारण। एह डे ए, उपादान रुमी रीततो ॥ निमित्त कारण (२३४) B arriawwarRAON GARLGDGornsraore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GRO.ORGAR GARGAGARGori GRAGARAGARAM PSIRMIRMIRRORGARHIRGames तुति अधि४२. देवगुरु कह्या ए, जीन वचने दृढ चित्ततो ॥ शक्ति नाव प्रणमन करीए, व्यक्ति सनातक सिद्धतो ॥ १॥ वस्तु स्वन्नाव सिद्ध साधनाए, रमण स्थिर गुण पर्यायतो ॥ निर्विकल्प रस पीजीये ए, ज्ञान अन्नेदता पायतो ॥नाव संवर शुद्ध निर्जराए, कर्म अनंत क्ष्य थायतो ॥ निर्मळ निरंजन बुद्ध थश्ए, सर्व संत सिद्धरायतो ॥ ॥ केवळनाण दर्शण सहीए, धर्म दान दातारतो ॥ हित उपदेश जव्य जीवने ए, करता वारंवारतो ॥ बोधि बीज विरती लहे ए, नरनारीना वृंदतो॥ गणधर सूत्र दुवादश रचे ए, ते 3 ज्ञान नाण पवित्रतो ॥ ३॥ सर्व देवनो देव डे ए, निजातमे शुद्ध सिद्धतो ॥ सूत्रग्रंथनी साख्यथीए, गुरु वचने परतिजतो ॥ ज्ञान शीतळ जुए तेहने ए, आगम अनोपम 3रूपतो ॥ सेवे पूजे समकितिए, देव देवांगना बेपतो ॥४॥ थोय जोडो॥ ३ जो ॥ १ ॥प्रह उठी वंषु ऋषनदेव गुणवंत ॥ ए देशी ॥ सिद्ध बुद्धने वंडं, नीज रूप निहाळी ॥ उपयोगे ना, बोधि बीज तीहां लाळी ॥ शुद्ध श्रधा साची, चिद ६ घन नोग संयोग ॥ उपाधि हणतां, परमातम निरोग ॥१॥ , रोग शोग दुःख कापे, महा मोह मल नागे ॥ ज्ञान सुन्नट बळी, ध्यान अग्नि तीहां जागे ॥ कर्म काटने बाळे, तीहां शितळता वाधे ॥ परमानंद जोगी, सर्व ॐ सिद्धता साथे ॥२॥ अरूपी अवीनाशी, अव्याबाध अ-, हे नंत ॥ निरमळ निरंजन ॥ अखंमित महंत ॥ अचळ (२३५) GrGroorrearraGRAMOG Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સ્તવન અધિકાર. अनोपम, निराकार शीवसंत ॥ इत्यादि अनंतुं, अनुभव ज्ञान लड़ंत ॥ ३ ॥ योग रोध योगी, सैलेश करण कंप || आयुष्य अंत बेमे, देव देवीना संप ॥ उच्छवनुं कारण, निर्वाण मंगलिक गावे ॥ ज्ञान शीतळ हरखे, ज्योतिमां ज्योति समावे ॥ ४ ॥ ॥ थोय जोडो ॥ ॥ थो. ॥ ॥ संखेश्वर पासजी पूजीए ॥ ए देशी ॥ वीतराग अरिहंत पूजी, केवळ नाण दर्शन लीजीए ॥ कर्म कलंक सब परहरी, निकलंक कन्या सिद्ध वधु वरी ॥ १ ॥ नंदज्ञानी अनुभवी आतमा, निजपर सत्ताजीन महातमा ॥ रूपक श्रेणी आरोह ध्यानातमा, सवि जैन या सिद्धातमा ॥ २ ॥ षट्द्रव्य वस्तुने ओळखी, गुण पर्याय स्वभाव लक्षण लखी ॥ परपांच अजीव अकारणी, श्रतम ज्ञानी धर्म धारणी ॥ ३ ॥ एही देव परमातम कीजीए, सेवे सुरनर इंद्र मन रीजीये ॥ तीहां ज्ञान शितळ जश लीजीए, परमानंद मय रस पीजीए ॥ ४ ॥ इति स्तुति अधिकार संपूर्ण. ॥ अथ स्तवन अधिकार ॥ स्तवन ॥ १ ॥ लुं ॥ समकितनुं ॥ ॥ तुम तजकर राजुल नार तज्या सब घर रे ए देशी ॥ धन्य धन्य दिवसने धन्य घमी बे आजे ॥ समकित गुण पायो सिद्ध हु निज काजे ॥ मिथ्यात्वने दी ओ ( २३६ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨તવન અધિકાર BaramaraGORIGIGRGame ६ नणीयो ज्ञान समाजे॥जम चेतन लक्षण निम्न निन्नता , गजे॥धन्य धन्य दिवसने॥ ए आंकणी ॥गाथा ॥१॥ चेतन उपयोगे निज स्वन्नावमां देखे ॥ तब नदिक नावनो लोग रमण उवेखे ॥ श्हां मुक्तिपुरनो पंथ वहे सिद्ध लेखे ॥ अविनाशी चेतनराम निरंजन पेखे ॥ धन्य० ॥२॥ निज द्रव्य गुण पर्याय स्वन्नाव शुद्ध थावे ॥ तीहां मोहमल ओर रागद्वेष उर जावे॥ घटअंतर नेद झान जग्यो शुद्ध नावे॥ पुनरपि कर्मनो बंध हां नहीं पावे ॥ धन्य० ॥३॥ अनुन्नव विवेक नयो अध्यातम नावे ॥ चेतन गुण समकित शुद्ध आविरनाव पावे ॥ धन्य धन्य ते समये काळ प्रमोदित गावे ॥ पटराणी समता संग चेतन साथ थावे॥ ॥४॥ श्म निश्चय समकित परम निधान चित नाव्यो॥ पामवो ने एहीज सार उमेद मन श्राव्यो ॥ जे पाम्या ले निरधार नर्मने गमाव्यो ॥ कहे ज्ञान शितळ शुद्ध चेतन तद्रुप पाव्यो ॥ धन्य० ॥ ५॥ ॥ स्तवन २ नुं ज्ञानवें ॥ ॥शत्रुजय दीगेरे ॥ ए देशी ॥ झानने आत्म स्वरूप जे जाणे, ते निश्चय नय झानीरे ॥ ए विण सर्व पदारथ जाणे, ते व्यवहार नय ज्ञानी रे ॥ ६) ज्ञान पद सेवो रे ॥ ज्ञान चेतन सद्नाव, आनंद पद लेवो रे ए आंकणी ॥ गाथा ॥ १॥ ए बे पदनो पटंतर १ मामो, वीवरीने श्हा दाखं रे ॥ विवेक ग्रही श्रोता जन सु-, हे णजो, अनुनव रस शुद्ध चाखुरे ॥ ज्ञान० ॥ २॥ गणांग ६ Pavsariaxorst Prese RAGAGROGRGARRAGrer near Gre Gr@AGRAGRAGAR GAR २ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SRAGRAGreenaward BiGrarG GRGAR GIRana PRERAGIRGAGARRIGARGANGA तवन मेधि२. सूत्रे पेहेले गणे, वीर प्रजुनुं वचनरे ॥ एक जाएयो तेणे @ सर्वे जाण्यु, निश्चे शुद्धातम धन्यरे ॥ ज्ञानम् ॥ ३॥ श्रा-१ त्म स्वरूप अजाण अनाणी, मिथ्यात्व अणालोग उदे वर्ते रे ॥ बाकी सर्व जाण थ बेठो, ते नहीं शानी महंतरे ॥ ज्ञा० ॥ ४ ॥ ए सूत्रे इत्यादिक जो जो, परखी ज्ञानी ग्रहजोरे ॥ अज्ञानी संगत डोमीने, चेतनराय संग नजोरे ॥शान० ॥५॥ व्यवहार नय नाणी दुन्नेदे, तेह स्वरूपने 8 नावूरे ॥ रमण उदयिक जम दृष्टिये जोतो, तजवो ते चित्त । लावुरे ॥ ज्ञा० ॥ ६ ॥ नय व्यवहार बीजो नेद जाणी, वस्तु स्वन्नावमां देखेरे ॥ उदयिक जावदृष्टि नहीं करता, 6 त्यां साधन शुद्ध लेखे रे ॥ ज्ञान० ॥ ७॥ निज उपयोगे १ परिक्षा कीजे, ज्ञानी संग करीजेरे ॥ अंतरदृष्टि अनुन्नवी नाणी, तेहy वचन सुणीजेर ॥ ज्ञान० ॥ ॥ ए नाणी संग क्षण नहीं तजवो, परमपूज्य चित्त नणवोरे ॥ श्रातम ऋद्धि अनंती देखामे, तीहां परमानंद वरवोरे॥ज्ञान ॥ ए ॥ परमानंद पद यात्म अन्नेदी, सहजानंद स्वन्नावरे ॥ तीहां मुक्ति ने चेतन तारी, कर्म रहित सद्नावे रे ॥ १ ॥ ज्ञा० ॥ १० ॥ ए साधन उपयोग नाणमां, रमतां सब्धि जागेरे ॥ ते कारण ज्ञान पूजी वंदी, ज्ञान शीतळ नाण मागेरे ॥ ज्ञान० ॥ ११॥ ॥ स्तवन ।। ३ जूं ॥ शत्रुजयतुं ॥ - सांनळजो मुनि संयम रागे ॥ ए देशी _____ जागोने मारा अंतर जामी, शत्रुजय गीरि चढिये रे॥ ६ weredressaloose Bre@roORaooooo Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RAGAR GROARROR GORAGAR ROVERGR IHARGEMERGma स्तवन अधि२. ११ मनुष्य जन्म लव सफळो कीजे, आदि जिणंद पाये पमी£ ये रे।जागोने मारा अंतर जामी०॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥ १ ॥१॥ जागोने चेतन जम वेहेचीने, निज स्वरूप निहा६ लोरे ॥ रत्न त्रयी चेतन गुण प्रगटे, समकित मूळ संना कोरे ॥ जा ॥२॥ जात्रा सफळ समकित गुण श्रादे, 6 संवर निर्जरा वाधे रे ॥ श्रद्धा नासन रमण उपयोगे, परमानंद पद साधेरे॥ जा० ॥ ३॥ सफळ जन्म शत्रुजय नेटये, निमित्त उपादान हेतु नेदे रे ॥त्यां विषय कषाय नव बीजक तजीए, नजीए श्री आदि जिणंद रे ॥ जागो ॥४॥ आदि जीणेसर मेरुदेवानंदन, नानीराया कुळचंद रे ॥ पूर्व नवाणुं वार शत्रुजय गीरि, समोसरीया जीनं रे ॥जागो हूँ ॥५॥ तीर्थपति गीरिराय सेवीने, सिद्धा साधु अनंत रे ॥ 3 ज्ञान शीतळ कहे तीरथ सेवो, गुण निष्पन्न महंत रे॥ ॥ जा० ॥६॥ ॥ स्तवना ॥ ४ धुं ॥ श्री गीरनारजीनु ॥ ॥ देशी ॥ उपर प्रमाणे बाळ बह्मचारी जिनंद पदधारी, सेवे सुरनर वरइंदारे ॥ गीरनार गीरि नेमि नाथजी विराजे, नेटतां टळे नव फंदारे ॥ बाळ बह्मचारी० ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ 9 बाळ ब्रह्मचारी विषय निवारी, निःस्नेही गुण रायारे ॥ ६ सचित्त पुद्गल लोग कर्म क्षीण जाणी, लेवा संयम सहे सावन आयारे ॥ बाळ ॥२॥ जिणंद पदधारी राग द्वेष ६ , निवारी, घाति कर्म क्षयकारीरे ॥ सहसावन केवळनाण Verses GRAN GROGRAGGIRRIGIGAR GARG Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवन मेघिसार. Poonamrogramme प्रगटावी, कल्याण मंगळ जयकारी रे ॥ बाळ ॥३॥ शादिक सुर असंख्य कोमी श्रावे, सम वसरण विरचावरे॥ 9 पर्षदाबार मळे तीहां वेगे, देशना जीनजी सुणावे रे ॥ बाळ ॥४॥ तहां गणधर पद स्थापे जिनजी, रचे ६ छादशांगी सिद्धांतरे ॥ केश्क बोधि बीज लान पामे, व्रत है लीये शांत दांत रे ॥ बाळ ॥ ५॥ श्रावक श्राविका साधु 6 साधवी, संघ चतुर्विध साचोरे ॥ आज्ञा नेमि जिणंदकी धारी, लहे परम पद जाचो रे ॥ बाळ ॥ ६ ॥ श्म तीर्थ स्थापे ते जीनजी, समुद्र विजय कुळचंद रे॥संसार सागर पार उतारे, नरनारीना वृंदरे ॥ बाळ ॥ ७॥ गीरनार । है गीरि नेमि नाथजी विराजे, यात्रा करो नरनारी रे ॥ सुकृत ए सम अवर न दुजो, मिथ्यात्व मोहनीवारी रे॥ बाळ०॥ ॥॥ नेटतां टळे नवफंदा ए साचो, आतमझाने राचो रे। शुकल शुकल पर्याय ग्रहीने, शुद्ध परिणतिमांनाचो रे ॥वा॥ ॥॥अयोगी गण अंत ग्रहीने, योगातित पद लीधोरे ॥ समश्रेणी के पांचमी टुंके, आत्म प्रदेश धन कीधो रे ॥बाळ० ॥ १० ॥ गीरनार गीरिपर नेमि जीणंदकी, कल्याणक त्रण १ नूमि गरे ॥ ज्ञान शीतळ गुणरागे फरसी, अंतर आतम 8 पारे ॥ बाळ ॥ ११ ॥ ॥ स्तवन ५ मुं तारंगाजीनुं । ॥ राग रामग्री ॥ देशी कमखानी ॥ हे पंथ जीनराजनो अजित महाराजनो, अंतर दृष्टिए है पूर दीगे । तेह अनुन्लव करी, दा नीज हित जाणी, ജാംഷ POPxomnarendraram AGAPAGAPAGrdGRAPOS Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સ્તવન અધિકાર. RAGrorenormore बाद साकर थकी अतिय मीगे ॥ पंथ जीनराजनो ॥ए , आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ पंथ नीज व्यनी वृत्तिये अनुनवे, अव्यपर अनुन्नव दूर करवो ॥ रमणता चेतन गुण पर्यायमां, साध्य साधन पणो तीहां वरवो ॥ पंथ० ॥२॥ संवर निर्जरा तेहने कीजीए लीजीए रत्नमयी सार मेवो, निर्विकल्प एकत्व अन्नेदमां, गुण पर्याय स्वन्नाव लेवो ॥ पंथ० ॥३॥ शुद्ध परिणतीए चेतना परिणमी, इंद्रि योगादि उपयोग खूटयो ॥ शत्रु मोहादि परिवार संयोगता, आत्म प्रदेश रहेवास त्रुटयो ॥ पंथ ॥४॥ मंगळ कल्याण आनंद पद संग्रही, सादि अनंत नंग सिद्धि गमी ॥ गुण पर्याय स्वन्नाव अनंतमां, आनंद लहरी विलसंत पामी ॥ पंथ० ॥ ५॥ परम पद पामवा पंथ ए. अनुनव्यो, स्थिर श्रद्धाए निरधार कीधो ॥ तारंग तीर्थे । अजित जिन नेटतां, रुदीयें अंतः अमृत पीधो ॥ पंथ० ॥६॥ कारणे कार्य निष्पत्ति कही साधना, उपयोग नाव सहाय वरतां ॥ ज्ञान शीतळ समकीतादि गुण संपजे, चित्त रमे रहस्य प्रमोद करतां ॥ पंथ० ॥ ७ ॥ ॥ स्तवन ॥ ६ हुँ । ॥नोयणी श्री महिनाथ जिनुं ॥ . GraGROGGAGROGre मलिनाथ शीव साथ सार्थवाद कहीएरे ॥ संघ १ 9 चलावे सिद्ध तीर्थ पति सहीये रे ॥ संघ चतुर्विध सम-है हे किती नवि लहीये रे ॥ अंतर उपयोगवंत चेतन गुण ७ PosdiseaseemaDARA AVM.. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ noon.com SAMIRRC ForesreGMRAGRARASIMRAGrexing १ ग्रहीये रे ॥ मनि ॥ ए आंकणी ॥१॥ चोथाथी चउद@ मा लगे संघ कहीये रे ॥ श्रावक श्राविका सार पंचम गण वहीएरे ॥ प्रमत्त अप्रमत साधु साधवी त्यागी लही ये रे ॥ पूरण आज्ञावंत व्यवहार मुख्य रहीये रे ॥ मलिक ६ ॥॥ उपरांत शुद्ध व्यवहार ने झानी ध्यानी रे॥ मुख्यता निश्चय साथ दशम अंत गणी रे ॥ त्यांथी यथा ख्यात संयमी मोह हानी रे॥ साधन आत्म अन्नेद अनंत PE गुण ज्ञानी रे ॥ मलिः ॥३॥ संघ चउन्नेद समुदायनो 6 प्रवाहेरे ॥ प्रयाणको मसिनाथ समाधि स्वन्नावे रे ॥ मार्गे शत्रु मेहेवासी तीहां आवे रे ॥ सैन्य तणो नही पार अतुल बळ दावे रे ॥ मलि ॥ ४॥ अनादि मिथ्यात अनंतानुबंधि नट बळीबारे ॥ देखी जिनपति साथ नाग्या थर गळीयारे ॥ शत्रु सैन्य मां थयुं जरा नरीया ) रे ॥ शुक्ल ध्यान ज्ञान आंचे मोह राय जळी रे ॥ महि० ॥ ५॥ दृष्टांत एक आपुं नबुं उपयोगे रे ॥ काष्टे उधे वळगे जिम संयोगे रे ॥ काष्ट सत्ता प्रगटे जदा तव नागे रे ॥ अग्नि जोर तीहां वाधे उधेश नही लागे १ रे॥ मल्लि० ॥६॥ उपनय करशं तेहनो चित्त देरे ॥ अज्ञान योगे कर्म ग्रहे गुण खोरे ॥ जीवाजीव सत्ता १ निन्न जाणतां जूदारे, दायक लब्धि प्रगटयां कर्म जळा६ रे ॥ महिः ॥ ७॥ चरण यथाख्यात पाम्या अंत गण १ दशमे रे, त्रण कर्मनो घात क्षीण मोह दुवा दशमे रे ॥ हे शुद्ध परिणति रीफे चेतनराय वशमे रे ॥ अनंत चतुष्टी १ (२४२) GORAGAGRAGIRAGrnar GARAGAR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ROVERGARGGEROGRIDGORGram સ્તવન અધિકાર, GROGRAMGAGRAM उद्योत परमानंद रश्मे रे ॥ म० ॥ ॥ सैलेशि करण 9 स्थिर धुन पुद्गल योग रंधीरे ॥ योगातीत स्वन्नाव सहे १ तब शुद्धि रे ॥नाग एक पोलाण घटे घन नाग छीरे ॥ है एकं समय समश्रेणी लोकाग्रे सिद्धिरे ॥ मति ॥ एं॥ ६ गुणपर्याय स्वन्नाव अनंत रमंत रे॥ निज निज व्यक्ति निन्न परमानंदवंतरे ॥ आनंद लहरी विलसंत नंग सादि-6 नंत रे ॥ निमित्त कारण महिनाथ नंग सादि संत रे॥3 महिः ॥ १० ॥ सार्थवाह सिद्ध साथ नाख्यो सिद्धांते रे॥ गायो निज गुण हेते सुणो सवि संतरे ॥ तरण तारण जिन जहाज निमित्त बळवंतरे ॥ उपादान संयोगे सेवो गुणवंतरे ॥ मलिः ॥११॥ प्रत्नावतीनो नंद सेवे सुर वृंदरे॥ र कुन नरपति कुळ चंद पूजे पाय नरिंदरे। जन्म महोच्छव सुर इंद्र करे मेरु गीरीदरे ॥उलट अंग न माय प्रसन्न चित्त चंदरे । म.१२ सहस पंचावन आयुवरण नील कायरे॥पंचवीस धनुष्य प्रमाण, लंबन कळश पायरे ॥ मिथिला नयरीए जन्मीया जीनरायरे ॥ समेतशीखर निर्वाण कर्मथी मुकायरे ॥ मबि० ॥ १३ ॥ ओगणीसमो जिनेंड चव्रत धारी रे ॥ बद्मस्थ काळ दीन एक घातिकर्म बारी रे ॥ केवळनाण दर्शण पामीने उपगारी रे ॥ बोधि बीज दातारी शीव सुखकारीरे ॥ मलिः ॥ १४ ॥ सार्थवाह सिद्ध साथ यथारथ कीधोरे ॥ आतमरूप नीहाळी अनुन्नव पीधो रे॥ 9 नोयणी नगरमां वीराजे दर्शन लान्न लीधो रे ॥ ज्ञान , शीतळ ए साथ मदयां काज सिद्धोरे ॥ मलिः ॥ १५ ॥ HEALBERemixossor @reareArore CororoMONOMOEMBread Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Doremove · स्तवन अधि४२. ॥ स्तवन ७ मुं श्री ऋषभदेव स्वामीनुं ॥ . . ॥ प्रणमुं पद अढारमुरे लाल ॥ ए देशी ॥ आदि जिणेश्वर पूजीयेर लाल, स्नान करी पेहेरीये , चीररे ॥ केशरीया लाल ॥ जीन मुखाने निहाळीएरे लाल, 5 अंगे मोर पीली कीधरे ॥ केशरीया लाल ॥ आदि जिणेश्वर है पूजीयेरे लाल ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥ १॥ त्रिकरणयोगे 6 स्थिरता करी रे लाल ॥ करीये न अन्य वीचाररे ॥ के० ॥ ३ उपयोग स्वरूपें जोमीयेरे लाल ॥ रमण घटंतर धाररे ॥ के० ॥ आ० ॥२॥ पंचामृते पखाळीयेंरे लाल ॥ करीये जळ अनिषेकरे ॥ के० ॥ वाळाकुंची रुकी कीजीयेरे लाल जळधारा मामीनो विवेकरे ॥ के ॥ आ ॥३॥ अंग लोहणां त्रण कीजीये रे लाल॥ बरास लेप अंगे थायरे॥ के अत्तर केवमो गुलाबशुरे लाल ॥ पूजीये त्रीजुवनरायरे ॥के० ॥ ० ॥४॥धूपदशांग उखेवीये रे लाल ॥ केशर जाउँ घोळी नेळरे ।। के० ॥ मृगमद कस्तुरी तेहमारे लाल ॥ अरचो नव अंगे रंगरेलरे ॥ के० ॥ आ० ॥ ५ ॥ पुष्प चंपोने वळी मोगरो रे लाल ॥ जाइ जुश्ने गुलाबरे ॥ के० ॥ हार उत्तम ताजा पुष्पनारे लाल ॥ उवो प्रजु कंठे नरी बाबरे ॥ के० ॥ श्रा० ॥६॥ दोय शिखानो कीजे दीवमोरे लाल ॥ पूरीये मांही ताजु घृतरे ॥ के ॥ अखंग दीवो प्रनु श्रागळे रे लाल ॥ राखीये सदा नक्तिवंतरे ॥ के० ॥ श्रा० ॥ ७॥ अक्षत अणी शुद्ध उजळारे लाल ॥ साथीयो कीजे नंदावर्त रे ॥ के० ॥ उपर श्रीफळो मूकीने रे लाल ॥ (२४४) MGAGROGRaareGroGre Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સ્તવન અધિકાર, SonawanenorrowrowerGAR 9 मोक्ष फळ मागो महंतरे ॥ के० ॥ श्रा० ॥ नैवेद्य सुख मी बहु जातनी रे लाल ॥ थाळ नरीमुको सनमुखरे॥के०१ 9 अणहारी पद जाचीयेरे लाल ॥ सहीये अव्यावाध सुखरे है ॥ के ॥ आ० ॥ ए ॥ इत्यादि व्यपूजा करी रे लाल ॥ 5 करो नाटक गीत ज्ञानरे ॥ के ॥ झान शीतळ नक्ति है गुणे रे लाल ॥ लहीये स्वर्ग एक तानरे॥ के०॥आ॥१०॥ ॥ स्तवन ८ मुं श्री शांतिनाथर्नु । मनमोहनजी जगतात वात सुणो जिनराजजीरे ए देशी अचिरासुत शांति जिणंद, शांति स्वरूपने दाखवे रे॥ चालो सुणीये वचन रसाळ, मनुष्य जन्म सफळो हुवे रे॥ अचिरासुत शांति जिणंद ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ शांति अव्यन्नाव उन्नेद, परथम प्रव्य वखाणतारे॥ त्याग आश्रव अग्नि विचार, हिंसादि पंच नीवारतारे ॥अचिरा० ॥२॥ हवे नाव शांति जब पाय, रागद्वेष मोह जमता टळे रे ॥ तीहां लाधे चरण यथाख्यात, वीतराग गणे चेतन चळे रे ॥ अचि० ॥ ३॥ एम शांति रूप अनुप, जीन वयणे करी जाणिये रे ॥ ते आपे सिद्ध पद सार, त्यां सुख अनंतु मन आणीये रे ॥ अचि० ॥ ४॥ करो नविजन वचन प्रतित, शुद्ध यथारथ एम सदहोरे ॥ तेथी पामशो अविचळ ऋद्ध, शांतिपणुं ज्ञान शीतळ ग्रहोरे अचि० ॥५॥ GGora GrahaoraGRGG. Moore answerPARIYAR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DNOVOTES સ્તવન અધિકાર. ॥ स्तवन ॥ ९ मुं॥ ॥ श्री कुंथुनाथजीनुं ॥ ॥ए देशी॥ कुंथुनाथ दुःख कापो दयाळु धणी, अनंत चतुष्टयी आपो दयालु धणी॥ श्रव्याबाध सुख आवेदकर्म आठ क्ष्य आवे॥ द०॥ कुंथुनाथ दुःख कापो॥दः॥ एत्रांकणी॥6 गाथा ॥१॥ तरण तारण तुमे साचा॥दा माऊसमान सत्य वाचा॥द०॥ संसार सागर तारो ॥ द॥ जन्म मरण नय वारो॥द०॥ कुंथु०॥॥ अजर अमर सिद्धनावे॥दानिरंजन पदपावे ॥ द० ॥ परमानंद पद सोश ॥द०॥ सादि अनंत नंग हो ॥ द० ॥ कुंथु० ॥ ३ ॥ एह मनोरथ मारो ॥ द० ॥ निमित्त कारण डे तमारो ॥ द० ॥ कारणे कारज थावे ॥ दः ॥ एम सिद्धांती गावे ॥ द० ॥ कुंथु० ॥४॥ एम श्रद्धा शुद्ध कीधी ॥ द० ॥ ज्ञान समकित ऋद्धि सीधी ॥ द० ॥ ज्ञान शीतळ नीज नावे ॥ द० ॥ शीव सुख कारज पावे ॥ द० ॥ कुंथु० ॥५॥ स्तवन ॥ १०॥ मुं॥ ॥ श्री मलिनाथजीनुं ॥ ॥ ढाळ ॥ १ ॥ ली ॥ काज सिध्यां सकळ हवे सार ॥ ए देशी॥ मलिनाथजी शिवपंथे चाले, तीहां मोहादि आवीने खाळे ॥ बेहु बळीआ सैन्य सज कीg, हथियार हाथमां ई लीधुं ॥ १ ॥ सामा सामी रोपे रणस्थंन, लमवाने कीधो ६ ANGRAGrewaries GAGrd GrdGrore (२४६) (8. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HAIRMIRAGGERGGram तवन २. ६ आरंन ॥ सौ सउनुं वीर्य दाखे, तेमां कचाश कोइ न है १ राखे ॥२॥ अन्यो अन्य शत्रु नाव, सन सजना मनने १ राव ॥ बेहु बाजु सुन्नट अति बळिया, सामासामी नजीके है मळीया ॥ ३॥ तीहां मति तीर्थपति वोल्या, शुं करवा मरो नागो उदया ॥ तीहां मोहराय खेदे नराणो॥ बोल्यो । बेशी रहे तुं गनोमानो ॥ ४ ॥जो में तने नाच नचाव्यो, जमरूप करीने नमाव्यो ॥ मुज आणामां अनंत काळ वसीयो, त्यांथी तुं आज दीसे ने खसी ॥ ५॥ पूरवना दिवस तुं नूल्यो, तने कवजे करुंदुं शुं फुल्यो ॥ तुज अधि पलकमां पमा, हेममांही हुँ तने बलातुं ॥ ६॥ तुज जेवा में कंगाल कीधा, पकी निगोदने दीधा ॥ लोकाधिपति मुजनाम, त्रण लोक अमाझं गाम ॥ ७ ॥ मुज आज्ञा को न लोपे, लोपे तो चढायूँ हुँ तोपे ॥ इत्यादि घणा बोल बोल्या, मति वळतुं कहे सुण उल्या ॥ ७ ॥ तें का ते सरवे साचुं, तुं रुग्यो मुके नही काचुं ॥ तुं निर्दय हृदये कठोर, अनिमानी तुंही निठोर ॥ ए ॥ नव १ स्थिति जेनी न पाकी, तेने दुःख दीये तुं एकाकी ॥ मा हारे तो स्थीति हवे पाकी, नही चाले तारूं तुं नापाकी है ॥ १० ॥ कोश् कोश्नु कवू नही माने, वळी वचन सुणे नही काने ॥ सुन्नटो जामा फुले, पराक्रम जो पर्वत ध्रुजे ॥ ११ ॥ रणनूमिये संग्राम थावे, सामासामी शस्त्रो वर5 सावे ॥ सावचेत आळसु नही को, खान पान दीये पक्ष है हे दोश् ॥ १५ ॥ ए लमा अंतरमां थावे, वीरुदावलि बेहु ६ Hansranewsagersnews SANBOGRAMMore SRGrahmanGLGIRGranardaareGranardandrames www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Grores BAGRAGre KNORGASMICROGRana तपन भधि२. १ जण गावे ॥ हवे आगळ जे कांइ थावे, ज्ञान शीतळ , कहेशे ते नावे ॥ १३ ॥ ॥ ढाळ २ जी॥ ॥ देशी कमखानी ॥ ___ मशिनाथ जिनेंद्र देव उंगणीसमा, अतुळी वळ मुके है ई जेम उमे फुदो ॥ ज्ञान गुण निर्मलो, स्वरूपे प्रकाशीयो, 6 जासियो जीव पुद्गल जूदो ॥ मलिनाथ जिनें० ॥ ए. श्रांकणी ॥ गाथा ॥ १॥ शुद्ध श्रद्धा करी, विकलता पर-6 हरी, प्रगट समकित जीम गयणे चंदो ॥ नागीयो लागीयो, खम्ग चउधारनो, मिथ्यात्व वंश कीधो निकंदो ॥ म० ॥ हूँ ॥२॥ उपशम सुन्नट तव समकित जोमी, मोहनो स्थन रण पामे हेगे ॥ कषाय चउ चोकमी सोळ दबावीया, तीहां हुवो आतमा शीतळ जेगे ॥ म० ॥ ३॥ शियळ सुन्नट तिहां खेलतो मेलतो, कंदर्प चोरने बाण तीखो ॥ ते मुवो त्यां पमयो नूमिपर रमवमे, लविजनो साधना एम शीखो ॥ म० ॥ ४॥ वैराग सुलट तीहां मुजतो वुझतो, शत्रु सनमुख आगळ श्रावे ॥ ज्ञान कटार मारे बहु बळ करी, आशादि षट तीहां अंत थावे ॥ म ॥॥ ५ ॥ नाव श्रुत झान सुनट बळ गाजतो ॥ दीपे दीनकर जेम ) पूर्व दीशि ॥ ए हणे ते कहुं नीमादिक सुन्नटने ॥ जाखे एम जगगुरु ए वचन वीशी ॥ मसि० ॥ ६ ॥ क्षय उपशम जिहां प्रगट चेतन तीहां, विस्तारे चेतना हे रुप दाखे ॥ वीर्य तीहां आवीयो, बळ करी मारीयो, चपळ HinmeWScornerBOAN Darporner GNGIG Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સ્તવન અધિકાર. RAGHIGG Seck 9 मनने तीहां रहीने पाखे ॥ म० ॥ ॥ इंद्रि निग्रह सुन्नट ? चित्त चोखुं करी, स्थीर उपयोगे तीहां फूझे बुझे । तप तीहां आवियो हाथ देखावीयो, असंयम नूमि पम्यो थरथर ध्रुजे ॥ म० ॥ ७ ॥ धर्म शुकल ध्याइए, तुरंग गति 3 पाश्ए, ध्यान ए सुन्नटोमां शान मोटो ॥ ते हणे आरत. के रोड दोय सुन्नटने, वचन ए सत्य के नहीं ए खोटो ॥ म० ॥ ए ॥ नाव संवर सुन्नट आतम ज्ञानमां, मुझे बुझे 6 अति वीर्य दाखे ॥ते हणे आश्रव शुन्न अशुनने, निरमळ 6 चेतनारूप चाखे ॥ म० ॥ १० ॥ निर्जरानाव सुन्नट बळ गाजतो, राजतो ज्ञानमां शुद्ध नावे ॥ पूर्व बंध कापतो है अजीवने आपतो, मुक्ति पंथ चालतो मंगल गावे ॥ म० ॥ ११॥ अनुन्नव ज्ञान सुन्नट निज रूपमां, मुझे बुझे निरजय डे मनमां ॥ वीर्य अधिको धरे जमरूप तीहां मरे, निर्मळता करे मूळ रूपमां ॥ म० ॥ १२ ॥ सुन्नटो इत्यादि र अधिक बळे फूझता, सिंह नाद करता ए धोमे ॥ मोह १ तीहां नागी पुंठ देखावीयो, ज्ञान शीतळ फरी युद्ध मां ॥ म० ॥ १३॥ ढाल ॥ ३ ॥जी॥ करजोमी कहे कामनी ललना ॥ ए देशी. ॥ मद्विनाथने मोह आविया, ललना, लालाहो रणनू. मिये कुम्वा काज ॥ ए युद्ध सारे ललना ॥ द्वेष गजेंद्र M) उपरे ललना, लालाहो बेठगे जे मोह राज्य ॥ ए० ॥१॥ ए आंकणी॥ राग केशरी पुत्र साथे लक्ष ललना, लालाहो १ HisangmainExersarera GOOGGREGreeGGreena Grenoragarior Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवन (५२. पोते चढी व्यो त्यांही ॥ ए० ॥ तेना सामा मसि जिनपति ललना, लालाहो आवे हरख उहि ॥ ए०॥२॥ श्रद्धा अष्टापद बेसीया ललना, लालाहो साथे अप्रमत्त ज्ञान पुत्र ॥ ए० ॥ नारंग पक्षी सो सचेत हे ललना, लालाहो सुंपे तेने घरसूत्र ॥ ए० ॥३॥ मल्या सामासामी एकग ललना, लालाहो तीहां मार्यो मलीये मोहराय ॥ए॥ महा जोरावर जे हुतो ललना, लालाहो ते एक लीलाये 6 हणाय ॥ ए० ॥ ४ ॥ रागद्वेष मुथा ते समे खलना, लालाहो अशुद्ध परिणति त्यां बेदाय ॥ ए ॥ चरण यथाख्यात पामीया ललना, लालाहो पूरण शुद्ध परिणति थाय ॥ ए. ॥ ५॥ वीतराग गुणगणे बारमे ललना, लालाहो आव्या मवि जिणंद ॥ ए० ॥ तीहां शत्रु त्रण सामा आवता ललना, लालाहो तेने मार्या तीहां प्रगटयो आणंद ॥ ए० ॥६॥ अनंत चतुष्टी प्रगट यश् ललना, लालाहो गुणगणुं त्यां तेर, सार ॥ ए० ॥ देवो समवसरण रचे ल. लना, लालाहो पर्षदा मीले तीहां बार ॥ ए० ॥ ७॥ पाद पीठे महीजी विराजता ललना, लालाहो चउ मुखे देशना दीये सार ॥ ए० ॥ उपजे वीणसे स्थीर रहे ललना, लालाहो सुणी करवो वस्तु विचार ॥ ए० ॥ ॥ ए विचार चिंतक १ जे थया ललना, लालाहो ते पाम्या बोधने बीज ॥ ए॥ ज्ञान वैरागी ते जाणीये ललना, लालाहो ब्रत उचरे लावी ३ रीम ॥ ए० ॥ ए ॥ केश्क ग्रहे व्रत देशथी सलना, लालाहो ६ केश्क सर्व विरती थाय ॥ ए० ॥ सर्व विरती ते साधु साPLEARNINiscaredEMBER REGarmeronearera BureGIGARAGrenamaraGornGSGARH Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સ્તવન અધિકાર, AnciS perHMGar धवी ललना, लालाहो देशविरति श्रावक श्राविकाय ॥ ए. ॥ १०॥ एम संघ चविध स्थापे मसिजी ललना, लाला-3 हो प्रथम स्थापे गणधरराय ॥ ए० ॥ द्वादशांगी सूत्र गगधर रचे ललना, लालाहो लब्धिये पूर्ण पद थाय ॥ एक ॥ ११ ॥ तीहां तीर्थ स्थापन थयुं ललना, लालाहो ए तीर्थ है पति मन्विनाथ ॥ ए॥ जिननाम कर्म उदय थयो ललना, सालाहो तेने खेरवे ए जगत्रनो नाथ ॥ ए० ॥ १२ ॥ अंते हैं करण सैलेशी करे ललना, लालाहो तीहां श्राय योगनो रोध ॥ ए० ॥ आव्या अयोगी गण चउदमे ललना, लालाहो तीहां टाल्यो अघातिनो विरोध ॥ ए० ॥ १३ ॥ शत्र समुदायनो क्ष्य थयो ललना, लालाहो त्यां नागी उदारिकादी हेम ॥ ए० ॥ परवत सम ढंकण हतुं ललना, लालाहो ते त्रुटी आज कार्मण तेम ॥ ए० ॥ १४ ॥ बोम्यु शरीर तेना मानथी ललना, लालाहो घटे एक नाग अवहै गाह ॥ ए॥ निवम घन दोय नागे रच्यो ललना, लालाहो ते कहीए अटळ अवगाह ॥ एक ॥ १५ ॥ एक समय सम श्रेणीये ललना, लालाहो पोत्या सिद्ध लोकंत ॥ ए० ॥ १ सादि अनंत स्थिति तीहां लखना, लालाहो सिद्ध वधुनो प्यारो ए कंत ॥ ए ॥ १६ ॥ एम युद्ध अंतररूपे झूमशं ललना, लालाहो तीहां करशुं शत्रु विनाश ॥ ए० ॥ ए शक्ति मखिजी मने आपजो ललना, लालाहो पूरजो ज्ञान ॐ शीतळनी आशा ॥ ए० ॥ १७ ॥ PROGRGramBhartaramroGaire Paneerizaerone Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ...तवन मा . ॥ कळश॥ Srawasakarmorang . ध्यायो ध्यायोरे मेंतो मविजिणंदने ध्यायो, लमा 9) दाखी त्यां साधना राखी, ए अजूत ज्ञान सवायो॥ स्थिर उपयोगे तुं कुछयो बुझयो, तीहां अव्य नाव शत्रु हणायो रे ॥ मेंतो मविजिणंदने ध्यायो॥ ए आंकणी ॥ ध्यायो ध्यायो रे ध्यान आयोरे, एक दिन बद्मस्थ कहायो 5 ॥ गाथा ॥१॥ मूळ रूप तीहां तद्वत की, अनुन्नव ज्ञान है संयोग॥ अप्रमत्तादि श्रेणी आरोही, टाल्या उपाधि थोक रोगरे ॥ मेंतो ॥२॥ दायक लब्धि अनंती पाम्या, तेमां है नव श्हां दार्खा ॥ प्रथम वेदक समकित गुणयोगे, क्षायक 6 समकित जा रे ॥ मेंतो० ॥ ३॥ बीजुं क्षायक चारित्र खीg, तीहां मोह उनमूलन कीg ॥ केवळनाण दर्शण थावरण क्षय, केवळनाण दर्शण सीधुं रे ॥ मेंतो० ॥४॥ दानादि लब्धि पांच आवे, त्यां अंतराय कर्म क्ष्य थावे॥ ए साते गण तेरमे साधे, एम नव लब्धि कहावे रे ॥मेंतो० ॥५॥ ए लब्धियें अरिहंत कहीये, त्यांथी सिद्धपद लहीए ॥ एम साधना जे कोश् साधे, तेना दास थ रही. येरे ॥ मेंतो० ॥ ६ ॥ मनुष्य जन्म आज सफळो मार्नु, मन स्थिर घरमां आणुं ॥ ज्ञान शीतळ श्रद्धाए नरीयो, ए शीवपंथ साधन टाणुं रे ॥ मेंतो० ॥ ७॥ है. संपूर्ण सर्व गाथा ५० . ManoranGAR GARAGAGRIG HASKRRIERSPON Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BreareBORIES तवन अधि४२. ॥ स्तवन ११ मुं मुनिसुव्रत स्वामीनुं ॥ ॥ढाळ : ली॥ प्रथम गोवाळतणा नवेजी ॥ ए देशी ॥ मुनिसुव्रत जिन वीसमाजी, पाळे महाव्रत पांच ॥ अव्य नाव दोय नेदशुंजी, तेमां नहीं खळ खांच ॥ नविकजन वंदो ए जगगुरुराय ॥ सेव्यां सिद्ध पद थाय ॥ न. विकजन० ॥ १॥ ए आंकणी ॥ ते दाखं अनुन्नव करीजी, ग्रहजो नविजन सार ॥ साधन ए सम को नहींजी, आ तमने हितकार ॥ नविक० ॥ २॥ प्रथम महाव्रत उच्चरेजी, ५ प्राणातिपात वीरमण ॥ सर्व जीवनुं रक्षण करेजी, न हणे है कोश्ना प्राण ॥ नविकजन ॥ ३॥ बीजुं महाव्रत उच्चरेजी, मृषावाद बीरमण ॥ कुठं वचन बोले नहींजी, ए बाज्य अग्निंतर जाण ॥ नविक० ॥ ४ ॥ त्रीजुं महावत उच्चरेजी, अदत्तादान वीरमण ॥ अण दीवे लेधे नहींजी, सळी दंत सोधन जाण ॥ नविक० ॥ ५ ॥ चोथु महाव्रत उच्चरेजी, करे सर्व स्त्रीनो त्याग ॥ रूप कांति निरखे नहीं जी, अचिंतक विषय अराग ॥ नविकः ॥ ६ ॥ पांचम महाव्रत उच्चरेजी, नवविध परिग्रह त्याग ॥ कोमी पास राखे नहींजी, ए निर्लोनी लीयो वैराग ॥ नविक० ॥ ७ ॥ तुं व्रत ग्रहे नबुजी, रात्रि जोजन परिहार ॥ न करे आ9 हार चल जातनोजी, पचखाण करे चनविहार ॥ नविक०४ ६ ॥ ॥ अव्य वीरतिए मुनितणीजी, दाखी आतम हेत ॥ १ ७) ज्ञान शीतळ करीनाखशुजी, नाव वीरति संकेत ॥ & विक० ॥ ए॥ Panoransexisrore Grandarmera GRAMMARRI Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवन माघार. Sorrowroorg sanswerGBIRGreators ॥ ढाळ २ जी ॥ ॥ऋषनजी अमकुं तारोरे ॥ ए दशे।॥ मुनिसुव्रत नवि लावमां रे, समजो चतुर सुजाण ॥ ज्ञानादिक शुद्ध चेतनारे, ए जीवना डे नाव प्राण ॥ सुव्रतमुनि ॥ नावो निज स्वरूप ॥ ए आंकणी ॥ अनुनव मंदिरमाही, सुव्रतमुनि, नावो निज स्वरूप ॥ गाथा ॥ १॥ ए नाव प्राण रक्षण जाणी रे, हणे मिथ्यात्व अज्ञान ॥ रागद्वेष मोहादि हणेरे, तीहां प्रगटे केवळज्ञान ॥ सु. व्रतमुनिः ॥२॥ मृषावादने टाळवारे, जाणो वस्तु स्वन्नाव है ६ ॥ गुणपर्यायने जाणवारे, नेद ज्ञान घट लाव ॥ सुव्रतमुनिः . ॥३॥ श्रदत्तादान तजवा जणीरे, नावे संवर नाव ॥ आश्रव शुन्नाशुन ग्रहे नहीं रे, ए उपयोगी मुनिराव ॥6 ॥ सुत्रतः ॥ ४ ॥ मैथुन तजशुं लावधीरे, करी निज परिणति शुद्ध ॥ पर परिणतिने बेदवारे ॥ तत्पर डे ए बुछ॥ ॥ सुव्रतमुनि ॥५॥ परिग्रह ग्रहे नहीं रे, ग्रहे मूळ स्वरूप ॥ कर्मबंध तोमे तीहां रे, अनुलवे वस्तु अरूप ॥ सुव्रतमनि० ॥ ६ ॥ पुद्गल गुण जोगी नहीं रे, निज गुण लोगी सदाय ॥ज्ञानानंदी आतमारे, क्लेश न व्यापे कदाय ॥ सुत्रतमुनि० ॥ ७॥ ए नाव विरति मुक्ति दियेरे। जगगुरु नाखे एम ॥ ज्ञान शीतळ नूले नहीं रे, कीधी श्रद्धा प्रतित वळी प्रेम ॥ सुत्रत ॥ ७ ॥ इति मुनिसुव्रत स्वामीनु स्तबन. BreMBEROMoons DEMONOMINoors Brearrangawarana Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ LEVINODNESDESDeogarl स्तवन अपिडा. ॥ स्तवन १२ मुं श्री नमिनाथजी । ॥ अनिनव ज्ञान नणो मुदारे लाल ॥ ए देशी ॥ नमि जिनपति गुण गाएरे लाल, पाश्ए जीव गुण झानरे ॥ ९ वारी लाल ॥ निज शुद्ध रूप निहाळीएरे साल, कीजीये उपयोगे ध्यानरे ॥ हुँ वारी लाल ॥ नमि जिनपति गुण गाएरे लाल ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ ७ पर्यायमय उच्य एकतारे लाल, उपजे वीणसे अने ध्रुवरे । ॥ हुं वारी० ॥ पर्यायें उपजेने वीणसेर लाल, द्रव्ये ध्रुव स-6 दीवरे ॥ हुँ वारी० ॥ नमि०॥२॥ ए त्रण लक्षण षट जाणीयेरे लाल, एक जीव पांच अजीवरे ॥ कुंवारी० ॥ स्व नाव पर्याये चउ शुद्धतारे लाल, बे विनावे पुद्गल जीवरे ३॥ हुंवारी० ॥ नमि० ॥ ३ ॥ पुद्गल शुद्ध परमाणुउरे लाल, मीले विखरे खंध अशुद्धरे ॥ ढुं० ॥ जीव संसारी कर्मबंधर धीरे लाल, गति पर्यायें अशुद्धरे ॥ हुं० ॥ नमि० ॥॥ गति (पर्याय ते काया सहीरे लाल, जोग इंखिए पर नावरे॥हुं॥ र तेना संगे उपयोगी चेतनारे लाल, रागद्वेष परिणमे वि नावरे ॥ हुं० ॥ नमि० ॥ ५ ॥ ए संसार स्थिर कारण सहीरे लाल, परनाव तेह निमित्तरे ॥ ढुंवारी० ॥ उपादान रागडेष चेतनारे लाल, तेथी कर्म बंध सदीव अहितरे ॥ हुँ ॥ नमिः ॥ ६ ॥ ए परसंगे संसार दाखीयोरे लाल, हवे ] @ निज संगे शिवपुर जायरे॥ हुं० अनुन्नव योगे वर्गुबुरे लाल, १ स्थिरता मनवच कायरे ॥ हुं० ॥ नमि० ॥ ७॥ जोग इंति धारे हुश् चेतनारे लाल, ए उपयोग अशुद्ध अनादरे ॥हुं० werGGranardarGGrearrorecordGGAR ( २५५) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સ્તવન અધિકાર, HOM ॥ ते पलटावी स्वरूपे जोनीये रे लाल, त्यां घटतर अनुनय है आल्हादरे ॥हुं.॥नमि.॥॥ थाय वृद्धि क्षय उपशम ज्ञाननीरे लाल, वीर्य वृद्धि अनंतरे ॥ हुं० ॥ अनुन्नवे शुद्ध स्वरूपनेरे ६ लाल, लहे परम समाधि महंतरे ॥ हुं० ॥ नमिः ॥ ए॥ ६ उपाधि जोग सर्व बुटीयो रे लाल, हुवा निर्मळ गुण पर्यायरे से ॥ हुँ० ॥ उपयोगे प्रवृत्ति थरे लाल, त्यां परमानंद वरसायरे ॥ हुं० ॥ नमि० ॥ १० ॥ ए नेद ज्ञानयोग वर्णव्योरे लाल, क्षयउपशम नाव ज्ञानरे ॥ हुं० ॥ पर्यायार्थक नय , साधनारे लाल, द्रव्यार्थके एक तानरे ॥ हुँ ॥ नमि० ॥ ॥ ११ ॥ श्हां अनिन्न द्रव्य गुण पजवारे लाल, ज्ञान अनेद स्वरूपरे ॥ हुं० ॥ क्षय उपशम मोहनो त्यां बेदीयो रे लाल, उन्मूलन थाय मोहनूपरे ॥ हुं० ॥ नमि ॥ १५ ॥ अशुद्ध परिणति बेदी शुद्धमां रे लाल, चरण यथाख्यात वासरे ॥ हुं० ॥ वीतराग वीण मोह बारमेर लाल, त्यां त्रण कर्म बुटे पासरे ॥ हुँ० ॥ नमि० ॥ १३ ॥ केवलनाण १ दर्शण प्रगटेरे लाल, अरिहंत तेरमे वासरे ॥ दु० ॥ दान लान नोग उपनोगनोरे लाल, स्वरूपे वीर्य स्फुरणा तासरे ॥ ९० ॥ नमि० ॥ १४ ॥ ए परमानंद पद मोटकोरे लाल, आयुष अंते योग रोधरे ॥ हुं० ॥ सैलेशि करणे अकंपतारे साल, अयोगी अकर्मी दुबा सिद्धरे ॥ हुं० नमि० ॥ १५ ॥ ६ ज्योति स्वरूपी ए अरूपतारे लाल, अनंत गुण मणि खाणरे , 5 ॥हुं० ॥ अव्याबाध सुख अविनाशतारे लाल, ज्ञान शीतळ , 4 ए सिद्धनां वखाणरे ॥ ९० ॥ नमि० ॥१६॥ Hereasanase GrougrBroRSAGARGrenorar Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवन अधि२. Pr& GrenorreGAR GROO स्तवन ॥ १३ ॥ मुं ॥ श्री नेमिनाथ जीननु ॥ ॥ साधुजी समता आदरो ॥ ए देशी ॥ नेमिनाथजीनी जान नवी सांनळो, आवे परणवा ६ करी बहु गठ मेरे लाल हय गय रथ शणगारीया, पगपाळा , हलमल नाउ मेरे लाल ॥ नेमिनाथजीनी जान० ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥ १ ॥ जादववंश सरवे सज थया, दीपे 9 वस्त्र आजुषण युक्त ॥ मे० ॥ बाळ तरुण वृद्ध आविया, लइ राजऋद्धि नली युक्त ॥ मेर० ॥ नेमि ॥ २ ॥ कृष्ण नरें गज उपरे, शोने जेम तारामां चंड ॥ मेरे० ॥ तेथी 6 अधिक शोन्ने नेमिजी, रथ बेग अधिक आणंद ॥ मेरे ॥ ॥नेमिः॥३॥मणी आदि जमित आनूषणो,राजे कोट केहेम कांहुं कान ॥ मेरे ॥ वस्त्र अमुलख अंगमां, शेलां मंमिल जामो जरियान ॥ मेरेः ॥ नेमि० ॥ ४ ॥ दीनकर मुख जो आवीयो, हुश्रा नेमि अधिक तेजवान ॥ मेरे ॥ मोती अमुलख घणां बांगले, चावे. बीहुं नागरवेल पान ॥ मेरे ॥ नेमि॥ ॥ ५ ॥ स्त्री वृंद उलटनरे, गावे मंगलिक गीत विनित ॥ मेरे ॥ मोहित शब्द तीहां वापरे, सुस्वर विकल रंगीत ॥ मेरे० ॥ नेमि० ॥ ६॥ वाजिंत्र वाजे अति घणां, मामा बंदुकी करे अवाज ॥ मेरे ॥ उंट घोमे नगारां गमगमे, दारुखानुं उमे रीझ काज ॥ मेरे० ॥ नेमि ॥७॥ अश्व अनेक खेलावता, गज चढी । महा ऋद्धिवंत ॥ मेरे०॥ १ केश्क रथमां वेशीया, पगपाळा अनेक न गणंत ॥ मेरे ॥ नेमिः ॥ ॥ पालखी मेना अति घणा, तेमां बेग के _ (२५७ ) MAMMAR ३२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ords mire SudareeMERAGRAGreg स्तन अधिकार. 9) पुन्य स्थंन्न ॥ मेरेः ॥ समुह विजयराय शिवादेवी, नेमि ? मात तात निरदन ॥ मेरे ॥ नेमिः ॥ ५ ॥ ए जान जोश्ने दील रीजीयां, नरलव सफळ समजंत ॥ मेरेलाल ॥ Q इत्यादिक गठ श्रति घणो, एक जीने न जाय कहंत ॥ १ मेरे ॥ नेमि ॥ १० ॥ श्राव्या उग्रसेन घर आंगणे, जान । स्थंनी हरख अपार ॥ मेर० ॥ ज्ञान शीतळ घट नेमीने, राग रंग पतंग संसार ॥ मेरे ॥ नेमि० ॥ ११ ॥ ॥ ढाळ २ जी॥ ॥ एक दिवस विषे नेमिकुमर निज मित्र संघाथे श्रावे ए देशी ॥ आज हरख वशे राजुल सखीयो बूंदे गोखे आवे ॥ नेमि मुख जुए बोले वचन सुणे सखी हरख न मावे ॥ १ ए आंकणी ॥ अंतरंग अमीरस वर साथे, ए परणे मुने एवी तृषा २ ॥ एथी अधिक नहीं जगमां सरज्या २ ॥ आज० ॥ नेमि ॥ १॥ सखी कहे ए वरणे काळो, तेने रुपाळो तुमे शुं नाळो ॥ तुमने कीम ए लागे वहालो ॥ आज ॥ नेमिः ॥२॥ तीहां राजुल सखीयोने कहेवे, काळी कस्तुरी कीकी रेहेवे ॥ एम गुणवंत वस्तु ते काळी हुवे।आज० ॥ नेमि० ॥३॥ए रत्न चिंतामणी सरखो , करे पूर्ण मनोरथ परख्यो ॥ गुण उज्वळ जोश मन हर६ ख्यो २ ॥ आज नेमिः ॥ ४ ॥ एणे अवसर पशुआं पो१ कार करे, ते सुणी नेमिजी विचार करे ॥ तस दुःख टाळी ६ मन व्रत धरे ॥ आज ज्ञान रसे नेम. निरागी ॥ अंतर १ (२५८) VRANGroversiasesGAR Boordarorare GRAGNI GORBoorma Bermore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સ્તવન અધિકાર, GGE narekarenormore वैराग नावे ॥ मुळरूप जुए निज गुण स्थिर उपयोग अनु६ नव प्रगटावे ॥ ए आंकणी ॥ ५ ॥ श्हां वैराग रंग वृद्धि घटमां, रथ वाल्यो तोरणथी ऊटपटमां ॥ धिक्कार हो संसार कारजमां, ॥ आज ज्ञान० ॥ मूळ ॥६॥ तव राजुल दुःख ज्वाळा लागी, विलाप करे हुँ निरनागी ॥ समजाव्या नहीं समजे रागी ॥ आजण ॥ मूळ ॥ ७॥ घेर आवी वरसी दान दीये, नित्य एक क्रोम आठ लाख नव्य लीये ॥ हाथ धरतां न धरे लाज हीये ॥ आज० ॥मूळ०॥ ७ ॥ तीहां कीर्ति जश जग गाजी, करुणा सागर जीन राजी ॥ दान नव्यने देश दुःख नाजी ॥आज झान॥ मूळ० ॥ ए ॥ हवे दिदा उच्छवने दाखशुं, ज्ञान शीतळ घटमां राखरां ॥ जीन नक्ति करुं गुण रागशुं॥आजज्ञान। ॥ मूळ०॥ १०॥ ॥ ढाळ ॥ ३ ॥ जी ॥ राग बिलावर ॥ ॥ जगत प्रजु आगळ नवी वर अक्षत धरीये । ए देशी॥ नेमि निरागी संयम लीये, रंग अंतर मांहि नेद ज्ञान चित्त वासीयो, अनुन्नव स्थिर ज्यांहि हाहां रे ॥ अनुलव स्थिर ज्यांही, हांहारे समकित शुद्ध त्यांही ॥ हाहां रे 8 तीहां मिथ्यात्व नाही, हांहां रे लोग चिदघन मांही॥ हांहां रे॥ उदवेग नहीं क्यांही,हांहां रे एतो उत्सर्ग सांही नेमी नीरागी संयम लीये,रंग अंतर मांहगए आंकणी गाथार॥ ॥उच्छव महोच्छव अति घणो, देव नर करे नावे ॥ समुड विजय सर्व जादवा, इंद्र चोस आवे ॥ हांहारे इंध चोFacrosoriorrororani GrenoNGRAGAR GAR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8 સ્તવન અધિકાર. स यावे, हांहां रे देव असंख्य बोलावे ॥ हांहां रे सूर्य पूरमां तेावे, हांहां रे सर्व मंगलिक गावे || हांहांरे घणां वाजां वजावे, ढांढांरे तीहां थाक न आवे || नेमि निरागी संयम लीये रंग अंतर मांही ॥ २ ॥ तीर्थोदक वर औषधि, लावे नीज नीज रंगे ॥ श्रव जाति कळश आउने, एक सहस मन चंगे || हांहां रे एक सहस मन चंगे ॥ हांहां रे जळ जरे सौ संगे ॥ हांहांरे लावी उलट अंगे ॥ हांहां रे स्थिर वृत्ति एकंगे ॥ हांहां रे घणी रीऊ उमंगे, हांहां रे · प्रमोद ए जंगे ॥ नेमि निरागी० ॥ ३ ॥ समुद्रविजय पेहेलो करे, पी सूरजिषेक ॥ समकित शुद्ध होवे तीहां वे श्रद्धा विवेक ॥ हांहां रे यावे श्री श्रद्धा विवेक, हांहां रे शुद्ध निज गुण टेक ॥ हांहां रे नहीं परगुण नेक, दांहां रे ध्यान जक्तिनुं एक ॥ हांहां रे तीहां धर्म अनेक, ढांढारे नव समज दरेक ॥ नेमि० ॥ ४ ॥ उत्तरकुरु शिविका बेसे नेमि निरागी, एकसत या उपागता देवनर वमनागी हांहां रे देवनर वमनागी, हांहां रे राजी थइ लीये मार्गी ॥ हांहांरे जतिमां लय लागी, हांहांरे घणा गुण नीरागी ॥ हांहां रे चाले पंथे सोनागी, हांहां रे माने पुन्याइ जागी ॥ | ॥ ५ ॥ देव देवी नरनारीनी, दृष्टि बे प्रभु सामी ॥ तारतार तुंहीं साहिबा, वश्ये अंतरजामि ॥ ढांढां रे वश्ये अंतरजामि, हांहां रे तुंही वे शीवगामी, हांहां रे रुपी धामी ॥ हांहांरे उपयोग गुण रामी, ढांढांरे उपाधि सर्व वामी ॥ हांहां रे तुहीं जगगुरु स्वामी ॥ नेमि निरागी ( २६० ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PANGBGGORomangram સ્તવન અધિકાર. Seronormon GroundMine ६ ॥६॥ वरघोमेथी उतर्या, सहसावन मोकार॥ श्रावण शुदी । हने दिने, ग्रहे महाबत चार ॥ हांहां रे ग्रहे महाव्रत १ चार ॥ हांहारे साथे पुरुष हजार ॥ हांहां रे लीये व्रत मनोहार, हांहां रे करे तत्व विचार ॥ हांहां रे वहे शीव पंथ सार ॥ हांहां रे लहे धर्म अपार ॥ नेमि० ॥ ॥ मन है पर्यवज्ञान उपन्युं, अप्रमत गुणगणे ॥ विपुलमति चढती 6 कळा तेनो उपयोग नाणे, हाहां रे तेनो उपयोग नाणे, हांहारे उपयोग श्रुत नाणे ॥ हांहां रे अनुन्नव घट आणे, हांहां रे निज पर नेद जाणे ॥ हांहांरे हण्यो मोहान . बाणे, हाहां रे त्रुटयो राग ते टाणे ॥ नेमि निरागी संयम लीये रंग अंतर मांही ॥ ७ ॥ उद्मस्थ चोपन दिन वितीया सनातक तीहां थावे ॥ अनंत चतुष्टय पामतां, अरिहंत कहावे ॥ हांहां रे अरिहंत कहावे, हांहां रे तीहां राजुल आवे हांहां रे, वळी शीश नमांवे,हांहां रे प्रजुना गुण गावे॥ हांहां रे मेली क्यां शीव जावे, हांहां रे गेम्यां नहीं मुने फावे ॥ नेमि० ॥ ए ॥ दीक्षा दीये तीहां साहेबो, ह लीये राजुल रंगे॥ अप्रमत्त गण सेवतां हण्यो मोह एकंगे ? हाहां रे हण्यो मोह एकंगे, हांहारे तीहां वीर्य अन्नंगे ॥ हांहारे दे सर्व कर्म चंगे, हांहां रे नव खायक अंगे ॥ ६) हांहां रे वसे शिवपुर संगे, हांहारे पेहेलां सिद्ध उमंगे ॥ ६ नेमि० १० ॥ सहस वरसर्नु आवखं, पाळी गढ गिरनार ॥ परण्या अपूरव महोच्छवे, शीव सुंदरी प्यार ॥ हांहारे है शीव सुंदरी प्यार, हांहारे समश्रेणी त्यां धार ॥ हांहारे 6 ___(२६) KRABERGaro Browse YPACEMBEROBreorooreeMBEroeas Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સ્તવન આધકાર. RAMERAGree RREGeet एक समय त्यां वार, हांहारे लोकंते रहे गर ॥ हांहारे ६ अव्याबाध हितकार, हांहारे ज्ञान शीतळ सार ॥॥१ नेमिः ॥ ११॥ ॥ कळश.॥ GornGARGrnsranARG & पाया पायारे नेमि राजुल सिद्ध पद पाया ॥ वेद । विषय राग पुर कराया, वीतराग नावमां आया ॥ अनुन्नव ज्ञान स्वरूपमां लावी, चिदानंद ध्यान ध्यायारे ॥ नेमि राजुल सिद्ध पद पाया ॥ पाया पायारे, मेंतो गायारे, नेमि 6 राजुल सिद्ध पद पाया ॥ ए आंकणी ॥ १॥ गुण पर्याय एकत्व नावे, अन्नेद ज्ञानमां आया ॥ उपयोग स्थिर श्रकृत्यरमणमां, केवळनाण दर्शण पायारे ॥ नेमिः ॥२॥ ए नावे अरिहंत पद लाध्यु, त्यांथी सिद्ध पद साध्यु ॥ संसार बीज निकंदन कीg, तीहां सुख अनंतु वाध्युरे ॥ नेमि० ॥३॥ नेमि पेहेलां राजुल सिद्ध थावे, स्वामि आज्ञा शीश चढावे ॥ पति अनिप्राये पतिपणुं पामी, सिद्ध वधुकंत कहीने बोलावे रे ॥ नेमिः ॥ ४॥ सिद्ध निरंजन 9 ज्योति स्वरूपी, अचळ अक्षय पद रामी ॥ अकळ अलख १ तुंही रूपी अरूपी, ज्ञान शीतळ अंतर जामीरे ॥ नेमिः ॥५॥ संपूर्ण सर्व गाथा ३७ ॥ स्तवन ॥ १४ ।। मुं॥ श्री पार्श्वनाथजी । ॥वीर कुंवरनी वातमी कोने कहीए ॥ ए देशी ॥ १) पार्श्व जीणंदने ध्याश्य, नवी नावे, नाव उपयोग है तीहां कहावे॥ शीव साधन ए विण नावे, सत्य समजो एम॥ PRASAN G rewasi Pronormore wordGGAGAR GARG Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Gorwara GraharGroGRang PRPRASARAGARLSORRISMRAGreasores १ पार्श्व जिणंदने ध्याश्ये नविनावे॥ए आंकणी ॥ गाथा॥१॥ पारस स्पर्शे लोह कंचन थावे ॥ फरी लोह पणुं नहीं E पावे॥ समज्यां दृष्टांत विवेकावे,आवे ज्ञानने ध्यान॥पा.॥ है @ शुद्ध स्वन्नाव पारस मणी ते फरसे, तीहां परसंगे उपयोग ६ S, टळशे ॥ निज उपयोग शुद्धता करशे, एमां नहीं संदेह है ॥ पार्श्व० ॥३॥ उपयोग शुद्ध स्वरूपनो नाव जाणो, & गुणपर्याय मांही आणो॥ जिन्न व्यक्ति अनंती टाणो, शी-है वरूप रसाल ॥ पार्श्व०॥४॥ आतम ज्ञाननी मुख्यता श्हां साधे, शक्ति व्यक्ति करी शीव साधे ॥ ज्ञान शीतळ सिद्ध आराधे, पामे पद निरवाण ॥ पार्श्व० ॥ ५ ॥ स्तवन ॥ १५ ॥ मुं ॥ श्री वीरस्वामीनू ॥ मारं मन लोनापुंजी, मारुंदील लोनाणुंजी देखी का यक ऋद्धि वीरनी माझं मनसोनाणुंजी ॥ दायक ऋद्धि सदगुरू उळखावे, तेहनो राग करावे॥ रागनो प्रेयों नावे वीर्य फोरवे, त्यां ग्रंथि नेदि समकित पावे ॥ माझं मन लोनाएंजी॥ए आंकणी ॥१॥ समकितादि गणे शीव पंथे जागे, शुद्धात्म अनुन्नव घटमां ॥ रुपक श्रेणिए लहे वीर्य अनंतुं, त्यां हणे रागद्वेष मोह ऊटमां ॥ मारुं ॥२॥ ए क्षीण मोह गणे आवे वीतराग नावमां शुक्ल बीजो पायो ध्याता ॥ ज्ञानावरणादि त्रण कर्म त्यां हणीने, लहे केवळ , g ए लोकालोक झाता ॥ मारु० ॥ ३॥ दायक ऋद्धि अनंती १ 5 ए देखे, प्रत्यक्ष प्रमाणे घटतरमां॥ ते ऋद्धिनुं वर्णनन थावे , कह्या नव नेद चोथा कर्म ग्रंथमां ॥ मारुं० ॥४॥ GorakoreGroGGreGRAGrGrenore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तन अधिार. 9 दायक समकित वेदक करीने लहे चोथे वा सप्तम गणे॥ , 9 दायक चरणगण दसमा अंते, करे उनमूळ मोहनुं ते टाणे ॥ मारु० ॥ ५ ॥ केवळझानने केवळ दर्शन, दानादिक वळी । पांच ॥ ए सप्त गुणगण छादश अंते, सवे दायक नव नहीं खांच ॥ मारु०॥ ६॥ ज्ञानावरणीने दर्शनावरणी, अंतराय है & सत्ता खुटे। तेनो अंत गण द्वादश अंते, एम घाति कर्म सवि बुटेमााए हायक ऋद्धि आत्म सत्ताये,अनादिशक्तियेजाणो॥महावीर प्रनुएव्यक्ति नावे करीने, अयोगी अंते अघाति 6 अंत आयो॥ मा० ॥ ७॥ ए सिद्ध निरंजन समश्रेणी लोक शिखर करे वास ॥ त्यां लोगवे अव्याबाध सुख के अनंतु, लागे सादि अनंत नंग खास ॥ मारु० ॥ ए ॥ ए. सुखना रसीया मनोरथ करता, उपयोग नावे रमता ॥ झान शीतळ हणे मोहनी उपाधि, ते समाधि ये शीव पद ५ वरता ॥ मारु० ॥१०॥ ॥ स्तवन १५ मुं श्री वीरमभुर्नु ॥ 5॥थारां मेहेला उपर मेह फरुखे वीजळी हो लाल ए देशी वीर जिनेश्वर देव शासन पति जगधणी हो लाल ॥ शासनपति जगधणी॥ तुं उपगारी महासंत महंत अनंत १ गुणी हो लाल ॥ महंत ॥ ज्ञान ध्यान उपयोग वीर्य बळ ३ एक्यता हो लाल ॥ वोर्य० ॥ अनुन्नवे अन्य पर्याय स्वन्ना६ वनी टेकता हो लाल ॥ स्वन्नाव० ॥१॥ उदिक नाव १ नहीं व्यापे व्यापक उपयोमा हो लाल ॥ व्यापक ॥, हे ज्ञान समग च धार अपूरव खेलमां हो लाल ॥ अपूर्व० ६ PRGONEditions ROGRAGN GORAGROGRAGAGNAGAR GREAGAR ( २९४ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HTRAGRAGMERPRGB/sures १ हणी महा मोहमल हएया रागोषने हो लाल हएया० ६॥ टळी परिणति अशुद्ध त्यां शुद्ध प्रवेशने हो लाल ॥ , त्यां शुद्ध० ॥२॥ ज्ञान दर्शन अंतराय त्रिकर्म इहां टळे हो लाल ॥ त्रिकर्मः ॥ गुण धातिने अन्नावे अनंत चतुष्टी मळे हो साल ॥ अनंत० ॥ इत्यादिक घणी रीते साधन 3 ६ पक्ष दाखीये हो लाल ॥ साधन० ॥ नय निदेपा प्रमाण संयुक्तादि नाषियो हो लाल ॥ संयुक्तादिः ॥३॥ एम उपगार अनंत सिद्धांते तुमे कयों हो लाल सिद्धांते०॥ तुज शासन संयोगे हुँ मार्गे चढयो खरो हो लाल ॥ हुँ मागें। ॥ अन्य दर्शन कुपंथ कुधर्मेन संचरु हो लाल ॥ कुधर्मे० ॥ झान शितळ जैन नावे सिद्ध पदने वरं हो साल ॥ सिद्ध पदने ॥४॥ स्तवन ॥ १६ मुं । ॥धवजी संदेशो कहेजो श्यामने ॥ ए देशी.॥ अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे, क्यारे थश्शुंदायक लब्धिवंतजो॥ आत्म सत्ताये शक्तिनावे अनादिनी, रही बती पर्याय एम नाषे गुरुसंतजो॥अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ दायक लब्धि पामवा बे कारण कहुँ, चौ नेदे मीले जब क्षयोपशमनी सहायजो ॥ परिणामिक नाव शुद्ध खन्नावे परिणमे, तिहां दायक लब्धि पामे चेतनरायजो ॥ अपूर्व ॥२॥ दायक लब्धि अनंत नेदे एम जाणीये, ते केवळीश्री पण वचन है Q अगोचर न कहेवायजो ॥ दायक लब्धि नव नेदे ग्रंथे nanRAMASIRSANA GroGramBhareloor@Grenore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवन राधि२. 9) कही, ते घाति कर्मना व्यथकी प्रगटायजो॥ अपूर्व० ॥३॥ क्षायक समकित पामे गण चोथा वा सातमे, तेना बद्धायु दायकने अवद्धायु कायक दो लेदजो॥ बद्धायु क्षायक लहे , ६ शीव सुख त्रीजे चोथे नवे ॥ अबद्धायु दायक लहं तद . नवे शीव पदजो ॥ अपूर्व० ॥४॥ क्षयोपशम समकिती 6 वेदक करी दायक लहे ॥ ते वेदक समकितनी स्थिति है एक समयनी होयजो ॥ सात प्रकृति होय बेद तीहां सत्ता थकी॥ ज्ञान दर्शण दोउ त्यां अप्रतिपाति जोयजो॥ अपूर्व० ॥५॥ अबद्धायु क्षायक समकीति दपक श्रेणी मांमीने, गण दशमा अंते करे सत्ताथी मोहनो विनाशजो॥ ३ राग द्वेष परिणति अशुद्ध टळे तीहां ॥ लहे चरण यथाख्यात करे क्षीण मोह गणमां वासजो ॥ अपूर्व० ॥६॥ए। वीण मोह अंते त्रण कर्म साथे हणे,ज्ञानावरणीने दर्शनावरदणीअंतरायजो केवळनाण दशणते लब्धि पांच दायक ना वनी, ए गुण प्रगटे त्यां कहीए श्री अरिहंत रायजोअपूर्व॥ ॥७॥ इहां सयोगी केवळी गुणगणुं तेरभु कीजीए॥ तीहां दायक नव लब्धिनी पूरण प्राप्ति थायजो ॥ ए पलब्धि जोगे से इंजे शीव सुख संपजे, अयोगी अंते अघाति ६ हणी सम श्रेणीये सधायजो ॥ अपूर्व० ॥ ॥ ए सिद्ध निरंजन लोकाग्र नागे रह्या ॥ चळ अविनाशी तीहां है ६ सादि अनंत लागे नंगजो ॥ दायक ऋद्धि अनंत नेद | 5 इहां लोगवे ॥ परमानंद पामे अव्यावाध सुख संगजो १ ॥अपूर्व० ॥ ए ॥ जे समय पामुं शक्तिथी व्यक्तिपणुं ॥ zavaneswarorosis HTRGGAGeoroor.RooGuardasRD. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SERIAGRIORGBGRam સ્તવન અધિકાર, ते समय होय अनुमोदवा योग्यजो ॥क्षायक ऋद्धि था विरत्नावे प्रगटे ॥ त्यां नागे वीरह थाय शुद्ध चेतना ५ 9) संयोगजो ॥ अपूर्व ॥ १०॥ दायक लब्धि पामवा में हैं ६ इच्छा करी ॥ तीहां पुद्गलिक नावनी इच्छा नागी जा-६ यजो ॥ परवस्तुनी ममता मूर्ग परिहरी ॥ दायक गुण रागे प्रशस्त राग कहायजो ॥ अपूर्व० ॥ ११ ॥ दायक ऋद्धि जव स्थिति पाके संपजे ॥ ते उद्यम जोगे जलदी है पाके एमजो ॥ उद्यम करीये नाव निक्षेपे घटंतरे ॥ त्यां अनुन्नव जोगे समाधि लहतां खेमजो ॥ अपूर्व० ॥ १२ ॥ ॐ विषय विकार वेदवामां आवे नही ॥ त्यां अंतर क्रिया में अंतर रमण कहायजो ॥ ज्ञान शीतळ निजात्म नावे होय साधना ॥ तीहां शुद्ध उपयोगे दायक ऋद्धि ग्रहायजो ॥ अपूर्व० ॥ १३ ॥ ॥ स्तवन १७ मुं उपदेशीक । चेतावं चेती लेजोरे एक दिन जरुर उमी जावु ॥ए देशी सुणजो नविजन नारे, साधन नाव निक्षेपे ६ साचुं॥ नाव निदेपे ग्रंथि नेद करतां, समकितनावे राचुं सुणजो नविजन नारे ॥ साधन० ॥ १॥ नावे ध्यान तुरंगे नाचुं । नावे शीवसुख लहीए जाचुं ॥ए वीण साधन १ सब काचुं ॥ सुणजो नविजन ॥ ए श्रांकणी ॥ अव्य निक्षेप कह्यो अना उपयोगे, अनुयोग द्वार सिद्धांते॥ नाव निक्षेप उपयोगे दाख्यो, ते लहो नविशांत दांते ॥ सुणजो० ॥॥ अव्य प्राणने चेतन जाणी, अव्य निक्षेपे किरिया करतो॥ ६ (२६७) GrdGR&AGre are Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ R સજ્ઝાય અધિકાર. जीवा जीव सत्ता जिन्न न जाणे, व्यवहार मार्गे ए बांळ रमतो || सु० ॥ ३ ॥ किरियामां लिंगमां चरण रोपे, नाव अपेक्षा न राखे ॥ निमित्त उपादान नेद न समजे ते शीव सुख कदीये न चाखे ॥ सु० ॥ ४ ॥ ए द्रव्य निकेपो को ते करतां संसार वास न बटे ॥ कर्म बंध करी चौ गति जटके, जाव निक्षेपे संसार खुटे ॥ सु० ॥ ५ ॥ हेय उपादेय बुद्धि लहीने, जाव निक्षेपो जावो ॥ देय उपाधि पर वस्तु ढंकी, उपादेय शुद्धात्म निज ध्यावो ॥ सुo || ६ || ए जाव निदेपो शिव हेतु दाख्यो, स्वरूप रमणमां राख्यो ॥ जाव उपशम क्षयोपशम कायक, लहो उपयोगे ज्ञानीए जाग्यो || सु० ॥ ७ ॥ ज्ञायक जावने कार्य मानो, क्षय उपशम कारण जाणो ॥ शक्ति व्यक्ति लहीये ते साधन, ज्ञान शीतळ वचन प्रमाणो ॥ सु० ॥ ८ ॥ ॥ इति स्तवन अधिकार संपूर्ण ॥ अथ सज्जाय अधिकार. ॥ सज्झाय ॥। १ ली || समकितनी ॥ ॥ ऋषननो वंशरणायरो ॥ ए देशी ॥ चेतन समकित दरो लक्षण पांच विचारोरे ॥ सम संवेग निरवेदए, अनुकंपा यस्ता धारोरे ॥ चेतन समकित दरो ॥ ए आंकणी० ॥ गाथा ॥ १ ॥ उपशम लक्षण पहेलुं जावीए, क्षमायें क्रोधादि हणीये रे ॥ वेर विरोध समाविए, समजावे जवि जीये रे ॥ चेतन० ॥२॥ बीजुं लक्षण संवेगीयो, सुरनर सुख दुःख सरखुंरे ॥ वेग ( २९८ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ARMACIRRIAS RAMRAGRAPRASHARAGRAGRAT सआय मधि२. & मोक्ष अनिलाषीयो, करम रहित चेतन परखुरे ॥ चेतन है ॥३॥ त्रीजु लक्षण निर्वेद सहे, चगति बंधीखानु नारी रे ॥ अनुत्तर सुख फेर सरी, ग्रहुं अतिइंद्रि बंसु इंजिरे ॥ चेतन० ॥ ४ ॥ अनुकंपा लक्षण चो) चिंतवे, निजपरमां अव्य नावरे॥ परअनुकंपा दोय नेदथी, समजी 6 करूणा लाव रे ॥ चेतन० ॥ ५॥ परदुःख दे निज है शक्तियें, परप्राण रखोरे ॥ त्रस थावर नही दुनवे, ते 6 अव्य अनुकंपा रोपुरे ॥ चेतन० ॥ ६ ॥ लावधी उपदेश धर्म कथा, नेद ज्ञाने देखामे रे ॥ जीव पुद्गलनी निन्नता, वस्तु सत्ता जूदी पामे रे ॥ चेतन ॥ ७॥ गुण पर्याय समजावीए, ज्ञान चेतना दीजे रे ॥ तेथी अनुन्नव पोते करे, र निर्धार थयां दील रीफे रे ॥ चेतन ॥ ७ ॥ श्रद्धा शुद्ध वस्तु जिन्नता, अनुन्नवे निज उपयोगे रे ॥ समकित प्रगट १ करे प्राणीन, ते नाव अनुकंपा पर जोगेरे ॥ चेतनः ॥ ॥ ए॥ स्व जोगे हवे नाखशुं, देश विरति सर्व विरति लेवे रे ॥ विषय कषायने परहरे, ते अव्य अनुकंपा सेवेरे ॥ चेतनः ॥ १० ॥ रागद्वेष वळी मोहने, ढमी स्वन्नावमां आवे रे ॥ शक्ति नाव व्यक्ति पणुं लहे, ते नाव अनुकंपा १ निज थावे रे ॥ चेतन० ॥ ११ ॥ आस्ता लक्षण ग्रहो पांचमुं, करो जिन वचन प्रमाणो रे ॥ जैन नाव समन्नावमां, देख चेतन राणोरे ॥ चेतनः ॥ १५ ॥ श्म पांच लक्षण लाधे श्रापमां, ते जाणो समकित रे ॥ ज्ञान शीतळ कीयां संपजे, ते चेतन जन्म पवित रे ॥ चेतन ॥ १३ ॥ andresources GIRLS Gorror GharGRGramroGrovernorea RUK. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GORGEORGAR GROrd RAMESH RABIRENDRAGirelims सज्झाय ॥ २ ॥ जी ॥ चेतनज्ञाननी । । ॥चेतनजी बारणे मत जावोरे ॥ ए देशी॥ चेतनजी ज्ञान स्वरूपने धारोर, तुमे पर उपयोग ई निवारो ॥ चेतनजी ज्ञान स्वरूपने धारोरे ॥ ए आंकणी ॥ 6 पूर्व कर्म जनित दश प्राणरे ॥ ते परवस्तु प्रमाणरे ॥ तेना , संगे उपयोग नाण ॥ चेतनजी० ॥ १॥ ए उपयोग चेतन 6 है वस्तुरे ॥ परसंगे जमता लहंतुरे ॥ रागद्वेष अज्ञान कहंतु ॥ चेतनजी० ॥२॥ ए नूल अनादिनी तुजमां रे, तेथी कर्ता जोगता पुदगळमारे ॥ बांधे कर्म वर्गणा चेतनमां ॥ चेतनजी० ॥ ३ ॥ तेथी चगति नटकण लाग्यो रे, मूळरूप कीहां नहीं जाग्यारे ॥ सुकृत साधन सब ताग्यो । ॥चेतनजी॥४॥ तेथी मुखीयो अनादि संसारी रे॥ अहं ममव करी जूल नारीरे ॥ हवे गश् बाजी व्यो सुधारी ॥ चेतनजी० ॥ ५॥ सदगुरूनी सेवा करीयेर ॥ करी विनय श्रवण अनुसरोयेरे ॥ तेथी ज्ञान ऋद्धिने वरीये॥ चेतनजी. ॥ ६ ॥ जे अवसर चेतन ज्ञानीरे ॥ पूर्व रीत जुए स्थिर ध्यानीरे ॥ परसंगे अनंती हानी ॥ चेतनजी० ॥ ७॥ ज्ञान वीर्य एकता कीधीरे ॥ पुदगल परिणमन तजी दीधीरे ॥ उपयोग गुणस्वरूपमां लीधी ॥ चेतनजी० ॥ ७॥ शुद्ध अनुन्नवी आतम धर्मी रे, शक्ति नाव व्यक्ति परिणमी रे॥ पूज्य अरिहंत थया शीवरंमी ॥ चेतनजी० ॥ ए ॥ गुण 5 घाति चनो विनाशरे ॥ तीहां अनंत धर्म अवकाशरे ॥ हे कीधो क्षायक नावमा वास ॥ चेतनजी० ॥ १० ॥ आयुष ७ ( २७०) Granarendrammarkmroo reORGAR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सआय अधि२. Sr. BREGrs PARGAONGrenorror 0) अंते योगरोध थावरे, तीहां चेतन अयोगी गण पावरे। अंते | ६ अघाति चउ थाय अन्नावे ॥ चेतन० ॥ ११ ॥ एही सिद्ध । 9 सनातक वंरे ॥ मूळरूप जो आनंदुरे ॥ ज्ञान शीतळ । g करी कर्म निकंदु ॥ चेतनजी० ॥ ॥ १५ ॥ संपूर्ण. ॥ ॥ सज्जाय ३ जी मुनिपदनी ॥ ॥ ऋषननो वंश रयणायरु ॥ ए देशी ॥ रुडं मुनिपद मुज मन वस्युं, समकित मूळ ज्ञान पारे ॥ उलट घणो मुज अंगमां, ए वीण सर्व पुःख दायीरे ॥ रुकुं मुनिपद मुज मन वस्युं ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ शब्दनये मुनिपद संपजे, परसंग त्याग बिनागरे ॥ 3 अलख निरंजन अनुन्नवे, स्थिर रमण उपयोगरे ॥ रुठं मनिपद० ॥ २॥ श्रुतज्ञान उपयोगवंत जे, ते जीव एम बोलीजेरे ॥ अना उपयोग तन मन्न ते, नहीं जीव ए अजीव कहीजेरे ॥ रुपुं० ॥ ३ ॥ शब्द अर्थनी पूर्णता, जे वस्तु गत धर्म रे॥ शुद्ध सत्ता प्रगटे ते साधना, ए जीन वचननो मर्म रे ॥ रुमुं० ॥ ४ ॥ ए विण कार्य सरे नहीं, समजो चतुर विवेकरे ॥ अंतर दृष्टियें संपजे, ग्रह्यां निज स्वन्नाव टेको ॥ रुहुँ० ॥ ५॥ स्वन्नाव धर्मे जे मुनि थया, नित्य प्रणमुं तस पायरे ॥ अनुमोदूं तस धर्मने, विनय करूं जो मीले रायरे ॥ रहुं० ॥ ६ ॥ धन्य धन्य तस अवतारने, धन्य धन्य तस दरशनरे ॥ ज्ञान शीतळ कहे लीजीये, ६ मुनिपद ते दीन धन्यरे ॥ रुमु० ॥७॥ (२७१) aanGYBID D ING GranarAGAR GORIGIG www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Cw VAN REPBAGMTAGRA SAHARSARAGreasores सजाय ॥ ४ ॥ थी ॥ विजयशेठ अने विजया राणीनी ॥ देशी उपर प्रमाणे धीर जिनेश्वर पाय नमी, नमी अप्रमत्त राय रे ॥ विजयशेठ राणी विजया, गुण गातां हरष न मायरे ॥ धन्य धन्य ए शियळ सोहामां ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ नरतक्षेत्र दक्षिण दिशे,समुह तीरे वच्छ देशरेत्यां विजय ७ , शेठ वसे समकिती, निरविषय रंग बेशरे ॥ धन्य० ॥२॥ कृष्ण पदे विरति हुवा, स्त्री नोग त्याग करशुरे ॥ बाळपणे निश्चे एम कीयो, वेद विषय परिहरशुरे ॥ धन्य० ॥३॥ तिहां नामे विजयारूपे नली, समकिती कन्या बाळरे। गुण र रागे गुरु सनमुखे, गहुंली करी ज्वे मणीलालरे ॥धन्य ॥४॥ 3 गुरूने मोतीए वधावती, कहेती व्रत उचरावोरे ॥ शुकल हू पदे चोथु सद्गुरु, व्रत दीये जग चावो रे ॥ धन्य० ॥५॥ पूर्व कर्म संबंधी, ए बेहुनो विवाह करी तातरे ॥ शुन्न लग्ने परणावीयां, अव्य खरची जमामी नातरे ॥ धन्य० ॥६॥ शतव विजया शणगार सजी, अवसरे पेउ पासे आवेर ॥ तेने देखी शेठ हरख धरी, बोले वचन मन नावेर॥ धन्यः ॥७॥ शेठ कहे कृष्ण पदनो, त्याग विषय व्रत मुजरे ॥ त्रण दिवस रह्या तेहना, पढ़ें करशुं लोग तुजरे ॥ धन्य०॥ ३ ॥ तव विजया बिलखी थक्ष, चिंतवे चित्त मोकार रे ॥ शेव कहे तुंशी चिंता करे, दीन त्रण जतांशी वाररे॥ धन्य 5 ॥ए ॥ विजया कहे मीठे बोलमे, शुक्ल पदे व्रत मुजरे ॥ ह गुरु पासे बाळ वये लीयो, ते केम सेतुं हुं स्वामी तुजरे ॥ ६ coverestiorensurat GAPAGAPAGAPAGRAGIRAGNRAGGAR (२७२ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सजाय मार. BAGre १ ॥ धन्य० ॥ १० ॥ उन्नय पदे अमे पाळगुं, पेहेरी शियळ सन्नाह रे ॥ काम बाण लागे नहीं, ज्ञान योगे टाळु वेद दाह रे ॥ धन्य० ॥ ११ ॥ तमे अवर नारी परणीने, सेवो है शुक्ल पदे तेह रे ॥ कृष्ण पदे विरति रहो, त्याग विषय सेवा एह रे ॥ धन्य० ॥ १५ ॥ एम विजया मुख वचन ए, मधुर साकर जेम जाख रे ॥ सांनळी शेव आगळ कहे, शान शितळ सुणी शियळ राख रे॥ धन्य० ॥ १३ ॥ ॥ ढाळ ॥२॥जी॥ . ॥श्रुतशं रंग लाग्यो ॥ ए देशी ॥ शेशियळ दृढ रंग अनोपम, निर्विष निर्मळ काया रे॥ शुरवीर काम कंदर्प हणवा, श्रुत ज्ञानी मांहि ए है 3 सवायारे ॥ शियनशुं रंग लाग्यो० ॥ रंग लाग्यो रे चोळ मजी ॥ शियळशुं रंग लाग्यो ॥ ए आंकणी ॥ गाथा॥ १॥१॥ बीजी नारी न परणुं न जोगवं, विषय काळकुट विष सरखं रे ॥ एम समजी उन्नय पक्ष पाळी, निर्विष शिळ गुणे हरखुरे ॥ शियळशुं रंग लाग्यो ॥२॥ सदा सर्वदा विषय न सेवं, त्रिकरण योगे व्रत वहाडं रे॥ मात पिताने ए वात न जणावं, जाणे तब दिक्षा लइ पाळु रे॥ ६ शियळ ॥३॥ एम अनिग्रह बेहु एक वृत्तिये, लीये शुद्ध शिळ परिणामेरे ॥ त्यागी वैरागी ए जीव गुण रागी, चढी नाव चरण गण पामे रे ॥ शियळ० ॥४॥ क्षण क्षण वरते निज उपयोगे, अनुलवे निज पर निन्नरे ॥ नाव शियळसो पुदगल त्यागे, परशुं विनागी तद लीन्नरे॥ Randoresexestore ORGorrearrangarorarhare SAGARORAGrown ૩૫ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRASAGARAGARASIMRARLSSAGre sir १॥शियळ ॥ ५॥ तद्गत लीन्न बेहु एक सज्याए, सुवे ६ मध्य खम्ग व्रत धारारे ॥ धैर्यवंत वीर्यवंत ज्ञानी, नरनारी १ संगी संग न्यारारे ॥ शियळ० ॥ ६॥ एक आसने वेद (ह विषय हणीने, सुए बेसे बोले व्रत राखेरे ॥ ते कारणे केश ६ व्रत धर पनीया, न पमया ते अधिक ज्ञानी जाखे रे ॥ है ॥ शियळ ॥ ७ ॥ अचळ शियळ रत्न ए अमुलख, वाम गम नहीं नहीं बाजे रे ॥ विजय शेठ विजीया राणी । वेहुने, अंगे शिळ रत्न विराजे रे ॥ शियळ ॥॥॥ एम 6 . शिळवते प्रमोद मामो, ज्ञान शीतळ शुद्ध नावे रे ॥ विषय 6 विकार न व्याप अंगे, ते चेतनराम कहावे रे ॥ शियळ शुं रंग लाग्यो० ॥ ए॥ ॥दाळ ३ जी॥ ॥ देशी एकवीसानी विमळ केवळीरे, चंपायें आवी समोसर्या ॥ मुनि समुदायरे, सहस चोराशीय परवर्या ॥ तीहां श्रावक रे, जीनदास वीरति सही ॥ करे वंदनारे, मुनिपति मुनिनो विनय तहीं ॥ त्रुटक ॥ दीये देशना विमळ केवळी, मुनि पद उळखावता ॥ एक ज्ञानी ते मुनि कहीए, बीजा ज्ञानी निश्रा पावता ॥ ए बे विणत्रीजो मुनिन कह्यो, जिनपतिए जिन शासने ॥ तेवा मुनिने विनयें वांदतां, डोमे कर्मबंध पासने ॥१॥ए मुनिने रे, आहार पाणी श्रादें श्रावक 3 दीये ॥ खप पूरतुंरे दोष वर्जीत शुद्ध ते लीये ॥ आग्रह हे करीरे, अधिक देवानी इच्छा करे ॥ तेना फळनीरे, वंगा Panoram m eroMart AGAR GROGrearrowomen Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સજઝાય અધિકાર. GORSMIRMITRA PRGRIDGUSDGMOMGre कदीए ते ना करे ॥ त्रुटक० ॥ ना करे वंढा शुन्न फळ केरी, ४ शुन्न कर्मे शुद्ध न कोरे ॥ शुन्न कर्म ए पुन्य प्रकृति दीये १ 9 शातामें उदये जोरे ॥ ते पापस्थान दश पंचमुं रति, पाप , दाता ए सही ॥ पुन्य जोगवतां पाप थावे, ते कारण पुन्य नडुं नहीं ॥२॥ एम सांनळी रे, अज्ञानी ते बोले श्श्युं॥ सुपात्रनेरे, दान देश न श्च्चे फळ कश्युं ॥ एम जोता रे, सुपान निरथक हुई ॥ फळ दातारे, सुपात्र तो सुत्रे कह्या जु ॥ त्रुटक० ॥ सुपात्र तो सुत्रे कह्या बे, बोधि बीज दाता सह। ॥ दिक्षा दाता चरण प्रख्याता, आश्रव पंच त्यागी सही ॥ निर्जरा हेतु तप गुण दाता, शीवसुख हेतु ए नसा ॥ इच्छा रहित विनय जोगे, दान दे शुन्ना शु. नथी टल्या ॥३॥ एम सांनळी रे, जीनदास विनति करे ॥ मुज घरे मुनिरे, सहस चोरासी पारणुं करे ॥ ए विनतिरे साहेब मारी मानजो ॥ मनोरथ फळेरे, गुण रागे नक्ति जाणजो ॥ त्रुटक० ॥ वळतुं केवळझानी बोले, एम वाततो नहीं बने ॥ सहस चोरासी सूझतुं लेवे, आहार पाणी कीहां क्यां कने ॥ एटलो आहारादिक एक गमे, सुमतो कदी निपजे नहीं ॥ तुज मनोरथ पूरवा दाखं, फळ एटबुं होवे सही ॥ ४ ॥ वच्छ देशेरे, शेठ विजय राणी विजया ॥ नावयति शुद्धरे, ग्रहस्थी बेझाने निजी या ॥ शियळ शुद्धरे, अदभूत अचळ मगे नहीं॥ उत्कृष्टारे, ए सम अवर न जग मही ॥ त्रुटकः ॥ ए बेहुने उलट हे नर देवो, नोजन नलो रस स्वाद ए ॥ नक्ति करीने रंग है (२७५) 6368waroo RowLGAGreatmaraGoodmaraGroor Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સજઝાય અધિકાર PARAGre Gree resexsures री, गुणगावो करी नाद ए ॥ तेथी फळ सहो एटझुं कहे. केवळी जगवान ए ॥ ते सांनळी जीनदास जावे, झान शीतळ एक तान ए॥५॥ . ॥ ढाळ ४ थी॥ . & ॥ धन्य लोक नगर धन्य वेळारे, मन मोहन सुंदिर मेळा है .... . ए देशी॥ .. . जीनदास श्रावक सधाव्या, जीन वचने वच्छ देश आव्या॥ विजय शेग्ने विजया राणी, देखी मळी कहे उलट आणी रे॥ स्वामी धन्य तुं शियळ सोनागी,धन्य मामी जनित गुणरागीरे । स्वामी धन्य तुंशीयळ सोनागी० ॥ ए आंकणी ॥ गाथा । ॥१॥ नमी प्रणमे नक्ति नावे, प्रमोदित आनंद पावे ॥ 3 गुण वृद्धि सहे गुण गावे, नाव यति गणे तुं सोहावे रे ॥ हूँ ॥ स्वामी० ॥ ५॥ सहस चोराशी मुनिने देवे, आहार १ पाणी सूझतुं ए लेवे ॥ बहु माने देतां फळ थावे, एटलु फळ तुजशु पावे रे ॥ स्वामी० ॥३॥ एम विमळ केवळी नाख्युं, ते वचन में घटमां राख्यं ॥ मज मनोरथ पूरो स्वामी, जमो बेहु कही शीरनामीरे ॥ स्वामी ॥४॥ ए मनोरथ पूरवा हेते, जमे लोजन धर्म संकेते ॥ विजय शेग्ने विजया राणी, दीए एटलुं फळ हीत आणी रे ॥ 9॥ स्वामी ॥ ५॥ जीनदासे पूरुं फळ लीg, सतकार , ६ विनय घणुं कीg॥ गुण गावे वचन विवेके, पूरे मात तात , बे विशेके रे ॥ स्वामी० ॥ ६॥ जीनदास शियळ वखाणे, है ३ नाष्यो केवळीये ते प्रमाणे ॥ तेथी मात ताते वात जाणी, CAMONGrsition RGARGAGAGAR SAGARMIRMIRMIRMAN SARGARAGRAGOLGAONGRAGRAGre are Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सजाय मधिर. ISARGreGaxxaasaram १ पुत्र वधु जोमी गुण खाणी रे ॥ स्वामी० ॥ ॥ इहां श्रनिग्रह पुरो थावे, लीए चारित्र चढता नावे ॥ विजय शेग्ने विजया राणी, प्रतिबंधन करे गुण खाणी रे॥ स्वामी ॥ ॥ मी.ग्रहवास कंचन माया, तजी चोकमी त्रण कषाया ॥ मिथ्यात्व त्रण नेदने वामे, दायक समकित त्यां पामे रे ॥ स्वामी० ॥ ए ॥ नाव मति श्रुत शान शुद्धि जागे, टळे पर अनुन्नव विनागे ॥ तीहां उपयोग स्थिर 6 थावे, शुद्धात्म अंतर ध्यावे रे ॥ स्वामी ॥ १० ॥ विजय 6 शेठने विजया राणी, त्यागी हुवां एसो नाव आणी ॥ झान शीतळ ए केवळी पासे, लेइ दीक्षाशीव गति जाशेरे ॥ स्वामी० ॥ ११ ॥ ॥ ढाळ ५ मी ॥ १ केवळझानी जगगुरु पासे, दिदा चारित्र लीधुंरे ॥ विजयशेठ विजयाराणीए, सावद्य पच्चख्खाण की, रे ॥ चारित्र ए रुकुं ॥ रुहुँ रमण निज गुण स्थिर ॥ चारित्र ए रुहुँ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥ १॥ पंचमहावत जचरीयां हिंसा मृषा श्रदत्तरे ॥ मैथुन परिग्रह त्यागी सर्वथी, ग्रही आत्म सत्ता ज्ञान गतरे ॥ चारित्र ॥२॥ अनात्म सत्ता ६ उपाधि तजीने, अव्य नाव चारित्र लीधुं रे ॥ तेथी चन5 गति ब्रमणने टाळी, अपुनर्नव शीवसुख लीधुं रे॥ चारित्र है ॥३॥ शुना शुन्न दोय निर्वद्य नांदी, निर्वद्य एक सम, दृष्टिग। रागद्वेष हणे तीहां थावे, समन्नाव शक्ति उत्कृष्टिरे ६ ॥ चारित्र० ॥ ४ ॥ ते शक्तिये केवळ पामे, चउ गुण घाति issioesress SOMEGREGORIGORAGGROG (२७७) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સઝાય અધિકાર, BreGGGI हणीने रे ॥ ए नावे अरिहंत सिद्ध थावे, अंते योग रोध करीने रे ॥ चारित्र ॥५॥श्रघाति चनो क्षय इहां थावे, १ रूपातित सिद्ध नावेरे ॥ एक नाग पोलारनो बंमी, बेनागे प्रदेश समावेरे॥ चारित्र०॥६॥समश्रेणीए सिद्धि वरियां, विजयशेठ विजय राणी रे ॥ लोकंते अवगाहना बीराजे, अनंत धर्मनी ए खाणी रे ॥ चारित्रः ॥ ७॥ ए सिध्यां 5 सादि अनंतमे नांगे, अकृत्य अनुन्नव वृत्तिरे ॥ निज गुण पर्याय ऐक्यता, न तजे लक्षण आकृतिरे ॥ चारित्रः ॥७॥ निज अव्ये ध्रुवता स्थिर सिद्धमां, ज्ञान शीतळ कृत ज्ञानरे । ॥ सिद्ध राय ज्ञान अकृत आपो, तो रूपातित करुं ध्यानरे । ॥ चारित्र० ॥ ए॥ arovarovaramare ॥ कळश.॥ ॥ त्रिजगन्नासन ॥ ए देशी ॥ ___एम शियळ सुध्धु, त्रिकरण योगे, उन्नय पक्षपाळिये ॥ जाव जीव निश्चळ वृत्तिये, देवगति निहाळीये १॥१॥ शियळे देव सानिध्य करे, शियळे शितळ श्रागरे। शियळे संकट नय हरे, फूलमाळ होय विषधर नागरे ॥२॥ द्रव्य शियळ ए पुन्य कारण, शिव कारण शिळ , जावथी ॥ पुद्गल त्याग अनुन्नव योगे, जावो शिळ था१ स्मार्थी ॥ ३॥ नाव शीयळ एक अनुन्नव ज्ञाने, निज पर ह निन्न होवे सही ॥ शुद्ध पर्याये रमण अनुन्नव, जोगें सिद्धगति ग्रह। ॥४॥ विजय शेग्ने विजया राणी, शियळ अमग पाळता ॥ सावद्य त्याग समदृष्टि डाने, सिद्धगति ७ MEIGHonom GrorarGrammar Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GAR GORIGrore RRRRORISORREArenaireorg સજઝાય અધિકાર. पंथ चालता ॥ ५॥ ए दंपतिना गुण गाया, अनुन्नव उपयोग नावथी ॥ तेह तणी पांच ढाळो कीधी, गुण रागे प्रमोदथी ॥ ६ ॥ मुज मनोरथ सफळ कीधो, अनुमोदना फळ में लह्यो ॥ ज्ञान शीतळ एम गुण रागे, रमण करतां मन स्थिर रह्यो ॥ ॥ आ सज्जाय जे नणशे गणशे, सुणशे निश्चळ चित्तथी ॥ ज्ञान शितळ आतम ज्ञान जोगे, गुण वृद्धि विनितथी ॥ ७ ॥ संपूर्ण ॥ सर्व गाथा ॥ ५५ ॥ ॥ सज्झाय ५ मी अनाथ सनाथ विचारनी ॥ ॥ ऋषननो वंश रयणायरो ॥ ए देशी ॥ चतुर सनेही सांनळो, अनाथ सनाथ विचार रे॥ प्रव्य क्षेत्र काळ नावथी, कहुं ते करो निरधार रे॥ चतुर सनेही सांनळो ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥ १ ॥ द्रव्य अनाथ जमता तीहां, जीव अज्ञानी मिथ्यात्वीरे ॥ अशुद्ध उद्यमी ए बहिरातमा, अनादि नविने अन्नवी रे ॥ चतुर० ॥॥ खेत्र अनाथ बाह्य खेतमां, कुधा तृषादि काया गत फुःखरे ॥ मन ममताये नही तृपति, आशा अधुरि त्यां आवे नहीं सुखरे ॥ चतुर० ॥ ३॥ काळ अनाथ जरा मरण ए, चवन जन्म अति दुःखरे ॥ लाग्यां चजगति संसारमां, केके आवे एनी जागी नहीं जुखरे ॥ चतुर० ॥ ४॥ नाव अनाथ विन्नाव ए, रागष दोय त्रीजो मोह रे ॥१ विषय कषाय मिथ्यात्व , ए संसार मूळ बीज तेहरे ॥ , चतुर० ॥५॥ संसार चउगति अनाथ डे, तेनो दाता मिथ्या ६ Penesssansaree Gre GR GARBARAGMEGR BroGRAGN Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सआय मधिर. PARAGRAR GORMELORAMBAGr ६ मोह अनाथरे ॥ एने ग्रहे ते जीव अनाथ बे, तेनो बेली , ६ नहीं सनाथरे ॥ चतुर ॥ ६॥ अव्य अनाथ दाता अज्ञा-१ नए, क्षेत्र अनाथ क्षय उपशम हानी रे ॥ काळ अनाथ , @ दाता मिथ्यात्व डे, नाव अनाथ परिणति अशुद्ध प्राणी रे॥ चतुर० ॥ ७ ॥ तेने हएयां सनाथ त्रण लोकनो, जेहणे ते सही थाय रे ॥ एम जाणी नविजन क्षय करो, गुरु ज्ञान खाग हाथ लाय रे ॥ चतुर० ॥ ७ ॥ है है ए विण अवरेदय नही, क्षय होय जो आतम ज्ञान रे ॥6 , तो घटंतर प्रकाश करे, ए चोरो तीहां नागे एम मान्य रे ॥ चतुर ॥ ए ॥ ज्ञान योगे सनाथ आतमा, धर्म कार्य 6 वंत थाय रे ॥ तेह चउन्नेदे दाखवू, उतकृष्टे परमातमरायरे ॥ चतुर० ॥ १० ॥ अव्य सनाथ दो नेदे कहुँ, सम्यक दर्शन ज्ञानरे ॥ धर्म उद्यमी अंतर आतमा, लहे नवि केश एम मान्य रे ॥ चतुर ॥ ११ ॥ क्षेत्र सनाथ अंतर खेत्रमा, अनुन्नव जुवने वासरे ॥ दृष्टि स्वन्नाव पर्यायमां, तीहां नहीं आश्रव अवकाशरे ॥ चतुर० ॥ १५ ॥ काळ सनाथ अप्रमत्त वृद्धिये, रूपकश्रेणी मंगायरे ॥ ते नर अमर शीवपद वरे, अयोगी अंते बुटे कायरे ॥ चतुर ॥ १३ ॥ ॥ नाव सनाथ शुद्ध परिणतियें, चरण यथाख्यात वीतरागरे ॥रागळेष मोह सवि टळे, संसार निरबीज शीवमागरे । ॥ चतुर ॥ १४ ॥ त्रण नेदो जो नावपणुं लहे, तोहोय १ तद्न्नव सिद्ध राय रे ॥ नहीं तो संसार स्थिति रहे, -, स्कुष्टी जघन्य कहायरे ॥ चतुर० ॥ १५ ॥ पमतां अरध ६ LEBRemixonsorsansar BreBoorrenerBrogrorey __(२८०) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સઝાય અધિકાર, PRASARASTRAGNIROG RA पुद्गल वर्तना, नहि तो सात आठ नव थाय रे ॥ जघन्य त्रीजे नवे शीव लहे, त्यां अव्याबाध सुख सदाय रे ॥ ॥ चतुर० ॥ १६ ॥ अव्य सनाथ दाता ग्रंथि नेद ए, क्षेत्र | सनाथ कय उपशम वृद्धि रे॥ काळ सनाथ दाता उपयोग नाव डे, नाव सनाथ अनुन्नव शुद्धि रे ॥ चतुर० ॥ १७ ॥ एम अनाथ सनाथ विचारीने, अनाथ नावने हणीया रे॥ अनाथी मुनितस नाम बे, सनाथ ए ज्ञान गुणे दरिया रे॥ है ॥ चतुर० ॥ १७ ॥ त्रण सनाथ कारणरूप , जावसनाथ कार्य अनुप रे ॥ अनाथ पद फुःखनुं मूळ बे, सुख मूळ , सनाथ नूपरे ॥ चतुर० ॥ १५ ॥ सनाथ पद धारीने करूं 6 वंदना, प्रणमुं तेहना पायरे ॥ गुण गावं अंतरंगशु, अनुमोद वारंवार थाय रे, ॥ चतुरः ॥ २० ॥ त्रण सनाथ दोय गति पामता, देवनी एक बीजी सिद्ध रे ॥ नावमा ए आवे तो संपजे, नहीं तो लहे देवनी ए अद्ध रे ॥ चतुर० ॥१॥ नही नाव सनाथ त्यां संसार , त्रण सनाथ संसार अल्प रे ॥ बहुल संसार अनाथमां, अन्य अनाथ मिथ्यात्व जल्प रे ॥ चतुर ॥ १२ ॥ अनंत पुद्गल परावर्त्तनो, मालिक अनादि मिथ्यात्व रे ॥ एथी बुटयां संसार अस्प डे, पामे समकित लहे गुण सत्वरे ॥ चतुर० ॥३॥ अनाथ उपादान मोह बे, डे वळी रागने वेष रे ॥ सनाथ, उपादान जीव गुण बे, जे जीव पर्याय प्रदेश रे॥ चतुर॥ ॥ २४ ॥ बाह्य दृष्टियें धर्म अनाथ बे, अंतरदृष्टिये धर्म , सनाथ रे ॥ बाह्य दृष्टि संसार साथ डे, अंतरदृष्टि शीव , answerGGE Bon.marGRAarusesGBaramNR. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRAGARGARGHAKRABARARom સજઝાય અધિકાર, SRIGARS साथ रे ॥ चतुर० ॥ २५ ॥ व्यवहार वर्त्तना ते बाह्य डे, शुनाशुन जोग त्रण वृत्तिरे ॥ आश्रव करणी डे ए सही, १ धर्म कहे ए अनाथ आकृति रे ॥ चतुर० ॥ २६ ॥ शब्द ह वर्त्तना अंतरंगमां, अनुन्नवे उपयोग स्थिर रे ॥ स्वरूप ७ रमण शुद्ध नावथी, गुण वृद्धि होय लहे स्फूरण वीर रे ॥ ॥ चतुर ॥ ७ ॥ सोही सनाथ पद नावीयें, नेद ज्ञान ६ लावी घट मांही रे ॥ सप्रविनाग तीहां संपजे, हेय जाणी मे पर त्यांहीरे ॥ चतुर० ॥ २७ ॥ आदर एक शुद्ध स्वरूपनो, ध्याता ध्येय ध्यान एकत्व रे ॥ ध्येय शुद्ध प्रव्यार्थक ए, ध्याता पर्याय धर्म महत्व रे ॥ चतुर ॥॥ ध्यान शुक्ल एकता अन्नेदता, पर्याय धर्म द्रव्य मांहि रे ॥ 3 जिन्न गवेषण शहां टळे, मिळे परिणति शुद्ध अशुद्ध नाही, रे॥ चतुर ॥ ३० ॥ इहां मोहर्नु उन्मूलन थयुं, टल्या 3 रागने वेष दोयरे ॥ क्षय उपशम नाव इहां टख्यो, लहे मुनि यथाख्यात सोही रे ॥ चतुर० ॥३१॥ नाव सनाथ तस कीजीये, संसार निरबीज वंतरे ॥ वीतराग गुणगण ए बारमें, त्रण कर्म हणे महा संत रे ॥ चतुर० ॥ ३ ॥ केवळनाण दर्शण प्रगटे, प्रगटे दायक लब्धि पांचरे॥ दान ह खान नोग उपन्नोग ए, वीर्य स्फुरणा अनंत न खांचरे ॥ चतुर॥३३॥ ए परमानंद पद मोटको, अरिहंत तेरमे वासरे॥ ६ आयु अंते योग रोध करे, योगी गणे सिद्ध पास रे ॥चतुर० १ 9 ॥३॥ अघाति चउ कर्मथी टल्या, बुटी वर्गणा कारमणरे॥ हे बुटी वळी मनुष्यगति हां, बुटयुं चगति ब्रमण रे ॥3 Rewaraxsxeos SHARGOLGIRAGGrenger HTRGBaramaraGhareGrdars (२८२) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ResorRISORREARRAGERAGas चतुर ॥ ३५ ॥ श्रात्म असंख्य प्रदेशनो, निवम घन दोय नागे थाय रे ॥ एक नाग पोलाणनो घटे, बुटयुं 9) शरीर तेहथी गणाय रे ॥ चतुर० ॥ ३६ ॥ ए घन सिद्धनीह अवगाहना, लोक शिखर करे वास रे ॥ समश्रेणीये एक समयमां, ज्योतमां ज्योतनो समास रे ॥ चतुर ॥ ३७ ॥ ६ 0 रुपातित सिद्ध महरायने, सादि अनंत नंग कहिये रे॥ सिद्ध गति अनादि अनंत , एसी अक्षय पदवी सहीये 6 रे॥ चतुर० ॥ ३० ॥ अकृत अनुन्नववंत बे, अनंत केवळ 6 नाण दर्शन रे ॥ चारित्र वीर्य अनंत बे, ए प्रत्यक्ष प्रमाणे मानुं धन्न रे ॥ चतुर० ॥३ए ॥ सोहि सनाथ व्यक्ति धर्मना, अव्याबाध सुखवंत रे॥ अलख निरंजन अचळ ए, परमानंद नोगी महंत रे ॥ चतुर ॥ ४० ॥ एवंनूत। नय पूर्णता, सनाथ विचारे गवेषी रे ॥ ज्ञान शीतळ कहे पामीये, शुद्धात्म अनुन्नव पेखी रे ॥ चतुर० ॥ ४१ ॥ ॥ सजाय ॥ ६ ठी ॥ मधु विंदवानी ॥ एक दिवस विषे नेमि कुंवर निज मित्र संघातें श्रावे ॥ ॥ए देशी ॥ संसार वने चउगति नव ब्रमण जीवने पुःख मोटुं॥ अनुनय विना, धर्म साधन करीए ते सर्वे बोटुं ॥ ए - कणी ॥ मधु बिंदु दृष्टांत चित्त धरीये, अघोर वन चन गतिमां फरीये, तीहां वनगज मारे ते मरीये, संसार वनेक ॐ ॥१॥ जीव आगळ गज पाठळ दोमे, वमनीचे कूप दीगे हे दोमे ॥ तेमां लटके वनवा दो जोमे, ॥ संसार० ॥२॥ Sangrammaloongare al GrammaNGRama SARGAMRAGARRIGARAGR SAGARAGAGARGIGRANGGARAR Doooo Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HIRGARBookGRomarwarenesi सआय अधि:२. . ... ......। 9 दृष्टि नीची करे कुप खामे, अहि च्यार अजगर एक मुख । फामे ॥ जय लाग्यो उरध मुख चीस पामे ॥संसार० ॥३॥ 9) कापे मुषक दो वमवार जोवे, श्याम उज्जळ वर्ण जीवित , खोवे, वम पामण गज गर्जित होवे, ॥ संसार० ॥ ४ ॥१ & वम कंपे उन्नो स्थिर खमे, मधपूमे बेली त्यां मखीयां है ई उमे ॥ अंगे वळगे ते पुःखथी रमे ॥ संसार वने ॥५॥ ए मधपूमो तीहां फाटीयो, मध करे पमे बिंदु नाके लीयो॥ है चाटी स्वाद लहंतां दुःखटळीयो॥ संसार वने ॥६॥ एणे समे गगन विमानमां, विद्याधर पत्नी आणंदमां ॥ बेसी जावे इच्छीत स्थानमां, संसारवने ॥ ७॥ एणे दीगे कूपे जीव दुखीयो, कहे विद्याधरी काढी करो सुखीयों, एने 3 लावो यहां ए न रहे नूखियो, संसारवने ॥ ॥ कहे विद्याधर तु सुण प्यारी, ए वचन न माने हितकारी ॥ दुर जातां काळदेप नहीं सारी, संसार वने ॥ए ॥ पुनरपि बोले तिहां कने, विद्याधर उतरे स्थिर मने ॥ कहे श्रावी बेसो लाइ विमाने, ॥ संसारवने ॥ १० ॥ ए वचन न माने विकळ जारी, कहे बिंदु लश् आईं मन गरी, उंचुं जुए ए मधपुझे मुख धारी, संसार वनः ॥ ११ ॥ एम पुनरपि बिंदु थावे, लइ चाटे स्वादें मन नावे ॥ नोकळे १ नहीं दुख जुली जावे ॥ संसारवने ॥ १२ ॥ एने मकी । विद्याधर जावे, कह्यो नय उपनय दाखं नावे ॥ तीहां ज्ञान शीतळ श्रानंद पावे ॥ संसारवने ॥ १३ ॥ HEREIGNBAGraord GranardartiGradAGreGra Grg ram Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સજઝાય અધિકાર, ॥ ढाळ २ जी॥ reOMPREMIEWS GROR GROGRAGIRI ॥ साधुजी समता आदरो ॥ ए देशी ॥ चेतनजी शुद्ध अनुन्नव करो, तीहां निज पर जिन्न" ता थाय मेरे लाल ॥ टळे परसंगीपणुं, उपयोग स्वरूपे १ प्रगटाय मेरे लाल ॥ चेतनजी शुद्ध अनुन्नव करो॥आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ ए साधन शीवपंथनुं कडं, एथी चगति बुटे संसार ॥ मेरे लाल०॥ अव्य नाव नोकर्मने दणी, थाय सिद्धि वधु नरथार ॥ मेरे लाल ॥ चेतनजी० ॥२॥ हवे उपनय श्रर्थ मूळ ढाळनो, कहुँ समजो चतुर सुजाण ॥ मे रे ॥ वन चगति सोइ मोटकुं, पुनर्नव ब्रमण प्रमाण ॥ मे० ॥ चे ॥ ३ ॥ फुःख अशाता कीजीये, गज ते काळ मारण हार ॥ मेरे० ॥ वम ते आयुष नाखीयुं, कूप काय जोग इति संसार ॥ मेरे० ॥ चे ॥ ४ ॥ वनवाश् श्वासोर श्वास बे, अहि चार कषाय कहाय ॥ मेरे० ॥ अजगर मोह ने किजीये, मूषक पद शुक्ल कृष्णाय ॥ मेरे ॥चे० ॥५॥ मखीयां कुटुंब परिवार ते, वळग्युं अनुकुळ प्रतिकूळ ॥ मे रे० ॥ खेद क्लेश करी काळ निरगमे, ए तो जाणीये पासानुं शुळ ॥ मेरे० ॥ चे० ॥ ६॥ मधु विंदु विषय सुख जाणीये, पंचद्रि विषय अन्नंग ॥ मेरे० ॥ रागद्वेष एहथी वधे, तेने माने सुख बेगे रंग ॥ मेरे० ॥ चे ॥ ७॥ वि६ द्याधर सोही सद्गुरु, गगन निरालंब ध्यान तर ॥ मेरे० ॥ विमान ते धर्म जाणीये, पतनी ते सुबुद्धि हितकर ॥ मेरे है हे ॥ चे० ॥ ॥ जावे इच्छित ते मुक्तिपुरी, दीठा सावध ६ ALIGRESSINGH GonorraramaraGGrarana (२८५) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SARGIRRORRIAGRAT સજઝાય અધિકાર. BARAGAR saroreGAGaram कूपे पुःखी जीव ॥ मेरे ॥ सुबुद्धि कहे काढो दया करी, | लावो निर्वद्य विमाने करो शीव ॥ मेरे० ॥ चे० ॥ ए॥१ श्रातम ज्ञानी विद्याधर कहे, ए नहीं माने मुज केहेण ॥ , मेरे ॥ ध्यान तुरंगे जावं वेगशू, फोगट कुण रेवे रेण ॥ ७ & मेरे ॥ चे ॥१०॥ पुनर पतनी प्रेयों थको, ध्यान घो-ह. मेथी उतरे ते स्थान ॥ मेरे० ।। कहे संसार कूप थकी नीकळो, बेसो ज्ञान वैराग ते विमान ॥ मेरे ॥ चे ॥ ११ ॥ ए. माने नहीं विकल घणो, परिग्रह लोग विषयनी मांही ॥6 मेरे ॥ सद्गुरु तीहां समजावता, दुर्गति संसार राग त्यांही ॥ मेरे० ॥ चे० ॥ १५ ॥ ते कारण तजीए प्रेमथी, जेम कांचळी उतारे सर्प ॥ मेरे ॥ फरी मनमां नवी सावीए, एक ग्रहीये संयम महा तप ॥ मेरे० ॥ चे ॥ १३ ॥ ए वचन सुणे इंद्रि गुणे, न चिंतवे हृदयनी मांही ॥ मेरे ॥ र हिताहित समजे नहीं, गुरु उपदेश गुण नहीं त्यांही ।मेरे० ४ ॥ चे० १४ ॥ फरी स्वर्गनां सुख गुरु दाखवे, कहे पामो तजीने संसार ॥ मेरे ॥ देवांगना ऋद्धि सांबे आयुषे, करो लोग दिदा खेर जीव तार ॥ मेरे० ॥ चे ॥ १५ ॥ ए १ वचन सुणी मन चिंतवे, मी लाग्युं मोहित थयुं मन ॥ मेरे ॥ संसार राग कूप नवी टळे, मोह वळग्यो न बुटे जेम जन्न ॥ मेरे० ॥ चे ॥ १६ ॥ कहे आगळ संसार बोमशं, हाल जोगबु अनुकूळ सुख ॥ मेरे० ॥ दुःख नजरे नथी आवतुं, मिथ्यात्वी माने सुख ए तो दुःख ॥ मेरे ॥ ६ चे० ॥ १७ ॥ एम समजी ध्यान घोमे चमी, गुरु गया नाव sandrownstagram KARnoranoranartGARAGroornaronlowar Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ B સજ્ઝાય અધિકાર. अध्यात्म त्यांही ॥ मेरे० ॥ कृत्य अनुभव पामीया, दुइ व्यक्ति अनंत गुण मांही ॥ मेरे० ॥ ० ॥ १८ ॥ तेमां मुख्यता केवळ ज्ञाननी, सद्द्भूत शुद्ध दायक तेह ॥ मेरे० ॥ परमातम पद ए मोटको, तीहां जमी गइ कर्म खेह ॥ ७ मेरे० ॥ ० ॥ १९ ॥ निरंजन सिद्ध निराकार ए, परमानंद ज्योतिनं ॥ मेरे० || अव्याबाध सुख अनुभवे, अविनाशी अचळ शीवकंत ॥ मेरे० ॥ चे० ॥ २ ॥ तुंही अलख अगोचर माहरे, कहे ज्ञान शीतल सुपो सिद्ध ॥ मेरे० ॥ ते दुःख साले वे यति घणुं, दुःख जाय जब देखुं तुज ऋद्ध || मेरे० ॥ चे० ॥ २१ ॥ ॥ कळश ॥ एम हरखे गायो, ज्ञान पायो मधुबिंदु विचारए || ते ती दो ढाळो कीधी, समजी लहो जव पार ए ॥ १ ॥ संसार दुखनुं मूळ बे, हानि सुखनी थाय ए ॥ ते कारण अंतर्दृष्टि, तजीये संसार रागए ॥ २ ॥ श्रातमज्ञानी गुरु जोइने, दिक्षा लियो नवि हित ए ॥ ज्ञान शितळ निजद्रव्य जावे, आणंद लदो सिद्ध खेत ए ॥ ३ ॥ संपूर्ण ॥ सर्व ॥ ३७ ॥ ॥ सज्जाय ॥ ७ ॥ मी माळा आरोपणनी ॥ ॥ तपशुं रंग लाग्यो । ए देशी ॥ समकित मूळ गुण माळा धारोपण, गुरु निग्रंथ निश्रायें थाय रे ॥ उपधान बहीने पेढे रे, ते श्रावक श्राविका कहाय रे || माळा आरोपण रे ॥ ए की ॥ १ ॥ माळा ( २८७ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HTTARGrammarGrammar સજઝાય અધિકાર SoSorGGBGGINGare १ मूळ लेद पंच परमेष्टि, उत्तर गुण एक सत आठ रे ॥ ६ अरिहंत सिद्ध सूरि पद त्रीजे, उपाध्याय साधु गुण कहें पाठ रे ॥ माळा० ॥॥ अरिहंत प्रथम परमेष्टि, गुण : बार उज्वल वरणे रे ॥ तीहां घाति चल कर्म हणीने, अनंत १ चतुष्टी प्रगट निरणे रे ॥ माळा० ॥३॥ सिद्ध पद परमेष्टि बीजा, बाग्गुणे रक्त वरणे रे ॥ कार्मण कर्म रहित पुद्गलथी, मूळ रुप प्रगट लीयो शरणे रे ॥ माळा०॥४॥6 श्राचार्य परमेष्टि त्रीजा, बत्रीस गुणे पीत वरणे रे ॥ षट् दर्शन शास्त्रने जाणे, सही संयम श्री तस परणे रे माळा० ॥ उपाध्याय परमेष्टि चोथा, पंचवीश गुणे नील वरणे रे॥छादशांगी सिद्धांतनी पेटी, नणे नणावे खपीजो रहे शरणे रे ॥मा०६॥साधु ते पंचम परमेष्टि, सप्तवीस गुणेश्याम वरणे रे॥ निदोषी मूळ व्रत सदाये, दोष लागे तो उत्तर गुण हणेरे॥ माळा० ॥ ७॥ आचार्य उपाध्यायने साधु, अप्रमत्त गणे पद पावे रे ॥ प्रमाद गणे आवे नहीं तो, श्रेणी मांमी अरिहंत सिद्ध थावे रे ॥ माळा ॥७॥ पंच परमेष्टि गुण प्रमाणे, माळामां कीधा सही गुच्छारे ॥ द्वादश उज्वळ आठ रक्त ए, पीत बत्रीस खील्या रुमा अतुच्छारे॥ माळा० ॥ ए ॥ नीला पंचवीश श्याम सत्तावीस, एम पंचवरणी माळारे ॥ एक सत्तने आठ गुच्छानी, शोने अद्भूत पेहेरी धर्म लालारे॥ माळा ॥ १० ॥ माळा गुण घट अंतर मांहि, अनुन्नव जुवने आवे रे ॥ समन्नाव वृत्तिये तद्गत खेले, गुणगत उपयोग परिणमावेरे ॥ माळा० ॥११॥ उच्छव महो. NCRENarawaxoreBER SRGBroarnerBAGD.maroorkerena Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सआय मधि२. RAGGIRGAR GARAGROOR ११ च्छव अधिको घटमां, अनहद वाजां वाजेरे ॥ सहस@ सूर्योदय तेजे तपता, त्यां अनुलव ज्ञानी विराजेरे ॥माळा० १ ॥ १५ ॥ इत्यादि गुण घटतरमा आवे, नय व्यवहार निश्चे ६ बेहु नावेरे ॥ व्यवहारे उपाधि हणतां, निश्चय तद्गत गुण प्रगटावेरे ॥ माळा० ॥ १३ ॥ बाज्य कटप करणी व्यवहारे, देखी मूढ रंजन थावे रे ॥ अंतर करणी रंजन चतुर नर, ६ एम सिद्धांती सही गावे रे ॥ माळा० ॥ १४ ॥ अंतर गुण 3 माळा जे पेहेरे, हुं तस प्रणमुं पायारे ॥ तेथी शान शीतळता सहीये, गुण गातां गुण वृद्धिये सवायारे॥माळा॥१५॥ ॥ सज्झाय ८ मी लघुता विचारनी ।। ॥ चतुर नर सामायक नय धारो ॥ ए देशी ॥ चतुर नर लघुता वृत्ति पेखो, लघुताए सुखीयो गुरुताए दुःखीयो, जीव जगतमां देखो चतुरनर ॥ लघुतावृत्ति 3 पेखो ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥ १ ॥ लघुताए उपशम आवे, मोह प्रकृति दबावे॥तीहां समकित चारित्र लहीए, ए शीव सुख कारण थावे ॥ चतुर० ॥ २॥ गुरुतामां माननो वासो, मद मोटपमा नराणो ॥वास्यो न वळे पथ्थर थंनो, एम मान न डोमे जाणो ॥ चतुर० ॥ ३॥ मोटप " करतां बोटप थावे, दुर्गति दीनता पावे ॥ एसो जाणी मोटप मेलो, एम सिद्धांती सही गावे ॥ चतुर० ॥४॥ लघुता करतां विनय आवे, बोधि बीज तीहां पावे ॥ वि नय रहितने गुण न थावे, गुरुवाइ अनम्र कहावे॥ चतुर० हो ॥ ५ ॥ सबुता चारित्रनुं अंग, चतुर ग्रहो तुमे नाश् ॥ _ ( २८८) ParenesaotmareneNEWS SaroorkGG.RAGara ३७ SEAR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BARAGRAMMAR 9 मोह अंग मोटपने टालो, ए पाप प्रकृति दुःखदा॥चतुर ए 9॥६॥ उपशम अन्नावे परमां पेसे, परथी बुटे नांहि॥ ते १ ६ कारण उपशम श्रादरीये, सहीए निज घर लघुता त्यांहि | ॥ चतुर० ॥ ७॥ उपाधि रोकण अति बळीयो, उपशम जाव कहावे ॥ उपाधि एक ध्वंस करणकुं, ज्ञान वमो श्रागु ६ थावे ॥ चतुर ॥ ७॥ उपशम श्रेणीये उपशम धागु, गण एकादशमे अटके॥ अंतर महुरत एकज रहेवे, तीहांथि उदय आवीने पटके ॥ चतुर० ॥ ए॥ क्षपक श्रेणीये ज्ञान 6 थार, उपशम पाळ लागु ॥ उपशमे उदय उपाधि अ व्यापक, उपाधि हणे ज्ञान जागु ॥ चतुर० ॥ १० ॥ घाति २ कर्म उपाधि खुटे, सत्ता उदय न लाधे ॥अरिहंत सजोगी। है एही, आयु मे योग रोध साधे ॥ चतुर०॥ ११ ॥श्रघाति उचउ कर्म अन्नावे, सिद्ध सनातक थावे ॥ ज्ञान शीतळ ए निरंजन निर्मळ, समश्रेणीये सिद्ध सधावे॥चतुर॥१॥ सम्झाय ॥ ९॥ मी ॥ आयु अथिरनी ॥ ॥ ऋषननो वंश रयणायरु ॥ ए देशी.॥ आयुष्य तुटयाने सांधो को नहीं, चतुर चित्तमां चेतोरे॥ काळ क्षण क्षण आयु बेदतो, बेसी क्षणे मरण देतो रे ॥ आयुष्य त्रुटयाने सांधो को नह। ॥ ए आंकणी ॥ 99 गाथा ॥ १॥ ते कारण प्रमाद परहरो, ग्रहो स्वरूप उप योगरे ॥ ज्ञान दर्शनादि तीहां संपजे, करे सकाम निर्जरा निरोगरे ॥ आयु०॥२॥ मिथ्यात्व कषाय जीहां टळे, टळे , अझान अंतरायरे ॥ रागढेष मोह सवि टळे, तीहां क्षीण ६ HARIBAGrandal BIG.GAR mormone (२८०) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOR GARAGAR ARRIAGARGirls श्री शु३तिनो रास.. १ मोह वीतराग थाय रे ॥ आयु०॥३॥ए निरोगी पुनरपि मरे नहीं, न जन्मे चउगति संसाररे ॥ केवळनाण दर्शण 5 खहा, अमरपद सिद्ध निरधाररे ॥ श्रायु० ॥४॥ एम था युष अथिर विचारतां, अप्रमत्त गण न बोमेरे ॥ क्षपक श्रेणि अपूर्वे मांमीने, शुक्लध्याने कर्म सवि तोमेरे ॥ श्राहै यु० ॥५॥ जन्म जरा मरण काळथी, कह्यो बुटवानो उ पायरे ॥ ज्ञान शीतळ करी जे लहे, ते जीवन मुक्त कहायरे ॥ श्रायु०॥ ६॥ ॥ इति सज्झाय अधिकार संपूर्ण.॥ ॥ अथ श्री गुरु नक्तिनो रास लिख्यते ॥ ॥ दुहा ॥ प्रणमुं श्री गुरु रायने, बोधि बीज दातार ॥ शिव सुख हेतु ए जला, मोद विदारण हार ॥१॥ गुरु नक्ति गुण गाश्शु, रास रचुं मनोहार ॥ ढाळ बंध रचना करूं, त्यां प्रमोद नावना सार ॥२॥ गुरुगुण रत्न चिंतामणी, गुरु वच हे रसकूप ॥ गुरु ज्ञान पंथ शीवनो, गुरु अनुन्नव शीव रूप ॥३॥ गुरु दर्शन पूरव दिशी, गुरु मुख पुनमचंद ॥ गुरु विनय मूळ धर्मर्नु, गुरु शीव सुखकंद ॥४॥ गुरु थाज्ञा पारस मणी, गुरु शिक्षा सुर कुंन्न ॥ गुरु रागथी सिद्धि ऋद्धि, गुरु स्मरण चित्त शुन्न ॥ ५॥ ॥ ढाळ ॥ १॥ ली॥ . समुष विजय कुळ चंदलो जीन वंदिये ॥ ए देशी ॥ ___वस्तु सत्ताना जाण रे॥ गुरु वंदीये ॥ हुकम मुनि NAGARIKwas 836 aranoramaraGOGrenorrore AGARIORGranoranardGrore (२८१) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जसनाम सदगुरु वंदीए ॥ उळखावे वस्तु प्रते ॥ गुरु० ॥ ६ सत्ता सहित हित काम॥ सदगुरु० ॥१॥ गुण पर्याय नाजन सही ॥ गुरु० ॥ एक रुप त्रण काळ ॥ सदगुरुण ॥ तेह अव्य निज जातिनो ॥ गुरु० जश नहि नेद विचार ॥ सद- १ गुरु० ॥२॥ धर्म कहीए गुण स्वन्नावे ॥गुरु०॥ कर्म नावी पर्याय ॥ सदगुरु० ॥ निन्न अनिन्न त्रिविध सदा ॥गुरु०॥ एक पदारथ पाय ॥ सदगुरु०॥३॥ उपजे वीणसे स्थीर रहे ।। गुरु० ॥ ए डे वस्तु वखाण ॥ सदगुरु० ॥ उपजq विणसवं ते सही ॥ गुरुवंदीये ॥ पर्याय धर्म ते जाण ॥ सदगुरु० ॥ ४॥ स्थिरपणो तीहां द्रव्यनो ॥ गुरु० ॥ पलटे नहीं निरधार ॥ सदगुरु० ॥ अवगाहना सर्व द्रव्यनी ॥ गुरु० ॥ गुण पर्याय प्रदेश धार ॥ सदगुरु० ॥ ५॥ तेहीज हूँ सत्ता प्रव्यनी॥गुरु० ॥ वीणसे नहीं त्रण काळ ॥सदगुरु॥ द्रव्ये द्रव्य मिले नहीं ॥गुरु०॥ असहाय अनादि निहाळ ॥ सदगरु० ॥६॥ निज सत्तामय द्रव्य डे ॥ गुरु० ॥ १ परसत्ता ग्रहे न कदाय ॥ सदगुरु० ॥ अव्यरुप बति कार्यनी ॥ गुरु० ॥ तिरोनाव शक्ति सदाय ॥ सदगुरुः ॥॥ आविरनावे निपजे ॥ गुरु० ॥ व्यक्ति गुण ४ ६ पर्याय ॥ सदगुरु०॥ कार्य कारण निज प्रव्य ॥ ॥ गुरु० ॥ परद्रव्य अकारण अकार्य ॥ सद० ॥ ॥ बति पणे स्व द्रव्य २ ॥ गुरु०॥ अति पणे परद्रव्य ॥ सद० ॥ ६ एम अस्ति वे वस्तुनी ॥ गुरु० ॥ रही सर्व प्रव्य ॥ सहे दगुरु ॥ ए ॥ अव्य स्वनावे नित्य ने ॥ गुरु० ॥ पर्याय (२८२) GORG Poem GrammarGreer Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Grenorrenomenorroraordinaranews REVERG REAGrores श्री शु३तिना सस. स्वन्नावे अनित्य ॥ सदगुरु० ॥ नित्य अनित्य एक वस्तुमां ॥ गुरु० ॥ नाषे ज्ञानी विनित ॥ सदा ॥ १० ॥ स्वप्रव्य १ स्वक्षेत्र स्वकाळथी ॥ गुरु० ॥ स्वन्नाव सहित चार सत्य ॥ सदगुरु० ॥ परमव्य परखेत्र परकाळथी । गुरु०॥ परनाव ए चार असत्य ॥ सद० ॥ ११॥ अव्य पदारथ एक डे ॥ ॥ गुरु० ॥ तेमां गुण पर्याय अनेक ॥ सदः ॥ गुण पर्यायमां एक डे ॥ गुरु० ॥ अव्य पणुं ते ब्रेक ॥ सदगुरु० ॥ १२ ॥ शक्ति नाव अव्यक्तव्य ले ॥गुरुणा वक्तव्य व्यक्ति नाव ॥ ॥ सदगुरु० ॥ अन्नव्य स्वन्नाव पलटे नहीं ॥ गुरु० ॥ पलटे नव्य स्वन्नाव ॥ सद० ॥ १३ ॥ पर्यायार्थक नेद वस्तु ॥ ॥ गुरु० ॥ द्रव्यार्थक अन्नेद ॥ सदगुरु० ॥ उन्नय धर्मी द्रव्य २ ॥ गुरु० अविरोधि अबेद ॥ सद० ॥ १४ ॥ एम स्याहाद लक्षण मयी ॥ गुरुः ॥ अव्य सत्ता गुणनी खाण ॥ सदः ॥ इत्यादिक बहु नेदथी गुरु ॥ वस्तु सत्ता उळखाण ॥ सद० ॥१५॥ ते वस्तु षट् नेद ३ ॥ गुरु०॥ एक जीव अजीव पांच नेद ॥ सदा ॥ एक रुपी चार अरुपी ॥ गुरु ॥ तेने वरणवतां अखेद ॥ सद० ॥१६॥ या ढाळने पूरण करी ॥ गुरु०॥नेद कहेशुं बीजी ढाळ मांही॥ सद उलट अंगे अति घणो ॥ गुरु० ॥ ज्ञान शीतळ उगंदी सद० ॥ १७॥ SARGrammar GARGaramrone वस्तु सत्ता गुण दाखीयो, दाख्यो स्याहाद धर्म ॥ अव्य पर्यायने जाणतां, टळे मिथ्यामति नर्म ॥१॥ EReserGRICAN H Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ REACTIREMIUMBres Marwancino શ્રી ગુરૂભક્તિને રાસ. ढाळ ॥ २ ॥ जी ॥ देशी चंडावळानी॥ हुकम मुनिसर वंदीये रे षट् अव्यना जाण ॥ सत्ता हे गुण पर्यायनेरे, जाणवा दिनकर जाण ॥ त्रुटक ॥ जाणवा ७ दिनकर जाण स्वन्नावे, उपयोग जोमे न विनावे ॥ तेहीज है आतमझानी कहीए, ए विण अवर न ज्ञानी लदीए॥ वंदो नविजन एह ॥ ए आंकणी ॥ १॥ धर्मास्तिकाय पहेलो कह्योरे, बीजो अधर्मास्तिकाय॥आकाशास्ति त्रीजो कह्योरे, चोथो काळ कहाय॥ त्रुटक ॥ चोथो काळ कह्यो उपचारे, बता पणो तेमां न विचारे॥ पांचमो ऽव्य पुद्गलास्ति कहीए, बगे अव्यजीवास्ति लहीये ॥ वंदो० ॥२॥ षट् प्रव्य नाम दाखीयां रे, हवे कहुँ तास विचार ॥ प्रथमना त्रण ऽव्यनोरे, साधर्मिकपणो धार ॥ त्रुटक ॥ साधर्मीकपणो धारते दाखं, अरूपी अचेतन अक्रिय नाखुं ॥ ए त्रण गुण त्रण प्रव्यमां सरखा, एक गुणे निन्न धरमे परख्या ॥ वंदो० ॥ ३ ॥ गति हेतु धरमास्ति डेरे, स्थिति अधर्मास्ति काय ॥ अवकाश धर्मी आकाश डेरे, एम निन्न धर्मी कहाय ॥ त्रुटक० ॥ एम निन्न धर्मी कहाय स्वन्नावी, एक गुणे ते चित्तमां सावी ॥ पर्याय चार हवें ते दाखं, उपयोग स्थिर गमे राखं ॥ वंदो० ॥ ४॥ खंध देश प्रदेश डेरे, अगुरु लघु सं-१ ॐ युक्त ॥ ए पर्याय चार दाखीयारे, ते समजवा जुक्त ॥त्रुटक० ६ ते समजवा जुक्त ते सारो, धर्म अधर्म खंध लोकमांधारो॥ ६ Arrarsesexsi SARGIGRAGramanandnaarakaranora Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .ra.........anima.. श्री ९३मातनो रास... १ आकाश खंध लोकालोक त्यांहि, अलोक अंत कह्यो नहीं ६ क्यांह। ॥ वंदो० ॥ ५ ॥ उर्ध्व अधो ति दिके रे, कल्पित १ देश कहाय ॥ धर्म अधर्म बे अव्यमा रे, असंख्य प्रदेश समाय ॥ त्रुटक ॥ असंख्य प्रदेश समाय लोकमां, आकाश अव्य रह्यो लोकालोकमां ॥ अनंत प्रदेशी ते खंध ६ कहाय, अगुरु लघु चोथो पर्याय ॥ वंदो० ॥ ६॥ चोथो प्रव्य ते काळडेरे, श्रवस्तु रूप जेह ॥ ते मान्यो उपचारथीरे, दाखं तस गुण गेह ॥ त्रुटक० ॥ दाखं तस गुण गेह ते चार, अरूपी अचेतन अक्रिय धार ॥ नवा पुराण वर्तना लक्षण, काळ गुण ए कहे विचक्षण ॥ वंदो॥७॥ काळ पर्याय चार दाखवु रे, पेहेलो अतित अनंत ॥ श्रनागत अनंत डेरे, वर्तमान समय लहंत ॥ त्रुटक० ॥ वर्त्तमान समय लहंत अळगो, बीजो समय तेने नहीं वळग्यो ॥ श्रगुरु लघु चोथो पर्याय, काळ अव्य मांहि ते समाय ॥ वंदो० ॥ ॥ अजीव अरूपी वर्णव्यारे, चार अव्य संयोग जीव पुद्गल बाकी रह्या रे, ते दाखं उपयोग ॥ त्रुटक० ॥ ते दाखं उपयोग लगावी, त्रीजी ढाळमां ते नाव लावी ॥ १ ढाळनी इहां थर पूरणता, ज्ञान शीतळ उपयोगनी लीनता ॥ वंदो० ॥ ए॥ Gora Grassroom BaramaraGooorarthamare दुहा. अजीव अरूपी दाखीया, चार अव्य संयुक्त ॥ जीव पुद्गल बाकी रह्या, ते दाखं नली जुक्त ॥१॥ है Yeanewsnetween areas (२८५) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ m orea Harmorenorror GranarGranor श्री गुमातिना रास. . . ढाळ ॥ ३ ॥ जी. ॥ देखो गति देवनी रे ॥ ए देशी ॥ हुकम मुनिसर वंदीये रे, जाणवा पुद्गल जीव ॥ हित उपगारी अति नलारे, अधिक ज्ञानी ए शीव ॥ जगतगुरु 6 वंदियेरे ॥ परमानंदनो ए कंद ॥ जगतः ॥ ए आंकणी गाथा ॥१॥ पुद्गलनी आठ वर्गणारे, तेणे चेतन बंधाय।। चेतन निज गुण नवि लहेरे, दार्खा उपयोग लाय॥जगतः । ॥२॥ उदारिक वर्गणा पेहेली कहीरे, बीजी वैक्रिय जाण ॥ त्रीजी आहारक वर्गणारे, चोथी तेजस वखाण ॥ जगत० ॥३॥ नाषा वर्गणा पांचमीरे, श्वासोश्वास उही कहेवाय ॥ मनोवर्गणा सातमीरे, बाग्मी कार्मण थाय ॥ जगत ॥ ४ ॥ प्रथमनी चार वर्गणारे, बादर कही जीन राय ॥ पानसनी चार वर्गणारे, ते सूदम चित्त लाय॥ जगत ॥५॥ बादरमा गुण वीसरे, वरण पांच रस पांच ॥ दोय गंध फरस आठजेरे, ए वीस गुण नहीं खांच ॥ जगतः ॥ ६ ॥ सूक्ष्ममा सोळ गुणडेरे, हिण फरस डे चार ॥ ते पुखदाता जीवनेरे, बंधन जाळ विचार ॥ जगत ॥७॥ अविनाशी चेतनजे रे, परमानंद स्वरूप॥ अनंतझान दर्शण जयों रे, अनंत चरण वीर्य नूप ॥ जगतः ॥॥ अव्याबाध अनंतरे, अमूरती अरूप ॥ अटळ अवगाह अगुरु लघुरे, तेहीज धर्म प्ररुप ॥ जगतः ॥ ए ॥ ए धर्म चेतननुं रे, धरमी श्रातमाराम ॥ तेने हणे ते दाखवुरे, कार्मण तेहy , नाम ॥ जगतः ॥ १० ॥ कार्मण ते आठ कर्मढेरे, घाति ___(२८६) HIRAGEMBEnacterseksi Lord Gram GRAGram Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FORMIRMIRRORima GOLGareAGARGOG.GARH श्री शु३मतिनो रास. ७ चेतन धर्म ॥ पुद्गल जोगी चेतन थयो रे, दाखं तेहनो , मर्म ॥जगत॥११॥ ज्ञान घाति ज्ञानावरणी रे, दर्शनावरणी हणे दरशन ॥ चारित्र घाति मोहडेरे, अंतराय पांच टळे , प्रसन्न ॥ जगतः ॥ १५ ॥ लब्धि पांच दायक जावनी रे, दान लान लोग उपन्नोग ॥ वीर्य गुण प्रगटे चेतनारे, तेनो घाति अंतराय रोग ॥जगतः॥१३॥ अव्याबाध वेदनी हणेरे, ६ अमूर्ति हणे नाम कर्म ॥ उदारिकादिक सात वर्गणारे, है रचना पुदगल धर्म ॥ जगतः ॥ १४ ॥ तेहीज नाम करम थकी रे, चेतन पुद्गल रूप ॥ अटळ अवगाह थायु हणेरे, गोत्र हणे अगुरु लघु नूप ॥ जगतः ॥ १५ ॥ एम विनाश पुद्गल थकी रे, चेतन धर्मे विघन ॥ तेथी चेतन पुद्गल संगेरे, मिलण विखरण सलग्न ॥ जगतः ॥ १६ ॥ परसंगे संसारी थयो रे, चगति नटकण चाल ॥ श्रातम घातिए वर्णव्योरे, पुद्गल रूप निहाळ ॥ जगतः ॥ १७ ॥॥ टाळे परसंगी पणुं रे, अनुन्नवे चेतन धर्म ॥ शान शीतळ शीवपद वरे रे, हणि कार्मण आठ कर्म ॥ जगतः ॥१७॥ दहा. पुद्गलने जीव दाखिया, ए बेहुनो अनादि संबंध ते जोगे संसार स्थिर बे, तजतां श्रात्म अबंध ॥१॥ ॥ ढाळ ॥ ४ चोथी॥ ॥ तप शुं रंग लाग्यो ॥ ए देशी ॥ गुणी जीन वंदो मुनि समकिती, हुकम मुनि जस है . नामरे ॥ समकित गुण निश्चळ करवाने, उपगारी गुण ६ aaugaisarowse KARAMBIRGISGDream .. Musnergreer .HAMROM 34 (२८७) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mar................ MORRORIMARIGOR GORGEOGRAMMARGook श्री गुमातिना रास. धामरे ॥ गुणीजन वंदोरे ॥ वंदो वंदोरे स्थविर लगवान ॥ फुरित निकंदोरे ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ वस्तुने वस्तुपणे राखे, तेहीज समकित धर्म रे ॥ अवस्तुने वस्तु माने, ते मिथ्या अधर्म रे ॥ गुणीजन ॥२॥ वस्तु अव्य षट शास्त्रे जाण्या, धर्म अधर्म आकाश रे ॥ काळ पुद्गल पांच अजीव अचेतन, एक जीव चेतन्नरे ॥ गुणीजन ॥ 6 ॥३॥ ते चेतन सत्ताये जोतां, सिद्धनो साधर्मी रे ॥ गुण पर्याय स्वन्नाव डे सरखा, निर्मळ वे अकर्मी रे ॥ ॥ गुणीजन० ॥ ४॥ ए वचन के संग्रह नयनु, शक्ति नाव13 अपेक्षीरे ॥ सिद्ध संसारीमां अंतर नाहि, त्रणकाळ शुद्ध सक्षीरे ॥ गुणीजन ॥ ५ ॥ चेतन वस्तु चेतन नावे, वस्तुपणे सद्दहीए रे ॥ तेहीज समकित शास्त्रे दाख्यु, नाख्युं जीने ते कहीयेरे ॥ गुणीजन० ॥ ६॥ अवस्तुने वस्तु माने, तेह नाव हवे दार्खा रे ॥ कर्म जनित नाव पामीने, माने जीव ते नारे ॥ गुणीजन० ॥ ७॥ उदयिक नावनी योगता जोश, वस्तु पोतानी माने रे ॥ ममता तृष्णा राखे माजी, रंग धरे एक ताने रे ॥ गुणीजन ॥७॥ १ ते वस्तुने वस्तुपणे बे, पुद्गल द्रव्यना धरमीरे ॥ तेने पोते जीव माने डे, ते मिथ्या अधरमीरे ॥ गुणीजन ॥ १॥ए ॥ मिथ्यात्व समकित नेद यथारथ, द्रव्य स्वन्नावे @ दाख्या रे॥ जीव स्वन्नावे धर्म सद्दहीए, ते समकित एम 9 शाख्यारे ॥ गुणीजन ॥ १० ॥ विना विमानीक आयु न है हे बांधे, कर्मग्रंथे समकितीरे॥ समकिती देव मनुष्यनुं बांधे, , RAERBieasesGRAN @RegrogreeMoreMeroNDROIROMDOES Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RANBAREIGIBIOGRAMGARGom श्री गु३तिनो रास. रोकी तिर्यंच नरक गतिरे ॥ गुणी जन वंदो रे ॥ ११ ॥ नरक तिर्यंचनो बंध मिथ्यावे, तीहां दुःखना दरिया रे ॥ एम जाणी मिथ्यात्वने हणीयो, तेणे बे हार बंध करीयारे॥ ॥गुणी० ॥ १५ ॥ पुद्गलीक नावे धर्म करे , तप जप कीरीया मामीरे ॥ तेथी मिथ्यात्व कृश न थावे, जमणाये जूट्यो बाजी रे ॥ गुणी ॥ १३ ॥ श्रद्धा शान निर्मळ उपयोगे, निज स्वरूपे वर्ते रे ॥ रंग चोळ मजीउना सरखो, उपपवे नव पलटे रे ॥ गुणी ॥ १४ ॥ कदापि आवरण 6 उदयागत, मिथ्यात्व पालु आवे रे ॥ तो श्रद्धा विपरीत करावे, अज्ञान थाय ज्ञान जावे रे ॥ गुणी० ॥ १५ ॥ थोमा काळे ते कय थावे, संवेग ज्ञान स्वनावे रे ॥ ज्ञान वीर्य 3 उपयोग लगावी, हणशे कर्म विन्नाव रे॥ गुणीजन० ॥१६॥ शहां संसार विनाश करीने, सिद्ध हुवो निजरूप रे॥ सादि । 3 अनंतो काळ आनंदमें, वर्ने चेतन नूप रे ॥ गुणीजन ॥ ॥ १७ ॥ ए दशा समरे जे मुनिश्वर, तेहीज बातम श्रर र्थी रे ॥ तेने त्रण काळ वांउबुं, शान शीतळ शुद्ध घरची रे ॥ गुणी ॥१॥ ॥दुहा ॥ वस्तुने वस्तु पणे, जाणे त्यां लहे समकित ॥ अवस्तु वस्तु कहे, ते मिथ्या ब्रमन्नीत ॥ १॥ ॥ ढाळ ॥ ५॥ ॥ मेंदी रंग लाग्यो । ए देशी॥ वंदो नवियां मुनि संवेगी, हुकम मुनी दृढ रंगीरे॥ Excesrearrierrare saat RRBaramaraGhar resungapores (२८८) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GORG.GAGRGram. MARGIRaraGORIAGraharGee श्री शु३तिना रास. है संवेग रंग तरंग बतावे, शुद्धातम गुण संगी रे॥ संवेग रंग " ६ लाग्यो । रंग लाग्यो चोळ मजीठ ॥ संवेग रंग लाग्यो । ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ संवेग समकित एकज कहीए, , त्रण नेद मूळ दाखं रे ॥ दय उपशम उपशमने दायक, ९ उपयोग गुण तीहां राखं रे ॥ संवेग ॥२॥ चेतन कर्म है. अनादि संबंधे, एक पणे निन्न सत्ता रे ॥ जीव सत्तामां जीव रह्यो डे, कर्म वर्गणा पुदगलतारे ॥ संवेग० ॥३॥ ते कर्म मूळ आठ नेदे, चेतन गुणने हणता रे॥ तेमां मोह १ अति बळवंतो, लोकाधिपति बिरुद धरता रे ॥संवेग० ॥४॥ तेना पुत्र वमा पांच अटारा, चेतन गुणना घाति रे ॥ अंत-1 राय झाना दर्शनावरणी, तीहां आवे लश्कातीरे ॥संवेग०॥ ॥५॥ ए सर्वे नाव शत्रु तेमां, मिथ्यात्व अति अटारारे ॥ पापनो बाप दुखनो दाता, जाणीए फेरनो पटारोरे॥ संवेग ॥६॥ अनादि मिथ्यात्वी चेतन, ते समकित केम पामे रे॥ सदगुरु संगे विनय विवेके, दृष्टि करे गुरु सामे रे ॥संवेग॥ सद्गुरु ज्ञानीनेद बतावे,जीव अने पुद्गलनोरे जीव पुद्गल गुण न्यारा दाखे, तीहां चेतन गुणमां मळनो रे ॥ संवेग ॥ ॥ चेतन गुणमां रंग लगावी, उपयोग विस्तारे रे ॥ झान ध्यान वीर्य शक्तिये, मिथ्यात्व फेर उतारे रे॥संवेग०॥ए। केर रहित मिथ्यात्व हुवो जब, ते समकित दय उपशमरे ॥ उत्तर नेद विचित्र प्रकारे, आवे जावे वार असंख्यरे ॥ संवेग० ॥ १० ॥ बासठ सागर माजी स्थिति, उत्कृष्टो सि-, ६ द्धांतेरे ॥ जघन्य अंतर महुरत रहेवे, क्षय उपशम सात Massrowxxandreseries REGrammardamorporaGrammar Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CACIA GAR GAGROGRARGIGAR ISARGAR GARGORIERGARGAR GIRe श्री गुलतिने रास. प्रकृतिरे ॥ संवेग० ॥ ११ ॥ अनादि मिथ्यात्वी समकित, क्षय उपशमने पामेरे ॥ सूत्र सिद्धांते वचन डे एस्यो, प्रथम चेतन रामरे ॥ संवेगः ॥ १२ ॥ ए क्षय उपशम नाव देखाम्यो, दृष्टांते समजावुरे ॥फेर रहित मिथ्यात्व बताव्यो, खसखसमां और न पावुरे ॥ संवेग० ॥ १३ ॥ सत्ता जोतां जेर पटारो, खसखसनो एक दाणोरे ॥ ते दृष्टांते विवेके 6 समजो, शुं करे चेतन राणोरे ॥ संवेग ॥ १४ ॥ उपशम क्षायक बही ढाळमां, आ ढाळनी शहां थइ पूरणतारे ॥ चेतन गुण उपयोगे लावी, त्यां झान शीतळनी शुद्धतारे ॥ संवेग० ॥ १५॥ दुहा. समकित मोहनी उदयमां, ते क्षयोपशम समकित ॥ चोथा गणथी वृद्धिये, चढे सातमे थिर चित्त ॥१॥ ॥ ढाळ ६ ठी॥ ॥सांनळजो मुनि संयम रागे ॥ ए देशी॥ हुकम मुनीश्वर ज्ञानी ध्यानी, उपशम समकित दाखेरे ॥ ते सुणवाने चालो गुणिजन, सिद्धांत साक्षी राखेरे ॥ हुकम० ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥ १ ॥ आ संसार नव अटवी नमतां, चारगति विसामोरे॥ अनंत पुद्गल परावर्त्त कीधां, नाव्यां एके कामोरे ॥ हुकम ॥२॥ कार्य अवसर संसार थाके, अर्द्ध पुद्गलना नाकेरे ॥ सद्गुरु संग मले चेतनने, तत्व रुचि तिहां जागेरे ॥ हुकम ॥३॥ आतम गुण अनुनय स्थिर आवे, रंग चोल लय पावेरे ॥ (३०१ ) Recemsmsdomorrow SAGARGrammar Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RINGarGRRORIAGGGram श्री शु३माता रास. ६ राचे नाचे चेतन गुणमां, अकृत्य सहज स्वनावरे ॥ हुकम०, ६ ॥४॥ पुद्गल अनुन्नव त्याग करीने, अनुन्नव चेतन धर्मेरे ३ ॥ शुद्ध स्वरूप अनुनव समन्नावे, ते समकित उपशमरे॥ ॥हुकम० ॥ ५॥ अंतर महुरत मूळ स्वरूपे, चेतन रस अढळक पीधोरे ॥ परमानंद पदनुं पस्तानु, वंडित कारज सिधोरे ॥ हुकम० ॥ ६ ॥ अनंतानुं चउ मिथ्यात्व साथे, ए पांचनो उपशम रे ॥ उदयागत विपाक न आपे, तीहां बळीयो एकदम रे ॥ हुकम० ॥ ७ ॥ स्थिति काळ पूरणना जोगे, उपशम नाव विनाशी रे ॥ उदयागत मिथ्यात्व हुओ जब, पूर्व रीत तपासी रे ॥ हुकमः ॥ ७॥ है पमतां सास्वादन स्थिर रहेवे, दीर वमन स्वाद लेवे रे ॥ षष्ट आवलि काळ प्रमाणे, मिथ्यात्वे अनंत काळ सेवे रे ॥ ॥ हुकम ॥ ए ॥ अनंत काळ मिथ्यात्वे रहेवे, अनंत कर्म दळ लेवे रे ॥ स्थिति सागर कोमाकोमी उपर, न वधे । सिद्धांत एम केहेवे रे ॥ हुकमः ॥ १० ॥ उपशम सास्वादन आवे तो, पांच वार जीव पावे रे ॥ त्यार पड़ी ते दायक नावे, एम सिद्धान्ती गावे रे ॥ हुकम ॥ ११ ॥ अनादि मिथ्यात्वी परथम, उपशम समकित पामे रे ॥ कर्मग्रंथादिक एम बोले, मिथ्यात्व मळ तीहां वामे रे ॥ ॥ हुकम० ॥ १२ ॥ उपशम नाव मने एम सुझयो, ज्ञानी कहे ते साचुं रे ॥ अशुद्ध देखो ते शुद्ध करजो, ते वाते हैं ६ घणुं राचुं रे ॥ हुकमः ॥ १३ ॥ उपशम नाव ते मूळ 3 5 स्वरूपे, अनुन्नव महुरत अंत रे ॥ उदवेगता यहां नहीं है ___ (१०२) Baaroverioara arorat BrerBrowroomrewarrowroneerone BISODonrn Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ graGROGRAPAR श्री गुलतिनो रास. साधे, ज्ञान शीतळ एकंतरे ॥ हुकमः ॥ १४ ॥ . ॥ दुहा ॥ मिथ्यात्व उदय अन्नावथी, लहे उपशम समकित ॥ स्थिति महुरत पूरण थये, पके एम परतित ॥१॥ पमतां क्षयोपशम खहे, सास्वादन को॥ क्षयोपशम चोथे टके, सास्वादन बीजे सो॥२॥ ॥ढाळ ॥ ७ मी॥ ॥ कपट होवे अति उजळु रे ॥ ए देशी ॥ हुकम मुनीश्वर वंदिये रे, हायक समकित वंत ॥ . तेह नावने पामवा रे, उपगारी ए संत रे ॥ प्राणी वंदो ए. जगगुरु राय ॥ ए परमानंदनो कंद रे प्राणी ॥ वंदो ए जग गुरु राय ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥ १॥ दायक समकित जब लहे रे, चेतना तजे परधर्म ॥ परधर्मे वळगी रहे रे, जाणो तेहनो मर्म रे प्राणी ॥ वंदो० ॥२॥ पर ते पुदगल अव्य रे, धर्म तेना पर्याय ॥ शब्द रूप रस गंधळे रे, फरसादिक गवाय रे प्राणी ॥वंदो० ॥ ३॥ एह धरम पुदगल विषे रे, नहीं ले चेतन मांही ॥ तेने नजे जे चेतना रे, ते दाखं बु आंही रे प्राणी ॥ बंदो० ॥ ४ ॥ श्रोत चेतना शब्दने नजे रे, चतु नजे वरणने घाट ॥ रस चेतना रसने नजेरे, घ्राणे गंधनी वाट रे ॥प्राणी० ॥ वंदो० ॥५॥ फ रस चेतना फरसने नजे रे, ए पुदगलना पर्याय ॥ तेने 5 बजे जे आतमा रे, ते अधर्म न्याय रे ॥ प्राणी ॥वंदो॥ है ॥६॥ पांच इंशी पुदगल रे, जाणंग गुण तेही चेतन ॥ ( 303) RecorrenemasxemorroM RSTARRIAGRoork NaDARGAnareneurs Braneer Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ H SAMRAGNSAGARMORKS SSAGrenorg एम व्हेंचण झाने करी रे, नजे अरूपी रतन्न रे प्राणी ॥ वंदो० ॥ ७ ॥ हां विनाग न्यारापणुं रे, नहीं पुदगलनो संगा|अंतर करणे अनुन्नवे रे,तीहां दायकनो रंगरे ॥प्राणी वंजाधर्मी चेतन तेहर,नहीं अधर्मनो प्रवेशदायक समकित शहां लह्योरे, हणी मिथ्यात्व नहीं देषरे ॥ प्राणी ॥ ए॥ तेना मित्र अनंतानुबंधिरे, चउ मराणा साथ ॥ ए सात प्रकृति क्षय थरे, टल्यो अनाथ थयो नाथरे प्राणी ॥ वंदो० ॥ १०॥ मिथ्यात्व त्रण नेदथी टल्यो रे, सत्ता है मूळ उच्छेद ॥ समकित पद निर्णय हुई रे, नाखुं उत्तर दोय नेदरे॥ प्राणी ॥ वंदो ॥ ११ ॥ स्वपर नाग वेंच्या पेहेला रे, श्रायुष्य बांध्युं होय जेह ॥ खंम श्रेणी पेहेलो नेदएरे, श्रेणी न मांझे तेहरे प्राणी ॥ वंदो ॥ १२ ॥ सागरोपम तेत्रीस मामो वसे रे, चगति संसार नाव ॥ त्रण चार नव ते करे रे, नव स्थिति पाक्यानो दावरे प्राणी ॥ वंदो० ॥ १३ ॥ अखंम श्रेणी बीजो नेदरे, मांमे श्रेणी तरत ॥ दायक नाव दशा नजेरे, एकत्व नावमां उरत रे प्राणी ॥ वंदो ॥ १४ ॥ तीहां हणे मोहरायने रे, सत्ता मूळ १ विनाश ॥ अशुद्ध परिणति बेदीने रे, शुद्ध परिणतिमा वास रे प्राणी ॥ वंदो० ॥१५॥ चरण यथाख्यात पामीया रे, पाम्या वीतराग नाव ॥त्रण कर्म तीहां हएया रे, ए चउघाति अन्नावरे, प्राणी ॥ वंदो० ॥ १६ ॥ केवळ ज्ञान प्रगटे तीहां रे, केवळ दर्शन साथ ॥ लब्धि पांच दायक नावनी हे रे, ए त्रण जुवननो नाथ रे प्राणी ॥ ॥ वंदो० ॥ १७ ॥ Heavenormonesome araGoransarBGoratoresantarawinar Romarsansar Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BHABDS GIRGAORARGOOMeameg श्री गु३तिनो रास. १ गुणगणुं तीहां तेरमुरे, वसे उणां पूरव कोम॥ जघन्य अतंर महुरत रहे रे, आयुष्य खुटे जब बोमरे ॥प्राणी ॥ ॥वंदो० ॥ १७ ॥ आयुकर्म पूरण थयो रे, तीहां हुई योगनो रोध ॥ चार कर्म अघाति टल्यांरे, टत्यो पुद्गलनो विरोधरे ॥ प्राणी० ॥ वंदो० ॥ १७ ॥ रूपातित पद पामीयारे, समश्रेणिये हुवा सिद्ध॥ ते सिद्धने करुं वंदनारे, ज्ञान शितळनी ए ऋद्ध रे ॥ प्राणी ॥ वंदो० ॥२०॥ ॥ दुहा ॥ वेदक करी दायक सहे, चोथे वा सातमे गण ॥ सात प्रकृति त्यां टळे, आत्म सत्ताथी प्रमाण ॥१॥ ॥ ढाळ ८ मी. ॥ ॥राग सारंग ॥ हुकम मुनि महाराज, जगत गुरु हुकम मुनि महाराज ॥ सप्त नय नंजन, निरनय रंजन, शक्ति निजातम जे ॥ उपयोग स्वन्नावे करतां, अति इंडिय बळ गाजे ॥ जगत गुरु० ॥ वंषु गीतारथ राज ॥ जगतगुरु हुकम मुनि महाराज ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ा नव परनव मरण वेदना, अनरक्षक अनगुप्त ॥ अकस्मात ए सात नयोने, बेदे ज्ञानी युक्त॥ जगतगुरु०॥२॥ आनव १ लय ते नवविध परिग्रह, वियोग चिंत्ता कहीए ॥ ते नय निवारण मंत्र, निर्जय निजगुण रहीए ॥ जगत० ॥३॥१ निज गुण ज्ञाने स्वपर जिन्न कीजे, आत्मा अनंत गुण , जरीयो॥ ते अविनाशी वस्तु अमारी, परवस्तु पर हरी Encrorematermerson GarGorarBra Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री गु३मातनो रास. ॥ जगतः ॥ ४ ॥ परनव नय ते मुज आत्माने, दुर्गति 9) जावु पमशे ॥ ते चिंत्ता निवारण मंत्रे, जन्म मरण जरा, टळशे ॥ जगतः ॥५॥ ज्ञान कळा निज घटमां लावी, 5 असंख्य प्रदेशमा वसीए ॥ ए गतिये मुक्ति सहीए, चउ गति संसार खसीये ॥ जगत ॥६॥ मरण प्राण रहित है जय चिंत्ता, हणवा मंत्रने जणीए ॥ अमर थश्ने कोश रह्या नहीं, तीर्थकर अतुल बळ गणीए ॥ जगतः ॥ ७॥ ज्ञानादिक गुण नाव प्राण जीव, शाश्वत अविचळ रुपे ॥6 त्रण काळमां विनाश हुवे नही, एम जिने प्ररुपे ॥ ॥ जगत ॥ ॥ वेदना नय रोगादिक कारण, कष्ट । आशाता आपे ॥ ते नय निवारण मंत्रे नाणे, पूर्व कृत मुज पापे ॥ जगत ॥॥ आतमझाने पर नागे व्हेंचीने, शुद्ध स्वरूपने हुं वेदुं ॥ त्यां परमानंद योगनो नोगी, वेदनी कर्म तीहां डेढुं ॥ जगतः ॥ १० ॥ अनरक्षक नय चिंता जागी, मुज रक्षण कोण करशे ॥ए नय निवारण मंत्र आराधी, चेतन वीर्यने वरशे ॥ जगत ॥ ११ ॥ अव्य स्वन्नावे त्रणे काले, असहायी जीव ॥ रक्षकन्नक्षक कोइ न साधे, सत्ता स्वरूपमय शीव ॥ जगतः ॥ १५ ॥ अनगुप्त नय चोरनी चिंता, सदा सरवदा मनमां ॥ ते नय निवारण मंत्र जपीने, साहासिक धीर एक तनमां ॥जगतः ॥ १३ ॥ ज्ञानादिक गुण पर्याय लक्ष्मी, मुज घर माहि अनादि ॥ ते धननो को चोर न दीसे, टाळो अनगुप्त जयादि ॥ जगतः ॥ १४ ॥ अकस्मात जय चिंता जागे, (306) Varovarerrowrowrosses RaareGOOGORGEORGARGESeी MANOBOBre Boareneuroveresrore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PorangRGAR GROR श्री सुमतिनो रास. श्रण चिंतव्युं शुं थाशे ॥ ए चिंता निवारण मंत्रे, सर्व जय ६ मुज जाशे ॥ जगत० ॥१५॥ आदि अंत जेहनो, नहीं होवे 5 नहीं कोई परनो संगी। तीहां नयने शोक न आवे, अखंग थानंदमय रंगी ॥ जगतः ॥ १६ ॥ एम अनुन्नव छाननी शक्ति, जय शोकादि दे ॥ निर्नय चेतन मूळ स्वरूपे, रमण आनंदमय वेदे ॥ जगत ॥ १४ ॥ उदयिक नाव पोतानो माने, तीहां नयनो वासो ॥ नेद ज्ञान घट अंतर जागे, तीहां निर्भय पद खाशो ॥ जगतः ॥ १७ ॥ जयर्नु स्थानक मिथ्यात्व मोहनी, संसार वास न बुटे ॥ निर्नय स्थानक सम्यक ज्ञानी, क्षीणमां संसार वास तुटे॥जगत॥ १५॥ एम जाणी संवेग रंग करवो, अनुनवी वस्तु धर्म ॥ ज्ञान शीतळ उपयोग रमणमां, मुक्ति वरे हणी कर्म ॥ जगतः ॥२०॥ सप्त नय ज्ञाने टळे, टळे पर ममता खास ॥ पर पोतानुं मानतां, लहे उरगति वास ॥१॥ ॥ ढाळ ॥ ९ मी॥ तीरथनी आशातना नवि करीये ॥ ए देशी॥ हुकम मुनिसर वांदवा नवी जश्ए, विनय गुणमां ११ रहीए ॥ गुरु सनमुख दृष्टि वहीये, चित्त करीये स्थिर ॥ ६ हुकम मुनीसर वांदवा नवी जश्ए ॥ए आंकणी ॥ गाथा ॐ॥१॥ उपयोगी गुरु अवसरने जाणे, उपदेश करे ते टाणे॥१ उग्यो अंतर दिनकर नाणे, ठवे वचन रसाळ ॥ हुकम०॥ Preseaxxesses BIGGARAGAONKoregard GrassroomRAM Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PAG GREGORGram श्री शु३तिनो रास. १ ॥२॥ प्रश्न कर्यु गुरुरायने अति प्यारु, मुनिपद जाणवू , ६ सालं॥ उपदेश करो हुं धारु, मु संसार ॥ हुकम० ॥३॥ १ ६ मुनिपद डे मोटको पांच नेदे, परथम मिथ्यात्वने बेदे ॥ है पामे समकित निवेदे, लीये सदगुरु पास ॥ हूकम० ॥४॥ , अध्यातम पद ग्रहीने यहां दाखं, प्रथम सामायक नाखं॥ आतम गुण रमणता चाखं, सहज समाधि मांह।।हुकम ६ ॥५॥ परमाद योगे समाधि अवराणी, तेने दे जे प्राणी समाधि स्थापे गुणखाणी, उपयोग विशेष ॥ हुकमः ॥६॥ वेदो स्थापन चारित्र ए बीजु, आतम शुद्ध थाय त्यांरीकुं॥ उदाऱ्या हवे चारित्र त्रीजु, तीहां वीर्य विशेष ॥ हुकम॥ परिहार विषय कषायनो इहां थावे, चेतन विशुद्धिमां 3 आवे ॥ परिहार विशुद्धि कहावे, ए त्रीजो नेद ॥ हुकम । मुनिसर० ॥ ॥ गुणगणुं ब्लु सातमुं शहां सुधी, चोथो नेद कहुं नली बुद्धि ॥ श्रेणी आरोह विशुद्धि, उपयोगीक नाव ॥ हुकम० ॥ए॥ निरालंबी आतमा श्रेणी मांगे, आठमेथी चम्वा घोमे ॥ परसंगी पणे सब गंमे, शीवपुर प्रयाण ॥ हुकम मुनि० ॥१०॥ कर्म प्रकृति थोकमा हां टाले, उपाधि सघळी बाळे ॥ अरुपी रूप निहाळे, चिदा-१ नंद नगवान ॥ हुकम० ॥ ११ ॥ विशुद्ध नावे चढतां गण १ पामे, सूक्ष्म संपराय ते नामे ॥ अणु लोन उदयगत सामे, ६ ए चोथो नेद ॥ हुकम० ॥ १५ ॥ यथाख्यात ते पांच, 3 ७ हवे नणीये, मूळथी मोहरायने हणीए ॥ दायक चारित्र , हे ते गणीए, हणी रागने केष ॥हुकम० ॥१३॥ ए पांच नेदे (3०८) PRACTERBrowsersGwaal SSRGBaresearBarahararasRGBGorg Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GORAGARG GRAGrora GraGRAGAR MAKERGARHGRAMMERSamme श्री शु३मतिनी रास. मुनिवरा अढी छीपे, नाण दरशण तेजे दीपे ॥ विचरे उ६ पयोग समीपे, वंदु चार हजार ॥ हुकम ॥ १४ ॥ ए १ मुनिरायनी योग्यता जब लाधे, प्रमोद अतिशय वाधे ॥ वस्तु धर्म कारज साधे, करे हित उपकार ॥ हुकम॥१५॥ उपगारी ए मोटका दुःख वारे, संसार समुज्थी तारे ।। चेतन- कारज सारे, आपे शीतळ झान ॥ हुकम०॥ १६ ॥6 ॥ दुहा ॥ मुनिपद पंच नेदथी, पूरण कार्य यथाख्यात ॥ क्षपक श्रेणीये संपजे, अव्याबाध प्रख्यात ॥१॥ ॥ ढाळ ॥१०॥ मी ॥ ॥मोह्या मोह्यारे त्रिजुवन लोक मुनि गुण देखीने॥ ए देशी वंदो वंदोरे नविक जीव सर्व, हुकम मुनि ज्ञानी ॥ ज्ञानी शुद्ध स्वरूप उपयोगी, अनुन्नवे वस्तु तेहरे ॥ जीव पुद्गल सत्ता निन्न अळगी, गुण पर्याय निन्न तेह ॥ हुकम मुनि शानी ॥ ए आंकणी० ॥ गाथा ॥१॥ जीव सत्ता मूळ स्वरूपे, निर्मळ सिद्ध समानरे ॥ कर्म जनित परथी जीव, दाखे ते अज्ञान ॥ हुकम ॥ ॥ वेदयोग बळ त्रीक प्रत्यके, नेद त्रण त्रण धार रे ॥ गति संज्ञा कषाय प्रत्येके, नेद थाय चार चार ॥ हुकम० ॥ ३॥ शरीर संस्थान इति निमा, प्रत्येके पांच पांच नेदरे ॥ पर्याप्तिले श्या संघयण, ए त्रणेना षट् षट् नेद ॥ हुकम० ॥ ४ ॥ 9 वर्ण रस गंध स्पर्श प्रत्येके, पांच पांच बे आउरे ॥ जन्म है ज़रा ने मरण पुनरपि, ए संसारनो गन ॥ हुकमः ॥ ५ ॥ Pateoromraigurasad Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ranomaraGranswerswers ARRAHMEDARASATERESEASEASES श्री शु३मातिनी रास. दश प्राण आयुष्य योनि, श्वास उश्वास वळी रोगरे ॥ @ शुनाशुन्न क्रिया बहु नेदे, सुख फुःख वळी शोग ॥१ हुकम ॥ ६ ॥ अंग उपांग उंच नीच कुळ जाति, सुस्वर पुःस्वररे ॥ त्रस स्थावर प्रत्येक साधारण, सूदमने बादर॥ हुकम० ॥ ७ ॥ अवगाहना बहु विध जीवनी, रूप कुरूप वळी देहरे ॥ कुधा तृषा वळी पीके मामी, जरा अग्नि डे तेह ॥ हुकम ॥७॥ आहारने निहार करवो, परिणमे सर्वे अंगरे ॥ उदयिक नाव सघळो शहां बे, जीवनो तेह ए. कंग ॥ हुकम ॥ ए ॥ इत्यादिक वस्तु जामी, ते नहीं जीव स्वरूपरे ॥ कर्म बंध योगता ए लाधी, पूर्वकृत ए रूप ॥ हुकम० ॥ १० ॥ ए सत्ता सघळी पुद्गलनी, नाषी ने जीन जूपरे॥ कर्म नावी पर्याय प्ररुप्या, जे नहीं जीव, ए रूप ॥ हुकम ॥ ११ ॥ विनाशीनाव पुद्गलमांकहीए, अविनाशी चेतनरे। ते बे एकपणे कीम थावे, कीहांकाच ने रतन ॥ हुकम० ॥ १५ ॥ पुद्गलनी आवे वर्गणा, ते देखे । पर वस्तुरे ॥ एम परनाग व्हेंचण करीने, अनुन्नवे जीव ए सत्य ॥ हुकम ॥ १३ ॥ गुण पर्याय स्वन्नाव रमणमां, एकत्व वितर्क पावरे ॥ समन्नावे विकल्पने हणी, तीहां सनातक नाव ॥ हुकम ॥ १४ ॥ आयुष्य अंते लहे समश्रेणिये, रूपातित पद सिद्धरे॥ असंख्य प्रदेश निर्मळ निरंजन, ज्ञान शीतळमय ऋद्ध ॥ हुकम० ॥ १५ ॥ ॥ दुहा. ॥ उदयिक नावे संपजे, ते नहीं जीव स्वरूप ॥ Crossoverest GRG.RAGARAGram.orrordGBaramari (१०) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YEARNING Brearera SAGARMA શ્રી ગુરૂભક્તિને રાસ. जीव स्वरूप सत्ता विषे, सिद्ध निरंजन नूप ॥१॥ ॥ ढाळ ११ मी॥ ॥ देशी उपर प्रमाणे ॥ वंदो वंदो रे नविक जीव सर्व, हुकम मुनिराया ॥ ६ 5 राज्य करे चेतनपुरनु, गुण पर्याय निज वास रे ॥ मोह है राय आज्ञा नहीं धारे, निर्नय निज गुण तास ॥ दूकममुनिराया ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ अनंत ऋद्धि चेतनपुर नरीयो, नहीं चोरनो रहे वासरे ॥ उपयोग नाव सुन्नट अति बळीयो, नहीं चोरनो अवकाश ॥ हूकम०॥ मिथ्यात्व अव्रत कषाय जोग, मूळ चारना उत्तर नेद रे॥ पांच बार पचीशने पंदर, ए चोर सत्तावन नेद ॥ढूकम। ॥३॥ तेमां अधिक अतुल अनिमानी, बलीयो मिथ्यात्व चांच रे ॥ चेतनरायनुं राज्य पमावी, हेमयो जमे पांच ॥ हकम० ॥ ४ ॥ तेमां एक हेम मजबूत , कार्मण नामे फार रे ॥ अनंत पुदगल परावर्त करता, त्रुटे नहीं निरधार ॥ हूकम० ॥५॥ चेतन गुण वीर्य शक्तियें, पामशे मिथ्यात्व तेकरे ॥ त्यार पड़ी पुदगल अर्द्धमांही, त्रुटशे कार्मण हेम ॥ हकमः ॥ ६ ॥ अव्रत कषाय जोग ए त्रणे, बळीया मिथ्यात्व संग रे ॥ मिथ्यात्व नाश थयां बळहीणा, १ १) बळीयो चेतन रंग ॥ इकम ॥ ७ ॥ उपयोग नावे ६ वीर्य फोरवी, हणशे सरवे चोर रे ॥ राज्य करे ९ 9 तीहां निर्भय दावे, सर बंधी बहू जोर ॥ हूकम० ॥७॥ वीर्य अनंत ज्ञान उपयोगी, स्फुरण गुण पर्याय रे ॥ व्यक्ति 9 anRIENarssorerest Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RAMRORGERGORANGERS श्री गु३तिनो रास. नेदे धर्म अनंतो, आनंद स्हेर ते पाय ॥ हुकम० ॥ ५ ॥ उकुराश् शुद्ध चेतन तदरुपे, तीहां चेतन- राज्य रे ॥ ए १ १ राज्यना नोगी मुनिश्वर, राज मळे सरे काज ॥ हुकम०॥ ॥ १० ॥ मुनिश्वर मोटा चेतनरूपे, परमानंद स्वरूपरे ॥ १ 5 अविनाशी पद पूरण तेहy, ज्ञान शीतळ निजलूप है ॥ हुकम० ॥११॥ namaraGR GORAGAR Break तदरूप लीन योगमां, अनुन्नव रमणि थाय ॥ उपाधि अळगी टळे, त्यां चेतन राज्य कहाय ॥१॥ ॥ ढाळ ॥ १२ मी ।। ॥ नवि तुमे वंदो रे सूरिश्वर गच्छराया ॥ए देशी॥ नवि तुमे वंदोरे हुकम मुनि गुणराया ॥ अनंत गुण जरीयो ने चेतन, तेह स्वरूपने पाया ॥ नवि तुमे० ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ अनंत गुणमां मुख्य ज्ञान दे, ए विण जमता दाखी ॥ ज्ञान दीपक उपयोग अनुन्नव शुद्ध, तीहां चेतन बुद्धि राखी ॥ नवि० ॥२॥ ज्ञान शक्ति चेतन निश्राये, तीहां समकित गण पामे॥ ते ज्ञान झानमां गणीए, बाकी अज्ञान नामे ॥ नवि० ॥ ३॥ सम्यक ज्ञानने सम्यक दर्शन, दोय मित्र संग प्यारो ॥ १ अनंत गुण रत्ननी पेढी, जुवे ज्ञान मनोहारो ॥ नवि० ॥ ४ ॥ गुण पर्याय स्वन्नाव अनंता, लक्षण अनंतां दाख्यां ॥ १ ते अनंत व्यक्ति निज धर्मे अनंत धर्म ज्ञाने चाख्यां ॥ ६ नवि० ॥ ५॥ अनंतानंद व्हेर अनुनवमां, उपयोग स्थिर १ __( 3१२) HIBGBOSSIBIGBOSSGNB Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GORIGIRLSEXGROGRAMMA श्री शु३तिनो रास. । लगावे ॥ समन्नाव वृत्ति चेतनमां, ज्योति अनंत जगावे ॥ नविः ॥ ६ ॥ एम ज्ञान शक्तिये चेतन, शीवपद कणमां पामे ॥ अनंत धर्म आत्मिक अनुन्नव शुद्ध, ते गुण राय, कामे ॥ नवि० ॥ ७॥ एवा मुनिगुण समरण करतां, नज- १ तां कोक कल्याण ॥ दर्शन पुन्योदये थावे, दुर्लन्न उपदेश है टाणे ॥ नवि० ॥ ७ ॥ हुकम मुनिसर मुज उपगारी, ते गुण नित्य संन्नारुं ॥ झान शीतळ कहे पूजु वंदूं, मुज आतमने प्यारं ॥ नवि० ॥ ए॥ ॥ दुहा.॥ ज्ञानादि गुण संपदा, अनुन्नवे तद्रूप ॥ परम समाधि जे लहे, ते कहीए गुण नूप ॥१॥ ॥ ढाळ १३ मी ॥ हुकम मुनिश्वर नावे वंदिये, गीतारथ गुण खाण ॥ सुगुरुजी ॥ आश्रव अनाश्रव चेतन केम हुवे, ते दाखो चतुर सुजाण ॥ सुगुरुजी ॥ हुकम मुनिसर नावे वंदिये १॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥ १ ॥ आश्रव लक्षण दोन्नेदे कह्यु, अव्य नाव आश्रव ॥ सुगुरुजी ॥ तेथी चेतन चउगति वासीयो, जमी पुद्गल अव्य ॥ सुगुरुजी० ॥ हुकम ॥ २॥ ज्ञानावरणी प्रमुख कर्म वर्गणा, जीव प्रदेश ग्रासे ॥ १ सुगुरुजी ॥ अव्य आश्रव ते शास्त्रे दाखीयो, ते बुटे शीव ६ पद थाशे ॥ सुगुरुजी ॥ हुकम ॥३॥ नावित आश्रव नाव शत्रुपणे, रागद्वेष मोह जागे ॥ सुगुरुजी ॥ तेथी ६. द्रवित आश्रव संपजे, जीव धर्म तीहां नागे॥ सुगुरुजी ॥६ Hansiremsadisansar RERAGGARAGRAAGRICKR BARB0BOreonerBroMOBarce Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ STARGrowards COMAMAL G.Karagar ARMERIC GRALEReereAGarg श्री गु३तिनो रास. हुकम ॥ ४ ॥ इणि विध आश्रव दो नेदे आहे, ते चेतन 8 आश्रव ॥ सुगुरुजी ॥ हवे अनाश्रव चेतन दाखवं, आश्रवनी हांणि करवी ॥ सुगुरुजी ॥ हुकम० ॥ ५ ॥ जीहां शुद्धि परसंगीपणुं, तीहां चेतन परधर्मी। सुगुरुजी ॥रागॐ द्वेष मोह जागृति तीहां अहं ममत्व अधर्मी ॥ सुगुरुजी , ॥ हुकमः ॥ ६ ॥ ए पद्धति मिथ्यात्व मोहनी, तीहां आ-६ श्रव अवकाश ॥सुगुरुजी ॥ तेने हणवोरे सद्गुरु ज्ञानथी, संवेग अनुन्नव जास ॥ सुगुरुजी ॥ हुकम ॥ ७॥ संवेग ते परनाग टाळवो, अनुन्नव आतम ज्ञान ॥ सुगुरुजी ॥ चिदानंद वंदन तीहां संपजे, उपयोगिक प्रधान ॥ सुगुरुजी ॥ हुकम ॥ ॥ ए पद्धति सम संवेगनी, अंतर संवर नावि ॥ सुगुरुजी ॥ ज्ञान कळा चेतनमय अनुन्नवी, शुद्ध स्वरूप मय लावी ॥ सुगुरुजी ॥ हुकम ॥ ए ॥ जीवन मुक्त एही परमात्मा, आश्रव नाव विनाशी ॥ सुगुरुजी ॥ द्रवित नावित दोय नेदने हणी, थया निराश्रव वाशी ॥ सुगुरुजी ॥ हुकम ॥ १० ॥ आश्रव नाव रह्यो परनावमां, स्वन्नावे थाय विनाश ॥ सुगुरुजी ॥ निज स्वन्नाव प्रहे निज चेतना, तीहां अनाश्रव खास ॥ सुगुरुजी ॥ हुकम० ॥ ११ ॥ श्रव नावे स्थिर. संसार बे, अनाव शिवपद थापे ॥ सुगुरुजी ॥ आत्मज्ञानी उपयोगी थर, ६ श्राश्रव नावने कापे, ॥ सुगुरुजी ॥ हुकम ॥ १५ ॥ निराश्रवी नाम जेणे ग्रह्यु, पूजु तेहना पाय ॥ सुगुरुजी ॥ अनुमोदुं हुं शुद्ध स्वनावने, त्यां ज्ञान शितळ शुद्ध थाय॥ १ Sancoronaxissioner BODOBreeDEM G ( 3१४) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PREGNAGAR GARRANGOLGrls શ્રી ગુરૂભક્તિને રાસ. १ सुगुरुजी ॥ हुकम० ॥ १३ ॥ श्राश्रव श्रावे परपणे, शुन्नाशुन्न कर्म तेह ॥ संवर नावे टाळीये, त्यां निजगुण वृत्ति गेह ॥१॥ ॥ ढाळ ॥ १४ मी॥ ॥ देशी ॥ एकवीसानी ॥ हुकम मुनिश्वर रे, वंदु विनय गुणमां रही ॥ क्रि-6 यावंत रे ए सम अवर दुजो नही ॥ ते दार्खा रे, नवन्नेदे क्रिया करे, निजात्मा रे, शुद्ध स्वन्नाव तीहां वरे ॥ त्रुटक श्रवण किर्तन बीजी, निंदा लघुता वांदq ॥ सेवा समता ध्यान एकता, ए नव बोले अनुनद्॥ विस्तारे सवंग रुचि, उपयोग, स्थिर नावमां ॥ तीहां कारज नीपजे, चेतन । मूळ स्वन्नावमां ॥ १॥ पेहेली किरिया रे, श्रवण गुरु मुखेथी करे ॥ गुरु ज्ञाने रे जीव पुद्गळ जूदा ठरे ॥जीवनो गुण रे, ज्ञान चेतना दाखीयो ॥ पुद्गळनो रे, अचेतन गुण नाखीयो ॥ त्रुटक ॥ एम निन्न धरमी, जीव न्यारो, पुदगलमा खुती रह्यो ॥ पुद्गलने पोतानो मान्यो, त्यां मिथ्यात्व चेतन लह्यो ॥ कारण कारज पुदगल साथे, अनादि संबंध ए ॥ तेथी दुखीयो चउगति नटके, करे कर्मनो बंध ए॥२॥ बीजी किरिया रे, किरतन जीव गुणर्नु करे ॥ निजात्मा रे, | त्यां पर व्हेंचीने परहरे ॥ चेतन गुण रे, ज्ञानदीपक प्रगटे 9 तदा ॥ शुद्ध धर्मी रे, मिथ्यात्व ग्रहे नही कदा ॥ त्रुटक ॥ हसमकित शुद्ध तीहां पामे, गुण श्रेणीमा रमे ॥ अनंत गुण ६ (१५) Rasirsagar Browse GroGRAGARGARH GRAM Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RER COMPRAMMAR men DameGeen spanning श्री गु३मतिनो रास. पर्याय धमें, व्यक्ति पणे होय त्यां जमे ॥ नूख नागे सुख साधे, वीर्यबळ वृद्धि करे ॥ समन्नावे नावे ए चेतन, अ-३ नंत कर्मतीहां निर्जरे ॥३॥ त्रीजी किरियारे, निंदा करे पुद्गलनी ॥ तेना संगे रे, वृद्धि राग द्वेषन॥ तेथी चेतनरे, अचेतन सरखो हु ॥ वेपारी रे इंडि पोषण ते जुओ ॥ त्रुटक ॥ तीहां सेवे पापस्थानक, अष्टादश दृढ चित्तए ॥ & पाप बांधे ब्यासी नेदे, नावे दुखनो अंत ए ॥ नरक नि-6 गोदमांही वास्यो, असंख्य अनैतो काळ ए ॥ ते फळ पाम्यो अज्ञान जोगे, निंदा करुं ज्ञान संग ए ॥४॥ चोथी किरिया रे, लबुता नावे जीवनी ॥ तुं गुण हीण रे, आशा करे पुद्गलनी॥ लोन्नी लालची रे, सेवक तुं मोहरायनो ॥ 3 अपराधी रे, अरुची वचन जीनरायनो ॥ त्रुटक ॥ कुदेवने कुधर्म कुगुरु, पद ग्राहक तुं थयो ॥ मिथ्याव रंगी, मद जंगी फेर वेर घणो कीयो ॥ ॥ क्लेश नुक्ता संतोष तेमां, अपलक्षण निधान ए॥ मा करतां रीफ पामे, ते लघुता गम ए ॥५॥ किरिया पांचटू मीरे, वांदवु उपयोग स्थिर करी ॥ सिद्ध सरखोरे, परमानंद पदने वरी ॥ मूळ रुपेरे, निरंजन निराकार ए ॥ अविनाशी रे, अनंत गुणनंमार ए ॥ त्रुटक ॥ अनंत गुण 8 पर्याय व्यक्ति, आविर्ताव:हुए जदा ॥ धर्म अनंतु तीहां लाधे, परमातम थावे तदा ॥ ए कार्य पूरण चेतननु, मुज मनमा इच्छा घणी ॥ ते रूपनो आरोप करीने, वांपुढे 3 5 त्रीनुवन घणी ॥ ६ ॥ बही किरियारे, सेवे शुद्ध रूपे थर है GAGRGross SearBGANGANAGenarenderGGGG ( 3१६) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शु३मतिना रास. १ ॥निज पदमां रे, झान ध्यान रंग ते मची ॥ मूळ रूपेरे, धर्म अनंतो रह्यो जदा ॥ तेमां वसीये रे, ते सेवा पूजा तदा ॥ त्रुटक ॥ अनंत गुण पर्याय धारे, तेनो संग बोमे है नही ॥ परद्रव्य पक्ष अग्राहक, चेतन धर्म रह्यो नही ॥ १ & आनंद वृद्धि व्यक्ति फूरणा, लहेर डे उपयोगमां ॥ ते । सेवा में जाणी प्यारी, प्रमोद ने मुज अंगमां ॥ ७॥6 & किरिया सातमी रे, चेतन शमता नावमां ॥ पंथ शोधेरे, ा समिति अदोषमां ॥ पुद्गलमां रे, प्रवेश ते सावद्य कह्यो । निजव्यमां रे, प्रवेश ते निर्वद्य लह्यो ॥ त्रुटक ॥ नाषा समिति विवेक करवो, पुद्गल पांचमी वर्गणा ॥ ते वस्तु नही थापणी, निजगुण नास मुज लक्षणा ॥ एषण। समिति त्रीजी, आहार लेवो निर्वद्य ए॥ केवळ झानी सावद्य देखे, निर्वद्य निज गुण माहिए ॥ ७ ॥ चोथी समितिरे, आदान निखेपणमां कही ॥ आदानते रे, चेतन गुण लेवे सही ॥ निषेपण रे, परवस्तु पुद्गलनुं ॥ श्म कीजे रे, ग्रहण निज खेपण परनुं ॥ त्रुटक ॥ पारित वणिया पांचमी, समिति चेतन रक्षणा ॥ रागद्वेष विन्नाव सरवे, तजवि कार्मण वर्गणा ॥ ए समिति शीवपद आपे, मळ रहित चेतन करे ॥ ते दिवस मंगलिकनी माळा, परमानंद पदने वरे ॥ ए ॥ किरिया आठमीरे, ध्यान करे स्वनावमां, चेतन गुण रे, निर्मळ शक्ति नावमां। मुज व्यE क्तिरे, परसंगे परने लगें ॥ ते अघटितरे, परधर्मीपणो । का तजु ॥ त्रुटक ॥ निजव्य स्वन्नाव धर्मे, उपयोग स्थिर है Prasairamananews GrearrangeGIRGARGIRGAR PROGraGorakGRAGardGGAGruare Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. MARAGRAMMIGRAMGAGRAM श्री गु३तिनी रास. रमणता ॥ अचपळ नावे शक्ति जोमे, तोमे विन्नाव पर अंगता ॥ तीहां चेतन धर्मनी व्यक्ति, स्फूरणा गुण पर्यायमां ॥ परमानंद पद नोग जोगी, अपूर्व नाव ए ध्यान-(, मां ॥ १० ॥ किरिया नवमी रे, एक्यता चेतन नावमां ॥ सुविधा हणी रे, वरते शुद्ध स्वन्नावमां ॥ समन्नावे रे, ध्याता ध्येय ध्यान एकता, नेद हणीयो रे, ग्रहण कीयो अनेदता ॥ त्रुटक ॥ अनंत गुण पर्याय व्यक्ति, अनंत धर्म प्रगटपणे ॥ मूळरूपे सहेज स्वन्नावे, परिणमन एक्यतापणे॥ नारे पीळो चीकणो, व्यक्ति कंचनमां रही। परिणमन एकत्व रूपे, कदी निन्न पमे नही ॥११॥ श्म नव विधरे, किरिया करे जे मुनिवरा ॥ ते ज्ञानी रे, नव ब्रमणाने परहर्या ॥ संसारथी रे, बुटया कर्मपास बेदीने ॥ तेने वंदुरे, गुणरागे आणंदीने ॥ त्रुटक ॥ गुणराग आनंद मामो, मुज आतमने तारवा ॥ एवा मुनिसर नित्य नमुं, कर्म रोगने वारवा ॥ ए नाव उपयोगे लाधे, नेद ज्ञान प्रगटे जदा ॥ ज्ञान शीतळ आतम गुण एक्यता, कारज सिद्ध करे तदा ॥ १२ ॥ ॥ दुहा ॥ नव विध किरिया योगथी, चारित्र गुण कहाय ॥ उपयोग नावे जे लहे, ते संयम गण पाय ॥१॥ ॥ढाळ १५ मी॥ ४ ॥सांनळरे तुं सजनी मोरी रजनी क्यां रमी आवीजी ए देशो॥ हुकम मुनिश्वर आतम ज्ञानी, परमातम पद ध्या- १ PAGRIGroww.xxternsrce s RSARGIRGAONarror GrGRom PROGRAGRAPAGreenarana Gra G ra Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ VRAYAror श्री गु३मातिना रास. 9 वेजी ॥ अंतर आतम उपयोग अंतर, चेतन रसमा रमावे । g ॥ मुनिपद बंदोजी ॥ नव नव संचित पाप ॥ मूळथी निकंदोजी ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥ १ ॥ अनुन्नव ज्ञानी चक्षु अंतर, वस्तु धर्मने निहाळेजी ॥ निराकार निरंजन १ निर्मळ, अलख रूप तीहां नाळे ॥ मुनि ॥ २ ॥ है अरूपी ज्ञान घन ज्योति परमानंदनो कंदजी ॥ शांत सुधारस जलनिधि सरीखो निरखतां आनंद ॥ मुनिः ॥३॥ है अविनाशी अचळ अखंमित, परम रहस्यनो धामजी ॥ 6 अव्याबाध सुख अनंतु, पुरुसोतम जस नाम ॥ मुनि ॥5 ॥४॥ चिदानंद जगदीश्वर अरिहा, तीर्थकर नगवानजी॥ वीतराग विमळवंत योति, परमदेव प्रधान ॥ मुनि ॥५॥ शुद्ध बुद्ध अनंत अक्षय अज, अकळ अमळ अदीजी ॥ अकर्मा अ बंधक अनुदय, अनुदरिक अन्नेदी ॥ मुनि॥६॥ अन्नोगी अरोगी अजोगी, अगम अकंप अवेदीजी ॥ अशरीरी अकषायी असखायी, अलेशीअखेदी।मुनि॥ अणाहारी अण अवगाही, अगुरु लघुपरिणामीजी ॥ अति इंजिय अप्राणी अयोनि, असंसारी अनामि।मु०॥॥ अमर अनाश्रित अविरुद्ध अशोकी, अनाव असंगीजी॥ अनंत गुण पर्यायर्नु नाजन, परमातम पद जंगी॥मुनि॥ ॥॥ निजातम परमातम सरीखो, आतम ज्ञाने जाणेजी ॥ तेह स्वरुपने स्थिर उपयोगे, अनुन्नवे ध्यान टाणे ॥मनि०१ 5 ॥१०॥ निज स्वरुपमां मगन सदीवए, समन्नावे सुखशा-है ताजी ॥ उदयिक नाव अव्यापक दुवे जब, झानशीतळ 9 SROGRAGrenoner ORGAGeneral ra arre (3१८) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ESSAGRORRORISM श्री शु३तिन रास. शुद्ध माता मनि० ॥११॥ धर्म शुकल दोय ध्यानमां, आतम रमणता पाय ॥ उपाधि उन्मूल करी, परमातम सम थाय ॥१॥ ॥ ढाळ १६ मी ॥ ॥ हो पेज पंखीमा ॥ ए देशी॥ हो गुरुजी प्यारा हुकम मुनि महाराजजो ॥ हुं हुं 6 सेवक अंतर दृष्टि ताहरोरे लोल ॥ हो गुरुजी प्यारा क्षण न विसारं तुजजो, हितवंच्छकडे उपगारी तुं माहरोरे लोल ॥१॥ हो० धर्म अर्थ काम मोदजो, पुरुषारथ अंग जाणवा मुज मन उलस्यो रे लोल॥हो ते दाखो विस्तारजो, श्रवण करवा उमंग चित्तमा विलस्योरे लोल ॥२॥ हो मूरख माने धर्मजो, पोतीका कुळ आचार करणी तेहने रे लोल ॥ हो० पंमित माने धर्मजो, वस्तुनो स्वन्नाव धर्म डे एहने रे ॥३॥ हो अज्ञानी कहे अर्थजो, नव विध परिग्रह रक्षण तेहीज अर्थ डे रे लोल ॥ हो० ज्ञानी ६ कहे जे अर्थ जो, षट अव्य वस्तु दर्शाव ते गर्थडे रे लोल २॥४॥ हो दुर्बुद्धि कहे कामजो, स्त्री पुरुष संजोग लोग ते कामरे लोल ॥ हो सुबुद्धि कहे कामजो, अनिलाष चित्त इच्छा तेहीज कामळे रे लोल ॥५॥ हो ॥ मूरख ६ अजाण कहे मोक्ष जो, स्वर्ग मांहि इंद्रनुं स्थान ते मोक्ष 9 डेरे लोल ॥ हो० पंमित दाखे मोदजो, कर्म रहित हुओ हे चेतन तेहीज मोकळे रे लोल ॥ ६ ॥ हो० ॥ चउन्नेदे कयुं ६ BrowsgrowerGRAN PERAGE ROORAGGARAGAORAGARIGARAMARG Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शु३तिनो रास. १ वखाणजो, ते वचन सत्य मुज मनमा रुच्युं सहीरे लोल॥ हो० ॥ अज्ञानी दुर बुद्धि मूर्ख जो, मतिमंद हीण बुद्धिवंत कल्पना ग्रहीरे लोल ॥ हो० ॥ ज्ञानी सुबुद्धि पंमित , जो, ग्रहण करे सर्वांगी वचन सत्य तेहर्नु रे लोल ॥ हो. ॥ पुरुषार्थ चउ अंगजो, साधे कार्य ज्ञान शीतळ होय जेहनुरे लोल ॥ ॥ Dr.MOECONOMOGLE GrenoNormere धर्म अर्थ काम मोक्षए, पुरुषारथ चउ अंग ॥ धर्म वस्तु स्वन्नाव ए, अर्थ रत्न त्रयी संग ॥ १॥ अन्तिलाषा काम कीजीए, अजरामर मोद तेह ॥ कर्म अन्नावे संपजे, परमानंद पद एह ॥२॥ ॥ढाळ ॥ १७ मी ॥ ॥ नरसी मेहेता नगतहरीना जूनागढना रहेवासी॥ ए देशी॥ 3 गुरु गुणे मोटा ज्ञानी ध्यानी दुकम मुनिश्वरने वंदो ॥ विनयादिक गुण अंगे लावी, सुणो उपदेश टळे लव फंदो ॥ गुरु गुणे मोटा० ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ उपदेश करता मिथ्यात्व हणता, अनंतानुं चौ अंत करता॥ अनंत पुद्गल परावर्त खुटे, संसार अर्द्ध पुद्गल हिणता ॥ गुरु० ॥२॥ धर्म दान दीए चेतन गुणगें, अचेतन गुण मूळथी दे ॥ नाव संवर मय साधन दाखे, तीहां चेतन ग्रंथी नेदे ॥ गुरु ॥ ३॥ बोधि बीज अणारोप रोपे, रत्न त्रयी साधन वाको ॥ अंतरंग अनुन्नव एकताळी, अप्रमत्त गुण हे ताको ॥ गुरु० ॥ ४ ॥ समन्नावे नावित हुन चेतन, Press moonamaraGRAGNBIG Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PAR BreaareKERLINSASARAamg श्री गु३लातिनो रास. शीव रमणी तेमवा आवे ॥ सादि अनंत काळ अजर अमर पद, जन्म मरण ते क्षय पावे ॥ गुरु० ॥ ५॥ एम उपगार निमित्त सद्गुरुनो, न वळे नवोनव दास थयां ॥ जव कोमाकोमि अनुकुळ सेवा, करतां सर्व उपाय जीहां ॥ गुरु० ॥ ६ ॥ ए उपगारी गुण न वीसरे, समकित रत्न मुज हाथ दियो ॥ गुरु गुण गाउं आनंद पावं, ज्ञान शीतळ उपयोग लीयो ॥ गुरु० ॥ ७॥ LordGARIOR ora पुष्ट निमित्त गुरु कह्या, तत्वबोध दीये दान ॥ पाहाणने पल्लव श्राणवा, उपदेश करे एक तान ॥१॥ ॥ढाळ ॥ १८ मी॥ ॥ ए गुरु वाल्होरे ॥ ए देशी ॥ हुकम मुनीश्वर वंदिये रे, आतमज्ञानी ध्यानी रे बाहिर अंतर परमने रे, उळखावे अमानी रे, सदगुरुज्ञानीरे ॥ हणीओ चपळ स्वनाव, स्थिरपद ध्यानी रे ॥ ए श्रांकणी ॥ गाथा ॥१॥ आतम बुद्धि कायादिकेरे, बहिरातम अघरुपरे ॥ कायादिकनो साक्षी रे, अंतर आत्म स्वरूपरे ॥ सदगुरु० ॥२॥ पूरण ज्ञानानंदनो रे, समाधि मय तदरूप रे ॥ पावन गुण मणि आगरु रे, ते परमातम चूप रे ॥ सदगुरु० ॥३॥ अहं करता परनावनो रे, बहि रातम दुर्गुण गेह रे ।। कर्ता शुद्ध स्वन्नावनोरे, अंतर आतम , 9 तेह रे ॥ सदगुरु ॥४ा बहिरातम नाव डोमवो रे, ग्रहवो ७ हे अंतर आतम रे ॥ परमातमनुं ध्यान करूं रे, तिहां विक ( 3२२) Demonamommons G Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ OGORAGAR GURISONGamin श्री गुमतिनी रास. ..mr.w..... स्प होय केमरे ॥ सदगुरुः ॥ ५॥ बहिरातम बातम वेरी रे, अंतर आतम मित्र रे ॥ बहिरातम क्रम वांधतो रे, अंतरातम बोमे विचित्र रे ॥ सदगुरु० ॥ ६॥ अनुमोर्ड अंतर आतमारे, संवर निर्जरानावे रे ॥ मोद तत्वने साधतो रे, ज्ञान शीतळ शुद्ध स्वन्नावे रे ॥ सदगुरु० ॥ ७॥ ॥ दुहा ॥ बाहिर अंतर परम ए, आत्म परिणति तिन्न ॥ देहादिक आतम ब्रमी, बहिरातम बहु दिन्न ॥ १॥ सादि कायादि योगनो, अंतर आतमरुप ॥ क्षायक नावे केवळी, ते परमातम नूप ॥२॥ ॥ ढाळ १९ ॥ मी ॥ ॥ नाथ निरंजन देव ए प्यारो, कुंथु नाथ वंदो प्यारे ॥ए देशी ॥ गीतारथ गुणे दिनकर सरीखा, हुकम मुनि वंदो है प्यारे ॥ दर्शण करतां समकित वरवं, मिथ्यात नर्म तजवो १ नारे ॥ गीतारथ गुणे० ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ सतनये धर्म उपदेश करता, अनेकांत पक्ष अनुसरता ॥ १ अन्य पर्याय वस्तुने उणता, स्याहाद गुणमां उरता ॥ गीतारथ० ॥२॥ नैगम संग्रह व्यवहार किरिया, ऋजु१ सूत्र नयने वरता ॥ त्यां सुधी समकित नही पामे, मिथ्या संग साधन करता ॥ गीतारथ० ॥ ३ ॥ शब्दनये समकित गुण पामे, तिहां विरति नावे रमता ॥ संनिरुढ केवळg नाण दरशण, एवंचूत शीवपद वरता ॥ गीता ॥४॥ (3२३) Ram esed66RAN BordGRAGRAPresear@Grenore Grord. BAGra Grahan G Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शु३तिनो रास. । योग प्रवृत्ति साधन मिथ्या, समकित साधन उपयोगे ॥ ) वस्तु अरूपी धर्म अरूपी, जोगातित पद निज नोगे ॥ गीता ॥ ५॥ एसो बोध आपे गीतारथ, जम चेतन निन्न उळखावे ॥ जगतज्यां चेतन निजरूपे, ज्ञान शितळ शीवपद प्यावे ॥ गीता० ॥ ६ ॥ ॥ दुहा.॥ बोध सही नय ज्ञानमां, जाणो अव्य पर्याय ॥ स्याहाद धर्म संपजे, एम नाखे जीनराय ॥१॥ ए विण स्यादवाद नही, स्याहाद वस्तु मांही ॥ स्व पर विनागे लहे, अनुनव प्रगटे त्यांही ॥२॥ बाळ ॥२०॥ मी ॥ __..॥ प्रथम गोवाळा तणे नवेजी ॥ ए देशी ॥ हुकम मुनिसर वांदिएजी, जीन शासन शणगार ॥ स्त्रपर समय शाता नलोजी, ए सम नावी अणगार ॥ है नविकजन वंदो ए श्रणगार ॥ धर्मदान दातार ॥ नविक जन वंदो ए अणगार ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ शुद्धातम अनुन्नव सदाजी, ते स्व समयविलास ॥ परवमी १ बाया पमेजी, तेपर समय निवास ॥ नविक० ॥२॥ स्व9 समय स्व वस्तु जी, पर समय पर वस्त ॥ स्व वस्तु १ धर्म अनुलवेजी ॥ डाया जळ दर्पण गत्य ॥ नविक० ॥३॥ गुण पर्याय अनंतजी, व्यक्ति अनंतीरे निन्न ॥ तस अनु नव शुद्धातमाजी, स्व समय धर्मे लिन्न ॥ नविक० ॥४॥ ६ शुद्धातम अनुनव जीहांजी, तीहां विकल्प नही को॥ രിക്കാം NAGARIGORAGAPAGAPAGAGROR GIGAR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MARGork GERMAGAR ReGre AR PROGRAGE શ્રી ગુરૂભક્તિને રાસ. १ निर्विकल्प रस पीजीएजी, अनंत गुण एकता सो॥ नविक० ॥ ५॥ शुद्धातम अनुन्नवजीहांजी, तीहां मुक्ति निरधार ॥ कर्म रहित हुवो तमाजी, तीहां लहे सिद्ध पदसार ॥ नविक० ॥ ६ ॥ शुद्धातम अनुन्नव लहेजी, त्यां साधन पूरण साध्य॥परमानंद रस पीजीयेजी, त्याग मोहादि कीजे उपाध्य ॥ नविक० ॥ ७॥ शुद्धातम अनुन्नव जीहांजी, तेहीज ध्यान प्रमाण ॥ मुक्ति दाता एहडेजी, शीवपुरनुं परियाण ॥ नविक० ॥ ॥ दपक श्रेणीये शुद्धातमाजी, 1 अनुनवे गुण पर्याय ॥ एकत्व नाव सर्व व्यक्तिनोजी, त्यां एक समये अनुन्नव थाय ॥ नविक० ए॥ तीहां केवळ ज्ञान उपजेजी, केवळ दर्शन साथ ॥ चरण यथाख्यात मूळमांजी, लब्धि पांच तीहां हाथ ॥ नविक० ॥ १० ॥ शुद्धातम अनुन्नव जीहांजी, तेहीज के जैन नाव ॥ जैन धर्मते कीजीयेजी, चेतन मूळ स्वन्नाव ॥ नविक० ॥११॥ ए स्व समय धर्म पामीयेजी, पर समय करी त्याग ॥ पर समये अनुन्नव गयोजी, तीहां स्व समयनो लाग ॥ नविक० g ॥ १२ ॥ स्त्र समय धर्म साधताजी, अनुन्नवे चेतन ५ शुद्ध ॥ तेहने माहरी वंदनाजी, ज्ञान शीतळ जस बुद्ध ॥ ॥विक ॥ १३ ॥ ॥ कळश ॥ ॥त्रुग्यो त्रुग्यो रे मुज साहेव जगनो त्रुग्यो । ए देशी॥ ॐ त्रुग्यो त्रुग्योरे उपगारी गुरू मुज त्रुग्यो ॥ हित है .बुद्धियें उपदेश कीधो, युक्तिये समजाव्यो ॥ शंका कंखा , ___ (२२५) PRGROEMixR AL DroneMOMorea Prevri Baareer Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9 बेद करीने, म तिमिर गमाव्यो रे ॥ उपगारी गुरू मुज , त्रुग्यो ॥ ए आंकणी ॥ १॥ मधुर ध्वनीये उपदेश करता, , वचन रसाळनी माळा ॥ श्रोता सुणतां तृप्त न थावे, बोध , पामे तीहां बाळारे ॥ उपगारी० ॥ २॥ चेतन शुद्ध स्वरूप 5 उपदेशी, तत्वनी मचि करावे ॥ दृष्टांत हेतु युक्ति लगावी, है चेतन गुण चारो चरावेरे ॥ उपगारी० ॥३॥ मिथ्यात्व मोह ले अति अटारो, संसार अनंत रखवाळो ॥ जीव अजीव सरखा करी मूके, तेने सद्गुरू मारे नालो रे ॥ उपगारी० ॥ ४ ॥ मिथ्यात्व मोहनो अंत हुवो जब, चेतन समकित पामे॥ ते गुण रत्न चिंतामणी सरखो,लहे अनुन्नव उपाधि तिहां वामेरे ॥ उपगारी॥५॥ ए पसाय सद्गुरूए 3 कीधो, रत्न अमुलख दीधो ॥ ते बदलो वळे नहीं कबदु, उपगार अनंतो कीधोरे ॥ उपगारी० ॥ ६॥ गुरू गुण गातां तृषा न नाजे, उलट अंग न मावे ॥ वचन जोग है थाके नहीं कबहु, मन गुरू गुणमा रमावेरे ॥ उपगारी॥ ॥७॥ रत्न चिंतामणी करतां अधिका, गुरू उपगारी क हीए ॥ अनंत जन्म मरण दुःख टाळे, तेनो पाम शो वही १ एरे ॥ उपगारी० ॥ ॥ सद्गुरू सर्व खेत्रे नवी होवे, को, श्क अवसर लाने ॥ वचन जोगथी थाय परीक्षा, चेतन उळख्यां थाय निरनेरे ॥ उपगारी० ॥ ए॥ निर्नय स्था नक डे नहीं बीजु, एक सद्गुरूनुं साचुं॥ वचन जूठ बंमीने १ जश्ए, बोधि बीज तीहां जाचुरे ॥ उपगारी० ॥ १०॥ है सदगुरू कल्प वृक्षथी अधिका, याचना अर्थने पूरे ॥ ते ६ ___( ३२६) PRGRGorena.GrammarriGroGranare RSS Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री गु३तनी २.स. माटे मागो अकर्म पद, कर्म जाळ सबि चुरे रे॥ उपगारी ॥ ११॥ एथी अधिक अरथ नहीं दुजो, परम अरथने पाम्यो ॥ सदगुरू संग अति उपगारी, परमानंद पद जा६ म्यो रे ॥ उपगारी० ॥१२॥ गुरू उपदेश सुणी हां दाख्यो, 9 & मंदमति मुज नारी ॥ गुरु कृपाथी रचना कीधी, वाळजीव है उपगारी रे ॥ उपगारी० ॥ १३ ॥ नग्र विजापुर घरमां व-७ सियो, गुरू नक्तियें रास रचायो॥ सुरचंद मुजनाम नलेरु उद्योत शीतळ घट आयो रे ॥ उपगारी० ॥ १४ ॥ श्रोगणीसत सुमताळीस वर्षे, श्रावण कृष्ण पक्षायो ॥ गुरूनक्ति रास पूरण त्रीजे,शुन्न योग लक्षायो रे॥उप०॥१५॥ गुरूक्ति येथा रास जे कोई गाशे, सुणशे स्थिर उपयोगे ॥नावार्थ 5 अंतरमा लावे, तिहां शुद्ध परिणति होय नोगेरे।उपगारी॥१६॥ मुज मनोरथ सफळ दुयो आज, नक्तियें पूरण रास कीयो 3॥ संसार कार्यने अळगां मुकी, गुरूनक्तियें चित्त लीधो रे॥ उपगारी ॥ १७ ॥ मुज अंगे उलट अति जामो, एक तान स्थिर ध्यान ॥ चित्त रमाई प्रत्येक ढाळे, ज्ञान शीतळ करूं पान रे ॥ उपगारी० ॥ १७ ॥ XXXXXXXXXXX ॥ इति श्री गुरू नक्तिनो रास संपूर्ण ॥ ॥सर्व गाथा ॥ ३०५ ॥ SongrammerGRUGORG BROOOOOOOOreorea is.nnuairsem6MBINE Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धि पत्रक. पार्नु लीटी अशुद्ध शुद्ध पार्नु लीटी अशुद्ध २ ७ भाजेर भाजरे . ४१ : ८ नथ्यि नध्यिय ५ १९ छानेर - छाजेरे ४१ १४ सुभ . शुभन्यवहारे ६ १५ शरीरमम शरीरंमम ४१ २० संयोग संयोगे १८ ५ कषायोन कषायोने ४२ २२ भावने भावते ४३ ९ जोग छे जोगे छे १८ ८ अहंशरीर अहंशरीरी ४३ १८ कर्णनी कर्मनी २० ११ कारण कारणे २०. १५ भर्योहे भर्यो है । ४६ ६ उपाधिोग उपाधिभोगे २४ ३ ध्यान ध्यावे ४६ २० उपाधिना उपाधिनो २५ २ आतमधाराने आतमधाराते ४७ १० साधुना साधुनो ४७ १४ याग योग २५ ५ थयलीने थयेलीते २६ १८ लोको लोका. ४८ ५ लुगडांनोककडीलुगडानोककडो २७ ७ रुप रुपो ४९ १लेवा कल्पे नहीं लेवो कल्पे नहीं ५२ २२ विस्तार विस्तारे २९ १३ आवरणयोग आवरणयोगे ५५ १६ अंगभिर अगंभीर ३१ ? शांत शतं ५६ ११ संचयं संचय ३२ ९ ते सर्प ते सर्व ५८ २३ तोड ३२ १५ जीनआगमए जीनआगमेए ६१ २ मुभूमना सुभूमनापिता ३४ ८ संयोगछे संयोगेछे ६४ सागरमा सागरमा ३६ ५ कल्पन कल्पनं ६४ १५ पोत . . पोते ३६ ७ पुत्रादिकने पुत्रादिकते ६५ ६ छठलक्षण छठं लक्षण ३६ ११ स्वजात नथी स्वजाति नथी ६५ १५ तेनोभोगी तेनीभोगी ३७ ४ जाय जाया ६७ १ भयमा जाय भयमां जाय ३७ ९ मांहेलीकोर मांहेलीकोरे ६७ १३ दुष्ट दुष्टा ३७ १४ नय नये | ६७ १७ तेम पशुते पशु तेमने .३७ १५ नय नये ७. १४ विवेक विवेंके ३७ १८ अनंता अनंतां ७३ ५ ए तेना बे भेद तेना बे भेद २८ १६ अन अने ७३ १४ समकितिमोहनी समकित मोहनी १०. २० भेद कसा भेद कहेवा पडे । ७५ २२- संताप ... संतोष ..., .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्नु लीटी अशुद्ध शुद्ध पानुं लीटी अशुद्ध ७८ १८ कोर कोरे १ २७ ५ दुभेद दुर्भदे ८१ ४ पोत न थाय पोते न थाय १२७ १२ उपयोग उपयोगे . ८३ ४ उपशंम क्षयउपशम १२८ २ सुभसंता सुभसंताजी ८४ १० अवनुम अनुभव १२९ ७ मानियोर मानियोरे ८५ ४ स्पर्शीतबोध स्पीबोध १३० १ वर्तमाननोर वर्तमाननोरे ८५ १२ स्वखरुपे स्वरुपे । १३० ६ मोटकोर मोटकोरे ९४ १३ अनुभव अनुभव १३२ २१ फरसे फरस ९५ १४ तंछतां तेछतां १३३ १ जाण जाणंग ९९ ४ जोगमोक्ष जोगेमोक्ष १३४ २ देख अनुभवे न देखे अनुभवे । १०० १७ बीजांभेद बीजोभेद १३४ १८ सभिलोर सांभकोरे १०० १९ अभदेपक्ष अभेदपक्ष १३४ १९ मील्योर मील्योरे १०१ ५ परिणति परिणतिये १३४ २० पूरवपरेर पूरवपरेरे १०१ १० अत्दाने आत्माने १३४ २२.बीजोर बीजोरे १०३ १ एघातिकर्मअ- एघातिअघाति- १३५. ३ टालीगर्व टोलीमोटपगर्व घाती कर्म १३५ ४ दीयर दीयेरे १०३ ७ रस रसे १३५ ६ लीयेर लीयेरे .१०४ ३ परभव १३६ ५ कह्योर कह्योरे १०४ १० विच्छेछे विच्छेदछे १३६ १८ खंधछेर खंधछेरे १०४ १२ तेमोक्षसुख समोक्षसुख १३७ ११ जोग जोगे १०४ १३ मोक्षनां १३८ १२ करीयेर करीयेरे १०४ २१ जेपदने जेपदतेने १३८ १३ कहीयेर कहीयेरे १०६ २२ भणंवु भण १४२ ४ पांचभेद पांचभेदे १०९ २ स्वरुप स्वरुपे १४२ ७ तीहांसुख तीहांसुखसात ११५ ११ भाग भागे १४२ १३ पुछीनेर पुछीनेरे ११६ १९ एद्रव्यंटुं एद्रव्यनुं १४३ ६ समोर समोरे ११७ २ नहीनही नहीनहीअसत्य १४३ २० वधेर वधेरे १२२ ३ नेपरिणमे नपारणमे १४६ १२ स्त्रीवेद स्त्रीबेद १२३ २० नाखीभिन्नपडे नोखीभिन्नपडे १४८ १ कायारे कायरे १२६ ६ पाप पाय १४९ १३ ॥ १७॥ ॥१०॥ १२६ २० नसाध्यु नसांध्यु १४९ १५ घाती चारित्रघाती परभवे मोक्षना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंग पानुं लीटी अशुद्ध शुद्ध पार्नु लीटी अशुद्ध १५० १६ मुखआयुषकर्म आयुषकर्म १७७ २० पामीयेर । पामीयेरे १५१ ९ सरीरनोरे सरीरनारे १७९ २ माहव मद्दव १५१ १४ नीजात्मनारे नीजात्मानारे १८१ ३ सितळनी सीतळनीज १५१ २३ परिणमावीनेर परिणमावीनेरे १८२ ९ उपयोग उपयोगे १८४ १६ कर्मवज्ज संपजेरे कर्मवज १५३ १६ सपजेर १८५ २ असुभ एसुभ १५३ १६ अतीशयव्रत अतिशयवंत १८५ १९ पुन्यपाप पुन्यपाप १५४ १९ सर्वलोकग्रह सर्वलोकग्रहे १८५ २१ द्रव्यभावे द्रव्यभाव १५४ २२ पकडायरे मनायरे २८६ ८ गुणगुणता गुणगुणगत १५७ ४ उदये कई उदय कछु १६० १० बीजां १८७ १४ चउवीशे चउवीश १८८ ४ अनंतकारणे अनंतर कारण १६१ ९ काया काय १८९ १० भवहारे भवहारे १६१ २१ अंगे १८९ १३ निवारयाण निवारणाय १६२ ९ कर्मनाम नामकर्म १९० १२ सिद्धा सिद्ध १६३. ९ रचनाकारणे रचनाकरं ते १९१ २ पुन्य पुन्ये ते करुं कारणे १९२ १५ एकांता ६ एकांतम० ६॥ १६५ २ नव नय १९२ १७ पास ॥७ पास ॥म०॥७ १६८ १२ छतिपर्याय छतिपर्याये १९३ २१ मुनिधर्म मुत्तिधर्म १६८ १३ नयज्ञान नयज्ञाने १९६ ९ करेर करेरे १६८ २२ लहेरे करीने लहेरे १९६ २२ वांचछेर वाचछेरे १७० ८ जो करेरे जे करेरे १९७ १९ उपयोग उपयोगे १७१ १४ खपावोर खपावोरे १९८ ३ पूजियेर पूजियेरे १७२ ७ ठाणंगेर ठाणंगेरे १९९ ७ साथे साथ १७३. १५ द्रव्यभावे द्रव्यभाव २०० ५निरजराकरीयेर सकामनिरजरा१७३ १६. भाव भावे करीयेरे १७५ ३ दिसरे दसरे गुणीते २०२ १९ चालीए चालीयेए १७६ ४ द्रव्य द्रव्ये २०४ १३ प्रथथ प्रथम १७७ २ शासनरे शासनेरे २०६. ३ मांइरसाल माहारसाळ १७७ ५ वलावीनेर वलावीनेरे२०६ ८ पर्याय पर्याये १७७ ९ परिणम्योर परिणम्यारे २०७ २१ वीसरे वीसरो १७७ १४ कीजीयेर कीजीयेरे । २०८ ३ गुणीपर्याय गुणपर्याय ... २०० १२ गुणीने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्नु लीटी अशुद्ध शुद्ध । पार्नु लीटी अशुद्ध २१० ७ संसारमाहे संसारमा ए २३७ १८ ज्ञानने ज्ञाने। २११ ३ पीधोर २३८ ९ जाणी नाणी २११ ५ छोडेर छोडेरे २३८ १३ मुणीजेर मुणीजेरे २११ ९ मुणावेर मुणावेरे २३९ ८ भेट्ये भेटे ११२ १ विराजेर विराजेरे २३९ ११ जीनंदरे जीनेंद्ररे २१७ ८ शब्दनय शब्दनये २४० २ विरचावरे विरचावेरे २१७ १२ पुरनाशीयो दुरनाशीयो २४० २३ जाणी भणी २१८ १३ वश्योर वश्योरे २४१ ५ रत्नमयी रत्नत्रयी २१९ २१ सुद्धजी सुद्धिजी २४२ ९ कोमल्लिनाथ करे मालिसाथ २२. ६ ठरता ठरताजी २४४ ३ पूजीयेर पूनीयेरे २२१ १८ अन्यसदाय अन्यसहाय २४६ ६ क्षय आवे क्षय पावे २२३ ६ दानदेतो दानदेता २४७ १० छलावू घलाएँ २२३ ६ निजलेतो निजलेता २५३ १४ दीवेलेधेनहींजी दीधेलेवेनहींनी २२६ ७ मोहनमेर मोहनमेरे २५४ २ ए दशो ए देशी २२६ ८ गुरुमेर गुरुमेरे २५५ ८ वीणसेरलाल वीणसेरेलाल २२७ १५ दीपतो दीपता २५५ ९ लक्षण लक्षणे २२७ १८ शत्रुविनाश सर्वशत्रुविनाश २५६ १४ बारमेरलाल बारमेरेलाल २२९ १२ भावे २५७ ८ मेर०॥ मेरे॥ २२९ २० निरागी निरोगी२५७ १४ मुखजाइ- मुखजोवाावी. २२९ २० कहुंतारा कटुतारी वीयो यो २३० ९ ठाम ठाण २५८ ६ मेर। मेरे॥ २३१ ४ फलमुक्ति विरतिफलमुक्ति २५८ ११ बरसाये वरसाछे २३१ ८ सत्ताभिन्न सत्ताभिनभिन्न- २५८ १४ सरज्याछे सरस्याछे करी २५८ १५ ॥नेमि०॥१॥ ॥राजुल०॥१॥ २३२ २४ निरंजन निरंजन २५८ १७ ॥नेमि०॥२॥ ॥राजुल॥२॥ २३३ १० ए॥५॥ ॥५॥ ए २५८ १९ ॥नेमि०॥३॥ ॥राजुल०॥॥ २३७ १८ शीतळने शीतळते २५८ २१ ॥नेमि०॥४॥ ॥राजुल०॥४॥ २३५ १० निजातमे निजातम २५८ २३ नेम नेमि २३५ २२ साथे 'साधे .. २५८ २१ नेमनिरागी नेमिनिरागी भाव Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जुवे चेतंबरे पार्नु लीटी अशुद्ध | पार्नु लीटी अशुद्ध 259 1 जुए 292 3 काळ कार 259 5 समजाव्या समजाव्यां 294 4 जाण भाण 260 9 एभंगे अभंगे 295 18 ढाळनी आ ढाळनी 260 11 श्रीश्रद्धा श्रद्धा 297 3 दरशन दरशंन 260 17 नीरागी नारागी 297 4 प्रसन्न प्रसंन्न 263 18 तुंहीरुपीअरुपी तुंही रुपी नहीं 297 11 विघन / विघंन अरुपी . 298 6 चेतनरे 263 4 फरसे स्पर्से 298 18 ते वस्तुने ते वस्तुते 264 23 सडग खड़ग 298 23 कर्सग्रंये कर्मग्रंथ 265 6 दाखीये दाखीयो 300 12 अटारारे अटारोरे 266 2 चोथा चोथे 301 19 विसामोर विसामोरे 266 21 भेदभे दे 302 3 उपशमरे उपशंमरे 267 15 लेजोर लेजोरे 302 7 उपशमरे उपशंमरे 268 17 वंशरणायरो वंशरयणायरो 302 8 एकदमरे एकदंमरे 269 21 देख 303 5 सास्वादनकोइ लहेसास्वादनकोइ 270 2 जावोर जावोरे 303 8 कपठ होवे कपुर होवे 270 3 धारोर धारोरे 304 1 रतन्त्ररे रतंबरे 270 14 करीयेर करीयेरे 304 5 प्रणी०॥ 9 // प्राणी॥०॥९॥ 27. 16 जुए जुवे 304 20 हण्यारे हण्यारे 272 14 पूर्वकर्मसंबंधी पूरवकर्मसंबंधथी 305 21 मंत्र मंत्र 306 11 आशाता অয়না। 272 16 आवेर आवेरे 306 12 परभागे परभाग 272 17 भावेर भावेरे 308 16 पणे पणा 275 17 कीहांक्या कहोक्यां 310 14 चेतनरे चेतनरे 278 3 भावेर भावेरे 310 15 रतन रतन 280 4 मिथ्याखछे प्रमादछे 310 16 परवस्तुरे परवस्तरे 282 15 सोहीरे सोयरे 312 20 पेढी 284 18 वन०॥११॥ वने०॥११॥ 317 1 तेमची तेमयी 287 18 // 37 // गाथा // 37 // 317 4 नही। 289 23 लवुता लघुता 320 15 एहनेरे एहनेरेलोल पेटी तही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com