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________________ FRORAMRAGRAPARISMRAGMEAGAR श्री धर्म प्रवर्तन सा२. कारण मानो ॥ व्यक्ति ते कार्य जाणो ॥ शक्तिनी व्यक्ति जेहथी सहीये ॥ ते साधन परमाणो ॥ नवी० ॥१३॥ पर्यायास्तिक नयनेद स्वन्नावे ॥ द्रव्यास्तिक अन्नेद ॥ उन्नयधर्मी द्रव्य दाख्यो ॥ अविरोधी अच्छेद ॥ लवी १ ॥ १४ ॥ एम स्यादाद लक्षणमयी ए द्रव्यसत्ता गुणखाण ॥ इत्यादि नेद घणा विस्तारे ॥ वस्तु सत्ता उलखाण । नवी० ॥ १५ ॥ द्रव्य षट्नेदे जाणी सहीए॥ हेय उपादेय बुद्धि ॥ है हेय जाणी पंच अजीवने मी ॥ ग्रहीए एक निज जीव 6 शुद्धि ॥ नवी० ॥ १६ ॥ हेय उपादेय बुद्धि घटमां ॥ तेही ज श्रातमझानी ॥ ज्ञानशीतल उपयोगे प्रकाशे ॥ द्रव्यस्वरूप थिर ध्यानी ॥ नवी० ॥ १७ ॥ ढाल चोथी संपुर्ण ॥ PRESAGARAGRAHASAGARGre neGARAGRAGRA ॥ द्वाळ पांचमी.॥ नदी जुमना के तीर उमे दोय पंखीयां-ए देशी, लाखु धर्मास्तिकाय नवी तुमे सांनलो ॥ समजो अव्य वखाण मिथ्या टले श्रांबळो ॥ चेतन बुद्धि कायामां राखीने व्रत धरो ॥ न लहो सो समकित कर्म बांधो खरो १॥१॥ ते कारण प्रव्य जाणी नीज जीव जाणजो ॥ पा४ मशो सम्यक् ज्ञान शीव लही माणजो ॥ धर्मास्तिकाय 9 ग्रंथे गीतार्थे वर्णव्यो । चउगुण वीस्तारमा जोइ अनुन्न. ६ व्यो ॥२॥ अरूपी गुण पहेलो वर्ण अन्नावी ॥ रसगंधने 5 फरसे संस्थान को नथी । संस्थानने अन्नावे अमुत्ती ली जीए ॥ वर्ण विना नही रूप अरूपी कीजीए ॥३॥ प्रथम Psuremendoor Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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