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________________ Songragram FIRSAGAR GARATANARMONSri Song १ आनंद जिन्न एटले नोखो नोखो बे, तेथी अनंतो आनंद प्राप्त थाय. तेने परमनाम उत्कृष्टो आनंद कहीए एम अनंती गुण राशीनो अनंतो आनंद गवेख्यो ते शिवाय सिद्धात्माने विषे अव्यावाध सुख प्राप्त थाय ते जुडं डे. एम आगममां व्याख्या . एवं देवचंद्रजी कृत चोवीसीना वाळाबोधने विषे सातमा सुपार्श्वजिनना स्तवनमां प्रथम गाथाना उपरना अधिकारे कर्वा डे एम अनंती गुण रासीथी परमानंद प्रगटयो. तेनुं सुख वली अनंतु अव्याबाध सुख तेनी लेहेरमै कहेतां सदा मग्नतामां चेतनत्व धर्मे सिद्ध सिला उपर एक जोजनना तेवीस नाग निचे मेलीने चोवीसमा नाग उपर अलोकने अमीने सिद्ध परमात्मा स्थिर रह्या बे, अचळ कहेतां जिहां रह्या ले तीहांथी एक आकाश प्रदेश पण आघा पाठा चळायमान थाय नही माटे अचळ,अलख कहेतां सिद्ध परमात्मानुं स्वरूप है बमस्थथी जाण्युं न जाय. केवलझानी पूर्ण जाणे वळी १ अनुन्नवी पुरुषो देशथी जाणे, वीजा न जाणे. अंगम क हेतां सिद्ध परमात्मानुं स्वरूप निहाळवाने उमस्थनी १ दृष्टि थाके डे, गम न पहोंचे. विमळ कहेतां सिद्ध परमात्मा आवरणना अन्नावे सदा निर्मळ , बुद्ध कहेतां दायक नावे ज्ञानी जे निराकार कहेतां परिमंमळ प्रमुख संस्थान डे नहि, ते सिद्ध नगवानने आकार कहीए, निराकार डे. # नविकार कहेतां विकार तो जिहां पांच इति होय तीहां है विषयनो संन्नव आवे अने उठो नोडि जे मन होय, ६ VRANGBANGEResons DIG GGrordGrammarBOS Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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