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________________ Grenorensama MOOOreovaro@roPro@were श्री धर्म प्रवर्तन सार. अनुजौ अन्यास सहै परम धरम गदै करम नरमको खजानो खोलि खरचै ॥ योंही मोख मुख ध्याव केवल निकट श्रावै पूरन प्रकाश पावै पूरन के परचै ॥ नयो निरदोर याहि करनो न कलु और . ___ एसो विश्वनाथ ताहि बनारसी अरचे ॥ २ए ॥ . ___ अर्थः-नेदज्ञान आरासो के नेदज्ञानरूप कसोटी- हैं ए कशीने एटले लीक करीने ज्ञानी जीव “ दुफारा करै" के यथा दृष्टांते-जेम चोकसी लोको सोनानी परीक्षा क-के सोटीना पथ्थर उपर लीक करीने करेले के एक तोलामां एक वाल वा बे वाल त्रांबुळे अथवा रुपुंडे. बाकीनुं शुद्ध कंचन जे. एम बे लाग जूदा चिंतवे. ए दृष्टांते सम्यकझानी आत्मा परीक्षा करेले के पोतानी कायामां अंतापकपणे रहेलो पोतीको आत्मा ते द्रव्यथी त्रिकाळ वृत्तिये अखंग अविनाशी डे वळी क्षेत्रथी अखंख्यात प्रदेशी डे ) काळथी अनादि अनंत डे अने नावथी शान दर्शनादि अनंत गुणमय उपयोगी . सादात् सिद्ध परमात्मा ते १ पोतेज बे. कर्म संयोगे कायामां वश्योडे. कायामां परिण- १ ट्र म्यो. पण कायाथी जूदो . शब्द, रूप, रस, गंध अने स्पर्श ए पुद्गलना पर्याय. तेने इंद्रियद्वारे सगांगीपणा ना पूषणे करीने पोते अनुत्नवेडे, ए सर्वे पुद्गलनो अचे2) तन स्वन्नाव. श्रने अंतर्व्यापकपणे अनुन्नववावाळो ते चेतन. एम जीवनी अने पुद्गलनी निन्नता एटले जू- 3 GRAMDAR GROGROGRAMMARGINDAGINAR (२४) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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