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________________ HTRAGRAGMERPRGB/sures १ हणी महा मोहमल हएया रागोषने हो लाल हएया० ६॥ टळी परिणति अशुद्ध त्यां शुद्ध प्रवेशने हो लाल ॥ , त्यां शुद्ध० ॥२॥ ज्ञान दर्शन अंतराय त्रिकर्म इहां टळे हो लाल ॥ त्रिकर्मः ॥ गुण धातिने अन्नावे अनंत चतुष्टी मळे हो साल ॥ अनंत० ॥ इत्यादिक घणी रीते साधन 3 ६ पक्ष दाखीये हो लाल ॥ साधन० ॥ नय निदेपा प्रमाण संयुक्तादि नाषियो हो लाल ॥ संयुक्तादिः ॥३॥ एम उपगार अनंत सिद्धांते तुमे कयों हो लाल सिद्धांते०॥ तुज शासन संयोगे हुँ मार्गे चढयो खरो हो लाल ॥ हुँ मागें। ॥ अन्य दर्शन कुपंथ कुधर्मेन संचरु हो लाल ॥ कुधर्मे० ॥ झान शितळ जैन नावे सिद्ध पदने वरं हो साल ॥ सिद्ध पदने ॥४॥ स्तवन ॥ १६ मुं । ॥धवजी संदेशो कहेजो श्यामने ॥ ए देशी.॥ अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे, क्यारे थश्शुंदायक लब्धिवंतजो॥ आत्म सत्ताये शक्तिनावे अनादिनी, रही बती पर्याय एम नाषे गुरुसंतजो॥अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ दायक लब्धि पामवा बे कारण कहुँ, चौ नेदे मीले जब क्षयोपशमनी सहायजो ॥ परिणामिक नाव शुद्ध खन्नावे परिणमे, तिहां दायक लब्धि पामे चेतनरायजो ॥ अपूर्व ॥२॥ दायक लब्धि अनंत नेदे एम जाणीये, ते केवळीश्री पण वचन है Q अगोचर न कहेवायजो ॥ दायक लब्धि नव नेदे ग्रंथे nanRAMASIRSANA GroGramBhareloor@Grenore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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