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________________ FRAGMTAGRAMMAR SAMRAGRAGAR १ जे पुरुषे यथा प्रवृत्ति आदे त्रण करण करी, कर्म स्थिति ६ घटामी, ग्रंथि नेद करी समकित प्रगट कर्यु बे, वळी वम्यु, १ नथी, एटले चोथा समकित गुणगणानी साबिती बे, तेने | ६ उपादान कारणनी योग्यता होय ए उपादान कारणने कार्य- १ पणे प्रवर्त्तावतां एटले उपयोगे नणवं, अथवा आवश्यकादि क्रिया आदे कर, ते सर्वे व्यवहारना न्याये, देश विरति १ पांचमा अने सर्व विरति उठा ए बे गुणगणे श्रावस्यकादि | क्रिया, साध्य, साधन सापेक्षपणे परंपर कारणमां . माटे १ अमे तीहांज कल्पने निमित्त कारणमां गवेष्यो बे. ते उपा६ दान कारणवालाने व्यवहारना न्याये, साध्य सापेक्ष यो- 8 ग्यताए परंपर कारणमां समजवो अने उपादान कारणनी प्राप्तिना अन्नावे करवं, करावq सर्वे अकारणमा मात्र बुद्धिने अंध करनारूं जे. एम केवळ शब्द रणकार मात्र निहे फळ बे. अने नणवं, नणावq करवं, करावq तेनी सीमा ६ सातमा गुणगणेथी अटकी उपरांत नथी एटले सातमा गुणगणा सुधी सालंबन वृत्ति . तेमां पण ग्रंथि नेद अवसरे तो निरालंबन डे अने सातमा गुणगणा उपर तो आठमा गुणगणाथी केवळ निरालंबनपणुं ने तीहांथी दसमा गुणगणा सुधी नेदज्ञान अने नेदानेद ज्ञान ध्यानगत् बे. उपरांत अनेदज्ञान- साधन डे अने तेरमे गुणगणे अन्नेदशान जे केवळझान, केवळदर्शन आदे दायक लब्धिनी. ई पूर्ण प्राप्ति जे. एम महात्मा पुरुषो कहे जे. (३) (१०५) HEALCERareMBOMBREMONOM SAGGIRGAOBADRASIBSE FacA Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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