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________________ - २. HIMN FIRSAGARAGRAMSARARIAGRAre Bara १ गुणे व्य उपचार ॥ पर्याय व्यनुं ॥ गौर देव जिम आतमाए ॥१०॥ गुण पजाव नपचार ॥ गुणनो पावे ॥ जिम मति तनु तनु मति गुणोए ॥११॥ अर्थः-परजव्यनी परिणति नळे थके अव्यादिकने नवविध उपचारथी कहीए ते असन्तूत व्यवहार जाणवो ॥५॥ हवे अव्ये अव्यनो उपचार ते जीन आगममांखीरनीरने दृष्टांते जीवने अनादि संबंधे पुद्गल मिश्रित कह्यो डे. माटे जीवने पुद्गल कहीए. ए जीव अव्ये पुद्गल र अव्यनो उपचार थयो. ए पेहेलो नेद ॥६॥ हवे गुणे गुणोपचार ते अरूपी उपयोगी अलेशी आत्माने कृष्णादि उ लेश्यावंत कहीए बीए ते आतम गुणमा पुद्गल गुण र जे लेश्या परिणाम तेनो आरोप थयो ए बीजो नेद ॥७॥ व हवे पर्यायें पर्यायनो उपचार ते अमूर्त्त, अरूपी श्रा१ माने घोमा हाथी आदि जे पुद्गल स्कंध तेने जीव पर्याय 9 कहीए बीए ते पर्याय पुद्गल रूप तेने जीव पर्याय कहेवा ए उपचार समजवो ए त्रीजो नेद ॥ ७ ॥ हवे अत्ये गु६ णोपचार ते अरूपी आत्मा ने ते बतां दुं गौरवणे ७ एम ७ बोलीए ते हुं शब्दे श्रात्मा अने गौर ते पुद्गलनो गुण जे धोळो वर्ण तेनो उपचार जीव अव्यमां कर्यो, ए चोथो नेद थयो. हवे अव्ये पर्यायोपचार ते देहातित जीवने है शरीरी कहेवो एटले शरीर ले ते पुद्गल अव्य पर्याय डे (33) BARSARAMRAGRASSIGNSAGAR GARGAR GARAGNSAGAR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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