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________________ DEMOREVIEDEVOSMODEODE श्री धर्म प्रवर्तन सार. आवता कालनी चिंता एटले हवे हुं हुं करीश, मारो निर्वाह केम चालशे, हुं शुं खाश्श, निर्धन थक्ष गयो, दारिख अवस्था आवी, अथवा हुँ निराश थर गयो, मारे कोश्नो आधार नथी, मारुं रखोपूं कोण करशे, मने शाता अशातानी खबर कोण पुबशे, अशातानी वखते रोगादि कारणे, ६ मारी पासे, बेशीने पाणी कोण पाशे, खावा कोण श्रापशे, । मारी आसनावासना कोण करशे, अथवा था कुमाणसनो समागम मारे डे ते क्यारे टळशे, मारो ने एनो बुटकबारो क्यारे थशे, वळी आ मारी रोग व्याधि अथवा दारिज अवस्था क्यारे टळशे, इत्यादि विचार एकत्व परिणामरूप करवो ते आर्तध्यान डे, वळी संयतिपदे नियाj करवू ते पण आर्तध्यानमां . हवे रोऽध्यान ते जीवनी हिंसा एटले जीवना द्रव्यत्नाव, प्राणनो घात करे, विटंबना करे अने खुशीपणुं माने, राजी थाय, वली हिंसक जीवोनां वखाण करे, तेना बळनी प्रशंसा, अनुमोदना करे, वळी जूतुं बोले, कपट केळवे अने मनमा खुशी थाय, के मारा है जूठपणानी कोश्ने खबर पमती नथी, हुं केवो हुंशीयार बुं, १ वळी एकनी चामी बीजाने करे, खोटा वादविवाद, गमा ६ करतो करावतो फरे, पारकी निंदा करे, चोरी करे, उगा करे गांठ वाळेली वस्तु बगेमी ले अने मनमा खुशी थाय, ६ वळी चिंतवे के ढुं केवो जोरावर बुं ते पारको माल खालं बुं, मुज सरखो कोण बे, वली नव प्रकारनो परिग्रह धन, . हे क्षेत्र खळु, घर, दुकान, पुत्र, कलत्र, जानवर, गाय, नेंस, REASANSARAGRAPARAGre Gre GS GARAGricksore -yi Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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