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________________ શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. ज्ञाने नहीं जास ॥ सखी० ॥ मोह विकलताए आंधळो ॥ सखी० ॥ ममत्व जर्यो घणो त्रास ॥ सखी० ॥ ३ ॥ दर्शनावरणी रुग्यो घणुं ॥ सखी० ॥ करे चक्षुयचक्षु अनाव ॥ सखी० ॥ काळ अनंत निगोदमां ॥ सखी० ॥ कारण नहीं सामग्री दाव ॥ सखी० ॥ ४ ॥ त्रस थावरमां न देखयो || सखी || दीगे न चजगति मांही ॥ सखी० ॥ ज्ञान सम्यक वि जम थयो ॥ सखी० ॥ रागद्वेषनी वृद्धि त्यांही ॥ सखी० ॥ ५ ॥ क्लेशानंदी आतमा ॥ सखी देखादे ॥ बांधे कर्म अनंत ॥ सखी० ॥ संतापे उदयिक अवसरे ॥ सखी० ॥ इष्ट दाणि महा दुखवंत ॥ सखी० ॥ ६ ॥ - तराय नमी अनादिनो ॥ सखी० ॥ तेथी पाम्यो न संभव नूप ॥ सखी० ॥ काळ लब्धि वी दुकमी ॥ सखी० ॥ नाव लब्धि प्रगट नीजरूप ॥ सखी ० ॥७॥ द्रव्य कर्म नाग्योतदा ॥ सखी० ॥ नाव कर्मनो अभाव ॥ सखी० ॥ नो कर्म संग परहर्यो ॥ सखी० ॥ दुवा सिद्ध निरंजन राव ॥ सखी० ॥ ८ ॥ ज्ञान शीतळ करी पामीए ॥ सखी० ॥ मुक्ति सुखनुं धाम ॥ सखी० ॥ सादि अनंत स्थिति त्यां जली ॥ सखी० ॥ तेने पामुं ए बे मूज काम ॥ सखी० ॥ ॥ संपूर्ण. स्तवन चोथुं. ॥ सुगुण सनेहारे कबुये न वीसरे ॥ ए देशी ॥ अजिनंदन जिन आनंद पूरणो, जाव अध्यातम पा(2009) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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