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________________ GMOR Para Gre GRASAREER SAGAR श्री धर्म प्रवर्तन सा२, १ दाइ ज्ञानरूप कसोटीये थाय, तेने नेदज्ञान कहीए । “आतम करमधारा निन्न निन्न चरचै" के हवे आत्मधाराने आत्मा थकी प्रगट थयेली अनुन्नव ज्ञानधारा तेने उपादेय जाणी ग्रही स्व स्वरूपे परिणमावे अने कर्मधारा के कर्म थकी प्रगट थयेसी ने काया वचन अने मन तेने हेय जाणीने तजे “ अनुन्नौ अन्यास लहै” के हवे 9 त्यां शुद्धात्म स्वरूपनो अनुन्नव अन्यास परसंग रहित पणा माटे उपयोगनी विशुद्धिये वृद्धिपणुं पामे, “ परम धरम &, गहै" कहेतां हां रूपक श्रेणी मां अने शुक्लध्याननापे। हेला पायाना ध्याता थाय त्यां परम नाम उत्कृष्ट धर्म ग्रहे 6 " करम नरमको खजानो खोली खरचै” के० इहां ब्रमि कतारूप मोहनीय कर्मनी प्रकृतिना परमाणुं दळनो अनं-1 तो खजानो आत्म प्रदेशे रहेलो तेने खोली एटले उदय२ मां लावीने खरचे एटले शुद्ध परिणतिना लग्न कार्यमां द शमा गुणगणा अंते खरचे एटले विखेरी नांखें निर्जरे त्यां मोहनी कर्मनी सत्ता आत्म प्रदेशथी खुटे. वळी रागद्वेष अशुद्ध परिणतिनो पण छेद थाय, त्यां यथाख्यात चारित्र क्षीण मोह गुणगणे पामे इहां शुद्ध परिणतिनुं पाणीग्रहण पण थाय, ही के० इहां मोक्ष के० मोक्षने एटले कर्मथी मूकाववाने “ मुख ध्यावै " के मुख्य वृत्तिये शु. क्ल ध्याननो बीजो पायो ध्यावे, त्यां ज्ञानावरणीय तथा दर्शनावरणीय अने अंतराय ए त्रण कर्मनो सत्ताथी उ. ( बेद थाय, त्यां " केवळ निकट श्रावै” के० केवळज्ञान as.. ४ (२५) TAGRGornoongrenoNGIGRAMROPAGrena Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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