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________________ STORAGARAGMTA SAREERLSMSABAeximag | सिद्ध पदतणी कहुं हवे पूजना, अष्ठ कर्मक्ष्यथी अष्ट गुण पावे॥ पुद्गल रहित ए आत्मरूपे सदा, अनंत गुण वृत्ति अकृत्य थावे ॥ नव० ॥ ३॥ आचार्य उपाध्याय साधु सर्व पूजीये, कंचन कामिनिथी रहित थश्ये सावद्य त्याग त्रिकरण त्रिकरण करी, जाव जीव लगे निस्पृही रहीये ॥ नव० ॥४॥ दर्शननाण चरण तप गुण पूजना, अंतरकरणे & उपयोगी रहीए ॥ तेथी तीहां पामीए स्वरूपें विशुद्धता, है शक्ति सोव्यक्ति परगट लहीये ॥ नव० ॥ ५ ॥ एम नव पदतणी पूजना घट विषे, गुण प्रगटे सो नाव पूजा कहीए॥ छ तेह झाने करी पूजा में वर्णवी, उपयोगे पूजी शीवसुख & लहीए ॥ नव० ॥ ६ ॥ उगणीसें बावन असाम डुवादशी, कृष्ण पक्ष वार गुरुए गा॥ अनुनव पदतणा स्थिर विचारथी, रमण रचना करी पूर्णता ॥ नव०॥ ७॥ मनोरथ माहरो सफळ दुवो आज ए, आनंद उलटनर हर्ष वाध्यो । नवपद आतमा आत्म नावे पूजना, ए विण कार्य नहीं कोए साध्यो ॥ नव० ॥ ॥ एम नवि पूजीये नक्ति घणी कीजीये, वचन सत्य विवेके उचारीयेए॥ज्ञान शीतल करी उपयोग शुद्ध ग्रही, व्यक्ति लही शीव पंथ चालीए॥ नव० ॥ ए॥ ॥ कळश. ॥ श्रुतझान अनुन्नव ॥ ए देशी ॥ 9 उपशम जळे मळ शान्त करीए उपयोग चंदन पूजीए ॥ वळी झान पुष्पज धूप श्रद्धा, दिप अनुलव किजीए ॥ HEACEBOwwxserever GOOGreen Grape More RELordarsanoramaraGorAGGrena (२०२) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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