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________________ श्रीधर्म प्रवर्तन ॥२. શ્રી ધર્મ પર .............w ww.t SRURAM बळद, हाथी, घोमा श्रादे चौपगां इत्यादि परिग्रह वधा रवानी घणी इच्छा राखे, वळी धन्यादि वस्तु नूमीने विषे ३ १ दाटे श्रने विचारे के कोइए दी तो नही होय. वक्षी लेणदेणां करे अने विचारे के श्रापशे के नही आपे, एम 9 परिग्रहनुं रक्षण करवामां जेणे मन परोव्युं , ते रौअध्या- , ननो ध्याता . वळी संयति नाम धरावी जे मूळ गुणथी हीण होय एटले परिग्रह गुप्तपणे राखे, वली दोरा, धागा है करे, वैदकपणुं करे, अनेक नेदे वनस्पतिनां मूळ कढावे, 5 वळी नही घाली मात्राओ मारी अती हिंसक थाय, वली संसारीपणानां पोतानां सगां संबंधीनी चिंता करे. अविर-6 तिपणे काम लोग करेला, विषय सेवेला तेने रुचिए संन्नारे, इत्यादि वार्तध्यान, रौअध्याननो ध्याता जे क्रूर तेने अशुन कहीए. ते क्रूरपणो पोतानो टाळी उपशम, क्षयउपशमन्नावे शांत थ धर्मध्याननो ध्याता शुन्न प्रवृत्तिए न थाय अने उपर कही तेम अशुन प्रवृत्तिए, वर्ते तेने नवार निनंदी कहीए. (४) हवे पांचमुं लक्षण लोन ते जेम जेम है वस्तुनी प्राप्ति थाय, तेम तेम लोन वधतो जाय; तृष्णा न डीपे, अष्टांत. जेम अग्नि बलती होय तेमां काष्टनो पुरती करीए, तेथी अग्नि वृद्धि पामे, पण शान्ति न थाय, ए अ टांत पूर्वक जेम जेम वस्तु मीले तेम तेम तृष्णा दिप्त @ थाय, अने अपूर्णता नजरे आवे, तेना उपर आठमा १ सुजूम चक्रवर्तिनी कथा कहे . या अवसप्पिणी काले है अढारमा, उंगणीसमा तीर्थकरने आंतरे सुनूम चक्रवर्ति Gror.RGreprerana Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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