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________________ FORMIRMIRRORima GOLGareAGARGOG.GARH श्री शु३मतिनो रास. ७ चेतन धर्म ॥ पुद्गल जोगी चेतन थयो रे, दाखं तेहनो , मर्म ॥जगत॥११॥ ज्ञान घाति ज्ञानावरणी रे, दर्शनावरणी हणे दरशन ॥ चारित्र घाति मोहडेरे, अंतराय पांच टळे , प्रसन्न ॥ जगतः ॥ १५ ॥ लब्धि पांच दायक जावनी रे, दान लान लोग उपन्नोग ॥ वीर्य गुण प्रगटे चेतनारे, तेनो घाति अंतराय रोग ॥जगतः॥१३॥ अव्याबाध वेदनी हणेरे, ६ अमूर्ति हणे नाम कर्म ॥ उदारिकादिक सात वर्गणारे, है रचना पुदगल धर्म ॥ जगतः ॥ १४ ॥ तेहीज नाम करम थकी रे, चेतन पुद्गल रूप ॥ अटळ अवगाह थायु हणेरे, गोत्र हणे अगुरु लघु नूप ॥ जगतः ॥ १५ ॥ एम विनाश पुद्गल थकी रे, चेतन धर्मे विघन ॥ तेथी चेतन पुद्गल संगेरे, मिलण विखरण सलग्न ॥ जगतः ॥ १६ ॥ परसंगे संसारी थयो रे, चगति नटकण चाल ॥ श्रातम घातिए वर्णव्योरे, पुद्गल रूप निहाळ ॥ जगतः ॥ १७ ॥॥ टाळे परसंगी पणुं रे, अनुन्नवे चेतन धर्म ॥ शान शीतळ शीवपद वरे रे, हणि कार्मण आठ कर्म ॥ जगतः ॥१७॥ दहा. पुद्गलने जीव दाखिया, ए बेहुनो अनादि संबंध ते जोगे संसार स्थिर बे, तजतां श्रात्म अबंध ॥१॥ ॥ ढाळ ॥ ४ चोथी॥ ॥ तप शुं रंग लाग्यो ॥ ए देशी ॥ गुणी जीन वंदो मुनि समकिती, हुकम मुनि जस है . नामरे ॥ समकित गुण निश्चळ करवाने, उपगारी गुण ६ aaugaisarowse KARAMBIRGISGDream .. Musnergreer .HAMROM 34 (२८७) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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