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शंसा पूष्णे वर्जीत थश्ने निराशी नावे धर्म कों ने ते पाम्या बे. श्राशंसाए करतां तो पुन्य मागतां पाप आवे अने देवलोक मागतां नर्क तिर्यंचनी
गति मले, वली धर्मध्यान करतां आर्तध्यान E, थाय. वळी महोपाध्याय यशोविजयजीजसविलासमां कहे |
डे के जे क्रिया करे ने अने तेना फळनी ममता धरे , तेना गळामां फांसी आइ कहेतां आवी पमी, ते वचननो विचार, “जैन कहो क्युं होवे, " ए पदथी करी लेजो अने पुद्गलीक विनाशिक सुखनी अाशाने बेदी, ज्ञानघटमां लावी निजपर निन्नता करवी, निजगुण रागी थ; वळी उपर त्रण अनुष्टान गवेख्यां तेने तजवां, अने तद्हेतु अने अमृत ए बे अनुष्टाननो आदर करवो, एज उचित जे. एम दीर्धष्टिए सारांशने न चिंतवे, अने तुच्छ अष्टिए संसारीक सुखने इच्छतो वर्ते तेने जवानिनंदी कहीए. (३) हवे चोयुं लक्षण क्रूर एटले महा पुष्ट नयंकर, माग अध्यवसायवाळो, अती संक्लिष्ट, निध्वंस परिणामी ६ आर्त, रौष, ध्याननो ध्याता, रुमा जूंमा संजोगीक नावे
संबंध मिख्या तेमां रुमा मनोज्ञ ( मनने गमता ) एवा पदार्थनोसदासंजोगचितव,वळी तुंमाअमनोज्ञ(अणगमता) पदाथनो विजोग चिंतवे, मनोज्ञ संयोग संबंधमां तलालीन थर आसक्त थको वर्ते अने ते मनोज्ञ संबंधनी हाणी थवाथी, आक्रंद करे, उंचे स्वरे रुदन करे, घणो उद्रेग , पामे, नाम देने रुवे, बाती कुटे, माथाना केस तोम, वळी
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