SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ FRAGMEASEARRATRISANSASSAGAR ...... १ गुणे करी नावप्राणधारी ले तेनो नाश त्रण कालमां थाय नहीं. शाश्वतपणा माटे. एम मरणादि नय बेदीने निर्जय १ यया ले. “ करनसो पीठ दे" के पांच इंजि श्रने नही नोडि जे मन ए उनुं नाम करण . तेना विषय विकारने पूंठ देश विमुख थया डे एटले जे आत्मदर्शि थया, ते- है मने विमुख कहेवा. “ चरण अनुसयोंहै” के० चारित्र ते चपळता रहित, स्थिरताना परिणाम अने आत्मखरूपमा एकत्वपणे रमण, तन्मयता स्वरूप विश्रांति तत्वानुन्नव तदूप चारित्र ग्रह्यो जे जेणे " धरमको मंगण" के० ए मुनिराज डे ते धर्म स्थंन्न , एमना आलंबन आधारे चतुविध संघ धर्म प्रवृत्ति करे डे वळी उपदेश सांनळी पूजीने निःसंकित थाय बे वळी गुरु महाराजा केवा जे ? के षटदर्शन शास्त्रना जाण . न्यायतर्कमां कुशल ने अध्यात्ममां प्रवीण, सत्य नाषाडे जेनी, पोते तरे, अने बीजाने तारेजे देहधारीले पण अंतर्वत्ति जोगे देहातित नावने पाम्या ज्ञानध्यान जोगे श्रात्मा पुष्ट कयों ने जेणे, बाह्य अंतर सर्व वस्तुना जाण , पंमितानी पंक्तिमा अग्रेसर सर्वने पूजवा वांदवा योग्य, नव्य जोवने ए मोदनो सार्थवाह डे वळी ६ अंतर्वत्ति योगे अनुत्नव जुवनमा आत्मधर्मनी रचना मंमा-१ ६) णी ले जेने, तेमने धर्मको मंगन जाणवो. “ नरमको विहं६ मण ज्यु" के० मिकता जे विकसता अथवा शंका कांक्षा १ तेनो नाश कयों , जेम अंधकारनो नाश कर्ता सूर्योदय बे, तेम ए ज्ञानी जाणवा. " परम नरम व्है के करमसो Learsuasivdeoroscom Grammarriagews noramanarassroo RoardGGRGramBordGRGGARGre Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy