SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ GOOGor WARNAGAR GORIERGA GRAGAT श्री धर्म प्रवर्तन सार. ।। ढाळ ॥४॥ थो॥ हे ॥रंगरसीया रंगरस बन्यो मन मोहनजी ॥ ए देशी॥ ६ पाठक पदने पूजीए मनमोहनजी, ए छादश अंगना जाण ॥ मनहुं मोमुरे मन मोहनजी ६ नय गर्मित दीये देशना म० नहीं एकांत पदनी ताण॥म०१॥ ६ शब्द नये धर्म साधना म० तेमां चउप्रथमनी समाय ॥मन॥ 5 अंश आरोप नैगम नळे ॥मन॥संग्रह सत्ता ग्रहवाय ॥म०५ नेदज्ञान अंतर जगे म०, करे चेतन पुद्गल निन्न ॥ मन० उपाधि अळगी टळे म०, ए व्यवहार नय चिन्ह ।।म०३॥6 मन स्थिर घरमा रहे म, थर शुद्धि अंतरमांही॥ मन ॥ ऋजुसूत्रनय एह म०, परिणामग्राही त्यांही ॥ मन ४ ॥ ए चउ शब्द नये नळे म०, इहां प्रगटे समकित धर्मम॥ अनुक्रमे वृद्धि लहे म०, आवे संनिरुढनो मर्म ॥ म० ५॥ १ ए नये अरिहंत पद लहे म०, तीहां उ नयनुं वृत्तांतामि॥ एम कार्य शब्दथी साधीयेम०, चउ पेहेला ए निमित्त एकांता६ १ आयुष्य अंते सिद्धिवरे म०, लोक शिखर करे वास॥मना एवंचूत नय तीहां होवे म०, हवे कारणिक तीहां नहीं पास॥ पुद्गल संग जीहां लगे मण्, तीहां कारणिकनो रहे वास॥म० कार्ययोगे कारण कयु म०, नहीं तो कारण नहीं तासाम०७ 9 शब्द नय साधे नहीं म०, तीहां स्थीर मिथ्यात्व धर्ममन॥ १ कारण दुनदे कयु म०, एक कार्य कारण मर्म ॥ मन ए॥ 9 योगता कारण बीजु कयु म०, ते समजो चतुर महंताम॥ हे कार्य उपादाननु हुवे म०, ते कार्य कारण कहंत म॥१॥ है 5866sxxreeDEMY GreGAGermroGBODMARGra GR&SRA VM Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy