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________________ SERIAGRIORGBGRam સ્તવન અધિકાર, ते समय होय अनुमोदवा योग्यजो ॥क्षायक ऋद्धि था विरत्नावे प्रगटे ॥ त्यां नागे वीरह थाय शुद्ध चेतना ५ 9) संयोगजो ॥ अपूर्व ॥ १०॥ दायक लब्धि पामवा में हैं ६ इच्छा करी ॥ तीहां पुद्गलिक नावनी इच्छा नागी जा-६ यजो ॥ परवस्तुनी ममता मूर्ग परिहरी ॥ दायक गुण रागे प्रशस्त राग कहायजो ॥ अपूर्व० ॥ ११ ॥ दायक ऋद्धि जव स्थिति पाके संपजे ॥ ते उद्यम जोगे जलदी है पाके एमजो ॥ उद्यम करीये नाव निक्षेपे घटंतरे ॥ त्यां अनुन्नव जोगे समाधि लहतां खेमजो ॥ अपूर्व० ॥ १२ ॥ ॐ विषय विकार वेदवामां आवे नही ॥ त्यां अंतर क्रिया में अंतर रमण कहायजो ॥ ज्ञान शीतळ निजात्म नावे होय साधना ॥ तीहां शुद्ध उपयोगे दायक ऋद्धि ग्रहायजो ॥ अपूर्व० ॥ १३ ॥ ॥ स्तवन १७ मुं उपदेशीक । चेतावं चेती लेजोरे एक दिन जरुर उमी जावु ॥ए देशी सुणजो नविजन नारे, साधन नाव निक्षेपे ६ साचुं॥ नाव निदेपे ग्रंथि नेद करतां, समकितनावे राचुं सुणजो नविजन नारे ॥ साधन० ॥ १॥ नावे ध्यान तुरंगे नाचुं । नावे शीवसुख लहीए जाचुं ॥ए वीण साधन १ सब काचुं ॥ सुणजो नविजन ॥ ए श्रांकणी ॥ अव्य निक्षेप कह्यो अना उपयोगे, अनुयोग द्वार सिद्धांते॥ नाव निक्षेप उपयोगे दाख्यो, ते लहो नविशांत दांते ॥ सुणजो० ॥॥ अव्य प्राणने चेतन जाणी, अव्य निक्षेपे किरिया करतो॥ ६ (२६७) GrdGR&AGre are Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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