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________________ Marnar STESTROGRAM RAGGARWARMERMIRMIR - श्री धर्म प्रवर्तन सार. १ सयों है" के बाह्यमा कायादि योगे पुद्गल प्रवृत्ति करवामां थाक्या माटे नरम कह्या, पण अनंत वीर्यना धणी बे. कर्म परिणाम राजा साथे युद्ध करीने पोताना आत्मा ना असंख्याता प्रदेशरूप खेत्रथी मिथ्यात्वादि केटलीक १ कर्म प्रकृतिश्रोने जेणे हणी , तेमनुं नाम साधु मुनिराज डे. “ एसो मुनिराज” के उपर कह्या इत्यादि गुणे गुणी, & संसार समुह तरवाने नाव समान “ नूय लोकमें" के है हे अढी द्वीपमां विराजमान के० सदा विद्यमान होय . " नीरखी बनारसी” के० तेमने जो नीरखी एटले अंतदृष्टि करी साधु गुण गवेख्या ते साधु नीरख्या ते गुणमय चेतनमूर्त्तिने बनारसीदास समयसार नाटक ग्रंथना कर्ता । एवा जे श्रावक तेमणे " नमस्कार कयों है” के० हृदय कमळ उवासथी घणो प्रमोद बता गुण रागे पंचांग प्रणाम ग्रंथ रचना मंमाणमां मंगळाचरणरूपे को ले ३ त्यादि गुणे साधु मुनिराजनीअोळखाण करवी, ब्रममां नू. ला पम नहीं. रत्न साटे काच वोहोरवो नहीं आत्महेतु तो एजबे, तेमनां पासां सेवीए तो दुःखनी परंपराए चनगति संसारब्रमण ते थकी बुटीए. ए ज्ञानी गुरुराय आपणने उपदेश करे ते समयसार नाटक ग्रंथना मोक्ष द्वारे है कह्यो : सवैया एकतीसा. 9. नेद ज्ञान आरासों दुफारा करे ज्ञानी जीव, आतम करम धारा निन्न निन्न चरचे ॥ salonsexgora Gordor Goras Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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