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________________ . FRORAGARAGRAMINERASARAGMEAGarera 9 अने प्रशस्तमान अने लोन ले. ते धर्म करणीमां कपट करवानो हेतु बे, माटे प्रशस्त अने अप्रशस्त ए मोहनी कर्मनी प्रकृति . ते सर्वे आत्माने अहितकारी . वली प्रशस्त जे तेज अप्रशस्त प्रकृति बांधवानो हेतु थाय माटे तजवा योग्य . धर्म अर्थी पुरुषने वक्रतानो त्याग करी सरळ नावे वर्त, एज श्रेय बे, कल्याणकारी जे. एम 6 सरळवृत्तिए थया तेहने आत्मानंदी कहीए (१०) हवे अगीधारमुं लक्षण अनुन्नवज्ञान एटले मतिश्रुतज्ञाननुं कार्य एज अनुन्नवज्ञान के अने केवळझानन कारण एटले हेतु एज अवनुन्न ज्ञान ले. वली मतिश्रुतज्ञाननो उत्तर नावी अने केवळज्ञाननो पूर्व नावी एज अनुलवज्ञान . अष्टांत जेम सूर्य के तेम केवळझान डे अने सूर्योदय थता पहेला सूर्यमंमळथी रक्ततारूप प्रकाशनी सदृश्य निकट वृत्तिए जेम अरुण देखाय ते द्रष्टांते अनुन्नव डे एटले साक्षात् वस्तु स्वरुपर्नु जाणवू ऊपयोग अष्टिए प्रत्यक्ष करतळवत करवू. प्रत्यक्ष प्रमाणे निरधार करवो ते अनुन्नव ज्ञानथी थाय पण जीनागम एटले सूत्र सिद्धांत अने सिद्धांतनी निश्राए ग्रंथो वली अन्य दर्शनीनां सर्वे शास्त्र तेनो व्यापार एटले उद्यम करतां नणतां, वांचतां, जोतां १ ६) धारतां, निर्णय न थाय कारण के जे शास्त्र ते कार्यसिद्धि नी दिशाने बतावे . वली वस्तुस्वरूपने अनुकुळ जे बोध 5 तेनी प्रवृत्तिनो विधि तेनुं निमित्तमात्र कथन करे . जे- 6 हमके पूर्व दिशानी सामी पश्चिम दिशा जे. एम सूचवे . ६ FaceBoswwwixxcase REGARMERAGrammar. AGARAGARAGARAGRABARAGARLGre Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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