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निमित्त प्रवृत्ति कीजीयें मण, ते जोगे कार्य निपजंत मनः ॥ ६ ते योगता कारण सही म०,नहीं तो अकारण कहंत म० ११॥ 0 एम सप्त नय ग्रहीए म०, नहीं एके उत्थापक हुँत मन० ॥ ६ शक्ति ते व्यक्ति हुवे म०, थाय संग्रह एवंचूत मन० १५ ॥
श्म सिद्ध साधन साधीये म०, कहे ग्रंथे ज्ञानी गुरुराज म॥ झान शीतळ श्रद्धा करो मलहो समकित सारो काजम०१३
इति पाठक पद पूजा ॥ ४॥
पूजा ॥ ५॥ मी. ॥ दुहा.॥ ज्ञानी ते साधु नमुं, जाणे वस्तु स्वन्नाव ॥ उपाधि अळगी करे, त्यां शीवसाधन दाव ॥१॥
॥ढाळ ५ मी. ॥ ॥ गीरिवर दरसण वीरला पावे ॥ए देशी ॥ दू मुनि महंत पदपूजा कीजे, मुनि गुण उळखतां दील रीमे॥ 3 मुनि महंत पदपूजा कीजे ॥
मुनि दरसणथी समकित पामे, अनुक्रमे सिद्ध गति पण लीजे १ मुनि महंत पदपूजा कीजे ॥ ए आंकणी. ॥१॥ पंचद्रि विषय अशुन्न निवारी, जीतेंद्रिय यति धर्मे री मु० पेहेलुं धर्म दमा अंतरमां, क्रोध तजी समता रस पीजेमु०॥ बीजु माईव धर्म अमानी, मद आठ तजी मोटपे नरी मु.
त्री आर्यवधर्म सरळता, कपटरहित अवक्र थश् जेम०३॥ है ४ चोथु मुनि धर्म ज्ञान वैरागे, तजी पर ममता लोन दणीजेमु०॥ 5 श्म चौधर्म कषाय अनावे, गुरु मूख वचने एम सुणीजे मु० ४ है 5 पंचमं तपधर्म द्वादश नेदे, षट् षट् बाह्य अत्यंतर कीजे म.. PrasoicerstarNERY
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