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________________ Regrana GROGRAM RAGramBROBERGornerBOOKS श्री घर्भ प्रवर्तन सस२. १ बातमज्ञानी जग आहे, केवळ शुद्ध स्वन्नाव. ॥१५॥ स्वपर विकल्पै वासना, होत अविद्या रूप ॥ 2 तातें बहुरि विकरूपमय, नरम जाल अंध कूप ॥ १३ ॥ तु पुत्रादिककी कल्पना, देहातम ब्रम नूल ॥ ताकू जम संपति कहै, हहा मोह प्रतिकूलः ॥ १४ ॥ या ब्रम मति अब बांमि दौ, देखौ अंतर दृष्टि ॥ मोह दृष्टि जो डोमीये, प्रगटे निजगुण सृष्टि ॥ १५ ॥ रूपादिक को देखिवो, कहन कहावन कूट ॥ इंजिय जोगादिक बले, ए सब खूटा सूट ॥ १६ ॥ रूपेके ब्रम सीपमें, ज्यूं जम करे प्रयास ॥ देहातम ब्रमतें नयो, त्यूं तुज कूट श्रन्यास ॥१७॥ हवे नेमीदास कृत अध्यात्म सार ग्रंथेः हो । पुद्गलसे रातो रहे, जाणे एह निधान ॥ तस लाने लोज्यो रहे, बहिरातम शनिधान ॥ ५॥ हवे आनंदघनजीकृत चोवीशीमां सुमतीनाथजीना स्तवन मध्येः थातम बुद्धे कायादिक ग्रह्यो। बहिरातम अघरूप सुझान॥ g कायादिकनो साखी घर रह्यो, अंतर आतम रुप ॥ सुझानी ॥ सुमंतिः ॥ ३॥ इत्यादि अनेक शास्त्रनी साक्षीए, उपर कहेला श्रशुद्ध व्यवहारना चारे नेद मिथ्यात्व प्रवर्तनमां नळे जे. तेना ग्राहकने बहिरात्मा कहीए. ते पुरुष धर्म करवा Granoranoranor GrorenaGBSE Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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