SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ REGrolora Gregarma Green GrGrARSaror श्री धर्म प्रवर्तन सार. १ तीहां विकल्पनो संनव थाय, तेने विकार कहीए. तेथी। ६ रहित सिद्ध नगवान , माटे नविकार गुण गुणमां रहै , कहेतां सिद्ध परमात्माना ज्ञानादि अनंता गुण बे, ते गुणोमांज पोते रहे, पण वीजा जीव अजीवादि अव्यना गुणोमां न रहे, न रमे, परगुणे नहि कदा कहेतां, पोतानो , गुण डोमीने बीजा परजव्यना गुणे कोई काळे न प्रवर्ते एवो वस्तु स्वन्नावनो धर्म बे, ते कारणे निज गुणमांज रहे अने वली रमे. सदा कहेतां आंतरा रहित पोताना गुणमांज रमण करे, एटले सिद्ध नगवानने विषे गुण गुण गत, गुण गुण स्वनावे, निन्न निन्न रमणनी एक सम-1 है यमां अनंती प्रवृत्ति थाय, ए गुण चारित्र धर्मनो ने एटले 3 चारित्र धर्म ते पोताना गुणमांज पोते रमे; परमां न रमे, ए चारित्रना पर्याय , वली स्वन्नाव रमण परतावनी १ वृत्तिए चारित्रनी परिणति बे, पर्याय फीरे तदा, कहेतां ह सिद्ध नगवानना स्वन्नाव रमणने विषे, समये समये उत्पाद, व्यय, प्रवर्ते , तेथी गुण गुण गत गुण गुण स्वन्नावमा पर्यायर्नु परावर्त्तन धर्म के तेथी पूर्व पर्यायनो नाश अने अनिनव पर्यायनी उत्पत्ति, एम समय समय अनिनवपणे गुण गुण गत प्रवर्ते डे, एअव्यवं मूळ लक्षण , ७ तेथी सदा उत्पाद व्यय परिपाटी प्रवर्ते; जो एम न होय तो : जिनेंनी देशना असत्य थाय माटे नहि असत्य यथार्थ सत्य ६. बळी अनिनवपणे पर्याय- प्रवर्तनपणुं न मानीए तो हे पुनरपि पुनरपि लोग उपन्नोग परमानंदपणे, सदाय सिद्ध ६ daar@nordarGranardan ११४) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy