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________________ namarkoreangregaon RAMGARGGIRRORAGAGranam श्री धर्म प्रवर्तन सार. ___ सबैया एकतीसा. ज्ञान अनुभव गर्यो, सहज स्वरूप वर्यो चिदानंद गुणागरो राग रस तज्यो है निरालंबसाऊ नांदी. मरणादि जय नांदी देहातित रूपातित यथाख्यात ग्रह्यो है एदी शुद्ध धर्मधारी मोहादि विनाशकारी महामुनी वीतराग तेरमामां गयो है अनंत चतुष्टिमां दायक दान लानने लोगोपनोग वीरीअ, अनंत स्फुरि रह्यो दै अर्थः-ज्ञान कहेतां साकार उपयोगे जीव अजीवादि 3 वस्तुनुं विनाग व्हेंचण करवारूप जाणपणुं तेने ज्ञान कहीए. अनुन्नव जयों कहेतां विनाग व्हेंचणतो ज्ञानथी 3 प्रथम थप गइ ले कही. एटले पोतानो आत्मा मन वचन है श्रने काया ए त्रण योगथी जुदो ने एम सद्दहणा करवा पूर्वक ज्ञानयोगे श्रद्धा करी जे. वली केवो डे सिद्धनो साधर्मि, सिद्धनो बरोबरी एम गुणने उळखी चेतनने ? विषे चेतनपणानी बुद्धि थर ले. अने अचेतनने विषे चेतट्र नपणानी बुद्धि हती ते टळी जे. तीहां गुणरागीपणे प्रशस्त १ राग कहीए. ते रागनो प्रेयों थको, अंतःकरणे उमो उतरे | तिहां मनन जुवने पोताना आत्माने विष परमात्मपदनुं ७ श्रारोपण करीने स्मरण चितवन करे. एम करता करता है अयासे करीने मनयोगे चेतन गुणमां रमण करे. त्यारे 3 _ (१०८) HTRAroraGRAaramaraGhareGroGre PreeMODE Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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