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________________ SMOLEC Uses Gramma SAIRAGAR GARLORER GOLGAPares श्री धर्म प्रवर्तन सा२. दर्शननी प्राप्ति थतां टळी जे. तीहांथी निर्नय, वली तत्व१ष्टिए विचारीए तो जीहां, अप्रतिपाति. क्षय ऊपसम-3 नाव थाय. एटले हानि न पामे. त्यारे निर्णय दशा £ मानीए एटले अप्रतिपाति ऊपशम आत्मा क्यारे पामे ? ६ । तो कोश्क जीवो गसठ सागरोपम मामेरी संसार काळस्थिति बाकी रहे त्यारे पामे अने कोश्क जीवो, तेत्रीस 6 सागरोपम मारी संसारस्थिति काळ बाकी रहे त्यारे पण पामे. वली कोश्क जीवो बेल्वे नवे तो पामेज पण आठ नवथी अधिक संसारस्थिति जे जेने, तेतो अप्रतिपाति क्षय ऊपशम न पामे अने अप्रतिपाति क्षय ऊपशम लाव न आवे तीहां समकितनी साबीती न रहे अने मि-- थ्यात्व प्राप्त थाय तीहां हानि कहीए. माटे अप्रतिपाति क्षय ऊपशमने पामेला चोथा गुणगणाना नावने अचळ थयेला उपरना गुणगणे चढे अने पमे पण चोथा गुणगटू णाने न बोमे. ते निर्नयवंत पुरुषोत्तमने मुख्यताए आत्मा१ नंदी कहीए. (ए) हवे दसमुं लक्षण निष्कपटी एटले कपट करवानुं कारण झुंडे तो एक मान अने बीजो लोन ए वे . ए | बे प्रकृतिनी उबास करीए, तीहां कपटनो संनव न आवे. ) ए मानना बे नेद. एक अप्रशस्तमान, बीजु प्रशस्तमान? लोनना बे नेद. एक अप्रशस्त लोन, बीजो प्रशस्त लोन 5 एम वे प्रकृतिना चार नेद थया तेमां अप्रशस्त, मान ६ अने लोन , ते संसारमां कपट करवानो हेतु डे 9 (८ ) SONGrammar-rosagar RESPERMIRMIR rASMA.Me Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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