________________
स्तवन राधि२. 9) कही, ते घाति कर्मना व्यथकी प्रगटायजो॥ अपूर्व० ॥३॥
क्षायक समकित पामे गण चोथा वा सातमे, तेना बद्धायु
दायकने अवद्धायु कायक दो लेदजो॥ बद्धायु क्षायक लहे , ६ शीव सुख त्रीजे चोथे नवे ॥ अबद्धायु दायक लहं तद .
नवे शीव पदजो ॥ अपूर्व० ॥४॥ क्षयोपशम समकिती 6 वेदक करी दायक लहे ॥ ते वेदक समकितनी स्थिति है एक समयनी होयजो ॥ सात प्रकृति होय बेद तीहां सत्ता थकी॥ ज्ञान दर्शण दोउ त्यां अप्रतिपाति जोयजो॥ अपूर्व० ॥५॥ अबद्धायु क्षायक समकीति दपक श्रेणी मांमीने, गण दशमा अंते करे सत्ताथी मोहनो विनाशजो॥ ३ राग द्वेष परिणति अशुद्ध टळे तीहां ॥ लहे चरण यथाख्यात करे क्षीण मोह गणमां वासजो ॥ अपूर्व० ॥६॥ए।
वीण मोह अंते त्रण कर्म साथे हणे,ज्ञानावरणीने दर्शनावरदणीअंतरायजो केवळनाण दशणते लब्धि पांच दायक ना
वनी, ए गुण प्रगटे त्यां कहीए श्री अरिहंत रायजोअपूर्व॥ ॥७॥ इहां सयोगी केवळी गुणगणुं तेरभु कीजीए॥ तीहां दायक नव लब्धिनी पूरण प्राप्ति थायजो ॥ ए पलब्धि जोगे से इंजे शीव सुख संपजे, अयोगी अंते अघाति ६ हणी सम श्रेणीये सधायजो ॥ अपूर्व० ॥ ॥ ए सिद्ध
निरंजन लोकाग्र नागे रह्या ॥ चळ अविनाशी तीहां है ६ सादि अनंत लागे नंगजो ॥ दायक ऋद्धि अनंत नेद | 5 इहां लोगवे ॥ परमानंद पामे अव्यावाध सुख संगजो १
॥अपूर्व० ॥ ए ॥ जे समय पामुं शक्तिथी व्यक्तिपणुं ॥ zavaneswarorosis
HTRGGAGeoroor.RooGuardasRD.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com