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________________ Gorea ARREGNAGAR SAKAR SARAGRos श्री धर्म प्रवर्तन सा२. ६) गुण थयो सिद्ध बीजो अचेतनए ॥ जाण गुण अन्नावे नही है ते चेतनए अक्रिय गुण त्रीजो करणी करे नही ॥ इहां १ कोश् करे तर्क साज जीवादि तही ॥ ४ ॥ तेहने उत्तर दाखं ए स्वजाव करणी ॥ जलतारे बुझे तेले वेहेवारे नवरणी ॥ स्वन्नाव करणी एक चट अव्ये जाणीए ॥ सिद्ध परमातममांही स्वन्नावे वखाणीए ॥ ५ ॥ पुद्गल संसारी 6 जीव बे ऽव्यमां दाखवू ॥ स्वन्नावने विन्नाव बे करणी लाखq ॥ विन्नाव करणी एक मीथ्यात्वी जीवमां ॥ मन तन वचन प्रवृत्ति नव्यने अनव्यमां ॥६॥ चोथा गणथी उपयोगी चौदमा अंत ज्युं ॥ स्वन्नावने विन्नाव बे करणी संत ज्यु ॥ स्वन्नावे शुद्धातम अनुन्नव करणी ॥ विनावे उदयिक नाव सवे नीरजरणी ॥ ॥ पुद्गलमां दोय नेद करणीना दाखसुं ॥ एक परमाणुं मांही स्वन्नावे लाखसुं। खंध मीले ने विखरे ए विनाव करणी ॥ योग्यतावंत ए अव्य ग्रंथे एम वरणी ॥ ॥ स्वन्नावे जे करणी ते निश्चय १ जाणीये ॥ विन्नाव करणी बाह्य व्यवहारे पीगणीये ॥ व्य वहारे नहि करणी धर्मास्तिकायमां ॥ तेथी अक्रिय का १ हेतु त्रीजा गुणमां ॥ ए ॥ गुण त्रीजो थयो सिद्ध चोथाने पीलाणीए ॥ जीव तथा पुद्गल बेहुने गति हेतु जाणीए॥ मीन चाले जळ मांही चाले नही अन्य कां ॥ जीवने पु. द्गल चाले धर्मास्ति थकां ॥ १० ॥ धर्मास्तिने अन्नावे गति 5 नहि संनवे ॥ जीवने पुद्गल नाहि जश् अलोके ग्वे ॥ गति करवा शक्ति ने जीव पुद्गले ॥ आकास आपे मार्ग ६ BigDars Bross nara GARGGERGRAMMAGAR Pro a cts Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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