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________________ श्री धर्म प्रवर्तन सा२. 9 थाय सलना ॥ अजि० ॥६॥ उपनोग वारंवार जोगवे, 9 बीजा समयथी यावत् चिरकाळ ॥ ललना ॥ वच्चे विरह- १ काळ आवे नहीं, उपनोग लब्धिमाहे रसाळ ॥ ललना ॥ ॥अजितः॥ वीर्य स्फुरणा गुण स्वन्नावे लहे, गुणगुणगत उपयोग निन्न ॥ ललना ॥ समे समे फुरणा अनिनव पणे, वीर्यलब्धि मांही सदा लिन्न ॥ ललना ॥अजित॥७॥ है ए लब्धि पांच दायक नावनी, नवि प्रकट करो व्यक्ति नाव ॥ ललना ॥ सहो सामर्थ्य पर्याय सिद्धगति, त्यां 6 घाति अघाति कर्म अन्नाव ॥ ललना ॥ अजितः ॥ ए॥3 हेतुक्षय उपशम चोथा गणथी, क्षिण मोह गण पर्यंत ॥ ललना ॥ घाति चउकर्म तेहथी खपे, लहे केवळनाण महा संत ॥ ललना ॥ अजितः ॥ १० ॥ जीव सत्ताये लब्धि रही पिंपणे, ज्ञान शीतळ ए शीवसुख कंद ॥ लसना॥ तेने रोपो ग्रंथिन्नेद अवसरे, सींचो ज्ञान रस वृद्धिये आणंद ललना ॥ अजितः ॥११॥ संपूर्ण. स्तवन त्रीजु. ॥ चंप्रनु मुख चंद्र, सखी मुने देखण दे ॥ ए देशी॥ श्रीसंनव स्वन्नाव रमण ॥सखी देखण दे॥ उपयोग अनु- 6 नव ज्ञान ॥ सखोमुने देखणदे॥दायक लब्धि अनंत सदा सखी० ॥ गुण गुण निन्न व्यक्ति विज्ञान सखी०॥१॥जीवसत्ता निर्मळ सदा॥सखी०॥ अनादि अनंत ए सिद्ध ॥ सखी० ॥ 5 आवरण लाधे नहीं कदा ॥ सखी० ॥ ए निर्लेप वस्तु ऋद्ध ॥ सखी०५॥ मिथ्यात्व नावे न देखीयो ॥ सखी ॥ अ-6 (२०६) OGIGGrenorrore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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