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________________ १२. ॥2॥ GroGORAGIRGAONE PARIKRABAR BREARRENOLONASneares बहुंसंयम आश्रव त्यागे, सत्तर नेद घणी रीके ग्रहीजे।मु०॥ १ सातमुसत्यधर्मसत्यनाषाए,आझासत्यवस्तुसत्यसमजीजेमु।। g अष्टम शौचधर्म नेद ज्ञाने, पुदगल अनुत्नवत्यागी वरीजे मु.॥ नवमुं धर्म अकिचन दाख्यु, परिग्रह त्यागी सनेह हणीजे मु.॥ दशमुं बह्मचर्य धर्मनाख्यं, त्रिकरण योगेवेद विषेनसेवीजेमु.॥ एम दशयतिधर्म आराधी, मुनिगुण वृद्धि लहे रंगरीके मुण॥ है & संयम गण विशुद्धी वरतां, ज्ञान शीतलकरीशीवपदलीजे मुा __इति मुनि पद पूजा ॥ ५॥ मी ॥ ॥ पूजा ॥ ६ ॥ हो ॥ दुहा ॥ वस्तुने वस्तुपणे, सद्दहे सो समकित ॥ अवस्तु वस्तु कहे, ते मिथ्यात्व:त्रम नित नेद शान अंतर जगे, तीहां वस्तु उळखाय जीच पुद्गल उफारता, श्रद्धा स्थिर न मोलाय ॥२॥ ते समकित दरशण नमुं, शिवपद आपणहार ॥ सर्व धर्मनुं मूळए, गुण वृद्धि आधार ॥३॥ ॥ ढाल ६ छठी ।। ॥ तीरथनी आशातना नवी करिये ॥ ए देशी ॥ समकित दर्शन पूजीए नवी नावे, नाव स्वन्नावे समकित आवे, तीहां मिथ्यात्व मूळथी जावे, पामे चोधुं स्थान ॥ समकितः ॥ १॥ ए आंकणी॥ दर्शन अनुन्नव ते सही प्रत्यद, देखे शुद्ध स्वरूपनो पद ज्ञान योगे दर्शन हे विचक्ष, जाणे देखे एम ॥ समकितः ॥ २ ॥ संसार छेदक ए सही, अति बळी, पमतां अर्द्ध पुद्गल कही, नहींतो ६ (१६४ ) 66 Dostosos RAGRABPORGIBAR BIGNERAGARGrere Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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