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________________ सआय मधिर. PARAGRAR GORMELORAMBAGr ६ मोह अनाथरे ॥ एने ग्रहे ते जीव अनाथ बे, तेनो बेली , ६ नहीं सनाथरे ॥ चतुर ॥ ६॥ अव्य अनाथ दाता अज्ञा-१ नए, क्षेत्र अनाथ क्षय उपशम हानी रे ॥ काळ अनाथ , @ दाता मिथ्यात्व डे, नाव अनाथ परिणति अशुद्ध प्राणी रे॥ चतुर० ॥ ७ ॥ तेने हएयां सनाथ त्रण लोकनो, जेहणे ते सही थाय रे ॥ एम जाणी नविजन क्षय करो, गुरु ज्ञान खाग हाथ लाय रे ॥ चतुर० ॥ ७ ॥ है है ए विण अवरेदय नही, क्षय होय जो आतम ज्ञान रे ॥6 , तो घटंतर प्रकाश करे, ए चोरो तीहां नागे एम मान्य रे ॥ चतुर ॥ ए ॥ ज्ञान योगे सनाथ आतमा, धर्म कार्य 6 वंत थाय रे ॥ तेह चउन्नेदे दाखवू, उतकृष्टे परमातमरायरे ॥ चतुर० ॥ १० ॥ अव्य सनाथ दो नेदे कहुँ, सम्यक दर्शन ज्ञानरे ॥ धर्म उद्यमी अंतर आतमा, लहे नवि केश एम मान्य रे ॥ चतुर ॥ ११ ॥ क्षेत्र सनाथ अंतर खेत्रमा, अनुन्नव जुवने वासरे ॥ दृष्टि स्वन्नाव पर्यायमां, तीहां नहीं आश्रव अवकाशरे ॥ चतुर० ॥ १५ ॥ काळ सनाथ अप्रमत्त वृद्धिये, रूपकश्रेणी मंगायरे ॥ ते नर अमर शीवपद वरे, अयोगी अंते बुटे कायरे ॥ चतुर ॥ १३ ॥ ॥ नाव सनाथ शुद्ध परिणतियें, चरण यथाख्यात वीतरागरे ॥रागळेष मोह सवि टळे, संसार निरबीज शीवमागरे । ॥ चतुर ॥ १४ ॥ त्रण नेदो जो नावपणुं लहे, तोहोय १ तद्न्नव सिद्ध राय रे ॥ नहीं तो संसार स्थिति रहे, -, स्कुष्टी जघन्य कहायरे ॥ चतुर० ॥ १५ ॥ पमतां अरध ६ LEBRemixonsorsansar BreBoorrenerBrogrorey __(२८०) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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