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________________ श्री धर्म प्रपतन सा२. ......... तेनो उपचार जीव अव्यमा थयो. ए पांचमो नेद ॥ ए ॥ व हवे गुणे ऽव्योपचार ते देह गौर देखाय ते आत्मा एम १ गौरपणो उद्देशीने आत्मविधान करीए एटले ए गौरतारूप ६ पुद्गलनो गुण तेमां आत्मऽव्यनो उपचार थयो ए हो १ नेद. हवे पर्याये व्योपचार ते जेम देहने आत्मा कहीए , एटले देह बे ते पुद्गल पर्याय ने तेमां आत्मऽव्यनो उप- १ 5.चार थयो ए सातमो नेद ॥ १० ॥ हवे गुणे पर्यायोपचार ते जेम मतिक्षान गुण जे ते इंजिनो इंति संयोग डे माटे ६ & शरीरज कहीए हां मतिज्ञानरूप आत्मगुणने विषे शरीर है रूप पुद्गलपर्यायनो उपचार को ए आठमो नेद. हवे 6 पर्यायें गुणोपचार ते जे शरीर के तेज मतिज्ञान गुण दे तो शहां शरीररूप पुद्गलपर्यायने विषे मतिज्ञान आत्मगुणनो उपचार थयो ए नवमो नेद एम उपचारे असलूत व्यवहार नव नेदे कह्यो ॥ ११ ॥ असदलूत व्यवहार ॥ एम उपचारथी॥ एद त्रिविध दवे सांभलोए ॥१२॥ असद्लूत निजजाति ॥ जिम परमाणु ॥ हो वह प्रदेशी नाषियए ॥१३॥ तेह विजाति जाणो ॥ जिम मूरत मति ॥ मूरत व्ये नपनीए ॥१४॥ असद्लूत दोन नांत ॥ जीव अजीवने ॥ हे विषय ज्ञान जिम जाषियेए ॥१५॥ Horrorder@nareneurongerous PROGrewariser Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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