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શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર, संका ॥५॥ नर्कथी अनंतुं निगोदमारे ॥ दुःख नाषे जीनेद्रदेव ॥ स० ॥ पुद्गल परावर्त तीहां कयौरे ॥ अनंतां ए मिथ्यात्व टेव ॥ स० ॥ संका० ॥ ६॥ धर्म करयां धर्म होवे नहिरे ॥ धर्म करयां बंधाय कर्म ॥ स० ॥ संसार वृद्धि हेतु एरे ॥ मिथ्यात्व अज्ञान नर्म ॥ स० ॥ संका०
॥७॥ मिथ्यात्वी जीव अजीव समोर ॥ न जाणे वस्तु 5 धर्म श्म ॥ स० ॥ अती पाप मीथ्यात्व एरे ॥ बळीयामां के
बळीयो ए सीम ॥ स० ॥ संका० ॥ ॥ ब्यासी प्रकृति पापनीरे ॥ तेमां एक पद्धे धरीए मिथ्यात ॥ स० ॥ वीजा ३ पखे एकासी सवेरे ॥ तोट्यां मिथ्यात नारे नमी जात ॥
स० ॥ संका० ॥ ए ॥ अनंत पुद्गल परावर्तनोरे ॥ मालीक एक मिथ्यात्व दुष्ट स० ॥ अव्रत कषाय जोग त्रण एरे॥ मालीक नव सात के अष्ट । स० ॥ संका० ॥१०॥ वहुल संसारी मिथ्यात्व एरे ॥ सर्व धर्म घाती एह ॥ स० ॥ थप मंगलीकमां मूख्य एरे॥ शत्रु चारित्र रायनो तेह ॥ स० ॥ संका० ॥ ११ सागर सीत्तर कोमा कोमीनीरे॥ स्थिती मोटी ए शत्रु कठोर ॥ स. जगवासी सवे जीवनेरे ॥ राखे आंणमां सेवक ज्युं नगर ॥ स संका ॥१२॥ आपे सहाय सवे कर्मनेरे ॥ मोह पटलीनो पुत्र ए मोटो ॥ स० ॥ ६) एने जोइ अघातीने वळ वधेर । फेरी सबसें ए मिथ्यात्व ६ खोटो॥ स॥ संका॥१३॥ उदय साता असाता वेदनी
रे कही गुण रोधक ते देखो ॥ स ॥ वाला बोध चौवीसीये हरे॥ वोले देवचं जी ए पेखो ॥ स० ॥ संका० ॥ १४ ॥ ३.६ sang angrah
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