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निज अव्ये गवेषे ॥ गवेषे पजव अनंताजी ॥ नेदझाने प्रथक् स्वरूपे ॥ क्षय उपशम शुन्नसंता ॥क्षपक० ॥ ४ ॥ शुक्लध्यान तप पहेलो पायो ॥ ध्यातां अग्नि अति ज्वाळाजी ॥ मोहपही शहां जस्मी थावे॥ नेद बेद अन्नेदी साला ॥ पक० ॥ ५ ॥ य उपशम बेद इहां मोहनी- है है नो॥ अशुद्ध परिणति बेदीजी ॥ रागद्वेष ए विनाव
चेतना ॥ हु शुद्ध चेतना समवेदी ॥ रुपक श्रेणी ॥६॥ मिश्र नाव इहां नही लाधे ॥ लाधे शुध्ध परिणतिजि ॥ गुण पर्याय अजिन्न निज द्रव्ये ॥ ऐक्यता उपयोग वृत्ति ॥ रूपक० ॥ ७॥ यथाख्यात शहां चारित्र पामे ॥ दशमा गणना अंतेजी ॥ शुक्ल ध्यान बीजो पायो ध्याता॥ वितराग बारमे एकंते ॥ क्षपक० ॥ ॥ पर अनुन्नव शहां हूँ नही लाधे ॥ समन्नीरुढ नय साधेजी ॥ घाती कर्म त्रण
क्षय शहां पामे ॥ केवळ नाण दर्शण लाधे ॥ पक० ॥ ए ॥ ६पक श्रेणी उत्तरोत्तर वृद्धि ॥ ज्ञान अनुन्नवयोगजी ॥ कृत्रीम पद हां नही लाधे ॥ ज्ञान शीतल समाधि संयोग ॥ पक० ॥ १० ॥ ढाल बीजी संपुर्ण ॥
॥ दुहा ॥ ए ढाळ त्रीजी ॥ राग सारंग हो धन्ना ए देशी ॥ के१ वळ सहो गण तेरमेरे मीता ॥ ज्ञान दर्शण अनंत ॥ ६ घाती कर्म अन्नावथीरे मिता ॥ निर्मळ उपयोगवंतरे रंगी.
ला मिता ॥ ए गुणो सेवोने ॥ ए गुणो प्रगटे घटमारे ह हे मिता ॥ उपयोग विशेष सामान्यरे रंगीला मिता ॥ ए १ novorotowo non
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