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________________ श्री धर्म प्रवर्तन सा२. सात आठ नव रही, पनी सिद्धि लहंत ॥ समकित० ॥ ॥३॥ चारित्र विण सिद्धि वरे एम जाणो, नहीं समकित 5 वीण शीवराणो, समकित गुण परथम आणो, थाशे कारज सार ॥ समकितः ॥ ४ ॥ समकित विण धर्म साधना अलेखे, करे किरिया जगत सौ देखे ॥ नणे ज्ञान कथे न जाणे रेखे, अंकविण बिंदु जेम ॥ समकितः ॥ ५॥ गत समकितने पूरवे आयु बांध्यु, ए बेड विण समकित साध्युं॥ वीजें आयुष्य बांधे नहीं लाध्यु, देव वैमानि बंध॥ समकिता ॥६॥ मळ उपशम दय उपशम दय जाणो, तेथी समकित त्रिविध आणो ॥ दायक त्रण चार नवे टाणो, सिद्धि वरशे एम ॥ समकितः ॥ ७ ॥ सास्वादन उपशम पंचवार लहीजे, क्षय उपशम असंख्यवार कीजे ॥ दायक एकवार , है ग्रही सीजे, नवस्थीति मांही ॥ समकित ॥ ॥ क्षय१ उपशम परथम लहे सिद्धांते, उपशम कर्म ग्रंथे अकांते ॥ पामे समकित शांत दांते, निन्न शास्त्रे विचार ॥ समकित० ॥ ए ॥ समकित गणथी पनी मिथ्यात्वे जावे, तीहां रहतां अनंत काळ थावे ॥ कर्मबंध अनंतो पावे, स्थिति न वधे एम ॥ समकितः ॥ १० ॥ इत्यादिक गुण मोटको सिद्धि६ दाता, गुरु वचने कहे गुणग्याता ॥ समकित नावना मुनि १ ध्याता, ज्ञान शितळ गाय ॥ समकित० ॥ ११ ॥ इति समकित दर्शन पद पूजा.॥ ६ ॥ ठी. पूजा ॥ ७ मी ॥ दुहा. ॥ ह, जीव स्वन्नावे ज्ञान ते, चारित्र समकित मूळ ॥ _ _(१८५) Share Bartan Gad Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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