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________________ GrRAGardnerGRAGragonorrorenor Gardner AairnerBARABASIRAGreams श्री धर्म प्रवर्तन सा२. मश्नाणादिक तेहगें ए ॥३॥ गुण पर्याय स्वन्नाव ॥ कारकतन्मनो ॥ अरथ नेद छे एहनोए ॥४॥ अर्थः-जेम जगतमां आत्मजव्यकेवळझान सृष्टिए प्रयोग करीए ते शुद्ध सद्लूत व्यवहार थयो, वळी मति ज्ञानादि आत्माना गुण एम बोलीए ते अशुद्ध सद्भूत व्यवहार थयो ॥३॥ गुण गुणीनो पर्याय पर्यायवंतनो स्वन्नाव स्वन्नाववंतनो कारक, अने तन्मय के कारकी तेनो जे एक अव्यानुं गत नेद बोलावीए ते सर्प उपनयनो अर्थ जाणवो. घटस्यरूपं घटस्यरक्तता, घटस्यस्वन्नाव, मृदाघटो निष्पादित इत्यादि नेदे अर्थ प्रयोग जाणवो. ॥ ४ ॥ असद्लूत व्यवदार ॥ परपरिणति नलें ॥ व्यादिक जपचारथोए ॥५॥ व्ये व्य उपचार ॥ पुद्गल जीवने ॥ र जिम कहिये जिन आगम ए ॥६॥ काली लेस्या नाव ॥ श्याम गुणे नती॥ 3 गुण उपचार गुणे कह्योए पर्यायें पर्याय ॥ उपचारें वली॥ दय गय खंध यथा कह्याए व्ये गुण उपचार । वली पर्यायनो॥ ई गौर देह हुं बोलताए ॥ए॥ 66rades PARAGARLGARAGRAGAGARIGOLGAR G ॥G ORAGAR GI Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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