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________________ श्री गु३तनी २.स. माटे मागो अकर्म पद, कर्म जाळ सबि चुरे रे॥ उपगारी ॥ ११॥ एथी अधिक अरथ नहीं दुजो, परम अरथने पाम्यो ॥ सदगुरू संग अति उपगारी, परमानंद पद जा६ म्यो रे ॥ उपगारी० ॥१२॥ गुरू उपदेश सुणी हां दाख्यो, 9 & मंदमति मुज नारी ॥ गुरु कृपाथी रचना कीधी, वाळजीव है उपगारी रे ॥ उपगारी० ॥ १३ ॥ नग्र विजापुर घरमां व-७ सियो, गुरू नक्तियें रास रचायो॥ सुरचंद मुजनाम नलेरु उद्योत शीतळ घट आयो रे ॥ उपगारी० ॥ १४ ॥ श्रोगणीसत सुमताळीस वर्षे, श्रावण कृष्ण पक्षायो ॥ गुरूनक्ति रास पूरण त्रीजे,शुन्न योग लक्षायो रे॥उप०॥१५॥ गुरूक्ति येथा रास जे कोई गाशे, सुणशे स्थिर उपयोगे ॥नावार्थ 5 अंतरमा लावे, तिहां शुद्ध परिणति होय नोगेरे।उपगारी॥१६॥ मुज मनोरथ सफळ दुयो आज, नक्तियें पूरण रास कीयो 3॥ संसार कार्यने अळगां मुकी, गुरूनक्तियें चित्त लीधो रे॥ उपगारी ॥ १७ ॥ मुज अंगे उलट अति जामो, एक तान स्थिर ध्यान ॥ चित्त रमाई प्रत्येक ढाळे, ज्ञान शीतळ करूं पान रे ॥ उपगारी० ॥ १७ ॥ XXXXXXXXXXX ॥ इति श्री गुरू नक्तिनो रास संपूर्ण ॥ ॥सर्व गाथा ॥ ३०५ ॥ SongrammerGRUGORG BROOOOOOOOreorea is.nnuairsem6MBINE Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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