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________________ FAMRAGNBADRASAREER SIRAGIRIGree हे समकित मूळ आज्ञायुक्त तीरथ, स्थापे श्रादि जिणंदरे॥ है १ तीहां सूत्र दुवादश रचता, लब्धियें गणधर मुनिंद रे॥ ॥ देवाधि०॥ ४ ॥ नव्य जीवने ए महा उपगारी, मिथ्या है व टाळण हारी रे ॥ ज्ञानशीतल करी समकित पामे, १ सोही सिद्ध अधिकारी रे ॥ देवाधि० ॥ ५ ॥ संपूर्ण. स्तवन बी. ॥ देशी ललनानी ॥ अजित जिनपति देशना, सुणतां प्रगटे आनंद ॥ ॥ ललना ॥ जीव पुद्गलनी निन्नता, दाखे दुफार जिणंद ललना ॥ अजित जिनपति देशना ॥ ए आंकणी ॥१॥ जीवसत्ताए सिद्ध अनादिनो, ए दायक लब्धिवंत ॥ ललना ॥ संग्रह नयना पदथी, अव्यक्तव्य गुण अनंत ॥ हूँ ॥ ललना ॥ अजीत० ॥॥ एम बती पर्याये जाणीए, ? जिम बीजमां रघु वृद ॥ ललना ॥ वळी काष्ट मांही अ ग्नि रही, तेम काया व्यापक जीव शुद्ध लद ॥ ललना र अजित जिन ॥ ३॥ ए धर्म वस्तुगत 5ळखो, करोश्रद्धा जीव पुदगल निन्न ॥ ललना ॥ जीव गुण रागी थश् ग्रहो, ६ तेहने अनुनवो तद्गत थ लिन्न ॥ ललना ॥ अजित॥ ॥४॥ तदगत नावे ग्रंथी नेदीने, पामो सम्यक दर्शन ज्ञान ॥ ललना ॥ शुद्धातम अनुन्नव करो, मळे नीज गुण है लब्धि दान ॥ ललना ॥ अजितः ॥ ५॥ त्यां गुण गण निन्न व्यक्तव्यता, ए लान लब्धि कहेवाय ॥ ललना ॥ छ लोग लब्धि गुणगत त्यां लहो, लोग गुण निष्पन्न समेत SACRroDKom Donomics GOOGDMora.ornerGore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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