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________________ Owneronormonorror श्री धर्म प्रवर्तन सा२. चाहे, चारित्र लेइ क्रिया करे, व्यवहार नये निर्दोष देखाय पण समकित पामे नहीं, अने तेनी मुक्ति पण थाय नहीं. कर्वा डे के:थे विरया सावजाश्रो // कषाय हीण महब्वय घरावि // 6 & सम्मदिहि विहुणा // कयावि मुख्खं न पावंति // 1 // है ए गाथानो नाव विचारतां उत्कृष्टा थश्ने फरे पण अशुद्ध व्यवहारी जे. ज्यां सुधी कायाने जीव मानी रह्यो है डे, जीव कायानी जूदाइ जाणी नथी, त्यां सुधी अशुद्ध व्यवहार टळे नहीं. एम सांनळी को पूढे के ते शी रीते टळे ? तेनो उत्तर-प्रथम सद्गुरुनी शोध करे तेने शुनोदय कारण सद्गुरु मले, पण ते गुरु केवा डे ? तो 1 कथु बे-समयसार नाटक ग्रंथेः सवैया एकतीसा. झानके उजागर सहज सुखसागर, . सुगुण रतनागर वैरागरस नो हे // सरणकी रीत हरे मरणको नैन करे, करनसो पीठ दे चरण अनुसयों है // धरमको मंगन नरमको विहंमन, ज्यु परम नरम व्हे के // करमसों लयर्यो है एसो मुनिराज जुय लोकमें, विराजमान नीरखी बनारसी नमस्कार कयों है 5 // - अर्थः-शान के उजागर के आत्मज्ञान ज्योति निहै मळ थर ले जेने वळी अनुन्नव जुवनमा सूर्योदय सरखो PRADEEMBEMBER FORGreen Grearerana.ormernorrenorancom (20) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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