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________________ વર્તન સાર, Groug@nare PAR GALGAREERSelorerseas १ प्रकाश थयो जे जेने, तेनुं नाम ज्ञान उजागर कहीए. " सहज सुखसागर " के० स्वस्वरूपमा चेतन रमे त्यां को जातनी बाधा पीमा वेदवा रूपे थती नथी. बाधापी. ६ मा परस्वन्नाव वृत्तिमा व्यापक पणे होय, अने अव्यापक पणे वर्ते त्यां अव्यावाध सुख सागर स्वस्वन्नाव वृत्तिये प्रगटे. “ सुगुण रत्नाकर" के० आत्माना अनंता गुण बे, & ते गुणोनी खाण ते ए मुनिराज . वैरागरस नों है के है त्यागरूप रस तो एक शानमांज रह्यो , ते रसें नरपुर ठे & अंतःकरण जेनुं एवा “ सरणकी रीत हरै के० पार्श्वनाथ जीने कमठे जळ वृष्टि आदि मोटा उपसर्ग कर्या, ते सरखा कदाच वैरनावे उपसर्ग कोइ तिर्यंच अथवा देवता करे तो पण जगवतीजीनुं वचन-असज्जाश्या देवा ॥ इत्यादि संन्नारी चार निकायना देवताने स्मरे पण र नहीं. अने उपव टाळ एम कहे पण नहीं. जे है मुनिराज बे, ते तो बाह्यमां देवगुरूनुं शरण करे . अने अंतरमा पोतीका आत्मानुं शरण करे , ते सिवाय अन्य शरण करवानी जे रीत तेनो तो परिहार को ले. “ मरणको नै न करे” के० जे अज्ञानी मिथ्यात्वी जे ते कायाने जीव मानी तेनी साथे पोतापj राखे . वळी पुत्र कलत्र धन्यादि वस्तु साथे स्नेह बंधन " दृढ जे जेने ते पुरुषो मरणथी गरे पण साधु मुनिराजे तो १ ए सर्वे वस्तुने रोग जाणी पर मानी बोकी जे. वळी काया-3 ऐ थी विरक्त चित्त . अने जाणे ले के ग्रामा ज्ञानादिक 6 (२१) Bardaroornrepreneurorenore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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